Saturday, February 28, 2015

आयुर्वेदिक दोहे १Ⓜ दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय, होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी...

आयुर्वेदिक दोहे

१Ⓜ

दही मथें माखन मिले,

केसर संग मिलाय,

होठों पर लेपित करें,

रंग गुलाबी आय..

२Ⓜ

बहती यदि जो नाक हो,

बहुत बुरा हो हाल,

यूकेलिप्टिस तेल लें,

सूंघें डाल रुमाल..


३Ⓜ

अजवाइन को पीसिये ,

गाढ़ा लेप लगाय,

चर्म रोग सब दूर हो,

तन कंचन बन जाय..


४Ⓜ

अजवाइन को पीस लें ,

नीबू संग मिलाय,

फोड़ा-फुंसी दूर हों,

सभी बला टल जाय..


५Ⓜ

अजवाइन-गुड़ खाइए,

तभी बने कुछ काम,

पित्त रोग में लाभ हो,

पायेंगे आराम..


६Ⓜ

ठण्ड लगे जब आपको,

सर्दी से बेहाल,

नीबू मधु के साथ में,

अदरक पियें उबाल..


७Ⓜ

अदरक का रस लीजिए.

मधु लेवें समभाग,

नियमित सेवन जब करें,

सर्दी जाए भाग..


८Ⓜ

रोटी मक्के की भली,

खा लें यदि भरपूर,

बेहतर लीवर आपका,

टी० बी० भी हो दूर..


९Ⓜ

गाजर रस संग आँवला,

बीस औ चालिस ग्राम,

रक्तचाप हिरदय सही,

पायें सब आराम..


१०Ⓜ

शहद आंवला जूस हो,

मिश्री सब दस ग्राम,

बीस ग्राम घी साथ में,

यौवन स्थिर काम..


११Ⓜ

चिंतित होता क्यों भला,

देख बुढ़ापा रोय,

चौलाई पालक भली,

यौवन स्थिर होय..


१२Ⓜ

लाल टमाटर लीजिए,

खीरा सहित सनेह,

जूस करेला साथ हो,

दूर रहे मधुमेह..


१३Ⓜ

प्रातः संध्या पीजिए,

खाली पेट सनेह,

जामुन-गुठली पीसिये,

नहीं रहे मधुमेह..


१४Ⓜ

सात पत्र लें नीम के,

खाली पेट चबाय,

दूर करे मधुमेह को,

सब कुछ मन को भाय..


१५Ⓜ

सात फूल ले लीजिए,

सुन्दर सदाबहार,

दूर करे मधुमेह को,

जीवन में हो प्यार..


१६Ⓜ

तुलसीदल दस लीजिए,

उठकर प्रातःकाल,

सेहत सुधरे आपकी,

तन-मन मालामाल..


१७Ⓜ

थोड़ा सा गुड़ लीजिए,

दूर रहें सब रोग,

अधिक कभी मत खाइए,

चाहे मोहनभोग.


१८Ⓜ

अजवाइन और हींग लें,

लहसुन तेल पकाय,

मालिश जोड़ों की करें,

दर्द दूर हो जाय..


१९Ⓜ

ऐलोवेरा-आँवला,

करे खून में वृद्धि,

उदर व्याधियाँ दूर हों,

जीवन में हो सिद्धि..


२०Ⓜ

दस्त अगर आने लगें,

चिंतित दीखे माथ,

दालचीनि का पाउडर,

लें पानी के साथ..


२१Ⓜ

मुँह में बदबू हो अगर,

दालचीनि मुख डाल,

बने सुगन्धित मुख, महक,

दूर होय तत्काल..


२२Ⓜ

कंचन काया को कभी,

पित्त अगर दे कष्ट,

घृतकुमारि संग आँवला,

करे उसे भी नष्ट..


२३Ⓜ

बीस मिली रस आँवला,

पांच ग्राम मधु संग,

सुबह शाम में चाटिये,

बढ़े ज्योति सब दंग..


२४Ⓜ

बीस मिली रस आँवला,

हल्दी हो एक ग्राम,

सर्दी कफ तकलीफ में,

फ़ौरन हो आराम..


२५Ⓜ

नीबू बेसन जल शहद ,

मिश्रित लेप लगाय,

चेहरा सुन्दर तब बने,

बेहतर यही उपाय..


२६.Ⓜ

मधु का सेवन जो करे,

सुख पावेगा सोय,

कंठ सुरीला साथ में ,

वाणी मधुरिम होय.


२७.Ⓜ

पीता थोड़ी छाछ जो,

भोजन करके रोज,

नहीं जरूरत वैद्य की,

चेहरे पर हो ओज..


२८Ⓜ

ठण्ड अगर लग जाय जो

नहीं बने कुछ काम,

नियमित पी लें गुनगुना,

पानी दे आराम..


२९Ⓜ

कफ से पीड़ित हो अगर,

खाँसी बहुत सताय,

अजवाइन की भाप लें,

कफ तब बाहर आय..


३०Ⓜ

अजवाइन लें छाछ संग,

मात्रा पाँच गिराम,

कीट पेट के नष्ट हों,

जल्दी हो आराम..


३१Ⓜ

छाछ हींग सेंधा नमक, x

दूर करे सब रोग, जीरा

उसमें डालकर,

पियें सदा यह भोग..।


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ईश्वर के झूठ लिए महान वैज्ञानिक ब्रूनो की हत्या - ईश्वर के भक्तो ने हमेशा से विज्ञानं की उन्नति में...

ईश्वर के झूठ लिए महान वैज्ञानिक ब्रूनो की हत्या -


ईश्वर के भक्तो ने हमेशा से विज्ञानं की उन्नति में बाधा पहुचाई है, जिस कारण विज्ञानं की उनत्ती उतनी नहीं हो पाई जितनी होनी चाहिए। लोग धार्मिक अन्धविश्वासो और पाखंडो में इतने फंसे हुए थे की वे विज्ञानं के बारे में सोचना भी पाप समझते थे ।


बाइबिल के अनुसार ” ईश्वर ने पहले प्रकाश को अंधकार से अलग किया ,फिर सर्ष्टि का निर्माण किया ,प्रथ्वी सारे ब्रह्मांड की केंद्र है और सूर्य इसके चक्कर लगाता है,प्रथ्वी अचल है।


ये नियम पादरियों ने जनता में कड़ाई से लागू किया हुआ था इसके विपरीत कोई सोच भी नहीं सकता था । कोपर्निकस जो की महान खगॊल शाष्त्री था उसने पादरियों के नियमो के विपरीत जा के आकाश में विभिन्न ग्रहों के विषय में जाना और पता लगाया की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर नहीं लगाता बल्कि प्रथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है तथा प्रथ्वी अचल नहीं है।

परन्तु उस समय पादरियों का इतना खौफ था समाज में की बाइबिल को कोई चैलेन्ज नहीं कर सकता था ,इसलिए कोपर्निकस ने डर के कारण अपनी यह खोज लेटिन भाषा में लिखी ताकि पादरियों को जल्दी समझ न आये।


परन्तु जब पादरियों को पता चला की उसकी यह पुस्तक धर्म विरुद्ध है तो उन्होंने पुस्तक पर रोक लगा दी जिससे कई सालो तक वह पुस्तक दबी पड़ी रही।


फिर कोपर्निकस की वह पुस्तक एक लेटिन भाषी पादरी ज्योनर्दो ब्रूनो के हाथ लगी, वह नाम का पादरी था पर था बहुत जिज्ञासु । उसने जब कोपर्निकस की पुस्तक पढ़ी तो उसे सच्चाई का अहसास हुआ और वह चर्च में जाके इसकी सच्चाई सभी को बताने लगा। जब पादरियों को पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए और ब्रूनो को चर्च से निकाल दिया और उसे कठोर दंड देने की योजना बनाई जाने लगी। ब्रूनो डर के मारे स्विजरलैंड भाग गया ,पर उसने कोपर्निकस के सिधान्तो पर गहन अध्यन किया और पाया की कोपर्निकस बिलकुल सच कह रहा है ।


ब्रूनो ने टेलिस्कोप और दूरबीन के निर्माण द्वारा अपनी बात सिद्ध की कि प्रथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है और आकाश में अनेक तारे हैं जो प्रथ्वी से भी विशाल हैं।


ब्रूनो की इस खोज से चर्च इतना नाराज हुआ की उसने धोखे से ब्रूनो कैद कर लिया और उस पर धर्म के विरोध में प्रचार करने और इशनिन्न्दा कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया । उसे 8 साल कैद कर के रखा गया और कठोर यातनाये दी गई ,परन्तु इस महान और बहादुर खगोलशास्त्री ने धर्म के ठेकेदारों के आगे हार नहीं मानी।


अंत में 17 फरवरी 1600 ई. वी में ब्रूनो को जीवित ही जला दिया गया , उसे पीले कपडे पहना के और सर पर जलती हुई आग रखी गई थी ताकि ब्रूनो धीरे धीरे जले और अधिक पीड़ा का अनुभव कर सके । उसका जलूस शहर मे निकाला गया ताकि उसकी दर्दनाक मौत सब देख सके और कोई फिर ईश्वर के खिलाफ न जा सके ।


कहा जाता है की उस समय गिरजा घरो के घंटे बजा दिए गए थे ताकि अधि से अधिक लोग उसकी मौत का नजारा देख सके ।


इस तरह से लगभग हर धर्म में विज्ञानं का विरोध हुआ ,जिसने भी धर्म गुरुओ के दमनचक्र से जनता को मुक्ति दिलानि चाही उसको तरह तरह से प्रताणित किया गया ।


- केशव




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"मैं नित्य तुम्हें देखता हूँ, कभी शब्द प्रमाण का तो कभी अनुमान का सहारा लेकर.. और मुझे दृढ विश्वास है..."

“मैं नित्य तुम्हें देखता हूँ, कभी शब्द प्रमाण का तो कभी अनुमान का सहारा लेकर.. और मुझे दृढ विश्वास है मेरी सुयोग्यता पर रूबरू तुम्हे देख ही नहीं महसूस भी कर पाउँगा.. मेरी दिन-प्रतिदिन तुम में बढती आस्था मुझे तुम्हे सदा और निकट, निकटतर, निकटतम होने का एहसास दिलाती है.. परस्पर एक दूजे का सहारा बनने के झूठे वादे करती इस मतलबी दुनिया में यह जानकार पुलकित, रोमांचित, हर्षित और गौरवान्वित हो उठता हूँ कि एक सदाई ठोस आधार तुम्हारा ही रहा है मुझे, और रहेगा भी.. तुम्हारी अमृत छाया का बिछोह एक पल के लिए भी अब मेरे लिए असह्य है..!!”

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📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 8⃣👉विश्वास🚩 जिसका मूल अर्थ और फल निश्चय करके सत्य ही हो, उसका नाम...

📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 8⃣👉विश्वास🚩 जिसका मूल अर्थ और फल निश्चय करके सत्य ही हो, उसका नाम “विश्वास ” है ।

📢 व्याख्या 🔊 🔜िसका मूल अर्थात् नीव (आधार )जिस पर विश्वास रूपी विशाल भवन खडा है उसका मूल =अर्थ और फल निश्चित रूप से सत्य ही होता है ।अर्थात् सत्य भाषण जो छल कपट से रहित शुद्ध अंतःकरण वाला व्यक्ति ही निश्चित रूप से विश्वास पात्र होता है । विश्वास पात्र ही सबके हृदय मे छा जाता है । ऐसे लोगो का सम्मान तो मित्र ही क्या शत्रु भी किया करते है । विश्वास बनाए रखने के कारण व्यक्ति सुख शांति समृद्धि निर्भयता को प्राप्त होता है ।

विष भले दो,विश्वास भले दो परंतु विश्वासघात कभी न करे।


8⃣🚩अविश्वास 👉

जो विश्वास का उलटा है, जिसका तत्व अर्थ न हो, वह “अविश्वास”

कहाता है ।

क्रमशः




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Friday, February 27, 2015

क्या आपको ये सच पता है..?? की आज़ाद जी ने आज़ादी व कभी भी अंग्रेजों द्वारा न पकडे जाने का व्रत...

क्या आपको ये सच पता है..??

की आज़ाद जी ने आज़ादी व कभी भी अंग्रेजों द्वारा न पकडे जाने का व्रत मन्त्र महर्षि दयानंद की पुस्तक संध्या पुस्तक में दिए से सीखा..??

{ मन्त्र = “आदिना: स्याम शरदः शतं” = हम सौ वर्ष तक आज़ाद जियें }

इलाहाबाद में जब पुलिस द्वारा घर की तलाशी लिए जाने पर यह पुस्तक मिली थी..!!


"वे प्रतिदिन व्यायाम प्राणायाम योग के पश्चात् भोजन से पूर्व महर्षि की पुस्तक आर्यभिनव पुस्तक से एक वेद मन्त्र का अर्थ सहित पाठ करते" भगत सिंह को जेल से मुक्त करवाने हेतु पापी नेहरु से इशरत मंजिल (आनंद भवन) से मिलने पर नेहरु ने अंग्रेज अधिकारी को सुचना देकर एल्फरेड पार्क में बलिदान करने के लिए मजबूर कर दिया"

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अमर बलिदानी वीर चन्द्रशेखर आज़ाद को कोटि-कोटि नमन् _/\_

🙏🙏 आर्य राघवेन्द्र 🙏🙏




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देश धर्म के लिए अपने प्राण त्यागने वाले किसी भी हिंदू वीर के लिए ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग...

देश धर्म के लिए अपने प्राण त्यागने वाले किसी भी हिंदू वीर के लिए ‘शहीद’ शब्द का प्रयोग ना किया जाये

यह एक इस्लामिक शब्द है | शहीद का दर्जा इस्लाम में उसे दिया जाता है जो अल्लाह के रास्ते पर चलते हुए इस्लामिक राज की स्थापना के लिए गैर मुसलमानों से लड़ता हुआ है मर जाता है |

मुगल काल में जब मुस्लिम सैनिक हिंदुओं के हाथों मारे जाते थे तो शहीद का दर्जा देकर राजकीय सम्मान दिया जाता था | यह प्रथा तभी से चल रही है |

हिंदू धर्म में देश धर्म पर अपने प्राणों की बलि देने वालों को बलिदानी शब्द से विभूषित किया जाता है | कृपया इसी शब्द का प्रयोग किया करें |

आज भारत मां के सपूत चंद्र शेखर आजाद जी का बलिदान दिवस है | उनके बलिदान दिवस पर कोटि कोटि नमन




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📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल 13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है, उस शरीरऔर जीव का किसी काल...

📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल

13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है,

उस शरीरऔर जीव का किसी काल मे जो वियोग हो जाना है, उसको “मरण” कहते है

🌺व्याख्या 🔊➡शरीर और जीव के अलग होने मे कोई भी कारण हो उसे “मरण”=मृत्यु कहते है

🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹

📢 आर्योद्देश्यरत्नमाला

14➡ स्वर्ग🚩 जो विशेष सुख और सुख की सामग्री को जीव का प्राप्त होना है, वह “स्वर्ग ” कहाता है ।

🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸

🌺 व्याख्या ➡🔊स्वर्ग ऊपर नही ।नीचे है ।नीचे भी इस धरती पर है । इस धरती पर भी जहां हम रहते है ।हम कहा रहते है घर मे परिवार मे ।हमारे ही घर परिवार मे ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर पर विश्वास होने से प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने कर्तव्य का पालन करेगा। कर्तव्य पालन का आधार परस्पर सत्यभाषण ।सत्य से विश्वास बढता है । परस्पर विश्वास बढ़ाने से प्रेम बढता है परस्पर प्रेम के बढ़ने से सुख की प्राप्ति होती है ।येसब विशेष सुख प्राप्ति के साधन सामग्री से शांति मिलती है । यही हमारे लिये हमारे ही घर मे स्वर्ग है स्वर्ग है । क्रमशः




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Thursday, February 26, 2015

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Wednesday, February 25, 2015

मन समर्पित, तन समर्पिव्त, और यह जीवन समर्पित। चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ। माँ...

मन समर्पित, तन समर्पिव्त,

और यह जीवन समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

माँ तुम्‍हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,

किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन-

थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी,

कर दया स्‍वीकार लेना यह समर्पण।


गान अर्पित, प्राण अर्पित,

रक्‍त का कण-कण समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


माँज दो तलवार को, लाओ न देरी,

बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,

भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,

शीश पर आशीष की छाया धनेरी।

स्‍वप्‍न अर्पित, प्रश्‍न अर्पित,

आयु का क्षण-क्षण समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।


तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,

गाँव मेरी, द्वार-घर मेरी, ऑंगन, क्षमा दो,

आज सीधे हाथ में तलवार दे-दो,

और बाऍं हाथ में ध्‍वज को थमा दो।


सुमन अर्पित, चमन अर्पित,

नीड़ का तृण-तृण समर्पित।

चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।




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🌻प्रतिदिन पावन🌻 आज २६ फरवरी को विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है । ...

🌻प्रतिदिन पावन🌻

आज २६ फरवरी को विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है ।

हिन्दी और हिन्दुत्व प्रेमी वीर सावरकर


वीर विनायक दामोदर सावरकर दो आजन्म कारावास की सजा पाकर कालेपानी नामक कुख्यात अन्दमान की सेल्युलर जेल में बन्द थे। वहाँ पूरे भारत से तरह-तरह के अपराधों में सजा पाकर आये बन्दी भी थे। सावरकर उनमें सर्वाधिक शिक्षित थे। वे कोल्हू पेरना, नारियल की रस्सी बँटना जैसे सभी कठोर कार्य करते थे। इसके बाद भी उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं।


भारत की एकात्मता के लिए हिन्दी की उपयोगिता समझकर उन्होंने खाली समय में बन्दियों को हिन्दी पढ़ाना प्रारम्भ किया। उन्होंने अधिकांश बन्दियों को एक ईश्वर, एक आत्मा, एक देश तथा एक सम्पर्क भाषा के लिए सहमत कर लिया। उनके प्रयास से अधिकांश बन्दियों ने प्राथमिक हिन्दी सीख ली और वे छोटी-छोटी पुस्तकें पढ़ने लगे।


अब सावरकर जी ने उन्हें रामायण, महाभारत, गीता जैसे बड़े धर्मग्रन्थ पढ़ने को प्रेरित किया। उनके प्रयत्नों से जेल में एक छोटा पुस्तकालय भी स्थापित हो गया। इसके लिए बन्दियों ने ही अपनी जेब से पैसा देकर ‘पुस्तक कोष’ बनाया था।


जेल में बन्दियों द्वारा निकाले गये तेल, उसकी खली-बिनौले तथा नारियल की रस्सी आदि की बिक्री की जाती थी। इसके लिए जेल में एक विक्रय भण्डार बना था। जब सावरकर जी को जेल में रहते काफी समय हो गया, तो उनके अनुभव, शिक्षा और व्यवहार कुशलता को देखकर उन्हें इस भण्डार का प्रमुख बना दिया गया। इससे उनका सम्पर्क अन्दमान के व्यापारियों और सामान खरीदने के लिए आने वाले उनके नौकरों से होने लगा।


वीर सावरकर ने उन सबको भी हिन्दी सीखने की प्रेरणा दी। वे उन्हें पुस्तकालय की हिन्दी पुस्तकें और उनके सरल अनुवाद भी देने लगे। इस प्रकार बन्दियों के साथ-साथ जेल कर्मचारी, स्थानीय व्यापारी तथा उनके परिजन हिन्दी सीख गये। अतः सब ओर हिन्दी का व्यापक प्रचलन हो गया।


सावरकर जी के छूटने के बाद भी यह क्रम चलता रहा। यही कारण है कि आज भी केन्द्र शासित अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह में हिन्दी बोलने वाले सर्वाधिक हैं और वहाँ की अधिकृत राजभाषा भी हिन्दी ही है।


अन्दमान में हिन्दू बन्दियों की देखरेख के लिए अंग्रेज अधिकारियों की शह पर तीन मुसलमान पहरेदार रखे गये थे। वे हिन्दुओं को अनेक तरह से परेशान करते थे। गालियाँ देना, डण्डे मारना तथा देवी-देवताओं को अपमानित करना सामान्य बात थी।


वे उनके भोजन को छू लेते थे। इस पर अनेक हिन्दू उसे अपवित्र मानकर नहीं खाते थे। उन्हें भूखा देखकर वे मुस्लिम पहरेदार बहुत खुश होते थे। सावरकर जी ने हिन्दू कैदियों को समझाया कि राम-नाम में सब अपवित्रताओं को समाप्त करने की शक्ति है। इससे हिन्दू बन्दी श्रीराम का नाम लेकर भोजन करने लगे; पर इससे मुसलमान पहरेदार चिढ़ गये।


एक बार एक पहरेदार ने हिन्दू बन्दी को कहा - काफिर, तेरी चोटी उखाड़ लूँगा। हिन्दू बन्दियों का आत्मविश्वास इतना बढ़ चुका था कि वह यह सुनकर पहरेदार की छाती पर चढ़ गया और दोनों हाथों से उसे इतने मुक्के मारे कि पहरेदार बेहोश हो गया।


इस घटना से भयभीत होकर उन पहरेदारों ने हिन्दू बन्दियों से छेड़छाड़ बन्द कर दी। कारागार में मुसलमान पहरेदार हिन्दू बन्दियों को परेशानकर मुसलमान बना लेते थे। सावरकर जी ने ऐसे सब धर्मान्तरितों को शुद्ध कर फिर से हिन्दू बनाया।


हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान के प्रबल समर्थक वीर विनायक दामोदर सावरकर का देहावसान 26 फरवरी, 1966 को हुआ था।

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लोहे की एक छड़ का मूल्य होता है 250 रूपये.इससे घोड़े की नाल बना दी जायेतो इसका मूल्य हो जाता है 1000...

लोहे की एक छड़ का मूल्य होता है 250 रूपये.इससे घोड़े की नाल बना दी जायेतो इसका मूल्य हो जाता है 1000 रूपये. इससे सुईयां बना दी जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 10,000 रूपये.इससे घड़ियों के बैलेंस स्प्रिंग बना दिए जायें तो इसका मूल्य हो जाता है 1,00,000 रूपये… —

“आपका अपना मूल्य— इससे निर्धारित नहीं होता कि आप क्या है बल्कि इससे निर्धारित होता है कि आप में खुद को क्या बनाने की क्षमता है”!!!!

इतने छोटे बनिये कि हर कोई आपके साथ बैठे,

..ओर इतने बड़े बनिये किआप खड़े हो तो कोई बैठा न रहे..!!




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Tuesday, February 24, 2015

🎯मदर टेरेसा अधर्म की एजेंट#1, महा भ्रष्ट और ब्लैकमेलर महिला थी। आज़ादी के जद्दोजहद में उपजा नोआखली...

🎯मदर टेरेसा अधर्म की एजेंट#1, महा भ्रष्ट और ब्लैकमेलर महिला थी। आज़ादी के जद्दोजहद में उपजा नोआखली दंगा, अंग्रेजो का भारतीयों को आर्थिक और मानसिक गरीब और गुलाम बनाने के षड्यंत्र के तहत तैयार मिली भोली भाली, डरी, सहमी और अपनी बुद्धि विवेक खोयी जनता को मदर टेरेसा की ममतामयी भीख लेने के एवज में अपना धर्म छोड़ना कोई बहुत बड़ा लेन देन नहीं लगा। रोम के मिशन ईसाइयत के उद्गार के तहत, नोबल पुरुष्कार विजेता को ज्यादा कठिन और समय नहीं लगा समूचे बंगाल को अपनी बापतिज्मा दिलाने में। केस का निपटारा करना हो, पेट की भूख शांत करना हो, नौकरी लगानी हो, राजनीती करनी हो या राष्ट्रिय स्तर पे छाना हो…मदर टेरेसा सबका ख्याल रख रोटी पका के खिलाती थी। उसकी गरीबो, असहायो की दोगली मदद के फल स्वरुप आज हमारे ही लोग हमारे खिलाफ बन गए है। मदर टेरेसा उस मौकापरस्त बिल्ली से कम नहीं थी जो आपका ध्यान भटकते ही दूध चट कर जाती है। कहते है जिसने अपना धर्म छोड़ा वोह अधर्म में शामिल हो अपना विनाश खुद ही तय कर लेता है! जरुरत है ऐसे विदेशी अधर्मो की चालो को समझने और उनका बोरिया बिस्तर बांध कर वापस रोम भेजने में। कृपया देशहित के लिए ऐसी आयातित हस्तियाँ देश की दुर्गति ना कर दें इसका आगे भी विशेष ध्यान रखा जाये।




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सभी समस्याओं का तुम जो समाधान पाना चाहो पढ़ों महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश| १.वेद...

सभी समस्याओं का तुम जो समाधान पाना चाहो

पढ़ों महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश|

१.वेद शास्त्र का सार है इसमें,धर्म कर्म व्यवहार है इसमें

निराकार ईश्वर की पूजा,भक्तिभाव और प्यार है इसमें

यह है ऐसा बिगुल कि जिसस गूंज उठे धरती आकाश

पढ़ों………….

२.दिल का दर्पण धुल जाएगा,बन्द दरवाजा खुल जाएगा

पुण्य पाप और सत्य झूठ का लेखा-जोखा तुल जाएगा

करें सभी अन्धविश्वासों और पाखण्डों का सत्यानाश

पढ़ों……………

३.कायरता को हर लेता है, जीवन शक्ति भर देता है

कायाकल्प करें सबका यह चमत्कार ही कर देता है

मुर्दा दिल भी जी जाते है फिर होवें न

कभी हताश

पढ़ों……………..

४.हसते-मुस्कुरातें देखे है ,जुल्मों से टकराते देखे है

हमनें इसको पढ़ने वाले,फांसी भी खाते देखे

है

पथिक कहीं भी किसी दशा में

पलभर होते नहीं निराश

पढ़ों………………




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कुछ तथाकथित पंडित लोग बिना अष्टाध्यायी व्याकरण,महाभाष्य,निरुक्त,निघण्टु आदि ग्रन्थों को पढे और योग...

कुछ तथाकथित पंडित लोग बिना अष्टाध्यायी व्याकरण,महाभाष्य,निरुक्त,निघण्टु आदि ग्रन्थों को पढे और योग साधना किए वेद मंत्रों का अर्थ करने लगते हैं और वेद मंत्रों के अर्थ का अनर्थ करके मूर्ति पूजा आदि मूर्खतापूर्ण बातों को वेदानुकूल सिध्द करने का पाप करते रहते हैं,उनकी बुध्दि पर तरस आता है l महान् व्याकरणाचार्य,वेदों के प्रकाण्ड विद्वान व योगीराज दयानंद जी का वेदभाष्य,ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका व सत्यार्थप्रकाश पढने से सब संशय,हठधर्मिता,अज्ञानता दूर होती है और वेद मंत्रों का ठीक अर्थ करने में बहुत सहायता मिलती है l




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Monday, February 23, 2015

1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है। 2. ईश्वर...

1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।


2. ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।


3. वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढना – पढाना और सुनना – सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।


4. सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोडने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।


5. सब काम धर्मानुसार, अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें।


6. संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।


7. सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये।


8. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।


9. प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये।


10. सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम पालने सब स्वतंत्र रहें।




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💥ગુજરાતી ભાષાના લૃપ્ત થઇ ગયેલા શબ્દો અને તેનો અર્થ💥 🔸શબ્દ 🔹અર્થ ટાપુવો ...

💥ગુજરાતી ભાષાના લૃપ્ત થઇ ગયેલા શબ્દો અને તેનો અર્થ💥

🔸શબ્દ 🔹અર્થ

ટાપુવો રોટલો

જેદર ઘેટું

જુગાઇ ચતુરાઇ

ઠોબારી ઠોઠ

છન્ન ઢંકાયેલું

ગેસાળી ધૂળ

જાંબૂનદ સોનું

ગંડૂષ કોગળો

કલિંગ પક્ષી

ગુલ્ફ ઢીંચણ

ગોકીલ હળ

ઝષ માછલું

ડોહ ધરો

ખંજ લંગડો

ઝડાફો ઝઘડો

ડોડ રીસ

ઝૂપી ચિતા

તંનૂર ચૂલો

ઢેસરો પોદળો

તરો માર્ગ

તબક રકાબી

તલમીજ શિષ્ય

તરઘટ ઉમરો

તાક છાસ

તુરિ ઘોડો

તુબરત કબર

દગડ પથ્થર

તરફોડો છણકો

દુરીત પાપી

દંડક નર્મદા

તાજિર વેપારી

દળવાદળ સૈન્ય

દત્ત આપેલું

દામિની વિજળી

તડાગ તળાવ

દ્રિરદ હાથી




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"आज का सुविचार (23 फरवरी सोमवार) जो परिश्रम से थककर चकनाचूर नहीं होता उसे सफलता नहीं मिलती, जो भाग्य..."


