Friday, March 17, 2017

-मकर संक्रान्ति मंगलमय हो - जितने समय में पृथिवी सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करती है उतने समय को...

-मकर संक्रान्ति मंगलमय हो -
जितने समय में पृथिवी सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करती है उतने समय को “सौर वर्ष ” कहते हैं । सौर वर्ष में पृथिवी अपनी यह परिक्रमा आकाश में जिस परिधि पर रहकर करती है, उसे “क्रान्तिवृत्त” कहते हैं।इस क्रान्तिवृत्त के १२ भाग कल्पित किये गये हैं और उन १२ भागों के नाम उन-उन स्थानों पर विद्यमान आकाशस्थ नक्षत्रपुञ्जों से मिलकर बनी हुयी आकृति से मिलते जुलते आकार वाले पदार्थों के नाम पर रख लिये गये हैं जो कि इस प्रकार हैं -१मेष , २वृष , ३मिथुन , ४कर्क , ५सिंह , ६कन्या , ७तुला , ८वृश्चिक , ९धनु , १०मकर , ११कुम्भ , १२मीन । ये प्रत्येक भाग वा आकृति"राशि" कहलाते हैं। जब एक राशि से दूसरी राशि में पृथिवी संक्रमण करती है तब उसको “ संक्रान्ति” कहते हैं। पृथिवी के इस संक्रमण को लोक में सूर्य का संक्रमण कहने लगे हैं।पृथिवी के इस संक्रमण में सूर्य ६ महीने क्रान्तिवृत्त से उत्तर की ओर उदय होता है तथा ६ मास दक्षिण की ओर निकलता है ।ये ६ -६ महीने की अवधियां उत्तरायण व दक्षिणायन कहलाती हैं। सूर्य की मकरराशि की संक्रान्ति से उत्तरायण व कर्क राशि की संक्रान्ति से दक्षिणायन आरम्भ हो जाता है।
सूर्य के प्रकाशाधिक्य के कारण उत्तरायण को महत्त्व दिया गया है इस कारण उत्तरायण के आरम्भ दिवस को मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। यद्यपि इस समय उत्तरायण परिवर्त्तन , प्रचलन में आ रही मकर संक्रान्ति के दिन नहीं होता है। अयन चलन की गति बराबर पिछली ओर को होते रहने के कारण जो लगभग २२ - २३ दिन का अन्तर आ गया है उसे ठीक कर लेना चाहिये।
जिस प्रकार बाहर के जगत् में सूर्य का उत्तरायण दृष्टिगोचर होता है उसी प्रकार हमारे अभ्यन्तरीण आध्यात्मिक जगत् में भी उत्तरायण हुआ करता है । उत्तरायण कहते हैं ऊपर की ओर गति। गीता में कहा है - “ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:” अर्थात् सत्त्वगुण में रहने वाले मनुष्य ऊपर जाते हैं। यह मनुष्य के लिये ऊपर को जाना, ज्ञान के प्रकाश के द्वारा सम्भव है। सत्त्वगुण निर्मल होने से प्रकाशक है, इसलिये यह मनुष्य को ज्ञान के सम्बन्ध से जोड़ता है। ज्ञानस्यैव पराकाष्ठा वैराग्यम् ज्ञान की ही पराकाष्ठा को वैराग्य कहा गया है। बस इस वैराग्य रूप ज्ञान के होने पर उन्नति अर्थात् मोक्ष मार्ग की ओर गति का होना आरम्भ हो जाता है।
महाभारत काल के इतिहास पर दृष्टिपात करके देखो कि मृत्यञ्जयी ब्रह्मचारी भीष्म पितामह जब शरशय्या पर आसीन हो गये थे तब उन्होंने कहा था कि जब तक सूर्य उत्तरायण में नहीं जायेगा और सूर्य ही नहीं अपितु वस्तुतः जब तक मेरे जीवन का उत्तरायण काल नहीं आता है तब तक मैं देहत्याग नहीं करूंगा। इसी प्रकार हमें भी तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान आदि योग साधनों के द्वारा अपने जीवन के उत्तरायण का निर्माण करना चाहिये, यही प्रेरणा ग्रहण करना मकर संक्रान्ति पर्व की पर्वता है। जीवन को उत्तर अर्थात् श्रेष्ठ बनाने पर ही देहावसान होने के पश्चात् जीव को श्रेष्ठ नवजीवन रूप सद्गति प्राप्त होती है। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि मकर संक्रान्ति पर्व आप और हम सबके जीवन के उत्तरायण के लिये प्रेरक बनता हुआ मंगलमय हो। लेखक-विष्णुमित्र वेदार्थी ९४१२११७९६५


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*महर्षि दयानन्द* लिखित ग्रन्थ *सत्यार्थ प्रकाश* ने पौराणिक जगत में हलचल मचा दी थी, महर्षि की मृत्यु...

*महर्षि दयानन्द* लिखित ग्रन्थ *सत्यार्थ प्रकाश* ने पौराणिक जगत में हलचल मचा दी थी, महर्षि की मृत्यु के उपरान्त, पोप कालूराम शास्त्री ने *आर्यसमाज की मौत* नामक पुस्तक लिखी, जिसका उत्तर शास्त्रार्थ महारथी *मनसाराम वैदिक तोप* ने इस पुस्तक *पौराणिक पोल प्रकाश* यहाँ से download कीजिये, कुल 580 पृष्ठों में, 4 भागों में विभाजित:

*पौराणिक पोल प्रकाश, भाग-1:* [21 MB]
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*पौराणिक पोल प्रकाश, भाग-2:* [20 MB]
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*पौराणिक पोल प्रकाश, भाग-3:* [34 MB]
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*पौराणिक पोल प्रकाश, भाग-4:* [34 MB]
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आर्यसमाज एक विशुद्ध रूप से गैर राजनैतिक सामाजिक संगठन है जिसकी स्थापना सन् १८७५ मे मानकजी एक पारसी...

