Monday, November 30, 2015

Bharat gaurav gan

Bharat gaurav gan
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ॐ योगदर्शन सूत्र २ गतांक से आगे। बीते दिवस में सूत्र व्याख्या में ये स्पष्ट करने का यत्न किया कि...


योगदर्शन सूत्र २
गतांक से आगे।
बीते दिवस में सूत्र व्याख्या में ये स्पष्ट करने का यत्न किया कि चित्त एक अन्तःकरण है जो आत्मा के लिए सबसे निकटतम और पहला साधन है इसके विना आत्मा कुछ भी भोग नही सकता,ना कर्म कर सकता। भोग और मोक्ष दोनों को पाने में आत्मा का परम सहायक ये अवयव प्रकृति का हमारे लिए प्रथम और सर्वोतम वरदान है।
चित्त प्रधान मूल प्रकृति का सबसे प्रथम निर्माण,विकृति या कार्य है।
ये विषय सांख्य शास्त्र का है,क्यूंकि प्रकृति के निर्माण कार्य को समझाना उसका उद्देश्य है तथापि हमे स्वयं को समझने हेतु महर्षि कपिल के अनुग्रह की आवश्यकता मूल,प्रकृति,प्रधान,अव्यक्त,जगदम्बा आदि इसके अनेक नाम हैं,ये अनादी अर्थात् सदा से है और सदा रहेगी,सो इसे सत भी कहा जाता है;क्यूंकि इसकी सत्ता कभी नष्ट नही होती।
हाँ इसका सवरूप सदा परिवर्तित होता रहता है सो इसे परिवर्तनशील कहा जाता है।
इसका मूल स्वरूप क्या है?
प्रकृति समस्त दिखने और न दिखने वाले वाले विश्व का उपादान कारण अर्थात् rawmaterial है,सब कुछ इसी से बनता है सो इसे सकल जगत की योनि,गर्भ या माँ भी कहा जाता है।
वो rawmatiriel माने उपादान कारण है क्या?
सर्वप्रधान गुणवत्ता वाले भिन्न भिन्न ३ भान्त के संख्या की दृष्टि से अनंत परमाणु हैं;ये नवीन वैज्ञानिको द्वारा वर्णित परमाणु नहीं वे तो इन सबसे सूक्ष्मतम और इनका भी उपादान कारण माने rawmetariel हैं।
गुण से ही किसी वस्तु वा द्रव्य की योग्यता का ज्ञान होता है,समस्त जगत के द्रव्य उन ३ भान्त के परमाणुओं के अलग अलग अनुपात के मिश्रण से बनते है;अतः इन्हें अलग अलग गुणवत्ता के कारण वेद और ऋषियों ने उन्हें त्रिगुण कहा।
विषयांतर और अधिक विस्तार भय से उनका विशेष वर्णन अनापेक्षित है।
त्रिगुण जब किसी अन्य अवस्था को प्राप्त न होकर जब अपने रूप में शांत रूप से होते हैं तो उसे ही मूल प्रकृति प्रधान अव्यक्त आदि अनेक नामो से पुकारा जाता है। इन परमाणुओं की ऐसी शांत अवस्था १ क्षण मात्र के लिए महाप्रलय के समय होती है,पश्चात् फिर उनमे परिवर्तन आरम्भ हो जाता है।
सत्व रजस् तमस् इनके नाम हैं।
त्रिगुण या मूल प्रकृति एक ही हैं इनहे कोई अलग न समझे,सो थोडा आवश्यक विवरण मूल प्रकृति में जब प्रथम विकार अर्थात् मूल स्वरूप में परिवर्तन होता है तो सत्व रजस तमस के परमाणु भिन्न अनुपात में आपस मे मिलतें हैं,जिनमे सत्व के परमाणु सर्वाधिक होते हैं,उसमें थोड़े से परमाणु रजस् के और किंचित मात्र सबसे कम परमाणु तमस् के होते हैं तत समय प्रथम रचना होती है जो समष्टि(अखिल विश्व में एक साथ सार्वजनिक)रूप से होती है,जिसे महातत्व, महद आदि के नामो से जाना जाता है;इसे ही विश्वरूप ईश्वर का चित्त साधुजन कहते हैं;इसी से आगे की समस्त रचना होती हैं,इसमें समाविष्ट होने और प्रधानतः इसी का प्रयोग करने से ईश्वर के कार्य और सामर्थ्यय उजागर होतें है,अन्यथा जगत उसके बल से अंजान रहता सो विद्वत समाज इसे सबल ब्रह्म वा ईश्वर की संज्ञा से उसका गुणगान करने लगे।
विश्व ईश्वर का शरीर समझो और ब्रह्म उसकी आत्मा और महत्त को उसका चित्त समझ लो,ये समष्टि रचना हुयी।
जैसी रचना विधि ब्रह्मांड की है,वैसी पिंड अर्थात् शरीर की है।
पिंड और जीव से सम्बन्धित रचना को व्यष्टि कहते हैं;जो रचना समष्टि चित्त अर्थात् महत्त की हुयी,वही रचना तत समय व्यष्टि चित्त की हुयी जीवात्मा के भोग और कल्याण हेतु;इससे ये भी सिद्ध होता है कि जीवात्मा ईश्वर और मूल प्रकृति सदा से अनादी हैं और उनकी भिन्न भिन्न सत्ता है,ये बात और है के उनके गुण कर्म स्वभाव भिन्न भिन्न हैं।
हम ईश्वर के पुत्र के समान अवश्य हैं,परन्तु अवयव रूप से उसके अंश नहीं।
समष्टि चित्त का प्रयोग ईश्वर करता है और व्यष्टि चित्त का हम जीव।
विश्व–ईश्वर का शरीर
पिंड–हमारा शरीर
महत्त–ऐश्वर्याचित्त
चित्त–हमारा।
ये सृष्टि की प्रथम रचना हुयी,जिसका जिक्र हम चित्त के नाम से कर रहें है।
चित्त की निर्माण प्रक्रिया के विषय में संक्षेप से कहा,त्रुटी हुयी हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, और आशा करता हूँ विद्वान सुधार देंगे।
चित्त की अवस्थाओं के विषय में अब कहेंगे।।ॐ।।
क्रमशः


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राजीव दिक्षित जी की PDF पुस्तकें:...

राजीव दिक्षित जी की PDF
पुस्तकें: ———————————————
स्वदेशी चिकित्सा - भाग 1 ( दिनचर्या -
ऋतुचर्या के आधार पर ) ( 3.79 MB )
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SwadeshiChikitsa-1.pdf
स्वदेशी चिकित्सा - भाग 2
( बिमारियों को ठीक करने के आयुर्वेदिक
नुस्ख़े ) ( 3.39 MB )
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SwadeshiChikitsa-2.pdf
स्वदेशी चिकित्सा - भाग 3
( बिमारियों को ठीक करने के आयुर्वेदिक
नुस्ख़े ) ( 3.44 MB )
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SwadeshiChikitsa-3.pdf
स्वदेशी चिकित्सा - भाग 4 ( गंभीर रोगों
की घरेलु चिकित्सा ) ( 3.70 MB )
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SwadeshiChikitsa-4.pdf
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा ( 3.94 MB )
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GaumataPanchagavyaChikitsa.pdf
गौ-गौवंश पर आधारित स्वदेशी कृषि ( 3.61
MB )
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Gau-GauVanshParAdharitSwadeshiKrushi.pdf
आपका स्वास्थ्य आपके हाथ ( 3.23 MB )
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AapkaSwasthyaAapkeKeHaath.pdf
स्वावलंबी और अहिंसक उपचार ( 3.12 MB )
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SwalambiAurAhinsakUpchar.pdf
Refined तेल का भ्रम ( 1.01 MB )
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Refined-Oil-Ki-Kahani
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दैनिक जीवन में काम आने वाला आयुर्वेद आज
की आसान भाषा में (MP3 files me) ( 919
MB )
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आरोग्य आपका by Mr. Chanchal Mal Chordia
( 165.81 MB )
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चिकित्सा पद्धतियां
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documents
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चरक संहिता
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charkasamkitasanskrit.htm
बृहन्निघंटुरत्नाकर ( हिन्दी टिका सहित )
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आयुवेर्दीय हितोपदेश
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Ayurvedic-Hitopadesha-Ranjit-Desai
सरल परिवार चिकित्सा
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अनुभूत योग आयुर्वेद
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Anubhut-Yog-Ayurved
घरेलू चिकित्सा
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आहार चिकित्सा
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Chikitsa
जल के प्रयोग और चिकित्सा
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विविध रोगों की चिकित्सा
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Vividh-Rogo-Ki-Chikitsa
सूर्य चिकित्सा विज्ञान
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होमिओ पैथिक चिकित्सालय
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मिटटी चिकित्सा
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Mitti-Chikitsa-Tej-Kumar-Book-Depot
मुद्रा चिकित्सा
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विष चिकित्सा
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Aur-Nasha
आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार
पद्धति
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Paddhati-Pranav-Pandya
सुषेणदेव - प्रणीत: आयुर्वेद महोदधि
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Sushen
आरोग्यनिधि
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Arogyanidhi
स्त्री रोग विज्ञान
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संसार में पुत्र की उत्पत्ति के बिना कोई भी स्त्री स्वयं को सम्पूर्ण नही मानती और ये भी कटू सत्य है...

संसार में पुत्र की उत्पत्ति के बिना कोई भी स्त्री स्वयं को सम्पूर्ण नही मानती और ये भी कटू सत्य है कि जितनी सावधानी उसे गर्भ सम्भालने में रखनी पड़ती हैं..जितनी पीड़ा उसे सन्तान जन्मते पड़ते हैं..जितनी नींद खराब और पापड़ बेलने पड़ते हैं…उतना पुरुषार्थ..पीड़ा..सावधानी उसे किसी कार्य में नही रखनी पड़ती।
अब विचार करें किसलिए…??
उन सब कष्टों से उसे परिणाम क्या मिलता है,एक सन्तान जन्म लेती है, पता नही भविष्य में उसका क्या व्यवहार हो।
स्त्री का कोई व्यक्तिगत हित व लाभ नही है।फिर भी सन्तान जन्म हेतु सब जगह दौडती फिरती है यदि गर्भ धारण में अधिक विलम्ब हो तो।
उसके पश्चात् सन्तान से अत्यंत मोह आसक्ति हो जाती है जिसमे कर्तव्य बोध कम ममत्व अधिक होता है। लगता है जैसे जीवन का चरम सुख मिल गया हो।
परम सुख मिला या नही इसका तो हमे ज्ञान नहीं परन्तु इतना तो सुनिश्चित है कि वह सब कष्ट सहती है,युवाधन गंवाती है,तब जाकर एक उपलब्धी और उसका भी भविष्यत व्यवहार ज्ञात नहीं।
सो चाहिए सन्तान को उत्पन्न करे स्त्री…परन्तु आसक्ति,ममत्व के लिए नही ईश्वर की सृष्टि को आगे बढ़ाने में योगदान करने के कर्तव्य को निभाने के लिए…लालन-पालन हो परन्तु आसक्ति से नही,बल्कि ईश्वर की अमानत समझकर कर्तव्यबोध से करें।
ममत्व में पड़ने से अंत में दुःख मिलता है या फिर क्षणिक सुख…परन्तु यदि यही कर्म कर्तव्य बोध के विवेक से किया जाये तो फिर वह न केवल सब पीड़ा हरता है अपितु मोक्ष का रास्ता भी खोल देता है।
समस्त माँ शक्ति से विनय हैं मेरी बात पर विचार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें।। ॐ।।


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“नम: शिवाय च शिवतराय च” - यजुर्वेद १६.४१ “शिव का सम्मान जितना मैं करता हूँ, उतना...

“नम: शिवाय च शिवतराय च”
- यजुर्वेद १६.४१

“शिव का सम्मान जितना मैं करता हूँ, उतना कोई क्या करेगा ?” - महर्षि दयानन्द
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स्थान : लाहौर
वर्ष : १८७७ ई०

पण्डित सोहनलाल जी ने स्वामी दयानन्द से आक्षेप करते हुए कहा - “आप संन्यास धर्म में होकर उसके विरुद्ध काम करते हैं ।”

स्वामी जी ने पूछा कि - “मैं कौन-सा काम संन्यास के विरुद्ध करता हूँ ?”

कहा कि - “आप शिव जी की निन्दा करते हैं ।”

स्वामी जी ने उत्तर दिया कि - “मैं शिव की निन्दा नहीं करता हूँ । प्रत्युत जितना सम्मान शिव का मेरे मन में है, अन्य किसी के मन में क्या होगा ? उस कल्याण-स्वरूप शिव का तो सब सम्मान करते हैं । हाँ, तुम्हारा पथ्थर का शिव, जो जड़ अथवा मृत और मन्दिर के भीतर बन्द है, मैं उसको नहीं मानता और न उसका सम्मान करता हूँ, न वह सम्मान के योग्य है ।”

इस पर वह निरुत्तर होकर चले गए ।

[सन्दर्भ ग्रन्थ : पण्डित लेखराम आर्यपथिक संगृहीत “महर्षि दयानन्द सरस्वती का जीवन-चरित्र”, पृष्ठ ३१९-३२०, २००७ ई० संस्करण]

टिप्पणी :
ध्यातव्य है कि सत्यार्थप्रकाश के प्रथम समुल्लास में स्वामी जी ने ‘शिव’ नाम के सम्बन्ध में लिखा है -

“शिवु कल्याणे - इस धातु से 'शिव’ शब्द सिद्ध होता है । 'बहुलमेतन्निदर्शनम्’ (धातुपाठे चुरादिगणे) - इससे शिवु धातु माना जाता है । जो कल्याण-स्वरूप और कल्याण का करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम 'शिव’ है ।”

संकलन : भावेश मेरजा


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सत्यार्थप्रकाश में विशेष भावनाएँ...

सत्यार्थप्रकाश में विशेष भावनाएँ -
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[ लेखक - श्री पण्डित भगवद्दत्त जी रिसर्च-स्कोलर, सन्दर्भ ग्रन्थ - सत्यार्थप्रकाश, ‘सम्पादक की भूमिका’, पृष्ठ १४, संस्करण २०२६ वि०, प्रस्तुति - भावेश मेरजा, २ अक्टूबर २०१५]

“ऋषि दयानन्द सरस्वती प्राचीन ऋषि-मुनियों के उत्कृष्टतम प्रतिनिधि थे । उन्होंने भारत को एक धक्का दिया था । सोई हुई आर्य जाति को पकड़ कर हिलोरे दे-देकर जगाया था । इस काम में ऐसा समर्थ पुरुष गत पांच सहस्र वर्ष में इस भारत-भूमि पर नहीं जन्मा । उनके इस अनुपम ग्रन्थ (सत्यार्थप्रकाश) में निम्नलिखित सात बातेँ सर्वोपरि चमक रखती हैं -

(१) संस्कृत भाषा भारत की राजभाषा होनी चाहिए । आर्यसमाज के सब सदस्य संस्कृत-विद्या-युक्त हों ।

(२) सम्पूर्ण भारत और उसके साथ संसारभर में वेदमत फैले, और वर्णाश्रम-मर्यादा की स्थापना हो ।

(३) भारत में सम्पूर्ण राजपुरुष स-अंग वेद के ज्ञाता हों । देशभक्ति की कसौटी यही है ।

(४) आर्ष ग्रन्थों का साम्राज्य भूमंडल में स्थापित होवे ।

(५) वेद से उतरकर भगवान् मनु का शासन सब संसार में प्रवृत्त हो ।

(६) मूर्तिपूजा आदि कर्म हटें और पंच महायज्ञों तथा अन्य यज्ञों का प्रसार सर्वत्र हो ।

(७) संसार में सत्य-वक्ता उत्पन्न हों । असत्य बोलने वालों का सर्वथा अमान्य हो ।”


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गाय आदि पशुओं की हत्या रुकवाने के उद्देश्य से लिखा गया ऋषि दयानन्द सरस्वती का एक ऐतिहासिक पत्र...

गाय आदि पशुओं की हत्या रुकवाने के उद्देश्य से लिखा गया ऋषि दयानन्द सरस्वती का एक ऐतिहासिक पत्र -
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[सन्दर्भ ग्रन्थ : ‘ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन’, द्वितीय भाग, पृष्ठ 536-537, संस्करण 1981, रामलाल कपूर ट्रस्ट । प्रस्तुति - भावेश मेरजा]
_______________________

मन्त्री,
आर्यसमाज दानापुर,

आनन्दित रहो !