आज का सुविचार (23 फरवरी सोमवार)


जो परिश्रम से थककर चकनाचूर नहीं होता उसे सफलता नहीं मिलती, जो भाग्य भरोसे बैठ जाता है उस का भाग्य भी बैठ जाता है..! इसलिए बढे, चलो चलते रहो..!! चरैवेति चरैवेति..!!!




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=> हरिवंशराय बच्चन जी की एक खूबसूरत कविता„ "रब" ने. नवाजा हमें. जिंदगी. देकर; और. ...

=> हरिवंशराय बच्चन जी की एक खूबसूरत कविता„


"रब" ने. नवाजा हमें. जिंदगी. देकर;

और. हम. “शौहरत” मांगते रह गये;


जिंदगी गुजार दी शौहरत. के पीछे;

फिर जीने की “मौहलत” मांगते रह गये।


ये समंदर भी. तेरी तरह. खुदगर्ज़ निकला,

ज़िंदा. थे. तो. तैरने. न. दिया. और मर. गए तो डूबने. न. दिया . .


क्या. बात करे इस दुनिया. की

“हर. शख्स. के अपने. अफसाने हे”


जो सामने. हे उसे लोग बुरा कहते हे,

जिसको देखा नहीं उसे सब “खुदा” कहते है….🙏🙏




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શું તમે જાણો છો…? ભૂખ્યા પેટે પાણી પીવાના ફાયદા- જાપાનમાં સવારે ઉઠીને તરત પાણી પીવાની પ્રથા...

શું તમે જાણો છો…?


ભૂખ્યા પેટે પાણી પીવાના ફાયદા-


જાપાનમાં સવારે ઉઠીને તરત પાણી પીવાની પ્રથા અત્યંત લોકપ્રિય છે. અને હમણાજ થયેલા સંશોધનો એ વાત ને માન્યતા પણ આપે છે.અમે અમારા મિત્રો માટે પાણી ના ફાયદાઓ વર્ણવી રહ્યા છીએ. જાપાન મેડીકલ એસોસિએશના જણાવ્યા પ્રમાણે જુના હઠીલા અસાધ્ય રોગો અને આધુનિક સમયના રોગો ઉપર પાણીનો ઈલાજ ખુબજ અસરકારક પરિણામો આપે છે.-


જેવાકે માથાનો દુખાવો, શરીરનો દુખાવો, હૃદયની સમસ્યાઓ, જુનો સાંધાનો વા, હૃદયના ધબકારા એકાએક વધી જવા, વાઈ(ફીટ આવવી), મેદસ્વીતા, શ્વસનતંત્રનારોગો અસ્થમા, ટી.બી., મેનેન્જાઇટિસ, કીડની અને મૂત્રમાર્ગના રોગો, ઉલટી, ગેસની સમસ્યા, ઝાડા, મળમાર્ગમાં મસા, ડાયાબીટીસ, કબજીયાત, આંખોના બધા પ્રકારના વિકારો, ગર્ભાશયને લગતી સમસ્યાઓ, માસિકની સમસ્યાઓ, કેન્સર, કાન-નાક અને ગળાની તક્લીફો.


સારવારની રીત-


૧. સવારે ઉઠીને બ્રશ કર્યાં પહેલા ૧૬૦ mlનો એક એવા ૪ ગ્લાસ પાણી પી જવું.


૨. ત્યાર પછી બ્રશ કરવું પણ ૪૫ મીનીટ સુધી કંઈપણ ખાવું કે પીવું નહિ.


૩. ૪૫ મીનીટ પછી તમે ખાઈ પી શકો છો.


૪. બ્રેકફાસ્ટ, લંચ અને ડીનર કર્યાંની ૧૫ મીનીટ પછી ૨ કલાક સુધી કંઈપણ કશો કે પીશો નહિ.


૫. જે લોકો વૃદ્ધ અથવા બીમાર હોય અને ૪ ગ્લાસ જેટલું પાણી એકસાથે ના પી શકે તેમણે શરૂઆત થોડુ પાણી પીવાથી કરવી અને ત્યારબાદ ધીમે ધીમે ૪ ગ્લાસ સુધી પહોંચવું.


૬. ઉપરની સારવાર બીમારીઓને નાબૂદ કરશે અને જે લોકો સ્વસ્થ છે તેઓની તંદુરસ્તીમાં વધારો કરશે.


નીચેના લીસ્ટ ઉપરથી એ ખ્યાલ આવશે કે કઈ સમસ્યાના નિવારણ માટે કેટલા દિવસ ઉપચાર કરવો જરૂરી છે-


૧. બી.પી. લોહીનું ઊંચું દબાણ – ૩૦ દિવસ


૨. ગેસ, એસીડીટી અને આંતરડાની સમસ્યાઓ- ૧૦ દિવસ


૩.ડાયાબીટીસ-૩૦ દિવસ


૪. કબજીયાત – ૧૦ દિવસ


૫. કેન્સર – ૧૮૦ દિવસ


૬. ટી.બી. – ૯૦ દિવસ


૭. સાંધાના વા ની સમસ્યાનો સામનો કરતાં લોકોએ પહેલા અઠવાડિયામાં માત્ર ૩ દિવસ અને ત્યારબાદ બીજા અઠવાડિયાથી દરરોજ ઉપચાર ચાલુ રાખવો.


આ ઉપચાર પદ્ધતિની કોઈ આડઅસરો નથી, શરૂઆતમાં વ્યક્તિને વારંવાર પેશાબ કરવા જવું પડે એમ બને પરંતુ આ ઉપાયને કાયમમાટે ચાલુ રાખવા થી શરીર એકદમ ચુસ્ત તંદુરસ્ત અને સક્રિય બને છે.


આ ઉપરાંત ચાઈનીઝ અને જાપાનીઝ લોકો જમતી વેળાએ ઠંડું પાણી પીવાને બદલે ગરમ ચા પીવે છે આની પણ આપણે ટેવ પાડવા જેવી છે કારણકે આપણે એમાં કાંઈજ ગુમાવવા જેવું નથી……


એવા લોકો જેઓ ઠંડું પાણી પીવાનું પસંદ કરે છે એમના માટે જ આ લેખ લખાયો છે એમ જાણો.


જમ્યા બાદ એક કપ ઠંડું પીણું પીવું સારું છે પણ જમતી વખતે જો તમે ઠંડા પાણીનો ઉપયોગ કરો છો તો તે તમારા ભોજનમાં રહેલા તૈલીય પદાર્થો ( ઘી, તેલ, માખણ, વગેરે)ને થીજાવી દે છે અને એનાથી તમારી પાચનની ક્રિયા મંદ પડી જાય છે.


જયારે આ થીજી ગયેલા તૈલીય પદાર્થો પેટમાં રહેલા એસિડના સંપર્કમાં આવે છે ત્યારે એ તૂટે છે અને બાકીના ખોરાક કરતાં ઝડપથી આંતરડાઓમાં શોષાઈ જાય છે. આ તમારા શરીરમાં ચરબીનો વધારો કરે છે તમારા આંતરડાઓ માં રહેલી આવી ચરબી તમને કેન્સર જેવી બીમારીનો શિકાર બનાવી શકે છે. માટે જમતી વખતે ગરમ પાણી અથવા સૂપ પીવો સલાહ ભર્યો છે.


હૃદયરોગ વિશે એક ગંભીર બાબત-


* સ્ત્રીઓએ એક વાત સમજવી ખુબજ જરૂરી છે કે દરેક વખતે હાર્ટએટેક આવે ત્યારે ડાબા હાથમાં કળતર થાય એ જરૂરી નથી.


* જડબામાં ખુબજ દુખાવો થતો હોય તો તમારે ચેતવાની જરૂર છે.


* તમને હાર્ટએટેક આવ્યો હોય તો એ જરૂરી નથી કે તમને છાતીમાં જોરદાર દુખાવો થાય જ.


* ક્યારેક ઉલટી ઉબકા કે ખુબજ પરસેવો પણ હાર્ટએટેક નો સંકેત આપે છે.


* ૬૦% લોકો જયારે ગાઢ નિંદ્રામાં હતા ત્યારે તેમણે હાર્ટએટેક આવ્યો હતો અને તેઓ જાગી શક્યા નહોતા.


* જડબામાં ખુબજ જોરદાર દુખાવો થાય તો તમે કદાચ જાગી જાવ અને હાર્ટએટેક ની સમયસર સારવાર મેળવી શકો. આપણે જેટલા વધારે માહિતગાર હોઈએ એટલા જીવન બચવાના મોકા વધારે.


એક હૃદયરોગ નિષ્ણાતના મતે જો દરેક વ્યક્તિ આ માહિતીને તેઓ જેટલા લોકોને ઓળખે છે તેઓ સુધી પહોંચાડે, તો તમે એટલું ચોક્કસ માનજો કે તમે એક જિંદગીને બચાવી શકો છો.


પ્લીઝ એક સાચા ફ્રેન્ડ બનો અને આ લેખ તમારા બધાજ મિત્રો સુધી પહોંચાડો.


આને અવગણશો નહિ શેર કરો કદાચ તમે એક જિંદગીને બચાવી શકશો




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"आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉धर्म =व्याख्या 1 ➡जिसका स्वरूप ईश्वर की आज्ञा का यथावत पालन करना =जैसा..."

“आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉धर्म =व्याख्या 1 ➡जिसका स्वरूप ईश्वर की आज्ञा का यथावत पालन करना =जैसा वेदो मे कहा है, जो भी कहा है, ये सब ईश्वर की आज्ञा है उसका ठीक प्रकार से पालन करना ,आचरण मे लाना धर्म है।क्रमशः”

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📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म🚩जिस का स्वरूप ईश्वर की आज्ञा का यथावत पालन और पक्षपात रहित...

📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म🚩जिस का स्वरूप ईश्वर की आज्ञा का यथावत पालन और पक्षपात रहित न्याय सर्वहित करना है ,जो कि प्रत्यक्षादि प्रमाणो से सुपरीक्षित और वेदोक्त

होने से सब मनुष्यो के लिये यही एक मानने योग्य है, उसको धर्म कहते हैं।




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📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म🚩व्यख्या2⃣ पक्षपात रहित न्याय सर्वहित करना है अर्थात् किसी भी प्रकार...

📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म🚩व्यख्या2⃣

पक्षपात रहित न्याय सर्वहित करना है अर्थात् किसी भी प्रकार से पक्षपात नही करना चाहिए चाहे हमारा मित्र सम्बन्धी रिश्तेदार दूरका हो वा पास का हो गरीब हो या फिर अमीर हो कैसा भी हो सबके साथ निष्पक्ष हो कर व्यवहार करना ।कोई हम पर ऊंगली न उठा सके कि इस का अपना था तभी तो ऐसा हुआ ।पैसे वाला था कुछ दिया होगा ।हम गरीब है पैसा नही दे सकते। बिना रिश्वत दिए काम होता ही नही ।आम आदमी ऑफिसो मे धक्के खाता रहता है उस का काम नही होता पैसा खिलाने वाले का शीघ्र काम हो जाता है । यज्ञ मे बैठे आहूति दे रहे है ।अपना आया जगह देदी।दूसराआया पैर फैला दिए ।उसकी भी आहूति देने की इच्छा थी न दे पाया । एसा सब जगह समझो आहूति देने वाला भी पक्षपात कर रहा है ये न्यायोचित सर्वहित कर्म नही धर्म नही अधर्म है ।धर्म पर चले ।




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Sunday, February 22, 2015

सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है,...

सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है, जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसा कि स्वप्न में होता है और फिर धीरे-धीरे वह गहरी सुषुप्ति में खो जाता है, जैसे कोई कोमा में चला जाता है।


गहरी सुषुप्ति में कुछ लोग अनंतकाल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे गर्भ में जन्म ले लेते हैं। प्रकृ‍ति उन्हें उनके भाव, विचार और जागरण की अवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देती है।जैसी योग्यता वैसा गर्भ


लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान (चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो सु‍षुप्ति में जागकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। फिर भी वह जाग्रत और स्वप्न अवस्था में भेद नहीं कर पाता है। वह कुछ-कुछ जागा हुआ और कुछ-कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक की उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है।


लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृतिवान, जाग्रत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाता है, क्योंकि प्राकृतिक प्रोसेस अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी है।


जब हम गति की बात करते हैं तो तीन तरह की गति होती है। सामान्य गति, सद्गगति और दुर्गति। तामसिक प्रवृत्ति व कर्म से दुर्गति ही प्राप्त होती है, अर्थात इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब, कहां और कैसी योनी में जन्म ले।

:::संदर्भ वेद, योग




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वेदों के ऊपर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत के अग्रणी वैज्ञानिक और पूर्व इसरो जी माधवन नायर...

