Sunday, February 28, 2016

📕सत्यार्थ प्रकाश 📕 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ (प्रश्न) ‘सोऽयं देवदत्तो य उष्णकाले काश्यां दृष्टः स...

📕सत्यार्थ प्रकाश 📕
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(प्रश्न) ‘सोऽयं देवदत्तो य उष्णकाले काश्यां दृष्टः स इदानीं प्रावृट्समये मथुरायां दृश्यते।’ अर्थात् जो देवदत्त मैंने उष्णकाल में काशी में देखा था उसी को वर्षा समय में मथुरा में देखता हूं। यहां वह काशी देश उष्णकाल, यह मथुरा देश और वर्षाकाल को छोड़ कर शरीरमात्र में लक्ष्य करके देवदत्त लक्षित होता है। वैसे इस भागत्यागलक्षणा से ईश्वर का परोक्ष देश, काल, माया, उपाधि और जीव का यह देश, काल, अविद्या और अल्पज्ञता उपाधि छोड़ चेतनमात्र में लक्ष्य देने से एक ही ब्रह्म वस्तु दोनों में लक्षित होता है। इस भागत्यागलक्षणा अर्थात् कुछ ग्रहण करना और कुछ छोड़ देना जैसा सर्वज्ञत्वादि वाच्यार्थ ईश्वर का और अल्पज्ञत्वादि वाच्यार्थ जीव का छोड़ कर चेतनमात्र लक्ष्यार्थ का ग्रहण करने से अद्वैत सिद्ध होता है। यहां क्या कह सकोगे?

(उत्तर) प्रथम तुम जीव और ईश्वर को नित्य मानते हो वा अनित्य?
(प्रश्न) इन दोनों को उपाधिजन्य कल्पित होने से अनित्य मानते हैं।
(उत्तर) उस उपाधि को नित्य मानते हो वा अनित्य?
(प्रश्न) हमारे मत में—
जीवेशौ च विशुद्धाचिद्विभेदस्तु तयोर्द्वयोः।
अविद्या तच्चितोर्योगः षडस्माकमनादयः॥1॥
कार्योपाधिरयं जीवः कारणोपाधिरीश्वरः।
कार्यकारणतां हित्वा पूर्णबोधोऽवशिष्यते॥2॥
—ये ‘संक्षेपशारीरक’ और ‘शारीरकभाष्य’ में कारिका हैं।
हम वेदान्ती छः पदार्थों अर्थात् एक जीव, दूसरा ईश्वर, तीसरा ब्रह्म, चौथा जीव और ईश्वर का विशेष भेद, पांचवां अविद्या अज्ञान और छठा अविद्या और चेतन का योग इन को अनादि मानते हैं॥1॥परन्तु एक ब्रह्म अनादि, अनन्त और अन्य पांच अनादि सान्त हैं जैसा कि प्रागभाव होता है। जब तक अज्ञान रहता है तब तक ये पांच रहते हैं और इन पांच की आदि विदित नहीं होती। इसलिये अनादि और ज्ञान होने के पश्चात् नष्ट हो जाते हैं इसलिये सान्त अर्थात् नाशवाले कहाते हैं॥2॥
(उत्तर) ये तुम्हारे दोनों श्लोक अशुद्ध हैं क्योंकि अविद्या के योग के विना जीव और माया के योग के विना ईश्वर तुम्हारे मत में सिद्ध नहीं हो सकता।
इससे ‘तच्चितोर्योगः’ जो छठा पदार्थ तुमने गिना है वह नहीं रहा। क्योंकि वह अविद्या माया जीव ईश्वर में चरितार्थ हो गया और ब्रह्म तथा माया और अविद्या के योग के विना ईश्वर नहीं बनता फिर ईश्वर को अविद्या और ब्रह्म से पृथक् गिनना व्यर्थ है। इसलिये दो ही पदार्थ अर्थात् ब्रह्म और अविद्या तुम्हारे मत में सिद्ध हो सकते है, छः नहीं।
तथा आपका प्रथम कार्योपाधि और कारणोपाधि से जीव और ईश्वर का सिद्ध करना तब हो सकता कि जब अनन्त, नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्तस्वभाव, सर्वव्यापक ब्रह्म में अज्ञान सिद्ध करें। जो उसके एक देश में स्वाश्रय और स्वविषयक अज्ञान अनादि सर्वत्र मानोगे तो सब ब्रह्म शुद्ध नहीं हो सकता। और जब एक देश में अज्ञान मानोगे तो वह परिच्छिन्न होने से इधर-उधर आता जाता रहेगा। जहां-जहां जायगा वहां-वहां का ब्रह्म अज्ञानी और जिस-जिस देश को छोड़ता जायगा उस-उस देश का ब्रह्म ज्ञानी होता रहेगा तो किसी देश के ब्रह्म को अनादि शुद्ध ज्ञानयुक्त न कह सकोगे और जो अज्ञान की सीमा में ब्रह्म है वह अज्ञान को जानेगा। बाहर और भीतर के ब्रह्म के टुकड़े हो जायेंगे।
जो कहो कि टुकड़ा हो जाओ, ब्रह्म की क्या हानि? तो अखण्ड नहीं। जो अखण्ड है तो अज्ञानी नहीं। तथा ज्ञान के अभाव वा विपरीत ज्ञान भी गुण होने से किसी द्रव्य के साथ नित्य सम्बन्ध से रहेगा। यदि ऐसा है तो समवाय सम्बन्ध होने से अनित्य कभी नहीं हो सकता। जैसे शरीर के एक देश में फोड़ा होने से सर्वत्र दुःख फैल जाता है वैसे ही एक देश में अज्ञान सुख दुःख क्लेशों की उपलब्धि होने से सब ब्रह्म दुःखादि के अनुभव से युक्त होगा और सब ब्रह्म को शुद्ध न कह सकोगे।
वैसे ही कार्योपाधि अर्थात् अन्तःकरण की उपाधि के योग से ब्रह्म को जीव मानोगे तो हम पूछते हैं कि ब्रह्म व्यापक है वा परिच्छिन्न? जो कहो व्यापक उपाधि परिच्छिन्न है अर्थात् एकदेशी और पृथक्-पृथक् है तो अन्तःकरण चलता फिरता है वा नहीं?
(उत्तर) चलता फिरता है।
(प्रश्न) अन्तःकरण के साथ ब्रह्म भी चलता फिरता है वा स्थिर रहता है?
(उत्तर) स्थिर रहता है।
(प्रश्न) जब अन्तःकरण जिस-जिस देश को छोड़ता है उस-उस देश का ब्रह्म अज्ञानरहित और जिस-जिस देश को प्राप्त होता है उस-उस देश का शुद्ध ब्रह्म अज्ञानी होता होगा। वैसे क्षण में ज्ञानी और अज्ञानी ब्रह्म होता रहेगा। इससे मोक्ष और बन्ध भी क्षणभङ्ग होगा और जैसे अन्य के देखे का अन्य स्मरण नहीं कर सकता वैसे कल की देखी सुनी हुई वस्तु वा बात का ज्ञान नहीं रह सकता। क्योंकि जिस समय देखा सुना था वह दूसरा देश और दूसरा काल; जिस समय स्मरण करता वह दूसरा देश और काल है।
जो कहो कि ब्रह्म एक है तो सर्वज्ञ क्यों नहीं? जो कहो कि अन्तःकरण भिन्न-भिन्न हैं, इस से वह भी भिन्न-भिन्न हो जाता होगा तो वह जड़ है। उस में ज्ञान नहीं हो सकता। जो कहो कि न केवल ब्रह्म और न केवल अन्तःकरण को ज्ञान होता है किन्तु अन्तःकरणस्थ चिदाभास को ज्ञान होता है तो भी चेतन ही को अन्तःकरण द्वारा ज्ञान हुआ तो वह नेत्र द्वारा अल्प अल्पज्ञ क्यों है? इसलिये कारणोपाधि और कार्योपाधि के योग से ब्रह्म जीव और ईश्वर नहीं बना सकोगे। किन्तु ईश्वर नाम ब्रह्म का है और ब्रह्म से भिन्न अनादि, अनुत्पन्न और अमृतस्वरूप जीव का नाम जीव है।
जो तुम कहो कि जीव चिदाभास का नाम है तो वह क्षणभङ्ग होने से नष्ट हो जायगा तो मोक्ष का सुख कौन भोगेगा? इसलिये ब्रह्म जीव और जीव ब्रह्म कभी न हुआ, न है और न होगा।
(सप्तम समुल्लास:सत्यार्थप्रकश)
-स्वामी दयानन्द सरस्वती


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आज हिन्दू को अपने देवी देवता की रक्षा करना पड रहा है क्योंकि सेक्युलर हिन्दू ही कट्टर हिन्दुओ की...

आज हिन्दू को अपने देवी देवता की रक्षा करना पड रहा है क्योंकि सेक्युलर हिन्दू ही कट्टर हिन्दुओ की टांग काट रहा है।
हम मात्र कहने को बहुसंख्यक हिन्दू है 80 करोड़ बाकि तो ये सूअर के पिल्लै ही ऐश मौज कर रहे है नेता मंत्रियो को अपनी ऊँगली पर नचाते है और हमारे कुछ हिन्दू भाई बहन रोटी को तरसते है मदद के लिए कोई नहीं आता।
रोड पर एक्सीडेंट हो जाये तो डरते है पुलिस केस न हो और हम उसे मरने को छोड़ देते है।
ये आरक्षण नाम का जहरीला तत्व ही हम हिन्दुओ को जातियो में बांटे रखा है वर्ना किसकी मजाल हमें आपस में लड़ने को मजबूर करे।
भगवान को राह चलता सूअर की औलाद गाली दे देता है नंगी फ़ोटो शेयर करते है राम हनुमान भगवान पर केस करते है और हम बस क्या चाहते है 2 वक्त की रोटी पैसा बंगला बीवी सुखी परिवार और आरक्षण।

शर्म करो हिन्दुओ अभी नहीं जागे तो कैसे बचाओगे अपने बच्चों को परिवार को।
शिवाजी नाथूराम भगत सिंह बाला साहेब बनो।
मिलकर रहोगे तो कोई कुछ नहीं कर पायेगा बाकि आप समझदार हो।
🚩🚩🚩🙏🏻🙏🏻🚩🚩😔


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हर बीमारी पेट की गैस से शुरू होती है, गैस को जानें बीमारी से बचें अगर आज के समय में कहा जाए की गैस...

हर बीमारी पेट की गैस से शुरू होती है, गैस को जानें बीमारी से बचें
अगर आज के समय में कहा जाए की गैस ही सबसे बड़ी बीमारी और घर घर की बीमारी है तो कहना गलत नहीं होगा। यह भी कह सकते हैं की सभी बड़ी बीमारियाँ गैस से ही शुरू होती हैं। कुछ विशेषज्ञ यह भी कह सकते हैं कि अगर पेट में गैस ना हो तो सभी बीमारियों पर आसानी से विजय पायी जा सकती है। सीधा सा फार्मूला है; पेट में गैस का मतलब है लीवर में कमी, लीवर में कमी का मतलब है खून की कमी, खून की कमी का मतलब है बीमारियों से लड़ने की क्षमता में कमी, बीमारियों से लड़ने की क्षमता में कमी का मतलब है बड़ी बीमारियों को दावत देना और यह सब होता है सिर्फ पेट में गैस के कारण।
क्या है गैस
गैस प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में बनती है। यह शरीर से बाहर डकार द्वारा या गूदा मार्ग के द्वारा निकलती है। अधिकतर लोगों के शरीर में 1-4 पिंट्स गैस उत्पन्न होती है और एक दिन में कम से कम 14-23 बार गैस पास करते हैं। ऐसे लोग जिनकी पाचन शक्ति अक्सर खराब रहती है और जो प्रायः कब्ज के शिकार रहते हैं, उनमे गैस की समस्या अधिक होती है।
क्यूँ बढ़ रही है गैस की समस्या
अक्सर देखा जाता है कि चलते फिरते और हार्ड वर्क करने वालों के शरीर में गैस कम बनती है लेकिन ऐसे लोग जिनकी सक्रियता कम रहती है या जो अधिक समय तक बैठे रहते हैं उनके पेट में गैस अधिक मात्रा में बनती है। दूसरा कारण यह भी है कि आजकल लोगों की खान पान की आदतें बिगडती जा रही हैं। आजकल के लोगों में चबा चबा कर पोषक भोजन करने के बजाय जल्दी जल्दी से खाया जाने वाला जंक फूड या फ़ास्ट फूड अधिक पसंद है। यही वजह है कि आजकल बच्चे से लेकर बूढ़े, सभी लोग गैस की समस्या से अधिक परेशान रहते हैं। ज्यादा समय तक रहने वाली गैस की समस्या अल्सर में भी बदल सकती है।
क्यूँ बनती है गैस
हमारे शरीर के पाचनतंत्र में गैस दो तरीके से आती है।
1. निगली गयी हवा द्वारा
कभी कभी कुछ लोग अंजाने में हवा निगल लेते हैं जिसे चिकित्सा की भाषा में एरोफैगिया कहते हैं। यह भी पेट में गैस का प्रमुख कारण है। हर कोई थोड़ी मात्रा में कुछ खाते और कुछ पीते समय हवा निगल लेता है। हालाँकि जल्दी जल्दी खाने या पीने, च्युंगम चबाने, धूम्रपान करने से कुछ लोग ज्यादा हवा अन्दर ले लेते हैं, जिसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड होती है। कुछ हवा तो डकार के द्वारा बाहर निकल जाती है। बची हुई हवा आंत में चली जाती है जहाँ इसकी कुछ मात्रा अवशोषित हो जाती है। बची हुई थोड़ी सी गैस यहाँ से बड़ी आंत में चली जाती है जो गूदा मार्ग द्वारा बाहर निकलती है। पेट में थोड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड भी बनती है, लेकिन यह अवशोषित हो जाती है और बड़ी आंत में प्रवेश नहीं करती है।
2. अनपचे भोजन का टूटना
हमारा शरीर कुछ कार्बोहाइड्रेट को ना तो पचा पाटा है और ना ही अवशोषित कर पाता है। छोटी आंत में कुछ निश्चित एंजाइमों की कमी या अनुपस्थिति से इनका पाचन नहीं हो पाता। यह अनपचा भोजन जब छोटी आंत से बड़ी आंत में आता है तो बैक्टीरिया के द्वारा किण्वन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है जिसमे गैस बनती है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर में एंजाइमों का स्तर कम हो जाता है इसलिए बढती उम्र के साथ साथ गैस की समस्या भी बढ़ती जाती है।
गैस के लक्षण और समस्याएँ
पेट में गैस बनने के सबसे आम लक्षण हैं:
पेट फूल जाना
पेट में दर्द होना
डकार आना और गैस पास करना
अत्यधिक गैस पास होना
गूदा मार्ग से बदबूदार गैस निकलना
जीभ पर सफ़ेद परत जमा हो जाना
सांस में बदबू आना
मल में बदबू आना
दस्त लगना
कब्ज होना
@भोजन जिससे अधिक गैस बनती है
सब्जियां जैसे ब्रोकली, पत्तागोभी, फूलगोभी और प्याज
मैदे से बने खाद्य पदार्थ, दूध और दूध से बने उत्पाद
मीट और अंडा
डिब्बाबंद भोजन
फ़ास्ट फूड, सॉफ्ट ड्रिंक
बाजार की खुली चीजें
अधिक तली, भुनी चीजें
अधिक प्रोटीन और हार्ड कार्बोहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थ
@गैस से बचने के उपाय
कार्बोनेटेड ड्रिंक और वाइन ना पियें, क्यूंकि यह कार्बन डाई ऑक्साइड रिलीज करते हैं।
पाइप के द्वारा कोई चीज ना पियें, सीधे गिलास से पियें।
अधिक तले भुने और मसालेदार भोजन से बचें या कम खाएं।
तनाव भी गैस बनने का मुख्य कारण है इसलिए तनाव से बचें।
कब्ज भी गैस बनने का एक प्रमुख कारण है इसलिए जितने लम्बे समय तक भोजन बड़ी आंत में रहेगा, उतनी अधिक मात्रा में गैस बनेगी।
भोजन को धीरे धीरे चबाकर खाएं, दिन में तीन बार पूरा भोजन करने के बजाय, कुछ घंटों के अंतराल पर थोडा थोडा खाएं।
खाने के तुरंत बाद ना सोयें, थोड़ी देर टहलें। इससे पाचन भी सही रहेगा और पेट भी नहीं फूलेगा।
खाने पीने के समय को निर्धारित करें, एक निश्चित समय पर ही भोजन खाएं।
अगर मेहनत कम करते हों तो अधिक कार्बोहाइड्रेट वाला भोजन कम खाएं और प्रोटीन वाले भोजन अधिक लें।
अपने शरीर को समझें, अगर दूध से एलर्जी होती हो तो दूध और दूध से बने पदार्थ ना लें।
मौसमी फल और सब्जियों का सेवन अधिक से अधिक मात्रा में करें।
खाना पकाते समय मसालों जैसे, सरसों, इलाइची, जीरा और हल्दी का उपयोग अधिक करें, इससे गैस कम मात्रा में बनती है।
संतुलित और घर का भोजन करें, जंक फूड, फ़ास्ट फूड और खुले में बने फूड से बचें।
शरीर को शक्रिय रखें, कसरत और योगा करें, पैदल चलने की आदत डालें।
धूम्रपान और शराब से दूर रहें।
अपने भोजन में अधिक से अधिक रेशेदार भोजन को शामिल करें।
सर्वांगसन, उत्तानपादासन, भुजंगासन, प्राणायाम आदि योगासन करने से गैस की समस्या ख़त्म हो जाती है।
सबसे काम की बात: अगर कर सकते हों तो सुबह उठने के बाद तीन चार गिलास पानी पियें और उसे उल्टी करके वापस निकाल दें। हो सकता है कुछ दिन परेशानी हो लेकिन एक बार आदत पड़ने के बाद रोज करने से ताउम्र गैस से छुटकारा पाया जा सकता है।
@जीवनशैली में लायें बदलाव
ज्यादा देर तक कुर्सी पर बैठकर काम करने वालों को गैस की समस्या अधिक होती है ऐसे लोगों को हर घंटे के बाद कुर्सी से उठकर थोडा टहलना चाहिए।
दोपहर का खाना खाने के बाद कुछ देर टहल लें।
लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का उपयोग करें।
खाने के बाद नींबू पानी या फल खासकर पपीता जरूर खाएं।
खाने के तुरंत बाद ज्यादा पानी ना पीयें, आधे या एक घंटे बाद ही पानी पीयें। भोजन के दौरान प्यास से बचने के लिए एक आधे घंटे बाद ही पानी पी लें।
ग्रीन टी का जरूर इस्तेमाल करें।
@रोकथाम और घरेलु उपचार
लहसुन पाचन की प्रक्रिया को बढाता है और गैस की समस्या को कम करता है।
अपने भोजन में दही को शामिल करें।
नारियल पानी भी गैस की समस्या में काफी प्रभावशाली है।
अदरक में पाचक एंजाइम होते हैं। खाने के बाद अदरक के टुकड़ों को नीबू के रस में डुबोकर खाएं।
अगर आप लम्बे समस्य तक गैस की बीमारी से पीड़ित है तो लहसुन की तीन कलियाँ और अदरक के कुछ टुकडें सुबह खाली पेट खाएं।
प्रतिदिन खाने के समय टमाटर या सलाद खाएं, टमाटर में सेंधा नमक मिलाकर खाने से अधिक लाभ मिलता है।
पोदीना भी पाचन तंत्र में अधिक लाभकारी है।
इलाइची के पाउडर को एक गिलास पानी में उबाल लें। इसको खाना खाने के बाद गुनगुने रूप में पी लें, गैस से लाभ मिलेगा।


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मेरे साथियों —– जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान 22 फरवरी को सोनीपत के मुरथल में क्या हुआ...