मैं आप परोपकार-प्रिय धार्मिक जनों को सब जगत् के उपकारार्थ गाय, बैल और भैंस की हत्या के निवारणार्थ दो पत्र - एक तो सही करने का और दूसरा जिसके अनुसार सही करनी है - दो पत्र भेजता हूँ । इसको आप प्रीति और उत्साह पूर्वक स्वीकार कीजिये, जिससे आप महाशय लोगों की कीर्ति इस संसार में सदा विराजमान रहे । इस काम को सिद्ध करने का विचार इस प्रकार किया गया है कि 2,00,00,000 - दो करोड़ से अधिक राजे-महाराजे और प्रधान आदि महाशय पुरुषों की सही कराके आर्यावर्त्तीय श्रीमान गवर्नर जनरल साहेब बहादुर से इस विषय की अर्जी करके उपरी लिखित गाय आदि पशुओं की हत्या को छुड़वा देना । मुझको दृढ़ विश्वास है कि प्रसन्नता पूर्वक आप लोग इस महोपकारक कार्य को शीघ्र करेंगे । अधिक प्रति भेजने का प्रयोजन यह है कि जहाँ-जहाँ उचित समझे वहाँ-वहाँ भेजकर सही करा लीजिये । पुनः नीचे लिखीत स्थान में रजिस्टरी कराके भेज दीजिये ।

'लाला रामशरण रईस - मंत्री आर्यसमाज मेरठ (मोहल्ला कानून गोयान)’

अलमतिविस्तरेण धर्म्मिवरशिरोमणिषु ॥

ता० 12 मार्च सन् 1882 ई०

दयानन्द सरस्वती
मुम्बई


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वेदोपदेश : ● सत्य में श्रद्धा - झूठ में अश्रद्धा...

वेदोपदेश :

● सत्य में श्रद्धा - झूठ में अश्रद्धा ●
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‘श्रद्धा’ (= श्रत् + धा) का अर्थ है - सत्य पर विश्वास करना ।

झूठी बातों पर विश्वास करने को श्रद्धा नहीं कहते । इसका नाम है - अन्ध विश्वास ।

गंगा-स्नान मात्र से मुक्ति नहीं हो सकती ।

मूर्ति-पूजन से ईश्वर नहीं मिलता ।

मरे पितरों को कोई भोजन नहीं पहुँचा सकता ।

जो इन झूठी बातों पर विश्वास करता है वह 'श्रद्धालु’ नहीं, अपितु 'अन्ध-विश्वासी है ।

अन्धा मनुष्य साँप को रस्सी समझकर पकड़ ले तो साँप उसको अवश्य काट लेगा ।

इसलिये केवल सच्ची बातों पर श्रद्धा करनी चाहिए, झूठी बातों पर नहीं ।

झूठी बातों पर श्रद्धा करना बुरा है ।

वेद में लिखा है -

'अश्रद्धाम् अनृते अदधात् श्रद्धाम् सत्ये प्रजापति:’

(यजुर्वेद : अध्याय १९, मन्त्र ७७)

इस मन्त्र में परमात्मा का उपदेश है कि -

“झूठ में अश्रद्धा करो और सत्य में श्रद्धा ।”

जो मनुष्य सत्य में अश्रद्धा करता है और असत्य में श्रद्धा करता है, वह अपने आप तो डूबता ही है, संसार को भी डुबो मारता है ।

आजकल के ढोंगी आदमी लोगों को 'श्रद्धा’-'श्रद्धा’ कहकर ठगते फिरते हैं । इनसे बचना चाहिये ।

[संदर्भ ग्रन्थ : धर्म-सार, लेखक पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय, पृष्ठ ७४-७५, जनज्ञान प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रस्तुति : भावेश मेरजा ]


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कैसा कठोर अनुशासन चाहते थे ऋषि दयानन्द जी आर्यसमाज में...

कैसा कठोर अनुशासन चाहते थे ऋषि दयानन्द जी आर्यसमाज में ?
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यह जानने के लिए मुरादाबाद के श्री दुर्गाचरण जी एवं श्री श्यामसुन्दरदास जी साहु को जोधपुर से 3 जून 1883 को लिखा गया उनका निम्नलिखित पत्र द्रष्टव्य है । 

[सन्दर्भ ग्रन्थः ‘ऋषि दयानन्द सरस्वती के पत्र और विज्ञापन’, पृष्ठ 426-427, पत्र 455, द्वितीय संस्करण, 1955 ई०, सम्पादक श्री पण्डित भगवद्दत्त जी, प्रस्तुति - भावेश मेरजा]

मूल पत्रः
———–

श्रीयुत प्रधान दुर्गाचरण आदि तथा श्रीयुत श्यामसुन्दर जी,

आनन्दित रहो ।

कार्ड आपका आया, समाचार विदित हुआ । जो प्रधान और पुस्तकाध्यक्ष जो कि आर्यसमाजों के उद्देशों के विघ्न थे, पृथक् कर दिये गये । बहुत अच्छी बात हुई । अब आपका समाज उन्नतिशील होगा । और यही बात 'देशहितैषी’ और 'भारत सुदशा प्रवर्त्तक’ तथा मेरठ और लाहौर के समाज के पत्रों में छपवा दीजिये । और आगे को कोई समाज के उद्देशों से विरुद्ध आचरण, भाषण करे, उसको एक-दो बार समझा दीजिए । और न समझे तो इसी प्रकार पृथक् करते रहिये । और अब वैदिक यन्त्रालय में आपके समाज के 100 रु० लगे हैं । और 10 रु० के पुस्तक वैदिक यन्त्रालय से मंगवा लीजिये । अथवा 110 रु० ही के पुस्तक मंगवा लीजिये । और सब सभासदों से मेरा आशीर्वाद कह दीजियेगा ।

मि० ज्ये० शु० 1 सं० 1940 बुधवार, जोधपुर । 

हस्ताक्षर
दयानन्द सरस्वती


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स्नेही स्वजनों सुस्वागतम् तथा सदा-सुमंगल-कामना! आज प्रस्तुत है, मुगलआक्रांताओं द्वारा सनातन्...

स्नेही स्वजनों
सुस्वागतम्
तथा
सदा-सुमंगल-कामना!

आज प्रस्तुत है,
मुगलआक्रांताओं द्वारा सनातन् धर्मियों को जातियों में विभाजित करके अपमानित करने और आंग्लकाल में लिपिबद्ध करके निरंतर प्रताणित करने का अद्भुद (फिनोमिनल) ऐतिहासिक सत्यान्वेषी लेख!


अब आइये जानते हैं अद्भुद्(फिनोमिनल)बातें, “खटिक जाति ” के बारे में :-

खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राहमण जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी।
संस्कृत में इनके लिए शब्द है, ‘खटिटक'।

मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति के ब्राहमणों ने ही उनका प्रतिकार किया। राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी। मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम उनका सामना करते थे।

तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे।

तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटिक सैनिकों की हत्या करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की। (पढ़िये “भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण का खूनी इतिहास” ४ भागों में)


मध्यकालीन बर्बर दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, लोदी
वंश और मुगल शासनकाल में जब अत्याचारों की मारी हिंदू जाति मौत या इस्लाम का चुनाव कर रही थी तो खटिक जाति ने अपने धर्म की रक्षा और बहू बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से बचाने के लिए अपने घर के आसपास सूअर बांधना शुरू किया।


इस्लाम में सूअर को हराम माना गया है।
मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे। और खटिकों ने मुस्लिम शासकों से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया। उसे उन्होंने हिंदू के देवता विष्णु के वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया।


मुस्लिमों की गो हत्या के जवाब में खटिकों ने सूअर का मांस बेचना शुरू कर दिया और धीरे धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में पददलित होते चले गए।

कल के शूरवीर ब्राहण आज अछूत और दलित श्रेणी में हैं।

1857 की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे परिवारों को मौत के घाट उतारने वालों में खटिक समाज सबसे आगे था।
इससे गुस्साए अंग्रेजों ने 1891 में पूरी खटिक जाति को ही वांटेड और अपराधी जाति घोषित कर दिया।


जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की दासतान पढेंगे तो रोंगटे खडे हो जाए्ंगे। जैसे को तैसा पर चलते हुए खटिक जाति ने न केवल अंग्रेज अधिकारियों, बल्कि उनकी पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे।
क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गांव के गांव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और बाद में उन्हें अपराधि जाति घोषित कर समाज के एक कोने में ढकेल दिया।

आजादी से पूर्व जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट
एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने कोलकाता शहर
में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया, लेकिन एक दो दिन में ही पासा पलट गया और खटिक जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। बाद में इसी का बदला मुसलमानों ने बंग्लादेश में स्थित नोआखाली में लिया।


आज हम आप खटिकों को अछूत मानते हैं, क्योंकि हमें
उनका सही इतिहास नहीं बताया गया है, उसे दबा दिया
गया है।
आप यह जान लीजिए कि दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की जनगणना में 'डिप्रेस्ड क्लास’ के रूप में किया था।

उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय इतिहास व साहित्य में 'दलित’ शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है।


हमने और आपने मुस्लिमों के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ने वाले, हिंसा और सूअर पालन के जरिए इस्लामी आक्रांताओं का कठोर प्रतिकार करने वाले एक शूरवीर ब्राहमण खटिक जाति को आज दलित वर्ग में रखकर अछूत की तरह व्यवहार किया है और आज भी कर रहे हैं।


भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1 फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14 फीसदी हो गई। आखिर कैसे..?


सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के लोग आज के उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहां मुगलों के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहां सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ।

आज सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भी इन्हीं प्रदेशों में है, जो लोभ, कायरता अथवा भयभीत होकर धर्मांतरित हो गये थे।


डॉ सुब्रह्मण्यम् स्वामी लिखते हैं,
“ अनुसूचित जाति
उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने
जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के
जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया।

आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।”


प्रोफेसर शेरिंग ने भी अपनी पुस्तक ’
हिंदू कास्ट एंड टाईव्स’ में स्पष्ट रूप से लिखा है कि “
भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि
ब्राहमण और क्षत्रिय ही हैं।”


स्टेनले राइस ने अपनी पुस्तक “हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स” में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्राय: वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे।


यदि आज हम बचे हुए हैं तो अपने इन्हीं अनुसूचित जाति के भाईयों के कारण जिन्होंने नीच कर्म करना तो स्वीकार किया, लेकिन इस्लाम को नहीं अपनाया।


आज भारत में 23 करोड़ मुसलमान हैं और लगभग 35 करोड़ अनुसूचित जातियों के लोग हैं।

जरा सोचिये इन लोगों ने भी मुगल अत्याचारों के आगे हार मान ली होती और बाकी कायरों और लोभियों की ही भांति मुसलमान बन गये होते तो आज भारत में मुस्लिम जनसंख्या 50 करोड़ के पार होती और आज भारत एक मुस्लिम राष्ट्र बन चुका होता।


यहाँ भी जेहाद का बोलबाला होता और ईराक, सीरिया, सोमालिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान आदि देशों की तरह बम-धमाके, मार-काट और खून-खराबे का माहौल होता।

हम हिन्दू या तो मार डाले जाते या फिर धर्मान्तरित कर दिये जाते या फिर हमें काफिर के रूप में अत्यंत ही गलीज जिन्दगी मिलती।


धन्य हैं हमारे ये अद्भुद्(फिनोमिनल)भाई जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अत्याचार
और अपमान सहकर भी हिन्दुत्व का गौरव बचाये रखा और स्वयं अपमानित और गरीब रहकर भी हर प्रकार से भारतवासियों की सेवा की।
हमारे अनुसूचित जाति के भाइयों को पूरे देश का कोटिशः नमन्!

साभार: 1) हिंदू खटिक जाति: एक धर्माभिमानी समाज
की उत्पत्ति, उत्थान एवं पतन का इतिहास, लेखक- डॉ
विजय सोनकर शास्त्री, प्रभात प्रकाशन


2) आजादी से पूर्व कोलकाता में हुए हिंदू मुस्लिम दंगे में
खटिक जाति का जिक्र, पुस्तक 'अप्रतिम नायक:
श्यामाप्रसाद मुखर्जी’ में आया है। यह पुस्तक भी प्रभात
प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है।


आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है, कि समस्त स्वजन (सनातन् संरक्षण हेतु अपमानित होने के उपरान्त भी लोभी,कायर,गद्दार हिन्दुओं की भांति इस्लाम न स्वीकार करके )अपनी अद्भुद्(फिनोमिनल) सनातन संस्कृति की रक्षा में संनद्ध रहने वाले परम् आदरणीय अपने"#खटीक" भाइयों हेतु विशेष श्रद्धा रखेंगे,
बल्कि अन्य स्वजनों तक इस अद्भुद (फिनोमिनल) त्याग,बलिदान और समर्पण को प्रसारित कर अधिकाधिक स्वजनों को लाभान्वित कराने का पुण्य-लाभ भी पायेंगे!

जयति-सत्य-सनातन्-संस्कृति
जयति-आर्यावर्तः
समृद्ध-आर्यावर्तः
सुसंस्कृत-आर्यावर्तः
सेक्युलर-मुक्त-आर्यावर्तः
वन्दे-गौ-मातरम्


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ओ३म् 01 जनवरी से पहले यह पोस्ट सभी के प्रोफाईल पर होना चाहीए केवल सेक्यूलरो,...

ओ३म्

01 जनवरी से पहले यह पोस्ट सभी के प्रोफाईल पर होना चाहीए

केवल सेक्यूलरो, उदारवादियो और मानसिक गुलामो के लिए
खतना दिवस (01 जनवरी) की हार्दिक शुभकामनाएँ

01 जनवरी को व 31 दिसम्बर की रात को माँस, शराब का सेवन कर अपने राक्षस होने का प्रमाण प्रस्तुत करे फिर कही किसी लड़की या स्त्री के संग मुहँ काला कर अपने लम्पटता का परिचय दे उदारवादी होने का प्रमाण प्रस्तुत करे | फिर कहना हम सभी का सम्मान करते है लेकिन भारत मे रहकर भारतीयता व वैदिक संस्कृति का गला घोटते है |
भारतीयो हमारा नव वर्ष 01 चैत्र शुक्ल 2073 या अंग्रेजी कैलेन्डर के हिसाब से 08 अप्रैल 2016 को है |
ये ईसाई हम भारतीयो से ( 2072-2015) = 57 वर्ष पीछे चल रहे है ध्यान दे ये सम्वत् विक्रमादित्य के शासन काल से है पहले की तो गिनती ही नही किया नही तो ये आँकड़ा लाख वर्ष के आस पास आयेगा | इससे ही समझना चाहीए ये अंग्रेज हमसे कितने पीछे है |
ये नव वर्ष यीशू के खतना के उपलक्ष्य मे मनाया जाता है प्रमाण के लिए लिंक साथ मे दे रहा हूँ | 01 जनवरी को खतना दिवस मनाने वालो सोच लो क्या हो ????? नाम से हिन्दु काम व स्वभाव से ईसाई व मुस्लमान यानी अधकचड़े |
अगर आर्य नही बन सकते तो कम से कम भारतीय तो बन जाओ |
प्रमाण के लिए लिंक
http://ift.tt/13LpPcR

अब हमारे गॉड के सन्तान ( ईसाई ) कहेगे की आप गलत लिख रहे हो यीशु मसीह का खतना नही हुआ , आप गलत प्रचार कर रहे हो आदी आदी |
भाई बौखलाने से पहले बाईबिल तो पढ़ लिया होता तो पता लग जाता गलत लिखा है या सत्य | अगर बाईबिल नही पढ़े हो तो मै पढ़ा दे रहा हूँ ध्यान से पढ़ना
प्रमाण बाईबिल से :—-
लूका 2:21
जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, जो स्वर्गदूत ने उसके पेट में आने से पहिले कहा था।

पढ़ लिया अपनी इच्छा से नही लिखता प्रमाण के साथ लिखता हूँ |
गूगल बाबा भी यही बात कह रहे है , प्रमाण के लिए ऊपर के लिंक पर क्लिक करे |
ये आठवा दिन ०१ जनवरी था जिसके उपलक्ष्य मे ईसाई लोग त्यौहार मनाते है | ईसाई ०१ जनवरी को त्यौहार मनाये तो समझ आता है लेकिन अपने आप को हिन्दू कहने वाले अगर खतना दिवस मनाये तो इन्हे क्या कहाँ जाये ???????
ज्यादा से ज्यादा शेयर कर इस सच्चाई को हर भारतीय को बताएँ |


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नास्तिक:-(१)Parmatam kise kahte hai aap…??? (२)Agar aap key kahna chahate hai k bhagwan...