वेदों के ऊपर एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत के अग्रणी वैज्ञानिक और पूर्व इसरो जी माधवन नायर ने स्वीकार किया कि वेदों में खगोलीय जानकारियां काफी संक्षिप्त रूप में थीं, जिसकी वजह से आधुनिक विज्ञान के लिए इन्हें स्वीकार करना मुश्किल हो कहा, ‘वेदों के कुछ श्लोकों में कहा गया है कि चांद पर पानी है, लेकिन किसी ने इस पर विश्वास नहीं किया। हमने अपने चंद्रयान मिशन से इसे स्थापित किया कि यह बात हमने सबसे पहले कही थी। वेदों में मौजूद हर बात को समझा नहीं जा सका क्योंकि वे कठिन संस्कृत भाषा में लिखी गई हैं।’


इसरो के पूर्व प्रमुख ने कहा, ‘हमें आर्यभट और भास्कर पर सचमुच गर्व है। इन दोनों ने अंतरिक्ष और दूसरे ग्रहों की खोज की दिशा में काफी काम किया। यह काफी चुनौती भरा क्षेत्र था। यहां तक कि चंद्रयान में भी आर्यभट के सूत्र का इस्तेमाल किया गया है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में भी न्यूटन से 15 सौ साल पुरानी हमारी हस्तलिपियों में जिक्र मिलता है।’ 2003 से 2009 तक इसरो के चेयरमैन रहे माधवन नायर ने कहा, ‘ज्यॉमट्री (रेखागणित) का इस्तेमाल हड़प्पा संस्कृति में भवनों के निर्माण के लिए किया जाता था। यहां तक कि पाइथागोरस प्रमेय का ज्ञान भी वैदिक काल से ही था।


माधवन नायर ने कहा, ‘अंतरिक्ष और ऐटमी ऊर्जा के बारे में भी वेदों में काफी जानकारियां हैं। 600 ईसा पूर्व तक हम ठीकठाक थे, लेकिन उसके बाद से आजादी तक लगातार विदेशी हमले झेलते रहे। आजादी के बाद हम फिर प्रगति कर रहे हैं।’


उन्होंने कहा कि एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं कहना चाहूंगा कि उस काल में गणना काफी उन्नत हो चुकी थी। वेदांग ज्योतिष 1400 ईसा पूर्व विकसित हो चुका था। यह सब लिखित है। दिक्कत यह है कि वेदों को पढ़ने के लिए संस्कृत का ज्ञान जरूरी है।’




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Saturday, February 21, 2015

Farhana Taj भौतिकविद डा. हेगलिन ने वेदों को माना परमेश्वर की वाणी प्रस्तुति: फरहाना ताज एक ओर जहां...

Farhana Taj

भौतिकविद डा. हेगलिन ने वेदों को माना परमेश्वर

की वाणी

प्रस्तुति: फरहाना ताज

एक ओर जहां दिल्ली वाले प्रगति मैदान में बुक फेयर में पुस्तकें

खरीद रहे थे, वहीं दूसरी ओर

दो विदेशी विद्वान वेदो को परमेश्वर

की वाणी सिद्ध करने पर तुले थे और वे

भी कोई साधारण विदेशी नहीं, वरन

विदेशी शोधार्थी और वैज्ञानिक और मजे

की बात भारत के कुछ धर्मनिरपेक्ष

उनकी खिल्ली उडाते नजर आ रहे थे।

मेरी आंखों देखी पर विश्वास न

हो तो पीटीआई PTI NEWS की खबर

के अनुसार विवरण इस प्रकार है:

वैज्ञानिक वास्तविकताओं के आलोक में वैदिक भारत को पुनःस्थापित करने और

वैदिक दर्शन में रूचि जगाने की जरूरत को रेखांकित करते हुए देश

विदेश के विभिन्न शिक्षाविदों एवं संतों ने नई पीढ़ी में

वेदों के प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत बताई।

फाउंडेशन फार वैदिक इंडिया और महर्षि वेद व्यास प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित

तीन दिवसीय सम्मेलन में विभिन्न शिक्षाविदों एवं

विद्वानों ने वैदिक ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला।

यूरोपियन सेंटर फार पार्टिकिल फिजिक्स के शोधार्थी एवं भौतिकविद डा.

जान हेगलिन ने कहा कि विज्ञान के युग में वैदिक दर्शन, योग और ध्यान

का महत्व स्थापित हो चुका है। भारत

इसकी जन्मस्थली रही है, वेद

परमेश्वर की वाणी है, जो भारत .भूमि को सबसे पहले

मिली, ऐसे में फिर से वैदिक भारत को पुनः स्थापित करने

की जरूरत है। डा. बेवन मोरिश ने कहा कि वेद आधारित

शिक्षा आचार, व्यवहार एवं नैतिकता के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

किसी भारतीय छात्र को इससे वंचित

नहीं होना चाहिए। यह न केवल सजगता को बढावा देता है

बल्कि मस्तिष्क की क्षमता को भी बढ़ाने में सहायक

होता है। इसके साथ छात्र जीवन

की गुणवत्ता को नैसर्गिक कानून के अनुरूप सौहार्दपूर्ण ढंग से

बढावा देता है। स्वामी ब्रह्मस्वरूपानंद ने कहा कि गणित,

भौतिकी, प्रबंधन, कम्प्यूटर विज्ञान केवल मस्तिष्क के कुछ

हिस्सों पर ही केंद्रित होते हैं, ऐसे में छात्र

की सम्पूर्ण क्षमता एवं ज्ञान का विकास

नहीं हो पाता है। वैदिक ज्ञान इस दिशा में

छात्रों की सम्पूर्ण क्षमता का विकास करने में सहायक होता है।

Thursday at 6:32pm · Public · in Timeline Photos




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"📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 4⃣👉 पुण्य 🚩 जिसकस्वरूप विद्यादि शुभगुणो का दान और सत्य भाषणादि सत्याचार करना..."

“📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 4⃣👉 पुण्य 🚩 जिसकस्वरूप विद्यादि शुभगुणो का दान और सत्य भाषणादि सत्याचार करना है । उसको -पुण्य -कहते है ।

क्रमशः”

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📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 5⃣👉पाप🚩 जो पुण्य से उलटा और मिथ्या भाषणादि करना है । उसको “पाप कहते...

📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 5⃣👉पाप🚩 जो पुण्य से उलटा और मिथ्या भाषणादि करना है । उसको “पाप कहते है । 6👉सत्यभाषण🚩 जैसा कुछ अपने आत्मा में हो और असंभवादि दोषो से रहित करके सदा वैसा ही बोले, उसको ” सत्यभाषण” कहते है ।

📢व्याख्या 🔊👉

1⃣➡जैसा कुछ अपने आत्मा मे हो अर्थात् मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य को जानने वाला होता है इसलिए आत्मा के अनुसार ही हमे बोलना चाहिए तदनुसार अपना आचरण सुधारना चाहिए । तभी हम दूसरो के विश्वास पात्र बन सके गे । विश्वास खोने के बाद विश्वास पात्र बनने मे बहुत परिश्रम करना पडता है । सत्य भाषण से विश्वास बढता है । अतः जैसा कुछ अपने आत्मा मे हो वैसा बोलना लिखना आचरण करना चाहिए । असंभव अर्थात् कपोल कल्पना लोलम पोल छल कपटादि दोषो से रहित बोलना ही सत्यभाषण है । इससे आत्मिक उन्नति होती है ।

7⃣👉मिथ्याभाषण🚩

जो कि सत्यभाषण अर्थात् सत्य बोलने के विरुद्ध है, उसको “मिथ्याभाषण “कहते है । क्रमशः




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"📢 दयानंद उवाच ➡जिस से मनुष्य जाति की उन्नति और उपकार हो,सत्यासत्य को मनुष्यलोग जानकर सत्य का..."

“📢 दयानंद उवाच

➡जिस से मनुष्य जाति की उन्नति और उपकार हो,सत्यासत्य को मनुष्यलोग जानकर सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करें,क्योंकि सत्योपदेश के बिना अन्य कोई भी मनुष्यजाति की उन्नति का कारण नही है ।(सत्यार्थ प्रकाश भूमिका )”

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"📢दयानंद उवाच ➡यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् प्रत्येक मतो मे है वे पक्षपात छोड सर्वतन्त्र..."

“📢दयानंद उवाच

➡यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् प्रत्येक मतो मे है वे पक्षपात छोड सर्वतन्त्र सिद्धांत अर्थात् जो जो बाते सबके अनुकूल सब मे सत्य है, उनका ग्रहण और जो एक दूसरे से विरुद्ध बाते है, उनका त्याग कर परस्पर प्रीति से वर्ते वर्तावे तो जगत् का पूर्ण हित होवे।(सत्यार्थ प्रकाश भूमिका )”

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खूबसूरत शायरी में गीता सार -:  यह जिस्म तो किराये का घर है; एक दिन खाली करना पड़ेगा:!!  सांसे हो...

खूबसूरत शायरी में गीता सार -:

 यह जिस्म तो किराये का घर है; एक दिन खाली करना पड़ेगा:!!

 सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ; रूह को तन से अलविदा कहना पड़ेगा:!!

 वक्त नही है तो बच जायेगा गोली से भी; समय आने पर ठोकर से मरना पड़ेगा:!!

 मौत कोई रिश्वत लेती नही कभी; सारी दौलत को छोंड़ के जाना पड़ेगा:!!

 ना डर यूँ धूल के जरा से एहसास से तू; एक दिन सबको मिट्टी में मिलना पड़ेगा:!!

 सब याद करे दुनिया से जाने के बाद; दूसरों के लिए भी थोडा जीना पड़ेगा:!!

 मत कर गुरुर किसी भी बात का ए दोस्त:! तेरा क्या है..? क्या साथ लेके जाना पड़ेगा…!!

 इन हाथो से करोड़ो कमा ले भले तू यहाँ… खाली हाथ आया खाली हाथ जाना पड़ेगा:!!

 ना भर यूँ जेबें अपनी बेईमानी की दौलत से… कफ़न को बगैर जेब के ही ओढ़ना पड़ेगा..!!

 यह ना सोच तेरे बगैर कुछ नहीं होगा यहाँ; रोज़ यहाँ किसी को ‘आना’ तो किसी को ‘जाना’ पड़ेगा…!




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📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल 13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है, उस शरीरऔर जीव का किसी काल...

📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल

13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है,

उस शरीरऔर जीव का किसी काल मे जो वियोग हो जाना है, उसको “मरण” कहते है

🌺व्याख्या 🔊➡शरीर और जीव के अलग होने मे कोई भी कारण हो उसे “मरण”=मृत्यु कहते है

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📢 आर्योद्देश्यरत्नमाला

14➡ स्वर्ग🚩 जो विशेष सुख और सुख की सामग्री को जीव का प्राप्त होना है, वह “स्वर्ग ” कहाता है ।

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🌺 व्याख्या ➡🔊स्वर्ग ऊपर नही ।नीचे है ।नीचे भी इस धरती पर है । इस धरती पर भी जहां हम रहते है ।हम कहा रहते है घर मे परिवार मे ।हमारे ही घर परिवार मे ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर पर विश्वास होने से प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने कर्तव्य का पालन करेगा। कर्तव्य पालन का आधार परस्पर सत्यभाषण ।सत्य से विश्वास बढता है । परस्पर विश्वास बढ़ाने से प्रेम बढता है परस्पर प्रेम के बढ़ने से सुख की प्राप्ति होती है ।येसब विशेष सुख प्राप्ति के साधन सामग्री से शांति मिलती है । यही हमारे लिये हमारे ही घर मे स्वर्ग है स्वर्ग है । क्रमशः




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मनीश जी अति उत्तम जी,कटु सत्य है,भारत की तो यही दशा है हलाकि यह दुनिया स्वार्थ से ही ही चल रही,कयोकि...

मनीश जी अति उत्तम जी,कटु सत्य है,भारत की तो यही दशा है हलाकि यह दुनिया स्वार्थ से ही ही चल रही,कयोकि हर रिश्ते मे भी स्वार्थ ही है,ईश्वर को भी स्वार्थ से मानते है,पूजते है लोग वह महान आत्माये ही होती है जो ईश्वर भगती मे मनव मात्र की कामना करती है,सारी दुनिया के लिए शुभ कामना करते है और यह भावना आर्य जगत मे ही है,वैदिक धर्म मे ही है




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मित्रों, ईश्वर के वहां किसी की सिफारिश नहीं चलती, क्योंकि सिफारिश वही मानते हैं जिनहें धन दौलत की...

मित्रों, ईश्वर के वहां किसी की सिफारिश नहीं चलती, क्योंकि सिफारिश वही मानते हैं जिनहें धन दौलत की जरूरत हो, जिन्हें किसी का डर हो या किसी के साथ संबंध हो, मित्रों ईश्वर तो स्वयं धन ऐश्वर्य से युक्त है धन ऐश्वर्य देने वाला है उसे किसी के धन दौलत की कोई जरूरत नहीं है तो वह सिफारिश क्यों माने। दूसरा ईश्वर सर्वशक्तिमान है उसे किसी मन्त्री सन्तरी का कोई डर नहीं तो वह सिफारिश क्यों माने। तीसरा ईश्वर का किसी के साथ कोई संबंध नहीं है क्योंकि ईश्वर ना जन्म लेता है ना मरता है इसलिए उसका कोई सगा संबंधि नहीं है तो वह सिफारिश क्यों माने। मित्रों इसलिए जो लोग यह कहते हैं कि वह आपको ईश्वर से मिला देंगे, आपके पापों को ईश्वर से माफ करा देंगे। ईश्वर के संदेश वाहक बनते हैं ईश्वर के ठेकेदार बनते हैं वह लोग आपको ठगते है आपकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं मित्रों ईश्वर न्यायकारी है वह कर्मों के अनुसार फल देता है इसलिए वह हमारे किसी भी गलत कार्य को माफ नहीं करता।




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मित्रों, एक बार महामति चाणक्य जी दिन में लालटेन लेकर घर घर घूम रहे थे और दिन के उजाले में भी लालटेन...

मित्रों, एक बार महामति चाणक्य जी दिन में लालटेन लेकर घर घर घूम रहे थे और दिन के उजाले में भी लालटेन जल रही थी। लोगों ने चाणक्य जी से पूछा कि आप दिन के उजाले में लालटेन लेकर क्या ढूंढ रहे हैं चाणक्य जी ने जवाब दिया कि मैं श्मशान ढूंढ रहा हूं तब लोगों ने कहा कि चाणक्य जी श्मशान तो गांव के बाहर है तब महामति चाणक्य जी ने बताया कि जिस घर में विद्वानों का आना जाना, सत्संग नहीं होता है वह घर श्मशान के बराबर है अर्थात जहां विद्धान लोग नहीं आते वहां कौन आते हैं वहां शराबी और गंदे लोग आते हैं इसलिए वह घर श्मशान के बराबर है दूसरा जिस घर में वेदों, ॠषिकृत ग्रन्थों का स्वाध्याय नहीं होता है वह घर श्मशान के बराबर है तीसरा जिस घर से स्वाहा स्वाहा की ध्वनि नहीं सुनाई देती अर्थात जिस घर में अग्निहोत्र नहीं होता है वह घर श्मशान के बराबर है अब आप सभी विचार करें और अपने घरों को श्मशान बनने से बचाये।




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Friday, February 20, 2015

1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है। 2. ईश्वर...

1. सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है।


2. ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करने योग्य है।


3. वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढना – पढाना और सुनना – सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।


4. सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोडने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।


5. सब काम धर्मानुसार, अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें।


6. संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।


7. सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये।


8. अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिये।


9. प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये।


10. सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिये और प्रत्येक हितकारी नियम पालने सब स्वतंत्र रहें।




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क्या कोई गुरु उपर्युक्त गुणों से पूर्ण हो सकता। मानव कभी पूर्ण नहीं हो सकता।पूर्ण गुरु तो परमात्मा...

क्या कोई गुरु उपर्युक्त गुणों से पूर्ण हो सकता। मानव कभी पूर्ण नहीं हो सकता।पूर्ण गुरु तो परमात्मा है जो कदम कदम पर हमें सचेत करता रहता है और उसी की आज्ञा वेद है जो हमें सच्चा मार्ग दर्शन देते है उसी के अनुसार जो आचरण करते है और अन्य को प्रेरित करते है; वे ही सच्चे गुरु है।




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मस्तक को थोड़ा झुकाकरदेखिए…. ……अभिमान मर जाएगा आँखें को थोड़ा भिगा कर...

मस्तक को थोड़ा झुकाकरदेखिए….

……अभिमान मर जाएगा

आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए…..

…. पत्थर दिल पिघल जाएगा

दांतों को आराम देकर देखिए………

…स्वास्थ्य सुधर जाएगा

हाथों को कुछ काम देकर देखिए……

…चहुं ओर उजियारा पसर जाएगा

जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए…

…..क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा

इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए..

…….खुशियों का संसार नज़र आएगा




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🌹ऒ३म्🌹 🌷🙏 सभी मित्रों को नमस्ते 🙏 🌷 ******”कृण्वन्तो विश्वमार्यम”****** आओ...

🌹ऒ३म्🌹

🌷🙏 सभी मित्रों को नमस्ते 🙏 🌷

******”कृण्वन्तो विश्वमार्यम”******

आओ श्रेष्ठ बनाएं स्वयं को, परिवार को, समाज को. हमारे देश को एवं सम्पूर्ण विश्व को… श्रेष्ठ बनाएँ … श्रेष्ठ बनाएँ… श्रेष्ठ बनाएँ ……….




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🎯 रघु कुल के राजा रघुनाथ(राम), यदु कुल के राजा यदुनाथ(कृष्ण), भूत कुल के राजा भूतनाथ(शिव), इन तीनो...

🎯 रघु कुल के राजा रघुनाथ(राम), यदु कुल के राजा यदुनाथ(कृष्ण), भूत कुल के राजा भूतनाथ(शिव), इन तीनो के वास्तविक स्वरुप(भूटिया) को आज के दिन जानने पर आप सभी को शिवरात्रि की बधाई।

शिवजी भूटान के राजा थे, परम योगी जिन्होंने शिव योग दिया था।

भूतिस्तान से हुए आज के आर्य राष्ट्र भूटान के राजा मृत्युंजयी शिव के जन्म दिवस पर आप सभी को बधाई, और विशेष रूप से आज महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का बोधोत्सव भी है, भारतवर्ष के अतुलनीय उद्धारक मूलशंकर से दयानन्द बनने के महान दिवस पर महान व्यक्तित्व को बारम्बार प्रणाम🙏




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धातु विज्ञान पारा (Mercury) प्राचीन समय से पारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण धातु रही है जिसका प्रयोग बड़े...

धातु विज्ञान पारा (Mercury)


प्राचीन समय से पारा एक बहुत ही महत्वपूर्ण धातु रही है जिसका प्रयोग बड़े स्तर पर होता रहा है। भारतवर्ष में तो आयुर्वेद आदि का थोड़ा ज्ञान रखने वाले सभी जन पारे से परिचित है जबकि यूरोप में 17वीं सदी तक पारा क्या है, यह वे जानते नहीं थे। अत: फ्रांस सरकार के दस्तावेजों में इसे दूसरी तरह की चाँदी ‘क्विक सिल्वर’ कहा गया, क्योंकि यह चमकदार तथा इधर-उधर घूमने वाला होता है। फ्रांस की सरकार ने यह कानून भी बनाया था कि भारत से आने वाली जिन औषधियों में पारे का उपयोग होता है उनका उपयोग विशेष चिकित्सक ही करें।


भारतवर्ष में हजारों वर्षों से पारे को जानते ही नहीं थे , बल्कि इसका उपयोग औषधि विज्ञान व विमान-निर्माण आदि में भी बड़े पैमाने पर होता था। विदेशी लेखकों में सर्वप्रथम अलबरूनी ने, जो 11वीं सदी में लंबे समय तक भारत रहा, अपने ग्रंथ में पारे को बनाने और उपयोग की विधि को विस्तार से लिखकर दुनिया को परिचित करवाया । कहा जाता है कि 1000 ई० में हुए नागार्जुन पारे से सोना बनाना जानते थे। इनसे भी ५०० साल पहले राजा भोज के समय पारे से विमान आदि यंत्र चलाये जाते थे। यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि स्वर्ण में परिवर्तन को पारा ही चुना, अन्य कोई धातु नहीं। आज का विज्ञान कहता है कि धातुओं का निर्माण उनके परमाणु में स्थित प्रोटान की संख्या के आधार पर होता है और यह आश्चर्य की बात है कि पारे में ८० प्रोटान व सोने में ७९ प्रोटान होते है। अर्थात नागार्जुन इन सब तथ्यों से परिचित थे। अत: पारे से सोना बनाना भी भारत की ही देन है। विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद है ये सभी जानते है और आयुर्वेद में तो बहुत से असाध्य रोगों का ईलाज ही शुद्ध पारे से होता है। अनेकों औषधियाँ पारे से बनती है।




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Thursday, February 19, 2015

वासिम को मेरा पलटवार:इस्लाम का पाखंड १ अल्लाह सातवे आसमान पर रहता है.वो कहां है?तो कोई उसे कभी देख...

वासिम को मेरा पलटवार:इस्लाम का पाखंड

१ अल्लाह सातवे आसमान पर रहता है.वो कहां है?तो कोई उसे कभी देख क्यों नहीं पाया?

२खुदा पशुओं को क्यों मारने काटने का आदेश देता है?तो वो दयालु कैसे हुआ?

३ खुदा सबको भटकाकर काफिर बनाता है तो वही सबसे बड़ा काफिर है?

४खुदा मुसलमान काफिर में भेद क्यों करता है?यदि वो ईश्वर हैतो पक्षपाती क्यों है?

५खुदा काफिर से किस जन्म का बदला लेना चाहता है?वो बस उनरो ही दोजख क्यों देगा?

६वो नारी को खेल क्यों समझता है?उसे उपभोग की चीज़ क्यों मानता है?

७अल्लाह मुसलमानों को दुनियाभर के पाप करने की छूट क्यों देता है?

८खुदा कुरान कैसे लिखता जबकि वो निर्गुण है?

९खुदा हुक्का पीकर सृष्टि बनाता है.उस् हुक्का कौन लाकर देता है?

१०खुदा का आई क्यू लेवल किसी पागल से भी कम क्यों है?

गाली लिखी तो मैं जीत मानूंगा.तर्क से खंडन करो या बकैती छोड़ दो.

वंदेमातरम




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मनुष्य ने जो सुख जाने है वे ऐन्द्रिक है। एक सुख जाना है स्वाद का। एक सुख जाना है नाद का। एक सुख जाना...

मनुष्य ने जो सुख जाने है वे ऐन्द्रिक है।

एक सुख जाना है स्वाद का।

एक सुख जाना है नाद का।

एक सुख जाना है रुप का।

ये इंद्रियोँ द्वारा जाने गए सुख हैँ।ये बाहर से आए हैँ।

सुंदर सुबह हुई और मनुष्य की आंखे विमुग्ध हुईं और भीतर बड़ा सुख आया।

लेकिन ये बाहर से आया है।

ये सहज नही है।ये मनुष्य के भीतर नही जन्मा है।

भोजन किया,स्वाद मिला और सुख की प्रतीति हुई।ये भी बाहर से आया है।

वह आनंद बाहर से नही आता है-भीतर ही आविर्भूत होता है।

उसकी स्फुरणा भीतर ही होती है।

वह नाद भीतर बजता है।

वह स्वाद भीतर उठता है।

वह रुप भीतर सघन होता है।

इंद्रियो के माध्यम से नही आता-अतींद्रिय है,अलौकिक है।

उसका कोई पारावार नही है।

उसकी बाढ़ आती है।

आता है तो जैसे पूरा आकाश टूट पड़ा हो।

न इसमे अपने का भान रहता है न पराये का।

वहां सब मिट जाता है-न कोई तू न कोई मै।

सब विदा हो जाते हैँ।

वहां कौन तू कौन मै।

मै-तू का सारा खेल बाहर-2 है।

बाहर एक मनुष्य दूसरे से अलग है।

भीतर सब एक हैँ।

केवल सभी मनुष्य नही-वृक्ष,पशु और पक्षी आदि सभी एक हैँ।

ऐसा भी नही है कि जो समसामयिक है केवल वे एक हैं।

जो पहले हुए और जो बाद मे होगे सभी वहां एक हैँ।




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Wednesday, February 18, 2015

और (धर्म ) वेदोक्त होने से सब मनुष्यो के लिये यही एक मानने योग्य है अर्थात् उपरोक्त धर्म वेदोक्त है...

और (धर्म ) वेदोक्त होने से सब मनुष्यो के लिये यही एक मानने योग्य है अर्थात् उपरोक्त धर्म वेदोक्त है ।वेद ईश्वरीय वाणी है । ईश्वर सब मनुष्यो के लिये एक ही है ।सब मनुष्यो को परमात्मा ने ही बनाया है ।वही सबका माता पिता बन्धुआदि है ।जो अपने माता पिता की आज्ञा का पालन नही करता ।वह कृतघ्न है पापी है । पापी को दुनिया भर मे कही भी चैन नही रहता ।सदा बेचैन, काम क्रोध आदि दुर्गुणो से भरा रहता है । खुद दुखी औरो को भी दुखी करता रहता है । दुनियसारी वेद बिना दुखिया भारी वेद बिना । वेद ईश्वर की चरण शरण बिना पवित्रता नही ।सबको छोडो वेदोक्त धर्म को ही अपनाना पडे गा आज नही तो कल ।




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आर्य समाज क्यों नहीं कर पाता वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार:- धर्म और लोकतन्त्र साथ-साथ नहीं चल...

आर्य समाज क्यों नहीं कर पाता वैदिक धर्म का प्रचार-प्रसार:-


धर्म और लोकतन्त्र साथ-साथ नहीं चल सकते।हाँ,राजनीतिक संगठन और लोकतन्त्र साथ-साथ जरूर चल सकते हैं।बल्कि लोकतन्त्र को राजनीतिक संगठन ही दिशा देते हैं।इस्लाम,ईसाई आदि धार्मिक संगठन न होकर बहुत बड़े राजनीतिक संगठन हैं।या यूँ कह लीजिये कि ये खतरनाक राजनीतिक आंदोलन हैं।अगर ऐसे ही हिन्दू पाखण्ड में डूबकर टुकड़ों-टुकड़ों में बंटे रहे तो,ये संगठन आने वाले समय में पूरे भारत को अपनी कब्जे में ले लेंगे।वैसे कब्जे में तो अभी भी ले रखा है,लेकिन पूर्णरूप से नहीं।

आर्य समाज राजनीतिक आंदोलन नहीं है,ये एक वैचारिक आंदोलन है,जो हिंदुओं को भविष्य के प्रति आगाह करता आ रहा है।इसका मुख्य उद्देश्य हिंदुओं को निराकार ईश्वर में ध्यान लगवाने का है।जो कि ईश्वरीय वाणी वेदों का आदेश है।जिससे कि ये सब एकमत हो जाएँ।क्योंकि हिन्दू विभिन्न प्रकार के मतों का समूह है,इसी कारण हिन्दू लोग एकजुट नहीं हो सकते।विभिन्न प्रकार की जाति एवं निराकार ईश्वर की जगह विभिन्न प्रकार की व्यक्ति पूजा इन्हें एक नहीं होने देती।ऊपर से अनेक प्रकार के अंधविश्वासों ने इनकी तर्क शक्ति को कुंद कर दिया है।ये भी प्रमाणित हो जाता है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है बल्कि किसी का दिया हुआ नाम है।ये इस बात से पता चलता है कि विभिन प्रकार के मतों का एक नाम कैसे हो सकता है।जैसे वैष्णव मत,शैव मत,भागवत मत आदि विभिन्न प्रकार के समूह का हिन्दू नाम किस आधार पर हो सकता है।इससे स्वत:सिद्ध हो जाता है कि हिन्दू किसी के द्वारा दिया गया शब्द है।महाभात के बाद वैदिक संस्कृति कमजोर होने के बाद आर्य लोगों में जो विकृति आई थी उसके कारण होने वाले फूट से आर्य लोग वैदिक धर्म से पाखण्डी ब्राह्मणों द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए भटका दिए गए।जिस कारण वेदों का ईश्वरीय ज्ञान न मिलने के कारण आर्य लोग व्यक्ति पूजा करने लगे।विभिन्न समूहों में बंटे होने के कारण बाहरी आक्रांताओं ने इन्हें सिंधु नदी के सम्बोधन से हिन्दू नाम देकर पुकारा था।हिंदुओं की इन्ही कमजोरियों की आड़ में बाहरी आक्रांता देश में घुसे थे जो अभी तक घुसे हुए हैं,क्योंकि हिंदुओं की बुराइयां अब भी बरकरार है।हिंदुओं व समस्त मानव समाज को एक करने के लिए ही आर्य समाज की स्थापना की गयी थी।आर्यसमाज वैदिक धर्म का प्रचार करता है।राजनीति कभी आर्य समाज को आगे नहीं बढ़ने देती,क्योकि ये राजनीतिक संगठन न होकर एक वैचारिक क्रान्ति है,इसके आगे बढ़ने से वेदों का प्रचार होगा।वेदों का प्रचार होने से इन भ्रष्टाचारी नेताओं की मौज व एयाशी खत्म हो जायेगी।जैसे अगर वेदों का प्रचार होने के कारण जातिवाद समाप्त होने से जातिगत आरक्षण समाप्त हो जाएगा।क्योंकि आरक्षण वेदानुसार योग्यता पर आधारित हो जाएगा।मालूम है कि मनुष्यों के हर प्रकार के विकास का आधार उसकी जाति न होकर उनकी योग्यता है।योग्य व्यक्तियों के कारण प्रशासन में ईमानदार लोगों की बाढ़ आ जायेगी।योग्य लोग प्रोत्साहित होंगे और अयोग्य प्रोत्साहित।देश के जनता भी योग्यता को ही सब कुछ मानने लगेगी।हर माँ-बाप अपने बच्चे को अच्छी प्रकार पढ़ायेगा।क्योंकि योग्य व्यक्ति की ही हर जगह कद्र होगी।भ्रष्टाचार समाप्त होगा।नेता लोग उन्हें न बाँट सकेगे और न ही उन्हें बरगला पाएंगे।जनता के जागरूक व् एकजुट हो जाने के कारण नेता भी योग्य व् ईमानदार ही होंगे।इसी प्रकार बहुत सारी सुधार की बातें एकदम से लागू हो जाएंगी।लेकिन आज के राजनीतिक लोगों के लिए ये घर बैठाने वाली घटना होगी।इसलिए वे वेदों के प्रचार करने वालों को प्रोत्साहित न करके लगातार हतोत्साहित करते आ रहे हैं।जिस कारण आर्य समाज आगे नहीं बढ़ पाता।इसी वजह से वेदों का भी प्रचार-प्रसार नहीं हो पाता।

