Friday, June 22, 2018

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१...

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*


_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१ वर्ष हो चुके, परन्तु तुम्हारी दिव्य मूर्ति मेरे हृदय-पटल पर अब तक ज्यों-की-त्यों अंकित है. मेरे निर्बल हृदय के अतिरिक्त कौन मरणधर्मा मनुष्य जान सकता है कि कितनी बार गिरते-गिरते तुम्हारे स्मरण मात्र ने मेरी आत्मिक रक्षा की है. तुमने कितनी गिरी हुई आत्माओं की काया पलट दी, इसकी गणना कौन मनुष्य कर सकता है? परमात्मा के बिना, जिनकी पवित्र गोद में तुम इस समय विचर रहे हो, कौन कह सकता है कि तुम्हारे उपदेशों से निकली हुई अग्नि ने संसार में प्रचलित कितने पापों को दग्ध कर दिया है? परन्तु अपने विषय में मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारे सत्संग ने मुझे कैसी गिरी हुई अवस्था से उठाकर सच्चा जीवन-लाभ करने के योग्य बनाया?”_


_“मैं क्या था इसे इस कहानी में मैंने छिपाया नहीं. मैं क्या बन गया और अब क्या हूँ, वह सब तुम्हारी कृपा का ही परिणाम है. इसलिए इससे बढकर मेरे पास तुम्हारी जन्म-शताब्दी पर और कोई भेंट नहीं हो सकती कि तुम्हारा दिया आत्मिक जीवन तुम्हें ही अर्पण करुं. तुम वाणी द्वारा प्रचार करनेवाले केवल तत्ववेत्ता ही न थे, परन्तु जिन सच्चाइयों का तुम संसार में प्रचार करना चाहते थे उनको क्रिया में लाकर सिद्ध कर देना भी तुम्हारा ही काम था. भगवान् कृष्ण की तरह तुम्हारे लिए भी तीनों लोकों में कोई कर्तव्य शेष नहीं रह गया था, परन्तु तुमने भी मानव-संसार को सीधा मार्ग दिखाने के लिए कर्म की उपेक्षा नहीं की”._


_“भगवन् ! मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ. इसलिए जिस परमपिता की असीम गोद में तुम परमानन्द का अनुभव कर रहे हो, उसी से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे तुम्हारा सच्चा शिष्य बनने की शक्ति प्रदान करे”._


*- श्रद्धानन्द*


(अपने आत्मोत्सर्ग से दो वर्ष पूर्व वि.सं. १९८१ तदनुसार ई.१९२४ में प्रकाशित अपना आत्म-चरित *“कल्याण मार्ग का पथिक”* ऋषि दयानन्द सरस्वती के चरणों में सादर समर्पित करते हुवे स्वामी श्रद्धानन्द जी के मार्मिक शब्द… स्वामी जी की यह आत्मकथा अपने जन्म-वर्ष १८५७ ई. से १८९२ ई. तक कुल ३५ वर्षों के क्रिया-कलाप और घटनाओं का विवरण देती है. उसके आगे का जीवन तथा उनके कार्यों का लेखा-जोखा जानने के लिए पढें: *“स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व”*, सम्पादक: डॉ. विनोदचन्द्र विद्यालंकार)


* *स्त्रोत:* कल्याण मार्ग का पथिक(संस्करण २०१५, पृ.३)

* *लेखक:* स्वामी श्रद्धानन्द जी

* *सम्पादक:* डॉ. ज्वलन्तकुमार शास्त्री

* *प्रस्तुति:* राजेश ‘आर्य’

______________________________


◆ *Swami Shraddhanand* (MR Jambunathan)


https://drive.google.com/file/d/1ACWhRpU4mGpCKsx_OUzZRijHt9_cTD4x/view?usp=drivesdk

◆ *कल्याण मार्ग का पथिक* (स्वामी श्रद्धानन्द)


https://drive.google.com/file/d/1rN4XefoE0bB7JrEG3P0rPIjrcM0YVQyB/view?usp=drivesdk

◆ *वीर सन्यासी श्रद्धानन्द* (राम गोपाल)


https://drive.google.com/file/d/14By6FywhUouSzVbde5PCFvBGEQWr6K52/view?usp=drivesdk

◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (उमा चतुर्वेदी)


https://drive.google.com/file/d/1H1nxN3IBQ3_0Gp3kfai_fIEcWv79QmbK/view?usp=drivesdk

◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (सत्यदेव विद्यालंकार)


https://drive.google.com/file/d/1ZlDBiNqvzeoSe-3GoPwVWrinL7rc_bVM/view?usp=drivesdk


*II ओ३म् II*


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💭 *इस्लाम व कुरान पर भारत के प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा दिए गए क्रांतिकारी विचार*➖➖➖➖➖➖➖➖➖➖🔺 *स्वामी...

💭 *इस्लाम व कुरान पर भारत के प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा दिए गए क्रांतिकारी विचार*

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🔺 *स्वामी विवेकानन्द*


ऎसा कोई अन्य मजहब नहीं जिसने इतना अधिक रक्तपात किया हो और अन्य के लिए इतना क्रूर हो। इनके अनुसार जो कुरान को नहीं मानता कत्ल कर दिया जाना चाहिए। उसको मारना उस पर दया करना है। जन्नत ( जहां हूरे और अन्य सभी प्रकार की विलासिता सामग्री है ) पाने का निश्चित तरीका गैर ईमान वालों को मारना है। इस्लाम द्वारा किया गया रक्तपात इसी विश्वास के कारण हुआ है।


कम्प्लीट वर्क आफ विवेकानन्द वॉल्यूम २ पृष्ठ २५२-२५३



🔺 *गुरु नानक देव जी*


मुसलमान सैय्यद, शेख, मुगल पठान आदि सभी बहुत निर्दयी हो गए हैं। जो लोग मुसलमान नहीं बनते थें उनके शरीर में कीलें ठोककर एवं कुत्तों से नुचवाकर मरवा दिया जाता था।


नानक प्रकाश तथा प्रेमनाथ जोशी की पुस्तक पैन इस्लाममिज्म रोलिंग बैंक पृष्ठ ८०


🔺 *महर्षि दयानन्द सरस्वती*


इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम हैं। जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकती। श्रेष्ठ गैर मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता, जन्नत में अनेक औरतों और लौंडे होना आदि निन्दित उपदेश कुएं में डालने योग्य हैं। अनेक स्त्रियों को रखने वाले मुहम्मद साहब निर्दयी, राक्षस व विषयासक्त मनुष्य थें, एवं इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दूसरा और कोई नहीं। इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया, न कि इसको बढ़ाने के लिए। सब सज्जनों के सामन रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है ।।


सत्यार्थ प्रकाश १४ वां समुल्लास विक्रमी २०६१


🔺 *महर्षि अरविन्द*


हिन्दू मुस्लिम एकता असम्भव है क्योंकि मुस्लिम कुरान मत हिन्दू को मित्र रूप में सहन नहीं करता। हिन्दू मुस्लिम एकता का अर्थ हिन्दुओं की गुलामी नहीं होना चाहिए। इस सच्चाई की उपेक्षा करने से लाभ नहीं। किसी दिन हिन्दुओं को मुसलमानों से लड़ने हेतु तैयार होना चाहिए। हम भ्रमित न हों और समस्या के हल से पलायन न करें। हिन्दू मुस्लिम समस्या का हल अंग्रेजों के जाने से पहले सोच लेना चाहिए अन्यथा गृहयुद्ध के खतरे की सम्भावना है । ।


ए बी पुरानी इवनिंग टाक्स विद अरविन्द पृष्ठ २९१-२८९-६६६


🔺 *सरदार वल्लभ भाई पटेल*


मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को यहां फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का विभाजन हुआ था। मुसलमानों की पृथक बस्तियां बसाई जा रहीं हैं। मुस्लिम लीग के प्रवक्ताओं की वाणी में भरपूर विष है। मुसलमानों को अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए। मुसलमानों को अपनी मनचाही वस्तु पाकिस्तान मिल गया हैं वे ही पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं, क्योंकि मुसलमान देश के विभाजन के अगुआ थे न कि पाकिस्तान के वासी। जिन लोगों ने मजहब के नाम पर विशेष सुविधांए चाहिंए वे पाकिस्तान चले जाएं इसीलिए उसका निर्माण हुआ है। वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं। हम नहीं चाहते कि देश का पुनः विभाजन हो।