नास्तिक:-(१)Parmatam kise kahte hai aap…???
(२)Agar aap key kahna chahate hai k bhagwan hai….???
toh mai nastik hu.
________________________________
जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव,प्रकृती तथा प्रकाश से भी अतिशुक्ष्म और सब जीवो का अन्तर्यामी आत्मा है,
इससे ईश्वर का नाम'परमात्मा'है|
(सत्यार्थप्रकाश:प्रथम समुल्लास)
प्रशन-ईश्वर है-इस बात का पता कैसे चल सकता है ?
उत्तर-ईश्वर कि सत्ता का ज्ञान तीन प्रमाणो से मिलता है |
१.जब मनुष्य किसी श्रेष्ठ कार्य को करता है तो ह्रदय मे हर्ष और उत्साह पैदा होता है तथा जब बुरा काम करता है,तो लज्जा,शंका और भय उत्पन्न होता है |यह प्रेरणा अन्तर्यामी ईश्वर कि ओर से ही मिलती है |जो व्यक्ति इस प्रेरणा के अनुसार स्वतन्त्रापूर्वक आचरण करता है,वह बुराई से बच कर सन्मार्ग की ओर बढता है और जो इस प्रेरणा की ओर ध्यान न देकर यथेच्छ बुराईयों को करता रहता है,तो वह अवनती को पहुंचकर दु:ख उठाता है,यह प्रेरणा ईश्वर की ओर से होती है,अत:सब मनुष्यो को ईश्वर का आत्मप्रत्यक्ष होता है |
२.जब शुद्धान्त:करण समाधिस्थ होता है,तब वह अपने और ईश्वर के स्वरूप मे स्थित होकर ईश्वर का साक्षात करता है,यह योगज प्रयत्क्ष कहलाता है |
३.जैसे अनुमान प्रमाण द्वारा धूम और अग्नि की व्याप्ति जानकार धूम दर्शन से अग्नि की व्याप्ति जानकार धूम दर्शन से अग्नि का अनुमान प्रमाण करना होता है,वैसे ही सृष्टि मे रचना आदि विशेष गुणो के ज्ञान द्वारा ईश्वर की सिद्धी अनुमान प्रमाण से होती है |यदि रचना आदि विशेष गुणो के आधार पर गुणी का आत्मप्रत्यक्ष भी हो जाता है |यह बडी विलक्षण सिद्धी है |
४.जैसे घडी को देख कर हम घडीसाज का अनुमान कर लेते है,ऐसे ही सृष्टी को देख रूपी कार्य को देख कर इसके कर्त्ता ईश्वर का अनुमान भी हो जाता है |
५.शब्द प्रमाण वेद से ईश्वर की सत्ता की प्राप्ति होती है | जैसे
१.स दाधार पृथिवीमुत द्याम
२.द्यावाभूमि जनयन्देव एक :
३.य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद:यो अन्तरिक्षे रजसो विमान:-इत्यादि इन वेद वचनो से ईश्वर का सृष्टि-कर्तव्य सिद्ध होता है |
प्रशन-जो वस्तु दिखाई नही देती,उसको कयो माना जाये ?
उत्तर-न दिखाई देना पदार्थ की सत्ता को नही रोक सकता,यदि उसकी सिद्धी दूसरी रीतियो से हो सके|भूख-प्यास,सुख-दुख दिखाई नही देते,परन्तु प्राण और मन ग्रहण द्वारा ग्रहण किये जाने से प्रत्यक्ष सिद्ध है |इनकी सत्ता का निषेध नही हो सकता |
अब कारण से ईश्वर की सत्ता को समझे
प्रशन-कारण किसे कहते है ?
उत्तर-कार्य से पूर्व जिसका होना आवश्यक हो,अर्थात जिसके बिना वह कार्य न बन सके,उसको बनने वाला का कारण कहते है |
उदाहरण जैसे घडा कार्य है अर्थात बनाया जाता है |घडा बनने से पहले ये तीन साधन पहले होने आवश्यक है |१.मिट्टी २.कुम्भकार ३.कुम्भकार के साधन दण्ड,चक्र आदि औजार|घडा बनने से पहले तीनो का होना आवश्यक है और इन तीनो के बिना घडा बन नही सकता | अत:घडे के प्रति इन तीनो को कारण कहा जाता है |
इस प्रकार बनाने वाले को कर्त्ता=निमित्त कारण कहते है | दूसरा जिस से कार्य (पदार्थ)बनता है,उसको उपादान कारण कहते है | तीसरा जिन औजारो से से कार्य कार्य बनाया जाता है,उनको साधारण उपादान कारण कहते है |इस प्रकार सृष्टी भी कार्य है,कयोकि सृष्टी भी बनी हुई है,जो प्रत्यक्ष सिद्ध है |
प्रशन-सृष्टी के उपर्युक्त तीन कारण कौन-कौन से है ?
उत्तर-पहला निमित्त कारण ईश्वर है |दूसरा उपादान कारण प्राकृती परमाणु है |तीसरा साधारण निमित्त कारण-जीवात्मा है | इन तीनो कारणो से ही यह सृष्टी बनती है |यदि तीनो कारणो मे से एक भी न हो तो सृष्टी बन नही सकती है |सृष्टी बनने से पूर्व इन तीनो का होना आवश्यक है | निमित्त कारण ईश्वर ही प्रकृती-परमाणुओ मे संयोग(गति)देकर यथायोग्य मेल से नित्य तत्व परमाणुओ द्वारा कार्यरूप सृष्टी-लोक-लोकान्तरो(सूर्य और पृथ्वी आदि ग्रह-उपग्रह)का निर्माण करता है |यदि ईश्वर न हो तो परम सूक्ष्म नित्य निरवयव परमाणुओ से सृष्टी बन नही सकती | कयोकि जीव का स्वभाव अल्प सामर्थ्य अल्प होने के कारण और परमाणुओ के अतिशुक्ष्म होने के कारण उन को जीव वश मे नही ला सकता | इन को वश मे लाने वाला सुक्ष्मतम चेतन सर्वव्यापक ईश्वर ही है | और परमाणु(प्रकृती)भी जड पदार्थ होने से अपने आप गति नही कर सकता |इस प्रकार सृष्टी के तीन कारण-ईश्वर,जीव और प्रकृती तूनो नित्य है | तीनो का कारण रूप होना आवश्यक है | इन्ही तीनो कारणो को मान कर त्रैतवाद कहा जाता है |ध्यान रखे ब्रह्म अखण्डित,एकरस,चेतन सत्ता है |उसमे विकार होकर सृृष्टी नही बनती है | कयोकि वह तो निमित्त कारण है | उपादान प्रकृती मे विकार होकर यह जगत् बनता है | इस कारण ब्रह्म उपादान कारण नही हो सकता | वह केवल निमित्त कारण ही है |
ईश्वर जगत् का नियन्ता है | जैसे वह सब जीवो और जड जगत् को नियम मे रखता है,उसी प्रकार अपने नियमो पर रहता है | जैसे स्वम बनाये नियमो को तोडना वाले मनुष्य को भी अच्छा नही समझा जाता,फिर सर्वेश्वर का तो कहना ही कया ह ? अत: ईश्वर भी अपने नियमानुसार ही कार्य करता है,यह गुण है,दोष नही | सर्वशक्तिमन् इसलिए है कि अपने (जगत् रचना,पालना और संहार करने)आदि मे किसी जीव की सहायता की अपेक्षा की अपेक्षा नही रखता है | ईश्वर के नियम सत्य और अटल है | उनमे परिवर्तन का नाम भी नही |
प्रशन-जीव और ईश्वर मे कितनी समानता और कितनी भिन्नता है ?
उत्तर-ईश्वर,जीव और प्रकृती(सृष्टी का उपादान कारण)तीनो मे सत्ता समान धर्म है | जीव और ईश्वर मे सत्ता के साथ ही चेतनता भी समान धर्म है | जीव अल्प,अल्पज्ञ,परिच्छिन्न,कर्मो का कर्त्ता भोक्ता है|जन्म-मृत्यु के प्रवाह मे पडने वाला है | परन्तु ईश्वर सर्वव्यापक,सर्वज्ञ,सर्वशक्तिमान,सृष्टि का रचयिता-संहर्त्ता,जीव को कर्म फल भुगाने वाला आदि अन्नत सामर्थ्य सम्पन्न है | यह दोनो का भेद है |
प्रशन-सृष्टी किसे कहते है ?
उत्तर-परम सूक्ष्म नित्य पृथक्-पृथक् विद्यमान तत्वावयवो के प्रथम संयोग आरंभ से क्रमश:स्थूलावस्थान्तर को प्राप्त होता हुआ यह जड संसार संसर्ग के कारण सृष्टी कहलाता है और पृथ्वी,जल,अग्नि और वायु इन चारो स्थूल भूतो के कारण पृथक-पृथक परमाणु तथा आकाश,काल,दिशा ये नित्य पदार्थ है | इन्ही नित्य तत्वो को एक नाम प्रकृती कहते है और किसी भी पदार्थ के उस छोटे से छोटे टुकडे-(अंश)को परमाणु कहते है,जिसके और टुकडे-(अंश)न हो सके| वही अन्तिम टुकडा परमाणु कहलाता है,जो अति सुक्ष्म है|
प्रशन-ईश्वर को न माने तो कया हानि है ?
उत्तर-सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,सर्वशक्तिमान् पदार्थ के संयोग से जो आत्मोत्थान होता है ,वह नही हो सकेगा और जीवात्मा कभी भी दु:खो से पार न होकर जन्म-मरण के प्रवाह मे पडा रहेगा | ईश्वर ही एक पूर्णसत्ता है,जिसको उपासना और साहाय्य से मनुष्य उन्नत हो सकता है | अत:ईश्वर को न माने मे इन गुणो से मनुष्य वंचित रह कर परम कल्याण को प्राप्त नही कर सकता |
प्रशन-ईश्वर की प्राप्ति का कया अभिप्राय है?
उत्तर-ईश्वर के गुणो को मनुष्य अपने भीतर धारण करके आत्मोन्नति कर योगाभ्यास की रीति से ईश्वर का साक्षात् करे| इसी को ईश्वर-प्राप्ति कहा जाता है |
साभार:-वैदिक धर्म प्रशिनोतरी
लेखक:-श्री पं०जगदेवसिंह जी'सिद्धान्ती’,
शास्त्री
_______________________________
सार:-बडे बडे नास्तिक भी अन्त समय मे स्वीकार कर गये की कोई तो शक्ति है जो सारे संसार को चला रही है ,जिसके समरण करने मात्र से जीव दुख-कलेश से छूट कर उत्साह शक्ति पाता है,नाकरात्मक से सकरात्मक की ओर बढता है,सो आशा है उपर्युक्त लेख से आप भी ईश्वर,जीव,प्रकृती के वैदिक सिद्धान्त को समझ कर ईश्वर कि सत्ता को स्वीकार करेंगे और नास्तिक से आस्तिक बनेगें कयोकि लिखने को तो और भी तर्क विद्वानो से दिये जा सकते है | लेकिन बुद्धिमान तो इतने से भी ईश्वर कि सत्ता को समझ सकते है और जो जिद्दी अडियल नास्तिक है उन्हे किसी भी तर्क सिद्धान्त से समझाया नही जा सकता है |
========================
“विश्वास वो शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया में भी प्रकाश किया जा सकता है”
प्रेषक:- 📝……..नरेश खरे


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क्या आर्य विदेश से आये थे ??? . आदरणीयश्री मल्लिकार्जुन खडगे जी - सादर नमस्ते...

क्या आर्य विदेश से आये थे ???
.
आदरणीयश्री मल्लिकार्जुन खडगे जी - सादर नमस्ते !
(m.kharge@sansad.nic.in
mallikarjunkharge@yahoo.in)
.
आपने संसद में बहस के दौरान आर्यों को विदेशी बताया | हमारी आपसे असहमति है लेकिन आपको अपनी बात मनवाने के लिए निम्न प्रश्नों के उत्तर देने होंगे | कृपा कर उत्तर देने की कृपा करें |
.
१) मल्लिकार्जुन शब्द का अर्थ क्या होता है ? यदि इसका अर्थ शिव है तो ये आचार्य भगवान् शिव कौन थे ? आर्य या मूलनिवासी ?
२) आर्य विदेश से किस वर्ष/सन/विक्रम/काल में आये थे ?
३) आर्य विदेश से आये तो किस देश / विस्तार से आये थे ?
४) क्या परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण उन आर्य लोगों को उस देश/विस्तार को छोड़ कर इस देश में आना पड़ा ? या स्थानान्तरित हुए ?
५) ऐसा कौन सा आकर्षण था इस देश में जो आर्य विदेश से आये ? क्यों की यह देश तो आपके अनुसार मूलवासियों का है जो की अपने को आज इतने वर्षों बाद भी पिछड़ा / दलित ही मान रहे हैं | आखिर पिछड़ों/दलितों या बताये जाने वाले कालों में ऐसा क्या आकर्षण था जो अपने मूल विस्तार/देश को छोड़ ये इस देश में चले आये ? क्या मूलनिवासियों के पास बहुत धन था ? यदि था तो वे आर्य, मूलवासियों से धन लूट कर ले क्यों नहीं गये ? यदि ले गये तो कब-कब, कितना ले गये ?
६) आर्य जब विदेश से आये तो कितनी संख्या में आये थे ? स्त्री-पुरुष-बालक-वृद्ध आदि कितने-कितने थे ?
७) सबसे पूर्व इस देश के किस विस्तार में प्रवेश किया ?
८) क्या उन गौर वर्ण आर्यों ने बताये जाने वाले काले मूलनिवासियों के साथ सम्बन्ध जोड़ कर सन्तान उत्पत्ति की या नहीं ?
९) आर्य विदेश से आये तो उसका वर्णन किस पुस्तक में मिलता है ?
१०) आर्यों ने अपने कई-कई इतिहास ग्रन्थों का निर्माण किया है जिसमें छोटे-बड़े
देशी-विदेशी युद्धों व घटनाओं का विस्तार से वर्णन किया है तो इस आगमन का वर्णन क्यों नहीं ? रामायण, महाभारत, अनेक इतिहास आधारित नाटकों में कोई वर्णन नहीं मिलता ==> क्यों ??
११) जो बौद्ध आर्यों के विरोधी बताये जाते हैं उन्होंने तक अपने ग्रन्थों में आर्यों का बाहर से आगमन हुआ था ऐसा नहीं लिखा | ऐसा क्यों ? उल्टा इनके साहित्य में आर्य शब्द को बहुत आदर दिया जाता है | जैनी भी आर्य वैदिक धर्म के विरोधी हैं लेकिन आर्य शब्द उनके लिए भी आदरवाचक है | क्यों ?
१२) वेद में (जिसे आप अनेक कवियों की रचना मानते हैं और ईश्वर की रचना/ज्ञान नहीं मानते) लिखा है की “यह भूमि आर्यों को दी है” (“अहं भूमिम् अददामार्याय ” ऋग्वेद ४/२६/२) तो ऐसा वचन किसके लिए लिखा है ? वो कौन सा विस्तार था जिस ओर वेद की वह सूक्ति संकेत करती है ?
१३) इस देश को आर्यावर्त्त कहा जाता है तो यह नामकरण आर्यों के बाहर से इस देश में आने के बाद रखा या पहले से था ? यदि पहले से था तब आपत्ति क्यों ? आर्यावर्त्त देश यदि आर्यों के बाहर से आने के बाद रखा गया तो फिर उनके आगमन से पूर्व इस देश का नाम क्या था ???
.
अभी कृपा कर इतने प्रश्नों का उत्तर दीजिये, और कुछ शेष होंगे या आपके उत्तर को पढ़ कर मन में आये तो बाद में पूछ लेंगे |
उत्तर की प्रतीक्षा में
अग्रिम धन्यवाद
वेदानुरागी
विश्वप्रिय
(एक सामान्य नागरिक)


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Saturday, November 28, 2015

नमस्ते मित्रों ! महर्षि पातंजलि ने योग के आठ अंग बताये हैं। यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार...