अगर आर्य समाज में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी अपने स्वार्थ में कुछ राजनीतिक बातें भी डाल देते,जैसे इस सम्पूर्ण विश्व को आर्य बनाओ,जो न बने उसे जबरदस्ती बनाओ,जो फिर भी मना करे,तो उसके पीट-पीटकर चीथड़े उड़ा दो।अधर्मी को मारने से मोक्ष मिलेगा आदि।वैसे कृण्वन्तो विश्वार्यम वाली वैदिक बात उन्होंने लिखी है लेकिन उसको राजनीतिक व् स्वार्थ के रूप में न लिखकर सभी मनुष्यों के लिए लिखी है।अगर ऐसी बाते इसमें जोर देकर जोड़ी जाती,तो ये इतना आगे बढ़ जाता कि विदेशी विचारधारा वाले लोग भारत में दिखाई भी न देते।लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है।इस्लाम में इस वैदिक दंड व्यवस्था वाले आदेश को दूसरे तरीके से मतलब राजनीतिक तरीके से लागू किया गया है।इसमें कहा गया है कि जो कुरआन मतलब अल्लाह के आदेश को नहीं मानता वो काफ़िर है,उसे काट दो।काफ़िर को मारने से जन्नत मिलेगी।ये चीज इस्लाम की बड़ी पक्षपाती होने के कारण राजनीतिक है।इसी के कारण इस्लाम फैला है और इसी की वजह से मुस्लिम लोग एकजुट रहते हैं।क्योंकि जो मुस्लिम कुरआन को नहीं मानता या उसका जरा सा भी विरोध करता है,तो मुस्लिम लोग आपस में मिलकर मार डालते हैं।इसी डर की वजह से ये एकजुट हैं।ये व्यवस्था आर्य समाज में नहीं हैं,क्योंकि स्वामी जी ने इसे समस्त मनुष्यों के लिए लिखा है।उन्होंने कहीं भी पक्षपात नहीं किया है।लेकिन दुष्ट लोग समझाने पर कभी भी सही रास्ते पर नहीं चलते।इसलिए उन्हें ये उपर्युक्त वैदिक बात जोरदार तरीके से लिखनी चाहिए थी।निवेदन कर्ता।अमित आर्य दिल्ली।9266993383




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शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है। सारा जहां शिक्षक के पिछे ही चलता है। शिक्षक का बोया हुआ पेड़ बनता...

शिक्षक की गोद में उत्थान पलता है।

सारा जहां शिक्षक के पिछे ही चलता है।

शिक्षक का बोया हुआ पेड़ बनता है।

वही पेड़ हजारो बीज जनता है।

शिक्षक काल की गति को मोड़ सकता है।

शिक्षक धरा से अम्बर को जोड़ सकता है।

शिक्षक की महिमा महान होती है।

शिक्षक बिन अधूरी हूँ वसुन्धरा कहती है।

याद रखो चाणक्य ने इतिहास बना डाला था।

क्रूर मगध राजा को मिटटी में मिला डाला था।

बालक चन्द्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया था।

एक शिक्षक ने अपना लोहा मनवाया था।

संदीपनी से गुरु सदियों से होते आये है।

कृष्ण जैसे नन्हे नन्हे बिज बोते आये है।

शिक्षक से ही अर्जुन और युधिष्ठिर जैसे नाम है।

शिक्षक की निंदा करने से दुर्योधन बदनाम है।

शिक्षक की ही दया दृष्टि से बालक राम बन जाते है।

शिक्षक की अनदेखी से वो रावण भी कहलाते है।

हम सब ने भी शिक्षक बनने का सुअवसर पाया है।

बहुत बड़ी जिम्मेदारी को हमने गले लगाया है।

आओ हम संकल्प करे की अपना फ़र्ज निभायेगे।

अपने प्यारे भारत को हम जगतगुरु बनायेगे।

अपने शिक्षक होने का हरपल अभिमान करेगे।

इस समाज में हम भी अपना शिक्षा दान करेगे।




शिक्षको को समर्पित कविता।




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मित्रॊ यदि आप हिन्दू है और अपनी महान सभ्यता को बचाए रखना चाहते है तो आये इस शिवरात्री संकल्प ले 1 फल...

मित्रॊ यदि आप हिन्दू है और अपनी महान सभ्यता को बचाए रखना चाहते है तो आये इस शिवरात्री संकल्प ले

1 फल ख़रीदेगे हिन्दू से।

2 सब्जी लेगे हिन्दू से।

3 कपडे खरीदेगे हिन्दू से।

4 हमारा डॉक्टर हिन्दू ही होगा।

5 कपडे सिल्वाएगे हिन्दू से।

6 होटल में जायेगे हिन्दू की।

7 रिक्शा टैक्सी हिन्दू की।

8 मोबाइल रिचार्ज कर्वाएगे हिन्दू से।

9 घर बन्वाएगे हिन्दू से।

10 रेडी मेड वस्तुए खरीदेगे हिन्दू उत्पाद करता की।

11 प्रतिदिन कम से कम 10 हिन्दुओ को ये बात सम्झाएगे और 100 हिन्दुओ तक ये बात पहुचाएगे।

12 बिना भूले अनवरत इन 11 नियमो को पालेगे और इनका प्रचार प्रसार करेगे।

विश्वास रखे पूर्ण विश्व 1 वर्ष में हिन्दू राष्ट्र बन जाएगा


विश्व हिन्दू परिषद




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नमामि शमीशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश...

नमामि शमीशान निर्वाण रूपं

विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाश माकाश वासं भजेयम

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं

गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं

करालं महाकाल कालं कृपालं

गुणागार संसार पारं नतोहं

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .

मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं

स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा

लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा

चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं

प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं

म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं

प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि

प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं

अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम

त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम

भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी

सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी

चिदानंद संदोह मोहापहारी

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावत उमानाथ पादार विन्दम

भजंतीह लोके परे वा नाराणं

न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं

प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो ।




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Friday, February 13, 2015

"कपिल सिबल के एक फ़ोन पर सुप्रीम कोर्ट ने पिशचन तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार होने से बचा लिया, देश की..."

“कपिल सिबल के एक फ़ोन पर सुप्रीम कोर्ट ने पिशचन तीस्ता सीतलवाड़ को गिरफ्तार होने से बचा लिया, देश की सभी संस्थाओं पर अभी भी देशद्रोहियों का कब्ज़ा”

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दही का प्रयोग हर घर में होता है। लेकिनक्या आपको पता है दही में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व मौजूद होते...

दही का प्रयोग हर घर में होता है। लेकिनक्या आपको पता है दही में

कई प्रकार के पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं जिनको खाने से शरीर को फायदा होता है।

दही में कैल्शियम,प्रोटीन, विटामिन

पाया जाता है। दूध के मुकाबले दही सेहत के लिए ज्यादा फायदा करता है।

दही में दूध की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में कैल्शियम होता है। इसके अलावा दही में प्रोटीन, लैक्टोज,ोआयरन, फास्फोरस पाया जाता है। आइए हम

आपको बताते हैं कि दही आपके शरीर के लिए

कितना फायदेमंद है।

दही के फायदे

1. दही कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है

जो कि हड्डियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है।

दही खाने से दांत भी मजबूत होते हैं।

दही ऑस्टियोपोरोसिस (जोडों की बीमारी)

जैसी बीमारी से लड़ने में भी मददगार है।

2. दही पेट के लिए बहुत फायदेमंद होता है। दही में

अजवाइन मिलाकर पीने से कब्ज (की शिकायत समाप्त

होती है।

3. लू से बचने के लिए दही का प्रयोग

किया जाता है। लू लगने पर दही पीना चाहिए।

4. दही पीने से पाचन क्षमता बढती है और भूख

भी अच्छे से लगती है।

5. सर्दी और खांसी के कारण सांस की नली में

इन्फेक्शन हो जाता है। इस इंफेक्शन से बचने के लिए

दही का प्रयोग करना चाहिए।

6. मुंह के छालों के लिए यह बहुत ही अच्छा घरेलू

नुस्खा है। मुंह में छाले होने पर दही से कुल्ला करने पर

छाले समाप्त हो जाते हैं।

7. दही के सेवन से हार्ट में होने वाले

कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव

किया जा सकता है। दही के नियमित सेवन से शरीर

में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है।

8. चेहरे पर दही लगाने से त्वचा मुलायम होती है

और त्वचा में निखार आता है। दही से चेहरे की मसाज

की जाए तो यह ब्लीच के जैसा काम करता है।

इसका प्रयोग बालों में कंडीशनर के तौर पर

भी किया जाता है।

9. गर्मियों में त्वचा पर सनबर्न होने के बाद

दही से मलना चाहिए, इससे सनबर्न और टैन से

फायदा मिलता है।

10. त्वचा का रूखापन दूर करने के लिए

दही का प्रयोग करना चाहिए। जैतून के तेल और नींबू

के रस के साथ दही का चेहरे पर लगाने से चेहरे

का रूखापन समाप्त होता है।

गर्मी के मौसम में दही और उससे बनी छाछ

का ज्यादा मात्रा में प्रयोग किया जाता है।

क्योंकि छाछ और लस्सी पीने से पेट की गर्मी शांत

होती है। दही का रोजाना सेवन करने से शरीर

की बीमारियों से लडने की क्षमता बढती है।




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"शठे शाठ्यं समाचरेत् । अर्थात दुष्ट दण्ड से सुधारे जाने चाहिए"

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 एक किताब जो बदल देगी जीवन! 1. देश के लिए बलिदान होने वाला पहला क्रांतिकारी मंगल...

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


एक किताब जो बदल देगी जीवन!

1. देश के लिए बलिदान होने

वाला पहला क्रांतिकारी मंगल पांडे

स्वामी दयानंद का शिष्य था। मंगल पांडे

को चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के कारण

पानी न पिलाने वाले स्वामी दयानंद ही थे।

प्रमाण: महान स्वतंत्रता सेनानी आचार्य

दीपांकर की पुस्तक पढे: 1857 की क्रांति और

मेरठ

2. सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस

ने मरने से पहले गीता और सत्यार्थ प्रकाश के

दर्शन किए, जब जेलर ने पूछा इन किताब में

क्या है, उसने बताया, गीता मुझे दोबारा जन्म

लेने की प्रेरणा देती है और सत्यार्थ प्रकाश

स्वदेशी राज्य की प्राप्ति का मार्ग

सुझाती है। इसलिए मैं जन्म लेकर

दोबारा आउंगा और आजादी प्राप्त करूंगा।

प्रमाण: खुदीराम की जीवनी तेजपाल आर्य

की लिखी पढ़े।

और देश के सबसे वृद्ध

क्रांतिकारी लाला लाजपत राय पर जब

लाठियां बरस रही थी, उनके हाथ में तब

भी सत्यार्थ प्रकाश था।

3. पं. मदनमोहन मालवीय जी ने आर्यसमाज

का यहां तक विरोध किया कि सनातन धर्म

सभा तक बना डाली, लेकिन जब मरने लगे

तो काशी के सब पंडित उनके दर्शन करने आए और

बोले, महामना जी हमारा मार्गदर्शन अब कौन

करेगा? तो मदनमोहन मालवीय जी ने उन्हें

सत्यार्थप्रकाश देते हुए कहा, ‘‘सत्यार्थ

प्रकाश आपका मार्गदर्शन करेगा।’’