आर्यसमाज एक विशुद्ध रूप से गैर राजनैतिक सामाजिक संगठन है जिसकी स्थापना सन् १८७५ मे मानकजी एक पारसी सज्जन के बाग मे हुई और आर्यसमाज के लिए ५००० /- का पहला योगदान मुस्लिम संप्रदाय के मतावलम्बी श्री अल्लाहरखाँ ने दिया था | अनेक पादरी उनके सहयोगी थे | अमर शहीद भगतसिंह के दादा श्री अजीत सिंह सिख संप्रदाय से थे किन्तु महर्षि दयानंद के विचारो से प्रेरित होकर वैदिक धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा रखने लगे | उन्होंने आर्यसमाज के मंत्री के स्वरूप मे पंजाब मे आर्यसमाज के विस्तार हेतु सक्रिय भुमीका निभाई |
लाला लाजपत राय, शहीद चंद्रशेखर आजाद, उधम सिंह, करतार सिंह सराभा, रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र लोहड़ी, अश्फाक उल्ला खाँ, शहीद-ए-आजम सरदार भगतसिंह, क्रांतिगुरू श्याम जी कृष्ण वर्मा, भगवती चरण वोहरा, दुर्गा भाभी, स्वामी श्रद्धानंद, वीर सावरकर, मदनलाल धींग्रा को कौन नही जानता? इन सभी ने आर्यसमाज के ही विचारो से प्रेरित होकर माँ भारती को परतंत्रता की बेडीयो से मुक्त कराने हेतु अपणे प्राणो की आहुती दी. |
मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध, परोपकार के लिए सदैव तत्पर आर्यसमाज में आपका स्वागत है |
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र जी एवं योगीराज श्रीकृष्ण चंद्र जी आदी भारतीय संस्कृति के महान प्रेरणास्पद रहे है | महाभारत तथा रामायण इत्यादी ग्रन्थ मनुष्य रचित सच्चे ऐतिहासिक ग्रंथ है तथा मनुष्यों के लिए शिक्षाप्रद है | आर्यसमाज मानता है के ईश्वर एक है जो ईस ब्रम्हांड का रचियता है, वही कर्ता धर्ता है | वह सर्वव्यापक है, निराकार है | वह मनुष्यो के कर्मो का फल देता है (बुरे का बुरा और अच्छे का अच्छा) आर्यसमाज तर्कपूर्ण वैज्ञानिक मान्यताओं को महत्व देता है | आर्यसमाज मानता है के “वेद” ही ईश्वरीय ज्ञान है और सभी ज्ञान का भंडार है | सभी सत्य विद्याओं का पुस्तक है | आर्य समाज शाकाहार को मनुष्य का भोजन मानता है तथा मांसाहार, शराब, सिगरेट आदी व्यसनों को धर्म के विरुद्ध मानता है और इसका कडा विरोध करता है |
आर्य समाज छुआछूत तथा जाति-पाति को मनुष्य के सामाजिक उन्नति में बाधक मानता है | आर्यसमाज संस्कृत को भाषाओं की जननी मानता है तथा मातृभाषा को प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक मानता है | मानव के संपुर्ण जिवन के लिए आर्यसमाज आश्रम व्यवस्था का पुरस्कार करते हुवे (ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) को समाज की उन्नति का आवश्यक साधक मानता है | आर्यसमाज मानता है के कर्म के आधार पर ही वर्ण बने है (ब्राम्हण, क्षत्रीय, वैश्य आदी)
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आर्य समाज का विशालकाय, विश्वव्यापी संगठन निम्न स्वरूप कार्यरत है..
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👉लगभग १०००० आर्यसमाज मंदिर विश्व भर मे स्थापित है
👉लगभग २५०० विज्ञालयो एवं महाविद्यालयों का संचालन जिसमे (डीएवी) यह प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्था भी सम्मिलित है | सरकार के बाद संभवतः यह सब से बडी आर्यसमाज की शैक्षणिक शृंखला है |
👉लगभग ६०० गुरुकुलो (आवासिय) शिक्षण संस्थानों का संचालन |
👉१०,००० से अधिक अनाथ बच्चों का अनाथालयो द्वारा पालन पोषण |
👉२५० से लगभग ५००० लघु स्वास्थ्य केंद्रों के संचालन द्वारा मनुष्य मात्र की सेवा |
👉आडम्बर और जातिआधारीत बन्धनो से मुक्त हजारों विवाहों का प्रतिवर्ष आयोजन
👉नौजवानों के शारिरिक विकास के लिए आर्य वीर दल द्वारा हजारो व्यायाम शाला का संचालन तथा नैतिक व शारीरिक शिक्षा के लिए हजारो आवासीय निःशुल्क शिबीरो का प्रतिवर्ष आयोजन
👉महिलाओं के लिए लघु उद्योग, वानप्रस्थ आश्रम, संन्यास आश्रम का संचालन
आर्य समाज का विस्तार विश्व के लगभग हर कोने मे हुआ है
१ भारत
२ कनाडा
३ केन्या
४ फ्रांन्स
५ युगाण्डा
६ गयाना
७ त्रीनीडाड
८ सूरीनाम
९ टार्मिनीया
१० नेपाल
११ म्यांमार
१२ बांग्लादेश
१३ सिंगापुर
१४ अमेरिका
१५ इंग्लैंड
१६ मारीशस
१७ पाकिस्तान
१८ हाँलैड
१९ थाईलैंड
२० न्यूजीलैण्ड
२१ आँस्ट्रेलिया
२२ फीजी
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जातिवाद विहीन समाज की स्थापना करना चाहते हो?
अंधविश्वास को दुर करना चाहते हो?
पाखण्ड से समाज को बचाना चाहते हो?
आर्यसमाज आपको आमंत्रित करता है |
अपने निकट के आर्यसमाज से आज ही संबंन्ध स्थापित करे |
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महाराष्ट्र आर्य प्रतिनिधी सभा
आर्य समाज परली बैजनाथ, जिला बीड, महाराष्ट्र - ४३१५१५
. जगदाले रोहित आर्य
आर्यसमाज, परभणी, महाराष्ट्र ४३१ ४०१.
मो ०९९६०९८३९९१.


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न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणो न हन्यते...

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।गीता (2/20)
शरीर में 6 विकार होते हैं – उत्पन्न होना,सत्तावाला दीखना,परिवर्तन होना,वृद्धि होना,घटना और नष्ट होना।आत्मा इन विकारों से मुक्त है। यह सनातन है।यह कभी मृत्यु को आलिंगन नहीं करती।जिसका जन्म होता है,उसी की मृत्यु अवश्यंभावी है।आत्मा में संयोग एवं वियोग नहीं होते।
आत्मा स्वतःसिद्ध निर्विकार है।इसकी सत्ता का आरम्भ और अन्त नहीं होता।इसे जन्मरहित कहते हैं।इसका अपक्षय कभी भी नहीं होता।शरीर कुछ आयु पश्चात् घटने लगता है,शक्ति क्षीण होने लगती है,इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं।लेकिन नित्य –तत्त्व आत्मा में किन्चिन्मात्र भी कमी नहीं आती।
आत्मा अनादि है।इस नित्य – तत्त्व में कोई वृद्धि भी नहीं होती।शरीर नश्वर है,जबकि आत्मा अविनाशी है।
शरीर परिवर्तनशील और विकारी होने के कारण आत्मा का अंग नहीं है।
ओम शान्ति


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हर व्यक्ति में ईश्वर को देखें जिसकी भी आये याद, हर व्यक्ति से प्रेम करें नहीं कोई फरियाद / ईश्वर को...

हर व्यक्ति में ईश्वर को देखें जिसकी भी आये याद, हर व्यक्ति से प्रेम करें नहीं कोई फरियाद / ईश्वर को ही याद करते हुए कीजिए सब काज ,वही सबका मित्र है वही सबका नाथ //🕉🕉🕉⛳⛳🕉🕉🕉


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सत्यार्थ प्रकाश ने बदला जीवन || एक किताब जो बदल देगी जीवन! || 1. देश के लिए बलिदान होने वाला पहला...