नमस्ते मित्रों !
महर्षि पातंजलि ने योग के आठ अंग बताये हैं।
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
ये आठ उस सीढी के पायदान हैं जिन पर चढकर हम परमानन्द अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।
मित्रों ! सीढी एक एक पायदान करके ही चढी जाती है, कोई भी व्यक्ति एकदम सीढी के चौथे, पांचवें या अन्तिम पायदान पर नहीं चढ सकता ।
परन्तु आजके समय में कुछ गुरुघंटाल बल्कि अधिकतर ऐसे हैं हमारे समाज में जो कहते हैं हम सीधे ही तुम्हें ध्यान व समाधि लगवाकर ईश्वर का साक्षात्कार करा देंगे ।
जरा गंभीरता से विचार कीजिये , यदि ऐसा हो सकता तो क्या हमारे पूर्वज जितने भी ऋषि , महर्षि हुए हैं उन सबने महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग को ही एकमात्र साधन माना है और उसी पर चलकर मोक्ष या मुक्ति या परमात्मा की प्राप्ति की है।
मेरे प्रिय मित्रों ! हम सबको उस सर्वज्ञ परमेश्वर ने बुद्धि दी है, और साथ में यह आज्ञा भी दी है कि हे मनुष्यों ! तुम प्रत्येक कार्य बुद्धि पूर्वक विचारकर ही करो। परमेश्वर को जानने के लिये बुद्धि पूर्वक विचार कर सदकर्म करते हुए अष्टांग योग का पालन करके ही हम उसका साक्षात्कार कर सकते हैं।
परमात्मा को पाने का कोई शार्टकट ( छोटा रास्ता ) होता नहीं, है नहीं और हो सकता नहीं।
हमें उसे प्राप्त करने के लिये उस अष्टांग योग रुपी सीढी पर चढना ही होगा। आज मैं उस सीढी के प्रथम पायदान अर्थात “यम” के बारे में आप सबसे निवेदन कर रहा हूँ।
यदि हम परमात्मा प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, या मै कहूँ कि हम एक अच्छा मनुष्य बनना चाहते हैं तो हमें यम को अपने जीवन में द़ृढता से धारण करना ही चाहिए
। यम के भी पाँच पद हैं।
१) अहिंसा
२) सत्य
३) अस्तेय
४) ब्रह्मचर्य
५) अपरिग्रह
इन पाँच यमों को ठीक से न समझ पाने या आधे अधूरे समझकर धारण करने से हमारे राष्ट्र की बहुत हानि हुई है। चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिसने अहिंसा के सिद्धांत को ठीक से न समझकर बौद्ध भिक्षुक बनकर राष्ट्र को असुरक्षित छोड दिया। हमें प्रत्येक सिद्धांत को ठीक से समझकर ही उसका पालन करना चाहिए ।
पहला यम है अहिंसा
अहिंसा अर्थात हिंसा न करना। परन्तु यह पूर्ण परिभाषा नहीं। इसमें एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात छूट गई।जो श्रीकृष्ण व श्रीराम जी ने नहीं छोडी थी और उन्होंने हजारों ,लाखों लोगों का वध किया व कराया था, परन्तु हम उन्हे आज भी अहिंसक ही कहते हैं और भगवान का दर्जा देते हैं।
और वह महत्वपूर्ण बात जो महात्मा बुद्ध , गाँधी व अन्य अहिंसा के पुजारियों नें छोड दी और जिसके कारण इस राष्ट्र में महमूद गजनवी जैसे लुटेरों नें जी भरकर इस राष्ट्र का धन वैभव व हमारी नारियों की अस्मिताओ को जी भरकर लूटा। वह शब्द था “अकारण”
अर्थात अकारण किसी भी जीव को मन, वचन व कर्म से हानि न पहुँचाना अहिंसा कहलाता है। परन्तु यदि कारण विद्यमान हो तो लाखों लोगों या कहूँ दुष्टों को मार डालना भी अहिंसा ही ही कहलाती है, जैसे श्रीराम जी नें अपनी पत्नी को वापस पानें के लिये दुष्ट रावण के घर में घुसकर उसका कुलसहित संहार किया था,
जैसे श्रीकृष्ण जी नें पांडवों का अधिकार दिलाने व धर्म की स्थापना के लिये महाभारत के युद्ध में लाखों लोगों का संहार कराया परन्तु फिर भी हम उन्हे हिंसक नहीं कहते। यही अहिंसा की ठीक परिभाषा है।और हमें भी श्रीराम व श्रीकृष्ण जी जैसा अहिंसक बनना चाहिए न कि चुपचाप सबकुछ सहते हुए गाँधीवादी बन जाना।
दूसरा यम है सत्य।
सत्य अर्थात जो ज्ञान हमारे अंतःकरण मे है और जो विज्ञान व सृष्टिक्रम की कसौटी पर कसा हो वैसा ही कहना सत्य कहलाता है।
तीसरा यम है अस्तेय
अस्तेय अर्थात किसी की वस्तु को उसके बिना पूछे न लेना, अर्थात चोरी न करना ।

चौथा यम है ब्रह्मचर्य
अर्थात पूर्ण पुरुषार्थ करके वीर्य रक्षण करना ।
और पांचवा यम है अपरिग्रह
यह भी बहुत महत्व पूर्ण है अर्थात आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह न करना। जितनी आवश्यकता हो केवल उतनी वस्तुएँ ही खरीदनी चाहिए । बाकि धन को समाज व राष्ट्र हित के लिये ही खर्च करें।
आज पाँच यमों को मैने सरलता से समझाने का प्रयास किया है, आशा है हम सभी इन यमों को समझकर दृढ़ता से अपने जीवन में अपनायेंगे तो हमारा जीवन कुंदन की तरह चमकने लगेगा। व हम अपने परिवार ,समाज व राष्ट्र की सच्ची सेवा करने वाले नागरिक बन जायेंगे ।
यम के पश्चात नियम, आसन, प्राणायाम , धारणा, ध्यान व समाधि के बारे में ऐसे ही सरलता से समझाने का मेरा प्रयास रहेगा।
ओ३म् शान्ति: शान्ति: शान्ति:
आपका मित्र ,
सुनील आर्य ।
सम्पर्क सूत्र :९२१२७२११४१


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।।ओ३म्।। नमस्ते जी “नमस्ते” शब्द संस्कृत भाषा का है। इसमें दो पद हैं – नम:+ते । इसका अर्थ है कि...

।।ओ३म्।।

नमस्ते जी

“नमस्ते” शब्द संस्कृत भाषा का है। इसमें दो पद हैं – नम:+ते । इसका अर्थ है कि ‘आपका मान करता हूँ।’ संस्कृत व्याकरण के नियमानुसार “नम:” पद अव्यय (विकाररहित) है। इसके रूप में कोई विकार=परिवर्तन नहीं होता, लिङ्ग और विभक्ति का इस पर कुछ प्रभाव नहीं। नमस्ते का साधारण अर्थ सत्कार=मान होता है। आदरसूचक शब्दों में “नमस्ते” शब्द का प्रयोग ही उचित तथा उत्तम है, क्योंकि जब दो सज्जन मिलते है तब उन दोनों का भाव एक-दूसरे का मान करने का होता है। ऐसे अवसर पर मानसूचक शब्द ही उचित है।

नमस्ते शब्द वेदोक्त है। वेदादि सत्य शास्त्रों और आर्य इतिहास (रामायण, महाभारत आदि) में ‘नमस्ते’ शब्द का ही प्रयोग सर्वत्र पाया जाता है। पुराणों आदि में भी नमस्ते namaste शब्द का ही प्रयोग पाया जाता है। सब शास्त्रों में ईश्वरोक्त होने के कारण वेद का ही परम प्रमाण है, अत: हम परम प्रमाण वेद से ही मन्त्रांश नीचे देते है :-

नमस्ते

परमेश्वर के लिए

दिव्य देव नमस्ते अस्तु॥ – अथर्व० 2/2/1

हे प्रकाशस्वरूप देव प्रभो! आपको नमस्ते होवे।

नमस्ते भगवन्नस्तु ॥ – यजु० ३६/२१

हे ऐश्वर्यसम्पन्न ईश्वर ! आपको हमारा नमस्ते होवे।

नमस्ते अधिवाकाय ॥ – अथर्व० 6/13/2

उपदेशक और अध्यापक के लिए नमस्ते हो।

देवी (स्त्री) के लिए

नमोsस्तु देवी ॥ – अथर्व० 1/13/4

हे देवी ! माननीया महनीया माता आदि देवी ! तेरे लिए नमस्ते हो।

सभी को नमस्ते जी

आर्य नरेंद्र कौशिक
नरवाना (आर्यवर्त्त)


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🌷🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷 भूपेश आर्य 🌻बाल काला करना:- मालकांगनी के बीज (छिलका उतार दें) २५० ग्राम लेकर बोतल...

🌷🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷

भूपेश आर्य

🌻बाल काला करना:-
मालकांगनी के बीज (छिलका उतार दें) २५० ग्राम लेकर बोतल में भर लें और दृढ़ कार्क लगा दें।१० दानें प्रतिदिन पानी से निगल लें।निरन्तर एक वर्ष तक प्रयोग करें।

इन बीजों के सेवन से बुद्दि तीव्र होती है।चेहरा लाल हो जाता है।बाल पुनः काले होने लगते हैं।
पथ्य-चने की दाल या मूंग की दाल जिसम़े खूब घी ड़ाला गया हो सेवन करें।
गेहू या बेसन की रोटी खाएं।
मेथी का साग भी खा सकते हैं।मिठाई में जलेबी खा सकते है।
गर्म वस्तुओं से बचें।

🌻बांझपन-1.मासिकधर्म से शुद्ध होने के पश्चात् नागकेसर का चूर्ण ६ ग्राम को गाय के ताजा दूध के साथ कुछ समय तक निरन्तर सेवन करने से गर्भ अवश्य रहता है।

2.जीयापोते का एक पत्ता एक रंग की बछड़े वाली गाय के दूध में उबालकर ऋतु-स्नान के पश्चात् ५वें दिन से सात दिन तक सेवन करने से बाँझ स्त्री भी गर्भवती होती है।यह सन्तान प्राप्ति की अद्वितीय ओषधि है।इसके बीजों की माला पहनने से गर्भस्राव,गर्भपात और गर्भाशय के रोग दूर होते हैं।

🌻पेट के रोग-पेट के रोगों के लिए हरड़ अमृत है।२ छोटी हरड़ प्रतिदिन चूसें।अथवा पीली हरड़ २ ग्राम प्रतिदिन चूसें।

🌻पुराने सिरदर्द की दवा-
धतूरे के दो बीज एक सप्ताह तक प्रतिदिन पानी के साथ निगलें।यह पुराने सिरदर्द को दूर करता है।

🌻पीलिया-६० ग्राम मूली के पत्तों का रस निकालकर इसमें १० ग्राम चीनी मिला लें।प्रातः बिना कुछ खाये पिये इस रस को पिलावें।पीलिया को नष्ट करने के लिए रामबाण दवा है।

एक सप्ताह में पीलिया रोग नष्ट हो जाता है।

पथ्य:-दो मास तक हल्दी,नमक और दूध का सेवन न करें।

🌻पुत्र उत्पन्न करने के लिए:-गर्भ स्थापित हो जाने पर 45 से 60 दिन के बीच में पीली सरसों 10 ग्राम को एक कपड़े की पोटली में बाँधकर गर्भवती स्त्री की कमर में बाँध दिया जाये तो पुत्र ही उत्पन्न होता है।


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प्रतीक्षा की घड़ी अब समाप्त होती है.. भारत चालीसा या भारत गौरव गान सभी मित्रों को सादर समर्पित...

प्रतीक्षा की घड़ी अब समाप्त होती है.. भारत चालीसा या भारत गौरव गान सभी मित्रों को सादर समर्पित है..!! विनम्र निवेदन है कि 87 एम.बी. की फाईल उतारने में देरी लगे तो कृपया धैर्य रखें..


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भारत चालीसा या ।। गौरव-गान।।

आर्य कवि पंडित जगदीशचन्द्र “प्रवासी”

है भू-मण्डल में भारत देश महान।


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Thursday, November 26, 2015

🚩⚡🚩🔥🚩⚡🚩 जी हाँ है………. हिन्दू असहष्णु...

🚩⚡🚩🔥🚩⚡🚩
जी हाँ है……….
हिन्दू असहष्णु है……….
क्योंकि………….

हिन्दू अपनी गोऊ माता की हत्त्या सहन करता है।

हिन्दू लव जिहाद को सेहन करता है।

हिन्दू मन्दिर में घण्टी बजाने पर रोक को सहन करता है।

हिन्दू अपनी हत्त्याएं सहन करता है।

हिन्दू PK जैसी फिल्मो में अपने देवी,देताओं का अपमान सेहन करता है।

हिंदुओं में कई हिन्दू सेकुलर🐕 है।

हिन्दू मीडिया में अपने सन्तों का अपमान सेहन करता है।

हिन्दू मीडिया दुआरा अपनी परम्पराओं की खिल्ली सहन करता है।

कितना भयंकर असहष्णु है हिन्दू।

हाँ है…………..
हिन्दू असहष्णु है………..
🚩🚩🚩🙏🚩🚩🚩


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नमस्ते आर्यों ! जागो सोने वालो, जगाने वाले आ गये। वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥ भूलकर जब वेद...

नमस्ते आर्यों !
जागो सोने वालो, जगाने वाले आ गये।
वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥
भूलकर जब वेद को, पुराण को अपना लिया।
किया सत्यानाश और, जीवन ये बरबाद किया॥
छूट गया सुख , दुख में सब रो गये।
जागो सोने वालो, जगाने वाले आ गये।
वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥
फंसकर पूजा पाठ में, मंदिरो के ठाठ में।
पंडों की बंदरबाट में, नदियों के कुछ घाट में॥
बाबाओं की हाट में,वो प्रभु कहीं खो गये।
जागो सोने वालों, जगाने वाले आ गये॥
वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥
बहुत सो लिये, अब जगने का समय है।
“आर्यवर्त के आर्य” की, तुमसे यह विनय है।
मिले थे जो अवसर , बहुत तुमने खो दिये।
जागो सोने वालो, जगाने वाले आ गये।
वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥
महर्षि दयानंद के, वीर ये सिपाही हैं।
“ऋषियों मुनियों” जी ने, विद्या ये सिखाई है॥
छोड दो पाखंडों को, ये छुड़ाने वाले आ गये।
जागो सोने वालों, जगाने वाले आ गये।
वेद की ये महिमा,बताने वाले आगये !!
जागो सोने वालों, जगाने वाले आ गये॥
वेद की ये महिमा, बताने वाले आ गये॥


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हूँ बेटा हिंदुस्तान का , लहराता झंडा शान का !! डरकर पीछे कभी हटता , थककर मैं कभी न रुकता !! तोड़ता...

हूँ बेटा हिंदुस्तान का ,
लहराता झंडा शान का !!
डरकर पीछे कभी हटता ,
थककर मैं कभी न रुकता !!
तोड़ता मुँह बईमान का ,
हटाता कवच अभिमान का !!
चाहे जितनी हो दुश्मन की टोली ,
खेलेंगे इनसे खून की होली !!
दिल इनके देहल जाते ,
कंधो से कंधे जब मिल जाते !!
ख़ुशियों से भर दे माँ तेरी झोली ,
चाहे सीने पर खानी हो गोली !!
जिस माँ ने हमे जन्म दिया ,
खुद भूखी रहकर हमे अन्न दिया !!
भारत माँ का रक्षक बनाया इसने ,
हमे वीर जवान कहलवाया इसने !!
दूध का क़र्ज़ बाकी होगा ,
जबतक आतंक हावी होगा !!
फिर एक बार !
कफ़न बाँधकर निकल पड़े ,
दुश्मनो को मारने चल पड़े !!
अंत होगा भृष्ट अभियान का ,
लहराएगा झंडा शान का !!
गूँजेगा नारा-“मेरे भारत महान” का ,
हूँ बेटा हिंदुस्तान का !!
🚩🚩जय जय श्री राम🚩🚩
जय माँ भारती
🚩माँ भारती का बेटा हिदु पुत्र 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩


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👉 भाग 5 (25 Nov 2015) 🌞 हमारा अज्ञातवास और तप-साधना का उद्देश्य 🔵 ब्रह्मचर्य तप का प्रधान अंग माना...

👉 भाग 5 (25 Nov 2015)
🌞 हमारा अज्ञातवास और तप-साधना का उद्देश्य

🔵 ब्रह्मचर्य तप का प्रधान अंग माना गया है। बजरंगी हनुमान, बालब्रह्मचारी भीष्मपितामह के पराक्रमों से हम सभी परिचित हैं। शंकराचार्य, दयानन्दप्रभृति अनेकों महापुरुष अपने ब्रह्मचर्य व्रत के आधार पर ही संसार की महान् सेवा कर सके। प्राचीन काल में ऐसे अनेकों ग्रहस्थ होते थे जो विवाह होने पर भी पत्नी समेत अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।

🔵 आत्मबल प्राप्त करके तपस्वी लोग उस तप बल से न केवल अपना आत्म कल्याण करते थे वरन् अपनी थोड़ी सी शक्ति अपने शिष्यों को देकर उनको भी महापुरुष बना देते थे। विश्वामित्र के आश्रम में रह कर रामचन्द्र जी का, संदीपन ऋषि के गुरुकुल में पढ़कर कृष्णचन्द्र जी का ऐसा निर्माण हुआ कि भगवान ही कहलाये। समर्थ गुरु रामदास के चरणों में बैठकर एक मामूली सा मराठा बालक, छत्रपति शिवाजी बना। रामकृष्ण परमहंस से शक्ति कण पाकर नास्तिक नरेन्द्र, संसार का श्रेष्ठ धर्म प्रचारक विवेकानन्द कहलाया। प्राण रक्षा के लिए मारे-मारे फिरते हुए इन्द्र को महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियां देकर उसे निर्भय बनाया, नारद का जरासा उपदेश पाकर डाकू बाल्मीकि महर्षि बाल्मीकि बन गया।

🔵 उत्तम सन्तान प्राप्त करने के अभिलाषी भी तपस्वियों के अनुग्रह से सौभाग्यान्वित हुए हैं। श्रृंगी ऋषि द्वारा आयोजित पुत्रेष्टि यज्ञ के द्वारा तीन विवाह कर लेने पर भी संतान न होने पर राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए। राजा दिलीप ने चिरकाल तक अपनी रानी समेत वशिष्ठ के आश्रम में रहकर गौ चरा कर जो अनुग्रह प्राप्त किया उसके फलस्वरूप ही डूबता वंश चला, पुत्र प्राप्त हुआ। पाण्डु जब सन्तानोत्पादन में असमर्थ रहे तो व्यास जी के अनुग्रह से परम प्रतापी पांच पाण्डव उत्पन्न हुए। श्री जवाहरलाल नेहरू के बारे में कहा जाता है कि उनके पिता मोतीलाल नेहरू जब चिरकाल तक संतान से वंचित रहे तो उनकी चिन्ता दूर करने के लिए हिमालय निवासी एक तपस्वी ने अपना शरीर त्यागा और उनका मनोरथ पूर्ण किया। अनेकों ऋषि-कुमार अपने माता-पिता के प्रचण्ड आध्यात्मबल को जन्म से ही साथ लेकर पैदा होते थे और वे बालकपन में वे कर्म कर लेते थे जो बड़ों के लिए भी कठिन होते हैं। लोमश ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षत द्वारा अपने पिता के गले में सर्प डाला जान देखकर क्रोध में शाप दिया कि सात दिन में यह कुकृत्य करने वाले को सर्प काट लेगा। परीक्षत की सुरक्षा के भारी प्रयत्न किये जाने पर सर्प से काटे जाने का ऋषि कुमार का शाप सत्य ही होकर रहा।

🌹 क्रमशः जारी 🌹
🌹 सुनसान के सहचर पृष्ठ 10 🌹
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 🌹

🌿🌞🌹 🌿🌞🌹 🌿🌞🌹

क्या हमारे लिए यही उचित है ?
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ॐ||| प्रश्नोत्तर |||ॐ||| Qus→ जीवन का उद्देश्य क्या है ? Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना...