प्रमाण: घोर पौराणिक लेखक अवधेश

जी की पुस्तक महामना मालवीय पढ़े, जो हिन्द

पॉकेट बुक्स से छपी है।

4. सत्यार्थ प्रकाश पढकर होमी भाभा ने भारत

में परमाणु युग की शुरूआत की और डॉक्टर

कलाम ने गीता के साथ-साथ सत्यार्थप्रकाश

भी अनेक बार पढा है।

गॉड पार्टिकल और हिग्स बोसोन की खोज के

कारण जिन विदेशियों को नोबेल पुरस्कार

मिला, जानते हो मेरे पास 1966 की एक

हिन्दी पत्रिका नवनीत है, उसमें ये सिद्धांत

तब के ही लिखे हैं और वह लेख लिखा हुआ है

सत्येंद्रनाथ बोस का, जो आर्य समाज के सदस्य

थे और वैज्ञानिक भी, अब इतने दिन बाद

पुरस्कार कोई और ले गया। चलो फिर

भी विज्ञान में न सही अभी समाज सेवा में

कैलाश जी को नोबेल मिला, वे भी सत्यार्थ

प्रकाश पढने वाले ही हैं और जनज्ञान प्रकाशन

की पंडिता राकेश रानी के दामाद हैं।

जनज्ञान प्रकाशन ने कभी सबसे सस्ते वेद

प्रकाशित किए थे।

5. सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर फीजी, गुयाना,

मोरीशस में कई व्यक्ति राष्ट्रपति और

प्रधानमंत्री बन गए।

6. सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने वाले लाल बहादुर

शास्त्री और चौधरी चरण सिंह देश के सबसे

ईमानदार प्रधानमंत्री कहलाए। चरणसिंह

की राजनीति कैसी भी रही हो, लेकिन

जमींदारी उन्मूलन के लिए उन्हें हमेशा याद

किया जाएगा। नेहरूजी सहकारिता के नाम पर

हिन्दुस्तान की सारी जमीन रूस को देने वाले

थे, ऐसे ही जैसे उन्होंने आजाद भारत में

माउंटबेटन को गवर्नर बना दिया।

यदि सत्यार्थप्रकाश पढने वाले चरणसिंह न

होते तो आज हमारे किसानो के आका रूस के

लोग होते और देश रूस का गुलाम होता।

प्रमाण: कमलेश्वर की इंदिरा की जीवनी अंतिम

सफर (संपूर्ण मूल संस्करण, क्योंकि यह

संक्षिप्त भी है) पुस्तक पढे, कमलेश्वर

इंदिरा जी के चहेते थे, उनकी मौत पर दूरदर्शन

से कमेंटरी उन्होंने ही की थी।

7. सत्यार्थप्रकाश जिसने भी पढा, वह शेर बन

गया, रामप्रसाद बिस्लिम, श्याम कृष्णवर्मा,

श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉक्टर हेडेगेवार के

पिताश्री बलिराम पंत हेडगेवार जो आर्य समाज

के पुरोहित थे आदि और आज के युग में भी शेर

ही होते हैं। सुनो कहानी: सत्यार्थ प्रकाश

पढ़कर साहित्यकार तेजपाल सिंह धामा ने भारत

माता का नग्न चित्र बनानेवाले एमएफ हुसैन

को 15 वर्ष पहले हैदराबाद में पत्रकार सम्मेलन

में सबके सामने जोरदार चांटा जडा, अपमानित

होकर बेचारे हुसैन देश ही छोड गए और हैदराबाद

जैसे मुस्लिम शहर में रंगीला रसूल

का पुनः प्रकाशन भी किया और सौ से अधिक

पुस्तके आर्य समाज से संबंधित लिखी।

8. सत्यार्थ प्रकाश पर 2008 में प्रतिबंध के

लिए जब भारत भर के मुल्ला-मौलवी एकत्र हुए

और अदालत में पहुंचे तो फैसला सुनाने वाले

जज ने न केवल सत्यार्थ प्रकाश के पक्ष में

फैसला दिया वरन स्वयं आर्य समाजी हो गया और

मुसलमानो का एक मुस्लिम वकील भी आर्य

समाजी बन गया, बेचारे ने भूल से

सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन

किया था ताकि गलत तथ्य निकाल सके।

9. सत्यार्थप्रकाश पढकर ही मुंशी प्रेमचंद

भारत के सबसे लोकप्रिय लेखक बने,

उनकी धर्मपत्नी ने ही ऐसा लिखा है।

सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा लो और

वेदो की ओर लोटो ।


————— आर्य


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Thursday, February 12, 2015

"संस्कृत सुभाषितानि — आचाराल्लभते ह्यायु: आचारादीप्सिता: प्रजा:। आचाराद्धनमक्षयम् आचारो..."

“संस्कृत सुभाषितानि —

आचाराल्लभते ह्यायु:

आचारादीप्सिता: प्रजा:।

आचाराद्धनमक्षयम्

आचारो हन्त्यलक्षणम्॥

अर्थात —

सदाचार से आयु की प्राप्ति होती है, सदाचार से अभिलषित संतान की प्राप्ति होती है, सदाचार से कभी न नष्ट होने वाले धन की प्राप्ति होती है, सदाचार से बुरी आदतों का नाश होता है॥. आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ।

।।शुभम भवतु ।।”

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प्रत्येक आर्य को इस बात का स्वाभिमान होना चाहिए कि वह एक ऐसे संगठन का सदस्य है जिसके कारण वह...

प्रत्येक आर्य को इस बात का स्वाभिमान होना चाहिए कि वह एक ऐसे संगठन का सदस्य है जिसके कारण वह अन्धविश्वास, पाखण्ड, कुरीतियों और अनेक गलत मान्यताओ से दूर है। उसे परमात्मा के ज्ञान को पढने, समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यदि वह इस समाज से नहीं जुड़ता तो उसका खानपान, व्यवहार सब अलग होता, अन्धविश्वास के दलदल में फंसा रहता, न जाने कहा-कहा भटकता रहता। ऋषि ऋण चूका कर आर्य समाज की गरिमा को ऊँचा करें।




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🌷ईश्वर जी ने योग के विषय मे पूछा था 🌷 गणित की संख्याओं को जोड़ने के लिए भी ‘योग’ शब्द...

🌷ईश्वर जी ने योग के विषय मे पूछा था 🌷

गणित की संख्याओं को जोड़ने के लिए

भी ‘योग’ शब्द का प्रयोग किया जाता है

परन्तु आध्यात्मिक पृष्ठ भूमि में जब ‘योग’ शब्द

का प्रयोग किया जाता है तब उसका अर्थ

आत्मा को परमात्मा से जोड़ना होता है।

महर्षि पंतजलि ने आत्मा को परमात्मा से

जोड़ने की क्रिया को आठ भागों में बांट

दिया है। यही क्रिया अष्टांग योग के नाम से

प्रसिद्ध है। आत्मा में बेहद बिखराव (विक्षेप)

है जिसके कारण वह परमात्मा, जो आत्मा में

भी व्याप्त है, की अनुभूति नहीं कर पाता। यूँ

भी कहा जा सकता है कि अपने

विक्षेपों (बिखराव) के समाप्त होने पर

आत्मा स्वत: ही परमात्मा को पा लेता है।

योग के आठों अंगों का ध्येय आत्मा के

विक्षेपों को दूर करना ही है।

परमात्मा को प्राप्त करने का अष्टांग योग से

अन्य कोर्इ मार्ग नहीं। अष्टांग योग के पहले

दो अंग-यम और नियम हमारे संसारिक व्यवहार

में सिद्धान्तिक एकरूपता लाते हैं। अन्य छ: अंग

आत्मा के अन्य विक्षेपों को दूर करते हैं।

महर्षि पंतजलि द्वारा वर्णित योग के आठ

अंगो के क्रम का भी अत्यन्त मह त्त्व है। हर अंग

आत्मा के विशिष्ट (खास तरह के)

विक्षेपों को दूर करता है परन्तु तभी, जब उसके

पहले के अंग सिद्ध कर लिए गए हों।

उदाहरणार्थ यम और नियम को सिद्ध किए

बगैर आसन को सिद्ध नहीं किया जा सकता।

सभी मतवाले इस बात को मानते हैं कि असत्य,

हिंसा आदि (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्राचर्य

और अपरिग्रह, अष्टांग योग के पहले अंग-यम के

विभाग हैं) की राह पर चलने वाले र्इश्वर

को कभी नहीं पास करते। यह इस बात

की पुष्टि ही है कि र्इश्वर को पाने

का अष्टांग योग एक मात्र रास्ता है।




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📢दयानंद उवाच ➡यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् प्रत्येक मतो मे है वे पक्षपात छोड सर्वतन्त्र...

📢दयानंद उवाच

➡यद्यपि आजकल बहुत से विद्वान् प्रत्येक मतो मे है वे पक्षपात छोड सर्वतन्त्र सिद्धांत अर्थात् जो जो बाते सबके अनुकूल सब मे सत्य है, उनका ग्रहण और जो एक दूसरे से विरुद्ध बाते है, उनका त्याग कर परस्पर प्रीति से वर्ते वर्तावे तो जगत् का पूर्ण हित होवे।(सत्यार्थ प्रकाश भूमिका )




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आओ फिर से दिया जलाएँ ***************************** आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में...

आओ फिर से दिया जलाएँ

*****************************


आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अंधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ


हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

वतर्मान के मोहजाल में-

आने वाला कल न भुलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ।


आहुति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने-

नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाए


।।रचना-भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी।।




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Wednesday, February 11, 2015

"🌞 ओ३म् 🌞 💐 वेदामृतम् 💐 अहं भूमिमददामार्याय । (ऋग्वेद) मैं यह भूमि आर्यों को देता हूं । इस मन्त्र..."

“🌞 ओ३म् 🌞

💐 वेदामृतम् 💐

अहं भूमिमददामार्याय । (ऋग्वेद) मैं यह भूमि आर्यों को देता हूं । इस मन्त्र के द्वारा परमेश्वर आज्ञा दे रहे हैं की श्रेष्ठ गुण, कर्म, स्वाभाव वाले सज्जन मनुष्य ( आर्य ) संगठित होकर पृथ्वी पर शासन करें ।”

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मित्रों, एक बार महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी लाहौर में...

मित्रों, एक बार महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी लाहौर में प्रचार करने के लिए पहुंचे तो वहां के पाखंडी हिन्दूओं ने पंडे पुजारियों के बहकावे में आकर उन्हें रात को ठहरने के लिए जगह नहीं दी। तब एक मुसलमान ने स्वामी जी से कहा कि आप मेरे वहां पर रात को ठहर सकते हैं स्वामी जी मुस्लमान के वहां ठहर गये और दूसरे दिन सुबह जब स्वामी जी ने प्रचार किया तो उन्होंने इस्लाम का भी खंडन किया। तब वह मुसलमान हंसते हुए स्वामी जी से बोला कि स्वामी जी आपने ने तो हमें भी नहीं बख्शा। इस पर स्वामी जी बोले कि मैंने वही कहा है जो सत्य है वेदों में वर्णित है मित्रों, स्वामी जी के इस वृतांत से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए।




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बीजेपी को , धर्मनिरपेक्षता एक भ्रामक शब्द है इसको बताना ही होगा -सही शब्द “पंथ निरपेक्ष...

बीजेपी को , धर्मनिरपेक्षता एक भ्रामक शब्द है इसको बताना ही होगा -सही शब्द “पंथ निरपेक्ष “है लोगो को समझाना होगा -टीवी आदि पर भी बीजेपी के प्रवक्ताओं को इस विषय में पूरी जानकारी देनी होगी ताकि वो जनता को धर्मनिरपेक्षता की कड़वी सच्चाई बता सके। मुस्लिम अपने आपको धर्मनिरपेक्ष कहते हैं -पर वो तो “पंथ निरपेक्ष “भी नहीं हैं -इसको जनता के सामने लाना ही होगा




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Monday, February 9, 2015

हमें आर्यभाषा का प्रयोग करना चाहिए तथा देवनागरी लिपि में ही लिखना चाहिए। और यदि हम ऐसा नहीं कर सकते...

हमें आर्यभाषा का प्रयोग करना चाहिए तथा देवनागरी लिपि में ही लिखना चाहिए। और यदि हम ऐसा नहीं कर सकते या ऐसा करने में विवश हैं तो फिर स्वदेशी का प्रचार व्यर्थ हैं। स्वदेशी की शुरुआत ही मूल रूप से भाषा, पोशाक और आहार से होता है। यदि ये नहीं तो फिर कुछ नहीं।

अंग्रेजी प्रयोग करने के लिए हम विवश क्यों हैं??? यह अंग्रेजियत हमारे पास कैसे आई?? निश्चित रूप से गुलामी के कारण। फिर इसे अपनाते रहना कहाँ की बुद्धिमानी है?? चीन देश में सब काम चीन में हो सकता है। जापान में सब काम जापानी भाषा में हो सकता है फिर भारत ही इतना विवश क्यों है कि वह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करे?? उनकी तरह पोशाक पहने?? रोटी छोड़ नूडल, पिज़ा आदि खाए। भारत चाहे तो आर्यभाषा को अन्तराष्ट्रीय भाषा बनाने में सक्षम हो सकता था। कुछ वर्ष पहले के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन और उसके बाद हिंदी और अंग्रेजी दोनों सम था। आज अंग्रेजी आगे चली गई। आखिर क्यों?? अंग्रेजों के कारण नहीं। हम जैसे हर समस्या पर स्वाभिमान को बेच विवशता का नाम लेकर अंग्रेजी प्रयोग करने वाले हिन्दुओं के कारण।

कई लोग कहते हैं अंग्रेजी सीखना बुरा नहीं। सही है पर साथ ही बुद्धिमान विद्वान् बनने के लिए अंग्रेजी सीखने की कोई आवश्यकता भी नहीं। देश में यह सुविधा होनी ही चाहिए कि एक अक्षर अंग्रेजी जाने बिना भी हम सब काम यथावत कर सकें। इसकी शुरुआत स्वयं से होगी। अपनी हर विवशता को अपनी शक्ति व सामर्थ्य से मार कर स्वदेश प्रेम की सच्ची भूमिका निभाएं।

आप अपने लैपटॉप या मोबाइल में हिन्दी लिखने के लिए मुझसे सम्पर्क कर सकते है मेरे व्हाट्स अप्प नंबर पर

🙏🙏 आपका मित्र राजेश आर्यवर्त




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Sunday, February 8, 2015

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👉👉🌺ईशोपनिषद मन्त्र-3🌺👈👈 असुर्य्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृताः। तांस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के...