सत्यार्थ प्रकाश ने बदला जीवन
|| एक किताब जो बदल देगी जीवन! ||
1. देश के लिए बलिदान होने वाला पहला क्रांतिकारी मंगल पांडे स्वामी दयानंद का शिष्य था। मंगल पांडे को चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के कारण पानी न पिलाने वाले स्वामी दयानंद ही थे। प्रमाण: महान स्वतंत्रता सेनानी आचार्य दीपांकर की पुस्तक पढे: 1857 की क्रांति और मेरठ
2. सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने मरने से पहले गीता और सत्यार्थ प्रकाश के दर्शन किए, जब जेलर ने पूछा इन किताब में क्या है, उसने बताया, गीता मुझे दोबारा जन्म लेने की प्रेरणा देती है और सत्यार्थ प्रकाश स्वदेशी राज्य की प्राप्ति का मार्ग सुझाती है। इसलिए मैं जन्म लेकर दोबारा आउंगा और आजादी प्राप्त करूंगा।
प्रमाण: खुदीराम की जीवनी तेजपाल आर्य की लिखी पढ़े।
और देश के सबसे वृद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपत राय पर जब लाठियां बरस रही थी, उनके हाथ में तब भी सत्यार्थ प्रकाश था।
3. पं. मदनमोहन मालवीय जी ने आर्यसमाज का यहां तक विरोध किया कि सनातन धर्म सभा तक बना डाली, लेकिन जब मरने लगे तो काशी के सब पंडित उनके दर्शन करने आए और बोले, महामना जी हमारा मार्गदर्शन अब कौन करेगा? तो मदनमोहन मालवीय जी ने उन्हें सत्यार्थप्रकाश देते हुए कहा, ‘‘सत्यार्थ प्रकाश आपका मार्गदर्शन करेगा।’’
प्रमाण: घोर पौराणिक लेखक अवधेश जी की पुस्तक महामना मालवीय पढ़े, जो हिन्द पॉकेट बुक्स से छपी है।
4. सत्यार्थप्रकाश पढकर एक तांगा चलाने वाला दुनिया में मशालों का शहंशाह बन गया: एमडीएच मशाले और सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर एक पिंक्चर लगानेवाला हीरो ग्रुप का अध्यक्ष बन गया: ओमप्रकाश मूंजाल
5. सत्यार्थ प्रकाश पढकर होमी भाभा ने भारत में परमाणु युग की शुरूआत की और डॉक्टर कलाम ने गीता के साथ-साथ सत्यार्थप्रकाश भी अनेक बार पढा है।
गॉड पार्टिकल और हिग्स बोसोन की खोज के कारण जिन विदेशियों को नोबेल पुरस्कार मिला, जानते हो मेरे पास 1966 की एक हिन्दी पत्रिका नवनीत है, उसमें ये सिद्धांत तब के ही लिखे हैं और वह लेख लिखा हुआ है सत्येंद्रनाथ बोस का, जो आर्य समाज के सदस्य थे और वैज्ञानिक भी, अब इतने दिन बाद पुरस्कार कोई और ले गया। चलो फिर भी विज्ञान में न सही अभी समाज सेवा में कैलासजी को नोबेल मिला, वे भी सत्यार्थ प्रकाश पढने वाले ही हैं और जनज्ञान प्रकाशन की पंडिता राकेश रानी के दामाद हैं। जनज्ञान प्रकाशन ने कभी सबसे सस्ते वेद प्रकाशित किए थे।
6. सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर फीजी, गुयाना, मोरीशस में कई व्यक्ति राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन गए।
7. सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने वाले लाल बहादुर शास्त्री और चौधरी चरण सिंह देश के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री कहलाए। चरणसिंह की राजनीति कैसी भी रही हो, लेकिन जमींदारी उन्मूलन के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। नेहरूजी सहकारिता के नाम पर हिन्दुस्तान की सारी जमीन रूस को देने वाले थे, ऐसे ही जैसे उन्होंने आजाद भारत में माउंटबेटन को गवर्नर बना दिया। यदि सत्यार्थप्रकाश पढने वाले चरणसिंह न होते तो आज हमारे किसानो के आका रूस के लोग होते और देश रूस का गुलाम होता।
प्रमाण: कमलेश्वर की इंदिरा की जीवनी अंतिम सफर (संपूर्ण मूल संस्करण, क्योंकि यह संक्षिप्त भी है) पुस्तक पढे, कमलेश्वर इंदिरा जी के चहेते थेे, उनकी मौत पर दूरदर्शन से कमेंटरी उन्होंने ही की थी।
8. सत्यार्थप्रकाश जिसने भी पढा, वह शेर बन गया, रामप्रसाद बिस्लिम, श्याम कृष्णवर्मा, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉक्टर हेडेगेवार के पिताश्री बलिराम पंत हेडगेवार जो आर्य समाज के पुरोहित थे आदि और आज के युग में भी शेर ही होते हैं। सुनो कहानी: सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर साहित्यकार तेजपाल सिंह धामा ने भारत माता का नग्न चित्र बनानेवाले एमएफ हुसैन को 15 वर्ष पहले हैदराबाद में पत्रकार सम्मेलन में सबके सामने जोरदार चांटा जडा, अपमानित होकर बेचारे हुसैन देश ही छोड गए और हैदराबाद जैसे मुस्लिम शहर में रंगीला रसूल का पुनः प्रकाशन भी किया और सौ से अधिक पुस्तके आर्य समाज से संबंधित लिखी।
9. सत्यार्थ प्रकाश पर 2008 में प्रतिबंध के लिए जब भारत भर के मुल्ला-मौलवी एकत्र हुए और अदालत में पहुंचे तो फैसला सुनाने वाले जज ने न केवल सत्यार्थ प्रकाश के पक्ष में फैसला दिया वरन स्वयं आर्य समाजी हो गया और मुसलमानो का एक मुस्लिम वकील भी आर्य समाजी बन गया, बेचारे ने भूल से सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन किया था ताकि गलत तथ्य निकाल सके। आर्यसमाज की ओर से यह मुकदमा विमल वधावनजी ने लडा था, विमलजी भी सत्यार्थ प्रकाश पढनेवाले ही हैं।
10. सत्यार्थप्रकाश पढकर ही मुंशी प्रेमचंद भारत के सबसे लोकप्रिय लेखक बने, उनकी धर्मपत्नी ने ही ऐसा लिखा है।
सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा लो और वेदो की ओर लोटो!


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🕉🙏 ओउम् नमस्ते जी 🕉🙏 🕉🙏 आपका दिन शुभ हो 🕉🙏 दिनांक – 18 दिसम्बर 2016 दिन – रविवार तिथि...

🕉🙏 ओउम् नमस्ते जी 🕉🙏
🕉🙏 आपका दिन शुभ हो 🕉🙏

दिनांक – 18 दिसम्बर 2016
दिन – रविवार
तिथि – पंचमी
नक्षत्र– आश्लेषा
पक्ष– कृष्ण
माह – पौष
ऋतु – हेमन्त
सूर्य – दक्षिणायन
सृष्टि संवत् – 1, 96, 08, 53, 117
कलयुगाब्द – 5118
विक्रम संवत् – 2073
शक संवत् – 1939
दयानंदाब्द – 193

🌷 जो धर्म को त्यागता है , धर्म उसे त्याग देता है ।
🌷 जो समय नष्ट करता है , समय उसे नष्ट कर देता है ।
🌷 जो धर्म का पालन करता है , धर्म उसका पालन करता है ।
🌷 जो ईशवर के आश्रित होकर अपने कर्तव्य का पालन करता है , ईशवर उसका पालन करता है ।
🌷 जो अपनी आत्मा जैसी दुसरे की आत्मा को समझता है , वह किसी से बैरभाव नही रख सकता ।

🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷🌷🍃🌷🍃

🌷 यथोद्वरति निर्दाता कक्षं धान्यं च रक्षति ।
तथा रक्षेन्नृपो राष्ट्रं हन्याच्च परिपन्थिन : ।। ( मनु स्मृति )

🌷 अर्थ :- जैसे धान से चावल निकालने वाला छिलके को अलग कर चावलों की रक्षा करता है ।चावलों को टूटने नही देता । वैसे ही राजा रिश्वतखोरों , अन्यायकारियों , चोर बाजारी करने वालों , डाकुओं , चोरों और बलात्कारियों को मारे और बाकी प्रजा की रक्षा करें ।

🌷🍃🌷🍃 ओउम् 🌷🍃🌷🍃 सुदिनम 🌷🍃🌷🍃 सुप्रभातम


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तेरे गिरने में, तेरी हार नहीं । तू आदमी है, अवतार नहीं ।। गिर, उठ, चल, दौड, फिर...

तेरे गिरने में, तेरी हार नहीं ।
तू आदमी है, अवतार नहीं ।।
गिर, उठ, चल, दौड, फिर भाग,
क्योंकि
“जीत” संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं


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🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷ॐ अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवाआप्नुवन् पूर्वमर्शत्| तद्धावतो अन्यानत्येति...

