Sunday, September 24, 2017

। ओ३म् ।। श्राद्ध - तर्पण विषयक शङ्का समाधान शङ्का - वेद के कुछ मन्त्रों में मरे हुए पितरों का...

। ओ३म् ।।
श्राद्ध - तर्पण विषयक शङ्का समाधान
शङ्का - वेद के कुछ मन्त्रों में मरे हुए पितरों का तर्पण-श्राद्ध की प्रतीती है , “ये अग्निदग्धा अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते” इत्यादि मन्त्र , जिनका बहुत स्पष्ट होने से अर्थ बदला भी नहीं जा सकता , क्योंकि “दह भस्मीकरणे” धातु रूप ही दग्ध होता है अर्थात् ‘जो पितर अग्नि से जले व अग्नि से न जले हों, ऐसे पितरों को हविष्य खाने के अर्थ में बुलाता हूं ।’
समाधान - शङ्का में प्रस्तुत मन्त्र विचारने योग्य है कि अग्नि से पितरों का जलना कैसे हो सकता है ? पितर नाम यदि शरीर का रखो , तो यह बात घट सकती है कि अग्नि से जले पितर, परन्तु जो शरीर अग्नि से जला दिया गया , वह उसी समय भस्म गया , अब उसको श्राद्ध में बुलाना वा उसके लिये श्राद्ध का फल पहुंचाना , दोनों बातों में असम्भव दोष घट रहा है - पुनरपि यदि पितर नाम जीवात्मा का मानो, जिसका बुलाना मान भी लिया जाये परन्तु वह अग्नि से नहीं जलाया गया, क्योंकि शरीर के जलने से पहले ही वह निकल गया और उसके निकल जाने से ही शरीर जलाया गया । तो उन जीवात्माओं के साथ अग्निदग्ध विशेषण लग ही नहीं सकता । यदि पुनः कोई कहे कि चेतन शरीर पितर है तो मन्त्र के अनुसार वह तो जलाया ही नहीं गया । इस प्रकार इस मन्त्र द्वारा किसी भी रीति से मृतकों के श्राद्ध पक्ष का अर्थ नहीं बन रहा है - इसी प्रकार जीवात्मा को किसी का पितर , पुत्र आदि नहीं कह सकते - दृष्टव्य - नैव स्त्री न पुमानेष न चैवायं नपुंसकः ।। श्वेताशवतरोपनिषद् ।।
शङ्का - अथर्ववेद में स्पष्ट ही मरे हुए पितरों का तर्पण लिखा है - ये च जीवा ये च मृता ये जाता ये च यज्ञियाः - मन्त्र कहता है 'जो मरे , जीते , प्रकट हुए और यज्ञ सम्बन्धी पितर हैं , उन सबके लिये सहतयुक्त जल की धारा प्राप्त हो ।
समाधान - अथर्ववेद के इस मन्त्र में भी तर्पण का विधान नहीं है । अर्थात् जो कोई लोग इस (ये जीवा ..) मन्त्र से मृत पद को देखकर मरों का तर्पण निकालते हैं , उनको “जीवाः” पद से जीवितों का भी तर्पण निकालना चाहिये । यदि कोई कहे कि जीवा पद मृत शब्द का विशेषण है , तो उसके मत में समुच्चय अर्थ के लिये पढ़ा 'चकार’ निरर्थक हो जायेगा अर्थात् समुच्चार्थ पढ़े 'चकार’ से स्पष्ट प्रतीत होता है कि मृता और जीवा दोनों भिन्न पद हैं । और सर्वनामवाची यत् शब्द के चार प्रयोग मन्त्र पूर्वाध में ही पढ़े हैं । उनसे भी सबका पृथक् होना सूचित होता है । कथन कोई कुछ भी करे , किन्तु उक्त अथर्ववेद के मन्त्र का अर्थ मरे हुए पितरों के तर्पण पक्ष में यथावत् कोई नहीं घटा सकता है । इस कारण इस मन्त्र से मरों के तर्पण का नाम भी नहीं निकलता , किन्तु संसार का उपकार करने वाली एक प्रकार की विद्या इससे निकलती है , इस मन्त्र का संक्षिप्त व्याख्यान प्रस्तुत किया जाता है -
