Tuesday, March 31, 2015

ओ३म् ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना- मन्त्र- दैनिक संध्या(ईश्वर ध्यान) में यह ८ मन्त्र आते हैं | सभी...

ओ३म्

ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना- मन्त्र-

दैनिक संध्या(ईश्वर ध्यान) में यह ८ मन्त्र आते हैं |

सभी आर्यो को ये मन्त्र अर्थ सहित कंठस्त होने

चाहिए और गायत्री मन्त्र के साथ-२ इन

मंत्रो का जाप करना चाहिए |

कल्याणकारी परमात्मा सदैव सहायक रहता हैं

यदि ह्रदय से उसका ध्यान किया जाए | यदि संभव हो सके तो

नित्य इन्ही मंत्रो से होम

भी करना चाहिए | हमारा निवेदन उन लोगो से

हैं जो वैदिक मंत्रो से दूर हैं उन्हें नित्य कर्म

विधि के मंत्रो से अव्गात कराना हमारा प्रथम

ध्येय हैं | इसलिए

संध्या का ईश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासना प्रकरण ही दे रहे हैं |

शनैः-२ हम और मन्त्र भी यहाँ पर

प्रकाशित करेंगे | मंत्रो के भाष्य महर्षि दयानंद

के प्रस्तुत किये जा रहे हैं |

1. ओ३म्। विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव।

यद् भ॒द्रन्तन्न॒ आ सुव ॥१॥ यजुर्वेद० ३०।०३

(अर्थ – हे (सवितः) सकल जगत् के उत्पत्तिकत्-र्ता, समग्र

ऐश्वर्ययुक्त (देव)शुद्धस्वरूप, सब सुखें कें दाता परतेश्वर! आभ कृपा

करके (नः) हमारे (विश्वानि) सम्पुर्ण (दुरितानि) दुर्गुण, दुव्-

र्यसन और दुःखों को (परा, सुव) दुर कर दूजिए, (यत्)जो (भद्रम्)

कल्याणकारक गुण, कर्म, स्वभाव आर पदार्थ है (तत्)वह सब हमको

(आ, सुव) प्रप्त कीजिए॥१॥)

2. हि॒र॒ण्य॒गर्भः सम॑वत्-र्त॒ताग्रे॑ भूतस्य॑

जातः पति॒रेक॑ आसीत्।

स दा॑धार पृथि॒वीन्ध्यामुतेमाक्ङस्मै॑ दे॒वाय॑

ह॒विषा॑ विधेम।२॥ यजुर्वेद० १३।२

((अर्थ) – जो (हिरण्यगर्भः) स्वप्रकाशस्वरूप आर जिसने प्रकाश

करने-हारे सुर्य-

चन्द्रमादि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किये है,

जो (भुतस्य)उत्पन्न हुए सम्पुर्ण जगत् का (जातः) ;प्रसिद्ध

(पतिः) स्वामी (एकः) एक ही चेतन- स्वरूप (आसोत्) था, जो

(अग्रे) सब जगत् के उत्पन्न होने से पुर्व (समवत्-र्तत) वर्तमान था,

(सः) सो (इमाम्) इस(पृथिवीम्) भुमि (उत)आर (ध्याम्) सुर्यादि

को (दाधार) धारण कर यहा है, हम लोग उस(कस्मै)सुखस्वरूप

(देवाय) शुद्ध परमात्मा के लिए (हविषा) ग्रहण करने योग्य

योगाभ्यास और अतिप्रेम से (विधेम) विशेष भकि्त किया करें॥

२॥)

3. य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॒

दे॒वाः ।

यस्य॒ छा॒याऽमृतं॒ यस्य मृत्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑

ह॒विषा॑ विधेम ॥३॥ – यजु० २५।१

(अर्थ – (यः) जो (आतमदाः)आत्मज्ञान का दाता, (बलदाः)

शरीर, आत्मा और समाज के बल का देनेहाया, (यस्य)जीसकी

(विश्वे) सब(देवाः) विद्धान् लोग (उपासे) उपासना करते हैं, और

(यस्य)जिसका (प्रशिषम्) प्रत्यक्ष, सत्यस्वरूप शासन और न्याय

अर्थात शिक्षा को मानते हैं, (यस्य)जिसका (छाया) आश्रय हू

(अमृतम्) मोक्षसुखदायक है, (यस्य)जिसका न मानना अर्थस्

भकि्त न करना ही(मृत्युः) मृत्यु आदि दुःख का हेतु है, हम लोग

उस(कस्मै)सुस्वरूप (देवाय) सकल ज्ञान के देनेहारे परमास्मा की

लिए (हविषा) आस्मा और अन्सःकरण से (विधेम) भकि्स अर्थात्

उसी की आ ज्ञा पालन में सस्पर रहें॥३॥)

4. यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक

इद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑ ।

य ईशे॑ऽअ॒स्य व्दिपद॒श्पदः कस्मै॑ ढे॒वाय॒

ह॒विषा॑ विधेम ॥४॥यजु० २३ ।

(अर्थ – (यः) जो (प्राणतः) प्राणवाले और (निमीषतः)

अप्राणिरूप (जगतः)जगत् का (महित्वा) अपने अनन्त महिमा से

(एक इत्)एक ही (राजा) विराजमान राजा (बभूव)है,(यः) जो

(अस्य)इस(द्धिपदः) मनुष्यादि और (चतुष्पदः) गौ आदि

प्राणियों कें शरीर की (ईशे)करता है, हम लोग उस(कस्मै)सुखस्व

रूप (देवाय) सकलैश्वर्य के देहv66रे परमात्मा के (हविशा) अपनी

सकल उत्तम से (विधेम) विशेष भकि्त करें ॥४)

5. येन॒ ध्यौरूग्रा पृ॑थि॒वी च॑ ढृढा येन॒ स्वॆ॒ सतभितं येन॒

नाकः॑।

योऽअन्तरि॑क्षे कज॑सो वि॒मानः कस्मै॑ देवाय॑

हविषा॑ विधेम ॥५॥ – यजु० ३२।६

(अर्थ – (येन)जिस परमात्मा ने (उग्र) तीक्ष्ण स्वभाववाले

(ध्यौः) सूर्य आदी (च)और (पृथिवी) भूमि को (दढा) धारण,

(येन)जिस जगदीश्वर (स्वः) सुख को (स्तभितम्) धारण, और

(येन)जिस (नाकः) दुःखरहित मोक्ष को धारण किया है। (यः)

जो (अन्तरिक्षे) आकाश में (रजसः) सब लोक- लोकान्तरों को

(विमानः) विशेषमानुक्त अर्थात जैसे आकाश में पक्षी उड़ते हैं,

वैसे सब

लोकों का निर्माण करता और भ्रमण कराता है,

हम लोग उस(कस्मै)सुखदायक (देवाय) कामना करने के योग्य

परब्रहा की प्राप्-ति के

लिए (हविषा) सब सामथ्-र्य से (विधेम) विशेष भकि्त करें॥५॥)

6. प्रजा॑पते॒ न त्वढेतान्य॒न्यो विश्वा॑

जा॒तानि परि॒ ता व॑भूव।

यत्का॑मास्ते जुहुमस्तन्नो॑ऽअस्तु व॒यं स्या॑म॒

पत॑यो रयीणाम् ॥६॥ ऋग्वेद १०|१२|१

(अर्थ – हे(प्रजापते) सब प्रजा के स्वामी परमात्मन्! (त्वत्) आपसे

(अन्यः) भीन्न दुसरा कोई (ता) उन(एतानी) एन(विश्वा) सब

(जातानि) उत्पन्न हुए जड़-चेतनादिकों को (न) नहीं (परि, बभूव)

तिरस्कार करता है अर्थात् आप सर्वोपरि है। (यत्कामाः)

जिस-जिस पदार्थ की कामनावाले हम लोग (ते)आपका (जुहुमः)

आश्रय लेवें और वाञ्छा करें, (तत)उस-उसकी कामना (नः) हमारी

सिद्ध (अस्सु) होवे, जिससे(वयम्)हम लोग (रयीणाम्) धनैश्वर्य के

(पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥६॥)

7. सनो॒ बन्धरजनिता स विधा॒ता धामा॑नि वे॒द

भुव॑नानि॒ विश्वा॑।

यत्र॑ देवा अ॒मृत॑मानशा॒नास्तृतीये॒ धाम॑न्न॒ध्यैर॑यन्त

॥७॥ यजुर्वेद० ३२|१०

(अर्थ – हे(प्रजापते) सब प्रजा के स्वामि परमात्मन! (त्वत) आपसे

(अन्यः) भिन्न दूसरा कोई (ता) उन(एतानि) इन(वश्वा) सब

(जातानि) उत्पन्न हए जड़-चेतनादिकों को (न) नही (परि, बभूव)

तिरस्कार करता है अर्थात आप सर्वोपरि हैं (यत्कामाः) जिस-

जिस पदार्थ की कामनावाले हम लोग (से)आपका (जुहुमः)

आश्रय लेवें और वाञ्छा करें, (तत्)उस-उसकी कामरा (नः) हमारी

सिद्ध (अस्तु)होवे, जिससे(वयम्)हम लोग (रयीणाम) धनैश्वर्यो के

(पतयः) स्वामी (स्याम) होवें ॥८॥)

8. अग्ने॒ नय सु॒पथा॑ रायेऽअस्मान् विश्वा॑नि देव

व॒युना॑नि वि॒द्वान् ।

युयो॒ध्य स्मज्जु॒हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठान्ते॒

नम॑ऽउक्तिंविधेम ॥८॥ यजुर्वेद ४०|१६

(अर्थ-(हे अग्ने)स्वप्रकाशक ज्ञानस्वरूप सब जगत् के प्रकाश करने-

हारे (देव)सकल सुखदाता परमेश्वर! आप दिससे (विव्दान) सम्पुर्ण

विध्य-युवत हैं, कृपा करके(अस्मान्) हम लोगों को (राये)

विज्ञान वा राज्यादि ऐश्वर्य कि प्राप्-ति के

लिए (सुपथा) अच्छे, धर्मयुक्त, अप्त लोगों के मार्ग से

(विश्वानिं) सम्पुर्ण (वयुनानि) प्रज्ञान और उत्तम कर्म

(नय)प्राप्- त कराइए, और(अस्मत्)हमसे(जुहुराणम्) कुटिलतायुक्त

(एनः) पापरूप कर्म को (युयोधि) दुर कीजिए। इस कारण हम लोग

(ते)आपकी (भूयिष्ठाम्) बहुत प्रका की स्तुतिरूप (नमउकि्तम्)

नम्रतापुर्वक प्रशंसा (विधेम) सदा रिया कें और सर्वदा आनन्द में

रहें। ॥८॥)

-इतीश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासनाप्रकरणम्

आर्य समाज भौंरी भारापुर

रूडकी हरिद्वार

🙏💐🌺🌺🌷🌹🌹🌹🌺💐




from Tumblr http://ift.tt/1Mx2pNm

via IFTTT

Monday, March 30, 2015

30 मार्च/पुण्य-तिथि सागरपार भारतीय क्रान्ति के दूत श्यामजी कृष्ण वर्मा भारत के स्वाधीनता...

30 मार्च/पुण्य-तिथि


सागरपार भारतीय क्रान्ति के दूत श्यामजी कृष्ण वर्मा


भारत के स्वाधीनता संग्राम में जिन महापुरुषों ने विदेश में रहकर क्रान्ति की मशाल जलाये रखी, उनमें श्यामजी कृष्ण वर्मा का नाम अग्रणी है। चार अक्तूबर, 1857 को कच्छ (गुजरात) के मांडवी नगर में जन्मे श्यामजी पढ़ने में बहुत तेज थे।


इनके पिता श्रीकृष्ण वर्मा की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी; पर मुम्बई के सेठ मथुरादास ने इन्हें छात्रवृत्ति देकर विल्सन हाईस्कूल में भर्ती करा दिया। वहाँ वे नियमित अध्ययन के साथ पंडित विश्वनाथ शास्त्री की वेदशाला में संस्कृत का अध्ययन भी करने लगे।


मुम्बई में एक बार महर्षि दयानन्द सरस्वती आये। उनके विचारों से प्रभावित होकर श्यामजी ने भारत में संस्कृत भाषा एवं वैदिक विचारों के प्रचार का संकल्प लिया। ब्रिटिश विद्वान प्रोफेसर विलियम्स उन दिनों संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोष बना रहे थे। श्यामजी ने उनकी बहुत सहायता की। इससे प्रभावित होकर प्रोफेसर विलियम्स ने उन्हें ब्रिटेन आने का निमन्त्रण दिया। वहाँ श्यामजी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत के अध्यापक नियुक्त हुए; पर स्वतन्त्र रूप से उन्होंने वेदों का प्रचार भी जारी रखा।


कुछ समय बाद वे भारत लौट आये। उन्होंने मुम्बई में वकालत की तथा रतलाम, उदयपुर व जूनागढ़ राज्यों में काम किया। वे भारत की गुलामी से बहुत दुखी थे। लोकमान्य तिलक ने उन्हें विदेशों में स्वतन्त्रता हेतु काम करने का परामर्श दिया। इंग्लैण्ड जाकर उन्होंने भारतीय छात्रों के लिए एक मकान खरीदकर उसका नाम इंडिया हाउस (भारत भवन) रखा। शीघ्र ही यह भवन क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बन गया। उन्होंने राणा प्रताप और शिवाजी के नाम पर छात्रवृत्तियाँ प्रारम्भ कीं।


1857 के स्वातंत्र्य समर का अर्धशताब्दी उत्सव ‘भारत भवन’ में धूमधाम से मनाया गया। उन्होंने ‘इंडियन सोशियोलोजिस्ट’ नामक समाचार पत्र भी निकाला। उसके पहले अंक में उन्होंने लिखा - मनुष्य की स्वतन्त्रता सबसे बड़ी बात है, बाकी सब बाद में। उनके विचारों से प्रभावित होकर वीर सावरकर, सरदार सिंह राणा और मादाम भीकाजी कामा उनके साथ सक्रिय हो गये। लाला लाजपत राय, विपिनचन्द्र पाल आदि भी वहाँ आने लगे।


विजयादशमी पर्व पर ‘भारत भवन’ मंे वीर सावरकर और गांधी जी दोनों ही उपस्थित हुए। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के अपराधी माइकेल ओ डायर का वध करने वाले ऊधमसिंह के प्रेरणास्रोत श्यामजी ही थे। अब वे शासन की निगाहों में आ गये, अतः वे पेरिस चले गये। वहाँ उन्होंने ‘तलवार’ नामक अखबार निकाला तथा छात्रों के लिए ‘धींगरा छात्रवृत्ति’ प्रारम्भ की।


भारतीय क्रान्तिकारियों के लिए शस्त्रों का प्रबन्ध मुख्यतः वे ही करते थे। भारत में होने वाले बमकांडों के तार उनसे ही जुड़े थे। अतः पेरिस की पुलिस भी उनके पीछे पड़ गयी। उनके अनेक साथी पकड़े गये। उन पर भी ब्रिटेन में राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाने लगा। अतः वे जेनेवा चले गये। 30 मार्च, 1930 को श्यामजी ने और 22 अगस्त, 1933 को उनकी धर्मपत्नी भानुमति ने मातृभूमि से बहुत दूर जेनेवा में ही अन्तिम साँस ली।


श्यामजी की इच्छा थी कि स्वतन्त्र होने के बाद ही उनकी अस्थियाँ भारत में लायी जायें। उनकी यह इच्छा 73 वर्ष तक अपूर्ण रही। अगस्त, 2003 में गुजरात के मुख्यमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी उनके अस्थिकलश लेकर भारत आये।

……………………………………………..




from Tumblr http://ift.tt/1NvbsJT

via IFTTT

हिन्दूओं ने स्वतन्त्रता के लिये कुर्बानियाँ दीं थी ताकि ऐक हजार वर्ष की गुलामी से मुक्ति होने के...

