Monday, April 16, 2018

धन कमाने वाले प्रायः सभी लोग यह मानते हैं कि *मैंने जो धन कमाया है उस पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है ।...

धन कमाने वाले प्रायः सभी लोग यह मानते हैं कि *मैंने जो धन कमाया है उस पर सिर्फ मेरा ही अधिकार है । मेरी इच्छा जहां होगी मैं वहां वैसे उतना खर्च करूंगा ।* यह सोच गलत है । क्योंकि आप जो धन कमाया, वह आप तब कमा पाए , जब बचपन से आपके माता पिता ने आपको पाल-पोसकर खिला-पिलाकर बड़ा किया । आपके गुरुजनों ने आपको अनेक विद्या सिखाईं । अन्य भी अनेक विद्वानों संन्यासियों महात्माओं ने आपको शिक्षा दी । ईश्वर ने भी आपके खाने पीने के लिए तरह तरह के अनाज फल फूल साग सब्जियां और सूर्य चंद्रमा पृथ्वी जल अग्नि इत्यादि पदार्थ बनाए। और इन पदार्थों की सहायता से आप इतने बलवान बुद्धिमान विद्वान धनवान एवं समर्थ बन पाए।

ईश्वर, माता पिता और गुरु जनों के अतिरिक्त, देशभर के लोगों ने भी आपके लिए रेल बनाई सड़क बनाई बिजली बनाई टेलीफोन बनाया कंप्यूटर बनाया टेलीविजन बनाया मोबाइल फोन बनाया जिन पदार्थों की सहायता से आप इतने समर्थ हुए और ₹2 कमा पाए ।

यदि ये सब लोग आपकी सहायता न करते , तो आप कुछ भी नहीं कमा पाते, और ना ही इतने स्वस्थ, बलवान व धनवान होते। इसलिए इन सब का उपकार मानना चाहिए। और इनकी सहायता से जो धन आपने कमाया , उस धन पर इन सब लोगों का भी कुछ हिस्सा अधिकार मानना चाहिए । तथा उनके लिए कुछ खर्च दान आदि भी करना चाहिए। यही बुद्धिमत्ता है और यही न्याय है । -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।


from Tumblr https://ift.tt/2viWjhY
via IFTTT

Saturday, April 14, 2018

इतनी सीधी-सरल बात तो सभी समझ सकते हैं कि बच्चों का ज्ञान अनुभव आदि कम होता है। और उनके माता-पिता का...

इतनी सीधी-सरल बात तो सभी समझ सकते हैं कि बच्चों का ज्ञान अनुभव आदि कम होता है। और उनके माता-पिता का ज्ञान अनुभव आदि बच्चों की तुलना में अधिक होता है। संसार में सबसे उत्तम वस्तु है ज्ञान। जिसका ज्ञान शुद्ध है और उसके अनुसार आचरण भी ठीक है , वही व्यक्ति संसार में सुखी हो सकता है ।

तो माता-पिता का ज्ञान बालक के ज्ञान से अधिक है , और यदि आचरण भी वैसा ही हो , तो बालकों को अपने माता-पिता का अनुसरण करना चाहिए।


जो बच्चे अपने माता-पिता के ज्ञान और आचरण को अपना लेते हैं, उनके निर्देश आदेश संदेश का पालन करते हैं , वे संसार में सुखी होते हैं और जीवन में बहुत अच्छा विकास करते हैं ।

जो बच्चे अपने माता पिता की बात नहीं मानते , वे सदा दुखी और परेशान रहते हैं , उनके जीवन का विकास ठीक नहीं होता। और बुढ़ापे में वे खूब पछताते हैं कि हमने अपने माता-पिता के अनुभवों का लाभ नहीं लिया। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।


from Tumblr https://ift.tt/2HyQUFX
via IFTTT

Friday, April 13, 2018

कर्मफल का शाश्वत सिद्धांत है कि *जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा*। वास्तव में फल मिलता नहीं है ,...