पदार्थ - *ये जीवाः* - जो किसी प्रकार कष्ट के साथ अन्न जलादि को पाकर प्राण धारण करते *च* - और *ये मृताः* - जो शीघ्र प्रकट हुए थोड़ी अवस्था के पशु पक्षी आदि के बच्चे वा अंकुररूप वृक्षादि *च* - और *ये याज्ञयाः* - यज्ञ कर्म में उपयुक्त होने वाले ओषधि, वनस्पति वा अन्नादि हैं *तेभ्यः* - उनके अच्छे प्रकार होने के लिये *घृतस्य* - जल की *व्युन्दती* - शीतलता गुण पहुंचने वाली *मधुधारा* - खारीपन आदि दोष रहति ऐसी *कुल्या* - कृत्रिम बनावटी नदी - नहर *एतु* - प्राप्त हों , जिससे जगत् में सब चराचर प्राणियों की रक्षा हो ।।
भावार्थ - जिस - जिस मरु आदि देश में जल नहीं मिलता वा बड़े कष्ट से मिलता है , उन - उन प्रदेशों में सुगमता से सर्वदोष रहित मीठा जल प्राप्त होने के लिये देशहितैषी धनाढ्य वा प्रजापालन में तत्पर राजपुरुषों को नवीन नदी - नहर निकालनी चाहिये , क्योंकि जल से ही सब चराचर की उत्पत्ति होना और स्थति रहना सम्भव है ।।
।। ओ३म् ।।


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Saturday, September 23, 2017

महाराजा हरि सिंह को विलेन की तरह पेश करने वाले नव इतिहासकारों को यह देश माफ नहीं कर सकता है। जम्मू...

महाराजा हरि सिंह को विलेन की तरह पेश करने वाले नव इतिहासकारों को यह देश माफ नहीं कर सकता है।
जम्मू काश्मीर रियासत के आखिरी हिन्दू राजा के बारे में जो गलतफहमियाँ फैलायी गई हैं , उसके अनुसार हरि सिंह ने राज्य का विलय कराने में देरी की थी ,
या फिर …उस वक्त विलय कराने पर मजबूर हुए जब पाकिस्तानी कबाईलियों का अटैक हुआ था ,
या फिर… वे विलय चाहते ही नहीं थे , राज्य को स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे।
काश! कि महाराजा ने अपनी बायोग्राफी लिखवाई होती तो आज कई चेहरे बेनकाब हुए होते।
विलय के बाद उन्हें उस राज्य से निर्वासित होने के लिए मजबूर किया गया था , जिस राज्य से के लोगों के हृदय में अपने लोकप्रिय राजा के प्रति अगाध श्रद्धा थी ।
हिन्दू , बौद्ध और यहाँ तक कि गिलगीत बल्तिस्तान के मुस्लिमों में भी उनके प्रति आदर और प्रेम का भाव था और वे सभी भारत के साथ आने को बिना शर्त और सहर्ष तैयार थे।
बस कोई तैयार नहीं था तो वो था एक कट्टर मुस्लिम और सिर्फ काश्मीर घाटी तक सीमित रहने वाला एक नेता शेख अब्दुल्ला …. वो भारत से जम्मू कश्मीर रियासत को एक अलग स्वायतशासी राज्य बनाने वाले कानूनों की माँग कर रहा था … ऐसे कानून जो भारत के साथ दिखने के बावजूद भी राज्य को भारत से अलग रखे।
महाराजा की छवि को धूमिल करने में माउंटबेटन , शेख अब्दुल्ला और नेहरू की तिकड़ी के षडयंत्रों का बड़ा हाथ रहा था।
रही सही कसर उनके नालायक कुपुत्र कर्ण सिंह ने पूरा किया था ।
नेहरू के विचारों से सम्मोहित कर्ण सिंह को अपना पिता दुश्मन की तरह तथा नेहरू की मुस्लिम शेख-परस्त नीतियाँ राज्य के लिए हितकारी लग रही थीं ।
माउंटबेटन तो खैर विदेशी था जिसकी सत्ता खत्म हो चुकी थी …आखिरी वक्त तक वो दबाव बनाता रहा कि महाराजा हर हाल में राज्य का विलय पाकिस्तान के साथ कर लें । सभी रियासतों को यह छूट थी कि वे दोनों में से किसी देश के साथ जा सकते हैं।
क्योंकि ऐसा होने पर एंग्लो-अमेरिकन गुट को साम्यवादी रूस और चीन तक पहुँच बना कर वैश्विक रणनीति तय करने में सहुलियत होती .. और वजह था, राज्य की सीमा का उन दोनों देशों के साथ लगना।