ॐ||| प्रश्नोत्तर |||ॐ|||

Qus→ जीवन का उद्देश्य क्या है ?
Ans→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!!
📒
Qus→ जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ?
Ans→ जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!!
📒
Qus→संसार में दुःख क्यों है ?
Ans→लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!!
📒
Qus→ ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ?
Ans→ ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!!
📒
Qus→ क्या ईश्वर है ? कौन है वे ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ?
Ans→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में ‘ईश्वर’ कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!!
📒
Qus→ भाग्य क्या है ?
Ans→हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!!
📒
Qus→ इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?
Ans→ रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है..
इससे बड़ा आश्चर्य ओर क्या हो सकता है..!!
📒
Qus→किस चीज को गंवाकर मनुष्य
धनी बनता है ?
Ans→ लोभ..!!
📒
Qus→ कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
Ans → अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!!
📒
Qus → किस चीज़ के खो जाने
पर दुःख नहीं होता ?
Ans → क्रोध..!!
📒
Qus→ धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ?
Ans → दया..!!
📒
Qus→क्या चीज़ दुसरो को नहीं देनी चाहिए ?
Ans→ तकलीफें, धोखा..!!
📒
Qus→ क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ?
Ans→ किसी की हाय..!!
📒
Qus→ ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है ?
Ans→मज़बूरी..!!
📒
Qus→ दुनियां की अपराजित चीज़ ?
Ans→ सत्य..!!
📒
Qus→ दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ?
Ans→ झूठ..!!
📒
Qus→ करने लायक सुकून का
कार्य ?
Ans→ परोपकार..!!
📒
Qus→ दुनियां की सबसे बुरी लत ?
Ans→ मोह..!!
📒
Qus→ दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ?
Ans→ जिंदगी..!!
📒
Qus→ दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ?
Ans→ मौत..!!
📒
Qus→ ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ?
Ans→ अपनी मूर्खता..!!
📒
Qus→ दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ?
Ans→ आत्मा और ज्ञान..!!
📒
Qus→ कभी न थमने वाली चीज़ ?
Ans→ समय.


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🌷🌻🌷🌻ओ३म्🌻🌷🌻🌷 भूपेश आर्य वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम् ।- योग० 2/33 अर्थात् यदि आप पाप से बचना चाहें...

🌷🌻🌷🌻ओ३म्🌻🌷🌻🌷

भूपेश आर्य

वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम् ।- योग० 2/33
अर्थात् यदि आप पाप से बचना चाहें तो पाप से होने वाली हानियो़ को चित्रित करके अपने मन के सामने रखा करो।


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श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की खूबसूरत पंक्तियां : (Ek Onkar) - भगवान एक है। (Satnam) - उनका नाम सत्य...

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की खूबसूरत पंक्तियां :

(Ek Onkar) - भगवान एक है।
(Satnam) - उनका नाम सत्य है।

(Kartaa Purakh) - वह पूरी दुनिया के निर्माता है।

(Nirbhau) - वह निडर है।

(Nirvair) - वह कभी किसी से नफरत नहीं करते।

(Akaal Murat) - वह समय से आगे है। वह अमर है।

(Ajooni) - वह न तो पैदा होते है और न ही मरते है।

(Saibhang) - न किसी ने उन्हें बनाया है।और न ही किसी ने उन्हें जन्म दिया। वह स्वयं बने है।

(Gurparsad) - केवल सच्चा गुरु ही हमें उनसे मिलने के लिए मदद कर सकते हैं🙏🏾


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Wednesday, November 25, 2015

प्रश्न 1. हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम क्या था ?उत्तर - हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम...

प्रश्न 1. हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम क्या था ?उत्तर - हमारे देश का प्राचीन और प्रथम नाम जम्बूदीप और आर्यावर्त था ।प्रश्न 2 हम भारतवासियो का प्राचीन नाम क्या था ?उत्तर - हम भारतवासियों का प्राचीन नाम आर्य है ।प्रश्न 3 हमारा प्राचीनतम धर्म कोनसा है ?उत्तर - हम भारतियों का प्राचीनतम वैदिक धर्म है ।प्रश्न 4 हम वैदिक धर्मियों की धार्मिक पुस्तक कोनसी है ?उत्तर - हम वैदिक धर्मियों की पुस्तक वेद है ।प्रश्न 5 वेद कितने वर्ष पुराने है ?उत्तर - वेद् 1,96,08,53,113 वर्ष पुराने है।प्रश्न चारों वेदों में कितने मन्त्र है ?उत्तर - चारों वेदों में 20379 मंत्र है । ऋग्वेद में 1055 , यजुर्वेद में 1875, सामवेद में 1875, अथर्ववेद में 5977 मंत्र है ।प्रश्न वेद की भाषा कौनसी है ?उत्तर - वेद की भाषा संस्कृत है ।प्रश्न 9 वेदों में क्या विषय है ?उत्तर - वेदों में मनुष्यों के लिए आवश्यक समस्त ज्ञान- विज्ञानं है। संक्षेप में इश्वेर ,जीव ,प्रकृति का विज्ञानं अथवाज्ञान -कर्म -उपासना का विषय है ।प्रश्न 10 वेदों का ज्ञान मनुष्यों को कैसे मिला ?उत्तर - वेदों का ज्ञान सृष्टि के आदि में ईश्वर ने चार ऋषियों को प्रदान किया । जिनका नाम अग्नि , वायु, आदित्य और अंगिरा था ।मेकाले नाम के अंग्रेज ने भारत देश में चलने वाले गुरुकुल को बंद करवा कर अंग्रेजी शिक्षा को लागु कर दिया जिसकी वजह से आज की भावी पीढ़ी को देश की असली जानकारियो से अनजान है।


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चाणक्य के १५ अमर वाक्य… १ ) ➤ दूसरों की गलतियों से सीखो… अपने ही ऊपर प्रयोग करके...

चाणक्य के १५ अमर वाक्य…

१ ) ➤ दूसरों की गलतियों से सीखो…
अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ेगी…।

२ ) ➤ किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए…
सीधे वृक्ष और व्यक्ति ही पहले काटे जाते हैं…।

३ ) ➤ अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए…
वैसे दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए…।

४ ) ➤ हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है…
यह कड़वा सच है…।

५ ) ➤ कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो…
मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ …?
इसका क्या परिणाम होगा…?
क्या मैं सफल रहूँगा…?

६ ) ➤ भय को नजदीक न आने दो…
अगर यह नजदीक आये इस पर हमला कर दो…
यानी भय से भागो मत इसका सामना करो…

७ ) ➤ दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है…

८ ) ➤ काम का निष्पादन करो…
परिणाम से मत डरो…

९ ) ➤ सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है…
पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है…

१० ) ➤ ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है…
अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ…

११ ) ➤ व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है जन्म से नहीं…

१२ ) ➤ ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ…
वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे…
समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं…

१३ ) ➤ अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो…
छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो…
सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो…
आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है…

१४ ) ➤ अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है…

१५ ) ➤ शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य
दोनों ही कमजोर है।
Don’t SAVE IN YOUR MOBILE.
*****SAVE IN YOUR BRAIN. *****


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Monday, November 23, 2015

ओउम् भूपेश आर्य~8954572491 प्रश्न१. क्या श्रीराम,श्रीक्रष्ण,हनुमान आदि ईश्वर हैं? उत्तर- ये ईश्वर...

ओउम्
भूपेश आर्य~8954572491
प्रश्न१. क्या श्रीराम,श्रीक्रष्ण,हनुमान आदि ईश्वर हैं?
उत्तर- ये ईश्वर नहीं हो सकते इनमें से किसी ने संसार नहीं बनाया।जब ये आये संसार मौजूद था।
इन्होंने तो अपने मां बाप,भाई बहन,ताऊ चाचा को भी नहीं बनाया।क्या ये संसार का पालन करने वाले हैं?
ये संसार का पालन क्या करते ,म्रत्यु इनको खा गयी शेष को खा जायेगी।कर्मों का फल ये क्या देंगे इन्हे ही अपने कर्मों के फल भोगने पडे ,राम को वनवास मिला,श्रीक्रष्ण जेल में पैदा हुए।शेष सब अपने कर्मों से भयभीत होकर सत्य का आमना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे।
प्रश्न२.स्रष्टा क्रर्ता है भी या नहीं? ईश्वर के पक्ष में युक्तियां दीजिये।ईश्वर कर्मफलदाता भी है यह कैसे सिद्ध करोगे?
उत्तर-
१.प्रत्येक बनी वस्तु का बनाने वाला होना चाहिए।
दीवार का बनाने वाला राज प्रत्यक्ष है,स्रष्टि का बनाने वाला ईश्वर केवल दिखता नहीं है।
२.सूर्य समय पर उदय होता है।आज से एक हजार साल बाद सूर्योदय,चन्द्रोदय,ज्वार भाटा,कब होंगे,मजे से बताया जा सकता है क्योंकि संसार एक नियम में बंधा चल रहा हैं।h2o से पानी बनता है,गन्धक का तेजाब नहीं।साइंस के समस्त फार्मूले इसी आधार पर स्थित है क्योंकि प्रक्रति में नियम है।जहां जहां कोई नियम होता है वहां वहां उस नियम का नियामक या नियन्ता अवश्य होना चाहिए।नियम नियन्ता के बिना नहीं चलते।
३. आदि स्रष्टि में परमाणु मौजूद थे।उन परमाणुओं को प्रथम गति देने वाला कोई चाहिये।परमाणु स्वयं जड हैं,स्वयं गति नहीं दे सकते।
४.फल पेट भरने के लिए ,दूध बच्चे का पोषण करने के लिए,वनों में बिखरी औषधियां मानव के रोग निवारण के लिए,बच्चे के जन्म के साथ माता के स्तनों में दूध आना,ये समस्त बातें यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि स्रष्टि का कोई उद्देश्य है यह अटकल पच्चु नहीं है।
इसके पीछे कोई ज्ञानवान सत्ता चाहिए।जड प्रक्रति लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकती।
५.आदमी के नाक,कान,मुख कितने सलोके से बने हैं,तितलियों के पंखों में मखमली रंग भरे हैं,फूलों में क्या सुगन्ध भरी है,उदय व अस्त होते सूरज का द्रश्य मानव का मन मोह लेता है।प्रत्येक रचना में एक अनूठापन है।
ये अनूठापन रचनाकार के अस्तित्व को सिद्ध करता है।
६.जन्मजात बच्चों के ग्रुपों में अलग थलग रखकर तजुर्बे किये गये।बीस बीस
बरस के हो जाने पर भी कोई भी भाषा वे न बोल सकते थे।क्योंकि मानव भाषा तो नकल से सीखता है।भाषा बना नहीं सकती।जैसा मां बोलती है वह भी बोलता है।वातावरण की भाषा बोलता है।आदि स्रष्टि में जब भाषा बोलने वाला मानव था ही नहीं तब मानव ने किस भाषा की नकल की थी।उसे वाणी जिसने दी उसका नाम ईश्वर है।आदि स्रष्टि में भाषा ईश्वर देता है।
७.संसार में आज ज्ञान है।ज्ञान का ऐसा स्रोत होना चाहिए जहां से रिसकर ये ज्ञान हम तक पहुंचा हो ।
आदि स्रष्टि में तो भाषा भी नहीं थी,ज्ञान ही कहां से आता।यदि ज्ञान आत्मा है तो भाषा उसका शरीर है।ज्ञान, बिना भाषा के,रह नहीं सकता।
जिसने भाषा दी उसी ने ज्ञान दिया।ज्ञान के उस आदि स्रोत का नाम ईश्वर है।
८.अष्टांग योग के द्वारा लाखों योगियों ने उस स्रष्टिकर्ता को प्रत्यक्ष किया है।
ईश्वर कर्म फलदाता है:-
एक बच्चा जन्म से अन्धा पैदा होता है,दूसरा सनेत्र।एक लंगडा दूसरा सही साबुत।एक पागल,दूसरा कुशाग्र बुद्धि।कोई लखपति के घर में पैदा हो गया,कोई कंगाल के घर में।कौन चाहता है कि मैं अंधा लंगडा,लूला पैदा होता या कंगाल के घर में जन्म लेता? परन्तु ऐसा होता है।
मानव पाप कर्मों के करने के पश्चात् कभी उनका फल भोगना नहीं चाहता परन्तु वह शक्तिशाली न्यायधीश ईश्वर उसे सजा भोगने के लिए अन्धे,लंगडे,लूले कलेवरों में जन्म देता है।अमीरों और गरीबों के घर में जन्म देता है।
मनुष्य के किये गये अच्छे बुरे कर्म स्वयं जड होने के कारण फल नहीं दे सकते।
स्रष्टिकर्ता ईश्वर निराकार है या साकार ? सिद्ध करो।
उत्तर:-
१.ईसाई,मुसलमान,पारसी,सिख,पौराणिक,आर्यसमाजी यह सब मानते हैं कि ईश्वर आंखों से दिखाई नहीं देता,यानि निराकार तो है ही।इतने से ही सिद्ध हो गया।
२.प्रकाश की गति १८६००० मील प्रति सेकिंड है।यदि हम दियासलाई की एक तिल्ली जलायें तो एक सैकिंड बाद उसका प्रकाश १८६००० मील तक फैल जायेगा।सूर्य हमसे इतना दूर है कि वहां का प्रकाश लगभग नौ मिनट में पहुंचता है।हमारी प्रथ्वी का घेरा २५००० मील का है।
यह सूर्य इतना बडा है कि हमारी प्रथ्वी जैसी १३ लाख प्रथ्वियां इसमें समा जाएं।परन्तु हमारा यह सूर्य कुछ बडा नहीं है।ज्येष्ठा नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य के व्यास से ४५० गुणा है।
यानि हमारे सूर्य जैसे नौ करोड सूर्य एक ज्येष्ठा नक्षत्र में समा जायेंगे।
हमारी आकाश गंगा के पास दूसरी आकाश गंगा में एक अन्य नक्षत्र है “एसडोराडस” ।
एक लाख छियासी हजार मील प्रति सैकिंड की गति से भागता हुआ प्


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🌷🌹🌷🌹🌷🌹ओ३म्🌷🌹🌷🌹 भूपेश आर्य उच्छनुषसः सुदिना अरिप्रा,उरु ज्योतिविविदुर्दीध्यानाः । गव्यं...