👉👉🌺ईशोपनिषद मन्त्र-3🌺👈👈


असुर्य्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृताः।

तांस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः।।


वे ही मनुष्य असुर, दैत्य, राक्षस और दुष्ट हैं जो आत्मा में कुछ और, मन में कुछ और, वाणी में कुछ और व कर्म में कुछ और ही आचरण करते हैं।

ऐसे लोग अंधकार रूपी अज्ञान से सब ओर से ढके रहते हैं और इस प्रकार के आचरण से अपनी आत्मा का हत्या करते हैं। ऐसे लोग अविद्या रूपी दुःख के सागर को पार करके कभी आनंद को प्राप्त नहीं कर सकते।

और जो लोग आत्मा में सो मन में, मन में सो वाणी में, वाणी में सो कर्म में कपटरहित आचरण करते हैं वे ही देव व आर्यजन सब जग को पवित्र करते हुए इस लोक के साथ साथ परलोक में भी अनुपम आनंद प्राप्त करते हैं।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏




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एक जोड़े की मनोरंजन तथा मस्ती भरी सेक्स की प्रक्रिया से मानव जैसा शरीर पा लेना ..खाना पीना ,मस्ती ,...

एक जोड़े की मनोरंजन तथा मस्ती भरी सेक्स की प्रक्रिया से मानव जैसा शरीर पा लेना ..खाना पीना ,मस्ती , सम्भोग (Sex) , निजी जरूरतों से आगे न सोचना ..ये काम तो जानवर भी कर लेते है …….!!!




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महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ...

महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में

सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें

उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ जाता है ।

जिन्होंने इस का गहराई से अध्ययन किया है

उन्हें विदित है की इसमें कुल 377

ग्रंथों का हवाला है जिसमे 290 पुस्तकों के

प्रमाण दिए गए है । इस ग्रन्थ में 1542

वेद मन्त्रों या श्लोकों का उदाहरण

दिया गया है और सम्पूर्ण

प्रमाणों की संख्या 1886 है । इस ग्रन्थ के

लेखक का स्वाध्याय कितना विस्तृत

था इसका अनुमान उनके इस कथन से

लगाया जा सकता है की वे ऋग्वेद से लेके

पूर्वमीमांसा पर्यन्त 3000

ग्रंथों को प्रामाणिक मानते है ।

सत्यार्थप्रकाश में इतने ग्रंथो का उद्धरण

ही नही उनका reference भी दिया गया है ।

किस ग्रन्थ में कौनसा श्लोक या मन्त्र

या वाक्य कहाँ है , उसकी संख्या क्या है -

यह सब कुछ इस साढ़े तीन महिने में लिखे

ग्रन्थ में मिलता है । आज कोई रिसर्च

स्कोलर अगर किसी विश्वविध्यालय

की संस्कृत की uptodate लाइब्रेरी में

जहाँ सब ग्रन्थ उपलब्ध हो , इतने रेफरेंस

वाला ग्रन्थ लिखना चाहे तो भी सालो लग

जाए , जिसे ऋषि दयानंद ने साढे तीन महीने

में तैयार कर दिया था । साधारण ग्रन्थ

की बात दूसरी है । सत्यार्थप्रकाश एक

मौलिक विचारो का ग्रन्थ है । ऐसा ग्रन्थ

की जिसने समाज को एक सिरे से दुसरे सिरे

तक हिला दिया हो । जिन ग्रंथो ने संसार

को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे

है । कार्ल मार्क्स ने 34 वर्ष इंग्लेंड में

बेठ कर ‘केपिटल’ ग्रन्थ लिखा था जिसने

विश्व में नवीन आर्थिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया , किन्तु ऋषि दयानंद ने

सत्यार्थप्रकाश साढ़े तीन महीनों में

लिखा था जिसने नवीन सामजिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया था । दोनों का क्षेत्र अलग

अलग था , मार्क्स के ग्रन्थ ने यूरोप

का आर्थिक ढांचा हिला दिया , ऋषि दयानंद

के ग्रन्थ ने भारत का सांस्कृतिक ,

सामाजिक तथा धार्मिक ढांचा हिला दिया ।




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स्वाइन फ्लू —-सुअर के श्वास नलिका से उत्पन्न यह इन्फ्लुएन्जा फ्लू एक सन्करामक वायरस है। जो...

स्वाइन फ्लू —-सुअर के श्वास नलिका से उत्पन्न यह इन्फ्लुएन्जा फ्लू एक सन्करामक वायरस है। जो जुक्काम व् खांसी वाले व्यक्ति को व् उनके द्धाराे शीघ्र फैलता है ।

बचाव —हाथ को अच्छे से धोएं।

कपाल भाति प्रात साय 30 मिनट करें।

गला खराब न होनें दे।


बचाव का उपाय —-100 व्यक्तियों के लिए काढ़ा बनाने की विधि। 20 लीटर पानी, गिलोय क्वाथ 200 ग्राम, श्वासारी क्वाथ 100 ग्राम, तुलसी 2 पौधे, काली मिर्च 50 ग्राम, हल्दी 25 ग्राम। इसको रात भर भिगोकर रखने के बाद सुबह 1 घंटा उबाल लें। ठंडा कर छान लो व् एक कप प्रति व्यक्ति को योग शिविर उपरान्त हल्का गर्म गर्म पिलायें ।




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आज का सुविचार (फरवरी ८ रविवार) संसार के समस्त जनों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है.. उत्तम,...

आज का सुविचार (फरवरी ८ रविवार)


संसार के समस्त जनों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है.. उत्तम, मध्यम एवं अधम.. उत्तम वे हैं जो शांत प्रकृति, पवित्रता, विद्या एवं सुविचारों से सतत उन्नत होते रहते हैं.. मध्यम वे हैं जो ईर्ष्या, द्वेष, काम, अभिमान तथा मानस विक्षेपों के दुःख-सागर में सदा गोते लगाते रहते हैं.. जब कि अधम व्यक्ति क्रॊध, मलिनता, आलस्य, प्रमादादि द्वारा अपने अनमोल मानव जीवनावसर को बर्बाद करते रहते हैं..!! वैदिक संस्कृति इन्हें क्रमशः सात्विक, राजसिक एवं तामसिक की संज्ञा देती है..!! हम किस श्रेणी के व्यक्तित्व बनें ये शतप्रतिशत हमारे हाथ में है.. अपने चयन हक का आदर करें..!! सदा अपने लिए श्रेष्ठ विकल्प ही चुनें..!!!




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Saturday, February 7, 2015

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आज का सुविचार (फरवरी ८ रविवार)


संसार के समस्त जनों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है.. उत्तम, मध्यम एवं अधम.. उत्तम वे हैं जो शांत प्रकृति, पवित्रता, विद्या एवं सुविचारों से सतत उन्नत होते रहते हैं.. मध्यम वे हैं जो ईर्ष्या, द्वेष, काम, अभिमान तथा मानस विक्षेपों के दुःख-सागर में सदा गोते लगाते रहते हैं.. जब कि अधम व्यक्ति क्रॊध, मलिनता, आलस्य, प्रमादादि द्वारा अपने अनमोल मानव जीवनावसर को बर्बाद करते रहते हैं..!! वैदिक संस्कृति इन्हें क्रमशः सात्विक, राजसिक एवं तामसिक की संज्ञा देती है..!! हम किस श्रेणी के व्यक्तित्व बनें ये शतप्रतिशत हमारे हाथ में है.. अपने चयन हक का आदर करें..!! सदा अपने लिए श्रेष्ठ विकल्प ही चुनें..!!!




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अगर कोई व्यक्ति अच्छा काम करता है, समाज की सेवा करता है, परोपकार करता है, तो ईश्वर उसको साथ-साथ सुख...

अगर कोई व्यक्ति अच्छा काम करता है, समाज की सेवा करता है, परोपकार करता है, तो ईश्वर उसको साथ-साथ सुख देता है । हमें अन्दर से आनन्द और निर्भयता देता है ।




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बहुत ही खूबसूरत आज बरबादी मिली है परिंदे को कटाकर पंख आज़ादी मिली है, ईमाँ वाले बहुत कम बैठ पाये...

बहुत ही खूबसूरत आज बरबादी मिली है

परिंदे को कटाकर पंख आज़ादी मिली है,


ईमाँ वाले बहुत कम बैठ पाये कुर्सियों पर

उचक्कों और चोरों को बहुत खादी मिली है,


खता रानाइयो की हम कभी देते नहीं हैं

हमे यह ज़िंदगी ही दर्द की आदी मिली है,


सिसकते फूल रोती तितलियाँ देखी चमन में

बहारों से बिछड़कर गमजदा वादी मिली है,


सिकुड़ती जा रही बस्तियाँ सब देश की यह

वतन को रोज बढ़ती हुई आबादी मिली है,


जरूरत क्या अँधेरे में जुलम ढाने की है जब

उजाले में डकैती के लिये खाकी मिली है——-




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Thursday, February 5, 2015

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[7:13AM, 2/6/2015] Virendr Guru: 📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म 🚩 व्यख्या3⃣ जो कि प्रत्यक्षादि...

[7:13AM, 2/6/2015] Virendr Guru: 📢आर्योद्देश्यरत्नमाला 2⃣👉 धर्म 🚩 व्यख्या3⃣ जो कि प्रत्यक्षादि प्रमाणो से सुपरीक्षित ➡इस का परिचय आगे आये गा।

[7:34AM, 2/6/2015] Virendr Guru: और (धर्म ) वेदोक्त होने से सब मनुष्यो के लिये यही एक मानने योग्य है अर्थात् उपरोक्त धर्म वेदोक्त है ।वेद ईश्वरीय वाणी है । ईश्वर सब मनुष्यो के लिये एक ही है ।सब मनुष्यो को परमात्मा ने ही बनाया है ।वही सबका माता पिता बन्धुआदि है ।जो अपने माता पिता की आज्ञा का पालन नही करता ।वह कृतघ्न है पापी है । पापी को दुनिया भर मे कही भी चैन नही रहता ।सदा बेचैन, काम क्रोध आदि दुर्गुणो से भरा रहता है । खुद दुखी औरो को भी दुखी करता रहता है । दुनियसारी वेद बिना दुखिया भारी वेद बिना । वेद ईश्वर की चरण शरण बिना पवित्रता नही ।सबको छोडो वेदोक्त धर्म को ही अपनाना पडे गा आज नही तो कल ।




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नानक से पहले कोई सिक्ख नहीं था । • जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था । • मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान...

नानक से पहले कोई सिक्ख नहीं था ।

• जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था ।

• मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था ।

• ऋषभदेव से पहले कोई जैनी नहीं था ।

• बुद्घ से पहले कोई बुद्धिस्ट नहीं था ।

• क्लार मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था ।

लेकिन :—

कृष्ण से पहले ।

राम से पहले ।

जमद्गनि से पहले ।

अत्री से पहले ।

अगस्त्य से पहले ।

पतञ्जलि से पहले ।

कणाद से पहले ।

याज्ञवलक्य से पहले ।

सभी सनातन वैदिक धर्मी थे । क्योंकि एक व्यक्ति विशेष के द्वारा तो मत; पंथ; सम्प्रदाय; रिलिजन; आदि चला करते हैं ।धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं चला करता । वह ईश्वर ने सभी मनुष्यों को समान रूप से वेद के रूप में संविधान दिया है । वैदिक धर्मी बनें । अपने अपने पंथ त्यागें । एक हो जाओ..🙏🙏🙏🙏🙏🌞




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Wednesday, February 4, 2015

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: 👏नमस्ते जी । ईश कृपा से हम आज महर्षि दयानंद रचित ग्रंथो में से एक...

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: 👏नमस्ते जी । ईश कृपा से हम आज महर्षि दयानंद रचित ग्रंथो में से एक छोटे से 📕 ग्रंथ का आरम्भ करने जा रहे है । प्रतिदिन कुछ अंश क्रमशः देते रहे गे । बीच मे कोई मैसेज स्वीकार्य नही हो गा । अधिक लम्बा भी नही हो गा ।मैसेज की भरमार नही करनी है । कृपया ग्रुप वाले संयम रखे।अलग से कुछ ना दे ।

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: 📢आर्योद्देश्यरत्नमाला

1⃣👉 ईश्वर 🚩 जिसके गुण कर्म स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं,जो केवल चेतन मात्र वस्तु है,तथा जो एक अद्वितीय सर्व शक्तिमान्

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: 📕आर्योद्देश्यरत्नमाला 📕

परिचय 👉वेदराम===श्रीयुत महाराज विक्रमादित्य जी के 1934संवत् मे श्राश्रम महीने के शुक्ल पक्ष 🌓सप्तमी बुध वार के दिन उक्त स्वामी जी ने आर्य भाषा मे सब मनुष्यो के हितार्थ यह= आर्योद्देश्यरत्नमाला =पुस्तक प्रकाशित किया ।

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: निराकार, सर्वत्र व्यापक अनादि और अनंत आदि सत्यगुणवाला है और जिस का स्वभाव अविनाशी ज्ञानी आनन्दी शुद्ध न्यायकारी दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म जगत की उत्पत्ति ।पालन और विनाश करना, तथा सर्व जीवों को पाप पुण्य के फल ठीक - ठीक पहुंचाना है, उसको ईश्वर कहते है ।

[10:02AM, 2/4/2015] Virendr Guru: तो आज हम आर्यो का प्राण तुल्य छोटा सा ग्रंथ आरम्भ करते है ।

📕 आर्योद्देश्यरत्नमाला 📢




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Tuesday, February 3, 2015

आर्योद्देश्यरत्नमाला 1⃣👉 ईश्वर = व्याख्या 11 ➡तथा सर्व जीवों को पाप पुण्य के फल ठीक ठीक पहुंचाना...

आर्योद्देश्यरत्नमाला 1⃣👉 ईश्वर = व्याख्या 11 ➡तथा सर्व जीवों को पाप पुण्य के फल ठीक ठीक पहुंचाना है । न्यायकारी होने से ईश्वर सब जीवो के (पाप पुण्य का ठीक ठीक अर्थात् न कम न अधिक )कर्मो का फल पक्षपात रहित हो कर देता है । ईश्वर की न्याय व्यवस्था से कोई बच नही सकता रिश्वत वा क्षमायाचना से माफी मांगने पर छूट बिल्कुल भी नही । अधिक भक्ति वा गुणगान करने पर भी खुश हो कर माफ नही करता।भक्ति का फल अलग है । कर्मो का फल अलग है । ध्यान रहे =पुण्य अधिक, पाप कम होन पर घटत बढत नही चलती।मनुष्य माफ कर देता है किसी भी कारण से ।परमात्मा कभी भी माफ नही करता ।चाहे तुम कितने सिर फटाको, तोबा तोबा करलो छोड़ने वाला नही । तभी तो न्यायकारी कहाता है ।




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