माउंटबेटन ने महाराजा के रियासत के तात्कालिन प्रधानमंत्री रामचंद्र काक की अंग्रेज बीबी को पटा लिया था । अब उसकी सहायता से वह महाराजा पर दबाव डालने के लिए रामचंद्र काक को उकसाता रहा … वह उकसाया भी , रामचंद्र काक जिन्ना के संपर्क में भी था और महाराजा पर दबाव भी बनाता रहा … लेकिन आखिर में पटेल की सलाह पर महाराजा ने उस गद्दार प्रधानमंत्री को उसकी हैसियत दिखा दी … यानी कि उसे हटा दिए।
नेहरू दबाव बनाते रहे थेे कि भले ही विलय में देर हो … या पाकिस्तानी कबाईली सेना घाटी पर कब्जा कर ले , परंतु रियासत की सत्ता हर हाल में शेख को मिलनी चाहिए ….लेकिन महाराजा इसके सख्त खिलाफ थे।
नेहरू तो यहाँ तक ताल ठोके थे कि यदि पूरी घाटी को पाकिस्तान क्यों ना दखल कर ले , शेख को सत्ता मिल जाने के बाद हम घाटी को भारतीय सेना की मदद से खाली करवा लेंगे इतनी ताकत है हमारे में।
लेकिन वे क्या कर पाये थे यह तो सारा देश जानता है , आज पीओके पाक के कब्जे में है।
शेख अब्दुल्ला की मुस्लिम परस्त पार्टी यह दबाव बनाती रही कि महाराजा पहले घाटी छोड़े … क्विट काश्मीर का नारा सालों पहले से बुलंद किए हुए थे शेख अब्दुल्ला।
इस प्रकार तीनों महाराजा पर दबाव बनाते रहे….
परंतु महाराजा को इन तीनों लफंदरों की शर्तें मंजूर नहीं थी।
यहाँ ध्यान दें , शेख को सिर्फ़ काश्मीर घाटी से ही मतलब था..यानी कि जम्मू , लद्दाख और गिलगित बल्तिस्तान से कोई लेना देना नहीं था … वैसे भी शेख सिर्फ घाटी तक ही सीमित था पर नेहरू उसे पूरे रियासत की सत्ता सौपना चाहते थे।
आखिरकार देश की आजादी के ढाई महीनों बाद महाराजा ने उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए जो विलय पत्र शेष सभी रियासतों के लिए था।
बिना किसी शर्त के हस्ताक्षर किए थे महाराजा ने … पर हाँ , एक लााइन जरूर लिखे थे कि रियासत की सत्ता मुस्लिम परस्त शेख अब्दुल्ला को यदि ना मिले तो उन्हें आत्मिक खुशी होगी।
अठारह वर्षों तक राज्य से निर्वासित होकर मुंबई को अपना ठिकाना बनाने वाले राष्ट्र भक्त महाराजा की अंतिम साँसें एक हाॅस्पिटल के बेड पर जिस वक्त निकल रही थी, बस चंद स्टाफ उनके पास खड़े थे .. अपनी मातृभूमि जम्मू कश्मीर की धरती पर दोबारा कदम रखने और उसकी रज को माथे से लगा पाने की लालसा धरी की धरी रह गई ।
मृत्यु से पहले महाराजा ने अपने परिजनों से एक वचन लिया था कि उनके पार्थिव शरीर को उनका पुत्र कर्ण सिंह हाथ भी ना लगाए … और उनकी अस्थियों को जम्मू की तवी नदी में प्रवाहित की जाए।
1925 में रियासत की सत्ता संभालने वाले एक लोकप्रिय राजा और 1930 के गोलमेज सम्मेलन में अँगरेजों को आँखें दिखाने वाले देशभक्त महाराजा की छवि अब उन गद्दारों और वामपंथी इतिहासकारों की मोहताज नहीं रही।
सत्य परेशान हो सकता है पर परास्त नहीं।
आज 23 सितंबर है ,,,,,,
महाराजा हरि सिंह का जन्म दिन है ,… देशभक्त डुग्गरों की धरती पर पैदा हुए ऐसे महाराजा को मैं शत-शत नमन करता हूँ।


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☆नीम के महत्व को समझो☆ भारत देश में नीम एक बहुत बड़ी औषधि है, जिसे कई हजारों सालों से उपयोग किया जा...