हिन्दूओं ने स्वतन्त्रता के लिये कुर्बानियाँ दीं थी ताकि ऐक हजार वर्ष की गुलामी से मुक्ति होने के पश्चात वह अपनी आस्थाओं और अपने ज्ञान-विज्ञानको अपने ही देश में पुनः स्थापित कर के अपनी परम्पराओॆ के अनुसार जीवन व्यतीत करें। किन्तु आज बटवारे के सात दशक पश्चात भी हिन्दूओं को अपने ही देश में सिमिट कर रहना पड रहा है ताकि यहाँ बसने वाले अल्प-संख्यक नाराज ना हो जायें। हिन्दू धर्म और हिन्दूओं का प्राचीन ज्ञान आज भी भारत में उपेक्षित तथा संरक्षण-रहित है जैसा मुस्लिम और अंग्रेजों के शासन में था। हिन्दूओं की वर्तमान समस्यायें उन राजनैतिक कारणों से उपजी हैं जो बटवारे के पश्चात भारत के सभी शासकों ने अपने निजि स्वार्थ के कारण पैदा किये।




from Tumblr http://ift.tt/1BWWVjt

via IFTTT

🚩हनुमानजी बन्दर नही थे 🚩 मित्रो हनुमान जयंती आने वाली है पहले आप सब को एक महत्वपूर्ण जानकारी देना...

🚩हनुमानजी बन्दर नही थे 🚩


मित्रो हनुमान जयंती आने वाली है पहले आप सब को एक महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहता हूँ । हमारे सभी धर्म ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है । ये दुनिया की एक मात्र ऐसी भाषा है जो धातुओ(क्रियाओ) पर आधारित है मतलब इसके सारे शब्द क्रिया पर आधारित है जैसे गो शब्द में गम् धातु है जो गमन की सूचक है अब ध्यान दीजिये गो शब्द उन सब वस्तुओ के लिए प्रयोग होगा जो गमन करती हे जेसे गाय पृथ्वी और हमारी इंद्रिया । गाय को भी गो कहते है क्योकि वह चरति(विचरती)है। पृथ्वी भी घूमती है और हमारी इन्द्रिया भी दौड़ती रहती है और जो इन्द्रियों का स्वामी हो उसे गो स्वामी कहते है।

क्या सिद्ध हुआ संस्कृत में क्रिया के आधार पर किसी का नाम होता हे।

इसी प्रकार पवनपुत्र हनुमान जी को वानर इसलिए कहते है क्योकि वो वन में रहने वाले वन नर थे ।और बंदर भी वन के कारण वानर कहाते है।

कपि का अर्थ होता है कम्पन करने वाला बन्दर भी कम्पन्न करते हे और हनुमान जी भी जब चलते थे तो कम्पन्न होता था इसलिये उन्हें कपि भी कहा जाता है।

परन्तु आर्यो (हिन्दुओ)के दुर्भाग्य के कारण महाभारत युद्ध हुआ । उसमे सभी विद्वान लोग भी मारे गए और कोई भी वेदों का सही अर्थ करने वाला विद्वन नही रहा तो जिसके मन में जेसा आया वैसा अर्थ किया वाल्मीकि रामायण में कही भी हनुमान जी को बन्दर नही कहा गया । वाल्मीकि रामायण में लिखा हे जब भगवन राम हनुमानजी से मिले तो उनहोने लक्ष्मण से कहा की बिना वेदों और व्याकरण के कोई मनुंष्य ऐसी संस्कृत बोल ही नही सकता । मेने वाल्मीकि रामायण पड़ी हे और मै आपको उसका चित्र भी भेज रहा हूँ अब सोचिये क्या बन्दर वेद पढ़ते है क्या । मित्रो हम पर हजार साल विदेशियो ने राज किया हे उन्होंने हमारे सारे शास्त्र जलाय और उनमे मिलावट की ताकि हम अपना स्वाभिमान भूल जाये।




from Tumblr http://ift.tt/1CDJgmk

via IFTTT

आर्यों का विज्ञान व ए. ओ. ह्यूम की अज्ञानता by vedicpress· March 27,2015 आर्यों का विज्ञान व ए. ओ....

आर्यों का विज्ञान व ए. ओ. ह्यूम की अज्ञानता

by vedicpress· March 27,2015

आर्यों का विज्ञान व ए. ओ. ह्यूम की अज्ञानता१० आषाढ़ शुदि १९३२ वि. को अपने एक प्रवचन में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा था कि“प्राचीन काल में दरिद्रों के घर में भी विमान थे । उपरिचर नामक राजा सदा हवा मेंही फिरा करता था , पहले के लोगों को विमान रचने की कला ,विद्या भली प्रकार से विदित थी । पहले के लोग विमान आदि के द्वारा लड़ाई लड़ते थे । मैंने भी एक विमान-रचना का पुस्तक देखा है । भला आप सोचेकि उस व्यवस्था और विज्ञान केसन्मुख आज इस रेलगाड़ी की प्रतिष्ठा ही क्या हो सकती है। ”ए. ओ. ह्यूमजिन्होंने बाद में भारतीय कांग्रेस की स्थापना की , उन्होने स्वामी जी का उपहास करते हुए कहा , ‘व्यक्ति का उड़ना गुब्बारों तक ही सीमित रह सकता हैं , यान बनाकर तो केवल सपनों में ही उड़ा जा सकता है । लेकिन जबविमान का आविष्कार हुआ तोए. ओ. ह्यूमने बाद मेंउदयपुर में स्वामी श्रद्धानंद जी ( स्वामी दयानन्द जब देह त्याग चुके थे और स्वामी श्रद्धानंदउनके उत्तराधिकारी समझे जाते थे , इसलिए क्षमा उनसे मांगी गयी ) से अपने उपहास के लिए क्षमा मांगी थी ।साभार :- * स्वामी दयानन्द – अनुज जैन, पृष्ठ १४२* ऋषि दयानन्द निर्वाण शताब्दी १९८३ स्मारिका – संपादक क्षितीश वेदलंकार,पृष्ठ- ७३ Share




from Tumblr http://ift.tt/1BWWUMs

via IFTTT

वैदिक प्रार्थनाओं में सत्य,शांति व् ज्ञान से परिपूर्ण बने रहने की बात कही गयी हे यह तभी हो पायेगा जब...

वैदिक प्रार्थनाओं में सत्य,शांति व् ज्ञान से परिपूर्ण बने रहने की बात कही गयी हे यह तभी हो पायेगा जब अज्ञान,अशांति,असत्य से होने वाली हानीया मन को बराबर दिखती हे अकेले शुभ को महत्त्व दे ने मात्र से अशुभ से पीछा नहीं छूटता जो गले पड़ गया हे या जिसे स्वयं हमने ही दाल दिया हे

रोग हे तो स्वास्थ्य के नियमो का पालन करने से ही सफलता नहीं मिलेगी,औषधि भी लेनी पड़ेगी,पथ्य परहेज भी करना पडेगा खाशी के कष्ट से मुक्त होने के लिए जब जब भी खट्टे पदार्थ खाने की इच्छा हो तो मन को समजाना पडेगा की ये चीज गलत हे तेरे रोग को बड़ा देगी|

मन अपना का एक स्वभाव हे जैसी ही सुजाव उसको दिए जाते हे मन उसको उसी रूपमे ग्रहण करता हे पर उसे बार बार सिखाना पड़ता हे एक बार में सब कुछ नहीं सिख पाता जब यह मन सदा सदा के लिए यह बात सिख लेता हे की विषयो का सुख अंनंत दुखो से भरा हुवा हे तो उसे ही वैराग्य् की पराकाष्ठा कहा गया हे




from Tumblr http://ift.tt/1CDJdaa

via IFTTT

http://ift.tt/1MooPAn





http://ift.tt/1MooPAn




from Tumblr http://ift.tt/1MouYfX

via IFTTT

http://ift.tt/1MooP3f





http://ift.tt/1MooP3f




from Tumblr http://ift.tt/1MouYMS

via IFTTT

http://ift.tt/1EV7u8K





http://ift.tt/1EV7u8K




from Tumblr http://ift.tt/1MouVRg

via IFTTT

http://ift.tt/1EV7tBU





http://ift.tt/1EV7tBU




from Tumblr http://ift.tt/1EVb42D

via IFTTT

http://ift.tt/1EV7o0Y





http://ift.tt/1EV7o0Y




from Tumblr http://ift.tt/1MouVAM

via IFTTT

http://ift.tt/1EV7nu0





http://ift.tt/1EV7nu0




from Tumblr http://ift.tt/1EVb3Md

via IFTTT

http://ift.tt/1G8KkQq





http://ift.tt/1G8KkQq




from Tumblr http://ift.tt/1xPsAIB

via IFTTT

Sunday, March 29, 2015

आवृत्तिर्भयमन्त्यानां मध्यानां मरणाद् भयं। उत्तमानां तु मर्त्यानामवमाननात् परं भयं।। साधारण लोगों...

आवृत्तिर्भयमन्त्यानां मध्यानां मरणाद् भयं।

उत्तमानां तु मर्त्यानामवमाननात् परं भयं।।


साधारण लोगों को निवाह के साधनों के अभाव का भय होता है, मध्यम जनों को मृत्यु से भय होता है, उत्तम जनों को तो अपमान से महान् भय होता है।




from Tumblr http://ift.tt/1CAN4Vn

via IFTTT

Excellent collections of Gujrati songs—- save them for life time —- Select the song by...

Excellent collections of Gujrati songs—- save them for life time —-


Select the song by clicking it, you wish to hear first and then

click the link at the the bottom of that page to play the song




૧ તારી બાંકી રે પાઘલડીનું http://ift.tt/1G15IIE

૨ મારા ભોળા દિલનો http://ift.tt/1G15GR5

૩ છાનું રે છપનું કંઈ થાય નહિ http://ift.tt/19kICyG

૪ નીલ ગગનનાં પંખેરું http://ift.tt/19kIFuf

૫ મારી વેણીમાં ચાર E0ાર ફૂલ http://ift.tt/1G15GR9

૬ માહતાબ સમ મધુરો http://ift.tt/19kICyK

૭ એક રજકણ સૂરજ થવાને શમણે http://ift.tt/19kIFuj


૮ માઝમ રાતે નીતરતી નભની ચાંદની http://ift.tt/1G15III

૯ તારી આંખનો અફીણી http://ift.tt/1G15GRd

૧૦ રાખનાં રમકડાં http://ift.tt/19kIFun

૧૧ ભાભી તમે થોડા થોડા થાવ વરણાગી http://ift.tt/1G15IIK

૧૨ તાલીના તાલે http://ift.tt/1G15GRf

૧૩ નજરનાં જામ છલકાવીને http://ift.tt/19kIFur

૧૪ હે પૂનમની પ્યારી પ્યારી રાત http://ift.tt/1G15IIM

૧૫ રૂપલે મઢી છે સારી રાત http://ift.tt/1G15IIO

૧૬ આજનો ચાંદલિયો મને લાગે http://ift.tt/19kIFuv

૧૭ ઊંચી તલાવડીની કોર http://ift.tt/1G15IIS

૧૮ ઢણી ઢું ઢું ને ઊડી જાય http://ift.tt/1G15GRj

૧૯ પંખીડાને આ પીંજરુ જૂનું જૂનું લાગે http://ift.tt/19kIFKL

૨૦ દિવસો જુદાઈના જાય છે http://ift.tt/1G15GRl

૨૧ સપના રૂપે ય આપ ન આવો http://ift.tt/1G15H7y

૨૨ ના, ના, નહિ આવું, મેળાનો મને થાક લાગે http://ift.tt/1G15H7A

૨૩ આવો તો ય સારું, ન આવો તો ય સારું http://ift.tt/1G15H7C

૨૪ રહેશે અમને મારી મુસીબતની દશા યાદ http://ift.tt/1G15IZc

૨૫ તમારા અહીં આજ પગલાં થAાના http://ift.tt/19kIFKQ

૨૬ ઘાયલને શું થાય છે પૂછો તો ખરા http://ift.tt/19kID5B

૨૭ સાત સમન્દર તરવા ચાલી http://ift.tt/19kIFuo

૨૮ સાંભળ પંછી પ્યારા http://ift.tt/19kIFL0

૨૯ હો રાજ મને લાગ્યો કસું ીનો રંગ http://ift.tt/19kID5D

૩૦ મને કેર કાંટો વાગ્યો http://ift.tt/1G15IZg

૩૧ સોનાનું કે રૂપાનું, પિંજરું તે પિંજરું http://ift.tt/19kID5H

૩૨ મા તને ખમ્મા ખમ્મા, http://ift.tt/19kID5L

૩૩ મને યાદ ફરી ફરી આવે, મારા અંતરને રડાવે http://www.mavji++http://ift.tt/19kIIGs

૩૪ પુણ્ય જો ના થઈ શકે તો પાપથી ડરવું ભલું http://ift.tt/1G15H7R

૩૫ ઘૂંઘટે ઢાંક્યુ રે એક કોડિયું http://ift.tt/1G15Ho5

૩૬ આવી આવી નોરતાની રાત, માર સૈયર ગરબે રમવા હાલો http://ift.tt/19kIIq4




from Tumblr http://ift.tt/1G15Ho9

via IFTTT

-🔥🔥 “क्या आप इस्लाम को समझना चाहते हैं?”, उसने मेरी आँखों के सामने कुरआन लहराते हुए...

-🔥🔥 “क्या आप इस्लाम को समझना चाहते हैं?”, उसने मेरी आँखों के

सामने कुरआन लहराते हुए पूछा…🔥🔥


- जी… अभी थोड़ा-थोड़ा ही समझ पाया हूँ, ठीक से समझना

चाहता हूँ… मैंने जवाब दिया.

- “इस्लाम एक बेहद शांतिपूर्ण धर्म है”, आप कुरआन पढ़िए सब जान

जाएँगे…

- “जी, वैसे तो अल-कायदा, बोको-हरम, सिमी, ISIS और

हिजबुल ने मुझे इस्लाम के बारे में थोड़ा-बहुत समझा दिया है,

फिर भी यदि आप आग्रह कर रहे हैं तो मैं कुरआन ले लेता हूँ…

- “लिल्लाह!! उन्हें छोडिए, वे लोग सही इस्लाम का

प्रतिनिधित्व नहीं करते…

- अच्छा!! यानी उन्होंने कुरआन नहीं पढ़ी?? या कोई गलती से

कोई दूसरी कुरआन पढ़ ली है?, मैंने पूछा.

- नहीं, उन लोगों ने भी कुरआन तो यही पढ़ी है… लेकिन उन्होंने

इसका गलत अर्थ निकाल लिया है… वे लोग इस्लाम की राह से

भटक गए हैं… कम पढ़े-लिखे और गरीब होंगे. इस्लाम तो

भाईचारा सिखाता है..

- जी, हो सकता है… लेकिन मैंने तो सुना है कि ट्विन टावर पर

हवाई जहाज चढ़ाने वाला मोहम्मद अत्ता एयरोनाटिक्स

इंजीनियर था, और बंगलौर से पकड़ाया ISIS का ट्विटर मेहदी

बिस्वास भी ख़ासा पढ़ा-लिखा है…

- आपसे वही तो कह रहा हूँ कि इन लोगों ने इस्लाम को ठीक से

समझा नहीं है… आप कुरआन सही ढंग से पढ़िए, हदीसों को

समझिए… आप समय दें तो मौलाना जी से आपकी काउंसिलिंग

करवा दूँ??

- “.. लेकिन सर, मेरे जैसे नए लोगों की इस्लाम में भर्ती करने की

बजाय, आप इराक-अफगानिस्तान-लीबिया-पाकिस्तान

जाकर आपकी इस “असली कुरआन” और “सही इस्लाम” का

प्रचार करके, उन भटके हुए लोगों को क्यों नहीं सुधारते?? जब

मौलाना जी आपके साथ ही रहेंगे तो आप बड़े आराम से

सीरिया में अमन-चैन ला सकते हैं… ताकि आपके शांतिपूर्ण धर्म

की बदनामी ना हो… तो आप सीरिया कब जा रहे हैं सर??

- “मैं अभी चलता हूँ… मेरी नमाज़ का वक्त हो गया है..”

- सर… सीरिया तो बहुत दूर पड़ेगा, आप मेरे साथ भोपाल चलिए,

वहाँ भी ऐसे ही कुछ “भटके” हुए, “कुरआन का गलत अर्थ लगाए हुए”

लोगों ने, ईरानी शियाओं के मकान जला दिए हैं, मारपीट और

हिंसा की है… वहाँ आप जैसे शान्ति प्रचारक की सख्त ज़रूरत

है…

- “मैं बाद में आता हूँ… नमाज़ का वक्त हो चला है…”

=====================

जी, ठीक है, नमस्कार…




from Tumblr http://ift.tt/1ypCVpp

via IFTTT

-🔥🔥 “क्या आप इस्लाम को समझना चाहते हैं?”, उसने मेरी आँखों के सामने कुरआन लहराते हुए...