मेरे साथियों —–

जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान
22 फरवरी को
सोनीपत के मुरथल में क्या हुआ था ?

सच सारा देश जानना चाहता है !

मुरथल का वो
घिनौना सच !!

जिसे सुनकर ही इन्सानियत का सिर
शर्म से झुक जाए !

दरिंदगी और बर्बरता
???????????????

महिलाओं के साथ बदतमीजी हुई
???????????????????????

22 फरवरी को मुरथल में इंसानियत शर्मसार हुई !

बहुत ज्यादा हुआ !!

गाड़ियों से बच्चों को ऐसे फेंका गया
के जैसे कागजों को बाहर फेंकते हैं !!

मुरथल में मचे तांडव के बाद
अब डरे सहमे लोग सामने आ रहे हैं !

इनका दावा है कि
इन्होंने मुरथल का कलंक देखा है !

इन्होंने देखा है कि कैसे आंदोलन की आड़ में
गुंडों ने महिलाओं के साथ
खुलेआम दरिंदगी की थी !

आरक्षण के नाम पर
मुरथल का जो सच सामने आ रहा है
वो बेहद खौफनाक और शर्मिंदा करने वाला है !

आरक्षण की आड़ में
गुंडों ने
महिलाओं के साथ दरिंदगी के लिए
जो तरीका अपनाया
वो सुनकर आप हैरान रह जाएंगे !

महिलाएं जान बचाकर भाग रही थीं !

इससे ज्यादा बेबसी क्या हो सकती है !!!!!

सबको पता है कि
वहां क्या हुआ था,
लेकिन जुबान चुप है !

ये सच एक शहर की बेबसी की कहानी है,
जहां हर कोई जानता है कि क्या हुआ !

लेकिन जुबान सिली हुई है !
उफsssssssss !!!!!!!!!!!

इसलिये उन गुन्डो को
सरेराह उसी दरिन्दगी के साथ
दौड़ा दौड़ा कर
सजायेमौत दी जाये !

ताकि
फिर कभी कोई मुरथल ना हो पाये !!!!!

जय माँ भारती
वंदे मातरम्
————— महाकाल🚩


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बहुत अच्छी जानकारी है कृपया ध्यान से पढ़ें . 👉ये है देश के दो बड़े महान देशभक्तों की...

बहुत अच्छी जानकारी है कृपया ध्यान से पढ़ें .

👉ये है देश के दो बड़े
महान देशभक्तों की कहानी….


👉जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो…

👉 भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल !

👉 दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले।

👉 शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चों को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि

👉 शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।

👉 सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता की नजरों में सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं.

👉 लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया।

👉 शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

👉शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी।

👉 शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया।

👉सर शोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है।

👉 आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं, वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था।

👉 खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देशभक्त
दूरद्रष्टा और निर्माता साबित करने की भरसक कोशिश की।

👉 खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की।

👉 खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली में मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेंका था।

👉 बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही दी, शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में वह बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था।

👉 हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की।

👉 खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमें बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं,
और…

👉 बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (या फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं

👉आज़ादी के दीवानों के विरुद्ध और भी गवाह थे..

1. शोभा सिंह
2. शादी राम
3. दीवान चन्द फ़ोर्गाट
4. जीवन लाल
5. नवीन जिंदल की
बहन के पति का दादा
6. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दादा


👉दीवान चन्द फोर्गाट DLF कम्पनी का Founder था इसने अपनी पहली कालोनी रोहतक में काटी थी

👉इसकी इकलौती बेटी थी जो कि K.P.Singh को ब्याही और वो मालिक बन गया DLF का ।

👉अब K.P.Singh की
भी इकलौती बेटी है जो कि कांग्रेस के नेता और गुज्जर से मुस्लिम Converted गुलाम नबी आज़ाद के बेटे सज्जाद नबी आज़ाद के साथ ब्याही गई है । अब वह DLF का मालिक बनेगा ।

👉जीवन लाल मशहूर एटलस साईकल कम्पनी का मालिक था।

🙏बाकी मशहूर हस्तियों को तो आप जानते ही होंगे ।

👏 ये सन्देश देश को लूटने वाले सभी लोगों तक भी पहुँचना चाहिए, फिर चाहे वो “आप” के हों या पराए…??🚩🚩🚩


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संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह के प्रतिबंध लगाता है! आप किसे मूर्ख बना रहे रवीश-राजदीप? ...

संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 6 तरह के प्रतिबंध लगाता है! आप किसे मूर्ख बना रहे रवीश-राजदीप?
मैं कल संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी की व्याख्या पढ़ रहा था। अनुच्छेद 19(2) में स्पष्ट तौर पर 6 बाध्यताएं आरोपित की गई हैं, जो अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित करती हैं। जेएनयू के देशद्रोहियों द्वारा लगाए गए नारे अभिव्यक्ति की आजादी के तहत नहीं आते हैं, यह संविधान में स्पष्ट है।

अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है राष्ट्र की सुरक्षा को जिस भाषण से खतरा हो। अब सुनिए- ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी’, 'भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह'। क्या इस भाषण में देश को नष्ट करने की गूंज नहीं है?

अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है उच्च व सर्वोच्च अदालत की अवमानना। अब सुनिए- 'अफजल हम शर्मिन्दा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं'। अब बताइए अफजल को फांसी की सजा देने वाला सुप्रीम कोर्ट कातिल बताया जा रहा है, अफजल को क्षमादान न देने वाले राष्ट्रपति को कातिल बताया जा रहा है और यह पूरी कानूनी प्रक्रिया जिस संविधान पर टिका है, उसे भी कातिल कहा जा रहा है! क्या यह देश की कानूनी प्रक्रिया को खुली चुनौती नहीं है? उमर खालिद ने तो टीवी स्टूडियो में बैठ कर सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देते हुए कहा है- कुछ जज मिलकर कोई फैसला नहीं कर सकते! यह साफ तौर पर देश के कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है!

अनुच्छेद 19(2) साफ कहता है राष्ट्र की अखंडता और संप्रभुता पर हमला। अब सुनिए- 'कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी’, 'केरल की आजादी तक, जंग रहेगी'। क्या यह भारत के टुकड़े करने की सोच देश की संप्रभुता पर प्रहार नहीं है?

अब बताइए क्या राहुल गांधी, अरविन्द केजरीवाल, सीताराम येचुरी, डी राजा, केसी त्यागी, रवीश कुमार, राजदीप सरदेसाई आदि देशद्रोहियों के ये साथी क्या संविधान से अनभिज्ञ हैं?

जी नहीं, ये संविधान से अनभिज्ञ नहीं हैं, बल्कि देश की सरकार और कानून व्यवस्था को बंधक बनाने के लिए दबाव की राजनीति कर रहे हैं, जिसमें वो काफी हद तक सफल हो चुके हैं! आप देखिए जेएनयू को उमर खालिद व उसके साथी एक आतंक स्थल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं और देश की कानून व्यवस्था को खुली चुनौती दे रहे हैं! न ये लोग अफजल पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानने को तैयार हैं और न भारत की कानून व्यवस्था के सम्मुख प्रस्तुत हो खुद को निर्दोष साबित करने को तैयार हैं! उल्टा कह रहे हैं कि हमलोगों से पंगा लेना इन्हें महंगा पड़ेगा! देश को खुली चुनौती और किसे कहते हैं? भिंडरावाले से ये किस प्रकार अलग हैं?

रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई जैसे वामपंथी पत्रकारों ने जनता को देशद्रोह जैसे मूल मुद्दे से भटकाने का प्रयास किया है! आप देखिए मूढमति लोग आज क्या बात करने लगे हैं- पटियाला हाउस के वकीलों की गुंडागर्दी, भाषण के वीडियो से छेड़छाड़, कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार, संघ की साजिश? इनसे पूछिए क्या सारा देश भाजपा या संघ है? देशद्रोहियों का विरोध क्या इस देश की स्वतंत्र जनता नहीं कर सकती है? कमाल है! इससे बड़ी फासिस्ट सोच और क्या होगी कि जनता की स्वतंत्र सोच को किसी पार्टी व संगठन की सोच से जोड़ दिया जाए ताकि देशद्रोहियों पर जनता बात करना ही बंद कर दे?

आप देखिए ये 'लाल सलाम’ वाले लोग देशद्रोहियों के लिए तो कह रहे हैं कि देशद्रोह के मामले इनसे हटाया जाए( बिना न्यायिक प्रक्रिया से गुजरे) और पटियाला हाउस के वकीलों व वीडियो टेप को लेकर ये सीधे जजमेंटल होकर निर्णय सुना रहे हैं!

देश के कानून और संविधान को जिस तरह से उमर व उसके साथी चुनौती दे रहे हैं, रवीश व राजदीप जैसे वामपंथी भी बौद्धिक चासनी में लपेट कर उसी तरह संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं! दोगलपन-पाखंड और किसे कहते हैं? जरा वामपंथी हिप्पोक्रेट मुझे समझा दें! #SandeepDeo #संदीपदेव


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Saturday, February 27, 2016

आज बहोत ओनलाइन कंपनी नये साल जेसे विदेशी त्योहारों के दिन ओनलाइन खरीदी के लिये offer देते ओर नये...

आज बहोत ओनलाइन कंपनी नये साल जेसे विदेशी त्योहारों के दिन ओनलाइन खरीदी के लिये offer देते ओर नये त्योहारों का जशन मनाते हैं…. !!
हम सबकी एक स्वदेशी कंपनी हैं .. !! जिसका नाम हैं “ GavyaMart.com ” - यह सिर्फ गोभक्त, ओर देशवासियों के लिये बनी हैं । कल 28:फरवरी हैं यह दिन बहोत बडा हैं इस दिन आज से 50 साल पहेले गोमाता के लिये विर शहिद हुए थें इनकी याद में ओर कल होनेवाले आंदोलन की खुशी “ Gavyamart.com ” सभी गोभक्त ओर देशवासियों के लिये खुश खबरी लेकर आया हैं .. !! कल “ गोमाता राष्ट्रीय माता ” दिन के दिन आप पथमेड़ा गोधाम जेसी गोशाला के उत्पाद ओनलाइन खरिद सकते हैं .. !! आप सभी को कल के दिन 1999 की खरीदी पर Shipping Charge Free दिया जायेगा … !!
👉 आप सभी से हमारा निवेदन हैं की कल आप ज्यादा से ज्यादा देशवासी गोउत्पाद घर बेठे ओनलाइन खरीदे ओर विदेशी कंपनियों को अपने त्योहारों का महत्व समझाया सके ।
👉 इस मेसेज आज के दिन हो सके इतना सभी ग्रुप ओर फेसबुक पर शेयर करें जिसे हम सब मिलकर इस नई सोच को आगे बडा सकें .. !!

गोउत्पाद ओनलाइन खरीदने के लिये - www.gavyamart.com

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सिर्फ गौ माता की जय कहने से कुछ नहीं होगा

गौ माता को बचाना चाहते हो तो ज्यादा गाय का दुध और उससे बनने वाले उत्पादों को खरीदे।

गाय को आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाना उसके संरक्षण सबसे अच्छा तरीका है


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कुछ तड़प-कुछ झड़प ऋषि जीवन-विचार :- आर्य समाज के संगठन की तो गत कई वर्षों में बहुत हानि हुई है-...

कुछ तड़प-कुछ झड़प

ऋषि जीवन-विचार :- आर्य समाज के संगठन की तो गत कई वर्षों में बहुत हानि हुई है- इसमें कुछ भी संदेश नहीं है । कहीं भी चार छः व्यक्ति अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मिलकर एक प्रांतीय सभा या नई सार्वदेशिक सभा बनाने की घोषणा करके विनाश लीला आरम्भ कर देते हैं ।
इसके विपरीत ऋषि मिशन के प्रेमियों ने करवट बदल कर समाज के लिए एक शुभ लक्षण का संकेत दिया है ।
वैदिक धर्म पर कही वार हो देश-विदेश के भाई बहन झट से परोपकारिणी सभा से संपर्क करके उत्तर देने की मांग करते हैं । सभा ने कभी किसी आर्य बंधुओं को निराश नहीं किया पिछले 15 20 वर्षों के परोपकारी के अंगो का अवलोकन करने से यह पता लग जाता है कि परोपकारी एक धर्म योद्धा के रूप में प्रत्येक वार-प्रहार का निरंतर उत्तर देता आ रहा है ।

क्रमशः….
प्रोफेसर -राजेन्द्र जी जिज्ञासु

पाक्षिक परोपकारी पत्रिका
मार्च प्रथम २०१६


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हार्ट अटैक: ना घबराये ……!!! सहज सुलभ उपाय …. 99 प्रतिशत ब्लॉकेज को भी रिमूव कर...

हार्ट अटैक: ना घबराये ……!!!

सहज सुलभ उपाय ….
99 प्रतिशत ब्लॉकेज को भी रिमूव कर देता है पीपल का पत्ता….

पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें।

पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार।

इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद प्रातः लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती। दिल के रोगी इस नुस्खे का एक बार प्रयोग अवश्य करें।

* पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।
* इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।
* खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें।
* प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें। नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें।
* अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । ……

तो अब समझ आया, भगवान ने पीपल के पत्तों को हार्टशेप क्यों बनाया..

शेयर करना ना भूले…..
Via Carttons Againest Curroptions


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सज्जनों, प्रतिदिन आस्था चैनल पर रात 9:30 बजे से विचार टीवी का आधे घंटे का कार्यक्रम-विचार ज्ञान...

सज्जनों,

प्रतिदिन आस्था चैनल पर रात 9:30 बजे से विचार टीवी का आधे घंटे का कार्यक्रम-विचार ज्ञान प्रवाह आता है जिसमें हफ्ते मे छः दिन वैदिक विद्वानों का मार्गदर्शन प्राप्त होता है तथा रविवार को प्रेरणादायक कहानी आती है।

स्वयं परिवार सहित देखे तथा अपने मित्रों मे भी प्रचारित करे।

आप यह कार्यक्रम YouTube पर भी देख सकते है-infovichaar channel या vichaargyanpravah पर।

यह संभवतः वेद आधारित टीवी पर आने वाला एकमात्र कार्यक्रम है।


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📕सत्यार्थप्रकाश...