🌷🌹🌷🌹🌷🌹ओ३म्🌷🌹🌷🌹

भूपेश आर्य

उच्छनुषसः सुदिना अरिप्रा,उरु ज्योतिविविदुर्दीध्यानाः ।
गव्यं चिदूर्वमुशिजो,विवर्वुस्तेषामनु प्रदिवः सस्नु रापः ।। ऋ०७/९०/४

अर्थ-प्रकाश का,ज्ञान का विस्तार करने वाले सुन्दर दिनों वाले समय को सुन्दर ढंग से बिताने वाले पापरहित निर्दोष,प्रभु कआ निरन्तर ध्यान करने वाले ,महती ज्योति को प्राप्त करते हैं।सुन्दर कामना वाले विषेश रुप से वरण करते हैं।उनके ज्ञान प्रकाश के अनुकूल जल बहने लगते हैं,शान्ति की धाराएं संसार में बहने लगती हैं।

सारांश-
(१) उषसः उच्छन्-प्रभु भक्त का पहला लक्षण यह है कि वह अविद्या,अज्ञान,अन्धकार का नाश कर ज्ञान तथा प्रकाश का विस्तार करता है।

(२)-सुदिनः-प्रभु भक्त का दूसरा गुण है कि वह कभी समय को व्यर्थ नष्ट नहीं करता,समय का सदुपयोग करता है अथवा निद्रा,निन्दा,कलह,क्लेश आदि में समय व्यतीत नहीं करता।

(३) अरिप्राः-प्रभु भक्त शारिरिक वाचिक,मआनसिक सब प्रकार के पापों तथा व्यसनों से रहित होकर निष्पाप एवं निर्दोष जीवन व्यतीत करता है।

(४) दीध्यानाः-प्रभु भक्त निरन्तर प्रभु के गुणों कआ चिंतन वा धारण करने वाला होता है।उपासना द्वारा यथेष्ठ रुप से उसका ध्यान करता है।

(५) विविदुः-प्रभु भक्त अन्त में उसकी ज्योति को प्राप्त कर लेता है।

(६) उशिजः-प्रभु भक्त सबका हित,कल्याण,भद्र चाहता है।सबके भले में अपना भला,सबकी उन्नति में अपनी उन्नति चाहता है।क्योकि वह स्वभाव से ही सुन्दर,उत्तम और भद्र भावना युक्त होता है।

(७) गव्यं ऊर्जम् विबव्रु-प्रभु भक्त इन्द्रियों को अपने वश में रखता है।स्वयं कभी उनके वश में नहीं होता,अतः इन्द्रियों के विशाल और महान बल को प्राप्त कर लेता है।

(८) वह स्वयं शान्त होता है और संसार में शान्ति की धाराओं को बहाने वाला होता है।शान्ति का धारक व प्रसारक होता है।
🌻🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷


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🌻🌻🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻🌻 भूपेश आर्य 🌷दिव्य ओषधियां🌷 🌼आरोग्याम्बु-एक लीटर पानी को ओटाने से 250 ग्राम रह जाये...

🌻🌻🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻🌻

भूपेश आर्य

🌷दिव्य ओषधियां🌷

🌼आरोग्याम्बु-एक लीटर पानी को ओटाने से 250 ग्राम रह जाये तो उसे आरोग्याम्बु कहते हैं।इसे पीने से खांसी,दमा और कफ के रोग दूर होते हैं।बुखार शीघ्र उतर जाता है।भूख लगाता है।खायी वस्तु तुरन्त पच जाती है।बवासीर,पाण्डुरोग,वायुगोला और हाथ पांवों की सूजन को दूर करता है।
इस प्रकार के जल का सदा प्रयोग किया जाये तो रोग उत्पन्न ही नहीं होते।

🌼भूंई आंवला १० ग्राम को घोट पीसकर पानी में मिलाकर पिला दें।पीलिया तीन दिन में ही निर्मूल हो जाता है।
कुछ दिन सेवन करने से पथरी भी गलकर निकल जाती है।

🌼पीलिया-जवान आदमी को 3 ग्राम चूना बिना बुझा केले की पकी फली में रखकर खिला दें।ऊपर से और केले खायें।इससे पाण्डु रोग जाता रहता है।बच्चों को 1 ग्राम दें।

🌼असगन्ध और विधारा दोनों को समभाग लेकर चूर्ण बना ल़े।फिर दोनों के बराबर मिश्री मिला लें।३-६ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन दूध या पानी के साथ खिलायें।यह चूर्ण शरीर को सशक्त बनाता है।इसके निरन्तर प्रयोग से बुढ़ापा,चेहरे और शरीर की झुर्रियां,गठिया और दर्द की शिकायत जाती रहती है।
बाल शीघ्र सफेद नह़ी होते।स्त्री पुरुष सबके लिए एकसमान लाभकारी है।

🌼बाल काले-काले तिल २५० ग्राम,गुड़ २५० ग्राम-दोनों को अच्छी प्रकार कूट ल़ें।५० ग्राम प्रतिदिन खायें।३ मास तक निरन्तर सेवन करें।इसके सेवन से शरीर म़े शक्ति आयेगी,बल बढ़ेगा,बहुमूत्र दूर होगा,केश काले होंगे।

२.इन्द्रायण के बीजों के तेल कीशिर पर नित्य मालिश करने से बइल भौरे के समान काले हो जाते हैं।

🌼लहसुन का रस पिलाने से कैंसर नष्ट होता है।

🌼गर्भवती के वमन-गर्भवती के वमन जब किसी भी ओषधि से बन्द न होते हों तो बेर की गुठली को फोडकर उसकी मिंगी निकालकर पानी के साथ निगलवा दें।वमन तुरन्त बन्द हो जायेंगी।

🌼गर्भ से बच्चा निकालना-जिस स्त्री को प्रसव पीड़ा हो रही हो,उसे भैंस का गोबर ६ ग्राम,और शहद १२ ग्राम -दोनों को पानी म़े मिलाकर पिला दें।बच्चा जीवित अथवा मृत तुरन्त बाहर आ जायेगा।

🌼डिपथीरिया व कैंसर-डीकामाली(नाड़ीहिंगु) २५ ग्राम लेकर कूट पीसकर कपड़छन करके शीशी में भर लें।बस दवा तैयार है।

कोई भी पान लेकर उसे अच्छी प्रकार धोकर कपड़े से पौंछ ले।अब इस बिना लगे हुए पान पर पिंगला हुख शुद्ध घी अंगुली से चुपड़ दें।और दो ग्राम उक्त दवा का चूर्ण(डीकामाली) बुरक दें।पान का बीड़ा बनाकर रोगी को दें।उससे कहें कि जी कड़ा करके पान को चबाते जाओ और रस को निगलते जाओ।जब रोगी रस को चूस ले तो पान के बीड़े को भी निगलवा दें।इस एक ही बीड़े से ५० प्रतिशत पीड़ा समाप्त हो जाती है।३-३ घण्टे के पश्चात् दो बीड़े और खिला दें।३ बीड़ों से डिपथीरिया समाप्त हो जाता है।आवश्यकता हो तो चौथा भी दे सकते हैं।

दवा क्या है,अमृत है।रोगी एक ही दिन में स्वस्थ हो जाता है।डिपथीरिया के सारे उपद्रव शांत हो जाते हैं।

यही प्रयोग कैंसर का भी अचूक इलाज है।प्रतिदिन ४-४ बीड़े खिलाओ और कैंसर जैसे भयंकर रोग से मुक्ति पाओ।हां,इलाज लम्बा चलेगा।३ से ६ मास तक निरन्तर प्रयोग करें।लाभ १ मास में ही आरम्भ हो जायेगा।


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Sunday, November 22, 2015

[11/21, 9:27 AM] ‪+91 94263 38609‬: ६ मार्गशीर्ष 21 नवंबर 2015 😶 “ हे मेरे...

[11/21, 9:27 AM] ‪+91 94263 38609‬: ६ मार्गशीर्ष 21 नवंबर 2015

😶 “ हे मेरे आत्मन् ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् पश्वा न तायुं गुहा चतन्तं नमो युजानं नमो वहन्तम् । 🔥🔥
🍃🍂 सजोषा धीरा: पदैरनु ग्मत्रुप त्वा सीदन् विश्वे यजत्रा: ।। 🍂🍃

ऋक्० १ । ६५ । १

ऋषि:- पराशर: शाक्त्य ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- द्विपदाविराट् ।।

शब्दार्थ- हे अग्ने!
पशु के, दर्शन-शक्ति के साथ चोर की तरह गुहा में, हृदय-गुहा में, गये हुए और वहाँ अत्र व नमस्कार से युक्त होते हुए तथा उस अत्र व नमस्कार को धारण करते हुए तुझको मिलकर प्रीति तथा सेवन करनेवाले धैर्यशील ज्ञानी लोग पदचिन्हों, प्रीति-साधनों द्वारा पीछा करते हैं, खोजते हैं और खोजकर वे सब यजनशील लोग तुझे, तेरी उपासना करते हैं।

विनय:- मैं तुझे कैसे ढूँढू? हे मेरे अग्ने! आत्मन्! तू मुझसे छिपकर न जाने कहाँ जा बैठा है, किस गहन गुफा में जा छिपा है? जैसे, जब कोई चोर किसी के पशु को चुरा ले जाता है और कहीं पहाड़ की गुफा में जा छिपता है तो पशुवाला अपने पशु को घर पर न पाकर ढूँढ मचाने लगता है, उसी तरह जबसे मुझे पता लगा है कि मेरे ‘पशु’-मेरी दर्शन-शक्ति खो गई है तब से मैं हे आत्मन्! तुझे ढूँढने लगा हूँ।
कहते हैं कि तू मेरे ही अन्दर मेरी 'हृदय की’ कहानेवाली किसी गम्भीर गुफा में छिपा पड़ा है; कहते हैं कि तू वहाँ ही अपने अत्र को, नमस्कार को पाता है और उसे स्वीकार भी करता रहता है; पर फिर भी तू मुझे दर्शन नहीं देता, मिलता नहीं। जो धीर पुरुष होते हैं, जो लगातार यत्न करते जानेवाले ज्ञानी पुरुष होते हैं तथा जो परस्पर मिलकर प्रीति और सेवन करनेवाले कर्मशील होते हैं, वे तुझे पदों द्वारा, तेरे पदचिन्हों द्वारा खोजने लग जाते हैं। प्रतिदिन सुषुप्ति, संध्या, मृत्यु की घटनाओं में जो तेरे पदचिन्ह चमकते है , इन्द्रियों में जो तेरे पदचिन्ह पड़े हैं उनसे तेरा अनुमान करते हैं। इस प्रकार खोजते-खोजते अन्त में ये यजन के अभिलाषी तुझे पा लेते हैं और ये यजनशील लोग मिलकर तेरी उपासना करने लगते हैं। क्या मैं भी कभी, हे मेरे आत्मन्! तुझे पाकर, 'यजत्र’ बनकर तेरी उपासना में बैठ सकूँगा?

🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
[11/21, 9:20 PM] ‪+91 89545 72491‬: 🌷🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷

भूपेश आर्य

मनुस्मृति-

प्रत्यग्निं प्रतिसूर्यं च प्रतिसोमोदकद्विजान्।
प्रतिगां प्रतिवातं च प्रज्ञा नश्यति मेहतः ।। ४/५२
अग्नि,सूर्य,चन्द्र,जल,ब्राह्मण,आदि गौ और वायु इनके सम्मुख इनके सम्मुख मूत्र करने वाले की बुद्धि नष्ट हो जाती है।

लोष्ठमर्दी तृणच्छेदी नखखादी च यो नरः ।
स विनाशं व्रजत्याशु सूचकोअशुचिरेव च ।। ४/७१ ।।
ढेले का मसलने वाला,तृण का छेदने वाला,और नखों के चबाने वाला मनुष्य शीघ्र नाश को प्राप्त हो जाता है और चुगलखोर तथा अपवित्र भी।

न संहताभ्यां वाणिभ्यां कण्डयेदात्मनः शिरः ।
न स्पृशेच्चैतदुच्छिष्टो न च स्नायाद्विना ततः ।। ४/८२।।
दोनों हाथों से एक साथ अपना सिर न खुजावे और झूठे हाथों से सिर को न छूवे और बिना सिर पर पानी डाले स्नान न करे।

वैरिणं नोपसेवेत सहायं चैव वैरिणः।
अधार्मिकं तस्करं च परस्यैव च योषिताम् ।। ४/१३३ ।।
न हीदृशमनायुष्यं लोके किञ्चन विद्यते ।
यादृशं पुरुषस्येह परदारोपसेवनम् ।।४/१३४।।
शत्रु और उसके सहायक से और अधर्मी,चोर और पराई स्त्री से मेल न रक्खे।।
इस प्रकार का आयु क्षय(घटाने वाला)करने वाला संसार में कोई कर्म नहीं है,जैसा (मनुष्य की आयु घटाने वाला)दूसरे की स्त्री का सेवन है।

नात्मानमवमन्येत पूर्वाभिरसमृद्धिभिः ।
आमृत्योः श्रीयमन्विच्छेन्नैनां मन्येतं दुर्लभाम् ।। ४/१३७ ।।
यत्न करने से द्रव्य न मिले तो भी अपने को अभागा कहकर अपना अपमान न करे,किन्तु मरने तक सम्पत्ति के लिए यत्न करे;इसको दुर्लभ न जाने।।

दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः ।
दुःखभागी च सततं व्याधितोअल्पायुरेव च ।।४/१५७ ।।
दुष्ट आचरण करने वाला पुरुष लोक मे निन्दित,दुःख का भागी,निरन्तर रोगी रहता तथा अल्पायु भी होता है।

यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत् ।
यद्यदात्मवशं तु स्यात्तत्तत्सेवेत यत्नतः ।। ४/१५९ ।।
सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् ।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ।। ४/१६० ।।
जो जो कर्म दूसरे के आधीन हैं उन उनको यत्न से छोड़ देवे और जो जो अपने आधीन है उनको यत्न से करे।।
दूसरे के आधीन होना ही सम्पूर्ण दुःख है और स्वाधीनता ही सम्पूर्ण सुख है।यह सुख दुःख का स़क्षिप्त लक्षण जानें।
[11/22, 7:31 AM] ‪+91 89545 72491‬: 🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷

भूपेश आर्य

🌻वाचक प्रणव अर्थात् ओ३म्🌻

ओ३म् नाम अक्षर अविनाशी।
घट घट व्यापक आनन्द राशि।।
सर्व दुःखों का ओषध नाम।
ओ३म् नाम जप सुबह और शाम।।
ओ३म् नाम आनन्द प्रदाता।
बन्धु सखा भ्राता पितु माता।।
सच्चा मित्र है केवल नाम।
ओ३म् नाम मुक्ति का धाम।।
ओ३म् नाम सबसे बड़ा इससे बडा ना कोय।
जो इसका सिमरन करे शुद्ध आत्मा होय।।
ओ३म् नाम ह्रदय में धार।
जिसकी महिमा अपरम्पार।।
ऋद्धि सिद्धि का दाता ओ३म्।
विघ्न विनाशक त्राता ओ३म्।।
इसमें त्राटक खूब लगाओ।
मन वाछित फल आनन्द पाओ।।
अन्तर ज्ञान की ज्योति जगाओ।
पाप ताप सन्ताप मिटाओ।।
निर्मल मन में प्रकट हो,ज्योति निरन्तर ज्ञान।
निर्मल मन म़े उपजे,सकल ज्ञान विज्ञान।।
ओ३म् नाम से निर्मल ज्ञान।
ओ३म् नाम सबमें प्रधान।।
ओ३म् नाम निज नाम प्रभु का।
ओ३म् नाम है सबसे ऊंचा।।
ओ३म् नाम उपमा नहीं पावे।
ओ३म् नाम सुगुणी जन गावे।।
ओ३म् नाम जपना बिन पाप।
ओ३म् नाम हरे तीनों ताप।।
ओ३म् नाम अक्षर परम,ओ३म् नाम है ब्रह्म।
ओ३म् नाम के जाप से,छूटे भव-भय-भ्रम।।


ओ३म् हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
योअसावादित्ये पुरुषः सोअसावहम् ।ओ३म् खं ब्रह्म ।।( यजुर्वेद मंत्रः 40/17)
भावार्थ-सब मनुष्यों के प्रति ईश्वर उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! जो मैं यहां हूं वही अन्यत्र सूर्यादि लोक में हूं वही यहां हूं।सर्वत्र परिपछर्ण आकाश के तुल्य व्यापक मुझसे भिन्न कोई बडा नहीं।मैं ही सबसे बडा हूं।मेरे सुलक्षणों से युक्त पुत्र के तुल्य प्राणों से प्यारा मेरा निज नाम “ओ३म्” है।
जो मेरी प्रेम और सत्याचरण से शरण लेता है,अन्तर्यामी रुप से मैं उसकी अविद्या का नाश करके उसके आत्मा का प्रकाश करके शुभ गुण कर्म स्वभाव वाला कर सत्य स्वरुप का आवरण स्थिर कर योग से हुए विज्ञान को और सब दुःखों से अलग करके मोक्ष सुख को प्राप्त कराता हूं।
🌻🌻🌻🌷🌷🌷🌻🌻🌻🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌷🌻


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कामी कीड़ा नरक का, युग-युग होत विध्वंस।। मनुष्य जाति को सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है क्यूंकि इसी शरीर में...