-🔥🔥 “क्या आप इस्लाम को समझना चाहते हैं?”, उसने मेरी आँखों के

सामने कुरआन लहराते हुए पूछा…🔥🔥


- जी… अभी थोड़ा-थोड़ा ही समझ पाया हूँ, ठीक से समझना

चाहता हूँ… मैंने जवाब दिया.

- “इस्लाम एक बेहद शांतिपूर्ण धर्म है”, आप कुरआन पढ़िए सब जान

जाएँगे…

- “जी, वैसे तो अल-कायदा, बोको-हरम, सिमी, ISIS और

हिजबुल ने मुझे इस्लाम के बारे में थोड़ा-बहुत समझा दिया है,

फिर भी यदि आप आग्रह कर रहे हैं तो मैं कुरआन ले लेता हूँ…

- “लिल्लाह!! उन्हें छोडिए, वे लोग सही इस्लाम का

प्रतिनिधित्व नहीं करते…

- अच्छा!! यानी उन्होंने कुरआन नहीं पढ़ी?? या कोई गलती से

कोई दूसरी कुरआन पढ़ ली है?, मैंने पूछा.

- नहीं, उन लोगों ने भी कुरआन तो यही पढ़ी है… लेकिन उन्होंने

इसका गलत अर्थ निकाल लिया है… वे लोग इस्लाम की राह से

भटक गए हैं… कम पढ़े-लिखे और गरीब होंगे. इस्लाम तो

भाईचारा सिखाता है..

- जी, हो सकता है… लेकिन मैंने तो सुना है कि ट्विन टावर पर

हवाई जहाज चढ़ाने वाला मोहम्मद अत्ता एयरोनाटिक्स

इंजीनियर था, और बंगलौर से पकड़ाया ISIS का ट्विटर मेहदी

बिस्वास भी ख़ासा पढ़ा-लिखा है…

- आपसे वही तो कह रहा हूँ कि इन लोगों ने इस्लाम को ठीक से

समझा नहीं है… आप कुरआन सही ढंग से पढ़िए, हदीसों को

समझिए… आप समय दें तो मौलाना जी से आपकी काउंसिलिंग

करवा दूँ??

- “.. लेकिन सर, मेरे जैसे नए लोगों की इस्लाम में भर्ती करने की

बजाय, आप इराक-अफगानिस्तान-लीबिया-पाकिस्तान

जाकर आपकी इस “असली कुरआन” और “सही इस्लाम” का

प्रचार करके, उन भटके हुए लोगों को क्यों नहीं सुधारते?? जब

मौलाना जी आपके साथ ही रहेंगे तो आप बड़े आराम से

सीरिया में अमन-चैन ला सकते हैं… ताकि आपके शांतिपूर्ण धर्म

की बदनामी ना हो… तो आप सीरिया कब जा रहे हैं सर??

- “मैं अभी चलता हूँ… मेरी नमाज़ का वक्त हो गया है..”

- सर… सीरिया तो बहुत दूर पड़ेगा, आप मेरे साथ भोपाल चलिए,

वहाँ भी ऐसे ही कुछ “भटके” हुए, “कुरआन का गलत अर्थ लगाए हुए”

लोगों ने, ईरानी शियाओं के मकान जला दिए हैं, मारपीट और

हिंसा की है… वहाँ आप जैसे शान्ति प्रचारक की सख्त ज़रूरत

है…

- “मैं बाद में आता हूँ… नमाज़ का वक्त हो चला है…”

=====================

जी, ठीक है, नमस्कार…




from Tumblr http://ift.tt/1FYU6pG

via IFTTT

💥💥* परवरिश*💥💥 मणि ने कमरे में झांक कर देखा उसका बेटा संजय ऑफिस से आ चुका था।आज जल्दी आ गया, चाय दूं...

💥💥* परवरिश*💥💥


मणि ने कमरे में झांक कर देखा उसका बेटा संजय ऑफिस से आ चुका था।आज जल्दी आ गया, चाय दूं क्या? नहीं माँ, थक गया हूँ थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ।

माँ के जाने के बाद आँख बंद कर पलंग पर लेट गया।ऑफिस का द्रश्य उसकी आँखों के आगे तैर गया।सब रजिस्ट्रार के पद पर काम करते हुए उसे एक ही महीना हुआ था।शाम को जब वो घर लौटने लगा तो ’ बाबू’ ने एक लिफाफा लाकर दिया।क्या है ये? सर कुछ नहीं सभी का हिस्सा है आपका भी—- ।आप नहीं लेंगे तो वापस न जायेगा।कोई और रख लेगा।अनमने मन से वो लिफाफा जेब में रख कर घर वापस आ गया।और अब घबराहट और बेचैनी में था।ऐसे उसके संस्कार न थे।

अचानक उसे अपने माथे पर किसी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ।माँ थी।बच्चों की तरह वो माँ की गोद में सर रख कर सुबक उठा।माँ को पूरा किस्सा बताया।और माँ की दी हुई सलाह से हल्का महसूस करते हुए वह अगले दिन वो लिफाफा वापस कर रहा था। अपनी आत्मा पर ये बोझ उसे गवारा न था।




from Tumblr http://ift.tt/19fRkhH

via IFTTT

Watch “Naari Shakti 2(नारी शक्ति - आचार्य आर्य नरेश, उद्गीथ साधना स्थली, हिमाचल )” on...

Watch “Naari Shakti 2(नारी शक्ति - आचार्य आर्य नरेश, उद्गीथ साधना स्थली, हिमाचल )” on YouTube - Naari Shakti 2(नारी शक्ति - आचार्य आर्य नरेश, उद्गीथ साधना स्थली, हिमाचल ): http://ift.tt/1GDAHJT




from Tumblr http://ift.tt/19fRmpL

via IFTTT

Saturday, March 28, 2015

"अगर धर्म को समझना है तो इस लेख को जरूर पढ़े" इस लेख को लिखने वाले ने यह लेख काफी गहराई से लिखा है...

"अगर धर्म को समझना है तो इस लेख को जरूर पढ़े" इस लेख को लिखने वाले ने यह लेख काफी गहराई से लिखा है जिसे गहराई से पढ़ने पर हम धर्म और जीवन को भी समझ सकते है -


नोमेड की यादें - ” अलेक्सिस रोमन ” ::

***** *****


फ्रांस का एक युवा, स्नातक का छात्र, बचत करके भारत आकर अत्यधिक पिछड़े बंजर क्षेत्र में पहुंचता है। वहां वह किसी को नहीं जानता, खानपान व भाषा से परिचित नहीं, उसका शरीर वहां के मौसम व वातावरण को झेलने का आदी नहीं। फ्रांसीसी युवा का भारत से कोई संबंध नहीं फिर भी युवा खोज कर भारत के पिछड़े क्षेत्रों में पहुंचता है और वहां के लोगों का जीवन स्तर बेहतर करने के लिए अपने जीवन के सुखों व सुविधाओं को छोड़कर घोर संघर्ष करता है जबकि जिस देश के लोगो के लिए संघर्ष करता है वही देश उसके धरातलीय कामों को उपेक्षित करता है।


फ्रांसीसी युवा वैज्ञानिक की दृष्टि, प्रतिबद्धता, सक्रियता, दर्द और भारतीय समाज -


कुछ वर्ष पूर्व जब मैं भारत के विभिन्न राज्यों में पानी व खेती के जमीनी कामों के ऊपर ग्राउंड रिपोर्ट इंडिया पत्रिका के लिए विशेषांक निकालने के लिए बीस हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर रहा था, मुझे मेरे मित्र सामाजिक कार्यकर्ता अभिमन्यु सिंह से मालूम हुआ कि बुंदेलखंड में एक फ्रांसीसी युवा अकेले ही गावों में लोगों को पानी, जंगल व खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। मैं उस युवक से मिलने के लिए दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़ से लगातार बिना सोए हुए ऊबड़ खाबड़ व पहाड़ी रास्तों में एक हजार किलोमीटर गाड़ी चलाते हुए बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश पहुंचा। ऊबड़ खाबड़ रास्तों में यह मेरे जीवन में पहली बार एकमुश्त सबसे लंबा कार चलाना था।


रात्रि भोजन के समय अलेक्सिस से मुलाकात हुई, लंबी चर्चा हुई। मुझे अलेक्सिस से मिलकर अच्छा लगा। पच्चीस-तीस साल का फ्रांसीसी युवा जिसका व जिसके पूर्वजों का भारत से कोई रिश्ता नहीं था। वह अपने जीवन के लिए सरलता से उपलब्ध उन सुख-सुविधाओं जिनके लिए भारत का युवा कुछ भी करने को तैयार रहता है वह अपने इस तैयार रहने को जीवन की समझ व व्यवहारिकता कहता है, को छोड़कर भारत के ऐसे क्षेत्र में गावों में काम कर रहा था जहां बिजली व पेयजल नहीं, उपजाऊ जमीन नहीं, खाने को फल व सब्जियां उपलब्ध नहीं, गांवों में पहुंचने को संपर्क मार्ग नहीं।


ऐसी हालातों में तपती दोपहर में रूखी व सूखी जमीन में गरीब खेतिहर मजदूर की तरह घंटों काम करने से शुरुआत की अलेक्सिस ने। काम करने के लिए किसी सरकार से कोई ग्रांट व सहयोग नहीं, किसी फंडिंग एजेंसी से कोई फंड नहीं। फ्रांस में छात्र पढाई करते हुए छोटे-मोटे काम करके पैसे कमाते हैं। अलेक्सिस ने भी पढाई करते हुए काम करके पैसे कमाए थे।


फ्रांस जैसे अमीर व विकसित देश का अलेक्सिस चाहता तो अपनी मेहनत से कमाए पैसों को बाजार में उपलब्ध विभिन्न वस्तुओं को खरीदने में खर्च करता, अपने शौक पूरा करता, अपनी सुविधाएं बढ़ाता। अलेक्सिस ने जीवन में सुख-सुविधाएं छोड़कर स्वेच्छा से असुविधाओं व कष्टों को अंगीकार किया क्योंकि उसको अपने जीवन में बाजार की बजाय सार्थकता खोजनी थी। अलेक्सिस को अपनी जीवनी ऊर्जा व आर्थिक संसाधनों को सुविधा संग्रह करने वाले उपभोक्ता बनने में अपव्यय करने की बजाय दुनिया के जरूरतमंद मनुष्यों के विकास के लिए सदुपयोग करने में जीवन का उद्देश्य देखना था।


जिस भारत देश के लोगों के लिए अलेक्सिस हजारों किलोमीटर की यात्रा करके, खोज कर अति पिछड़े क्षेत्र में असुविधा झेलते हुए काम करने पहुंचता है। उस भारत का युवा बाजार का उपभोक्ता बनने को विकास, प्रगति व सामाजिक परिवर्तन मानता है, जो लोग बाजार के उपभोक्ता नहीं है उनको उपेक्षित करता है, तिरस्कृत करता है।


भारत में माता पिता बच्चे पैदा होते ही यही सपना पालते हैं कि कितनी जल्दी उनका बच्चा बाजार का बड़ा उपभोक्ता बन जाए, शैशवास्था से ही बाजार का उपभोक्ता बनने की ट्रेनिंग देते हैं।


बच्चा किशोर होने पर भारत से जल्द से जल्द छुटकारा पाकर किसी विकसित देश में सुख-सुविधा भोगने के लिए भागना चाहता है या उन तिकड़मों को सीखना व करना चाहता है जिनसे वह शोषक बनकर, मानसिक वैचारिक व आर्थिक भ्रष्ट बनकर शोषण करते हुए अपने लिए बाजार से सुविधाएं खरीद सके।


जीवन का उद्देश्य बाजार का उपभोक्ता बनना ही होता है। अपने देश व अपने समाज के लिए कोई वास्तविक सोच नहीं। देश व समाज को निर्मित करने की कोई सोच नहीं, पूर्वजों की आलोचना करना उनको गरियाना, यही क्रांतिकारिता है भारतीय युवा की, यही ट्रेंड है।


जबकि भारत देश व भारतीय समाज की हालातें भारतीय युवाओं के अशर्त समर्पण व प्रतिबद्धता की पुरजोर मांग करती हैं।


भारत के युवाओं को जीवन की वास्तविकता की समझ के लिए अलेक्सिस जैसे युवाओं से सीखने की जरूरत है। यदि बेहतर कर व जी पानें की सोच, समझ व दृष्टि नहीं तो तर्को, वितर्कों व कुतर्कों से खुद को महान साबित करने के ढोंगों की बजाय अलेक्सिस जैसे युवाओं के कार्यों से सीखने व उनमें हाथ बटानें का ही काम किया का सकता है। भारतीय युवा को अपनी सोच व मानसिकता बदलने की महती जरूरत है।


फ्रांसीसी युवक अलेक्सिस का अनुभव भारतीय समाज को शाब्दिक महानता से इतर समझने की दृष्टि देता है और भौतिक वास्तविकता से रूबरू कराता है। अलेक्सिस रोमन की जुबानी उनका अपना भीतरी संघर्ष जो उन्हें नए कार्यों की ऊर्जा भी देता है।


" नवंबर 2009 की बात है, मानसून गुजर चुका था, कुयें महीनों से प्रयोग नहीं किएगएथे। गांव वालों ने कहा कि यह लगातार सातवां साल है जबकि सूखा पड़ रहा है। जब मैं गांव से बाहर निकल रहा था तब एक महिला चिल्लाकर बोली - ‘हम मर रहे हैं, हमारी सहायता करो’। आठ महीने बाद मैं एक गांव की बंजर जमीन पर खड़ा था और पिछले महीनों के बारे में सोच रहा था। लोगों ने वर्षा जल संग्रहण करने और जंगल लगाने में रुचि दिखाई थी। किंतु बहुत कुछ ऐसा था जिसके कारण मैं खुद से सवाल कर रहा था कि -


मैं यहां क्या कर रहा हूं जबकि इस क्षेत्र में सौ किलोमीटर के दायरे में मैं अकेला विदेशी हूं, भीषण गर्मी, तपती लू में अकेला बीमार और खोया-खोया हुआ? मैं क्यों अपनी जीवनी ऊर्जा यहां लगा रहा हूं जबकि लोग धन्यवाद ज्ञापन तक नहीं करते हैं? मैं योजना बनाता हूं, प्रबंधन करता हूं, धन की व्यवस्था करता हूं, सोचता हूं, अपना समय व ऊर्जा लगाता हूं और गांव वाले बुलाई गई चर्चा में आते तक नहीं हैं।


मैं क्यों ऐसे क्षेत्र में आया हूं? जहां लोग आज भी आधुनिक काल के पहले वाले काल में रहते हैं जहां पानी नहीं है, बिजली नहीं है, स्वास्थ्य आदि की व्यवस्था नहीं है। कोई अंग्रेजी नहीं बोलता, लोग मेरी और मैं लोगों की भाषा नहीं समझता। यहाँ से प्रकृति जा चुकी है, पेड़ नहीं हैं, पानी नहीं है, जानवर नहीं हैं केवल गरीबी है। क्या इन लोगों को सच में ही मेरी व मेरे सहयोग की जरूरत है?


इन लोगों के साथ काम कर पाना बड़ा ही मुश्किल रहा है, ये लोग हर बात के लिए ‘हां’ बोलते हैं लेकिन जब करने का समय आता है तो कोई नहीं दिखता है। मुझे हर बार उन्हें धक्का देकर काम करवाना पड़ता है वह भी वह काम जो कि उनके अपने ही लिए है। क्या मैं उन लोगों पर अपने आइडियाज थोप रहा हूं?