📕सत्यार्थप्रकाश 📕
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(प्रश्न) ईश्वर अवतार लेता है वा नहीं?
(उत्तर) नहीं, क्योंकि ‘अज एकपात्’, ‘सपर्यगाच्छुक्रमकायम्’—ये यजुर्वेद के वचन हैं। इत्यादि वचनों से परमेश्वर जन्म नहीं लेता। 
(प्रश्न) यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥भ॰ गी॰॥ 
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि जब-जब धर्म का लोप होता है तब-तब मैं शरीर धारण करता हूं। 
(उत्तर) यह बात वेदविरुद्ध होने से प्रमाण नहीं और ऐसा हो सकता है कि श्रीकृष्ण धर्मात्मा और धर्म की रक्षा करना चाहते थे कि मैं युग-युग में जन्म लेके श्रेष्ठों की रक्षा और दुष्टों का नाश करूं तो कुछ दोष नहीं। क्योंकि ‘परोपकाराय सतां विभूतयः’परोपकार के लिए सत्पुरुषों का तन, मन, धन होता है तथापि इस से श्रीकृष्ण ईश्वर नहीं हो सकते। 
(प्रश्न) जो ऐसा है तो संसार में चौबीस ईश्वर के अवतार होते हैं और इन को अवतार क्यों मानते हैं?
(उत्तर) वेदार्थ के न जानने, सम्प्रदायी लोगों के बहकाने और अपने आप अविद्वान् होने से भ्रमजाल में फंस के ऐसी-ऐसी अप्रामाणिक बातें करते और मानते हैं। 
(प्रश्न) जो ईश्वर अवतार न लेवे तो कंस रावणादि दुष्टों का नाश कैसे हो सके?
(उत्तर) प्रथम तो जो जन्मा है वह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किये विना जगत् की उत्पत्ति स्थिति, प्रलय करता है उस के सामने कंस और रावणादि एक कीड़ी के समान भी नहीं। वह सर्वव्यापक होने से कंस रावणादि के शरीर में भी परिपूर्ण हो रहा है। जब चाहै उसी समय मर्मच्छेदन कर नाश कर सकता है। भला इस अनन्त गुण, कर्म, स्वभावयुक्त, परमात्मा को एक क्षुद्र जीव के मारने के लिये जन्ममरणयुक्त कहने वाले को मूर्खपन से अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती है?
और जो कोई कहे कि भक्तजनों के उद्धार करने के लिये जन्म लेता है तो भी सत्य नहीं। क्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञानुकूल चलते हैं उन के उद्धार करने का पूरा सामर्थ्य ईश्वर में है। क्या ईश्वर के पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि जगत् को बनाने, धारण और प्रलय करने रूप कर्मों से कंस रावणादि का वध और गोवर्धनादि पर्वतों का उठाना बड़े कर्म हैं?
जो कोई इस सृष्टि में परमेश्वर के कर्मों का विचार करे तो ‘न भूतो न भविष्यति’ ईश्वर के सदृश कोई न है, न होगा। और युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता। जैसे कोई अनन्त आकाश को कहै कि गर्भ में आया वा मूठी में धर लिया, ऐसा कहना कभी सच नहीं हो सकता। क्योंकि आकाश अनन्त और सब में व्यापक है। इस से न आकाश बाहर आता और न भीतर जाता, वैसे ही अनन्त सर्वव्यापक परमात्मा के होने से उस का आना जाना कभी सिद्ध नहीं हो सकता। जाना वा आना वहां हो सकता है जहां न हो। क्या परमेश्वर गर्भ में व्यापक नहीं था जो कहीं से आया? और बाहर नहीं था जो भीतर से निकला? ऐसा ईश्वर के विषय में कहना और मानना विद्याहीनों के सिवाय कौन कह और मान सकेगा। इसलिये परमेश्वर का जाना-आना, जन्म-मरण कभी सिद्ध नहीं हो सकता। इसलिये ‘ईसा’ आदि भी ईश्वर के अवतार नहीं ऐसा समझ लेना। क्योंकि वे राग, द्वेष, क्षुधा, तृषा, भय, शोक, दुःख, सुख, जन्म, मरण आदि गुणयुक्त होने से मनुष्य थे। 
(प्रश्न) ईश्वर अपने भक्तों के पाप क्षमा करता है वा नहीं?
(उत्तर) नहीं। क्योंकि जो पाप क्षमा करे तो उस का न्याय नष्ट हो जाये और सब मनुष्य महापापी हो जायें। क्योंकि क्षमा की बात सुन ही के उन को पाप करने में निर्भयता और उत्साह हो जाये। जैसे राजा अपराधियों के अपराध को क्षमा कर दे तो वे उत्साहपूर्वक अधिक-अधिक बड़े-बड़े पाप करें। क्योंकि राजा अपना अपराध क्षमा कर देगा और उन को भी भरोसा हो जाय कि राजा से हम हाथ जोड़ने आदि चेष्टा कर अपने अपराध छुड़ा लेंगे और जो अपराध नहीं करते वे भी अपराध करने से न डर कर पाप करने में प्रवृत्त हो जायेंगे। इसलिये सब कर्मों का फल यथावत् देना ही ईश्वर का काम है क्षमा करना नहीं। 
(प्रश्न) जीव स्वतन्त्र है वा परतन्त्र?
(उत्तर) अपने कर्त्तव्य कर्मों में स्वतन्त्र और ईश्वर की व्यवस्था में परतन्त्र है।‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ यह पाणिनीय व्याकरण का सूत्र है। जो स्वतन्त्र अर्थात् स्वाधीन है वही कर्त्ता है। 
(प्रश्न) स्वतन्त्र किस को कहते हैं?
(उत्तर) जिस के आधीन शरीर, प्राण, इन्द्रिय और अन्तःकरणादि हों। जो स्वतन्त्र न हो तो उस को पाप पुण्य का फल प्राप्त कभी नहीं हो सकता। क्योंकि जैसे भृत्य, स्वामी और सेना, सेनाध्यक्ष की आज्ञा अथवा प्रेरणा से युद्ध में अनेक पुरुषों को मार के अपराधी नहीं होते, वैसे परमेश्वर की प्रेरणा और आधीनता से काम सिद्ध हों तो जीव को पाप वा पुण्य न लगे। उस फल का भागी प्रेरक परमेश्वर होवे। स्वर्ग-नरक, अर्थात् सुख-दुःख की प्राप्ति भी परमेश्वर को होवे। जैसे किसी मनुष्य ने शस्त्रविशेष से किसी को मार डाला तो वही मारने वाला पकड़ा जाता है और वही दण्ड पाता है, शस्त्र नहीं। वैसे ही पराधीन जीव पाप पुण्य का भागी नहीं हो सकता। इसलिये अपने सामर्थ्यानुकूल कर्म करने में जीव स्वतन्त्र परन्तु जब वह पाप कर चुकता है तब ईश्वर की व्यवस्था में पराधीन होकर पाप के फल भोगता है। इसलिये कर्म करने में जीव स्वतन्त्र और पाप के दुःख रूप फल भोगने में परतन्त्र होता है। 
(प्रश्न) जो परमेश्वर जीव को न बनाता और सामर्थ्य न देता तो जीव कुछ भी न कर सकता! इसलिए परमेश्वर की प्रेरणा ही से जीव कर्म करता है। 
(उत्तर) जीव उत्पन्न कभी न हुआ, अनादि है। जैसा ईश्वर और जगत् का उपादान कारण नित्य है। और जीव का शरीर तथा इन्द्रियों के गोलक परमेश्वर के बनाये हुए हैं परन्तु वे सब जीव के आधीन हैं। जो कोई मन, कर्म, वचन से पाप पुण्य करता है वही भोक्ता है ईश्वर नहीं। 
जैसे किसी कारीगर ने पहाड़ से लोहा निकाला, उस लोहे को किसी व्यापारी ने लिया, उस की दुकान से लोहार ने ले तलवार बनाई, उससे किसी सिपाही ने तलवार ले ली, फिर उस से किसी को मार डाला। अब यहां जैसे वह लोहे को उत्पन्न करने, उस से लेने, तलवार बनाने वाले और तलवार को पकड़ कर राजा दण्ड नहीं देता किन्तु जिस ने तलवार से मारा वही दण्ड पाता है। इसी प्रकार शरीरादि की उत्पत्ति करने वाला परमेश्वर उस के कर्मों का भोक्ता नहीं होता, किन्तु जीव को भुगाने वाला होता है। जो परमेश्वर कर्म कराता होता तो कोई जीव पाप नहीं करता, क्योंकि परमेश्वर पवित्र और धार्मिक होने से किसी जीव को पाप करने में प्रेरणा नहीं करता। इसलिए जीव अपने काम करने में स्वतन्त्र है। जैसे जीव अपने कामों के करने में स्वतन्त्र है वैसे ही परमेश्वर भी अपने कर्मों के करने में स्वतन्त्र है। 
(प्रश्न) जीव और ईश्वर का स्वरूप, गुण, कर्म और स्वभाव कैसा है?
(उत्तर) दोनों चेतनस्वरूप हैं। स्वभाव दोनों का पवित्र, अविनाशी और धार्मिकता आदि है। परन्तु परमेश्वर के सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, सब को नियम में रखना, जीवों को पाप पुण्यों के फल देना आदि धर्मयुक्त कर्म हैं। और जीव के सन्तानोत्पत्ति उन का पालन, शिल्पविद्या आदि अच्छे बुरे कर्म हैं। ईश्वर के नित्यज्ञान, आनन्द, अनन्त बल आदि गुण हैं। और जीव के— 
इच्छाद्वेषप्रयत्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मनो लिङ्गमिति॥ 
—न्याय सू॰। 
प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतीन्द्रियान्तर्विकाराः सुखदुःखे इच्छाद्वेषौप्रयत्नाश्चात्मनो लिङ्गानि॥ 
—वैशेषिक सूत्र॥ 
दोनों सूत्रों में (इच्छा) पदार्थों की प्राप्ति की अभिलाषा (द्वेष) दुःखादि की अनिच्छा, वैर, (प्रयत्न) पुरुषार्थ, बल (सुख) आनन्द (दुःख) विलाप, अप्रसन्नता (ज्ञान) विवेक, पहिचानना ये तुल्य हैं परन्तु वैशेषिक में (प्राण) प्राणवायु को बाहर निकालना (अपान) प्राण को बाहर से भीतर को लेना (निमेष) आंख को मींचना (उन्मेष) आंख को खोलना (जीवन) प्राण का धारण करना (मनः) निश्चय स्मरण और अहंकार करना, (गति) चलना (इन्द्रिय) सब इन्द्रियों को चलाना (अन्तर्विकार) भिन्न-भिन्न क्षुधा, तृषा, हर्ष शोकादियुक्त होना, ये जीवात्मा के गुण परमात्मा से भिन्न हैं। इन्हीं से आत्मा की प्रतीति करनी,क्योंकि वह स्थूल नहीं है। 
जब तक आत्मा देह में होता है तभी तक ये गुण प्रकाशित रहते हैं और जब शरीर छोड़ चला जाता है तब ये गुण शरीर में नहीं रहते। जिस के होने से जो हों और न होने से न हों वे गुण उसी के होते हैं। जैसे दीप और सूर्यादि के न हाने से प्रकाशादि का न होना और होने से होना है, वैसे ही जीव और परमात्मा का विज्ञान गुणद्वारा होता है। 
(सप्तम समुल्लास:सत्यार्थप्रकश)
-स्वामी दयानन्द सरस्वती


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Thursday, February 25, 2016

एक थी नीरजा ~~~~~~~~ 5 सितम्बर 1986 को भारत की एक वीरांगना ने इस्लामिक आतंकियों से लगभग 400...

एक थी नीरजा
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5 सितम्बर 1986 को भारत की एक वीरांगना ने इस्लामिक आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों को जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया। भारत के कितने नवयुवक और नवयुवतियां उसका नाम जानते है?
कैटरिना कैफ, करीना कपूर, प्रियंका चैपड़ा, दीपिका पादुकोड़, विद्याबालन और अब सनी लियोन जैसा बनने की होड़ लगाने वाली युवती क्या नीरजा भनोत का नाम जानती है? नहीं सुना न ये नाम?

7 सितम्बर 1963 को चंड़ीगढ़ के हरीश भनोत जी के यहाँ जब एक
बच्ची का जन्म हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा। बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी।

नीरजा ने अपनी वो इच्छा एयर लाइन्स पैन-एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन-एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी।

5 सितम्बर 1986 की वो घड़ी आ गयी थी जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी। “पैन-एम 73” विमान करांची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियांे ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला।

अचानक नीरजा को ध्यान आया कि प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।

उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया।

नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी।

किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे।

अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी, कि अचानक बचा हुआ चैथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहाँ वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 22 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चैथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके। नीरजा भी अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी। किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी। उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया।

नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया।

नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम वीरांगना है। ऐसी वीरांगना को मैं कोटि-कोटि नमन करता हूँ (2004 में नीरजा भनोत पर टिकट भी जारी हो चुका है)।
🌹
कृपया इस मेसेज को अपने मित्रों में बांटें। ये आवश्यक है कि हम निस्वार्थ वीरता को पहचानें, वीरों का नमन करें, उनसे प्रेरणा लें और भारतीय होने पर गर्व महसूस करें।


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Bipinbhai try karavo આદુની વિશેષતા ! કેમોથેરપી કરતા આદુની અસર ૧૦,૦૦૦ ગણી વધુ ! કેન્‍સરના દર્દીઓ માટે...

Bipinbhai try karavo
આદુની વિશેષતા !
કેમોથેરપી કરતા આદુની અસર ૧૦,૦૦૦ ગણી વધુ !
કેન્‍સરના દર્દીઓ માટે જ્‍યોર્જિયા યુનિવર્સિટીનું આશીર્વાદરૂપ સંશોધન………
રસોઇમાં આદુનો છૂટથી ઉપયોગ કરો. કેન્‍સર હોય તો આદુનું સેવન રોજ કરો. કેન્‍સરની દવા ‘ટેકસોલ’ કરતા આદુનાં ‘૬-શોગાઓલ’ નામનાં તત્‍વમાં કેન્‍સર સામે લડવાની દસ હજારગણી ક્ષમતા છે.
ખાસ વાત એ છે કે, આદુ માત્ર કેન્‍સરના કોષો પર પ્રહાર કરે છે, સ્‍વસ્‍થ કોષો પર નહી. કેમોથેરપી કરતા આદુની અસર ૧૦,૦૦૦ ગણી વધુ છે.
કેન્‍સર સામે લડવામાં હળદર બહુ ઉપયોગી છે એ તો બહુ જાણીતું તથ્‍ય છે. પણ હળદરના પિતરાઇભાઇ જેવા આદુના આ ગુણ વિશે હજુ તાજેતરમાં જ સંશોધન થયા છે. સંશોધનો દ્વારા પુરવાર થયું છેકે કેન્‍સરની કેટલીક પરંપરાગત દવાઓ કરતા પણ આદુ વધુ અસરકારક રીતે કેન્‍સરની સારવાર કરી શકે છે. પરિક્ષણોમાં સાબિત થયું છે કે કેમોથેરપી કરતા આદુ દ્વારા કેન્‍સરની સારવાર કરવામાં આવે તો એ કેમોથેરપી કરતા દસ હજારગણી વધુ અસરકારક નીવડે છે અને કેમોથેરપીની સરખામણીએ આદુનો ફાયદો એ છે કે આદુ માત્ર કેન્‍સરર્ના કોષોને ખતમ કર્્ે છે અને શરીરના ઉપયોગી કોષો પર આદુની કોઇ જ વિપરીત અસર થતી નથી.
અમેરિકાની ‘ધ જ્‍યોર્જિયા સ્‍ટેટ યુનિવર્સિટી’ એ ઉંદરો પર કરેલા રીસર્ચમાં એવું જાણવા મળ્‍યું હતું કે, આદુનો અર્ક આપવામાં આવે તો પ્રોસ્‍ટેટની ગાંઠના કદમાં પ૬ ટકા જેટલો ઘટાડો થાય છે. પ્રયોગ દ્વારા એવું પણ જાણવા મળ્‍યું કે આદુનો અર્ક માત્ર કેન્‍સરના કોષોને જ ખતમ નથી કરતો, તેનાંથી દાહ પણ ઓછો થાય છે. અને રોગ પ્રતિકારક શકિત પણ વધે છે.
એક અમેરિકન હેલ્‍થ જર્નલમાં પ્રકાશિત થયેલા અહેવાલ મુજબ આદુનું ૬-શોગાઓલ નામનું તત્‍વ કેન્‍સરની સારવારમાં પરંપરાગત કેમોથેરપી કરતા અનેકગણું વધુ સારૂં પરિણામ આપે છે. ૬-શોગાઓલની વિશિષ્‍ટતા એ છેકે તે માત્ર કેન્‍સરના કોષોના મૂળ પર જ ત્રાટકે છે. મધર સેલ્‍સ (માતા કોષ) તરીકે ઓળખાતા આ કોષો સ્‍તન કેન્‍સર સહિત અનેક પ્રકારના કેન્‍સર માટે નિમિત્ત બને છે. માતા કોષમાંથી બીજા અનેક કોષો નિર્માણ પામે છે જે ધીમેધીમે શરીરને ખતમ કરી નાંખે છે.
આ બધા કોષો અજેય હોય છે, અમર જેવા હોય છે, તેનાં પર ભાગ્‍યે જ કોઇ દવા કારગત સાબિત થાય છે.
આ વાત સાબિત કરે છે કે, કેન્‍સરના કોષો તેની જાતે પુનઃનિર્માણ પામતા રહે છે. એ સતત વધતા ચાલે છે. કેમોથેરપી જેવી પરંપરાગત સારવાર સામે આવા કોષો પ્રતિકારકતા કેળવી લે છે. અને સતત વધતા રહેવાનાં કારણે તેના દ્વારા નવી ગાંઠો થવાની સંભાવના પણ રહે છે. શરીરને કેન્‍સર મુકત ત્‍યારે જ કહી શકાય જયારે આ ગાંઠમાંથી પણ કેન્‍સરનાં આવા કોષો નાશ પામે.
વૈજ્ઞાનિકોના કહેવા મુજબ, નવા સંશોધનોમાં પુરવાર થયું છે કે, ૬-શોગાઓલ નામનું આદુમાંનુ આ તત્‍વ કેન્‍સરના આવા સ્‍ટેમ સેલનો નાશ કરે છે. બીજી રાજી થવા જેવી વાત એ છે કે, પ્રયોગોમાં એવું જાણવા મળ્‍યું છે કે, આદુનો જયારે રાંધવામાં ઉપયોગ કરવામાં આવે ત્‍યારે અને તેની સૂકવણી કરવામાં આવે ત્‍યારે ૬-શોગાઓલ નામનું આ અત્‍યંત હિતકારક તત્‍વ તેમાંથી મળી આવે છે. તેનો અર્થ એ થયો કે ભોજનમાં આદુ નિયમિત લેવું જોઇએ અને કેન્‍સરના દર્દીઓ તેની સૂકવણી એટલે કે સુંઠનો ઉપયોગ પણ છુટથી કરી શકે જો કે, આદુની કેન્‍સરમાં ઉપયોગીતા એક વિશિષ્‍ટ કારણને લીધે પણ છે કારણ કે, આદુનો અર્ક સ્‍વસ્‍થ કોષોને હાની પહોંચાડતો નથી.
આ એક જબરદસ્‍ત કહેવાય તેવો ફાયદો છે. કેમોથેરપી જેવી સારવારથી શરીરના સ્‍વસ્‍થ અને જરૂરી કોષોને પણ ખાસ્‍સુ નુકશાન પહોંચતું હોય છે.
જ્‍યોર્જિયા યુનિવર્સિટીના આ પ્રયોગ થકી એવું તારણ નીકળ્‍યું છે કે ટેકસોલ જેવી કેન્‍સર વિરોધી દવા પણ આદુ જેટલી અસરકારક નથી. એટલે સુધી કે જયારે ટેકસોલનાં ડોઝ અપાતા હોય ત્‍યારે પણ આદુનું ૬-શોગાઓલ નામનું તત્‍વ તેનાં કરતા વધુ અસરકારક સાબિત થાય છે. વૈજ્ઞાનીકોએ નોધ્‍યું છે કે ટેકસોલ કરતા ૬-શોગાઓલની અસર ૧૦ હજારગણી હોય છે. તેનો સ્‍પષ્‍ટ અર્થએ થયો કે, આદુ દ્વારા કેન્‍સરની ગાંઠ બનતી અટકાવી શકાય છે અને તેનાં દ્વારા સ્‍વસ્‍થ કોષોની જાળવણી પણ થાય છે.
કેન્‍સરની સારવાર બાબતે હજુ આવા અનેક સંશોધનો જરૂરી છે. જે તેનાં થકી આપણને એ ખ્‍યાલ પણ આવશે કે અત્‍યાર સુધી આપણી એલોપથિક સારવાર કેટલી ખોટી દિશામાં હતી અને આવી સારવાર દ્વારા આપણે કેટકેટલી માનવજિંદગી બરબાદ કરી છે.
આપના રોજીંદા ખોરાક માં આદુનો નિયમિત ઉપયોગ શરીર ને તંદુરસ્ત અને સક્ષમ રાખવા માટે ખુબ જ જરૂરી છે. આદુ એ વિશ્વ ઔષધી ગણાય છે. સંસ્કૃત ભાષામાં એને આદર્ક કહે છે. શરીરને તાજું-માજુ લીલું રાખનાર એટલે કે કોષ માંથી કચરો બહાર કાઢવાની ક્રિયા (કેટાબોલીઝમ) અને કોષને રસથી ભરપુર રાખી તાજો રાખનાર ક્રિયાનું અનાબોલીઝમ આ બન્નેક્રિયા આદુ કરે છે.
જમતા પહેલા આદુનો રસ પીવાથી ખુબ ફાયદા છે.
૧) મસાલામાં આદુ રાજા છે.
૨) જઠરાગ્ની પ્રબળ બનાવે છે. (દીપેન છે).
૩) ફેફસામાં કફ ના ઝાળા તોડી નાખે છે.
૪) જીભ અને ગળુ નિર્મળ બનાવે છે.
૫) વધુ પ્રમાણ માં પેશાબ લાવે છે.
૬) છાતી માંથી શરદી કાઢી નાખે છે.
૭) આમવાત ના સોજા મટાડે છે.
૮) જાડાપણું (મેદ) મટાડે છે.
૯) કફ તોડે છે - વાયુનો કટ્ટર દુશ્મન છે.
૧૦) સીળસ મટાડનાર છે.
૧૧) દમના દર્દીને ફાયદો કરે છે
૧૨) હૃદય રોગ મટાડનાર છે.
૧૩) તેના નિયમિત સેવન થી કેન્શર થતું નથી
૧૪) પીત્તનું શમન કરે છે.
આદુમાં ઉડીયન તેલ - ૩%
તીખાશ - ૮%
સ્ટાર્ચ - ૫૬%
આદુ ગરમ છે તે વાત ખોટી છે.दरेक ग्रुप मा मोकलो जन हीताय जय अंबे👏