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷ॐ अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवाआप्नुवन् पूर्वमर्शत्| तद्धावतो अन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ||~~न्यायदर्शन~यजुर्वेद~४०~४~~पद्यानुवाद~~~~~अद्वितीय निश्चल अकम्पन्, मन से तीव्र है वेगवान| पहले से व्यापक वह ठहरा, देख न पाये अविद्वान्| सब जीवों को धारण कर, सबको नियमों में चलाने वाला| अंतर्यामी घट घट वासी, खुद ही खुद से मिलाने वाला|| आओ विमल प्रशांत बना मन, सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्रभु को ध्यावें| अतुलनीय उस परमेश्वर के, अमृत मोक्षानंद को पावें||👏


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सब कार्य केवल हमारे पुरुषार्थ से सिद्ध नहीं होते । उनकी सिद्धि में ईश्वर की कृपा भी होती है। परंतु...

सब कार्य केवल हमारे पुरुषार्थ से सिद्ध नहीं होते । उनकी सिद्धि में ईश्वर की कृपा भी होती है। परंतु अपना पुरुषार्थ छोडना नहीं चाहिए।


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"ईश्वर कभी झूठ नहीं बोलता। ईश्वर की वाणी वेदों को पढें, और भटकने से बचें। सत्य को जानें, सुख से जीएँ।"

“ईश्वर कभी झूठ नहीं बोलता। ईश्वर की वाणी वेदों को पढें, और भटकने से बचें। सत्य को जानें, सुख से जीएँ।”

- ईश्वर कभी झूठ नहीं बोलता। ईश्वर की वाणी वेदों को पढें, और भटकने से बचें। सत्य को जानें, सुख से जीएँ।
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हिम्मत करके पढिऐ फिर HAPPY NEW YEAR मना लेना ..आर्य जयवीर 9416874412 ना तो जनवरी साल का पहला मास है...

हिम्मत करके पढिऐ फिर HAPPY NEW YEAR मना लेना ..आर्य जयवीर 9416874412
ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..
जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..
सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..
नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के “नव” को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में “Dec” बन जाता है जिससे
December बन गया ..
ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..
जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की “X” रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..
इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..
साल को 365 के बजाय 305 दिन
का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..
भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।
इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
अपना तारीख या दिन 12 बजे
रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??
तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।
चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..
इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..
जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..
कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप आज 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेसब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..
हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं? जय आर्य जय आर्यव्रत🙏🙏


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मुहम्मद बिन कासिम (Muhammad bin qasim): 7वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से...

मुहम्मद बिन कासिम (Muhammad bin qasim):

7वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा। भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार 7वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण और बाद के मुस्लिम शासकों द्वारा हुआ। लगभग 712 में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बूच पर के अभियान का सफल नेतृत्व किया।

इस्लामिक खलीफाओं ने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। 10 हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।

मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत ही क्रूर यौद्धा था। सिंध के दीवान गुन्दुमल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकर किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं। इसी तरह वहां के राजा दाहिर (679ईस्वी में राजा बने)और उनकी पत्नियों और पुत्रियों ने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। सिंध देश के सभी राजाओं की कहानियां बहुत ही मार्मिक और दुखदायी हैं। आज सिंध देश पाकिस्तान का एक प्रांत बनकर रह गया है। राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदों से लड़ते रहे। उनका साथ किसी ने नहीं दिया बल्कि कुछ लोगों ने उनके साथ गद्दारी की।


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રક્ત ટપકતી સો સો ઝોળી સમરાંગણથી આવે, કેસરવરણી સમરસેવિકા કોમલ સેજ બિછાવે; ઘાયલ મરતાં મરતાં રે! માતની...

રક્ત ટપકતી સો સો ઝોળી સમરાંગણથી આવે,
કેસરવરણી સમરસેવિકા કોમલ સેજ બિછાવે;
ઘાયલ મરતાં મરતાં રે!
માતની આઝાદી ગાવે.

કો’ની વનિતા, કો’ની માતા, ભગિનીઓ ટોળે વળતી,
શોણિતભીના પતિ-સુત-વીરની રણશૈયા પર લળતી,
મુખથી ખમા ખમા કરતી
માથે કર મીઠો ધરતી.

થોકે થોકે લોક ઊમટતા રણજોધ્ધા જોવાને,
શાહબાશીના શબદ બોલતા પ્રત્યેકની પિછાને;
નિજ ગૌરવ કેરે ગાને
જખ્મી જન જાગે અભિમાને.

સહુ સૈનિકનાં વહાલાં જનનો મળિયો જ્યાં સુખમેળો,
છેવાડો ને એક્લવાયો અબોલ એક સૂતેલો;
અણપૂછયો અણપ્રીછેલો
કોઇનો અજાણ લાડીલો.

એનું શિર ખોળામાં લેવા કોઇ જનેતા ના’વી;
એને સીંચણ તેલ-કચોળાં નવ કોઇ બહેની લાવી;
કોઇના લાડકવાયાની
ન કોઇએ ખબર પૂછાવી.

ભાલે એને બચીઓ ભરતી લટો સુંવાળી સૂતી,
સન્મુખ ઝીલ્યા ઘાવો મહીંથી ટપટપ છાતી ચૂતી;
કોઇનો લાડકવાયાની
આંખડી અમૃત નીતરતી.

કોઇના એ લાડકવાયાનાં લોચન લોલ બિડાયાં,
આખરની સ્મૃતિનાં બે આંસુ કપોલ પર ઠેરાયાં;
આતમ-દીપક ઓલાયા,
ઓષ્ઠનાં ગુલાબ કરમાયાં.

કોઇનાં એ લાડકડા પાસે હળવે પગ સંચરજો,
હળવે એનાં હૈયા ઊપર કર-જોડામણ કરજો;
પાસે ધૂપસળી ધરજો,
કાનમાં પ્રભુપદ ઉચરજો !

વિખરેલી એ લાડકડાની સમારજો લટ ધીરે,
એને ઓષ્ઠ-કપોલે-ભાલે ધરજો ચુંબન ધીરે;
સહુ માતા ને ભગિની રે !
ગોદ લેજો ધીરે ધીરે !

વાંકડિયા એ ઝુલ્ફાંની મગરૂબ હશે કો માતા,
એ ગાલોની સુધા પીનારા હોઠ હશે બે રાતા;
રે ! તમ ચુંબન ચોડાતાં
પામશે લાડકડો શાતા.

એ લાડકડાની પ્રતિમાનાં છાનાં પૂજન કરતી,
એની રક્ષા કાજ અહર્નિશ પ્રભુને પાયે પડતી;
ઉરની એકાંતે રડતી
વિજોગણ હશે દિનો ગણતી.

કંકાવટીએ આંસુ ઘોળી છેલ્લું તિલક કરંતા,
એને કંઠ વીંટાયા હોશે કર બે કંકણવંતા;
વસમાં વળામણાં દેતા
બાથ ભીડી બે પળ લેતાં.

એની કૂચકદમ જોતી અભિમાનભરી મલકાતી,
જોતી એની રૂધિર-છલક્તી ગજગજ પહોળી છાતી;
અધબીડ્યાં બારણિયાંથી
રડી કો હશે આંખ રાતી.

એવી કોઇ પ્રિયાનો પ્રીતમ આજ ચિતા પર પોઢે,
એકલડો ને અણબૂઝેલો અગન-પિછોડી ઓઢે;
કોઇના લાડકવાયાને
ચૂમે પાવકજ્વાલા મોઢે.

એની ભસ્માંકિત ભૂમિ પર ચણજો આરસ-ખાંભી,
એ પથ્થર પર કોતરશો નવ કોઇ કવિતા લાંબી;
લખજો: ‘ખાક પડી આંહી
કોઇના લાડકવાયાની’.