☆नीम के महत्व को समझो☆
भारत देश में नीम एक बहुत बड़ी औषधि है, जिसे कई हजारों सालों से उपयोग किया जा रहा है| आज के समय में बहुत सी अंग्रेजी दवाइयां नीम की पत्ती व उसके पेड़ से बनती है| नीम के पेड़ की हर एक चीज फायदेमंद होती है, बहुत सी बड़ी बड़ी बीमारियों का इलाज इससे किया जाता है| भारत देश में नीम का पेड़ घर में होना शुभ माना जाता है, लोग अपने घर में इसे लगाते है ताकी इसके फायदे उठा सके| भारत से नीम के पत्तों का निर्यात 34 देशों में किया जाता है|
नीम का स्वाद कड़वा होता है, लेकिन ये जितनी कड़वी होती है, उतनी ही फायदे मंद होती है| आइये मैं आज आपको नीम के गुण और उसके लाभ से अवगत कराती हूँ, जिसे आप आसानी से घर में उपयोग कर बहुत बीमारियों को दूर कर सकते है|
नीम के उपयोग
दवा के रूप में
नीम की पत्ती लेप्रोसी , आँख की बीमारी , नकसीर , पेट के कीड़े , पाचन , भूख में कमी , त्वचा के रोग , दिल
और खून की नसों की बीमारी , बुखार , डायबिटीज , मसूड़े , लिवर आदि परेशानी दूर करने में काम आती हैं।
नीम की टहनी मलेरिया में , पेट या आंतों के अल्सर , स्किन डिजीज , दांत और मसूड़ों की परेशानी आदि में काम आती है।
नीम की दातुन का उपयोग आज भी कई लोग करते है। यह दातुन बाजार में भी मिलती है। इससे दांत में प्लाक जमना
कम होता है तथा मसूड़ों में सूजन या खून आना , मुंह से बदबू आना आदि से बचाव होता है।
नीम के फूल Neem ke fool पित्त कम करने में , कफ मिटाने में तथा पेट के कीड़े मिटाने में काम आते हैं।
नीम का फल जिसे निमोड़ि Nimodi या निम्बोड़ि Nimbodi कहते हैं बवासीर , पेट के कीड़े , नकसीर , पेशाब की तकलीफ , कफ , घाव , डायबिटीज , आँखों की परेशानी आदि में काम आता है। नीम का तेल Neem ka tel बालों के लिए , लिवर की ताकत के लिए , खून साफ करने के लिए , तथा खून में शक्कर की मात्रा कम करने के लिए काम में लिया जाता है।
कीटनाशक के रूप में
नीम की पत्तियों को अलमारी में रखा जाता है ताकि कपड़े कीटों से बचे रहें। इन्हे गेहूं या चावल आदि भरने से पहले ड्रम या पीपे आदि में नीचे बिछाया जाता है ताकि उनमे कीड़े ना पड़ें। नीम की पत्तियां जलाकर मच्छरों को दूर किया जाता है। नीम की पत्ती का खाद बनता है , जिसका उपयोग करने से फसल कई प्रकार की बीमारियों से बच सकती हैं। घर में गमलों में लगाए जाने वाले पौधे पर पानी में नीम का तेल डालकर छिड़काव करने से पौधे पर लगे कीट नष्ट हो जाते हैं। निम्बोड़ी के बीज को पीस कर पाउडर बनाया जाता है फिर इसे पानी में रात भर भिगोते हैं। इस पानी को फसल पर छिड़कने से यह कीटों से बचाव करता है। यह कीड़ों को सीधे ही नहीं मारता लेकिन इसके छिड़कने से कीड़ो का पत्ती खाना , पत्तियों पर अंडे देना आदि बंद हो जाता है। इस तरह से फसल ख़राब होने से बच जाती है। नीम कीटों का अंडे से बाहर निकलना भी रोकता है। नीम का तेल दीमक के उपचार में भी काम करता है।
खाने पीने में