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Monday, February 22, 2016

ओ३म् नमस्ते जी ऋषि मिशन परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। आपको जानकर अति प्रसन्नता होगी की अब...

ओ३म् नमस्ते जी

ऋषि मिशन परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है।

आपको जानकर अति प्रसन्नता होगी की अब व्यर्थ की पोस्ट से आप बिल्कुल परेशान नहीं होगें ।

क्योंकि अब ग्रुप के माध्यम से नहीं ब्रोड्कास्ट के माध्यम से आपको आपकी पसंद की ऑडियो प्रतिदिन सुनने को मिलेगी ।

आपको मिशन की प्रत्येक गतिविधि की सूचना प्रत्येक दिन मिलती रहेगी ।

हमारी facebook और whatsapp की पोस्ट पर
आप अपनी शंकाए हमें भेज सकते है

हमारे यहां से प्रतिदिन वेद-विज्ञान पर एवं
निम्न विषयों पर प्रतिदिन एक ऑडियो प्राप्त कर सकते है ।

१.ईश्वर-विवेचन
२.वेद सबके लिये
३.ईशोपनिषद्
४.केनोपनिषद्
५.कठोपनिषद्
६.छान्दोग्योपनिषद्
७.योगदर्शन एपिसोड्
८.योगदर्शन कक्षा
९.पुरूषसुक्त
१०.ईश्वर का वैदिक स्वरूप
११.बृहदारणक्योपनिष्द्
१२.वेदान्त दर्शन
१३.आर्याभिविनय
१४.वेद-विज्ञान
इन सबकी ऑडियो अब प्रतिदिन अपने वॉट्सप पर प्राप्त करें ।
आज ही ऋषि मिशन परिवार में शामिल होंवे एवं इस पोस्ट को अपने मित्रों तक पहुंचाए ।

वैदिक सत्य सनातन धर्म प्रचार-प्रसार में आपका सहयोग अपेक्षित है ।

हमारा वॉट्सप नं.
०९३१४३९४४२१,09314394421


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👏👏 सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस...

👏👏 सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत्, न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन, उस समय केवल वही था, जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से सांस ले रहा था, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।

‘ब्रह्म वह है जिसमें से संपूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं, विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म है, -(ऋग्वेद, उपनिषद)
ब्रह्म से आत्मा, आत्मा से जगत की उत्पत्ति हुई।

आत्मा जिसे अनंत भी कहते हैं। आत्मा की सूक्ष्मता यह है कि एक केश (बाल) लेकर उसके सिरे की गोलाई (अग्र भाग) के 100 भाग किए, फिर उस प्रत्येक भाग के 100 भाग किए तो उसमें से एक भाग के बराबर आत्मा का परिमाण है अर्थात बाल का 10000 वां भाग।

आत्मा का रंग शुभ्र यानी पूर्ण श्वेत और बाद में नीला होता है, जब आत्मा में विकार उत्पन्न होता है तो उसका रंग बैंगनी हो जाता है, यह आत्मा एक काल और स्थान में हर काल और स्थान पर हो सकती है।

सर्वप्रथम महाशून्य स्थित बिंदु में इस स्पंदन से वायु प्रकट हुआ जिसने अग्नि को जन्म दिया, अग्नि ने जल को तथा जल ने धरती को प्रकट किया, अग्नि ही आदित्य है, वही हमारे शरीर में स्थित प्राण है।

ब्रह्मांड, धरती और धरती पर जीवन की उत्पत्ति ध्वनि, स्पंदन और ऊर्जा से हुई, पूरा ब्रह्मांड प्राथमिक ध्वनियों या स्पंदनों के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ है, पदार्थ और प्रतिपदार्थ के सायुज्यन से प्रकाश और गति का जन्म हुआ।

यदि हम हिन्दू कालगणना करें तो ब्रह्मांड की आयु 10 से 15 अरब वर्ष मानी जा सकती है और धरती की उम्र 4 अरब वर्ष से अधिक, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और सृष्टि की उत्पत्ति- ये दोनों अलग-अलग विषय हैं।

जब हम सृष्टि उत्पत्ति की बात करते हैं तो इसका मतलब धरती पर जीवन की उत्पत्ति से होता है, विश्व के अणु को विष्णु, ब्रह्म के अणु को ब्रह्माणु और ब्रह्म के इस दृश्यमान जगत को ब्रह्मांड या विश्‍व कहते हैं।

प्रारंभ में ईश्वर (ब्रह्म) ने सर्जक के रूप में स्वयं को अभिव्यक्त किया- “हिरण्य गर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसित।।’

अर्थात हिरण्यगर्भ यानी सुनहरा गर्भ, जिसके अंदर धरती, सूरज, चांद-सितारे, आकाशगंगाएं, ब्रह्मांडों के गोलक समाए थे और जिसे बाहर से 10 तरह के गुणों ने घेर रखा था, एक दिन वायु ने इसे तोड़ दिया।

वेद हिरण्यगर्भ रूप को पृथिवी और द्युलोक का आधार स्वीकार करते हैं, यह हिरण्यगर्भ रूप ही 'आप:’ के मध्य से जन्म लेता है, हिरण्यगर्भ से ही 'हिरण्य पुरुष’ का जन्म हुआ।

अनंत से महत्, महत् से अहंकार, अहंकार से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।

अनंत जिसे आत्मा कहते और जिसे ब्रह्म भी कहते हैं, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि (महत्) और अहंकार ये प्रकृति के 8 तत्व हैं।

यह ब्रह्मांड अंडाकार है, यह ब्रह्मांड जल या बर्फ और उसके बादलों से घिरा हुआ है, इससे जल से भी 10 ‍गुना ज्यादा यह अग्नि तत्व से ‍घिरा हुआ है और इससे भी 10 गुना ज्यादा यह वायु से घिरा हुआ माना गया है।

वायु से 10 गुना ज्यादा यह आकाश से घिरा हुआ है और यह आकाश जहां तक प्रकाशित होता है, वहां से यह 10 गुना ज्यादा तामस अंधकार से घिरा हुआ है और यह तामस अंधकार भी अपने से 10 गुना ज्यादा महत् से घिरा हुआ है।

और महत् उस एक असीमित, अपरिमेय और अनंत से घिरा है, उस अनंत से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है और उसी से उसका पालन होता है और अंतत: यह ब्रह्मांड उस अनंत में ही लीन हो जाता है।

प्रकृति का ब्रह्म में लय (लीन) हो जाना ही प्रलय है, यह संपूर्ण ब्रह्मांड ही प्रकृति कही गई है। इसे ही शक्ति कहते हैं।

धरती एक आग का गोला थी, हिन्दू धर्म के अनुसार महत् कल्प बीतने के बाद हिरण्य कल्प की शुरुआत हुई, इसमें धरती और उसका वायुमंडल गर्म था, स्वर्ण के समान था।

धरती पीली नजर आती थी, जैसे आज मंगल लाल नजर आता है, आकाश की गर्म वायु में जलवाष्प बना और फिर सैकड़ों वर्षों तक वर्षा से हमारी गर्म 'धरती’ जल और बर्फ में डूब गई।

धरती का एक भी ऐसे हिस्सा नहीं था जो जल में नहीं डूबा था, संपूर्ण धरती गहरे जल में मग्न हुई थी, तब जल के गर्भ में हिरण्यगर्भ की उत्पत्ति हुई, अर्थात जल में ही हुई जीवन की उत्पत्ति, इसीलिए भगवान विष्णु का स्थान जल में ही बताया जाता है।

हिन्दू धर्म के अनुसार धरती पर जीवन की उत्पत्ति के कई कारण हैं, जहां एक और धरती पर जीवन आकाशीय तत्वों के माध्यम से शुरू हुआ, वहीं जल में जीवन की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से अपने आप प्राकृतिक रूप से होती रही है।

हिन्दू धर्म के अनुसार सबसे पहले हिरण्यगर्भ उत्पन्न हुआ अर्थात जल का गर्भ, हालांकि इससे पूर्व भी कुछ था, जो शून्य था। सूर्य के प्रकाश के कारण हिरण्यगर्भ बना।

इसीलिए हिरण्यगर्भ को स्वर्ण अंडा कहा जाता है, वैज्ञानिक कहते हैं कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का इसमें सबसे बड़ा योगदान रहा।

जिस तरह हिरण्यगर्भ से ब्रह्मांड आदि ग्रह-नक्षत्रों की उत्पत्ति हुई उसी तरह अगले हिरण्यगर्भ से धरती पर जीवों की उत्पत्ति हुई, जैसे बीज (गर्भ) से वृक्ष निकला और वृक्षों पर हजारों फल के बीच में पुन: बीज (गर्भ) उत्पन्न हो गया।

जब धरती ठंडी होने लगी तो उस पर बर्फ और जल का साम्राज्य हो गया, तब धरती पर जल ही जल हो गया, संपूर्ण धरती जल में करोड़ों वर्षों तक डूबी रही।

इस जल में ही जीवन की उत्पत्ति हुई, आत्मा ने ही खुद को जल में व्यक्त किया फिर जल में ही जलरूप बना और उस जलरूप ने ही करोड़ों रूप धरे, आत्मा को ब्रह्म स्वरूप कहा गया है।

ऋग्वेद में आप: (जल) को जीवन उत्पत्ति के मूल क्रियाशील प्रवाह के रूप में व्यक्त किया है, वही हिरण्यगर्भ रूप है, इस हिरण्यगर्भ रूप में ब्रह्म का संकल्प बीज पककर विश्व-रूप बनता है।

इसी हिरण्यगर्भ से विराट पुरुष (आत्मा) एवं उसकी इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है और उसकी इन्द्रियों से देवताओं का सृजन होता है, यही जीवन का विकास-क्रम है।

सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ से अंडे के रूप का एक मुख प्रकट हुआ, मुख से वाक् इन्द्री, वाक् इन्द्री से 'अग्नि’ उत्पन्न हुई, तदुपरांत नाक के छिद्र प्रकट हुए, नाक के छिद्रों से 'प्राण’ और प्राण से 'वायु’ उत्पन्न हुई।

फिर नेत्र उत्पन्न हुए, नेत्रों से चक्षु (देखने की शक्ति) प्रकट हुए और चक्षु से 'आदित्य’ प्रकट हुआ, फिर 'त्वचा’, त्वचा से 'रोम’ और रोमों से वनस्पति-रूप 'औषधियां’ प्रकट हुईं।

उसके बाद 'हृदय’, हृदय से 'मन, 'मन’ से 'चन्द्र’ उदित हुआ, तदुपरांत 'नाभि, 'नाभि’ से 'अपान’ और अपान से 'मृत्यु’ का प्रादुर्भाव हुआ।

फिर 'जननेन्द्रिय’, 'जननेन्द्रिय’ से 'वीर्य’ और वीर्य से 'आप:’ (जल या सृजनशीलता) की उत्पत्ति हुई, यहां वीर्य से पुन: आप:’ की उत्पत्ति कही गई है।

यह आप: ही सृष्टिकर्ता का, आधारभूत प्रवाह है, वीर्य से सृष्टि का 'बीज’ तैयार होता है, उसी के प्रवाह में चेतना-शक्ति पुन: आकार ग्रहण करने लगती है, सर्वप्रथम यह चेतना-शक्ति हिरण्य पुरुष के रूप में सामने आई।

ब्रह्म की चार अवस्थाएं हैं !!!

अव्यक्त : जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता और जिसका प्रारंभ नहीं बताया जा सकता।

प्राज्ञ : अर्थात विशुद्ध ज्ञान या परम शांति अर्थात हिरण्य, यह हिरण्य पुरुष जल में जलरूप में ही ‍परम निद्रा में मग्न है।

यही ब्रह्मा, यही विष्णु और यही शिव है अर्थात जब यह सोता है तो विष्णु है, स्वप्न देखता है तो ब्रह्मा है और जाग्रत हो जाता है तो शिव है।

तेजस : यही हिरण्य से हिरण्यगर्भ बना। इसे ही ब्रह्मा कहा गया। ब्रह्म का गर्भ ब्रह्मा या विष्णु का गर्भ, विष्णु अर्थात विश्व का अणु।

अणु का गर्भ, यह स्वप्नावस्था जैसा है, कमल के खिलने जैसा है अर्थात निद्रा में स्वप्न देखना जाग्रति की ओर बढ़ाया गया एक कदम।

वैश्वानर : निद्रा में स्वप्न और ‍फिर स्वप्न का टूटकर जाग्रति फैलना ही वैश्वानर रूप है, यही शिव रूप है।

आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात आप सभी भाईयो और बहनो के लिए मंगलमय हो! !!!
जय महादेव! !!!
H.Mishra🙏🏻🙏🏻


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🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷 भूपेश आर्य 🌷नास्तिक द्वारा ईश्वर की सत्ता में किया गया प्रतिषेध:- १.प्रतिज्ञा-ईश्वर...