संविधान सभा में दिए गए भाषण का सार।


🔺 *भीम राव अंबेडकर*


हिन्दू मुस्लिम एकता एक अंसभव कार्य हैं भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी ? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है, इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य है। मुसलामनों के निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानो हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मौहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपेन शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते।


प्रमाण सार डा अंबेडकर सम्पूर्ण वाग्मय , खण्ड १५१


🔺 *माधवराव सदाशिवराव* गोलवलकर


पाकिस्तान बनने के पश्चात जो मुसलमान भारत में रह गए हैं क्या उनकी हिन्दुओं के प्रति शत्रुता , उनकी हत्या, लूट दंगे, आगजनी, बलात्कार, आदि पुरानी मानसिकता बदल गयी है, ऐसा विश्वास करना आत्मघाती होगा। पाकिस्तान बनने के पश्चात हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम खतरा सैकड़ों गुणा बढ़ गया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश से घुसपैठ बढ़ रही है। दिल्ली से लेकर रामपुर और लखनऊ तक मुसलमान खतरनाक हथियारों की जमाखोरी कर रहे हैं। ताकि पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर वे अपने भाइयों की सहायता कर सके। अनेक भारतीय मुसलमान ट्रांसमीटर के द्वारा पाकिस्तान के साथ लगातार सम्पर्क में हैं। सरकारी पदों पर आसीन मुसलमान भी राष्ट्र विरोधी गोष्ठियों में भाषण देते हें। यदि यहां उनके हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया तो वे सशस्त्र क्रांति के खड़े होंगें।


बंच आफ थाट्स पहला आंतरिक खतरा मुसलमान पृष्ठ १७७-१८७


🔺 *गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर*


ईसाई व मुसलमान मत अन्य सभी को समाप्त करने हेतु कटिबद्ध हैं। उनका उद्देश्य केवल अपने मत पर चलना नहीं है अपितु मानव धर्म को नष्ट करना है। वे अपनी राष्ट्र भक्ति गैर मुस्लिम देश के प्रति नहीं रख सकते। वे संसार के किसी भी मुस्लिम एवं मुस्लिम देश के प्रति तो वफादार हो सकते हैं परन्तु किसी अन्य हिन्दू या हिन्दू देश के प्रति नहीं। सम्भवतः मुसलमान और हिन्दू कुछ समय के लिए एक दूसरे के प्रति बनवटी मित्रता तो स्थापित कर सकते हैं परन्तु स्थायी मित्रता नहीं।


- रवीन्द्र नाथ वाडमय २४ वां खण्ड पृच्च्ठ २७५ , टाइम्स आफ इंडिया १७-०४-१९२७ , कालान्तर


🔺 *मोहनदास करम चन्द्र गांधी*


मेरा अपना अनुभव है कि मुसलमान कूर और हिन्दू कायर होते हैं मोपला और नोआखली के दंगों में मुसलमानों द्वारा की गयी असंख्य हिन्दुओं की हिंसा को देखकर अहिंसा नीति से मेरा विचार बदल रहा है।


गांधी जी की जीवनी, धनंजय कौर पृष्ठ ४०२ व मुस्लिम राजनीति श्री पुरूषोत्तम योग


🔺 *लाला लाजपत राय*


मुस्लिम कानून और मुस्लिम इतिहास को पढ़ने के पश्चात मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उनका मजहब उनके अच्छे मार्ग में एक रुकावट है। मुसलमान जनतांत्रिक आधार पर भारत पर शासन चलाने हेतु हिन्दुओं के साथ एक नहीं हो सकते। क्या कोई मुसलमान कुरान के विपरीत जा सकता है ? हिन्दुओं के विरूद्ध कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की क्या हमें एक होने देगी ? मुझे डर है कि भरत के ७ करोड़ मुसलमान अफगानिस्तान, मध्य एशिया अरब, मैसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगें।