कामी कीड़ा नरक का, युग-युग होत विध्वंस।।
मनुष्य जाति को सबसे श्रेष्ठ कहा जाता है क्यूंकि इसी शरीर में वो साधन हैं जिनका सहारा लेकर जीव संसार को भोगकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसलिए इस देह को बुद्धिमानो ने पवित्र बताया।
आईये विचार करते हैं:-
किसी वस्तु की पवित्रता उसके उपयोग पर निर्भर है, यदि विष उपयोगी है तो रोगी के लिए वह भी पवित्र है; अन्यथा अमृत भी विष समान अपवित्र है।
यथा:–शरीर जब तक उपयोग,उपभोग योग्य रहता है तब तक लोग इसे चाहते हैं,आसक्त रहते हैं और साथ देते हैं। परन्तु जब उसमे सामर्थ्य नही रहता तो वह जीवात्मा भी साथ छोडकर चला जाता है जिसका जीवन भर इसी देह ने साथ दिया था।
कोई भी तो बुढ़ापे में ढीली नसों वाले झुके हुए शरीर को देखकर कोई आसक्त नहीं होता बल्कि उनकी उसी देह से उत्पन्न सन्तान उन्हें हेय दृष्टी से देखती है। क्या इस देह को कभी युवावस्था में किसी ने नही चाहा होगा। जरुर… पर अंतर इतना है कि अब इस शरीर का वो रूप सामने आ गया जो वास्तविक है और बहुत ऐसी चीजो से भरा है जिनके निकट से भी गुजरना किसी को गंवारा नही होता।
भला इसी में है कि हम इस देह को बस उपयोग योग्य साधन समझकर प्रयोग करें संसार हित और अध्यात्म के लिए; किसी के शरीर में इतना आसक्त न हों कि तात्विक विवेक ही लोप हो जाये।
असल में हम अपनी प्रेम या प्रेमिका को भी रुग्ण हालत में देख लें तो सारा प्रेम रफूचक्कर हो जाता है; उबकाई आने लगती है।
भला इसी में है कि हम सतर्क रहकर स्वयं को जांचते रहें; वासना थोडा बहाए तो भी लिप्त न हो; बस साथी बनकर साथ निभाते चलें।। ॐ।।


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॥ सामवेद ॥ [ ] ॥ ओ३म् ॥ अग्निमिन्धानो मनसा धियं सचेत मर्त्यः । अग्निमिन्धे विवस्वभिः ॥ [ ] ॥सामवेद ।...

॥ सामवेद ॥
[ ] ॥ ओ३म् ॥ अग्निमिन्धानो मनसा धियं सचेत मर्त्यः । अग्निमिन्धे विवस्वभिः ॥
[ ] ॥सामवेद । पूर्वार्चिक: । आग्नेयकाण्डम् ।प्रथमोSध्याय: । प्रथमप्रपाठकस्य प्रथमोSर्ध: । द्वितीया दशति: । मन्त्र ९ ॥
[ ] अर्थ :- हे प्रभु ! आप अपने भक्तों को अग्रगामी बनाते है ! आपके द्वारा प्रदत्त ज्ञानप्रकाश से , अपने ह्रदय को प्रदीप्त करते हुए , मन के द्वारा मनन चिंतन करके ज्ञानपूर्वक कर्मों का सेवन करें हम समस्त मानवजाती । अपने भक्तो को प्रगति पथ पर लेचलनेवाले प्रभु ! ज्ञानियों के सत्संग के द्वारा आप हमारे ह्रदय को अपने द्वारा प्रदत्त ज्ञानप्रकाशसे हमारे हृदय को प्रदीप्त कीजिए ।


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Friday, November 20, 2015

है भूमण्डल में भारत देश महान।। (~भारत चालीसा या ।। गौरव-गान।। आर्य कवि पंडित जगदीशचन्द्र...

है भूमण्डल में भारत देश महान।।
(~भारत चालीसा या ।। गौरव-गान।।
आर्य कवि पंडित जगदीशचन्द्र ”प्रवासी“)

10-बालगण

जिनके नन्हें मुन्हें बालक भी जग में रणधीर हुए।

ध्रुव, प्रहलाद, श्रवण, लव, कुश, अभिमन्यु, रोहित वीर हुए।।

जिनके सर से रण में पैदा पावक, नीर, समीर हुए।

महारथी भी जिनके आगे भागे और अधीर हुए।।

मात गर्भ में ही सुन महिमा चक्रव्यूह वर-वीर हुए।

बालक होकर भी जो इतने धीर, वीर गम्भीर हुए।।

सनक, सनन्दन, संत, सनातन, नचीकेता मति-धीर हुए।

पूतना को जिसने मारा, वह भी शिशु यदुवीर हुए।।

बाल समय में ही बजरंगी, पद पाया हनुमान।

है भूमण्डल में भारत देश महान।।

(~अब केवल सात दिनों में मुझसे जुड़ा हर व्यक्ति इस काव्य को सुन पाएगा.. तीन लाख ₹ की लागत से निर्मित यह प्रकल्प विश्वभर में सभी के लिए आर्यवीर प्रकाशन द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध किया जाएगा.. “आर्यवीर”)


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Wednesday, November 18, 2015

🇮🇳जीवनोपयोगी प्रश्नोत्तरी 🇮🇳 1-सुबह उठ कर कैसा पानी पीना चाहिए उत्तर हल्का गर्म 2–पानी पीने...

🇮🇳जीवनोपयोगी प्रश्नोत्तरी 🇮🇳
1-सुबह उठ कर कैसा पानी पीना चाहिए
उत्तर
हल्का गर्म
2–पानी पीने का क्या तरीका होता है
उत्तर
सिप सिप करके व
नीचे बैठ कर
3 -खाना कितनी बार चबाना चाहिए
उत्तर
32 बार
4– पेट भर कर खाना कब खाना चाहिए
उत्तर
सुबह
5–सुबह का खाना कब तक खा लेना चाहिए
उत्तर
सूरज निकलने के ढाई घण्टे तक
6–सुबह खाने के साथ क्या पीना चाहिए
उत्तर
जूस
7 -दोपहर को खाने के साथ क्या पीना चाहिए
उत्तर
लस्सी/छाछ
8 -रात को खाने के साथ क्या पीना चाहिए
उत्तर
दूध
9 -खट्टे फल किस समय नही खाने चाहिए
उत्तर
रात को
10 -लस्सी खाने के साथ कब पीनि चाहिए
उत्तर
दोपहर को
11 -खाने के साथ जूस कब लिया जा सकता है।
उत्तर
सुबह
12 -खाने के साथ दूध कब ले सकते है
उत्तर
रात को
13 -आईसक्रीम कब कहानी चाहिए
उत्तर
कभी नही
14- फ्रीज़ से निकाली हुई चीज कितनी देर बाद कहानी चाहिए
उत्तर
1 घण्टे बाद
15-क्या कोल्ड ड्रिंक पीना चाहिए
उत्तर
नही
16 -बना हुआ खाना कितनी देर बाद तक खा लेना चाहिए
उत्तर
40 मिनट
17–रात को कितना खाना खाना चाहिए
उत्तर
न के बराबर
18 -रात का खाना किस समय कर लेना चाहिए
उत्तर
सूरज छिपने से पहले
19 -पानी खाना खाने से कितने समय पहले पी सकते हैं
उत्तर
48 मिनट
20-क्या रात को लस्सी पी सकते हैं
उत्तर
नही
21 -सुबह खाने के बाद क्या करना चाहिए
उत्तर
काम
22 -दोपहर को खाना खाने के बाद क्या करना चाहिए
उत्तर
आराम
23 -रात को खाना खाने के बाद क्या करना चाहिए
उत्तर
500 कदम चलना चाहिए
24 -खाना खाने के बाद हमेशा क्या करना चाहिए
उत्तर
वज्र आसन
25 -खाना खाने के बाद वज्रासन कितनी देर करना चाहिए
5-10मिनट
26 -सुबह उठ कर आखों मे क्या डालना चाहिए
उत्तर
मुंह की लार
27 -रात को किस समय तक सो जाना चाहिए
उत्तर
9-10बजे तक
28- तीन जहर के नाम बताओ
उत्तर
चीनी मैदा सफेद नमक
29 -दोपहर को सब्जी मे क्या डाल कर खाना चाहिए
उत्तर
अजवायन
30 -क्या रात को सलाद खानी चाहिए
उत्तर
नहीं
31 -खाना हमेशा कैसे खाना चाहिए
उत्तर
नीचे बैठकर व खूब चबाकर
32 -क्या विदेशी समान खरीदना चाहिए
उत्तर
कभी नही
33 -चाय कब पीनी चाहिए
उत्तर
कभी नहीं
33- दूध मे क्या डाल कर पीना चाहिए
उत्तर
हल्दी
34–दूध में हल्दी डालकर क्यों पीनी चाहिए।
उत्तर
कैंसर ना हो इसलिए
35 -कौन सी चिकित्सा पद्धति ठीक है
उत्तर
आयुर्वेद
36 -सोने के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए
उत्तर
अक्टूबर से मार्च (सर्दियों मे)
37–ताम्बे के बर्तन का पानी कब पीना चाहिए
उत्तर
जून से सितम्बर(वर्षा ऋतु)
38 -मिट्टी के घड़े का पानी कब पीना चाहिए
मार्च से जून (गर्मियों में)
39 -सुबह का पानी कितना पीना चाहिए
उत्तर
कम से कम 2-3गिलास
40 -सुबह कब उठना चाहिए
उत्तर
सूरज निकलने से डेढ़ घण्टा पहले।
1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।
2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं
3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है
4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।
5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।
6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।
7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।
8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।
9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ीआंत सिकुड़ जाती है।
10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।
11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।
12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।
13- दूध(चाय) के साथ नमक(नमकीन
पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।
14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।
15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और
शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।
16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।
17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।
18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़
की हड्डी को हानि होती है।
19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।
20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।
21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।
22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।
23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।
24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।
25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।
26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।
27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औशधियां हैं।
28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।
29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।
30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।
31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएं
आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।
32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।
33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।
34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।
35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात्
उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।। 36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100% कांसे के बर्तन
में 97% पीतल के बर्तन में 93% अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।
37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।
38- 14 वर्श से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि)
कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।
39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।
40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।
41- सरसों, तिल,मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और
वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।
42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।
43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।
44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है।
हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।
45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।
46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।
47-बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।
48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर
दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना)
49- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।
50- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद और अच्छा(ताजा) भोजन अत्यन्त
आवश्यक है।
51- देर रात तक जागने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। भोजन का पाचन भी ठीक से नहीं हो पाता है आँखों के रोग भी होते हैं।
52- प्रातः का भोजन राजकुमार के
समान, दोपहर का राजा और रात्रि का भिखारी के समान।🙏😊

👉आशा हे केवल फॉरवर्ड करने के अलावा स्वयं के परिवार में भी इसे लागु करेंगे।


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🌻🌷🌻🌷🌻🌷ओ३म्🌻🌷🌻 भूपेश आर्य 🌷 प्रभु का आदेश व कार्य 🌷 अहमेव स्वयमिदं वदामि। जुष्टं देवानामुत...

🌻🌷🌻🌷🌻🌷ओ३म्🌻🌷🌻

भूपेश आर्य

🌷 प्रभु का आदेश व कार्य 🌷

अहमेव स्वयमिदं वदामि। जुष्टं देवानामुत मानुषाणाम् ।
यं कामये तन्तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणंतमृषिं तं सुमेधाम् ।। (अथर्व० ४/३०/३)

देवों और मनुष्यों के ग्रहण करने योग्य इस उपदेश को मैं स्वयं कहता हूं कि जिस जिस को मैं क्रमानुसार चाहता हूं उस उस को उग्र बलवान,उसको ब्रह्मा अर्थात् चारों वेदों का ज्ञानवान्,उसको मन्त्र दृष्टा ऋषि,उसको सुमेधा-धारणावती बुद्धि से युक्त करता हूं।

मया सो अन्नमत्ति यो विपश्मति यः प्राणति य ईं श्रृणो त्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उपक्षियन्ति श्रु धिश्रुत् श्रद्धेयं ते वदामि ।।-(अथर्व० ४/३०/४)

जो कोई अन्न खाता है,जो कोई देखता है।जो कोई प्राण लेता है।जो कोई कहे हुए को सुनता है।मेरे द्वारा ही वह खाता,देखता,प्राण लेता और सुनता है।हे सुनने वाले तेरे लिए श्रद्धा करने योग्य वचन कहता हूं उसे सुन।जो मुझे नहीं मानते,नास्तिक हैं वह नष्ट हो जाते हैं।


सारांश-
(1) मनुष्यों का और देवों का सबका भगवान ही सेवन करने योग्य है,उपासना करने योग्य है।

(2) वह ईश्वर ही अपने अपने कर्मानुसार ,मनुष्य को बलवान,विद्वान,ऋषि और मेधावी बनता है।

(3) जीवों का खाना-पीना,देखना-सुनना,जीवन धारण करना उसी प्रभु के आधीन है।

(4) जो प्रभु की कृपाओं का मनन नहीं करते,चिन्तन नहीं करते,नास्तिक हैं।वह उनका नाश कर देता है।

(5) प्रभु विमुख,वेद विरोधी,ब्राह्मण विद्वेषी और हिंसक का वह नाश कर देता है।

(6) ईश्वरीय वाणी ही श्रद्धा करने योग्य है क्योकि वह सत्य को धारण करने वाली है।

(7) वह ईश्वर,द्यौलोक,पृथ्वीलोक,ओर सर्वत्र व्यापक हो रहा है।

(8) वह सबका सुख,शान्ति और आनन्द प्रदाता है।
🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷


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🌷🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷🌷 भूपेश आर्य ईश न्याय द्रढ खरा अटल,वहां न रिश्वत घूस सफल। जिसने बेच दिया ईमान,करो...

🌷🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷🌷

भूपेश आर्य


ईश न्याय द्रढ खरा अटल,वहां न रिश्वत घूस सफल।
जिसने बेच दिया ईमान,करो नहीं उसका गुणगान।
अनाचार बढता है कब,सदाचार चुप रहता जब।
अधिकारों का वह हकदार,जिसको कर्तव्यों से प्यार।
अपना अपना करो सुधार,तभी मिटेगा भ्रष्टाचार।
जब तक नहीं चरित्र विकास,तब तब कर्मकाण्ड उपहास।
व्यसनों की लत जिसने डारी,अपने पैर कुल्हाडी मारी।
पाण्डव पांच हमें स्वीकार,सौ कौरव धरती के भार।
गंदे फूहड चित्र हटाओ,मां-बहनों की लाज बचाओ।
शुभ अवसर का भोजन ठीक,म्रतक भोज है अशुभ अलीक।
ईश्वर ने इंसान बनाया,ऊंच-नीच किसने उपजाया।
शासक जहां चरित्र हीन,वहीं आपदा नित्य नवीन।
शिक्षा समझा वही सफल,जो कर दे आचार विमल।
ईश्वर तो है केवल एक,लेकिन उसके नाम अनेक।
वही दिखाते सच्ची राह,जिन्हें न पद-पैसे की चाह।
अपनी गलती आप सुधारे,अपनी प्रतिभा आप निखारें।
अधिक कमायें अधिक उगायें,लेकिन बांट बांट कर खाएं।
सही धर्म का सच्चा नारा,प्रेम एकता भाई-चारा।
परहित सबसे ऊंचा कर्म,ममता समता मानव धर्म।
संभाषण के गुण है तीन,वाणी सत्य,सरल,शालीन।
सतयुग आयेगा कब,बहुमत चाहेगा जब।
संकट हो या दु:ख महान,हर क्षण होठों पे मुस्कान।
सुधरे व्यक्ति और परिवार,होगा तभी समाज सुधार।
अहं प्रदर्शन झूठी शान,ये सब बचकाने अरमान।
धन बल जन बल बुद्धि अपार,सदाचार बिन सब बेकार।
यही सिद्धि का सच्चा मर्म,भाग्यवाद तज,करो सुकर्म।
करो नही ऐसा व्यवहार,जो न स्वयंको हो स्वीकार।
मदिरा-मांस तामसी भोजन,दूषित करते तन मन जीवन।
नारी का असली श्रंगार,सादा जीवन उच्च विचार।
नारी का सम्मान जहां है,संस्क्रति का उत्थान वहां हैं।
सदगुण हैं सच्ची सम्पत्ति,दुर्गुण सबसे बडी विपत्ति।
कथनी करनी भिन्न जहां है,धर्म नहीं पाखण्ड वहां है।
व्रक्ष प्रदूषण-विष पी जाते,पर्यावरण पवित्र बनाते।
लघु सेवा तरु हमसे लेते,अमित लाभ जीवन भर देते।
जीव और वन से जीवन है,बस्ती का जीवन उपवन है।
व्रक्ष और हितकारी सन्त,है इनके उपकार अनन्त।
सात्विक भोजन जो करते हैं,रोग सदा उनसे डरते हैं।
धन बल जन बल बुद्धि अपार,सदाचार बिन सब बेकार।
धर्म क्षेत्र में पूज्य वही नर,त्यागे लोभ स्वार्थ आडम्बर।
अगर रोकनी है बरबादी,बंद करो खर्चीली शादी।
घर में टंगे हुए जो चित्र,घोषित करते व्यक्ति चरित्र।
गंदे फूहड गीत न गाओ,मर्यादा समझो,शरमाओ।
चाटुकार को जिसने पाला,उस नेता का पिटा दिवाला।
जो उपहास विरोध पचाते,वे ही नया कार्य कर पाते।
बनें युवक सज्जन,शालीन,दें समाज को दिशा नवीन।
ईश्वर बंद नही है मठ में,वह तो व्यापक है घट घट में।
खोजें सभी जगह अच्छाई,ऐसी द्रष्टि सदा सुखदाई।
जैसी करनी वैसा फल,आज नहीं तो निश्चय कल।
जो करता है आत्मसुधार,मिलता उसको ही प्रभु प्यार।
जुआ खेलने का यह फल,रोते फिरें युधिष्ठिर नल।
जो न कर सके जन कल्याण,उस नर से अच्छा पाषाण।
पशु बलि,झाड फूंक जंजाल,इनसे बचे वही खुशहाल।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻


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🌞ओ३म् 🌞 🌺 नमस्ते जी, सुप्रभातम् 🌺 🌻वेदामृतम् 🌻 आरोहणमाक्रमणं जीवतोजीवतोsयनम् । (अथर्ववेद...