- ઝવેરચંદ મેઘાણી


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ईश्वर का वैदिक स्वरुप – ईश्वर, जीव और प्रकृति – तीनो कारण स्वयं सिद्ध और अनादि हैं JULY 1, 2015...

ईश्वर का वैदिक स्वरुप – ईश्वर, जीव और प्रकृति – तीनो कारण स्वयं सिद्ध और अनादि हैं JULY 1, 2015 RAJNEESH LEAVE A COMMENT संस्कृत भाषा में परमात्मा = परम + आत्मा तथा जीवात्मा = जीव + आत्मा दो शब्द हैं। परमात्मा शब्द का अर्थ है – सर्वश्रेष्ठ आत्मा और जीवात्मा का अर्थ है प्राणधारी आत्मा आत्मा शब्द दोनों के लिए आता है और बहुधा परम-आत्मा तथा जीव-आत्माओ का भेदभाव किये बिना समस्त जीवनतत्वो के लिए व्यवहृत किया जाता है। परमात्मा और जीवात्माओं के कार्यो में इतनी समानता है [मगर दोनों के कार्य क्षेत्र निसंदेह अत्यंत विभिन्न हैं] की प्रायः इनके सम्बन्ध के विषय में भ्रम हो जाता है और इस भ्रम के कारन दर्शनशास्त्र तथा धर्म दोनों क्षेत्रो में बाल की खाल निकाली जाती है। खासतौर पर ईश्वर को ना मानने वाले लोग मनुष्य को ही “सिद्ध” व “ईश्वर” का दर्ज देकर अपनी अल्पज्ञता के कारण ऐसा विचार लाते हैं – वैदिक ईश्वर का स्वरुप कैसा है और जीव का स्वरुप कैसा है – जब इस प्रकार की चर्चा की जाती है तब आवश्यक हो जाता है इस प्रकृति के बारे में भी कुछ जाना जाए – तो आइये – इस विषय पर कुछ विचार करे – इस कार्यरूप सृष्टि में तीन नियम बहुत ही स्पष्ट रूप से दीखते हैं : पहिला – इस सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ नियमपूर्वक, परिवर्तनशील है। दूसरा – प्रत्येक जाती के प्राणी अपनी जाती के ही अंदर उत्तम, माध्यम और निकृष्ट स्वाभाव से पैदा होते हैं। तीसरा – इस विशाल सृष्टि में जो कुछ कार्य हो रहा है वह सब नियमित, बुद्धिपूर्वक और आवश्यक है। पहिला नियम : सृष्टि नियमपूर्वक परिवर्तनशील है इसका अर्थ जो लोग सृष्टि को स्वाभाविक गुण से परिवर्तनशील मानते हैं वे गलती पर हैं क्योंकि स्वाभाव में परिवर्तन नहीं होता ऐसे लोग भूल जाते हैं की परिवर्तन नाम है अस्थिरता का और स्वाभाव में अस्थिरता नहीं होती क्योंकि उलटपलट, अस्थिर ये नैमित्तिक गुण हैं स्वाभाविक नहीं। इसलिए सृष्टि में परिवर्तन स्वाभाविक नहीं। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है की यदि प्रकृति में परिवर्तन स्वाभाविक माने तो ये अनंत परिवर्तन यानी अनंत गति माननी पड़ेगी और फिर एकसमान अनंत गति मानने से संसार में किसी भी प्रकार से ह्रासविकास संभव नहीं रहेगा किन्तु सृष्टि में बनने और बिगड़ने की निरंतर प्रक्रिया से सिद्ध होता है की सृष्टि का परिवर्तन नैमित्तिक है सवभविक नहीं, इसीलिएि इस परिवर्तनरुपी प्रधान नियम के द्वारा यह सिद्ध होता है की सृष्टि के मूल कारणों में से यह एक प्रधान कारण है जो खंड खंड, परिवर्तन शील और परमाणुरूप से विद्यमान है। परन्तु यह परमाणु चेतन और ज्ञानवान नहीं हैं इसकी बड़ी वजह है की जो भी चेतन और ज्ञानवान सत्ता होगी वो कभी दूसरे के बनाये नियमो में बंध नहीं सकती बल्कि ऐसी सत्ता अपनी ज्ञानस्वतंत्रता से निर्धारित नियमो में बाधा पहुचाती है – जहाँ तक हम देखते हैं परमाणु बड़ी ही सच्चाई से अपना काम कर रहे हैं – जिस भी जगह उनको दूसरे जड़ पदार्धो में जोड़ा गया – वहां आँख बंद करके भी कार्य कर रहे हैं जरा भी इधर उधर नहीं होते इससे ज्ञात होता है की इस सृष्टि का परिवर्तनशील कारण जो परमाणु रूप में विद्यमान है ज्ञानवान नहीं बल्कि जड़ है – इसी जड़, परिवर्तनशील और परमाणु रूप उपादान कारण को माया, प्रकृति, परमाणु मेटर आदि नामो से कहा जाता है और संसार के कारणों में से एक समझा जाता है दूसरा नियम : सभी प्राणियों के उत्तम और निकृष्ट स्वाभाव हैं। अनेक मनुष्य प्रतिभावान, सौम्य और दयावान होते हैं, अनेक मुर्ख उद्दंड और निर्दय होते हैं। इसी प्रकार अनेक गौ, घोडा आदि पशु स्वाभाव से ही सीधे होते हैं और अनेक शेर, आदि क्रोधी और दौड़दौड़कर मारने वाले होते हैं यहाँ देखने वाली बात है की ये स्वभावविरोध शारीरिक यानी भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक है, जो चैतन्य बुद्धि और ज्ञान से सम्बन्ध रखता है। लेकिन ध्यान देने वाली है ये ज्ञान प्राणियों के सारे शरीर में व्याप्त नहीं है, क्योंकि यदि सारे शरीर में ये ज्ञान व्याप्त होता तो किसी का कोई अंग भंग यथा अंगुली, हाथ, पैर आदि कट जाने पर उसका ज्ञानंश कम हो जाना चाहिए लेकिन वस्तुतः ऐसा होता नहीं इसलिए यह निश्चित और निर्विवाद है की ज्ञानवाली शक्ति जो प्राणियों में वास करती है वो पुरे शरीर में व्याप्त नहीं है प्रत्युत वह एकदेशी, परिच्छिन्न और अनुरूप ही है क्योंकि सुक्षतिसूक्ष्म कृमियों में भी मौजूद है दूसरा तथ्य ये भी है की यदि पुरे शरीर में ज्ञानशक्ति मौजूद होती तो जैसे शरीर का आकर बढ़ता है वैसे उस शक्ति को भी बढ़ना पड़ता जबकि ऐसा होता नहीं और ये शक्ति परमाणुओ के संयोग से भी नहीं बनी क्योंकि ऊपर सिद्ध किया गया की ज्ञानवान तत्व, परमाणु संयुक्त होकर नहीं बन सकता और न ही ये हो सकता है की अनेक जड़ और अज्ञानी परमाणु एकत्रित होकर परस्पर संवाद ही जारी रख सकते हो। यदि कोई मनुष्य ब्रिटेन में जिस समय पर गाडी दौड़ा रहा है – तो उसी समय पूरी दुनिया में मौजूद इंसान उस गाडी और मनुष्य को नहीं देख पा रहे इसलिए प्राणियों में मौजूद ज्ञानवान शक्ति, अल्पज्ञ है, एकदेशी है, परिच्छिन्न है। इसलिए इस शक्ति को जीव, रूह और सोल के नाम से जानते हैं। इस विस्तृत सृष्टि में जो कुछ कार्य हो रहा है, वह नियमित, बुद्धिपूर्वक और आवश्यक है। सूर्य चन्द्र और समस्त ग्रह उपग्रह अपनी अपनी नियत धुरी पर नियमित रूप से भ्रमण कर रहे हैं। पृथ्वी अपनी दैनिक और वार्षिक गति के साथ अपनी नियत सीमा में घूम रही है। वर्षा, सर्दी और गर्मी नियत समय में होती है। मनुष्य और पशुपक्ष्यादि के शरीरो की बनावट वृक्षों में फूलो और फलो की उत्पत्ति, बीज से वृक्ष और वृक्ष से बीज का नियम और प्रत्येक जाती की आयु और भोगो की व्यवस्था आदि जितने इस सृष्टि के स्थूल सूक्ष्म व्यवहार हैं, सबमे व्यवस्था, प्रबंध और नियम पाया जाता है। नियामक के नियम का सब बड़ा चमकार तो प्रत्येक प्राणी के शरीर की वृद्धि और ह्रास में दिखलाई देता है। क्यों एक बालक नियत समय तक बढ़ता और क्यों एक जवान धीरे धीरे ह्रास की और – वृद्धावस्था की और बढ़ता जाता है इस बात का जवाब कोई नहीं दे सकता यदि कोई कहे की वृद्धि और ह्रास का कारण आहार आदि पोषक पदार्थ हैं, तो ये युक्तियुक्त और प्रामाणिक नहीं होगा क्योंकि हम रोज देखते हैं एक ही घर में एक ही परिस्थिति में और एक ही आहार व्यवहार के साथ रहते हुए भी छोटे छोटे बच्चे बढ़ते जाते हैं और जवान वृद्ध होते जाते हैं तथा वृद्ध अधिक जर्जरित होते जाते हैं। इन प्रबल और चमत्कारिक नियमो से सूचित होता है की इस सृष्टि के अंदर एक अत्यंत सूक्ष्म, सर्वव्यापक, परिपूर्ण और ज्ञानरूपा चेतनशक्ति विद्यमान है जो अनंत आकाश में फ़ैल हुए असंख्य लोकलोकान्तरो का भीतरी और बाहरी प्रबंध किये हुए हैं। ऐसा इसलिए तार्किक और प्रामाणिक है क्योंकि नियम बिना नियामक के, नियामक बिना ज्ञान के और ज्ञान बिना ज्ञानी के ठहर नहीं सकता। हम सम्पूर्ण सृष्टि में नियमपूर्वक व्यवस्था देखते हैं, इसलिए सृष्टि का यह तीसरा कारण भी सृष्टि के नियमो से ही सिद्ध होता है। इसी को परमात्मा, ईश्वर खुदा और गॉड कहते आदि अनेक नामो से पुकारते हैं हैं जिसका मुख्य नाम ओ३म है। सृष्टि के ये तीनो कारण स्वयंसिद्ध और अनादि हैं। मेरे मित्रो, ज्ञान और विज्ञान की और लौटिए, सत्य और न्याय की और लौटिए वेदो की और लौटिए…. आओ लौट चले वेदो की और।