🌷🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷🌷

भूपेश आर्य

🌷नास्तिक द्वारा ईश्वर की सत्ता में किया गया प्रतिषेध:-
१.प्रतिज्ञा-ईश्वर नहीं है।
२.हेतु-संसार बना-बनाया होने से।
३.उदाहरण-पृथ्वी के समान।
४.उपनय-जैसे पृथ्वी बनी बनाई है,इसको बनते हुए किसी ने नहीं देखा,वैसे ही यह सम्पूर्ण संसार है।
५.निगमन-इसलिए संसार बना बनाया होने से ईश्वर नहीं है।

व्याख्या:-यह दिखाई देने वाला संसार न तो किसी ने बनाया है,और न ही यह अपने आप बना है;न तो इसको कोई नष्ट करेगा,और न ही कभी अपने आप नष्ट होगा।यह अनादि काल से ऐसे ही बना बनाया चला आ रहा है और अनन्त काल तक ऐसे ही चलता रहेगा।इस संसार के बनाने वाले किसी कर्त्ता को ,किसी ने कभी नहीं देखा।यदि देखा होता तो मान भी लेते कि हाँ,इसका कर्त्ता कोई ईश्वर है।इसलिए कर्त्ता न दिखाई देने से यही बात ठीक लगती है कि यह संसार बिना कर्ता के अनादिकाल से ऐसे ही बना बनाया चला आ रहा है और आगे भी अनन्तकाल त चलता रहेगा।

🌷आस्तिक द्वारा ईश्वर की सत्ता में किया गया मण्डन:-
१.प्रतिज्ञा-ईश्वर है।
२.हेतु-संसार का कर्त्ता होने से।
३.उदाहरण-बढई के समान।
४.जैसे बढ़ई मेज-कुर्सी का कर्त्ता होता है,वैसे ही ईश्वर संसार का कर्त्ता है।
५.निगमन-इसलिए संसार का कर्त्ता होने से ईश्वर है।

व्याख्या:-प्रत्येक वस्तु के कर्त्ता का निर्णय केवल प्रत्यक्ष देखकर ही नहीं होता,बल्कि अनुमानादि प्रमाणों से भी कर्त्ता का निर्णय होता है।बाजार से हम प्रतिदिन ऐसी अनेक वस्तुएँ लाते हैं,जिनको कारखानों,फैक्ट्रियों आदि में बनाया जाता है।इन वस्तुओं को बनाते हुए,कारिगरों को हम नहीं देख पाते हैं,तो क्या हम उन सबको बनी-बनाई मान, लेते हैं?जैसे कि पेन,घड़ी,रेड़ियो,टेपरिकार्डर,टेलीविजन,कार आदि।कोई भी विद्वान इन वस्तुओं को बनी बनाई नहीं मानता है।ऐसी अवस्था में पृथ्वी आदि विशाल ग्रह-उपग्रहों को बनाते हुए यदि हमने नहीं देखा तो यह कैसे मान लिया जाए कि ‘ये बने बनाए ही हैं'।जैसे पें,घड़ी,रेड़ियो,कार आदि को बनाने वाले कारीगर कारखानों में इनको बनाते हैं,वैसे ही पृथ्वी आदि पदार्थों को भी कोई न कोई अवश्य बनाता है।जो बनाता है,वही ईश्वर है।

किसी भी व्यक्ति ने अपने शरीर को बनते हुए नहीं देखा तो क्या यह मान लिया जाए कि 'हम सबका शरीर सदा से बना-बनाया है-यह कभी नहीं बना !’
ऐसा तो मानते हुए नहीं बनता।क्योंकि हम प्रतिदिन ही दूसरों के शरीरों को जन्म लेता हुआ देखते हैं और ऐसा अनुमान करते हैं कि जन्म से ९-१० मास पहले यह शरीर नहीं था।इस काल में इस शरीर का निर्माण हुआ है।जबकि हमने शरीर को बनते हुए नहीं देखा,फिर भी इसको बना हुआ मानते हैं।ठीक इसी पसे पृथ्वी आदि पदार्थो को भी यदि बनते हुए न देख पाये,तो इतने मात्र से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि पृथ्वी आदि संसार के पदार्थ सदा से बने बनाये है।जैसे हमने अपने शरीरों को बनते हुए नहीं देखा,फिर भी इन्हें बना हुआ मानते हैं,ऐसे ही पृथ्वी आदि पदार्थ भी हमने बनते हुए नहीं देखे,परन्तु ये भी बने हुए हैं,ऐसा ही मानना चाहिए।

'पृथ्वी बनी है’ इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं।जो भी वस्तु टूट जाती है,वह वस्तु कभी ना कभी अवश्य ही बनी थी,यह सिद्धान्त है।जैसे गिलास के किनारे पर एक हल्की चोट मारने से गिलास का एक किनारा टूट जाता है और यदि गिलास पर बहुत जोर से चोट मारी जाए,तो पूरा-गिलास चूर-२ हो जाता है।वैसे ही पृथ्वी के एक भाग पर फावले-कुदाल से चोट मारने पर इसके टुकड़े अलग हो जाते हैं,तीव्र विस्फोटकों=(Dynamite) आदि साधनों के द्वारा जोर से चोट करने पर बड़े-२ पहाड़ आदि भी टूट जाते हैं।इसी प्रकार अणु-परमाणु बमों आदि से बहुत जोर से चोट मारी जाए तो तरह पूरी पृथ्वी भी टूट सकती है।इससे सिद्ध हुआ कि गिलास जैसे टूटा था-तब जबकि वह बना था,इसी प्रकार से पृथ्वी भर यदि टूट जाती है,तो वह भी अवश्य ही बनी थी।और इसको बनाने वाला ईश्वर ही है।

विज्ञान का यह सिद्धान्त है कि संसार का सूक्ष्मतम भाग परमाणु ही केवल ऐसा तत्त्व है,जिसको न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।परमाणु से स्थूल संसार के जितने भी पदार्थ हैं,वे छोटे-छोटे परमाणुओं से मिलकर बने हैं।और क्योंकि वे मिलकर बने हैं,इसलिए नष्ट भी हो जाते हैं।इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वी भी छोटे-२ परमाणुओं से मिलकर बनी है,वह सदा से बनी-बनाई नहीं है।और जब पृथ्वी बनी है,तो इसका बनाने वाला भी कोई न कोई अवश्य है।"कोई वस्तु अपने आप नहीं बनती"।इसलिए पृथ्वी आदि संसार के सभी पदार्थों को बनाने वाला ईश्वर भी है।


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Sunday, February 21, 2016

मित्रो क्या आपने कभी विचार नहीं किया ?? कि आखिर जिस Refine तेल से आप अपनी और अपने छोटे बच्चों की...

मित्रो क्या आपने कभी विचार नहीं किया ??

कि आखिर जिस Refine तेल से आप अपनी और अपने छोटे बच्चों की मालिश नहीं कर सकते , जिस Refine को आप बालों मे नहीं लगा सकते , आखिर उस हानिकारक Refine तेल को कैसे खा लेते हैं ??

2 मिनट समय देकर Refine तेल की पुरी कहानी जरूर पढ़ें । 
पूरी Post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ CLICK करें ।

LINK https://goo.gl/8AraSO

मित्रो आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइन तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 30-35 वर्षों से हमारे देश में आया है | कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं | शुरुवात मे इन्होने चक्कर चलाया और टेलीविजन के माध्यम से जम कर प्रचार किया लेकिन लोगों ने इनकी बात को माना नहीं तब इन्होने डाक्टरों के माध्यम से कहलवाना शुरू किया | डाक्टरों ने अपने प्रेस्क्रिप्सन में रिफाइन तेल लिखना शुरू किया कि तेल खाना तो सफोला का खाना या सनफ्लावर का खाना, ये नहीं कहते कि तेल, सरसों का खाओ या मूंगफली का खाओ, अब क्यों, आप सब समझदार हैं समझ सकते हैं |

पहले ये जान लीजिये ये रिफाइन तेल बनता कैसे हैं ? मैंने देखा है और आप भी कभी देख लें तो बात समझ जायेंगे | किसी भी तेल को रिफाइन करने में 6 से 7 केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइन करने में ये संख्या 12 -13 हो जाती है | ये सब केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए हैं प्रयोगशाला में, भगवान का बनाया हुआ एक भी केमिकल इस्तेमाल नहीं होता, भगवान का बनाया मतलब प्रकृति का दिया हुआ जिसे हम ओरगेनिक कहते हैं |

तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब Inorganic हैं और Inorganic केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका combination जहर के तरफ ही ले जाता है | इसलिए रिफाइन तेल, डबल रिफाइन तेल गलती से भी न खाएं |

फिर आप कहेंगे कि, क्या खाएं ? तो आप शुद्ध तेल खाइए, सरसों का, मूंगफली का, तीसी का, या नारियल का | अब आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है | हमलोगों ने जब शुद्ध तेल पर काम किया या एक तरह से कहे कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है | तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला जाता है तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है वो उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास आप पाते हैं वो उसका Organic content है

प्रोटीन के लिए | 4 -5 तरह के प्रोटीन हैं सभी तेलों में, आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका Fatty Acid गायब | अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी | और ऐसे रिफाइन तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, घुटने दुखना, कमर दुखना, हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं, सबसे खतरनाक बीमारी है, हृदयघात (Heart Attack), पैरालिसिस, ब्रेन का डैमेज हो जाना, आदि, आदि | जिन-जिन घरों में पुरे मनोयोग से रिफाइन तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे, अभी तो मैंने देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइन तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्ही के यहाँ Heart Blockage और Heart Attack की समस्याएं हो रही है |

जब हमने सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डोक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इसपर काम किया और उन डोक्टरों ने जो कुछ भी बताया उसको मैं एक लाइन में बताता हूँ क्योंकि वो रिपोर्ट काफी मोटी है और सब का जिक्र करना मुश्किल है, उन्होंने कहा “तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं

तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है |” आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ? 
मैं बता दूँ पहले आप ये जान लीजिये चिकनाहट भी दो तरह की होती है अच्छी चिकनाहट बुरी चिकनाहट । आपके चेहरे पर जो चमक है ,आपके घुटने हिलते डुलते है , आपके हाथ की उँगलियाँ मुड़ती है खुलती है ये सब अच्छी चिकनाहट के कारण है ,

कभी आप कोलोस्ट्रोल चैक करवाने जाएँ तो रिपोर्ट मे आप देखेंगे और डाक्टर आपको कहेगा आपका HDL (High Density Lipoprotein) बढ़ना चाहिए और LDL (LOW Density Lipoprotein) कम होना चाहिए । 
साधारण भाषा मे बोले तो HDL अर्थात अच्छी वाली चिकनाहट और LDL अर्थात गंदी वाली चिकनाहट । ( जो heart मे blockage करती है )

तो कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotein), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब | तो आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे |

अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है | मलेशिया नामक एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में। वहां का एक तेल है जिसे पामोलिन तेल कहा जाता है, हम उसे पाम तेल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है |

7 -8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दुसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है | भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है |

और जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा | क्योंकि पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है और ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी dissolve नहीं होते हैं, किसी भी तापमान पर dissolve नहीं होते और ट्रांस फैट जब शरीर में dissolve नहीं होता है तो वो बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और आदमी पैरालिसिस का शिकार होता है, डाईबिटिज होता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है |

तो मित्रो अच्छी चिकनाहट) (HDL ) लेने के लिए हमेशा शुद्ध तेल खाएं पहाड़ो मे रहने वाले तिल का तेल सबसे बढ़िया , मैदानी क्षेत्र मे रहने वालों के लिए सरसों का तेल सबसे बढ़िया , और समुन्द्र के पास रहने वालों के लिए नारियल का तेल सबसे बढ़िया । इसके अतिरिक्त मूँगफली आदि का तेल भी प्रयोग कर सकते है ।

आपने पूरी पोस्ट पढ़ी आप सबका बहुत बहुत आभार । 
अपने स्वास्थ्य से संबधित अधिक जानकारी के लिए 
यहाँ जरूर click करें ।

LINK https://www.youtube.com/watch?v=1tcXnd26rjo

इस जानकारी को अधिक से अधिक जरूर share करें 
अमर बलिदानी राजीव भाई को शत शत नमन । 
वन्देमातरम


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९ फाल्गुन 21 फरवरी 2016 😶 “ सुख प्रदान कर ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् नह्म९न्यं बळाS...

९ फाल्गुन 21 फरवरी 2016

😶 “ सुख प्रदान कर ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् नह्म९न्यं बळाS करं मडितारं शतक्रतो। 🔥🔥
🍃🍂 त्वं न इन्द्र मृठ्ठय।। 🍂🍃

ऋक्० ८ । ८०। १

ऋषि:- एकद्यूनौंधस: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:-गायत्री ।।

शब्दार्थ- हे शतयज्ञ !
तुझसे अन्य किसी सुखयिता को सचमुच ही मैं नहीं करता हूँ, अत: हे परमेश्वर ! तू हमें सुखी कर ।

विनय:- सचमुच तेरे सिवाय, हे शतक्रतो !
इस संसार में और कोई सुखयिता नहीं है । इन भोग्य विषयों को, जिनके सुख पाने को यह संसार मरा जाता है, मैंने खूब जांचा है, खूब परखा है, परन्तु हे इन्द्र ! मैंने देखा है कि इनमें तो सुख का लेश भी नहीं है । स्वजनों से प्रेम,धन-वैभव, मान-प्रतिष्ठा आदि को सुखदाता प्राय: सभी अनुभव करते है, परन्तु हे इन्द्र ! मैंने देखा हैं कि उनमें भी कोई सुख नहीं है, जो कुछ इनमें उपलब्ध होता है वो भी इनका अपना नहीं होता है । मैं देखता हूँ कि तेज भूकग में रुखासूखा खा लेने से जो स्वाभाविक सुख मिलता है, या गुरुचरणों के चरण स्पर्श से जो सात्विक सुख मिलता है उसका भी कारण वो भोजन या गुरुचरण नहीं है तूहै तू है इन्द्र तू है
तो मुझे जैसा पुरष सुख पाने के लिए दर दर कियूं फिरेगा ? जिसने देख लिए संसार झूठन और आंशिक सुख भोग रहा है और असली सुख से कोसों दूर है वो सुख के भण्डार के पास तेरे पास आएगा । इसलिए मैंने तो सुखयिता के लिए तुझे वर लिया है मुझे तो अब जिस सुख की प्यास है वह तेरा सुख है, सीधा तुझसे मिलनेवाला विशुद्ध सुख है । मुझे दूसरे तीसरे और हज़ारों हाथों से आया सुख भी नहीं चाहिए । मुझे चातक की प्यास तो अब तुझसे आनेवाली तेरी निर्मल दिव्य सुख से ही मिट सकती है । इसलिए हे इंद्र ! तू मुझे अपना सुख प्रदान कर, स्वयं अपना सुख प्रदान कर🙏🏼🙏🏼



🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें, पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें, पहले से हम...

आओ मिलकर आग लगाएं,नित नित नूतन स्वांग करें,
पौरुष की नीलामी कर दें,आरक्षण की मांग करें,
पहले से हम बंटे हुए हैं,और अधिक बंट जाएँ हम,
100 करोड़ हिन्दू है,मिलकर इक दूजे को खाएं हम,
देश मरे भूखा चाहे पर अपना पेट भराओ जी,
शर्माओ मत,भारत माँ के बाल नोचने आओ जी,
तेरा हिस्सा मेरा हिस्सा,किस्सा बहुत पुराना है,
हिस्से की रस्साकसियों में भूल नही ये जाना है,
याद करो ज़मीन के हिस्सों पर जब हम टकराते थे,
गज़नी कासिम बाबर मौका पाते ही घुस आते थे
अब हम लड़ने आये हैं आरक्षण वाली रोटी पर,
जैसे कुत्ते झगड़ रहे हों कटी गाय की बोटी पर,
हमने कलम किताब लगन को दूर बहुत ही फेंका है,
नाकारों को खीर खिलाना संविधान का ठेका है,
मैं भी पिछड़ा,मैं भी पिछड़ा,कह कर बनो भिखारी जी,
ठाकुर पंडित बनिया सब के सब कर लो तैयारी जी,
जब पटेल के कुनबों की थाली खाली हो सकती है,
कई राजपूतों के घर भी कंगाली हो सकती है,
बनिए का बेटा रिक्शे की मज़दूरी कर सकता है,
और किसी वामन का बेटा भूखा भी मर सकता है,
आओ इन्ही बहानों को लेकर,सड़कों पर टूट पड़ो,
अपनी अपनी बिरादरी का झंडा लेकर छूट पड़ो,
शर्म करो,हिन्दू बनते हो,नस्लें तुम पर थूंकेंगी,
बंटे हुए हो जाति पंथ में,ये ज्वालायें फूकेंगी,
मैं पटेल हूँ मैं गुर्जर हूँ,लड़ते रहिये शानों से,
फिर से तुम जूते खाओगे गजनी की संतानो से,
ऐसे ही हिन्दू समाज के कतरे कतरे कर डालो,
संविधान को छलनी कर के,गोबर इसमें भर डालो,
राम राम करते इक दिन तुम अस्सलाम हो जाओगे,
बंटने पर ही अड़े रहे तो फिर गुलाम हो जाओगे…।।


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Saturday, February 20, 2016

● महर्षि दयानन्द जी ने किया - लगातार नव घंटे संस्कृत में शास्त्रार्थ...