नीम के फूल का उपयोग दक्षिण भारत में मनाये जाने वाले त्यौहार ‘ उगादी ‘ के समय किया जाता है। नीम के फूल और गुड़ खाकर ‘उगादी’ त्यौहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में कर्नाटक में नीम के ताजा फूल से कढ़ी बनाई जाती है। ताजा फूल ना हों तो सूखे फूल काम में लिए जाते हैं। तमिलनाडु में इमली से बनाई जाने वाली रसम में इसे डाला जाता है।
बंगाल में नीम की कोमल पत्ती और बैंगन की सब्जी बनाई जाती है। इसे चावल के साथ खाया जाता है।
महाराष्ट्र में गुडी पड़वा यानि नववर्ष की शुरुआत , थोड़ी मात्रा में नीम की पत्ती या उसके रस का सेवन करके की जाती है। इससे मौसम के बदलाव के कारण होने वाली परेशानी तथा पित्त विकार से बचाव होता है।
नीम की पत्ती कड़वी होने के कारण पित्त शांत करने वाली मानी जाती है। चैत्र महीने में कोमल नीम की पत्ती का सेवन करना लाभप्रद होता है। अक्सर चैत्र महीने में जानकार लोग नीम की कोमल पत्ती तोड़कर खाते दिखाई देते है।
नीम के फायदे
वाइरस का संक्रमण
वाइरस के कारण होने वाले चिकन पॉक्स , स्माल पॉक्स यानि चेचक या बोदरी जैसी बीमारियों को फैलने से रोकने में नीम का उपयोग किया जाता रहा है। नीम की पत्ती को पीस कर लगाने से त्वचा पर दूसरी जगह वाइरस नहीं फैलता। यह हर्पीज़ जैसे हानिकारक वाइरस को भी मिटा सकता है। चिकन पॉक्स होने पर नीम की पत्तियां पानी में उबाल कर इस पानी से नहाना बहुत लाभदायक होता है। इससे त्वचा को आराम मिलता है और यह संक्रमण अन्य स्थान पर नहीं फैलता।
त्वचा के रोगों में नीम की पत्ती पानी में उबाल कर इस पानी से नहाने से बहुत लाभ होता है। इससे त्वचा की खुजली या जलन आदि में भी आराम मिलता है। यह पानी पीने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं और आंतों की कार्यविधि सुधरती है।
हृदय की देखभाल
नीम की पत्ती पानी में उबाल कर यह पानी पीने से नसों में लचीलापन आता है इससे हृदय पर दबाव कम होता है। यह हृदय की धड़कन नियमित करने में सहायक होता है और इस प्रकार उच्च रक्तचाप को कंट्रोल करता है।
बालों के लिए
नीम की पत्ती डाल कर उबाला हुआ पानी से सिर धोने से डैंड्रफ ठीक होती है। बाल गिरना कम हो जाते हैं।
आँखों के लिए
ताजा नीम की पत्तियाँ पानी में उबाल कर इस पानी के ठंडा होने पर आँख धोने से कंजंक्टिवाइटिस तथा आँख लाल होना , आँख में जलन आदि में लाभ होता है।
मलेरिया
नीम की पत्तियां का उपयोग मलेरिया बुखार को रोकने में कारगर पाया गया है। नीम की पत्तियां मच्छर को पनपने से रोकती हैं।
जोड़ों का दर्द
नीम का तेल लगाने से मांसपेशियों तथा जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
कीड़े का काटना
नीम की पत्ती पीस कर लगाने से कीड़े के काटने के कारण होने वाली सूजन और जलन में आराम मिलता है।
स्किन