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हिन्दू कैसे अपने महापुरुषों का अपमान करते है देखिये - 1⃣क्या...

हिन्दू कैसे अपने महापुरुषों का अपमान करते है देखिये - 1⃣क्या आपने कभी देखा है की सिखों के दस गुरु है उनको कभी मंचों य स्टेजों पर नाचते हुए - 2⃣किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं की किसी भी सिख गुरु की कहीं नचवा दे । 3⃣क्यों की सिख अपने गुरुओं का आदर करते है और उनका अपमान बिलकुल भी सहन नहीं कर सकते ।। 4⃣क्या कभी किसी मुश्लिम को उनके गुरु य मोहम्मद य कोई भी उनके नजरों में उनका कोइ महापुरुष य महामानव आपने नाचता हुआ य उसका अपमान होता देखा है । 5⃣क्यों की मुश्लिम भी अपने महापुरुषों की ( उनकी नजरों में ) बेज्जती सहन नहीं कर सकते ,किसी के माई के लाल में हिम्मत नहीं है की कोइ उनके मोहम्मद य किसी और के बारे में कुछ कह दे तलवार चल जाती है । 6⃣ऐसे ही इसाई है
7⃣लेकिन हिन्दू - अपने महापुरुष श्री कृष्ण को स्टेजों पर “ राधा "के साथ ( जबकि राधा के साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं था ) नचवाने में अपनी शान समझते है ,, एक तरफ तो उनको परमात्मा मान कर पूजा करते है और दूसऱी तरफ उनको चोर , रास रचाने वाला , स्त्रियों के कपडे चुराने वाला कहने में अपनी शान समझते है ,,, ऐसे ही शिव जी को अपना परमात्मा बना कर पूजते है , और दूसरी तरफ उनको भंगेड़ी ( भांग पीने वाला ) भी कहने में अपनी शान समझते है ,,,,,, हिन्दुओं ( आर्यो ) कब तक अपने महापुरुषों का अपमान तुम अपने आप ही करते रहोगे ।………………..


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ओ३म् *🌷अण्डा―एक जहर🌷* _(1) अण्डे में कोलिस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है।इसका पीत-भाग कोलिस्ट्रोल...

ओ३म्

*🌷अण्डा―एक जहर🌷*

_(1) अण्डे में कोलिस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है।इसका पीत-भाग कोलिस्ट्रोल का बहुत बड़ा स्रोत है।यह मानव चर्म की परतों में जमा हो धमनियों को सिकुड़ा देता है।परिणामतः दिल का दौरा, लकवा, जेथोमा जैसे भयंकर रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।"हायपर-कौलिस्टेरोलेमिया" होने पर मनुष्य उच्च रक्तचाप का रोगी बन जाता है।बच्चों के लिए तो यह बिल्कुल भी अनुकूल नहीं है।इसमें सोडियम सॉल्ट की मात्रा अधिक होती है।ब्लडप्रैशर के मरीजों के लिए जहर रुप है।अण्डे के सफेद भाग में नमक और पीले भाग में कोलिस्ट्रोल दोनों ही स्वास्थ्य हेतु घातक हैं।_

_(2) अण्डे में कार्बोहाइड्रेटस बिल्कुल नहीं है।इससे कब्ज, जोडों के दर्द जैसी बीमारियां अनायास हो जाती हैं।अण्डा कफदायक होने से शरीर के पोषक-तत्त्वों को असन्तुलित कर देता है।अण्डे में साल्मोनेला नामक बैक्टीरिया के अतिरिक्त एक नया माइक्रोव बैक्टीरिया भी पाया जाता है।यह आंतों में भयंकर रोग उत्पन्न करता है।अण्डे खाने से गठिया, गाउट जैसी वात-जनित बीमारियाँ हो जाती हैं जो बुढ़ापे में खतरनाक, पीड़ादायक मोड़ ले-लेती हैं।अण्डे में तुरन्त ऊर्जा देने वाले शुगर और स्टार्च नहीं हैं।_

_(3) पोल्ट्री-फार्म की मुर्गियों को रख-रखाव हेतु विभिन्न प्रकार की घातक दवाइयाँ दी जाती हैं, या उनका छिड़काव किया जाता है, परिणामतः वे घातक दवाइयों का बहुत सारा अंश श्वास अथवा मुँह के माध्यम से खाने के संग पेट में पहुँच जाता है।यही कारण है कि कई प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि उनके पेट में डी०डी०टी० जैसा जहर भी पाया जाता है जो खाने वालों के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होता है।जैसे गाय, बैल, भैंसों, सूअर, बकरा आदि को मांसवर्द्धक दावाएँ दी जाती हैं।पोल्ट्री-फार्मों में भी इनका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।चूजे और गिद्ध को एण्टीबायोटिक्स की हल्की मात्रा वजन वृद्धि हेतु दी जाती है और उनका व्यापारिक शोषण किया जाता है।बुद्धिधारियो ! जरा गम्भीर चिन्तन करें।ऐसे अण्डे, मांस खाने वालों पर इसका क्या दुष्परिणाम होगा?क्या यह मनुष्य समाज पर अभिशाप सिद्ध नहीं होगा ?_