मैं यह सब उनके लिए कर रहा हूं या अपने इगो की संतुष्टि के लिए कर रहा हूं? क्या यह मार्ग सचमुच ही मेरे जीवन की सार्थकता है? मैं क्यों कर रहा हूं, मैं क्यों कर रहा हूं? मैं उत्तर नहीं खोज पा रहा था और ये प्रश्न मुझे व्यथित किए हुए थे। मैंने खुद के मन को ढीला छोड़ दिया और खुद को फिर से कामों में वयस्त कर लिया। अगले दिन की रात आई, मैं सोने जा रहा था तभी एक विचार आया मेरे मन में जो अनजाने में ही मेरे प्रश्नों का उत्तर दे गया।


मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं, इसका उत्तर शब्दों के द्वारा या दर्शन के द्वारा नहीं दिया जा सकता है, प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह मेरा काम है बिना ‘क्यों’ या ‘कैसे’ सोचे करते रहने के लिए। मेरी जीवनी ऊर्जा की जिनको जरूरत है, उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए लगातार कार्य करते रहा जाए ऐसा स्वतः निर्देशित है और ऐसा करते जाना ही मेरे जीवन मार्ग की सार्थकता है।


मैं पेरिस, फ्रांस लौटा पर्यावरण-विज्ञान में अपनी मास्टर डिग्री को पूरा करने के लिये। डिग्री पूरा करने के बाद मैंने पेरिस छोड़ दिया और भारत आया और एक बार फिर से बुंदेलखंड, उसके गांवों और लोगों को जानने, समझने और लोगों के साथ खुद को और बेहतर समझ के साथ जोड़कर अपनी जीवनी ऊर्जा से काम करने के लिए। “


—-


मैं अपने जीवन में पिछले कई वर्षों में अलेक्सिस रोमन से कई बार मिला हूं और बुंदेलखंड के गावों में इनके प्रयासों के जीवंत प्रमाण देखता रहा हूँ। सैकड़ों परिवार स्वावलंबन की ओर बढ़े, हजारों पेड़ लगाए गये, छोटे छोटे जंगल बने और गावों में तालाब बने, छोटी-छोटी स्थानीय सरिताओं में भी पानी आना शुरु हुआ, लोगों ने खेती करना शुरु किया।

अलेक्सिस रोमन मुझसे अपने मन की बात खुल कर करते हैं, कभी-कभी बहुत दुखी होकर कहते हैं कि आपके देश के लोग कहते तो बड़ी-बड़ी बाते हैं, बहुत लोगों को दर्शन की बातें मुंह में रटी हुईं हैं, किंतु जीवन के वास्तविक धरातल में जीने की बात आते ही पीछे हट जाते हैं, शब्दों और शब्दों की प्रमाणित जीवंतता में बहुत ही बड़ा अंतर है। मैं अलेक्सिस से यही कहता हूं कि यदि ऐसा नहीं होता तो फिर हमें व आपको काम करने की जरूरत ही नहीं होती, लोग अपने विकास के लिए खुद ही कार्य कर रहे होते और इतना अधिक मानसिक, भावनात्मक व वैचारिक कुंठित नहीं होते।


अलेक्सिस कहते हैं कि सहयोग का मतलब होता है कि लोग अपने विकास के लिए काम कर रहे हों उसमें कुछ किया जाये। आपके देश में तो सब कुछ आपको ही करना होता है और लोग आपके करने में कुछ करने को ही या आपके करने में विरोध न करने को ही अपनी कर्मठता व सक्रियता मानते हैं जबकि आप सब कुछ उनके अपने लिए ही कर रहे होते हैं। मैं निरुत्तर हो जाता हूं क्योंकि यही दर्द मुझ जैसों का भी है।


अलेक्सिस जैसे लोग मेरी दृष्टि में इसलिए अधिक महान हैं क्योंकि मुझ जैसे लोग तो अपने देश व समाज के लिए ही काम करते हैं।


किंतु अलेक्सिस जैसे लोग अपना कैरियर, अपनी सुरक्षा, अपना सुख, अपनी सुविधा आदि त्याग कर भारत जैसे अनजान देशों में बिना लालच, बिना नाम, बिना पहचान, बिना धन-पिपाशा आदि के काम करने आते हैं क्योंकि इनसे मानव समाज के लोगों का दुख देखा नहीं जाता, सामाजिक काम इनका व्यवसाय नहीं, कमाई करने, पुरस्कार पाने, विदेश घूमने, नाम/पहचान पाने, सेलिब्रिटी बनने आदि का जरिया नहीं है बल्कि जीवन जीने की सार्थकता है, जीवन का उद्देश्य है।


-

सादर प्रणाम

विवेक ‘नोमेड’




from Tumblr http://ift.tt/1OLMGso

via IFTTT

पाखंड, अन्धविश्वास, ढोंग और कुरीतियां का भंडाफोड़- १. “अमरनाथजी” में शिवलिंग अपने आप बनता...

पाखंड, अन्धविश्वास, ढोंग और कुरीतियां का भंडाफोड़-

१. “अमरनाथजी” में शिवलिंग अपने आप

बनता है।

( यह न बताना कि गर्मी पाकर पिघल

जाता है और

झरने का पानी टपक-2 कर गुफ़ा में

जमता रहता है

क्योंकि वहाँ धूप नहीं लगती और तापक्रम

शून्य से

नीचे रहता है।)

२. “माँ ज्वालामुखी” में

हमेशा ज्वाला निकलती है।

( यह न बताना कि ज्वालामुखी सदियों तक

आग व

लावा उगलते रहते हैं)

३. “मैहर माता मंदिर” में रात को आल्हा अब

भी आते हैं ( यह न बताना कि रात

को पाखन्डी वेष

रख कर आता जाता है)

४. सीमा पर स्थित तनोट माता मंदिर में

3000 बम

में से एक का भी ना फूटना ( ये न

बताना कि ये बम

आज भी नहीं फ़ट सकते क्योंकि ये

जखिरा ही निष्क्रिय था)

५. इतने बड़े हादसे के बाद भी “केदारनाथ

मंदिर”

का बाल ना बांका होना ( ये न

बताना कि इतने बड़े

ठोस चबूतरे पर कोई भी ईमारत पानी के

बहाव

को सह लेगी)

६. पूरी दुनिया में आज भी सिर्फ “रामसेतु के

पत्थर”

पानी में तैरते हैं ( ये न बताना कि ये

मूँगा पथर है

जो ज चट्टान से अलग होकर कहीं भी तैर सकते

हैं

क्योंकि इनकी संरचना मधुमक्खी के छत्ते

की तरह

होती है)

७. “रामेश्वरम धाम” में सागर का कभी उफान



मारना ( ये न बताना कि अगर समुद्र तट के

अन्दर

पहाड़ी हो तो उफ़ान कभी नहीं आता)

८. “पुरी के मंदिर” के ऊपर से

किसी पक्षी या विमान का न निकलना ( ये



बताना कि हर पक्षी व विमान

का रास्ता निश्चित

होता है और खतरे या किसी चोटी से

हमेशा दूर उड़ते

हैं)

९. “पुरी मंदिर” की पताका हमेशा हवा के

विपरीत

दिशा में उड़ना। ( यह न

बताना कि पताका के पास

हवा सीधी चलती है क्योंकि नीचे हवा घूमकर

आती है

जिससे लगता है कि हवा विपरीत दिशा से

चल

रही है। )

१०. उज्जैन में “भैरोंनाथ”

का मदिरा पीना ( यह न

बताना कि भक्त उस मदिरा का सेवन कर जाते

हैं)

११. गंगा और नर्मदा माँ (नदी) के

पानी का कभी खराब न होना ( यह न

बताना कि यह

बात पुरानी हो गयी है और पानी को सड़ाने

से बचाने

के लिये अब वह बैक्टीरिया नष्ट हो चुके हैं।

अब

पानी संडास से भी खराब हो चुका है)




from Tumblr http://ift.tt/1EOFgfN

via IFTTT

Friday, March 27, 2015

एक ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद को रोक नहीं पाया …. शब्दों के...

एक ने बहुत ही सुंदर पंक्तियां भेजी है, फारवर्ड करने से खुद को रोक नहीं पाया ….




शब्दों के दांत नहीं होते है

लेकिन शब्द जब काटते है

तो दर्द बहुत होता है

और

कभी कभी घाव इतने गहरे हो जाते है की

जीवन समाप्त हो जाता है

परन्तु घाव नहीं भरते………….


इसलिए जीवन में जब भी बोलो मीठा बोलो मधुर बोलों


'शब्द' 'शब्द' सब कोई कहे,

‘शब्द’ के हाथ न पांव;


एक ‘शब्द’ ‘औषधि” करे,

और एक ‘शब्द’ करे ‘सौ’ ‘घाव”…!


"जो ‘भाग्य’ में है वह भाग कर आएगा..,

जो नहीं है वह आकर भी भाग ‘जाएगा”..!


प्रभू’ को भी पसंद नहीं

‘सख्ती’ ‘बयान’ में,

इसी लिए ‘हड्डी’ नहीं दी, ‘जबान’ में…!

जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,


एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।


और….


जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,

किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।


जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,

एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।


और….


जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,

अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।


जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है.


दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं…

क्योकि वो कठोर होते है।


छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर

बड़ी रहमत…

बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार

देती है..

किस्मत और पत्नी

भले ही परेशान करती है लेकिन

जब साथ देती हैं तो

ज़िन्दगी बदल देती हैं.।।




“प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।


विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।


साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।


किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।

मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।


एक साँस भी तब आती है,

जब एक साँस छोड़ी जाती है!!” reek




from Tumblr http://ift.tt/1a1c8KX

via IFTTT

आप जिस मति और गति से अपनी साँसों में सत्य को घूंट घूंट पी रहे है वह अमृत देवताओ के पास भी जाएगा तो...

आप जिस मति और गति से अपनी साँसों में सत्य को घूंट घूंट पी रहे है वह अमृत देवताओ के पास भी जाएगा तो भी और राक्षसो के पास जाएगा तो भी ——-अपना कार्य करेगा ———क्या मानव के वश में देवत्व है -और मानव मननशील ,साहसी बनकर ही देवत्व को प्राप्त कर सकता है —लेकिन ऐसे अपने जैसे —ही परिचित न हो या करने की आवश्यकता ही न हो बिना —किसी आलौकिक शक्ति के तो हम और आप भी नहीं सोच पा रहे है —-जिस प्रमाण को आप आत्मिक और मानसिक स्तर पर दिखा सकते है ऐसे ही बहुत से -दस्तावेज से बनी है मानव की जिंदगी ,नीयत को प्रमाणित करती बहुत सी नीतिया है




from Tumblr http://ift.tt/1bCIUCl

via IFTTT

(साभार whats App) चौदह वर्षों तक वन में जिसका धाम था।। मन-मन्दिर में बसने वाला शाकाहारी राम...

(साभार whats App)


चौदह वर्षों तक वन में

जिसका धाम था।।


मन-मन्दिर में बसने

वाला शाकाहारी राम था।।


चाहते तो खा सकते थे

वो मांस पशु के ढेरो में।।


लेकिन उनको प्यार मिला

’ शबरी’ के झूठे बेरो में॥


चक्र सुदर्शन धारी थे

गोवर्धन पर भारी थे॥


मुरली से वश करने वाले

‘गिरधर’ शाकाहारी थे॥


पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम

चोटी पर फहराया था।।


निर्धन की कुटिया में जाकर जिसने मान बढाया था॥


सपने जिसने देखे थे

मानवता के विस्तार के।।


नानक जैसे महा-संत थे

वाचक शाकाहार के॥


उठो जरा तुम पढ़ कर

देखो गौरवमयी इतिहास को।।


आदम से गाँधी तक फैले

इस नीले आकाश को॥


दया की आँखे खोल देख लो

पशु के करुण क्रंदन को।।


इंसानों का जिस्म बना है

शाकाहारी भोजन को॥


अंग लाश के खा जाए

क्या फ़िर भी वो इंसान है?


पेट तुम्हारा मुर्दाघर है

या कोई कब्रिस्तान है?


आँखे कितना रोती हैं

जब उंगली अपनी जलती है।।


सोचो उस तड़पन की हद

जब जिस्म पे आरी चलती है॥


बेबसता तुम पशु की देखो

बचने के आसार नही।।


जीते जी तन काटा जाए,

उस पीडा का पार नही॥


खाने से पहले बिरयानी,

चीख जीव की सुन लेते।।


करुणा के वश होकर तुम भी शाकाहार को चुन लेते॥


शाकाहारी बनो…!

।।.शाकाहार-अभियान.।।




from Tumblr http://ift.tt/1xG9Vio

via IFTTT

लाभदायक घरेलू इलाज * चक्कर आने पर तुलसी के रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से ठीक हो जाते हैं। *...

लाभदायक घरेलू इलाज


* चक्कर आने पर तुलसी के रस में चीनी मिलाकर सेवन करने से ठीक हो जाते हैं।

* मिश्री के साथ तुलसी दल लेने से पेट में दर्द ठीक हो जाता है।

* कुष्ठ रोग में प्रतिदिन प्रात: तुलसी का रस पीने से रोग ठीक हो जाता है।

* दाद-खाज जैसे चर्म रोगों में तुलसी और नींबू के रस का लेप करने से लाभ मिलता है।

* स्मरणशक्ति को बढ़ाने के लिए तुलसी के 5 पत्ते सुबह खाने से लाभ होता है।

* तुलसी का पंचांग चूर्ण चार माशा गाय के दूध में सुबह-शाम पीने से गठिया रोग ठीक होता है।

* मुंह के छालों में तुलसी के अर्क का कुल्ला करने से लाभ होता है।

* हैजे में तुलसी के बीज का चूर्ण बनाकर गाय के दूध में सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है।

* दस्त आने पर एक माशा जीरा और दस तुलसीदल दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।

* पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए छोटी इलायची अदरक का रस और तुलसी का रस मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।

* कान में हो रहे सामान्य दर्द को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का रस कपूर में मिलाकर गुनगुना करके कुछ बूंदें डालने से लाभ मिलता है।




from Tumblr http://ift.tt/19q30OE

via IFTTT

जीवन का सद्व्यय मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय और मैथुन में व्यतीत हो जाता है।...

जीवन का सद्व्यय

मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय

और मैथुन में व्यतीत हो जाता है। शारीरिक

आवश्यकताओं की पूर्ति में समय और शक्तियों का

अधिकांश भाग लग जाता है। विचार करना चाहिए

कि क्या इतने छोटे कार्यक्रम में लगे रहना ही मानव

जीवन का लक्ष्य है? यह सब तो पशु भी करते हैं। यदि

मनुष्य भ इसी मर्यादा के अंतर्गत घूमता रहे, तो उसमें

और पशु में क्या अंतर रह जाएगा? सृष्टि के समस्त

जीवों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने के कारण मनुष्य का

उत्तरदायित्व भी ऊँचा है। जो अपने महान् कर्त्तव्य

की ओर ध्यान नहीं देता, निश्चय ही वह मनुष्यता

का महान् गौरव प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

दु:ख और अधर्म को हटाकर सुख और धर्म की

स्थापना करना, मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना

चाहिए। ईश्वर ने जो योग्यताएँ और शक्तियाँ मानव

प्राणी को दी हैं, उनका सदुपयोग यही हो सकता है

कि दूसरों की सहायता की जाए, उन्हें सुख एवं उत्तम

जीवन बिताने में सहयोग दिया जाए। बेशक,

शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रम

करना आवश्यक है, परंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए

कि जीवन-निर्वाह की साधारण समस्या को हल

करने के उपरांत जो समय और शक्ति बचती है, उसे

परमार्थ में, संसार की भलाई में लगाना चाहिए। जो

मनुष्य स्वार्थ पर से दृष्टि हटाकर परमार्थ पर जितना

ध्यान देता है, समझना चाहिए कि वह उतना ही

जीवन का सद्व्यय कर रहा है।




from Tumblr http://ift.tt/19q30Ou

via IFTTT

अपार ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा ग्रह यह पृथिवी लोक सर्वत्र मुनष्यों एवं अन्य प्राणियों से भरा हुआ है।...