कर्मफल का शाश्वत सिद्धांत है कि *जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा*।

वास्तव में फल मिलता नहीं है , फल न्याय पूर्वक सोच समझ कर माप तोल कर दिया जाता है। मोटी भाषा में लोग कह देते हैं, वैसा फल मिलेगा ।

कोई नौकर किसी सेठ के यहां नौकरी करता है , तो उसे वेतन मिलता नहीं है, सेठ अपने हाथ से उसे नापतोल कर वेतन देता है। यह उसका कर्म फल है ।


तो जिस व्यक्ति के जीवन में अच्छे गुण हों, उन गुणों के कारण वह अच्छे अच्छे कर्म करता हो , तो निश्चित रुप से उसे अच्छा ही फल मिलेगा , कुछ इस जन्म में और कुछ अगले जन्मों में। जब जिस कर्म का फल प्राप्त होने का समय आएगा , उसी समय उसको फल दिया जाएगा। चाहे समाज और सरकार देवे, चाहे ईश्वर देवे। इसलिए फल प्राप्ति में कभी संशय नहीं करना चाहिए।

लोग फल प्राप्ति में जल्दबाजी करते हैं । ठीक समय की प्रतीक्षा नहीं करते , और चिल्लाने लगते हैं कि अब तक हमें हमारे अच्छे कर्मों का फल नहीं मिला , अब तक हमें अच्छा फल नहीं मिला । यह कोई नहीं कहता कि *अब तक हमें हमारे बुरे कर्मों का दंड क्यों नहीं मिला?*

तो चिंता ना करें अच्छे बुरे सभी कर्मों का फल समय आने पर अवश्य मिलेगा। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।


from Tumblr https://ift.tt/2HgBfgP
via IFTTT

*नम्रता और अभिमान* ये दोनों विरोधी तत्व हैं। प्रायः लोग नम्रता की प्रशंसा करते हैं फिर भी उसे जीवन...

*नम्रता और अभिमान* ये दोनों विरोधी तत्व हैं। प्रायः लोग नम्रता की प्रशंसा करते हैं फिर भी उसे जीवन में ला नहीं पाते।

इसी प्रकार से अभिमान की बहुत निंदा करते हैं, फिर भी उसे छोड़ नहीं पाते ।

कोई बात नहीं । किसी भी दोष को छोड़ने के लिए और गुण को धारण करने के लिए बार बार पुरुषार्थ करना चाहिए , चाहे जितनी बार भी असफल हों, तब भी कभी निराश नहीं होना चाहिए , सफलता एक दिन अवश्य मिलेगी ।

तो *नम्रता ही अच्छी है , यही सुखदायक है , समाज में प्रतिष्ठा जनक है । जबकि अभिमान बुद्धि का विनाशक है, दुखदायक है, प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने वाला है* ।

ऐसा बार-बार सोचें। ऐसा कुछ प्रयास करने के बाद, आप का अभिमान धीरे-धीरे कम होने लगेगा, और नम्रता बढ़ने लगेगी । तब देखिएगा, जीवन में कितना आनंद होगा। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक ।


from Tumblr https://ift.tt/2qu7qP9
via IFTTT

Thursday, April 5, 2018

● सभी स्वाध्यायशील पुस्तक प्रेमियों को एक अनुरोध…नीचे दी जा रही लिंक्स को स्टार ★ करके...

● सभी स्वाध्यायशील पुस्तक प्रेमियों को एक अनुरोध…

नीचे दी जा रही लिंक्स को स्टार ★ करके सुरक्षित रखें। इन सभी लिंक्स में विषयानुरूप और सेंकडो हिंदी - अंग्रेजी पुस्तकें सम्मिलित होने वाली है।
                   👇🏼👇🏼👇🏼

👇🏼 महापुरुषों के जीवन चरित संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1-ZD_Eq-SYkx1UmX4a7693ayD382G0JQv

👇🏼 स्वामी दयानन्द सरस्वती विषयक ग्रन्थ संग्रह संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=16pMp0wlopdqKkApFPYSz_wvGeaNvhhPW