_(4) अण्डे में १३.३ प्रतिशत, हरे चने में २४ तथा मूंगफली में ३१.५ प्रतिशत और सोयाबीन में ४३.२ प्रतिशत प्रोटीन होता है।एक अण्डे से ८६.५ प्रतिशत कैलोरिज़ मिलती है जबकि गेहूं के आटे से १७६.५ प्रतिशत कैलोरिज प्राप्त होती है।अण्डे कोई कैल्शियम का स्रोत भी नहीं हैं।एक अण्डे में ३० मि०ग्रा० कैल्शियम मिलता है जो कि लगभग १५ पैसे में उपलब्ध हो जाता है, इसके विपरित ७५ ग्राम सरसों की भाजी में ३० मि०ग्रा० कैल्शियम सस्ते भाव में प्राप्त हो सकता है।दूध और अण्डे को समान मानना बहुत भारी भूल सिद्ध होगी।अण्डे में विटामिन बी-२, बी-१२, तथा कैल्शियम होते हैं।अण्डे को पकाने में या तलने में बी-१, बी-२, पच्चीस प्रतिशत तक नष्ट हो जाता है और बी-१२ भी अंशतः नष्ट हो जाता है।_

_(5) भारतीय धर्म, संस्कृति अण्डे,मांस के पक्ष में नहीं है।*अथर्ववेद ८।६।१२ में स्पष्ट है कि―"मैं उन दुष्टों को नष्ट करता हूँ जो अण्डे, मांस खाते हैं।"* अण्डे कई बार एनीमल हायपर सेंसिटिविटि (पाशविक अति संवेदनशीलता) उत्पन्न कर देते हैं।परिणामतः अण्डाहारी बर्बर आदतों से नहीं चूकता। उसकी भावनाओं में जोश ही जोश होता है , होश नहीं।अतः परिणाम बहुत भयंकर भुगतने पड़ते हैं।बाद में तो केवल पछताना ही उसके पास रह जाता है।_

_(6) अण्डा कभी शाकाहारी नहीं होता। यह भ्रामक नामकरण है कि सेये हुए अण्डे का कोई प्राणिक उद्देश्य होता है, अनिषेचित अण्डे का कोई प्राणिक उद्देश्य नहीं होता। इसे अखाद्य मानना चाहिए।_

_सच्चाई तो यह है कि ये मनुष्य के सेवन हेतु नहीं बना।यह तो सेवन करने वाले को ही अप्राकृतिक बना देता है।पश्चिम देशों में अब इसे पौष्टिक आहार की श्रेणी में नहीं रखते।वहाँ इसका प्रयोग निषेध रुप में पाया जा रहा है।यदि चिन्तन करें तो विदित होगा कि मनुष्य मूलतः ‘मस्तिष्क’ है 'पेट’ नहीं।विभिन्न अध्ययन, अनुसन्धान स्पष्ट करते हैं कि अण्डाहारी का मस्तिष्क तानाशाही, अशालीनता और अपराधीवृत्ति की और झुक जाता है।भारतीय संस्कृति और सभ्यता में हमारे धार्मिक ग्रन्थ मनुष्य को यही चेतावनी देते आए हैं कि" जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन, जैसा पीए पानी, वैसी बोले वाणी" । अर्थात् तामसिक पाशविक भोजन मानव की वृद्धि और विकास नहीं बल्कि उसके अधोपतन का कारण बनता है।_


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દુશ્મની માં ખાનદાની નું ઉત્કૃષ્ઠ ઉદાહરણ:– સત્યઘટના છે: - ગોંડલ રાજાના કુંવર, સંગ્રામજીના...

દુશ્મની માં ખાનદાની નું ઉત્કૃષ્ઠ ઉદાહરણ:–

સત્યઘટના છે: -

ગોંડલ રાજાના કુંવર, સંગ્રામજીના દિકરા, નામ એનુ પથુભા. નાની ઉંમર એમની. કોઈ કામ સબબ એમને કુંભાજીની દેરડી કેવાય છે ત્યા જવાનુ બનેલું. એટલે ૨૫-૩૦ ઘોડેસવારોની સાથે પોતે નીકળ્યા.

એમા કુકાવાવના પાદરમા પહોચ્યા. ઘોડાઓ નદિમા પાણી પીએ છે.

કુંવર (માણસોને) : હવે દેરડી કેટલુ દુર છે?

માણસો : કેમ કુંવરસાબ?

કુંવર : મને ભુખ બહુ લાગી છે.

માણસો : બાપુ, હવે દેરડી આ રહ્યુ, અહિથી ૪ માઇલ દેરડી આઘુ છે, આપણે ઘોડા ફેટવીએ એટલે હમણા આપણે ન્યા પોગી જાઈ અને ત્યા ડાયરો ભોજન માટે આપણી વાટ જોતો હશે.

કુંવર : ના, મારે અત્યારે જ જમવુ છે.

આ તો રાજાનો કુંવર એટલે બાળહઠ ને રાજહઠ બેય ભેગા થ્યા.

એટલામા કુકાવાવનો એક પટેલ ખેડુત પોતાનુ બળદગાડું લઈને નીકળ્યો ને એણે કુંવરની વાત સાંભળી એટલે આડા ફરીને રામ રામ કર્યા ને કિધુ કે, “ખમ્મા ઘણી બાપુને, આતો ગોંડલનું જ ગામ છે ને, પધારો મારા આંગણે.”

કુંવર અને માણસો પટેલની ઘરે ગ્યા.

ઘડિકમા આસન નખાઇ ગ્યા, આ બાજુ ધિંગા હાથવાળી પટલાણીયુ એ રોટલા ઘડવાના શરૂ કરી દિધા, રિંગણાના શાક તૈયાર થઈ ગ્યા, મરચાના અથાણા પીરસાણા અને પોતાની જે કુંઢિયુ બાંધેલી એની તાજી માખણ ઉતારેલી છાશું પીરસાણી.

કુંવર જમ્યા ને મોજના તોરા મંડ્યા છુટવા કે શાબાશ મારો ખેડુ, શાબાશ મારો પટેલ અને આદેશ કર્યૌ કે બોલાવો તલાટીને, ને લખો, “કે હુ કુવર પથુભા કુકાવાવમા પટેલે મને જમાડ્યો એટલે હું પટેલને ચાર સાતીની ઉગમણા પાદરની જમીન આપુ છું.” ને નિચે સહિ કરી ને ઘોડે ચડિને હાલતા થ્યા.

કુંવર ગયા પછી તલાટી જે વાણિયો હતો તે ચશ્મામાંથી મરક મરક દાંત કાઢવા લાગ્યો ને પટેલને કિધુ કે, “પટેલ, આ દસ્તાવેજને છાશમા ઘોળીને પી જાવ. આ ક્યા ગોંડલનુ ગામ છે કે કુંવર તમને જમીન આપી ને વ્યા ગ્યા.”આ તો કાઠી દરબાર જગા વાળા નુ ગામ છે.

પટેલને બિચારાને દુઃખ બહુ લાગ્યુ અને આખુ ગામ પટેલની મશ્કરી કરવા લાગ્યુ.