नीम की पत्ती त्वचा की सुंदरता बढ़ाने में मददगार हो सकती है। नीम की पिसी हुई पत्ती और हल्दी मिलाकर लगाने से मुँहासे , फुंसी , ऐक्ने आदि ठीक होते हैं। स्किन का हर प्रकार का इन्फेक्शन मिटता है। त्वचा कोमल होती है। नीम की पत्ती डालकर उबाला हुआ पानी स्किन टोनर की तरह काम करता है। इसके उपयोग से मुँहासे , स्कार , ब्लेक हेड आदि मिटते है और रंग निखरता है। इसका फेस पैक भी बनाया जा सकता है। इसके लिए थोड़े से पानी में कुछ नीम की पत्ती और संतरे के छिलके उबाल लें। छान कर पानी ठंडा कर लें। इसमें मुल्तानी मिट्टी , दही , शहद और दूध मिलाकर स्मूथ पेस्ट बना लें। इसे चेहरे पर लगाकर सूखने दें फिर धो लें। इससे चेहरे पर कांति आ जाती है और फोड़े फुंसी , ब्लेक हेड , व्हाइट हेड आदि मिट जाते हैं।
गले का संक्रमण
नीम के पानी के गरारे करने से गला ठीक होता है। नीम की कोमल पत्तियां खाने से सर्दी ,जुकाम, फ्लू ,वाइरल बुखार आदि में आराम आता है।
नीम के उपयोग में सावधानी
नीम एक औषधि है। किसी भी औषधि को लेने के कुछ नियम परहेज आदि होते है अन्यथा औषधि नुकसानदेह भी हो सकती है। नीम के उपयोग में भी सावधानी आवश्यक है। अतः इन बातों का ध्यान जरूर रखें।
बच्चों के लिए नीम का तेल या पत्ती का उपयोग नुकसान देह हो सकता है। छोटे बच्चों के लिए नीम विषैला साबित हो सकता है। इससे उल्टी , दस्त , चक्कर आना , बेहोशी आदि लक्षण प्रकट हो सकते हैं। छोटे बच्चों को नीम की पत्ती या तेल आदि मुंह के द्वारा नहीं दिया जाना चाहिए।लम्बे समय तक नीम के तेल का उपयोग हानिकारक होता है। इससे किडनी और लीवर को नुकसान हो सकता हैगर्भावस्था में तथा स्तनपान कराने वाली माँ को नीम की पत्ती नहीं खानी चाहिए। नीम का सेवन गर्भपात का कारण बन सकता है। डायबिटीज की दवा चल रही हो तो नीम का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। नीम भी रक्त में शुगर की मात्रा को कम करता है।यदि बच्चा चाहते हों तो नीम का उपयोग नहीं करना चाहिए। यह शुक्राणु को कमजोर कर सकता है। गर्भधारण कैसे हो जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।यदि किसी प्रकार अंग प्रत्यारोपण का ऑपरेशन करवाया हो तो नीम का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे दवा का असर कम होने की संभावना होती है।किसी भी प्रकार के ऑपरेशन के आस पास के दिनों में नीम का प्रयोग नहीं करना चाहिए।इम्यून सिस्टम से सम्बंधित दवा चल रही हो तो नीम के कारण दवा का असर कम हो सकता है , अतः सावधान रहेंयदि कोई ऐसी दवा चल रही हो जिसमे लिथियम हो तो नीम का उपयोग नुकसानदेह हो सकता है अतः चिकित्स्क की सलाह जरूर लें।
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*हिन्दुओ के जीवन मे सब काम मानने से हो जाते है* 1: एक पंडत ने , तीन बार ऐसा कहकर *ॐ प्राण आगच्छतु*...

*हिन्दुओ के जीवन मे सब काम मानने से हो जाते है*
1: एक पंडत ने , तीन बार ऐसा कहकर *ॐ प्राण आगच्छतु* मूर्ति में प्राण फूँक दिए ।
हमने कहा पंडत जी यह मूर्ति चेतन प्राणवान लोगो की तरह व्यवहार क्यो नही करती ??