👇🏼 महर्षि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1jC__V4uKRAjqi6SXrYc-aqsqV21CbNd5

👇🏼 खण्डन-मंडन पुस्तक संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1XXBovQ-rqNjKQC4vpgH-pBnIav9jl6J7

👇 श्री कृष्ण विषयक पुस्तक संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1Ex0AZkFUgvNgU6VEG0s2BntIUse_TjKz

👇🏼 वैदिक साहित्य संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1oRxZ4o-d1XZ59sMm4RhJlVZ_JyZxQ479

👇🏼 इस्लाम विषयक खण्डनात्मक पुस्तकें

https://drive.google.com/folderview?id=1MKu2JIZKbCNG_zPf8x7i_rD8n-m2PNJG

👇🏼 ईसाई मत खंडन पुस्तकें

https://drive.google.com/folderview?id=1mPIecrRVKT-SOkMEbvrXWnUHvDIFtCrj

👇🏼 इतिहास विषयक पुस्तक संग्रह

https://drive.google.com/folderview?id=1yoJc0hhHt2d9aVMDsZVOZVWTtXQOM9EG

🙏🏻 Read and encourage others to read… स्वयं पढ़े और दूसरों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें।🙏🏻


from Tumblr https://ift.tt/2IvBvW8
via IFTTT

Wednesday, April 4, 2018

लघु आत्म कथा









लघु आत्म कथा


from Tumblr https://ift.tt/2GAhkG7
via IFTTT

Tuesday, April 3, 2018

।।ओ३म्।।सही ‘हनुमान् चालीसा’:-यह नया ‘हनुमान् चालीसा’ लिखने का उद्देश्य केवल यह है कि सभी धर्मप्रेमी...

।।ओ३म्।।

सही ‘हनुमान् चालीसा’:-


यह नया ‘हनुमान् चालीसा’ 

लिखने का उद्देश्य केवल यह है कि सभी धर्मप्रेमी सज्जन महावीर हनुमान् के नाम पर फैल रहे अंधविश्वास,पाखंड और को त्याग कर हनुमान् के यथार्थ चरित्र की विशेषताओं को जान सके, उनके सद्गुणों को अपने जीवनों में धारण कर सकें तथा सच्चे ईश्वरभक्त बनकर अपने जीवनों को सुखी बना सकें।


‘ओ३म्’

‘हनुमान् चालीसा’