🌞ओ३म् 🌞

🌺 नमस्ते जी, सुप्रभातम् 🌺

🌻वेदामृतम् 🌻

आरोहणमाक्रमणं जीवतोजीवतोsयनम् ।
(अथर्ववेद ५/३०/७)

उन्नत होकर आगे बढना हर जीव ( मनुष्य) का धर्म है ।

🌹🌹 सुभाषितम्🌹🌹

॥ अस्तेयम् ॥

अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् ।
(योगदर्शन २/३७)

अस्तेय वृत्ति के पूर्ण अभ्यास हो जाने पर साधक के पास सब रत्नों की उपस्थिति हो जाती है, अर्थात् सब दिशाओं से उत्तमोत्तम पदार्थ उसे प्राप्त होने लगते हैं ।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌞 आज का पंचाग 🌞
तिथि…….एकादशी
वार………..शनिवार
नक्षत्र …….उत्तराफाल्गुनी
योग………वैधृति

(समय मान जयपुर का है)
सूर्योदय ———– ६-४४
सूर्यास्त ———–१७-३६
चन्द्रोदय ——–२७-३४
चन्द्रास्त ———१५-१२
सूर्य राशि ———तुला
चन्द्र राशि——-सिंह

सृष्टि संवत् -१,९६,०८,५३,११६
कलियुगाब्द……………५११६
विक्रमी संवत्…………..२०७२
अयन…………….दक्षिणायन
ऋतु……………………शरद
मास पूर्णिमांत——कार्तिक

विक्रमी संवत् (गुजरात)-२०७१
मास अमांत( गुजरात)….आश्विन
पक्ष………………… कृष्ण

आंग्ल मतानुसार ७ नवम्बर सन् २०१५ ईस्वी ।

🌻आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलमय हो ।🌻


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बीजेपी आरएसएस हिन्दू संगठनो को छोड़ किसी ने दुःख प्रकट नही किया।। - अशोक सिंघल…एक इंजीनियर,...

बीजेपी आरएसएस हिन्दू संगठनो को छोड़ किसी ने दुःख प्रकट नही किया।। -
अशोक सिंघल…एक इंजीनियर, जो बन गया हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा !!

विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक अशोक सिंघल का आज निधन हो गया। अशोक सिंघल ही वो शख्सियत थे, जिन्होंने देश और विदेश में विश्व हिंदू परिषद को एक नई पहचान दिलाई। विश्व हिंदू परिषद में एक समय ऐसा आया कि संघ से प्रचारक के बाद वीएचपी में बतौर महासचिव आए अशोक सिंघल वीएचपी की पहचान बन गए।

अशोक सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 को आगरा में हुआ था और उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन अपने ग्रेजुएशन के समय ही सिंघल आरएसएस के संपर्क में आए और फिर प्रचारक बन गए। प्रचारक रहते हुए उन्होंने कई प्रदेशों में संघ के लिए काम किया।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगा, तो अशोक सिंघल सत्याग्रह कर जेल गए। प्रचारक जीवन में लंबे समय तक वो कानपुर रहे। 1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबंध रहा। इस दौरान अशोक इंदिरा गांधी के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वो दिल्ली के प्रांत प्रचारक बनाए गए। 1981 में उन्हें विश्व हिंदू परिषद में भेज दिया गया।

समाज में दलितों के साथ तिरस्कार की भावना और उसके चलते हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी अशोक सिंघल ने अहम भूमिका निभाई। अशोक सिंघल की पहल से ही दलितों के लिए अलग से 200 मंदिर बनाए गए और उन्हें हिंदू होने की अहमियत समझाई गई। देश में हिंदुत्व को फिर से मजबूत और एकजुट करने के लिए 1984 में धर्मसंसद के आयोजन में अशोक सिंघल ने ही मुख्य भूमिका निभाई थी और इसी धर्म संसद में साधु संतों की बैठक के बाद राम जन्म आंदोलन की नींव पड़ी थी।
जब-जब राम मंदिर आंदोलन की बात होगी तब तब वीएचपी के संरक्षक अशोक सिंघल का नाम भी आएगा। राम मंदिर आंदोलन को भले ही बीजेपी के बड़े नेताओं से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन असल में अशोक सिंघल के प्रयास के चलते ही राम मंदिर आंदो�


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Wednesday, November 11, 2015

आज का भगवद चिन्तन-07-11-2015 🍃 पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो...

आज का भगवद चिन्तन-07-11-2015
🍃 पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं जिनसे आपको लाभ होता हो अपितु वो कर्म हैं जिनसे दूसरों का भला भी होता है। पुन्य कर्मों का करने का उद्देश्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना ही नहीं अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।
🍃 स्वर्ग के लिए पुन्य करना बुरा नहीं मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है। शुभ भावना के साथ किया गया प्रत्येक कर्म ही पुण्य है और अशुभ भावना के साथ किया गया कर्म पाप है।
🍃 जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य भी होते हैं। हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी ना हो। हमारा जीवन दूसरों के जीवन में समाधान बने समस्या नहीं, यही चिन्तन पुन्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
🍃🌿🍃🌿🍃🌿🍃🌿🍃🌿🍃


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श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भक्त कौन है? जो किसी भी जीव से द्वेष नहीं करता । जो सबके साथ मित्रता का...

श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार भक्त कौन है?

जो किसी भी जीव से द्वेष नहीं करता ।
जो सबके साथ मित्रता का व्यवहार करता है ।
जो बिना भेद-भाव से दुःखी जीवोंपर सदा दया करता है ।
जो परमात्मा के सिवा किसी भी वस्तु में ‘मेरापन’ नहीं रखता ।
जो ‘मैं पन’ को त्याग देता है ।
जो सुख-दुःख दोनों में परमात्मा को ही समान भाव से देखता है ।
जो अपना बुरा करनेवाले के लिये भी परमात्मा से भला चाहता है ।
जो लाभ-हानि, जय-पराजय, सफलता-असफलता में सदा सन्तुष्ट रहता है ।
जो अपने मन को परमात्मा में लगाये रहता है ।
जो अपने मन और इन्द्रिय को जीते हुए है ।
जो परमात्मा में दृढ़ निश्चय रखता है ।
जो अपने मन और बुद्धि को परमात्मा के अर्पण कर देता है ।
जो किसी के भी उद्वेग का कारण नहीं बनता ।
जो किसी से भी उद्वेग को प्राप्त नहीं होता ।
जो सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति में कोई आनन्द नहीं मानता ।
जो दूसरे की उन्नति देखकर नहीं जलता ।
जो निर्भय रहता है ।
जो किसी भी अवस्था में उद्विग्न नहीं होता ।
जो किसी भी वस्तु की आकांक्षा नहीं करता ।
जो बाहर-भीतर से सदा पवित्र रहता है ।
जो परमात्मा की भक्ति करने और दोषों का त्याग करने में चतुर है ।
जो पक्षपात रहित रहता है ।
जो किसी समय भी व्यथित नहीं होता ।
जो सारे कर्मो का आरम्भ परमात्मा की लीला से ही होते है, ऐसा मानता है ।
जो भोगों को पाकर हर्षित नहीं होता ।
जो भोगों को जाते हुए जानकर दुःखी नहीं होता ।
जो भोगों के नाश हो जानेपर शोक नहीं करता ।
जो अप्राप्त या नष्ट हुए भोगों को फिर से पाने के लिये इच्छा नहीं करता ।
जो शुभ या अशुभ कर्मो का फल नहीं चाहता ।
जो शत्रु-मित्र में समान भाव रखता है ।
जो मान-अपमान को एक-सा समझता है ।
जो सर्दी-गर्मी में सम रहता है ।
जो सुख-दुःख को समान समझता है ।
जो किसी भी वस्तु में आसक्ति नहीं रखता ।
जो निन्दा-स्तुति को समान समझता है ।
जो परमात्मा की चर्चा के सिवा दूसरी बात ही नहीं करता ।
जो परमात्मा के प्रेम से मस्त हुआ किसी भी परिस्थिति में सन्तुष्ट रहता है ।
जो घर-द्वार से ममता नहीं रखता ।
जो परमात्मा में अपनी बुद्धि स्थिर कर देता है ।
जो इस भागवत-धर्मरूपी अमृत का सदा सेवन करता है ।
जो परमात्मा में पूर्ण श्रद्धा-सम्पन्न है ।
जो केवल परमात्मा के ही परायण रहता है ।


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Sunday, November 8, 2015

कार्तिक कृष्ण ११ वि.सं.२०७२ ७ नवंबर २०१५ 😶 “ देवमन द्वारा ज्ञान की स्थिरता !...

कार्तिक कृष्ण ११ वि.सं.२०७२ ७ नवंबर २०१५

😶 “ देवमन द्वारा ज्ञान की स्थिरता ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् पुनरेहि वाचस्पते देवेन मनसा सह । 🔥🔥
🍃🍂 वसोष्पते नि रमय मय्येवास्तु मयि श्रुतम् ।। 🍂🍃

अथर्व० १ । १ । २

ऋषि:- अथर्वा: ।। देवता- वाचस्पति: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।।

शब्दार्थ- हे वाणी व ज्ञान के पालक देव!
फिर मुझमें आओ; देव, द्योतमान मन के, मननक्रिया के साथ आओ। हे वसु के पति! तुम मुझे (इस ज्ञान में) रमण कराओ, रस दिलाओ, आनन्दित कराओ; मेरा सुना हुआ ज्ञान मुझमें ही रहे, ठहरे।

विनय:- मैं जो कुछ सुनता हूँ वह मुझमें ठहरता नहीं। मानो मैं ‘एक कान से सुनता हूँ और दूसरे से निकाल देता हूँ।’ इस तरह मेरा मनोमय शरीर ऐसा रोगग्रस्त हुआ पड़ा है कि मैं अच्छे-से-अच्छा सत्य उपदेश सुनकर और उत्तम-से-उत्तम वेदज्ञान पाकर भी उसे अपने में धारण नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि मेरे इस शरीर ने अपनी मनन-क्रिया को छोड़ दिया है। मनन करना, आत्मचिन्तन करना, एकान्त में आत्मनिरीक्षण व विचार करना त्याग दिया है। ऐसा करना मेरे स्वभाव में ही नहीं रहा है, अतः मेरा मन 'देव’ नहीं रहा है, द्योतमान, प्रज्वलित और जीवनसम्पन्न नहीं रहा है और मेरा मनोमय शरीर मृतप्राय हो गया है, अतः हे वाचस्पते! हे वाणी व ज्ञान के पालक देव! हे मेरे मनोमय देह के प्राण! तुम फिर मुझमें आओ और अपने प्रवेश द्वारा मेरे इस मृत मनशरीर को पुनर्जीवित कर दो। तुम देव-मन के साथ फिर मुझमें प्रविष्ट होओ और मुझमें मनन, चिन्तन और आत्मभावन व आत्मनिरीक्षण का अभ्यास फिर से जारी कर दो। अभी तक बेशक बिना भूख के खाये स्वाद-से-स्वाद भोजन की तरह मेरा सुना हुआ सुन्दर-से-सुन्दर वेद-ज्ञान मुझे नीरस और अरुचिकर लगता रहा है।
हे ज्ञान-ऐष्वर्य के रक्षक!
तुम ऐसा करो कि शुष्क-से-शुष्क किन्तु सत्य और हित के उपदेश मुझे अब बड़े आनन्ददायी और सरस लगने लगे। तुम मुझमें मनन-क्रिया को ऐसा जगा दो कि मेरा मन द्योतमान हो जाए। तब तो भूख में आये रूखे-सूखे भोजन की भाँति भी शुष्क-से-शुष्क दीखनेवाले उच्च ज्ञान में भी मेरा मन निःसन्देह रमने लगेगा और बड़ा आनन्दरस पाने लगेगा।तब तो मैं जो कुछ सुनूँगा वह अवश्य मुझमें ठहरेगा और इस प्रकार मैं प्रतिदिन नया-नया ज्ञान ग्रहण करता हुआ मानसिक रूप में समुत्रत, वृद्धिगत और विकसित होता जाऊँगा।


🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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आज का सुविचार (7 नवम्बर 2015, शनिवार, कार्तिक कृष्ण ११) मुख ब्राह्मण, बाहु क्षत्रिय, उदर वैश्य, पग...

आज का सुविचार (7 नवम्बर 2015, शनिवार, कार्तिक कृष्ण ११)

मुख ब्राह्मण, बाहु क्षत्रिय, उदर वैश्य, पग शूद्र सर्वोत्तम सावयववाद है। ऐसी व्यवस्था कोटि-कोटि नेत्र कोटि-कोटि पाद ज्योतित होती पल्लवित होती है। हाथ विश्व के सर्वेत्तम औजार हैं। पानी पीने इनके चुल्लू मुद्रा, सुई में धागा डालती मुद्रा, तमाचा मुद्रा, घूसा मुद्रा, मुट्ठी मुद्रा, मिट्टी भरना मुद्रा, घुग्घू बजाना मुद्रा, कोण नापी मुद्रा, ऊंगली दिखा दिशा निर्देश मुद्रा, लिखना मुद्रा, गाल थपथपाना मुद्रा, सिर पर हाथ फेरना मुद्रा, लड्डू बनाना, रोटी बेलना, आटा गूंथना, सब्जी काटना, कुल्हाडी चलाना, सरौते से काटना, कैंची से काटना, कागज कपडा फाड़ना, ताला खोलना, सामान उठाना, समान बटोरना आदि आदि हर मूद्रा में पंच उंगली समूह जो अंगूठे से क्रमशः ज्ञान, शौर्य, संसाधन, शिल्प तथा सेवा प्रतीक पंच समूह है, अदभुत रूप में कार्य करता है। हर ऊंगली व्यवस्था मुद्रा स्वयमेव सक्षम सहयोगी है। मानव समूह यह व्यवस्था हो तो सावयव सार्थक हो। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)


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जरूर पढ़ें मित्रो ! अधिक से अधिक share करें ! https://www.youtube.com/watch?v=ZqtRzpv52Ls 1) English...

जरूर पढ़ें मित्रो ! अधिक से अधिक share करें !
https://www.youtube.com/watch?v=ZqtRzpv52Ls
1) English अंतराष्ट्रीय भाषा है ??
2) English विज्ञान और तकनीकी की भाषा है ??
3) English जाने बिना देश का विकास नहीं हो सकता ??
4) English बहुत समृद्ध भाषा है !

___________________________
मित्रो पहले आप एक खास बात जाने ! कुल 70 देश है पूरी दुनिया मे जो भारत से पहले और भारत से बाद आजाद हुए हैं भारत को छोड़ कर उन सब मे एक बार सामान्य हैं कि आजाद होते ही उन्होने अपनी
मातृ भाषा को अपनी राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया ! लेकिन शर्म की बात है भारत आजादी के 65 साल बाद भी नहीं कर पाया आज भी भारत मे सरकारी सतर की भाषा अँग्रेजी है !

अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :

1). अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है:: दुनिया में इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनिज हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।

2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:: किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं या तो लैटिन के, या तो फ्रेंचके, या तो ग्रीक के, या तो दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। आपने भी काफी बार किसी अँग्रेजी शब्द के बारे मे पढ़ा होगा ! ये शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है ! ऐसी ही बाकी शब्द है !

उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी।

अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Zका ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्यूंकी कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।

3. अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती:: दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई"JAPANESE" में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता है।
हमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्यूंकी हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है। ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं क्यूंकी नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम किया।
जब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगा।

क्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्यूंकी जापान के लोगों में अपनी मात्र भाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है।

* जो लोग अपनी मात्र भाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं। *

दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा ‘संस्कृत’ है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका चल रही है। नासा ने 'मिशन संस्कृत’ शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मात्र भाषा में ही देता हैं।

॥ मात्रभाषा पर गर्व करो…..अँग्रेज ी की गुलामी छोड़ो॥

अभी जो आपने ऊपर पढ़ा ये राजीव दीक्षित जी के (अँग्रेजी भाषा की गुलामी ) वाले व्यख्यान का सिर्फ 10 % लिखा है !

पूरा lecture सुने यहाँ click करे !

https://www.youtube.com/watch?v=ZqtRzpv52Ls

वन्देमातरम ! अमर शहीद राजीव दीक्षित जी की जय !
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