પટેલને ધરતી માર્ગ આપે તો સમાઈ જવા જેવુ થ્યુ. પણ એક વાત નો પોરસ છે કે કુંવરને મે જમાડ્યા.

ઉડતી ઉડતી એ વાત જેતપુર દરબાર જગાવાળાને કાને પડી.

એમણે ફરમાન કીધુ
કે -“બોલાવો પટેલને અને એને કેજો કે સાથે દસ્તાવેજ પણ લાવે.”

પટેલ બીતા-બીતા જેતપુર કચેરીમા આવે છે.

જગાવાળા : પટેલ, મે સાંભળ્યુ છે કે મારા દુશ્મન ગોંડલના કુંવર પથુભા કુકાવાવ આવ્યાતા ને તમે એને જમાડ્યા. સાચું ?

પટેલ : હા બાપુ, એમને ભુખ બહુ લાગીતી એટલે મે એને જમાડ્યા.

જગાવાળા : હમ્મ્મ્મ અને એણે તમને ચાર સાતીની જમીન લખી આપી એય સાચું ?

પટેલ : હા બાપુ એને એમ કે આ ગોંડલનુ ગામ છે એટલે આ દસ્તાવેજ લખી આપ્યો.

ત્યારે જગાવાળાએ પોતાના માણસોને કિધુ કે - તાંબાના પતરા પર આ દસ્તાવેજમા જે લખેલ છે એ લખો અને નીચે લખો કે, “મારા પટેલે મારા દુશ્મનને જમાડ્યો એટલે મારી વસ્તીએ મને ભુંડો નથી લાગવા દિધો. એટલે હું જગાવાળો, જેતપુર દરબાર, પટેલને બીજી ચાર સાતીની જમીન આપુ છુ અને આ આદેશ જ્યા સુધી સુર્યને ચાંદો તપે ત્યા સુધી મારા વંશ વારસોએ પાળવાનો છે અને જે નહિ પાળે એને ગૌહત્યાનુ પાપ છે”
એમ કહીને નીચે જગાવાળાએ સહિ કરિ નાખી,

અને એક પત્ર ગોંડલ લખ્યો કે, “સંગ્રામજીકાકા તારો કુંવર તો દેતા ભુલ્યો, કદાચ આખુ કુકાવાવ લખી દિધુ હોત ને તોય એય પટેલ ને આપી દેત.”

આ વાતની ખબર સંગ્રામસિંહજીને પડતા એને પણ પોરસના પલ્લા છુટવા માંડ્યા કે “વાહ જગાવાળા શાબાશ બાપ! દુશ્મન હોય તો આવો. જા બાપ તારે અને મારે કુકાવાવ અને બીજા ૧0 ગામનો જે કજિયો ચાલે છે
તે તને માંડિ દવ છું…!“

આનુ નામ દુશ્મન કેવાય, આને જીવતરના મુલ્ય કેવાય.
વેરથી વેર ક્યારેય શમતુ નથી એને આમ મિટાવી શકાય,
આવા અળાભીડ મર્દો આ ધરતિમા જન્મ્યા.

ધન્ય છે…

” આપણી સંસ્કૃતિ અને આપણો વારસો “


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*मधुमेह पर राजयोग का प्रयोग* *✿>>*♛ मैं एक चैतन्य शक्ति आत्मा हूँ परम् पिता परमात्मा मेरे...

*मधुमेह पर राजयोग का प्रयोग*

*✿>>*♛ मैं एक चैतन्य शक्ति आत्मा हूँ परम् पिता परमात्मा मेरे परम चिकित्सक है। पवित्रता, शान्ति और शक्ति की किरणें परमात्मा से उतारकर मुझ आत्मा पर पढ़ रही है। मैं आत्मा परमात्मा की शक्तिशाली किरणों से भरपूर हो रही हूँ। अब इन अद्भुत किरणों को मैं अपने शरीर के भीतर प्रवाहित कर रही हूँ। ये किरणे पेट के वरिष्ठ भाग में स्थित पैंक्रियास ग्रंथि पर पढ़ रही है अब मैं इनके अलौकिक प्रभाव को देख रही है। मेरे पैंक्रियास के अंदर बिता सेल्स जो की लगभग नष्ट हो चुके थे अब उनका निर्माण होना शुरू हो रहा है। इन नवनिर्मित बीटा सेल्स से आवश्यक मात्रा में इन्सुलिन बनता जा रहा है ..। फिर से मेरी एक एक कोशिका के भीतर ग्लूकोस बड़ी आसानी से पहुँच रहा है। मेरा इन्सुलिन रजिस्ट्रेशन भी अब खत्म हो रहा है। ग्लूकोस हर कोशिका के अंदर जा कर पर्याप्त शक्ति का संचार कर रही है। अब मैं आत्मा देख रही हूँ की कैसे मेरे रक्त में ग्लूकोस की मात्रा का स्तर सामान्य होता जा रहा है। मेरा हर अंग परमात्मिक प्रकाश से प्रभावित हो स्वस्थ होता जा रहा है। मधुमेह से ग्रस्त सभी विकृतियां दूर हो रही हैं। मेरे रक्त में वसा की मात्रा भी संतुलित हो रही है। मैं अपने शरीर को अब स्वस्थ रूप में अब देख रही हूँ, ईश्वर के शक्तिशाली प्रकम्पन से आत्मा के साथ साथ शरीर भी सतोप्रधान और पावन होता जा रहा है। अब मैं स्वयं को एवेरहेल्थी महसूस कर रही हूँ और सुखद जीवन जीने का मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।

*अभ्यास*

रोज़ाना सुबह और शाम कम से कम 5 मिनट करें। इससे तन और मन दोनों स्वस्थ होते जा रहे हैं।


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सत्संग का महत्व नियमित सत्संग में आने वाले एक आदमी नें जब एक बार सत्संग में यह सुना कि जिसने जैसे...

सत्संग का महत्व

नियमित सत्संग में आने वाले एक
आदमी नें जब एक बार सत्संग में
यह सुना कि जिसने जैसे कर्म किये
हैं उसे अपने कर्मो अनुसार वैसे ही
फल भी भोगने पड़ेंगे । यह सुनकर
उसे बहुत आश्चर्य हुआ अपनी आशंका
का समाधान करने हेतु उसने सतसंग
करने वाले संत जी से पूछा….. अगर
कर्मों का फल भोगना ही पड़ेंगा तो
फिर सत्संग में आने का किया फायदा
है…..?
संत जी नें मुसकुरा कर उसे देखा
और एक ईंट की तरफ इशारा
कर के कहा की तुम इस ईंट को छत
पर ले जा कर मेरे सर पर फेंक दो ।
यह सुनकर वह आदमी बोला संत जी
इससे तो आपको चोट लगेगी दर्द होगा ।
मैं यह नहीं कर सकता…..
संत ने कहा….अच्छा, फिर उसे उसी
ईंट के भार के बराबर का रुई का
गट्ठा बांध कर दिया और कहा अब
इसे ले जाकर मेरे सिर पे फैंकने से
भी कया मुझे चोट लगेगी….??
वह बोला नहीं…..
संत ने कहा…..
बेटा इसी तरह सत्संग में आने से
इन्सान को अपने कर्मो का बोझ
हल्का लगने लगता है और वह हर
दुःख तकलीफ को परमात्मा की
दया समझ कर बड़े प्यार से सह
लेता है ।
सत्संग में आने से इन्सान का मन
निरमल होता है और वह मोह माया
के चक्कर में होने वाले पापों से भी
बचा रहता है और अपने सतगुरु की
मौज में रहता हुआ एक दिन अपने
निज घर सतलोक पहुँच जाता है,
जहाँ केवल सुख ही सुख है….
🙏🙏


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