Sunday, February 8, 2015

महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ...

महर्षि दयानंद के सभी ग्रंथो में

सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है । इसमें

उनके सभी ग्रंथों का सारांश आ जाता है ।

जिन्होंने इस का गहराई से अध्ययन किया है

उन्हें विदित है की इसमें कुल 377

ग्रंथों का हवाला है जिसमे 290 पुस्तकों के

प्रमाण दिए गए है । इस ग्रन्थ में 1542

वेद मन्त्रों या श्लोकों का उदाहरण

दिया गया है और सम्पूर्ण

प्रमाणों की संख्या 1886 है । इस ग्रन्थ के

लेखक का स्वाध्याय कितना विस्तृत

था इसका अनुमान उनके इस कथन से

लगाया जा सकता है की वे ऋग्वेद से लेके

पूर्वमीमांसा पर्यन्त 3000

ग्रंथों को प्रामाणिक मानते है ।

सत्यार्थप्रकाश में इतने ग्रंथो का उद्धरण

ही नही उनका reference भी दिया गया है ।

किस ग्रन्थ में कौनसा श्लोक या मन्त्र

या वाक्य कहाँ है , उसकी संख्या क्या है -

यह सब कुछ इस साढ़े तीन महिने में लिखे

ग्रन्थ में मिलता है । आज कोई रिसर्च

स्कोलर अगर किसी विश्वविध्यालय

की संस्कृत की uptodate लाइब्रेरी में

जहाँ सब ग्रन्थ उपलब्ध हो , इतने रेफरेंस

वाला ग्रन्थ लिखना चाहे तो भी सालो लग

जाए , जिसे ऋषि दयानंद ने साढे तीन महीने

में तैयार कर दिया था । साधारण ग्रन्थ

की बात दूसरी है । सत्यार्थप्रकाश एक

मौलिक विचारो का ग्रन्थ है । ऐसा ग्रन्थ

की जिसने समाज को एक सिरे से दुसरे सिरे

तक हिला दिया हो । जिन ग्रंथो ने संसार

को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे

है । कार्ल मार्क्स ने 34 वर्ष इंग्लेंड में

बेठ कर ‘केपिटल’ ग्रन्थ लिखा था जिसने

विश्व में नवीन आर्थिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया , किन्तु ऋषि दयानंद ने

सत्यार्थप्रकाश साढ़े तीन महीनों में

लिखा था जिसने नवीन सामजिक दृष्टिकोण

को जन्म दिया था । दोनों का क्षेत्र अलग

अलग था , मार्क्स के ग्रन्थ ने यूरोप

का आर्थिक ढांचा हिला दिया , ऋषि दयानंद

के ग्रन्थ ने भारत का सांस्कृतिक ,

सामाजिक तथा धार्मिक ढांचा हिला दिया ।




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