● महर्षि दयानन्द जी ने किया - लगातार नव घंटे संस्कृत में शास्त्रार्थ ●
———————————-
- प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा (16.02.2016)

चिन्तनीय बातें :

● ‘सत्यमेव जयति’ अपने आप नहीं होता है, प्रत्युत सत्य को भी पुरुषार्थ पूर्वक जिताना पड़ता है ।

● सुयोग्य - सुपात्र व्यक्ति से शास्त्र-चर्चा करने में समय लगाना फलदायक रहता है - इसका उदाहरण है यह शास्त्रार्थ ।

● अद्वैतवाद - नवीन वेदान्त के अन्धकार को दूर करने के लिए महर्षि ने दो ग्रन्थ लिखें - 1. 'अद्वैत मत खण्डन’ और 2. 'वेदान्ति ध्वान्त निवारण’ । प्रथम ग्रन्थ अप्राप्य है । 'वेदान्ति ध्वान्त निवारण’ के अन्त में महर्षि ने अद्वैत मत को मानने से होने वाली हानियों का वर्णन किया है ।

● महर्षि ने सत्यार्थप्रकाश में 7-8-9 और 11 - इन चार समुल्लासों में नवीन वेदान्त का खण्डन किया है । सत्यार्थप्रकाश में इतना विस्तार से खण्डन तो मूर्तिपूजा का भी नहीं किया गया है । नवीन वेदान्तियों की गणना उन्होंने नास्तिकों की कोटि में की है ।

● अपने आरम्भिक काल में दयानन्द जी भी कुछ काल पर्यन्त अद्वैतवादी रहे थे । परन्तु कालान्तर में पंचदशी नामक वेदान्ती पुस्तक को पढ़कर वे सावधान हो गए और तुरन्त ही उन्होंने पंचदशी की कथा करना बन्द कर दिया । आगे चलकर वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन व मनन से उन्होंने ज्ञान आलोक प्राप्त किया और ईश्वर-जीव-प्रकृति रूपी तीन अनादि मूल सत्ताओं को मान्य कर वैदिक त्रैतवाद के प्रवर्त्तक बनें ।

● निम्नलिखित शास्त्रार्थ को पढ़ने से हम इस बात का अनुमान कर सकते हैं कि अविद्या-अन्धकार को दूर करने के लिए महर्षि ने कितना पुरुषार्थ किया होगा ।

● शास्त्रार्थ का विवरण ●
———————————

1879 ई० (सम्वत् 1936 वि०) में आयोजित हरिद्वार का कुम्भ मेला चल रहा है । आर्य समाज के प्रवर्त्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने यहाँ अपना डेरा लगाया है । उनका वेद धर्म का मण्डन और पाखण्ड मत का खण्डन कार्यक्रम सर्वात्मना चल रहा है । एक दिन प्रातः काल लगभग 6.30 बजे अकस्मात् एक वृद्ध संन्यासी महात्मा महर्षि के डेरे की ओर आते हुए दिखाई देते हैं । उनकी आयु 80 वर्ष से कम नहीं है, परन्तु शरीर स्वस्थ और बलिष्ठ है । उनके चेहरे पर ओज और तेज है । कफ़नी पहनी है और शिर मुंडाया हुआ है । नाम है - आनन्दवन । उनके साथ उन्हीं की आकृति के उनके 10-12 शिष्य भी हैं । महर्षि ने उन्हें दूर से ही अपने डेरे की तरफ आते हुए देख लिया था । अत: डेरे के द्वार पर जाकर महर्षि ने सस्मित उनका स्वागत किया और भीतर ले जाकर उन्हें सम्मानपूर्वक गद्दी पर बिठलाया । आनन्दवन जी नवीन वेदान्ती हैं, शांकर मतानुयायी हैं, एक मात्र ब्रह्म को ही सत्य मानते हैं । उनकी दृष्टि में जीव और ब्रह्म एक ही है, अभिन्न है और यह जगत् मिथ्या है । दोनों संन्यासी महानुभाव बैठते ही मुस्कराते हुए शास्त्रार्थ में प्रवृत्त हुए । दोनों संस्कृत में ही वार्तालाप कर रहे हैं । जीव-ब्रह्म की अभिन्नता और 'अहं ब्रह्मास्मि’ इत्यादि तथाकथित 'महावाक्यों’ के सत्यार्थ को लेकर गम्भीरता पूर्वक वाद चल रहा है । 6.30 बजे आरम्भ हुआ है यह वार्तालाप, परन्तु अब तो 11 बज गया है । भोजन के लिए योगी सन्तनाथ सूचना देने आए । महर्षि ने आनन्दवन जी और उनके शिष्यों को भोजन ग्रहण करने की विनती की । परन्तु आनन्दवन जी ने कहा कि जब तक इन प्रश्नों का निर्णय न हो जाएगा तब तक मैं भोजन नहीं करूँगा । भोजन किए बिना ही शास्त्रालाप पुनः अविरत चलने लगा । महर्षि ने चारों वेद एवं अन्य 60-65 ग्रन्थ अपनी सन्दूकों से निकलवाएं और उनमें से अनेक प्रमाण-वाक्य आनन्दवन जी को दिखलाने लगे । दो बजे तक यही क्रम चलता रहा । दो बजे के पश्चात् दोनों उठ खड़े हुए और परस्पर कुछ बातें करने लगे । महर्षि के वेदशास्त्र अनुमोदित एवं युक्तिपूर्ण पक्ष को सुनकर अब आनन्दवन जी को समाधान प्राप्त हो गया था । उन्होंने खड़े होकर अपने प्रिय शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा - मैंने दयानन्द जी के मत को स्वीकार कर लिया है । मैं आज पर्यन्त अद्वैत मतानुयायी था, मगर आज दयानन्द जी के दार्शनिक मत को मैंने हृदयंगम कर लिया है । वेदान्त का वास्तविक स्वरुप आज मेरी समझ में आ गया है । मेरे संशय निवृत्त हो गए हैं । मेरा मिथ्या ब्रह्मवाद उड़ गया है । इसलिए हे मेरे शिष्यों, अब आपको भी ऐसा ही करना उचित है । इस वक्तव्य के पश्चात् आनन्दवन जी बिना भोजन किए ही चले गए । उसके पश्चात् भी वे कभी-कभी सभा-मण्डप में आते रहते थे, परन्तु कभी बैठे नहीं । मुस्कराकर आनन्द से थोड़ी देर खड़े रहकर चले जाते थे । शास्त्रार्थ वाले दिन किसी के पूछने पर महर्षि ने उनके सम्बन्ध में कहा था कि - यह बड़े विद्वान् संन्यासी हैं । अब तक वे जीव-ब्रह्म को एक मानते थे, परन्तु अब हमारे समान जीव और ब्रह्म को पृथक्-पृथक् मानने लगे हैं ।

(महर्षि दयानन्द जी के प्रामाणिक जीवनचरित्रों से संकलित)
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Thursday, February 18, 2016

🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷 भूपेश आर्य 🌷अवतारवाद चरित्रनाश का मूल कारण🌷 ईश्वर की जगह जब इन मूर्तियों की पूजा शुरु...

🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷

भूपेश आर्य

🌷अवतारवाद चरित्रनाश का मूल कारण🌷

ईश्वर की जगह जब इन मूर्तियों की पूजा शुरु हो गयी तो उन्हें ईश्वर सिद्ध करने के लिए -‘ईश्वर भी माँ के गर्भ में आकर जन्म लेता है।अवतारवाद का यह महानिकम्मा,तर्क-शून्य और चरित्र-नाशक सिद्धान्त घड़ा गया।१४ अवतार बना डाले गये जिनमें कच्छप (कछुआ) और बाराह (सूअर) के अवतार भी शामिल हैं।अपने घोर से घोर पापों को छिपाने के लिए श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों को एक और तो ईश्वर बता गया है तो दूसरी और शर्म को शर्माने वाली पाप की कहानियाँ उनके पवित्र जीवनों के साथ जोड़ दी गई।क्योंकि अब कहा जा सकता था कि जब भगवान् ही दानलीला,चीरहरणलीला,माखनचोरी लीला के रुप में चोर जार शिरोमणि बनाकर चोरों और व्यभिचारियों के सरदार बन सकते हैं तो हमारे ऐसा करने में क्या दोष है?

महापुरुषों का किसी देश और जाति को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि राष्ट्र की भावी पीढ़ियाँ उनसे प्रेरणा और प्रकाश लेती हैं।महापुरुष राष्ट्र के प्रकाश-स्तम्भ होते हैं।पर जब उन्हें ईश्वर बना दिया जाता है तो यह बड़ा लाभ खत्म हो जाता है।महापुरुषों के जीवन से जब कभी किसी बात की मिसाल दी जाती है तो हम सोच लेते हैं कि अमुक काम तो वही कर सकते थे।वे ईश्वर थे,हम साधारण लोग ऐसा काम कैसे कर सकते हैं?

तो हर अच्छे और ऊंचे काम से छुट्टी पाने का बहाना और हर नीच काम का समर्थन 'अवतारवाद’ की आड़ में हमें मिलने लगा।रही सही कसर मिथ्यामहात्म्यों और 'कलियुग केवल नाम अधारा’ की मान्यता ने पूरी कर दी।कैसा भी पाप करो पहले तो कलियुग के मत्थे मढ़कर ही छुट्टी फिर गंगा,यमुना में नहा लो सारे गुनाह माफ ! दशहरे के दिन नीलकण्ठ के दर्शन से २१ पीढ़ियाँ तर जावेगी।गंगा में नहाने ,गंगाजल स्पर्श करने और गंगाजल के दर्शन का तो अपार पुण्य है ही पर चार सौ कोस या ८०० मील से ही 'गंगा-गंगा’ कहने से भी सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।पाप की खुला छुट्टी का कैसा बढ़िया लाइसेन्स है,यह ! पाप से रोकने के लिए नहीं,पाप के नतीजे से बचने के लिए गुरुपूजा,तीर्थयात्रा,श्राद्ध,व्रत,उपवास इन उत्तम बातों को भी ऐसे भ्रान्त रुप में पेश किया गया जिससे पाप और दुश्चरित्रता को खूब बढ़ावा मिला।हर पाप का समर्थन करने के लिए एक नया देवता घड़ लिया जाता था।
सब और से यही आवाज थी-आओ,हमारा देवता सबसे ऊंचा है।उसमें शाप और वरदान की अनन्त शक्तियाँ हैं।हर पाप का सस्ते से सस्ता प्रायश्चित हमारे पास है।आओ हमारे देवता की सजावट और श्रृंगार देखो,निहाल हो जाओगे-आदि-२ और इस गोरख धन्धे का नाम रखा गया-'सनातन धर्म।’


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नमस्ते मित्रों
वेद-विज्ञान की सम्पूर्ण ३० कड़ियां देखने हेतु
निम्न लिंक पर जायें
१ से ३० तक मनोविज्ञान एवं शिवसंकल्प सूत्रों की विशेष व्याख्या
विडियो में आज ही देखें एवं अपने मित्रों को भी बताएं ।

ऋषि मिशन की प्रस्तुति…


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Sunday, February 14, 2016

(जेएनयू परिसर में राष्ट्रद्रोही प्रदर्शन करने वाले छात्रसंगठनो और उनका पक्ष लेते राजनेताओं से देश को...

(जेएनयू परिसर में राष्ट्रद्रोही प्रदर्शन करने वाले छात्रसंगठनो और उनका पक्ष लेते राजनेताओं से देश को सावधान करती मेरी नई कविता)
सुदीप

खतरे का उदघोष बजा है,रणभूमी तैयार करो,
सही वक्त है,चुन चुन करके,गद्दारों पर वार करो,

आतंकी दो चार मार कर हम खुशियों से फूल गए,
सरहद की चिंताओं में हम घर के भेदी भूल गए,

सरहद पर कांटे हैं,लेकिन घर के भीतर नागफनी,
जिनके हाथ मशाले सौंपी,वो करते है आगजनी,

ये भारत की बर्बादी के कसे कथानक लगते हैं,
सच तो है दहशतगर्दों से अधिक भयानक लगते हैं,

संविधान ने सौंप दिए हैं अश्त्र शस्त्र आज़ादी के,
शिक्षा के परिसर में नारे भारत की बर्बादी के,

अफज़ल पर तो छाती फटती देखी है बहुतेरों की,
मगर शहादत भूल गए हैं सियाचीन के शेरों की,

जिस अफज़ल ने संसद वाले हमले को अंजाम दिया,
जिस अफज़ल को न्यायालय ने आतंकी का नाम दिया,

उस अफज़ल की फांसी को बलिदान बताने निकले हैं,
और हमारे ही घर में हमको धमकाने निकले हैं,

बड़ी विदेशी साजिश के हथियार हमारी छाती पर,
भारत को घायल करते गद्दार हमारी छाती पर,

नाम कन्हैया रखने वाले,कंस हमारी छाती पर,
माल उड़ाते जयचंदों के वंश हमारी छाती पर,

लोकतंत्र का चुल्लू भर कर डूब मरो तुम पानी में,
भारत गाली सह जाता है खुद अपनी रजधानी में,

आज वतन को,खुद के पाले घड़ियालों से खतरा है,
बाहर के दुश्मन से ज्यादा घर वालो से खतरा है,

देशद्रोह के हमदर्दी हैं,तुच्छ सियासत करते है,
और वतन के गद्दारों की खुली वकालत करते है,

वोट बैंक की नदी विषैली,उसमे बहने वाले हैं,
आतंकी इशरत को अपनी बेटी कहने वाले हैं,

सावधान अब रहना होगा वामपंथ की चालों से,
बच कर रहना टोपी पहने ढोंगी मफलर वालों से,

राष्ट्रवाद के रखवालों मत सत्ता का उपभोग करो,
दिया देश ने तुम्हे पूर्ण,उस बहुमत का उपयोग करो,

हम भारत के आकाओं की ख़ामोशी से चौंके हैं,
एक शेर के रहते कैसे कुत्ते खुलकर भौंके हैं,

मन की बाते बंद करो,मत ज्ञान बाँटिये मोदी जी,
सबसे पहले गद्दारों की जीभ काटिये मोदी जी,

नहीं तुम्हारे बस में हो तो,हमें बोल दो मोदी जी,
संविधान से बंधे हमारे हाथ खोल दो मोदी जी,

अगर नही कुछ किया,समूचा भार उठाने वाले हैं,
हम भारत के बेटे भी हथियार उठाने वाले हैं,
(कृपया मूलरूप में ही शेयर करें,एडिटिंग बिलकुल भी न करें)


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स्वस्थ रहने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी:- 1- 90% रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं...

स्वस्थ रहने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी:-

1- 90% रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2- कुल 13 अधारणीय वेग हैं।

3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है।

4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6- 48% रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9 ठन्डे पानी और आइसक्रीम खाने से बड़ी आतं सिकुड़ जाती है।

10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन बढ़ सकता है) होती है।

13- दूध(चाय) के साथ नमक(नमकीन खाद्यपदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14- शैम्पू, कंडीशनर आदि द्रव्यों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15- ज्यादा गर्म जल के स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर होने लगता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो सकती हैं।

16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में अक्सर दर्द बना रहता है।

18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22- भोजन समय पर न करने या अधिकतर बाहर का भोजन खाने से आंतो में सूजन (कोलाइटिस) की बीमारी हो जाती है।

23- नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध होता है।

24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी, सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औशधियां हैं।

28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29- फल खाने से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुएं आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी या बासी पानी पीने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं।

32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34- फल, मीठा और घी / तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35- भोजन पकने के 48 मिनट के अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।

स्वदेशी अपनाये देश को समृद्ध बनाए।

// स्वस्थ भारत // स्वदेशी भारत // समृद्ध भारत //

#भारतस्वदेशी #भारत #स्वदेशी #BharatSwadeshi #Bharat #Swadeshi #India #Health #Tips #HealthTips


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!!!—: संस्कृत-भाषा का इतिहास :—!!! ========================== === आधुनिक विद्वानों के...

!!!—: संस्कृत-भाषा का इतिहास :—!!!
========================== ===

आधुनिक विद्वानों के अनुसार संस्कृत भाषा का अखंड प्रवाह पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है। भारत में यह आर्यभाषा का सर्वाधिक महत्वशाली, व्यापक और संपन्न स्वरूप है। इसके माध्यम से भारत की उत्कृष्टतम मनीषा, प्रतिभा, अमूल्य चिंतन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जना और वैचारिक प्रज्ञा का अभिव्यंजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रंथनिर्माण की क्षीण धारा अविच्छिन्न रूप से बह रही है। आज भी यह भाषा, अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सही, बोली जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषा-भाषी पंडितजन इसका परस्पर वार्तालाप में प्रयोग करते हैं। हिंदुओं (आर्यों ) के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़) से संस्कृत की स्थिति भिन्न है। यह मृतभाषा नहीं, अमरभाषा (अमृतभाषा) है।

मुख्य लेख : वैदिक संस्कृत

ऋक्संहिता की भाषा को संस्कृत का आद्यतम उपलब्ध रूप कहा जा सकता है। यह भी माना जाता है कि ऋक्संहिता के प्रथम और दशम मंडलों की भाषा प्राचीनतर है। कुछ विद्वान् प्राचीन वैदिक भाषा को परवर्ती पाणिनीय (लौकिक) संस्कृत से भिन्न मानते हैं। पर यह पक्ष भ्रमपूर्ण है। वैदिक भाषा अभ्रांत रूप से संस्कृत भाषा का आद्य उपलब्ध रूप है। पाणिनि ने जिस संस्कृत भाषा का व्याकरण लिखा है उसके दो अंश हैं -

(1) जिसे अष्टाव्यायी में “छंदस्” कहा गया है,
(2) भाषा (जिसे लोकभाषा या लौकिक भाषा के रूप में माना जाता है)।

आचार्य पतंजलि के “व्याकरण महाभाष्य” नामक प्रसिद्ध शब्दानुशासन के आरंभ में भी वैदिक भाषा और लौकिक भाषा के शब्दों का उल्लेख हुआ है। “संस्कृतनाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभि:” वाक्य में जिसे देवभाषा या ‘संस्कृत’ कहा गया है वह संभवत: यास्क, पाणिनि, कात्यायन और पंतजलि के समय तक “छंदोभाषा” (वैदिक भाषा) एवं “लोकभाषा” के दो नामों, स्तरों व रूपों में व्यक्त थी।

बहुत से विद्वानों का मत है कि भाषा के लिए “संस्कृत” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड (30 सर्ग) में हनुमान् द्वारा विशेषणरूप में (संस्कृता वाक्) किया गया है।