अपार ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा ग्रह यह पृथिवी लोक सर्वत्र मुनष्यों एवं अन्य प्राणियों से भरा हुआ है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसे परमात्मा ने बुद्धि तत्व दिया है जो ज्ञान का वाहक है। ईश्वर निष्पक्ष एवं सबका हितैषी है। इसी कारण उसने हिन्दू, मुसलमान व ईसाई आदि मतों के लोगों में किंचित भी भेद नहीं किया। सबका एक जैसा शरीर बनाया व उन्हें एक समान इन्द्रियां व शक्तियां प्रदान की हैं। ईश्वर के देश-देशान्तरों के कार्यों में भी सर्वत्र एकरूपता है। देश काल परिस्थितियों के अनुसार कहीं भेद उसके द्वारा नहीं किया गया है। सभी मनुष्यों का जन्म माता के गर्भ में हिन्दी मास के अनुसार 10 माह व्यतीत करने के बाद होता है। इन 10 महीनों में माता को अपनी भी देखभाल करनी होती है और साथ में अपनी भावी सन्तान की भी जो उसके गर्भ में पल रही होती है। सन्तान के प्रति वह इतनी सावधान होती है कि उसे अपने किसी हित व सुख की चिन्ता नहीं होती और सन्तान के लाभ के लिए वह अपनी सभी इच्छाओं व आकांक्षाओं के लिए समर्पित रहती है। प्रसव पीड़ा में असह्य वेदना माताओं को होती है। कुछ माताओं का तो प्रसव के समय देहान्त भी हो जाता है। पहले यह घटनायें अधिक होती थी परन्तु चिकित्सा विज्ञान की उन्नति से यह दर अब घट गई है। अतः माता का सन्तान को उत्पन्न करने और उसका पालन पोषण करने में सर्वाधिक योगदान होता है। सम्भवतः इसी कारण माता को ईश्वर के बाद दूसरे स्थान पर रखकर सर्वाधिक पूजा व सत्कार के योग्य माना जाता है। यह है भी ठीक, परन्तु क्या सभी सन्तानें माता व पिता की भावनाओं का ध्यान रखते हैं?




from Tumblr http://ift.tt/19q2XCn

via IFTTT

रघुपति राघव राजा राम’ भजन की असली धुन । 'रघुपति राघव राजा राम' इस प्रसिद्ध भजन का नाम...

रघुपति राघव राजा राम’ भजन की असली धुन ।


'रघुपति राघव राजा राम' इस प्रसिद्ध भजन का नाम है..”राम धुन” .

जो कि बेहद लोकप्रिय भजन था.. धूर्त गाँधी ने बड़ी चालाकी से इस में परिवर्तन करते हुए अल्लाह शब्द जोड़ दिया..


आप भी नीचे देख लीजिए..

असली भजन और गाँधी द्वारा बेहद चालाकी से किया गया परिवर्तन..


गाँधी का भजन


रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान


** असली राम धुन भजन **


रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम

सुंदर विग्रह मेघश्याम

गंगा तुलसी शालग्राम

भद्रगिरीश्वर सीताराम

भगत-जनप्रिय सीताराम

जानकीरमणा सीताराम

जयजय राघव सीताराम


अब सवाल ये उठता है, की, गाँधी को ये अधिकार किसने दिया की,..

हमारे श्री राम को सुमिरन करने के भजन में ही अल्लाह को घुसा दे..


अल्लाह का हमसे क्या संबंध?


क्या अब हिंदू अपने ईष्ट देव का ध्यान भी अपनी मर्ज़ी से नही ले सकता..?


क्या ज़रूरत थी अल्लाह को हमारे भजन के बीच में घुसाने की???


कितना कलंकित कार्य है ये ।


और जिस भी व्यक्ति को हमारी बात से कष्ट हुआ हो..

वो इसी भजन को अल्लाह शब्द वाला संस्करण ज़रा किसी मस्जिद मे चलवा कर दिखा दे.. फिर हमसे कोई गीला शिकवा करे ।


मज़ाक बना के रख दिया है..मेरे धर्म का इन कलयुग के राक्षस रूपी पाप आत्माओं ने।


अब और नही सहा जाएगा, क्या आप सह पाएँगे?

🚩वन्देमातरम शाखा परिवार🚩




from Tumblr http://ift.tt/1EcCsOL

via IFTTT

महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ...

महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में

सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें

उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ जाता है ।

जिन्होंने इस का गहराई से अध्ययन किया है

उन्हें विदित है की इसमें कुल 377

ग्रंथों का हवाला है जिसमे 290 पुस्तकों के

प्रमाण दिए गए है । इस ग्रन्थ में 1542

वेद मन्त्रों या श्लोकों का उदाहरण

दिया गया है और सम्पूर्ण

प्रमाणों की संख्या 1886 है । इस ग्रन्थ के

लेखक का स्वाध्याय कितना विस्तृत

था इसका अनुमान उनके इस कथन से

लगाया जा सकता है की वे ऋग्वेद से लेके

पूर्वमीमांसा पर्यन्त 3000

ग्रंथों को प्रामाणिक मानते है ।

सत्यार्थप्रकाश में इतने ग्रंथो का उद्धरण

ही नही उनका reference

भी दिया गया है ।

किस ग्रन्थ में कौनसा श्लोक या मन्त्र

या वाक्य कहाँ है , उसकी संख्या क्या है -

यह सब कुछ इस साढ़े तीन महिने में लिखे

ग्रन्थ में मिलता है । आज कोई रिसर्च

स्कोलर अगर किसी विश्वविध्यालय

की संस्कृत की uptodate

लाइब्रेरी में

जहाँ सब ग्रन्थ उपलब्ध हो , इतने रेफरेंस

वाला ग्रन्थ लिखना चाहे तो भी सालो लग

जाए , जिसे ऋषि दयानंद ने साढे तीन महीने

में तैयार कर दिया था । साधारण ग्रन्थ

की बात दूसरी है । सत्यार्थप्रकाश एक

मौलिक विचारो का ग्रन्थ है । ऐसा ग्रन्थ

की जिसने समाज को एक सिरे से दुसरे सिरे

तक हिला दिया हो । जिन ग्रंथो ने संसार

को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे

है । कार्ल मार्क्स ने 34 वर्ष इंग्लेंड में

बेठ कर ‘केपिटल’ ग्रन्थ लिखा था जिसने

विश्व में नवीन आर्थिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया , किन्तु ऋषि दयानंद ने

सत्यार्थप्रकाश साढ़े तीन महीनों में

लिखा था जिसने नवीन सामजिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया था । दोनों का क्षेत्र अलग

अलग था , मार्क्स के ग्रन्थ ने यूरोप

का आर्थिक ढांचा हिला दिया , ऋषि दयानंद

के ग्रन्थ ने भारत का सांस्कृतिक ,

सामाजिक तथा धार्मिक ढांचा हिला दिया ।




from Tumblr http://ift.tt/1EcCsOH

via IFTTT

पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया और जटायु के जीवन का एक ही...

पितामह भीष्म के जीवन का एक ही पाप था कि उन्होंने समय पर क्रोध नहीं किया और जटायु के जीवन का एक ही पुण्य था उसने समय पर क्रोध किया परिणाम स्वरुप एक को बाणों की शैय्या मिली और एक को मर्यादा पुरुषोत्तम की गोद..

अतः क्रोध तब पुन्य बन जाता है जब वह धर्म एवं मर्यादा की रक्षा के लिए किया जाये और वही क्रोध तब पाप बन जाता है जब वह धर्म व मर्यादा को चोट पहुँचाता हो।

शांति तो जीवन का आभूषण है मगर अनीति और असत्य के खिलाफ जब आप क्रोधाग्नि में दग्ध होते हो तो आपके द्वारा गीता के आदेश का पालन हो जाता है।


मगर इसके विपरीत किया गया क्रोध आपको पशुता की संज्ञा भी दिला सकता है धर्म के लिए क्रोध हो सकता है क्रोध के लिए धर्म नहीं..!




from Tumblr http://ift.tt/1NjrHLK

via IFTTT

रघुपति राघव राजा राम’ भजन की असली धुन । 'रघुपति राघव राजा राम' इस प्रसिद्ध भजन का नाम...

रघुपति राघव राजा राम’ भजन की असली धुन ।


'रघुपति राघव राजा राम' इस प्रसिद्ध भजन का नाम है..”राम धुन” .

जो कि बेहद लोकप्रिय भजन था.. धूर्त गाँधी ने बड़ी चालाकी से इस में परिवर्तन करते हुए अल्लाह शब्द जोड़ दिया..


आप भी नीचे देख लीजिए..

असली भजन और गाँधी द्वारा बेहद चालाकी से किया गया परिवर्तन..


गाँधी का भजन


रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान


** असली राम धुन भजन **


रघुपति राघव राजाराम

पतित पावन सीताराम

सुंदर विग्रह मेघश्याम

गंगा तुलसी शालग्राम

भद्रगिरीश्वर सीताराम

भगत-जनप्रिय सीताराम

जानकीरमणा सीताराम

जयजय राघव सीताराम


अब सवाल ये उठता है, की, गाँधी को ये अधिकार किसने दिया की,..

हमारे श्री राम को सुमिरन करने के भजन में ही अल्लाह को घुसा दे..


अल्लाह का हमसे क्या संबंध?


क्या अब हिंदू अपने ईष्ट देव का ध्यान भी अपनी मर्ज़ी से नही ले सकता..?


क्या ज़रूरत थी अल्लाह को हमारे भजन के बीच में घुसाने की???


कितना कलंकित कार्य है ये ।


और जिस भी व्यक्ति को हमारी बात से कष्ट हुआ हो..

वो इसी भजन को अल्लाह शब्द वाला संस्करण ज़रा किसी मस्जिद मे चलवा कर दिखा दे.. फिर हमसे कोई गीला शिकवा करे ।


मज़ाक बना के रख दिया है..मेरे धर्म का इन कलयुग के राक्षस रूपी पाप आत्माओं ने।


अब और नही सहा जाएगा, क्या आप सह पाएँगे?

🚩वन्देमातरम शाखा परिवार🚩




from Tumblr http://ift.tt/1HUP9LM

via IFTTT

Thursday, March 26, 2015

कुछ सूत्र जो याद रक्खे…..! चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए।दूध और नमक का संयोग...

कुछ सूत्र जो याद रक्खे…..!

चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए।दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है।

सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी।

दूध या दूध की बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।

दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए।

गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए।

ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं।

शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं।

खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं।

घी के साथ बराबर मात्र1 में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा।

तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं।

चावल के साथ सिरका कभी नहीं।

चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं।

खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं।

कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-

खरबूजे के साथ चीनी

इमली के साथ गुड

गाजर और मेथी का साग

बथुआ और दही का रायता

मकई के साथ मट्ठा

अमरुद के साथ सौंफ

तरबूज के साथ गुड

मूली और मूली के पत्ते

अनाज या दाल के साथ दूध या दही

आम के साथ गाय का दूध

चावल के साथ दही

खजूर के साथ दूध

चावल के साथ नारियल की गिरी

केले के साथ इलायची

कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं।

ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ——

केले की अधिकता में दो छोटी इलायची

आम पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और गुड

जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक

सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम

खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत

तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग

अमरूद के लिए सौंफ

नींबू के लिए नमक

बेर के लिए सिरका

गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये

चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये

बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च

मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये

बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं

खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये

मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं

इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये

मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये

मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये

घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं

खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें

पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये

अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,८०% बीमारियों से बचे रहेंगे।




from Tumblr http://ift.tt/19WIvtZ

via IFTTT

Amit Aarya ईश्वर आज्ञा से विपरीत चलने वाले मनुष्य दुखों के अम्बार लगाये बैठे रहते है, और विश्वास...

Amit Aarya


ईश्वर आज्ञा से विपरीत चलने वाले मनुष्य दुखों के अम्बार

लगाये बैठे रहते है, और विश्वास कीजिये वेदविरुद्ध कार्य करने

वाले लोग इन दुखों से कभी बाहर नहीं निकल

सकते

आज का वातावरण ऐसा है की लोग यज्ञ संध्या आदि को त्याग

कर पाषण पूजा में लगे है, वेदों का ज्ञान रति भर नहीं है, ना

लेना चाहते है, हर कोई पैसों के पीछे दोड़ रहा है, यहाँ तक

की धर्म को भी व्यापार बना दिया है, धर्म रक्षक

संस्थाए भी भवन निर्माण और पुस्तक व्यापार मात्र में

लगी है, विद्वान निर्माण से उनका कोई सरोकार नहीं

रहा

मनुष्यों को चाहिए की जो विद्वान उपलब्ध है उन विद्वानों

की संगती में रहे, और नित्य यज्ञ, संध्या करें

जिससे दुखों का नाश हो और जीवन सुखमय बने क्यूंकि जिस

प्रकार आप नित्य माता पिता का आशीर्वाद लेकर कार्य करते है

क्यूंकि आपमें यह विशवास है की उनके आशीर्वाद

से कार्य सिद्ध होगा उसी प्रकार उस जगतपिता का

आशीर्वाद यज्ञ संध्या करके जरुर लें क्यूंकि

उसकी उपासना बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं हो

सकता यही सार्वभौमिक सत्य है जिसे स्वीकार

करना ही होगा

यजुर्वेद ३-५८ (3-58)

अव॑ रु॒द्रम॑दीम॒ह्यव॑ दे॒वन्त्र्य॑म्बकम् । यथा॑ नो॒ वस्य॑स॒स्कर॒द्य

द्यथा॑ नः॒ श्रेय॑स॒स्कर॒द्यद्यथा॑ नो व्यवसा॒यया॑त् ॥३-५८॥

भावार्थ:- कोई भी मनुष्य ईश्वर की उपासना वा

प्रार्थना के बिना सब दुःखों के अन्त को नहीं प्राप्त हो सकता,

क्योंकि वही परमेश्वर सब सुखपूर्वक निवास वा उत्तम-उत्तम

सत्य निश्चयों को कराता है। इससे जैसी उसकी

आज्ञा है, उसका पालन वैसा ही सब मनुष्यों को करना योग्य

है।।

वेदों की ओर लौटिये यही सत्य ज्ञान है

पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने आप लोगों की सेवा में कुछ

वेबसाइट बनाई है जिससे आप साहित्य आदि निःशुल्क डाउनलोड कर सकते

है,

www.aryamantavya.in

एक वेबसाइट है जो वेद का सर्च इंजन है, जहाँ जाकर वेद मन्त्र संख्या

से या शब्द से उसे चुटकियों में खोज सकते है

www.onlineved.com

एक वेबसाइट और है जो सत्यार्थ प्रकाश का सर्च इंजन है इसका लाभ तो

अवश्य उठाये

http://ift.tt/18FvwLS

और हमारे फेसबुक पेज से भी जुड़े

http://ift.tt/17A8rdF

और हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए हमें इस नंबर पर आवेदन

भेजे जहाँ आपको 3 स्लाइड और एक शब्दमय सन्देश मिलेगा हमारा नंबरforwar by arya kantilal भुज करछ




from Tumblr http://ift.tt/19Wtk4a

via IFTTT

'घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र' एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर...

'घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र'

एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर पढ़ना चाहिए -


श्री घनश्यामदास बिर्ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है l विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है ‘अब्राहम लिंकन का पुत्र के शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है ‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’ (कै. घनश्यामदासजी बिड़ला का, अपने पुत्र श्री बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र )l –


चि. बसंत…..


यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।


धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l


भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है l सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।


- घनश्यामदास बिड़ला




from Tumblr http://ift.tt/192he8q

via IFTTT

'घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र' एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर...

'घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र'

एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर पढ़ना चाहिए -


श्री घनश्यामदास बिर्ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है l विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है ‘अब्राहम लिंकन का पुत्र के शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है ‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’ (कै. घनश्यामदासजी बिड़ला का, अपने पुत्र श्री बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र )l –


चि. बसंत…..


यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।


धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l


भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है l सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।


- घनश्यामदास बिड़ला




from Tumblr http://ift.tt/192hc0c

via IFTTT

Photo































from Tumblr http://ift.tt/19WtiJw

via IFTTT

Photo







from Tumblr http://ift.tt/192hdBz

via IFTTT

💐 ।। वेदामृतम् ।।...

💐 ।। वेदामृतम् ।। 💐

————————————————

सं गच्छध्वं सं वदध्वं, सं वो मनांसि जानताम् ।

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ।।

- ऋग्. १०.१९१.२

————————————————-

🌻अन्वय - (हे जना:) सं गच्छध्वम्, सं वदध्वम्, व: मनांसि सं जानताम् । यथा पूर्वे देवा: संजानाना: भागम् उपासते, (तथैव यूयं कुरुत)

☀शब्दार्थ- (हे जना:) हे मनुष्यो, (सं गच्छध्वम्) मिलकर चलो । (सं वदध्वम्) मिलकर बोलो । (वः) तुम्हारे, (मनांसि) मन, (सं जानताम्) एक प्रकार के विचार करे । (यथा) जैसे, (पूर्वे) प्राचीन, (देवा:) देवो या विद्वानों ने, (संजानाना:) एकमत होकर, (भागम्) अपने - अपने भाग को, (उपासते) स्वीकार किया, इसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग स्वीकार करो ।

☀हिंदी अर्थ- (हे मनुष्यों) मिलकर चलो । मिलकर बोलो । तुम्हारे मन एक प्रकार के विचार करें । जिस प्रकार प्राचीन विद्वान एकमत होकर अपना-अपना भाग ग्रहण करते थे, (उसी प्रकार तुम भी एकमत होकर अपना भाग ग्रहण करो) ।

☀Eng. Tr.- O Men! You should walk together, talk together and think alike. As your predecessors shared their assignments, so you must share your due.