पंडत ने कहा कि *मान् लो* इसमें प्राण आ गए है
2: मेरी माता तस्वीर को भोग लगाती है , अगले दिन तस्वीर साफ करती है क्योकि भोजन ज्यो का त्यों लगा हुआ है,
हमने कहा कि माता तस्वीर ने कुछ नही खाया , माता ने कहा कि *मान लो* खा लिया
3: एक मित्र मिट्टी के ढ़ेले पर लाल धागा बांध कर गणेश जी की पूजा करते है, हमने कहा गणेश जी कहां है , उन्होंने कहा कि *मान लो* यही गणेश है।
4: एक धार्मिक व्यक्ति कौवों को भोजन कराता है पितर मान कर, हमने कहा ये कौवा किसी ओर पड़ोसी का पितर भी तो हो सकता है, उन्होंने कहा कि *मान लो* यही हमारा है।
5: हमारे मोहल्ले के लोगो ने रात भर माता का जागरण किया, सुबह हमने कहा कि क्या माता जाग गयी ? उन्होंने कहा कि *मान लो* जाग गयी
6: पड़ोस के एक घर मे एक महिला को दौरे पड़ गए वो नाचने लगी, हमने कहा इसे अस्पताल ले चलो, लोगो ने कहा माता आयी है इस पर , हमने कहा माता आई होती तो नाचती क्यो? दुष्टो का संहार करती । लोगो ने कहा *मान लो* आयी है
इसी *मान लो* ने हिन्दुओ का सबसे अधिक विनाश किया है
कट्टर हिन्दू कहते है देश खतरे में है, धर्म खतरे में है, गौमाता खतरे में है, मैं कहता हूं कि
मान लो ये हिन्दू राष्ट्र बन गया है
मान लो ये सब मुल्ले सनातनी बन गए है
मान क्यो नही लेते की घर घर मे गाय सुरिक्षित है
*क्या मानने से काम चल जाएगा*
धर्म रक्षा का काम ईश्वर देवी देवताओं के जिम्मे होता तो तिल भर भी धर्म की हानि कभी ना हुई होती।
*खोल लो आंखे* धर्मरक्षा व राष्ट्ररक्षा तुम्हारी जिम्मेदारी है।
असत्य , अंधविश्वास ओर *मान लो* के सहारे स्वराज्य सम्भव नही
*हिन्दुओ श्रद्धा वही होती है जो सत्य पर आधारित हो*
*“वेत्ति यथावत् तत्त्वपदार्थस्वरुपं यया सा विद्या।”*
जिससे पदार्थों का यथार्थ स्वरुप बोध होवे, वह विद्या है।
*मान लो* पर अविद्या, अंधश्रद्धा पाखण्ड झूठ , अंधविश्वास खड़ा होता है।
आओ अविद्या से विद्या की ओर
आओ अंधकार से प्रकाश की ओर
आओ अंधश्रद्धा से श्रद्धा की ओर
आओ गुलामी से स्वराज्य की ओर


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*R.O. का लगातार सेवन बनेगा मौत का कारण*:–चिलचिलाती गर्मी में कुछ मिले या ना मिले पर शरीर को...

*R.O. का लगातार सेवन बनेगा मौत का कारण*:–
चिलचिलाती गर्मी में कुछ मिले या ना मिले पर शरीर को पानी ज़रूर मिलना चाहिए। अगर पानी RO का हो तो, क्या बात है ! परंतु *क्या वास्तव में हम आर. ओ. के पानी को शुद्ध पानी मान सकते हैं* ?
*जवाब आता है बिल्कुल नहीं। और यह जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की तरफ से दिया गया है।*
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि इसके लगातार सेवन से हृदय संबंधी विकार, थकान, कमजोरी, मांसपेशियों में ऐंठन, सर दर्द आदि दुष्प्रभाव पाए गए हैं। यह कई शोधों के बाद पता चला है कि इसकी वजह से *कैल्शियम और मैग्नीशियम पानी से पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं* जो कि शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
RO के पानी के लगातार इस्तेमाल से शरीर मे विटामिन *B-12* की कमी भी होने लगती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर 500 टीडीएस तक सहन करने की क्षमता रखता है परंतु RO में 18 से 25 टीडीएस तक पानी की शुद्धता होती है जो कि नुकसानदायक है। इसके *विकल्प में क्लोरीन को रखा जा सकता है जिसमें लागत भी कम होती है एवं पानी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं*। जिससे मानव का शारीरिक विकास अवरूद्ध नहीं होता।
जहां एक तरफ एशिया और यूरोप के कई देश RO पर प्रतिबंध लगा चुके हैं वहीं भारत में RO की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। और कई विदेशी कंपनियों ने यहां पर अपना बड़ा बाजार बना लिया है। स्वास्थय के प्रति जागरूक रहना और जागरूक करना ज़रूरी हैं। अब शुद्ध पानी के लिए नए अविष्कारों की ज़रूरत है।
याद रखें की लम्बे समय तक RO का पानी, लगातार पीने से, शरीर कमजोर और बीमारियों का घर बन जाता है। अत: प्राकृतिक (खनिज युक्त) पानी परंपरागत तरीकों से साफ कर के पीना, हितकर है


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