भारतीय परम्परा की किम्वदन्ती के अनुसार संस्कृत भाषा पहले अव्याकृत थी, अर्थात् उसकी प्रकृति एवं प्रत्ययादि का विश्लिष्ट विवेचन नहीं हुआ था। देवों द्वारा प्रार्थना करने पर देवराज इंद्र ने प्रकृति, प्रत्यय आदि के विश्लेषण विवेचन का उपायात्मक विधान प्रस्तुत किया। (इसका विस्तृत इतिहास महामहोपाध्याय आचार्य श्री युधिष्ठिर जी मीमांसक रचित संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास–भाग-प्रथम में पढें) इसी “संस्कार” विधान के कारण भारत की प्राचीनतम आर्यभाषा का नाम “संस्कृत” पड़ा। ऋक्संहिताकालीन “साधुभाषा” तथा 'ब्राह्मण’, 'आरण्यक’ और 'एकादशोपनिषद्’ नामक ग्रंथों की साहित्यिक “वैदिक भाषा” के अनन्तर विकसित स्वरूप ही “लौकिक संस्कृत” या “पाणिनीय संस्कृत” कहलाया। इसी भाषा को “संस्कृत”,“संस्कृत भाषा” या “साहित्यिक संस्कृत” नामों से जाना जाता है।

भाषाध्वनि-विकास की दृष्टि से “संस्कृत” का अर्थ है - सम् (सम्यक्तया–अच्छी तरह से) से (कृत) बनी। अध्यात्म एवं सम्पर्क-विकास की दृष्टि से “संस्कृत” का अर्थ है - स्वयं से कृत् या जो आरम्भिक लोगों को स्वयं ध्यान लगाने एवं परस्पर सम्पर्क से आ गई। कुछ लोग संस्कृत को एक संस्कार (सांसों का कार्य) भी मानते हैं।

देश-काल की दृष्टि से संस्कृत के सभी स्वरुपों का मूलाधार पूर्वोत्तर काल में उदीच्य, मध्यदेशीय एवं आर्यावर्त्तीय विभाषाएँ हैं। पाणिनीय सूत्रों में “विभाषा” या “उदीचाम्” शब्दों से इन विभाषाओं का उल्लेख किया गया है। इनके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों में “प्राच्य” आदि बोलियाँ भी बोली जाती थीं। किन्तु पाणिनि ने नियमित व्याकरण के द्वारा भाषा को एक परिष्कृत एवं सर्वप्रयोग में आने योग्य रूप प्रदान् किया। धीरे - धीरे पाणिनि सम्मत भाषा का प्रयोगरूप और विकास प्राय: स्थायी हो गया। पतंजलि के समय तक आर्यावर्त (आर्यनिवास) के शिष्ट जनों में संस्कृत प्राय: बोलचाल की भाषा बन गई। “गादर्शात्प्रत्यक्कालकवनाद्दक्षिणेन हिमवंतमुत्तरेण वारियात्रमेतस्मिन्नार्यावर्ते आर्यानिवासे….. (व्याकरण महाभाष्य, 6। 3। 109)” उल्लेख के अनुसार शीघ्र ही संस्कृत समग्र भारत के द्विजातिवर्ग और विद्वत्समाज की सांस्कृतिक, विचाराकार एवं विचार आदान प्रदान की भाषा बन गई।

काल विभाजन :—
=============

संस्कृत भाषा के विकास स्तरों की दृष्टि से अनेक विद्वानों ने अनेक रूप से इसका ऐतिहासिक काल विभाजन किया है। सामान्य सुविधा की दृष्टि से अधिक मान्य निम्नांकित काल विभाजन दिया जा रहा है -

(1) आदिकाल (वेदसंहिताओं और वाङ्मय का काल - ई. पू. 4500 से 800 ई. पू. तक)

(2) मध्यकाल (ई. पू. 800 से 800 ई. तक जिसमें शास्त्रों दर्शनसूत्रों, वेदांग ग्रंथों, काव्यों तथा कुछ प्रमुख साहित्यशास्त्रीय ग्रंथों का निर्माण हुआ)

(3) परवर्तीकाल (800 ई. से लेकर 1600 ई. या अब तक का आधुनिक काल)

यह कालनिभाजन पाश्चात्य विद्वान् या पाश्चात्यों की विचारधारा वाले भारतीय विद्वान् दिया करते हैं। हमारा तो स्पष्ट मत है वैदिक साहित्य सृष्टि के आदि से है । वेद शाश्वत है।

इस युग में काव्य, नाटक, साहित्यशास्त्र, तंत्रशास्त्र, शिल्पशास्त्र आदि के ग्रंथों की रचना के साथ-साथ मूल ग्रंथों की व्याख्यात्मक, कृतियों की महत्वपूर्ण सर्जना हुई। भाष्य, टीका, विवरण, व्याख्यान आदि के रूप में जिन सहस्रों ग्रंथों का निर्माण हुआ उनमें अनेक भाष्य और टीकाओं की प्रतिष्ठा, मान्यता और प्रसिद्धि मूलग्रंथों से भी कहीं-कहीं अधिक हुई।

प्रामाणिकता के विचार से इस भाषा का सर्वप्राचीन उपलब्ध व्याकरण पाणिनि की अष्टाध्यायी है। कम से कम 600 ई. पू. का यह ग्रंथ आज भी समस्त विश्व में अतुलनीय व्याकरण है। विश्व के और मुख्यत: अमरीका के भाषाशास्त्री संघटनात्मक भाषाविज्ञान की दृष्टि से अष्टाध्यायी को आज भी विश्व का सर्वोत्तम ग्रंथ मानते हैं।

“ब्रूमफील्ड” ने अपने “लैंग्वेज” तथा अन्य कृतियों में इस तथ्य की पुष्ट स्थापना की है। पाणिनि के पूर्व संस्कृत भाषा निश्चय ही शिष्ट एवं वैदिक जनों की व्यवहारभाषा थी। असंस्कृत जनों में भी बहुत सी बोलियाँ उस समय प्रचलित रही होंगी। पर यह मत आधुनिक भाषाविज्ञों को मान्य नहीं है। वे कहते हैं कि संस्कृत कभी भी व्यवहारभाषा नहीं थी। जनता की भाषाओं को तत्कालीन प्राकृत कहा जा सकता है। देवभाषा तत्वत: कृत्रिम या संस्कार द्वारा निर्मित ब्राह्मणपंडितों की भाषा थी, लोकभाषा नहीं। परंतु यह मत सर्वमान्य नहीं है। पाणिनि से लेकर पतंजलि तक सभी ने संस्कृत का लोक की भाषा कहा है, लौकिक भाषा बताया है।

अन्य सैकड़ों प्रमाण सिद्ध करते हैं कि “संस्कृत” वैदिक और वैदिकोत्तर पूर्व पाणिनिकाल में लोकभाषा और व्यवहारभाषा (स्पीकेन लैग्वेज) थी। यह अवश्य रहा होगा कि देश, काल और समाज के सन्दर्भ में उसकी अपनी सीमा रही होगी। बाद में चलकर वह पठित समाज की साहित्यिक और सांस्कृतिक भाषा बन गई। तदनंतर यह समस्त भारत में सभी पंडितों की, चाहे वे आर्य रहें हों या आर्येतर जाति के - सभी की, सर्वमान्य सांस्कृतिक भाषा हो गई और आसेतुहिमालय इसका प्रसार, समादर और प्रचार रहा एवं आज भी बना हुआ है।

लगभग सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध से योरप और पश्चिमी देशों के मिशनरी एवं अन्य विद्याप्रेमियों को संस्कृत का परिचय प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे पश्चिम में ही नहीं, समस्त विश्व में संस्कृत का प्रचार हुआ। जर्मन, अंग्रेज, फ्रांसीसी, अमरीकी तथा योरप के अनेक छोटे बड़े देश के निवासी विद्वानों ने विशेष रूप से संस्कृत के अध्ययन अनुशीलन को आधुनिक विद्वानों में प्रजाप्रिय बनाया। आधुनिक विद्वानों और अनुशीलकों के मत से विश्व की पुराभाषाओं में संस्कृत सर्वाधिक व्यवस्थित, वैज्ञानिक और संपन्न भाषा है। वह आज केवल भारतीय भाषा ही नहीं, एक रूप से विश्वभाषा भी है। यह कहा जा सकता है कि भूमंडल के प्रयत्न-भाषा-साहित्यों में कदाचित् संस्कृत का वाङ्मय सर्वाधिक विशाल, व्यापक, चतुर्मुखी और संपन्न है। संसार के प्राय: सभी विकसित और संसार के प्राय: सभी विकासमान देशों में संस्कृत भाषा और साहित्य का आज अध्ययन-अध्यापन हो रहा है।

बताया जा चुका है कि इस भाषा का परिचय होने से ही आर्य जाति, उसकी संस्कृति, जीवन और तथाकथित मूल आद्य आर्यभाषा से संबद्ध विषयों के अध्ययन का पश्चिमी विद्वानों को ठोस आधार प्राप्त हुआ। प्राचीन ग्रीक, लातिन, अवेस्ता और ऋक्संस्कृत आदि के आधार पर मूल आद्य आर्यभाषा की ध्वनि, व्याकरण और स्वरूप की परिकल्पना की जा सकी, जिसें ऋक्संस्कृत का अवदान सबसे अधिक महत्व का है। ग्रीक, लातिन प्रत्नगाथिक आदि भाषाओं के साथ संस्कृत का पारिवारिक और निकट संबंध है। पर भारत-इरानी-वर्ग की भाषाओं के साथ (जिनमें अवेस्ता, पहलवी, फारसी, ईरानी, पश्तो आदि बहुत सी प्राचीन नवीन भाषाएँ हैं) संस्कृत की सर्वाधिक निकटता है।

भारत की सभी आद्य, मध्यकालीन एवं आधुनिक आर्यभाषाओं के विकास में मूलत: ऋग्वेद-एवं तदुत्तरकालीन संस्कृत का आधारिक एवं औपादानिक योगदान रहा है। आधुनिक भाषावैज्ञानिक मानते हैं कि ऋग्वेदकाल से ही जनसामान्य में बोलचाल की तथाभूत प्राकृत भाषाएँ अवश्य प्रचलित रही होंगी। उन्हीं से पालि, प्राकृत अपभ्रंश तथा तदुत्तरकालीन आर्यभाषाओं का विकास हुआ। परंतु इस विकास में संस्कृत भाषा का सर्वाधिक और सर्वविध योगदान रहा है।

यहीं पर यह भी याद रखना चाहिए कि संस्कृत भाषा ने भारत के विभिन्न प्रदेशों और अंचलों की आर्येतर भाषाओं को भी काफी प्रभावित किया तथा स्वयं उनसे प्रभावित हुई; उन भाषाओं और उनके भाषणकर्ताओं की संस्कृति और साहित्य को तो प्रभावित किया ही, उनकी भाषाओं शब्दकोश उनक ध्वनिमाला और लिपिकला को भी अपने योगदान से लाभान्वित किया। भारत की दो प्राचीन लिपियाँ-(1) ब्राह्मी (बाएँ से लिखी जानेवाली) और (2) खरोष्ठी (दाएँ से लेख्य) थीं। इनमें ब्राह्मी को संस्कृत ने मुख्यत: अपनाया।

भाषा की दृष्टि से संस्कृत की ध्वनिमाला पर्याप्त संपन्न है। स्वरों की दृष्टि से यद्यपि ग्रीक, लातिन आदि का विशिष्ट स्थान है, तथापि अपने क्षेत्र के विचार से संस्कृत की स्वरमाला पर्याप्त और भाषानुरूप है। व्यंजनमाला अत्यंत संपन्न है। सहस्रों वर्षों तक भारतीय आर्यों के आद्यषुतिसाहित्य का अध्यनाध्यापन गुरु शिष्यों द्वारा मौखिक परंपरा के रूप में प्रवर्तमान रहा क्योंकि कदाचित् उस युग में (जैसा आधुनिक इतिहासज्ञ लिपिशास्त्री मानते हैं), लिपिकला का उद्भव और विकास नहीं हो पाया था। संभवत: पाणिनि के कुछ पूर्व या कुछ बाद से लिपि का भारत में प्रयोग चल पड़ा और मुख्यत: “ब्राह्मी” को संस्कृत भाषा का वाहन बनाया गया। इसी ब्राह्मी ने आर्य और आर्येतर अधिकांश लिपियों की वर्णमला और वर्णक्रम को भी प्रभावित किया। यदि मध्यकालीन नाना भारतीय द्रविड़ भाषाओं तथा तमिल, तेलगु आदि की वर्णमाला पर भी संस्कृत भाषा और ब्राह्मी लिपि का पर्याप्त प्रभाव है। ध्वनिमाला और ध्वनिक्रम की दृष्टि से पाणिनिकाल से प्रचलित संस्कृत वर्णमाला आज भी कदाचित् विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं शास्त्रीय वर्णमाला है। संस्कृत भाषा के साथ-साथ समस्त विश्व में प्रत्यक्ष या रोमन अकारान्तक के रूप में आज समस्त संसार में इसका प्रचार हो गया है।


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Friday, February 12, 2016

🙏🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🙏 निरुक्त (यास्काचार्य) के अनुसार, निम्नलिखित 4 देव कहलाते हैं: १) दान - जो दान करे २)...

🙏🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🙏

निरुक्त (यास्काचार्य) के अनुसार,
निम्नलिखित 4 देव कहलाते हैं:
१) दान - जो दान करे
२) दीपन - जो प्रकाश दे
३) द्योतन - जो सत्य उपदेश करे
४) द्युलोकस्थ - जो द्युलोक में स्थित है।

उपर्युक्त 4 गुण जिसमें हो उसे देव कहते है, यदि उसका नाम स्त्रीलिंग है, तो उसे देवी कह देते हैं।
परमात्मा के अनन्त नाम होने से सभी नाम उस एक परमात्मा के भी हैं।

🔥 विष्णु = सूर्य 🔥

पुराणों में विष्णु:
विष्णुपुराण के अध्याय-१५ के अनुसार,
विष्णु, शक्र, अर्यमा, धाता, त्वष्टा, पूषा, विवस्वान्, सविता, मित्र, वरुण, अंश और भग ये 12 नाम सूर्य के हैं।

महाभारत, निघण्टु, वेदों के अनुसार, विष्णु नाम सूर्य का है।

🔥 ब्रह्मा = वायु 🔥

वेदों में विष्णु, रूद्र(शिव) आदि देवता होने से उनकी पूजा होती है, किन्तु ब्रह्मा नाम का किसी मन्त्र का देवता नहीं होने से ब्रह्मा की पूजा नहीं होती।

ब्रह्म, ब्रह्मा का अर्थ महान भी होता है।

स्वायम्भुव मन्वन्तर में (1 अरब 96 करोड़ वर्ष पूर्व) ब्रह्मा नाम के महापुरुष हुए थे जो की चारों वेदों के विद्वान् होने से चतुर्मुख कहलाये।

यज्ञ में भी वेदों के विद्वान् को ब्रह्मा कहते हैं।
भूमि के लगभग 12 योजन ऊपर तक वायु भरा हुआ है। सूर्य की तीक्ष्ण और उष्ण (hot) किरणें जब इस वायु के बीच प्रविष्ट होता है, तब वायु गतिमान होकर इधर-उधर चलने लगता है। इस कारण वायु (ब्रह्मा) को सूर्य (विष्णु) का पुत्र भी कहते हैं। चूँकि सूर्य-किरणों से यह चारों ओर फैलता है, अतः इसे चतुर्मुख भी कहते हैं।

समुद्र आकाश को कहते हैं। विष्णु (सूर्य) आकाश में शयन करता है, सूर्य की किरणें मानो कमलनाल है।

वायु की शक्ति शब्द है, यदि वायु ना हो तो हमें कोई शब्द सुनाई नहीं देगा।

🔥 सरस्वती = शब्द(वाणी) 🔥

वैदिक शब्दकोश निघण्टु (१।११) के अनुसार, श्लोक, गौरी, भारती, सरस्वती आदि 57 नाम वाणी के हैं।

अमरकोश प्रथम काण्ड ६.१ के अनुसार, सरस्वती शब्द वेदों में नदी और वाणी दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।

ऋग्वेद मण्डल-१, सूक्त-१३, मन्त्र-९ के अनुसार, इळा, सरस्वती और मही ये तीन प्रकार की देदीप्यमान वाणी सुख उत्पन्न करने वाली और सरस है।

इनके भेद संगीतशास्त्र से प्रकट होते हैं।अन्य मन्त्रों में मही के स्थान पर प्रायः ‘भारती’ शब्द आता है।

चारों वेदों में 3 प्रकार की वाणियाँ (ऋक्, यजु, साम) हैं।

उच्चारण के मुख्य 3 स्वर उदात्त, अनुदात्त, स्वरित होते हैं। ऐसे 7 स्वर गायन के और 7 स्वर उच्चारण के होते हैं।

-साभार त्रिदेव निर्णय
-लेखक पण्डित शिवशंकर शर्मा

🙏🌺🍃🌷🍂🌹🌾💐🙏


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Thursday, February 11, 2016

संस्कृत पढने वाले परम्परागत या आधुनिक धारा के छात्र या पढाने वाले अध्यापक निम्नलिखित एऩ्डॉयड को...