————————————————-

संगठित हो जाए । संगठन निर्बल को भी बलवान, शक्तिहीन को शक्तिशाली बना देता है ।

नीति का श्लोक है कि -

🎄संहति: श्रेयसी पुंसां सुगुणैरल्पकैरपि ।

तृणैर्गुणत्वमापन्नै: बध्यन्ते मत्तदन्तिन: ।।

सद् गुणयुक्त थोड़े व्यक्ति भी हों तो उनका संगठित होना कल्याणकारी है । तिनके मिलकर रस्सा बनते हैं और उनसे मत्त हाथी भी बांधे जा सकते हैं । संगठन की महिमा अपार है ।

समाज में प्रतिष्ठित रूप से जीवित रहने के लिए संगठन अनिवार्य है ।




from Tumblr http://ift.tt/192hdBx

via IFTTT

पाषाण पूजा, मजार पूजा, यंत्र-तन्त्र, थान आदि पता नहीं किस तरह के पाखंडों में अशिक्षित ही नहीं...

पाषाण पूजा, मजार पूजा, यंत्र-तन्त्र, थान आदि पता नहीं किस तरह के पाखंडों में अशिक्षित ही नहीं शिक्षित वर्ग भी फसा पड़ा है, और निकालने का प्रयास करने वाले को दो बाते और सुना देते है, वेदों को भुला कर मनुष्य ना जाने किन किन पाखंडों को मानने लगा है, जिससे उसे लाभ कुछ नहीं होता अपितु वो और दुखों के दलदल में फसता जाता है, हमारा प्रयास यही है और सभी आर्यों अर्थात श्रेष्ठ मनुष्यों का कर्तव्य बनता है, की हम पाखंडों में फसे मनुष्यों को बाहर निकाले


मनुष्यों को चाहिए की वेद ज्ञानदाता ईश्वर की उपासना नित्य करनी चाहिए, ईश्वर उपासना का श्रेष्ठ और एकमात्र तरीका हवन संध्या है, इसके अलावा मूर्ति पूजा आदि पाखंड है, हर नए पवित्र कार्य से पहले ईश्वर की उपासना जरुर करनी चाहिए


यजुर्वेद ४-४(4-4)


चि॒त्पति॑र्मा पुनातु वा॒क्पति॑र्मा पुनातु दे॒वो मा॑ सवि॒ता पु॑ना॒वच्छि॑द्रेण प॒वित्रे॑ण॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिभिः॑ । तस्य॑ ते पवित्रपते प॒वित्र॑पूतस्य॒ यत्का॑मः पु॒ने तच्छ॑केयम् ॥४-३॥


भावार्थ:- मनुष्यों को उचित है कि जिस वेद के जानने वा पालन करने वाले परमेश्वर ने वेदविद्या, पृथिवी, जल, वायु और सूर्य आदि शुद्धि करने वाले पदार्थ प्रकाशित किये हैं, उसकी उपासना तथा पवित्र कर्मों के अनुष्ठान से मनुष्यों को पूर्ण कामना और पवित्रता का सम्पादन अवश्य करना चाहिये।।


पण्डित लेखराम वैदिक मिशन ने आप लोगों की सेवा में कुछ वेबसाइट बनाई है जिससे आप साहित्य आदि निःशुल्क डाउनलोड कर सकते है,


www.aryamantavya.in


एक वेबसाइट है जो वेद का सर्च इंजन है, जहाँ जाकर वेद मन्त्र संख्या से या शब्द से उसे चुटकियों में खोज सकते है


www.onlineved.com


एक वेबसाइट और है जो सत्यार्थ प्रकाश का सर्च इंजन है इसका लाभ तो अवश्य उठाये


http://ift.tt/18FvwLS


और हमारे फेसबुक पेज से भी जुड़े


http://ift.tt/17A8rdF


और हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए हमें इस नंबर पर आवेदन भेजे जहाँ आपको 3 स्लाइड और एक शब्दमय सन्देश मिलेगा हमारा नंबर है


+917073299776




from Tumblr http://ift.tt/1HOgPp1

via IFTTT

!—-: सूक्ति :—-!!! ==================== "अन्धं तमः प्रविशन्ति येSविद्यामुपासते। ततो भूय...

!—-: सूक्ति :—-!!!

====================


"अन्धं तमः प्रविशन्ति येSविद्यामुपासते।

ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रतः ।।”

(बृहदारण्यकोपनिषद्—4.10)


अर्थः——जो “अविद्या” अर्थात् “भौतिकवाद” की उपासना करते हैं, वे गहन अन्धकार में जा पहुँचते हैं और जो “विद्या” अर्थात् कोरे “अध्यात्मवाद” में रत रहने लगते हैं, भौतिक-जगत् की परवाह ही नहीं करते, वे उससे भी गहरे अन्धकार में जा पहुँचते हैं।


इसलिए विद्या (परविद्या) और अविद्या (अपरविद्या) इन दोऩों को सम्मिलित करके इस जीवन को चलाना चाहिए। अविद्या अर्थात् भौतिक विद्या से मृत्यु को पार करके विद्या अर्थात् अध्यात्म से अमृत को प्राप्त करना चाहिए।


वैदिक संस्कृत




from Tumblr http://ift.tt/1FMlTtv

via IFTTT

आध्यात्म आत्ममंथन है और स्वयं को जैसा है उसी रूप में स्वीकारने की शक्ति देता है । आध्यत्म आडम्बरों,...

आध्यात्म आत्ममंथन है और स्वयं को जैसा है उसी रूप में स्वीकारने की शक्ति देता है । आध्यत्म आडम्बरों, दिखावों, चढ़ावों से मुक्त होता है । आध्यत्मिक व्यक्ति आपको किसी धार्मिक व्यक्ति की तरह मंदिरों मस्जिदों में नहीं भी मिल सकता है क्योंकि उसके आराध्य का कोई ऑफिस नहीं होता कि वह वहीँ मिलेगा । आध्यत्मिक व्यक्ति का आराध्य किसी दफ्तर के बाबू की तरह चाय-पानी और चढावो के लिए किसी सहायता को नहीं रोकता । जबकि धार्मिकों के आराध्यों का दफ्तर होता है और वहीँ वे सुनवाई भी करते हैं ।


धार्मिकों को यह विशेष छूट होती है कि उनके ईश्वर सदैव उनपर नजर नहीं रख सकते इसलिए वे अधार्मिक कर्म भी कर सकते हैं । जबकि आध्यत्मिक व्यक्ति के ईश्वर तो सदैव उनके साथ ही होते हैं । धार्मिक व्यक्तियों को ईश्वर तक अपनी बात पहुचाने के लिए एजेंट्स की सहायता लेनी पड़ती है, चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है, घंटों लाइन पर खड़े रहना पड़ता है…. जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति को केवल ध्यान करना पड़ता है एकांत में ।


धार्मिक व्यक्ति दूसरो पर अपनी मान्यताये थोपता है, अपनी बात मनवाने के लिए छल-बल, कपट का प्रयोग करता है । जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति जानता है जो योग्य होगा वह आध्यात्म को स्वयं ही समझ जाएगा । धार्मिक दूसरों की भूमि का अधिग्रहण करते हैं, भूमि पाने के लिए तरह तरह के अत्याचार करते हैं लेकिन आध्यात्मिक व्यक्ति जानता है कि ऐसा करके वह ईश्वर का अपमान ही करेगा ।


लेकिन धार्मिक होना सुखकर है क्योंकि हर साल गंगा में डुबकी लगाकर या तीर्थ आदि जाकर अपने सारे पापों से मुक्त हो सकते हैं और नए पाप करने के लिए स्वतंत्र हो सकते हैं । जबकि आध्यात्मिक व्यक्ति को यह सुख नहीं मिलता जीवन भर । -




from Tumblr http://ift.tt/1HNKStt

via IFTTT

Wednesday, March 25, 2015

वैदिक बनो। एक पुरानी घटना है।एक गांव था जिसमें दो मित्र रहते थे। राम और श्याम। राम के पिता साहूकारी...

वैदिक बनो।

एक पुरानी घटना है।एक गांव था जिसमें दो मित्र रहते थे। राम और

श्याम। राम के पिता साहूकारी का व्यापार करते थे जबकि श्याम के पिता किसान का कार्य करते थे।

रामके पिता पौराणिक विचारों के थे जबकि श्याम के पिता ने गीता,सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा हुआ था ।

दोनों मित्र आम केबाग में गए और कच्चे आम तोड़ कर खाने लगे। थोड़ी देर

में प्यास लगी। बाग़ में जो माली था उसका नाम अब्दुल्लाह था। अब्दुल्लाह के घड़े का दोनों ने पानी पी लिया।जैसे ही पानी पिया दोनों ने अब्दुल्लाह को आते देखा। अब्दुल्लाह बोला आप दोनों गैर मुस्लिम हो और आप दोनों ने

मुस्लमान के घड़े का पानी पिया हैं इसलिए आप दोनों अब हिन्दू नहीं रहे। आप दोनों को इस्लाम की दावत देता हूँ। दोनों लड़के रोते पीटते घर

भागे। दोनों को कुछ समझ में नहीं आया। अपने अपने परिवार वालो को बताया। राम के पिता सर पकड़ कर बैठ गए और मंदिर के

पंडित से समाधान पूछने गए। मंदिर का पंडित पहले तो बोला जो हमारे

यहाँ से गया वह वापिस नहीं आ सकता।

तुम्हारा लड़का अब कभी हिन्दू नहीं कहला सकता। पर जब राम के पिता ने बोला पंडित जी कोई तो उपाय होगा। तब मोटी असामी देख पंडित जी बोले

हरिद्वार लेकर जाना पड़ेगा ,गंगा में डुबकी लगेगी, ४० ब्राह्मणों को भोजनकरवाना पड़ेगा , ऊपर से दान-दक्षिणा अलग लगेगी, तब

कहीं जाकर प्रायश्चित होगा। राम के पिता ने पूछा पंडित जी कितना खर्च होगा। पंडित जी ने सोच विचार कर 30-40 हज़ार का खर्च बता दिया। राम के पिता सर पकड़कर बैठ गए।

उधर श्याम अपने पिता के पास पहुँचा। उन्हें सब बात कह सुनाई।

श्याम के पिता ने पूछा कितना पानी पिया था। श्याम ने

बोला एक लौटा। तभी श्याम के पिता ने दो लौटे

पानी मंगवाए और श्याम को पिला दिए। 10 मिनट में एक

लौटा भर पिशाब श्याम को उतर गया। पिशाब उतरते

ही श्याम के पिता ने कहा “लो निकल गया अब्दुल्लाह

के घड़े का पानी”। अब कोई पूछे तो कह

देना की अब्दुल्लाह के घड़े का पानी तो नाली में बह गया। अरे

पानी कोई अब्दुल्लाह का थोड़े ही हैं वह तो ईश्वर का दिया हुआ हैं चाहे

किसी भी घड़े में भर लो।

वेद के अज्ञानी डरपोक, धर्मभीरु,अंधविश्वासी, अज्ञानी, अव्यवहारिक हैं

जबकि वैदिक लोग वीर, ऊर्जावान,राष्ट्रवादी, ज्ञानी एवं समाज सुधारक हैं।




from Tumblr http://ift.tt/1BpOfmw

via IFTTT

1400 वर्षों से हिंदुओं का कत्लेआम जारी है । हिन्दुओ की सुरक्षा के लिए तलवार उठानेवालों का घात...

1400 वर्षों से हिंदुओं का कत्लेआम जारी है । हिन्दुओ की सुरक्षा के लिए तलवार उठानेवालों का घात हिंदुओं ने ही किया है हरबार । क्यों की सदियों से हिंदुओं का नेतृत्व ऐसे धूर्त हिंदुओं के हाथो में है जो पलायनशील हिंदुओं की पलायनशीलता का फायदा उठाकर हिन्दू धर्म संस्कृति को खत्म करने के लिए हिन्दू धर्म संस्कृति के शत्रुओं का साथ देकर मालामाल होते रहे है और हो रहे है नतीजतन हिन्दू धर्म संस्कृति खत्म हो रही है ।




from Tumblr http://ift.tt/19RMRTd

via IFTTT

कौन है असली ब्राह्मण पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना होता था। इसके...

कौन है असली ब्राह्मण

पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा,

दीक्षा और कठिन तप करना होता था।

इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता

था। गुरुकुल की अब वह परंपरा

नहीं रही। जिन लोगों ने

ब्राह्मणत्व अपने प्रयासों से हासिल किया था उनके

कुल में जन्मे लोग भी खुद को

ब्राह्मण समझने लगे। ऋषि-मुनियों की

वे संतानें खुद को ब्राह्मण मानती हैं,

जबकि उन्होंने न तो शिक्षा ली, न

दीक्षा और न ही उन्होंने

कठिन तप किया। वे जनेऊ का भी

अपमान करते देखे गए हैं।

जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर किसी

अन्य को नहीं पूजता वह ब्राह्मण।

ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है। जो

पुरोहिताई करके अपनी

जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण

नहीं, याचक है। जो

ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से

अपनी जीविका चलाता है

वह ब्राह्मण नहीं,

ज्योतिषी है और जो कथा बांचता है

वह ब्राह्मण नहीं कथा वाचक है।

इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ

भी कर्म करता है वह ब्राह्मण

नहीं है। जिसके मुख से ब्रह्म शब्द

का उच्चारण नहीं होता रहता वह

ब्राह्मण नहीं।

ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र

से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है

और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।

कमल के पत्ते पर जल और आरे की

नोक पर सरसों की तरह जो विषय-भोगों

में लिप्त नहीं होता, मैं उसे

ही ब्राह्मण कहता हूं।ॐ।




from Tumblr http://ift.tt/19RMOXJ

via IFTTT

माननीयों सांसदों!! स्वतन्त्र भारत को चाहिये- [१]-समानता के विधान वाला ‘संविधान’,न कि...

माननीयों सांसदों!!

स्वतन्त्र भारत को चाहिये-

[१]-समानता के विधान वाला ‘संविधान’,न कि ‘एक देश-दो विधान’ वाला Constitution।

[2]-राजनीति(प्रजाहित की नीति),न कि ‘फूटनीति-स्वार्थनीति-भ्रष्टनीति’,

[३]-धर्म(यतोअभ्युदय नि:श्रेयससिध्दि:स धर्म:)सापेक्षता,न कि ‘धर्मनिरपेक्षता’।

[४]-धर्मसापेक्षता,न कि ‘सेकुलरिज्म’।

[5]-पारस्परिक सौहार्ध्द,न कि ‘साम्प्रदायिक सौहार्ध्द’।

[६]-सर्वात्तम प्राचीन भारतीय संस्कृति,न कि ‘मिलीजुली संस्कृति’।

[७]-‘सर्वधर्म समभाव’ की यथार्थ व्याख्या,न कि वर्तमान विकृत व्याख्या।

[७]-योग्य प्रतिभाओं को अनिवार्य आरक्षण, न कि जाति-पन्थ’ आधारित आरक्षण।

[८]- राष्ट्रवाद,न कि ‘व्यक्तिवाद-परिवारवाद-वंशवाद-जातिवाद-……’ ।

[९]-जोड़ने की मानसिकता,न कि ‘बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक,स्वर्ण-दलित,आदि आदि’ में तोड़ने की मानसिकता।

[१०]-भारतीयता से ओत-प्रोत अनिवार्य एकसमान शिक्षानीति,न कि वर्तमान शिक्षानीति।




from Tumblr http://ift.tt/1EVIhNX

via IFTTT

इक रोज वर्मा जी ब्लड बैंक के काउंटर पे बैठे थे तभी हाँफते हाँफते एक गबरू जवान मुस्टंडा काउंटर पे आके...