करता हूँ वर्णन यहाँ,करके प्रभु का ध्यान।

सुनो वीर हनुमान् का,सुखदाई गुणगान॥


1-पितु पवन थे अंजना माता।

उनके घर जन्मा दुख-त्राता॥


2-चैत्र वदि शुभ अष्टमी आई।

मंगलवार जन्म सुखदाई॥


3-सुन्दरतम हनु अंग सुहाए।

इसीलिए हनुमान् कहाए॥


4-मात-पिता प्रभु के गुण गाते।

बालक को बलवान बनाते॥


5-रवि-सम तेजस्वी मुख पाया।

हृष्ट-पुष्ट सुन्दरतम काया॥


6-ऋषि अगस्त्य के गुरुकुल आए।

वैदिक विद्या पढ़ सुख पाए॥


7-वेद ज्ञान-विज्ञान पढे थे।

सदाचार के पंथ बढ़े थे॥


8-मल्ल-युद्ध गदा थे प्यारे।

नहीं किसी से डरे न हारे॥


9-मात-पिता,गुरु भक्त कहाते।

उठकर प्रात: शीश झुकाते॥


10-शक्ति,शील,सौन्दर्य सारे।

महावीर विनम्र थे प्यारे॥


11-वेद-पाठ सुन्दरतम गाते।

श्रोता मंत्र-मुग्ध हो जाते॥


12-नीति-निपुण,रक्षा सज्जन के।

न्याय करें प्यारे जन-जन के॥


13-संध्या और हवन नित करते।

वेद-ज्ञान,सद्गुण मन धरते॥


14-ब्रह्मचर्य-व्रत जीवन धारे।

सत्य,न्याय,परहित ही प्यारे॥


15-अतुलित बल,यौवन-धन पाया।

संयम का जीवन अपनाया॥


16-परमेश्वर का ध्यान लगाते।

ओम-ओम ही जपते जाते॥


17-प्राण साधना अद्भुत करते।

अनुपम बल तन-मन में भरते॥


18-परमेश्वर का दर्शन पाया।

मानव-जीवन सफल बनाया॥


19-वन-रक्षक अनुपम नर नेता।

सब युद्धों में रहे विजेता॥


20-त्याग तपस्या अनुपम पाए।

सकल विश्व उनके गुण गाए॥


21-मित्र सहायक बनकर आए।

अद्भुत सेना-नायक पाए॥


22-दृढ़ प्रतिज्ञ हनुमान् हमारे।

दुष्ट गदा से रण में मारे॥


23-कभी नहीं विचलित होते थे।

नहीं धीरता को खोते थे॥


24-वेद-ज्ञान के पण्डित भारी।

दिव्य,तपस्वी,शोभा प्यारी॥


25-सन्तजनों की सेवा करते।

उनके सब दु:खों को हरते॥


26-नारी का सम्मान बढ़ाते।

सन्नारी को शीश झुकाते॥


27-रामचन्द्र सुग्रीव मिलाए।

बने सहायक दुख मिटाए॥


28-रामदूत बनकर सुख चाहा।

दिया वचन जो उसे निबाहा॥


29-लाँघ सिन्धु लंका में आए।

सीता को खोजा सुख पाए॥


30-रावण को सब कुछ समझाया।


from Tumblr https://ift.tt/2JfSc9o
via IFTTT

वैदिक दर्शन भाष्यकार – आचार्य उदयवीर शास्त्री जीदर्शन शब्द की व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ – “दृश्यतेऽनेन...

वैदिक दर्शन 

भाष्यकार – आचार्य उदयवीर शास्त्री जी


दर्शन शब्द की व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ – “दृश्यतेऽनेन इति दर्शनम्” से सम्यक दृष्टिकोण ही दर्शन है अर्थात् समग्रता को यथार्थरूप में कहने वाला दर्शन है। जो पदार्थ जैसा है, उसे वैसा ही उपदेश करना सत्य है और यही सत्य दर्शनों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। वेद को प्रमाणित मानने वाले छः दर्शन है, इन्हीं को वैदिक दर्शन या षड्दर्शन कहते हैं। ये छः दर्शन है – न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त।


महर्षि दयानन्द जी ने अपने ग्रन्थ “सत्यार्थप्रकाश” में दर्शनों के अध्ययन-अध्यापन की विधि का उल्लेख किया है – 

“तदनन्तर पूर्वमीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य और वेदान्त अर्थात् जहाँ तक बन सके, वहाँ तक ऋषिकृत व्याख्यासहित अथवा उत्तम विद्वानों की सरल व्याख्यायुक्त छः शास्त्रों को पढे-पढावें” – सत्यार्थ प्रकाश, समुल्लास3 

इससे दर्शनों के महत्त्व का ज्ञान होता है।


सभी दर्शनों में कुछ समानताएं हैं, जो निम्न प्रकार है – 

1 सभी में वैदिक मङ्गलाचरण ‘अथ’ शब्द से होता है।

2 सभी दर्शनों में प्रथम सूत्र में ही अपना प्रतिपाद्य विषय निश्चित है। 

3 सभी दर्शन उद्देश्य कथन के उपरान्त, उसका लक्षण बताते हैं, पुनः शेष शास्त्र में उसका परीक्षण करते हैं।

4 सभी शास्त्रों की शैली सूत्ररूप अर्थात् संक्षेप में कहने की है।

5 सभी शास्त्र अपने प्रधान विषय का परिज्ञान करने के साथ-साथ अनेक उपविषयों का भी परिज्ञान कराते हैं। 