संस्कृत पढने वाले परम्परागत या आधुनिक धारा के छात्र या पढाने वाले अध्यापक निम्नलिखित एऩ्डॉयड को google play store से डॉनलोड कर के अपने एऩ्ड्रॉयड मोबाईल पर चला कर इससे लाभान्वित हो सकते हैं
1. पाणिनि अष्टाध्यायी । लिंक है-
http://ift.tt/1o3divP
2. संस्कृत इंगलिश डिक्सनरी । लिंक है-
http://ift.tt/1KInJzf
3. संस्कृत हिन्दी डिक्सनरी । लिंक है-
http://ift.tt/1o3dg78
4. शब्दरूपमाला । लिंक है-
http://ift.tt/1KInLHm
5. धातुरूपमाला । लिंक है-
http://ift.tt/1o3diM9
6. संस्कृत अष्टाध्यायी सूत्राणि । लिंक है-
http://ift.tt/1KInJPz
7. सिद्धान्तकौमुदी । लिंक है-
http://ift.tt/1o3diMd
8. एडुनेट । लिंक है-
http://ift.tt/1KInJPB


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Wednesday, February 10, 2016

💥ब्रेकिंग गूड़ न्यूज💥 🎵Santvani-MP-3📀 Android Apps Google play store पर मुकी लोन्च करेल छे गुजराती...

💥ब्रेकिंग गूड़ न्यूज💥
🎵Santvani-MP-3📀
Android Apps
Google play store पर मुकी लोन्च करेल छे

गुजराती भजन ,संतवाणी ,रास गरबा ,भकती गीत, लोक ड़ायरो
वगेरे mp-3

गुजरात ना आज सुधीना बधा ज गायको ना बधा ज भजनो आ ऐप्लीकेशन मां मुकेला छे जेमां
एप्लीकेशननी खासीयतो:

➡ ओन लाईन भजन - भक्ती गीत प्ले करी शको छो
➡सरळता थी डाउनलोड़ नी सुवीधा
➡गमती वस्तु शेर करी शको,,,
➡लेखीत सामग्री उपलब्ध-भजन आरती वगेरे
➡नवु नवु अपड़ेट

MP3 Bhajan Santvaani - http://ift.tt/1V5zVud

आगळ आ सदेश मोकलो जेथी बधा ने लाभ मले।।


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जेसल करी ले वीचार माथे जम केरो मार सपना जेवो छे संसार तोरी राणी करे छे पोकार ! आवोने जेसल राय आपणे...

जेसल करी ले वीचार
माथे जम केरो मार
सपना जेवो छे संसार
तोरी राणी करे छे पोकार
!
आवोने जेसल राय
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी
★प
अनुभवी आव्यो छे अवतार
माथे सदगुरु नो आधार
जावु मारे धणीने दरबार
बेडली उतारो भव पार
!
गुरु ना गुण नो नही पार
भक्ति खांडा केरी धार
नुगरा शु जाणे रे संसार
ऐनो ऐळे ग्यो रे अवतार
आवोने जेसल राय
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी
★र
ऐ गुरु नी गती गुरु नी पास
जेवी कस्तुरी मा वास
धणी तारा नाम नो विस्वास
दिनो नाथ पुरे सौ नी आश
!
ऐ नित उठी नावा ने जाय
कोयला उजळा न थाय
गुणीका नो बेटळो जो थाय
ई वात केने केवा जाय
आवोने जेसल राय
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी
★ब
ऐ देखा देखी करवा ने जाय
इतो अधुरीयां केवाय
कुळीया कुवे पडवा ने जाय
मुरख मुळीयो वो थाय
!
भेगा विना भेगा थाय
इतो अधुरीयां केवाय
काया नुर ना वरताय
ऐना कल्याण केम करी थाय
आवोने जेसल राय
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी
★त
ऐ छीपु समुदंर मा थाय
ऐनी धन्य रे कमाइ
स्वाती ना मेहुला वरसाइ
त्यां तो साचां मोतीडा बंधाय
!
ऐ हीरला ऐरण मा ओराय,
माथे घण केरा घाव,
फुटे इ फटकीया केवाय,
खरा नी खरे खबरु थाय,
आवोने जेसल राय,
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी

ऐ चांदा सुरज नो प्रकाश
नवलख तारा ऐनी पास
पवन पाणी ने प्रकाश
सौ लोक करे तेनी आश
!
सवालाख कोथळीयु बंधाय
कोरो गांधीळो केवाय
हिरला माणेक त्यां थाय
हिरला माणेक त्या ओराय
आवोने जेसल राय,
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी

ऐ प्रेम ना पाठ प्रेम ना थाय
प्रेम नी ज्योती नो प्रकाश
जती सती मळी भेळा थाय
त्यांतो साचा संतोना मेळाप थाय
!
ऐ हेते हरी गुण गाय
प्रेमे गुरु पुजा थाय
कोळी पावळीयु वरताय
चार जुग नी वाणी तोरल गाय
आवोने जेसल राय,
आपणे प्रेम थकी मळीये होजी
ऐजी पुरा संत होय त्यां
भळीये हो जी
★परबत गोरीया★


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Monday, February 8, 2016

હલદીઘાટનું યુદ્ધ(શૂરા બાવીશ હજાર) “વીરા ! ચાલો ઝટ રણમાં, કાઢો તાતી તલવાર ! હર હર હર નાદે...

હલદીઘાટનું યુદ્ધ(શૂરા બાવીશ હજાર)
“વીરા ! ચાલો ઝટ રણમાં,
કાઢો તાતી તલવાર !
હર હર હર નાદે ઘૂમતા
કરિયે અરિનો સંહાર !
રણધીરા હે રજપૂતો,
મુજ અંગતણા શણગાર !
રે ચાલો હલદીઘાટે,
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧

વીરા ! શું શૌર્ય ગયું છે ?
શુ રજપૂત થશે ગુલામ ?
મેવાડ પરાધીન બનશે ?
શું જશે શિશોદિય નામ ! -
નહિ, નહિ, નહિ ! રણમાં ચાલો,
ઝળાકાવો તમ હથિયાર !
રે ઘૂમો રાણા સાથે
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૨

"વીરા ! તમ આજે રણમાં
વહેશે અસ્ખલિત પ્રવાહ;
રજપૂત ગૌરવ હજી પણ છે,
તે જોશે અકબરશાહ !
રે આજ પ્રતાપ પ્રતાપે
ઘૂમી રહેશે રણ મોઝાર,
ને સાથે ઝૂઝશે તેના
શૂરા બાવીશ હજાર !” - ૩

ગર્જન કરી એમ પ્રતાપે
ઝૂકાવ્યું રણે શરીર;
હોંકાર કરી ત્યાં ઊછળ્યા
રાઠોડ, શિશોદિય વીર,
અંદાવત, સંગાવત ને
ઝાલા, ચોહાણ, પ્રમાર; -
રિપુને હણવાને કૂદ્યા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૪

મોગલ યુવરાજ સલીમ ને
અંબરપતિ મહાવીર માન
લઇ સૈન્ય અસંખ્ય જ ઊભા
કંઇ સિંધુતરંગ સમાન !
પણ મૃગટોળામાં કૂદે
વનરાજ કરી હોંકાર,
ત્યાં કૂદ્યા તેમ પ્રતાપી
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૫

ધડ ધડ ધડ થાય ધડાકા
ખૂબ તોપતણા ચોપાસ,
કડ કડ કડ તૂટી પડતું
નીચે આવે આકાશ !
તેને ન જરા ગણકારી,
ધરી અંતર શૌર્ય અપાર,
ત્યાં મૃત્યુમુખે હોમાતા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૬

આજે નથી પાછું ફરવું,
સમરાંગણ છે અવસાન;
રિપુને હણવું કે મરવું:
છે એ જ અમારી લહાણ !-
એવું કહી સહુ ઝૂકાવી
મોગલને મારે માર;
રે રેલ સમા ત્યાં રેલે
શૂરા બાવીશ હજાર ૭

રણવીર પ્રતાપ ઘૂમી ત્યાં
કરતો રણનાદ પ્રચંડ,
ખરું આજ પ્રકાશિત કીધું
રણમાં નિજ શૌર્ય અખંડ !
બેદી અરિહાર ધસ્યો તે
ખુદ સલીમ હતો જે ઠાર;
હર હર હર કરતા ગરજ્યા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૮

આકાશ ધરા ત્યાં કંપ્યાં,
ડોલ્યાં ચૌદે બ્રહ્માંડ !
રણક્ષેત્રે આરંભાયો
શો ભીષણ હત્યાકાંડ !
ઢગના ઢગ વીરો પડતા,
નહિ શબનો કાંઇ સુમાર;
લડતા અગણિત મોગલને
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૯

માર્યા રક્ષક ને મહાવત
રાણાએ રાખી રંગ,
ને સલીમતણા ગજ પર ત્યાં
નિજ અશ્વે મારી છલંગ !
પણ ગજ નિજ પતિને લઇને
ત્યાંથી નાઠો તે વાર;
રાણા સહ પાછળ દોડ્યા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૦

“અલ્લા હો અકબર” કરતા
ત્યાં કૂદ્યા મોગલ સર્વ;
નથી ભીરુ બન્યા હજી કાંઈ,
નહિ રણમાં ખોશે ગર્વ;
ત્યાં ફરી વળી ચોપાસે,
કીધો પ્રભુનો ઉદ્ધાર,
ને ઘેર્યા રાણા સાથે
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૧

પણ વીર્ય અપૂરવ જ કાંઈ
છે પ્રતાપકેરું આજ !
એકલડો સોની વચ્ચે
તે ઘૂમી રહ્યો સિંહરાજ !
અર્જુનશું આજે તેનો
યશ પામ્યો છે વિસ્તાર !
હા ધન્ય પ્રતાપ ! અને તુજ
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૨

એ યુદ્ધથકી ત્રણ વેળા
રજપૂત યોદ્ધા દઇ પ્રાણ,
ઉગારી લાવ્યા બળથી
નિજ રાણાને નિર્વાણ;
પણ જોઇ વીરો નીજ પડતા,
ફરી ભેદી ધસ્યો અરિહાર !
નહિ જાણ્યું હવે નથી સઘળા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૩

અતિ રોષે મોગલસૈન્યે
ઘેર્યો રાણાને ત્યાંય,
ઝબઝબઝબ ચપળા જેવી
ચમકી અસિયો રણમાંય !
જાણે ન પ્રતાપ હવે કંઇ
મોગલથી બચે લગાર,
નથી રહ્યા હવે સહુ તેના
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૪

એ સ્થિતિ રાણાની જોઈ
ઝાલાપતિ લઇ નિજ વીર,
શિર છત્ર પ્રતાપનું મૂકી
રણમાં દોડ્યો રણધીર !
દિલ્લીશ્વર કેરું ઊલટ્યું
ત્યાં સૈન્ય અગણ વિસ્તાર;
રે ટપટપ ધરણી ઢળતા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૫

પણ રિપુને હણતા પહોંચ્યા
વીર રજપૂત રાણા પાસ,
છોડાવી મ્રુત્યુમુખેથી
લાવ્યા રજપૂતની આશ !
પણ ઝાલાવીર પડ્યો ત્યાં,
નિજ ધર્મ બજાવી સાર,
ને રત્ન[૧] સહસ્ત્ર ગુમાવ્યા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૬

ધડ ધડ ધડ થાય ધડાકા
ખૂબ તોપતણા ચોપાસ,
કડ કડ કડ તૂટી પડતું
નીચે આવે આકાશ !
એ સૈન્ય અસંખ્ય વીંધીને
નીકળ્યા રજપૂતો બહારઃ
નહિ ફર્યા અરે કંઇ સઘળા
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૭

રાણાએ દિન અંતે
છોડ્યું રણ હલદીઘાટ,
પણ જગતે જોયો તેની
શૂરી અસિનો ચળકાટ !
નથી ભારતજન કદી ભૂલ્યા
એ યુદ્ધતણા ભણકાર,
સહુ સ્મરે પ્રતાપ અને તે
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૮

હા ધન્ય વીરા રજપૂતો !
છે ધન્ય જ તમ અવતાર !
શું કીર્તિ તમારી જગમાં
કદી કરમાશે પળવાર ?
ઘરઘર અહીં હરનિશ ગાશે
તમ શૌર્યગીતો નરનાર !
રે ધન્ય પ્રતાપ અને હો
શૂરા બાવીશ હજાર ! ૧૯


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Sunday, February 7, 2016

२३ माघ 5 फरवरी 2016 😶 “अभय करो ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् यतोयत: समीहसे ततो नोअभयं...

२३ माघ 5 फरवरी 2016

😶 “अभय करो ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् यतोयत: समीहसे ततो नोअभयं कुरु । 🔥🔥
🍃🍂 शं न: कुरु प्रजाभ्योभयं न: पशुभ्य: ।। 🍂🍃

यजु:० ३६ । २२ ।

ऋषि:- दध्यङ्ङाथर्वण: ।। देवता- ईश्वर: ।। छन्द:- भुरिगुष्णिक् ।।

शब्दार्थ- जहाँ-जहाँ से तुम सम्यक् चेष्टा करते हो वहाँ से हमें अभय कर दो। हमारी प्रजाओं के लिए कल्याण कर दो और हमारे पशुओं के लिए अभय कर दो।

विनय:- हम किसी भी घटना से, किसी भी स्थान में, किसी भी काल में क्यों डरते हैं? वास्तव में डरने का कहीं भी कोई कारण नहीं है। फिर भी हे परमेश्वर! हम इसलिए डरते हैं, क्योंकि हम तुम्हें भूल जाते हैं, क्योंकि सदा हम सर्वत्र सब घटनाओं में तुम्हारा हाथ नहीं देखते। यदि हम संसार की सब घटनाओं को तुम्हारे द्वारा ‘संचेष्टित’ देखें, तुम द्वारा सम्यक्तया की गई देखें तो हम कभी भी भयभीत न हों। तुम तो परम मंगलकारी हो, सम्यक् ही चेष्टा करनेवाले हो, सदा सबका कल्याण ही करनेवाले हो। इसलिए हे प्रभो! तुम जहाँ-जहाँ से चेष्टा करते हो, जिस-जिस स्थान, काल, कारण व कर्म से अपना संचेष्टन करते हो वहाँ-वहाँ से हमें अभय कर दो, वहाँ-वहाँ से हमें बिलकुल निर्भयता ला दो, पर तुम कहाँ संचेष्टन नहीं कर रहे हो? तुम किस जगह नहीं जाग रहे हो? ओह, यदि हम संसारी मनुष्य इतना अनुभव करें तो इस संसार में हमारे लिए अभय-ही-अभय हो जाए। इस संसार में सुख, सौहार्द, प्रेम और निर्भयता का राज्य हो जाए। कहीं कोई निर्बल को न सतावे, कभी कोई मूक पशुओं पर भी हाथ न उठाए। तब न केवल सब प्रजाएँ सुख-शान्ति पाएँ, न केवल बालक आदि सब मनुष्य-प्राणी क्षेम मनाएँ, किन्तु संसार की आगे आनेवाली सन्ततियाँ भी कल्याण को प्राप्त करें तथा सब पशु-पक्षी भी इस बृहत् प्राणी-परिवार के अंग होते हुए निर्भय होकर इस पृथिवी पर विचरें। इस समय जो यह संसार स्वार्थान्ध होकर गरीबों को नाना प्रकार से सता रहा है, अपने भोग-विलास के लिए प्रतिदिन असंख्य पशुओं को काट रहा है-यह सब घोर अनर्थ तब शान्त हो जाए, सब पाप-अन्याय समाप्त हो जाए। प्रभो! हे जगदीश्वर! तुम ऐसी ही कृपा करो। हम सब प्राणी सदा सर्वत्र तुम्हारे ही 'समीहन’ को अनुभव करें, तुम ऐसी ही कृपा करो। हमारी प्रजाओं के लिए तुम ऐसा ही 'शम्’ कर दो, हमारे पशुओं के लिए भी तुम ऐसा ही परिपूर्ण 'अभय’ कर दो।


🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻 भूपेश आर्य 🌷विदुर नीति🌷 (1) एकया द्वे विनिश्चित्य त्रींश्चतुर्भिर्वशे कुरु । पञ्च...

🌻🌻🌻ओ३म्🌻🌻🌻

भूपेश आर्य

🌷विदुर नीति🌷

(1) एकया द्वे विनिश्चित्य त्रींश्चतुर्भिर्वशे कुरु ।
पञ्च जित्वा विदित्वा षट् सप्त हित्वा सुखी भव ।।

अर्थ:-एक बुद्धि से दो कर्तव्य और अकर्तव्य का निश्चय करके चार साम,दाम,भेद,दण्ड से तीन दुश्मन,दोस्त और उदासीन को वश में कीजिए।पाँच इन्द्रियों को जीतकर छः सन्धि,विग्रह,यान,आसन,द्वैवीभाव और समाश्रयरुप गुणों को जानकर और सात को छोड़कर-पराई स्त्री,जुआ,मृगया,मद्य,कठोर वचन,दण्ड की कठोरता और अन्याय से धन का उपार्जन को छोड़कर सुखी हो जाइये।

(2) एकमेवाद्वितीयं तद् यद् राजन्नावबुध्यसे।
सत्यं स्वर्गस्य सोपानं परावारस्य नौरिव ।। ५२ ।।

अर्थ:-हे राजन! जो ब्रह्म एक ही है और अद्वितीय है,अनुपम है उसे आप नहीं समझ रहे हैं।वह सत्यस्वरुप परमेश्वर मोक्षप्राप्ति की सीढ़ी है,उसी प्रकार जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नौका होती है।

(3) एकः क्षमावतां दोषो द्वितीयो नोपपद्यते।
यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जनः ।। ५३ ।।

अर्थ:-क्षमाशील आदमियों में एक ही दोष का आरोप होता है,दूसरे की सम्भावना नहीं है।वह दोष यह है कि क्षमाशील मनुष्य को लोग असमर्थ समझ लेते हैं।

(4) द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो विलशयानिव।
राजनं वाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ।। ५८ ।।

अर्थ:-जैसे सांप बिल में रहने वाले चूहे आदि को निगल जाता है,वैसे ही यह भूमि इन दोनों को निगल जाती है।-१.विरोध न करने वाले,युद्ध न करने वाले राजा को और २.प्रवास,यात्रा न करने वाले सन्यासी को।


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