इक रोज वर्मा जी ब्लड बैंक के काउंटर पे बैठे थे तभी हाँफते हाँफते एक गबरू जवान मुस्टंडा काउंटर पे आके बोला एक यूनिट ब्लड चाहिए , वर्मा जी ने पूछा कौन से ग्रुप का तो मुस्टंडा बोलता है राजपूत खून दो ,

वर्मा जी चकरा गए , बोले खून ऐसे नहीं आता है ऐ , बी , ऐ बी , और ओ के ब्लड ग्रुप में आता है ,

मुस्टंडा ये ऐ , बी , सी , डी अपने पास रख , हमारे भाई सा राजपूत है उनकी रगों में सिर्फ राजपूत खून पड़ेगा , एक यूनिट किसी राजपूत का खून निकाल के दो जल्दी , हम रक्त शुध्दता वाले लोग है हमें अपने खून में कोई मिलावट नहीं चाहिए ,

अभी वर्मा जी मुस्टंडे को समझा ही रहे थे भाई यहाँ खून ऐसे नहीं मिलता , तब तक जाने कहा से एक पंडित जी भी खून लेने पंहुच गए , पंडित जी ने कहा हमारा लड़का दुर्घटनाग्रस्त है उसे खून की जरुरत है , आप फटाफट एक यूनिट शांडिल्य ब्राहमण का खून निकाल के दे दो ,

वर्मा जी के तो होश ही उड़ गए , वर्मा जी ने पंडित जी से कहा ये ब्लड बैंक है यहाँ क्षत्रिय , ब्राहमण , राजपूत , दलित , पिछड़ा खून की केटेगरी नहीं होती है , हमारे यहाँ जो भी ब्लड डोनेट करता है हम उसका ब्लड ले लेते है और उनको ऐ , बी , ऐ बी और ओ ग्रुप के हिसाब से पाउच में पैक कर के रख देते है , फिर जिसे जरुरत होती है इसी ग्रुप के हिसाब से ब्लड लेकर जाता है , अब भला कैसे पता चलेगा कौन से पाउच में ब्राहमण का खून है, किस में राजपूत का है , किसमें दलित का , किस में पिछड़ा का , किस में मुसलमान , सिख या इसाई का , लोग आते है खून लेकर जाते है मरीज को चढ़ा देते है जात थोड़े न पूछते है,

पंडित जो बोले राम राम राम राम, तुम ब्लड बैंक वालो ने तो सारा धरम ही भ्रष्ट करके रखा हुआ है, हमने जाने कितने सालो से सब खून को अलगा के रखा है , खून में मिलावट न हो इसलिए दूसरी जात में शादी ब्याह तक नहीं करते है ताकि एक जात एक गोत्र का खून एक जैसा ही रहे , और तुम ब्लड बैंक वालो ने सारी जात और धरम का खून मिला कर मरीजो का जात और धरम ही भ्रष्ट कर रखा है , हमारे सालो से अपनी रक्त शुद्धता को बचाए रखने के लिए जो तपस्या की सब भरभंड कर दिया ,

वर्मा जी ने कहा पंडित जी लड़का सीरियस है ब्लड ग्रुप बोलो और खून ले जाओ जान बचाओ ,

पंडित जी बोले न हम शुध्द शांडिल्य ब्राहमण है , हमारे लड़के को वो खून न चढ़ेगा जिसकी न जात का पता हो न धरम का और न गोत्र का , हम अपनी रक्त शुद्धता से खिलवाड़ नहीं कर सकते , इत्ते में राजपूत गबरू जवान ने भी पंडित जी हाँ में हाँ मिलाई हम भी अपने भाई सा के खून किसी और जात का खून न मिलने देंगे , देना है शुध्द राजपूत या शुध्द ब्राहमण का खून दो ,

वर्मा जी बोले ऐसा कीजिये आप दोनों अपना अपना खून दे दीजिये , मैं चेक कर लेता हूँ अगर मरीज के खून से मैच कर गया तो आप वो ही शुध्द खून उन्हें चढ़ा देना ,

दोनों इस बात के लिए राजी हो गए , खून का नमूना निकाला गया , और दोनों में से किसी का खून मरीज के खून से मैच नही किया ,

वर्मा जी बोले महराज अब बोलो आप दोनों का खून तो अपने ही भाई और बेटे से नहीं मिला , ऐसा करो आप दोनों जन इन्तेजार कर लो , जब कोई राजपूत या ब्राहमण खून आएगा तो वो ले जाना फिर चढ़ा देना और मरीज की जान बचा लेना , लेकिन इसमें टाइम लगेगा आज भी हो सकता है , कल भी लग सकता या फिर हफ्ते या महीने भी लग सकते है , सदियों की पोषित रक्त शुद्धता को बचाना है तो थोडा इन्तेजार थोड़ी तपस्या और तो करनी ही पड़ेगी वरना जात-धरम सब मिटटी में मिल जायेगा ,

पंडित जी का माथा ठनका इतना टाइम लगेगा तो लड़का जान से जायेगा , बाबु साहेब को भी लगा इतने में तो दुलारे भाई सा भगवान् को प्यारे हो जायेंगे ,

फिर दोनों ने चुपचाप वही ऐ , बी , सी , डी वाला ही ब्लड ले लिया जिसकी न जात का पता था, न धरम का और न गोत्र का , बस पाउच पर ऐ और बी ही लिखा था धन और ऋण के साथ जिससे इंसानियत जुड़ती थी दकियानूसी घटती थी….




from Tumblr http://ift.tt/19RMOXB

via IFTTT

किसी को अगर बचपन से ही गोबर खिलाया जाय तो उसे गोबर खाने की आदत पड जाएगी ऐसा ही कुछ हमारे इतिहास के...

किसी को अगर बचपन से ही गोबर खिलाया जाय तो उसे गोबर खाने की आदत पड जाएगी ऐसा ही कुछ हमारे इतिहास के बारे में भी कहा जा सकता है हमारा इतिहास हमें गोबर के रूप में बचपन से ही खिलाया जा रहा है क्योंकि जो इतिहास हमें पढाया जाता है उसे गोबर ही कहा जा सकता है


न.1. सिकन्दर महान

जो सिकन्दर इस देश का आक्रमणकारी था वह महान कैसे हो सकता है जो सिकन्दर पूरी दुनिया को जीतना चाहता था वह भारत को नहीं जीत पाया

लेकिन जिस पोरस के कारण सिकन्दर भारत को नहीं जीत पाया हम उस पोरस को भूल गए

न .2. अकबर दी ग्रेट

यह कैसा इतिहास है जिस मान सिंह ने अकबर का साथ दिया उसे तो हम गद्दार मानते है लेकिन अकबर महान मानते है

हल्दी घाटी के युद्ध में 10 से 12 हजार राजपूत सैनिको ने 70 हजार की अकबर की सेना के आधे से ज्यादा सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया तब खिस्याए अकबर ने निर्दोष हिन्दुओ का कत्ल करवाना शुरू कर दिया फिर भी अकबर महान है


न.3. शिर्डी के साई बने हिन्दुओ के भगवान

जिस सनातन धर्म का आदि अन्त आज तक कोई भी नही जान पाया 1838 मे जन्म लेने वाले एक मुल्ले को हिन्दुओ का भगवान बना दिया गया

जबकि उस समय देश गुलाम था और 1857 के प्रथम स्वतन्त्रा संग्राम मे साईं लगभग 19 वर्ष का था फिर भी उस साईं ने भारत को आजाद नही कराया अगर 1857 मे साईं (जिसे कुछ मुर्ख भगवान मानते है) ने देश को आजाद करा दिया होता तो शायद अलग पाकिस्तान न बनता फिर भी हम साईं को भगवान मानते है


न.4. गांधी नेहरू परिवार ने देश को आजाद कराया


जिस गांधी ने

भगत सिंह

चन्द्रशेखर आजाद

सुभाष चंद्र बोस

जैसे महान देश भक्तो को आतंकवादी कहा

जिस महात्मा गांधी ने

महाराणा प्रताप और शिवाजी जैसे महान देश भक्तो को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा

जिस पंडित नेहरू ने अपने स्वार्थ के लिए देश का बंटवारा कराया

जिस नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्त के लिए अग्रेजो से ऐसा एग्रीमेंट किया कि जीवन भर सुभाष चन्द्र बोस को गुमनामी बाबा बनकर रहना पडा


हम यह कैसे मान ले कि देश कोे आजाद कराने मे इनका भी योगदान है


न.5. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है


जहां भारतीय तिरंगे का अपमान देश द्रोह नही

जहां का ध्वज दूसरा है जहां भारत के सभी कानूनो को मान्यता नही है

जो पाकिस्तान अपनी पूरी सामरिक शक्ति के साथ हम से 7 घटे से ज्यादा युद्ध नही लड सकता वह पाकिस्तान हमारे उसी अभिन्न अंग के सहयोग से हमे रोज आंख दिखाता है उसे हम अपना अभिन्न अंग कैसे मान ले

अरे मै कहता हूँ 7 घंटे के लिए भूल जाओ पूरी दुनिया को और आदेश भर दे दो हमारे जाबांज सैनिकों को तो कश्मीर पाकिस्तान का होने के बजाय पाकिस्तान हमारा होगा। ॐ।




from Tumblr http://ift.tt/19RMRml

via IFTTT

🌷 🙏 नमस्ते जी 🙏 🌷 🌷 🌞 शुभ प्रभात 🌞 🌷 📢📯🎤🎼🎵🎶🎹🎻🎺🎷 🙏अथेश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासनामन्त्रा:...

🌷 🙏 नमस्ते जी 🙏 🌷

🌷 🌞 शुभ प्रभात 🌞 🌷

📢📯🎤🎼🎵🎶🎹🎻🎺🎷

🙏अथेश्वरस्तुतिप्रार्थनोपासनामन्त्रा: (७)🙏

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

औ३म् स नो बन्धुर्जजनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा ।

यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरन्त॥ ७ ॥

॥ यजु०अ०३२, म०१० ॥

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हे मनुष्यों वह परमात्मा अपने लोगों का भ्राता के समान सुखदायक सकल जगत् का उत्पादक, वह सब कार्यों का पूर्ण करने संपूर्ण लोकमात्र और नाम, स्थान, जन्मों को जानता है, और जिस सांसारिक सुख दु:ख से रहित नित्यानन्द युक्त मोक्षस्वरुप धारण करने हारे परमात्मा में मोक्ष को प्राप्त होके विद्वान् लोग स्वेच्छापूर्वक विचरते हैं, वही परमात्मा अपना गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश है, अपने लोग मिल के सदां उसकी भक्ति किया करें ।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

तू गुरू है, प्रजेश भी तू है, पाप-पुण्य फल दाता है ।

तू ही सखा, बन्धु मम तू ही, तुझसे ही नाता है ॥

भक्तों को इस भव-बन्धन से, तू ही मुक्त कराता है ।

तू ही अज, अद्वैत, महाप्रभु , सर्वकाल का ज्ञाता है ॥

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

आर्य ओमप्रकाश सिंह राघव

ग्राम-खेड़ा (पिलखुवा) हापुड़ ।

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷




from Tumblr http://ift.tt/1CaUyNs

via IFTTT

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 हमारे तेतीस करोड़ (अर्थात् कोटि / प्रकार ) देवता चौतिसवां मै स्वयं 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷 (१) ★ औ३म्...

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हमारे तेतीस करोड़ (अर्थात् कोटि / प्रकार ) देवता

चौतिसवां मै स्वयं

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

(१) ★ औ३म् ★ [ कौन—ईश्वर ]

[ संख्या— एक ]

[ लक्षण — सृष्टिकर्ता ]

[ देव स्थान — महादेव ]

(२) ★ आत्मा ★[ कौन—जीवात्मा ]

[ संख्या — निश्चित बहुसंख्या ]

[ लक्षण — जैविक चेतनता ]

(३) से (१०) ★ वसु ★ [ संख्या — ८ ]

(३)- सूर्य

(४)- चन्द्रमा

(५)- नक्षत्र

(६)- पृथ्वी

(७)- जल

(८)- अग्नि

(९)- वायु

(१०)- आकाश

(११) से (२०) ★ रुद्र ★ [ संख्या - १० ]

(११)- प्राण

(१२)- अपान

(१३)- व्यान

(१४)- उदान

(१५)- समान

(१६)- नाग

(१७)- कुर्म्म

(१८)- कृकल

(१९)- देवदत्त

(२०)- धनन्जय

(२१)से(३२)★आदित्य★[संख्या-१२]

(२१)- चेत्र

(२२)- बैसाख

(२३)- ज्येष्ठ

(२४)- आषाढ़

(२५)- श्रावण

(२६)- भाद्रपद

(२७)- आश्विन

(२८)- कार्तिक

(२९)- मार्गशीर्ष

(३०)- पौष

(३१)- माघ

(३२)- फाल्गुन

(३३)★ यज्ञ ( प्रजापति) ★

[ संख्या — १ ]

(३४)★ विद्युत ( इन्द्र )

[ संख्या — १ ]

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

आर्य ओमप्रकाश सिंह राघव

ग्राम - खेड़ा ( पिलखुवा )

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷




from Tumblr http://ift.tt/1CaUzRA

via IFTTT

स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व (स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती की दृष्टि में) - नवीन मिश्र स्वामी...

स्वामी विवेकानन्द का हिन्दुत्व

(स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती की

दृष्टि में)

- नवीन मिश्र

स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती एक

वैज्ञानिक संन्यासी थे। वे एक मात्र

ऐसे स्वाधीनता सेनानी थे जो

वैज्ञानिक के रूप में जेल गए थे। वे

दार्शनिक पिता पं. गंगाप्रसाद

उपाध्याय के एक दार्शनिक पुत्र थे। आप

एक अच्छे कवि, लेखक एवं उच्चकोटि के

गवेषक थे। आपने ईशोपनिषद् एवं

श्वेताश्वतर उपनिषदों का हिन्दी में

सरल पद्यानुवाद किया तथा वेदों का

अंग्रेजी में भाष्य किया। आपकी गणना

उन उच्चकोटि के दार्शनिकों में की

जाती है जो वैदिक दर्शन एवं दयानन्द

दर्शन के अच्छे व्याख्याकार माने जाते

हैं। परोपकारी के नवम्बर (द्वितीय) एवं

दिसम्बर (प्रथम) २०१४ के सम्पादकीय

‘‘आदर्श संन्यासी- स्वामी विवेकानन्द’’

के देश में धर्मान्तरण, शुद्धि, घर वापसी

की जो चर्चा आज हो रही है साथ ही इस

सम्बन्ध में स्वामी सत्यप्रकाश जी के

३० वर्ष पूर्व के विचार आज भी

प्रासंगिक हैं। इसी क्रम में स्वामी

सत्यप्रकाश सरस्वती द्वारा लिखित

पुस्तक ‘‘अध्यात्म और आस्तिकता’’ के

पृष्ठ १३२ से उद्धृत स्वामी जी का लेख

पाठकों के विचारार्थ प्रस्तुत है-

‘‘विवेकानन्द का हिन्दुत्व ईसा और

ईसाइयत का पोषक है।’’

‘‘महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अवतारवाद और

पैगम्बरवाद दोनों का खण्डन किया।

वैदिक आस्था के अनुसार हमारे बड़े से

बड़े ऋषि भी मनुष्य हैं और मानवता के

गौरव हैं, चाहे ये ऋषि गौतम, कपिल, कणाद

हों या अग्नि, वायु, आदित्य या अंगिरा।

मनुष्य का सीधा सम्बन्ध परमात्मा से है

मनुष्य और परमात्मा के बीच कोई

बिचौलिया नहीं हो सकता- न राम, न

कृष्ण, न बुद्ध, न चैतन्य महाप्रभु, न

रामकृष्ण परमहंस, न हजरत मुहम्मद, न

महात्मा ईसा मूसा या न कोई अन्य।

पैगम्बरवाद और अवतारवाद ने मानव जाति

को विघटित करके सम्प्रदायवाद की नींव

डाली।’’