6 सभी शास्त्र वेदों को प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं।

7 सभी शास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।


इन सभी दर्शनों के अपने-अपने विषय है। जिनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाता है – 

1 मीमांसा दर्शन – इसमें धर्म एवम् धर्मी पर विचार किया गया है। यह यज्ञों की दार्शनिक विवेचना करता है लेकिन साथ-साथ यह अनेक विषयों का वर्णन करता है। इसमें वेदों का नित्यत्व और अन्य शास्त्रों के प्रमाण विषय पर विवेचना प्रस्तुत की गई है। 

2 न्याय दर्शन – इस दर्शन में किसी भी कथन को परखने के लिए प्रमाणों का निरुपण किया है। इसमें शरीर, इन्द्रियों, आत्मा, वेद, कर्मफल, पुनर्जन्म आदि विषयों पर गम्भीर विवेचना प्राप्त होती है। 

3 योग दर्शन – इस दर्शन में ध्येय पदार्थों के साक्षात्कार करने की विधियों का निरुपण किया गया है। ईश्वर, जीव, प्रकृति इनका स्पष्टरूप से कथन किया गया है। योग की विभुतियों और योगी के लिए आवश्यक कर्तव्य-कर्मों का इसमें विधान किया गया है। 

4 सांख्य दर्शन – इस दर्शन में जगत के उपादान कारण प्रकृति के स्वरूप का वर्णन, सत्त्वादिगुणों का साधर्म्य-वैधर्म्य और उनके कार्यों का लक्षण दिया गया है। 

त्रिविध दुःखों से निवृत्ति रूप मोक्ष का विवेचन किया है। 

5 वैशेषिक दर्शन – इसमें द्रव्य को धर्मी मानकर गुण आदि को धर्म मानकर विचार किया है। छः द्रव्य और उसके 24 गुण मानकर उनका साधर्म्य-वैधर्म्य स्थापित किया है। भौत्तिक-विज्ञान सम्बन्धित अनेंको विषयों को इसमें सम्मलित किया गया है। 

6 वेदान्त दर्शन – इस दर्शन में ब्रह्म के स्वरूप का विवेचन किया है तथा ब्रह्म का प्रकृति, जीव से सम्बन्ध स्थापित किया है। उपनिषदों के अनेकों स्थलों का इस ग्रन्थ में स्पष्टीकरण किया गया है।


इन सभी दर्शनों पर सरल और विस्तृत भाष्य आचार्य उदयवीर शास्त्री द्वारा रचित है। यह भाष्य दर्शनों के वास्तविक अभिप्राय को प्रकट करता है। इस भाष्य समुच्चय में प्रत्येक दर्शन भाष्य से पूर्व विस्तृत भूमिका दी गई है और अन्त में सूत्रानुक्रमणिका दी गई है। दर्शनों को आत्मसाद् करने के लिए इस दर्शन समुच्चय को अवश्य प्राप्त कर, अध्ययन करें।


प्राप्ति स्थान - vedrishi.com


from Tumblr https://ift.tt/2uNmlcC
via IFTTT

*विभिन्न रोग और उनका उपचार*1.नीम की लकड़ी कोपानी में घिसकर एक इंच मोटा लेप फोड़े पर लगायें।इससे फोड़ा...

*विभिन्न रोग और उनका उपचार*


1.नीम की लकड़ी कोपानी में घिसकर एक इंच मोटा लेप फोड़े पर लगायें।इससे फोड़ा समाप्त हो जाता है।

2. नकसीर (नाक में से खून का आना) :नीम की पत्तियों और अजवायन को बराबरमात्रा में पीसकर कनपटियों पर लेप करने सेनकसीर का चलना बन्द हो जाता है।

3. बालों का असमय में सफेद होना (पालित्य रोग) :नीम के बीजों के तेल को 2-2 बूंद नाक सेलेने से और केवल गाय के दूध का सेवन करने से पालित्य रोग में लाभ होता है।

