Thursday, February 12, 2015

आओ फिर से दिया जलाएँ ***************************** आओ फिर से दिया जलाएँ भरी दुपहरी में...

आओ फिर से दिया जलाएँ

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आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अंधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ


हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल

वतर्मान के मोहजाल में-

आने वाला कल न भुलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ।


आहुति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने-

नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाए


।।रचना-भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी।।




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