हमारे आधुनिक युग के चिन्तकों में

स्वामी विवेकानन्द का स्थान ऊँचा है।

उन्होंने अमेरिका जाकर भारत की मान

मर्यादा की रक्षा में अच्छा योग दिया।

वे रामकृष्ण परमहंस के अद्वितीय शिष्य

थे। हमें यहाँ उनकी फिलॉसफी की

आलोचना नहीं करनी है। सबकी अपनी-अपनी

विचारधारा होती है। अमेरिका और यूरोप

से लौटकर आये तो रूढ़िवादी हिन्दुओं ने

उनकी आलोचना भी की थी। इधर कुछ दिनों

से भारत में नयी लहर का जागरण हुआ-यह

लहर महाराष्ट्र के प्रतिभाशाली

व्यक्ति श्री हेडगेवार जी की कल्पना

का परिणाम था। जो मुसलमान, ईसाई, पारसी

नहीं हैं, उन भारतीयों का ‘‘हिन्दू’’ नाम

पर संगठन। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की

स्थापना हुई। राष्ट्रीय जागरण की

दृष्टि से गुरु गोलवलकर जी के समय में

संघ का रू प निखरा और संघ गौरवान्वित

हुआ, पर यह सांस्कृतिक संस्था धीरे-

धीरे रूढ़िवादियों की पोषक बन गयी और

राष्ट्रीय प्रवित्तियों की विरोधी। यह

राजनीतिक दल बन गयी, उदार सामाजिक

दलों और राष्ट्रीय प्रवित्तियों के

विरोध में। देश के विभाजन की विपदा ने

इस आन्दोलन को प्रश्रय दिया, जो

स्वाभाविक था। हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य

की पराकाष्ठा का परिचय १९४७ के आसपास

हुआ। ऐसी परिस्थिति में गाँधीवादी

काँग्रेस बदनाम हुई और साम्प्रदायिक

प्रवित्तियों को पोषण मिला। आर्य

समाज ऐसा संघटन भी संयम खो बैठा और

इसके अधिकांश सदस्य (जिसमें दिल्ली,

हरियाणा, पंजाब के विशेष रूप से थे)

स्वभावतः हिन्दूवादी आर्य समाजी बन

गए। जनसंघ की स्थापना हुई जिसकी

पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

था। फिर विश्व हिन्दू परिषद् बनी।

पिछले दिनों का यह छोटा-सा इतिवृत्त

है।

हिन्दूवादियों ने विवेकानन्द का नाम

खोज निकाला और उन्हें अपनी

गतिविधियों में ऊँचा स्थान दिया।

पिछले १००० वर्ष से भारतीयों के बीच

मुसलमानों का कार्य आरम्भ हुआ। सन्

९०० से लेकर १९०० के बीच दस करोड़

भारतीय मुसलमान बन गये अर्थात्

प्रत्येक १०० वर्ष में एक करोड़ व्यक्ति

मुसलमान बनते गये अर्थात् प्रतिवर्ष १

लाख भारतीय मुसलमान बन रहे थे। इस धर्म

परिवर्तन का आभास न किसी हिन्दू राजा

को हुआ, न हिन्दू नेता को। भारतीय जनता

ने अपने समाज के संघटन की समस्या पर इस

दृष्टि से कभी सूक्ष्मता से विचार नहीं

किया था। पण्डितों, विद्वानों,

मन्दिरों के पुजारियों के सामने यह

समस्या राष्ट्रीय दृष्टि से प्रस्तुत ही

नहीं हुई।

स्मरण रखिये कि पिछले १००० वर्ष के

इतिहास में महर्षि दयानन्द अकेले ऐेसे

व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने इस समस्या

पर विचार किया। उन्होंने दो समाधान

बताए- भारतीय समाज सामाजिक

कुरीतियों से आक्रान्त हो गया है-

समाज का फिर से परिशोध आवश्यक है।

भारतीय सम्प्रदायों के कतिपय कलङ्क

हैं, जिन्हें दूर न किया गया तो यहाँ की

जनता मुसलमान तो बनती ही रही है, आगे

तेजी से ईसाई भी बनेगी। हमारे समाज के

कतिपय कलङ्क ये थे-

१. मूर्तिपूजा और अवतारवाद।

२. जन्मना जाति-पाँतवाद।

३. अस्पृश्यता या छूआछूतवाद।

४. परमस्वार्थी और भोगी महन्तों,

पुजारियों, शंकराचार्यों की गद्दियों

का जनता पर आतंक।

५. जन्मपत्रियों, फलित ज्योतिष,

अन्धविश्वासों, तीर्थों और पाखण्डों

का भोलीभाली ही नहीं शिक्षित जनता

पर भी कुप्रभाव। राष्ट्र से इन कलङ्कों

को दूर न किया जायेगा, तो विदशी

सम्प्रदायों का आतंक इस देश पर रहेगा

ही।

दूसरा समाधान महर्षि दयानन्द ने यह

प्रस्तुत किया कि जो भारतीय जनता

मुसलमान या ईसाई हो गयी है उसे शुद्ध

करके वैदिक आर्य बनाओ। केवल इतना ही

नहीं बल्कि मानवता की दृष्टि से अन्य

देशों के ईसाई, मुसलमान, बौद्ध, जैनी

सबसे कहो कि असत्य और अज्ञान का

परित्याग करके विद्या और सत्य को

अपनाओ और विश्व बन्धुत्व की

संस्थापना करो।

विवेकानन्द के अनेक विचार उदात्त और

प्रशस्त थे, पर वे अवतारवाद से अपने

आपको मुक्त न कर पाये और न भारतीयों

को मुसलमान, ईसाई बनने से रोक पाये। यह

स्मरण रखिये कि यदि महर्षि दयानन्द और

आर्य समाज न होता तो विषुवत रेखा के

दक्षिण भाग के द्वीप समूह में कोई भी

भारतीय ईसाई होने से बचा न रहता।

विवेकानन्द के सामने भारतीयों का

ईसाई हो जाना कोई समस्या न थी।

आज देश के अनेक अंचलों में विवेकानन्द

के प्रिय देश अमेरिका के षड़यन्त्र से

भारतीयों को तेजी से ईसाई बनाया जा

रहा है। स्मरण रखिये कि विवेकानन्द के

विचार भारतीयों को ईसाई होने से रोक

नहीं सकते, प्रत्युत मैं तो यही कहूँगा

कि यदि विवेकानन्द की विचारधारा रही

तो भारतीयों का ईसाई हो जाना बुरा

नहीं माना जायेगा, श्रेयस्कर ही होगा।

विवेकानन्द के निम्न श दों पर विचार

करें- (दशम् खण्ड, पृ. ४०-४१)

मनुष्य और ईसा में अन्तरः- अभिव्यक्त

प्राणियों में बहुत अन्तर होता है।

अभिव्यक्त प्राणि के रूप में तुम ईसा

कभी नहीं हो सकते। ब्रह्म, ईश्वर और

मनुष्य दोनों का उपादान है। …… ईश्वर

अनन्त स्वामी है और हम शाश्वत सेवक हैं,

स्वामी विवेकानन्द के विचार से ईसा

ईश्वर है और हम और आप साधारण व्यक्ति

हैं। हम सेवक और वह स्वामी है।

इसके आगे स्वामी विवेकानन्द इस विषय

को और स्पष्ट करते हैं, ‘‘यह मेरी अपनी

कल्पना है कि वही बुद्ध ईसा हुए। बुद्ध

ने भविष्यवाणी की थी, मैं पाँच सौ

वर्षों में पुनः आऊँगा और पाँच सौ वर्ष

बाद ईसा आये। समस्त मानव प्रकृति की यह

दो ज्योतियाँ हैं। दो मनुष्य हुए हैं

बुद्ध और ईसा। यह दो विराट थे। महान्

दिग्गज व्यक्ति व दो ईश्वर समस्त

संसार को आपस में बाँटे हुए हैं। संसार

में जहाँ कही भी किञ्चित ज्ञान है,

लोग या तो बुद्ध अथवा ईसा के सामने

सिर झुकाते हैं। उनके सदृश और अधिक

व्यक्तियों का उत्पन्न होना कठिन है,

पर मुझे आशा है कि वे आयेंगे। पाँच सौ

वर्ष बाद मुहम्मद आये, पाँच सौ वर्ष बाद

प्रोटेस्टेण्ट लहर लेकर लूथर आये और अब

पाँच सौ वर्ष फिर हो गए हैं। कुछ हजार

वर्षों में ईसा और बुद्ध जैसे

व्यक्तियों का जन्म लेना एक बड़ी बात

है। क्या ऐसे दो पर्याप्त नहीं हैं? ईसा

और बुद्ध ईश्वर थे, दूसरे सब पैगम्बर थे।’’

कहा जाता है कि शंकराचार्य ने बौद्ध

धर्म को भारत से बाहर निकाल दिया और

आस्तिक धर्म की पुनः स्थापना की।

महात्मा बुद्ध (अर्थात् वह बुद्ध जो

ईश्वर था) को भी मानिये और उनके धर्म

को देश से बाहर निकाल देने वाले

शंकराचार्य को भी मानिये, यह कैसे हो

सकता है? विश्व हिन्दू परिषद् वाले

स्वामी शंकराचार्य का भारत में गुणगान

इसलिए करते हैं कि उन्होंने भारत को

बुद्ध के प्रभाव से बचाया, वरना ये ही

विश्व हिन्दू परिषद् वाले सनातन धर्म

स्वयं सेवक संघ की स्थापना करके बुद्ध

की मूर्तियों के सामने नत मस्तक होते।

यह हिन्दुत्व की विडम्बना है। यदि

स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में बुद्ध

और ईसा दोनों ईश्वर हैं तो भारत में

ईसाई धर्म के प्रवेश में आप क्यों

आपत्ति करते हैं। पूर्वोत्तर भारत में

ईसाइयों का जो प्रवेश हो रहा है, उसका

आप स्वागत कीजिये। यदि विवेकानन्द को

तुमने ‘‘हिन्दुत्व’’ का प्रचारक माना है

तो तुम्हें धर्म परिवर्तन करके किसी का

ईसाई बनना किसी को ईसाई बनाना क्यों

बुरा लगता है?

मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि

विवेकानन्दी हिन्दू (जिन्हें बुद्ध और

ईसा दोनों को ईश्वर मानना चाहिए) देश

को ईसाई होने से नहीं बचा सकते।

भारतवासी ईसाई हो जाएँ, बौद्ध हो

जायें या मुसलमान हो जाएँ तो उन्हें

आपत्ति क्यों? ईसा और बुद्ध साक्षात्

ईश्वर और हजरत मुहम्मद भी पैगम्बर!

महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज की

स्थिति स्पष्ट है। हजरत मुहम्मद भी

मनुष्य थे, ईसा भी मनुष्य थे, राम और

कृष्ण भी मनुष्य थे। परमात्मा न अवतार

लेता है न वह ऐसा पैगम्बर भेजता है,

जिसका नाम ईश्वर के साथ जोड़ा जाए

और जिस पर ईमान लाये बिना स्वर्ग

प्राप्त न हो।

भारत को ईसाइयों से भी बचाइये और

मुसलमानों से भी बचाइये जब तक कि यह

ईसा को मसीहा और मुहम्मद साहब को

चमत्कार दिखाने वाला पैगम्बर मानते

हैं।

- आर्यसमाज, अजमेर ॐ




from Tumblr http://ift.tt/1HFIEzS

via IFTTT

योग का सत्य स्वरुप और फैली भ्रांतियां- योग की उत्पत्ति बिना वेदों के नहीं हो सकती। सर्वप्रथम वेदों...

योग का सत्य स्वरुप और फैली भ्रांतियां-

योग की उत्पत्ति बिना वेदों के

नहीं हो सकती। सर्वप्रथम

वेदों की उत्पत्ति हुई तत्पश्चात

ऋषि पतंजलि ने योग को एक सूत्र में

बांधा ताकि मनुष्य योग का भरपूर लाभ

उठा सके और जन्म मरण के चक्र से छूट कर अनन्त

समय के लिए मोक्ष प्राप्त कर सके। योग

बिना ईश्वर को जाने बिना माने

नहीं हो सकता। क्योकि ऋषि पतंजलि ने

योग दर्शन में स्पष्ट किया है-

योगश्चित्तवृत्ति निरोध:।

अर्थात- चित्त की वृत्तियों को निरोध

कर देना ही योग है। और योग का अर्थ है

जोड़। यह योग किसके साथ और कौन करे

तो इस प्रश्न का उत्तर है की आत्मा ईश्वर से

योग करे जिस कारण ईश्वर

को आत्मा संवेदनाएं दे और ईश्वर

आत्मा को प्रेरणाएँ दे।

अगर आप ईश्वर को ठीक ठीक

नहीं जानते और

नाही मानते हो तो योग

हो ही नहीं सकता। सर्वप्रथम स्वयं

को जानना और ईश्वर और प्रकृति के स्वरुप

को ठीक ठीक जानना अति आवश्यक है

अन्यथा जो आपका लक्ष्य कैवल्य का है

नहीं प्राप्त कर पाएंगे।

मन को एकाग्र कर परमात्मा में स्थापित

करके आत्मा को ईश्वर में समाहित कर

देना और ईश्वर के गुणों का चिंतन सूक्ष्म रूप में

करना ताकि आत्मा के भीतर ईश्वर के

गुणों का प्रतिस्थापन हो सके।

आज कुछ आसनों और प्राणायामो को योग

कह कर मुर्ख बनाया जाता है और हम उस पर

विशवास करके लक्ष्य से बिछड़ जाते हैं।

जबकि योगदर्शन में चार प्राणायाम बताये

गए हैं जिनके द्वारा मन को एकाग्र

किया जा सके। केवल एक आसन किया जाए

जिसमे दीर्घ काल तक स्थिर बैठा जा सके।

योग दर्शन में इसके लिए भी स्पष्ट

कहा गया है-

स्थिर सुखस्य आसनं।

अर्थात- जिस आसन में सुखपूर्वक स्थिर

बैठा जा सके उसी आसन को करें।

योग के लिए चार आसन योग दर्शन में बताये

गए हैं।

1- पद्मासन 2- स्वस्तिकासन 3- अर्धपद्मासन

4- सुखासन।

इन चार से विपरीत आसन में बैठ कर योग

नहीं होता। इसी प्रकार प्राणायाम के

विषय में ऋषि दयानंद ने ऋग्वेद

आदि भाष्यभूमिका में उपासना विषय में

स्पष्ट किया है-

जो मनुष्य नाक पकड़ कर प्राणायाम करते हैं

वह बाल बुद्धि के समान हैं।

अनुलोम विलोम करना मूर्खता होती है

ऐसा ऋषि दयानंद ने कहा है।

आज हठ योग को योग की श्रेणी में

रखा जाता है। हठयोग जैसे की कपाल

भाति, भ्रमरि, एक टांग पर खड़े हो जाना,

अपने चारो ओर अग्नि जला कर बैठ जाना,

अपने शरीर को कष्ट देना, उपवास करके स्वयं

को दुःख देना आदि आदि होते हैं। और योग

दर्शन में स्पष्ट किया गया है की हठ योग

करना महामूढ़ता को दर्शाता है तो योग के

नाम पर जो आपसे यह सब करवाये उसे नितांत

ढोंगी और विद्याहीन

ही समझना चाहिए।

ऋषियो के नाम पर जो तथाकथित योग

बेचते हैं उसका प्रचार प्रसार करते हैं उनसे

हमेशा सावधान रहना चाहिए। योग मनुष्य

को उसके लक्ष्य तक पहुचाता है परंतु अगर जाने

अनजाने हम योग का वास्तविक स्वरुप

मनुष्यो के समक्ष नहीं रख रहे तो यह पाप

ही होगा।

ऋषि पतंजलि द्वारा दिए गए अष्टांगयोग

को ही अपनाएँ इधर उधर समय व्यर्थ करने से

कोई लाभ नहीं क्योकि वास्तविक योग

ही हमे विद्यावान और विज्ञान प्राप्त

करा कर मोक्ष का अधिकारी बनाता है।

आज कल बोद्धिष्ट की देन एक और योग है

जिसमे वह कुण्डलिनी जागृत करने और

शरीर

में चक्रों की व्यवस्था होने को सिद्ध करते हैं

मेरा उन लोगो को आवाहन है की कृपया आएं

और मुझे सिद्ध करके बताएं। इसमें हमे

यही जानना चाहिए की योग

शरीर से

नहीं अपितु ईश्वर से आत्मा का होता है।

क्योकि ईश्वर चेतन है और आत्मा भी चेतन और

चेतन चेतन से जुड़ सकता है नाकि जड़ से। भले

ही आत्मा शरीर में हो परंतु आत्मा और

शरीर

के गुण एक दुसरे से विपरीत ही हैं।

आप सभी से अनुरोध है की

श्री कृष्ण और

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम

की भाँती अष्टांग योग को अपनाओ और

योग के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करो।

योगिराज श्री कृष्ण और मर्यादा पुरुषोत्तम

श्री राम की जय।




from Tumblr http://ift.tt/1y71HdV

via IFTTT