4. नीम के तेल को सूंघने से बाल काले हो जाते हैं।नीम के बीजों को भांगरा और विजयसार केरस की कई भावनाएं देकर बीजों का तेलनिकाल लें, फिर इसकी 2-2 बूंदों को नाक से लेने से तथाआहार में केवल दूध और भात खाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।

5.बालों की रूसी :एक मुट्टी नीम के पत्तों का काढ़ा बनाकरनहाने से 1 घंटे पहले सिर पर मलने से रूसी मिटजाती है।

6. नीम की निबौलियों को सुखाकरअरीठा के साथ मिलाकर बारीकपीसकर रख लें। इसे 2 चम्मच भर एक गिलास गर्मपानी में घोलकर सिर को धो लेने से सिर कीजूंएं, लीखें, सिर की दुर्गन्ध खत्म होजाती है तथा बाल काले और मुलायम होते हैं।

7. नीम के पत्तों को पीसकर पानीमें उबालकर ठंड़ा होने दें। इसके बाद इसे छानकर इससे सिर को धोलें और बालों को सही तरह से मालिश करें। बालों केसूख जाने पर स्वच्छ एरण्ड का तेल और नारियल का तेल बराबरमात्रा में लेकर इसे मिला लें और इससे सिर कीअच्छी तरह से मालिश करें। इससे सिर कीरूसी मिट जाएगी।


from Tumblr https://ift.tt/2H6t4kv
via IFTTT

➡ *क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:❓❓❓❓❓*1. *लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):*“...

➡ *क्या आपने कभी इन पश्चिमी philosophers को पढ़ा है:❓❓❓❓❓*


1. *लियो टॉल्स्टॉय (1828 -1910):*

“ वैदिक धर्म और आर्य सभ्यता ही एक दिन दुनिया पर राज करेगी क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है"।


2. *हर्बर्ट वेल्स (1846 - 1946):*

” वेदों का सनातन धर्म का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिनत कितनी पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी और जीवन कट जाएगा तभी एकदिन पूरी दुनिया उसकी ओर आकर्षित हो जाएगी और उसी दिन ही दिल शाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी सलाम हो उस दिन “।


3. *अल्बर्ट आइंस्टीन (1879 - 1955):*

"मैं समझता हूँ कि आर्यों ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया जो यहूदी न कर सके, वेदों मे ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है"।


4. *हसटन स्मिथ (1919):*

"जो विश्वास हम पर है और इस हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो वेद आधारित सनातन धर्म है । अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी"।


5. *माइकल नोस्टरीडाम (1503 - 1566):*

” वैदिक सनातन धर्म ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर आर्य लोगों की राजधानी बन जाएगा"।


6. *बर्टरांड रोसल (1872 - 1970):*

“मैंने वेदों को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है, वैदिक धर्म पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में सनातन धर्म के बड़े विचारक सामने आएंगे । एक दिन ऐसा आएगा कि आर्य संस्कृति ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा "।


7. *गोस्टा लोबोन (1841 - 1931):*

” वैदिक धर्म ज्ञान ही सुलह और सुधार की बात करता है । सुधार के ही विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ"।


8. *बरनार्डशा (1856 - 1950):*

“सारी दुनिया एक दिन सनातन धर्म स्वीकार कर लेगी, अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी।

पश्चिम एक दिन सनातन धर्म स्वीकार कर लेगा और वेद ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा "।


9. *जोहान गीथ (1749 - 1832):*

"हम सभी को अभी या बाद मे सनातन धर्म स्वीकार करना ही होगा । यही असली धर्म है, मुझे कोई आर्य कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा,

मैं यह सही बात को स्वीकार करता हूँ।



*जय आर्य जय वैदिक धर्म*

🙏🏼 *जय आर्यावर्त राष्ट्र की* 🙏


📍📍📍📍📍📍📍📍📍

🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩


from Tumblr https://ift.tt/2q1mbJ3
via IFTTT