पत्र सी आर दास बी एस ए वाडमय खण्ड १५ पृष्ठ २७५


🔺 *समर्थ गुरू राम दास जी*


छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू अपने ग्रंथ दास बोध में लिखते हैं कि मुसलमान शासकों द्वारा कुरान के अनुसार काफिर हिन्दू नारियों से बलात्कार किए गए जिससे दुःखी होकर अनेकों ने आत्महत्या कर ली। मुसलमान न बनने पर अनेक कत्ल किए एवं अगणित बच्चे अपने मां बाप को देखकर रोते रहे। मुसलमान आक्रमणकारी पशुओं के समान निर्दयी थे, उन्होंने धर्म परिवर्तन न करने वालों को जिन्दा ही धरती में दबा दिया।


- डा एस डी कुलकर्णी कृत एन्कांउटर विद इस्लाम पृष्ठ २६७-२६८


🔺 *राजा राममोहन राय*


मुसलमानों ने यह मान रखा है कि कुरान की आयतें अल्लाह का हुक्म हैं। और कुरान पर विश्वास न करने वालों का कत्ल करना उचित है। इसी कारण मुसलमानों ने हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किए, उनका वध किया, लूटा व उन्हें गुलाम बनाया।


वाङ्मय-राजा राममोहन राय पृष्ट ७२६-७२७


🔺 *श्रीमति ऐनी बेसेन्ट*


मुसलमानों के दिल में गैर मुसलमानों के विरूद्ध नंगी और बेशर्मी की हद तक तक नफरत हैं। हमने मुसलमान नेताओं को यह कहते हुए सुना है कि यदि अफगान भारत पर हमला करें तो वे मसलमानों की रक्षा और हिन्दुओं की हत्या करेंगे। मुसलमानों की पहली वफादार मुस्लिम देशों के प्रति हैं, हमारी मातृभूमि के लिए नहीं। यह भी ज्ञात हुआ है कि उनकी इच्छा अंग्रेजों के पश्चात यहां अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने की है न कि सारे संसार के स्वामी व प्रेमी परमात्मा का। स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के अंत के बारे में विचार करना होगा।


- कलकत्ता सेशन १९१७ डा बी एस ए सम्पूर्ण वाङ्मय खण्ड, पृष्ठ २७२-२७५


🔺 *स्वामी रामतीर्थ*


अज्ञानी मुसलमानों का दिल ईश्वरीय प्रेम और मानवीय भाईचारे की शिक्षा के स्थान पर नफरत, अलगाववाद, पक्षपात और हिंसा से कूट कूट कर भरा है। मुसलमानों द्वारा लिखे गए इतिहास से इन तथ्यों की पुष्टि होती है। गैर मुसलमानों आर्य खालसा का बड़ी संख्या में काफिर कहकर संहार किया गया। लाखों असहाय स्त्रियों को बिछौना बनाया गया। उनसे इस्लाम के रक्षकों ने अपनी काम पिपासा को शान्त किया। उनके घरों को छीना गया और हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाया गया। क्या यही है शांति का मजहब इस्लाम ? कुछ एक उदाहरणों को छोड़कर अधिकांश मुसलमानों ने गैरों को काफिर माना है।




⛳ *आर्य सत्य विचार* ⛳


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Thursday, June 21, 2018

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१...

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*


_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१ वर्ष हो चुके, परन्तु तुम्हारी दिव्य मूर्ति मेरे हृदय-पटल पर अब तक ज्यों-की-त्यों अंकित है. मेरे निर्बल हृदय के अतिरिक्त कौन मरणधर्मा मनुष्य जान सकता है कि कितनी बार गिरते-गिरते तुम्हारे स्मरण मात्र ने मेरी आत्मिक रक्षा की है. तुमने कितनी गिरी हुई आत्माओं की काया पलट दी, इसकी गणना कौन मनुष्य कर सकता है? परमात्मा के बिना, जिनकी पवित्र गोद में तुम इस समय विचर रहे हो, कौन कह सकता है कि तुम्हारे उपदेशों से निकली हुई अग्नि ने संसार में प्रचलित कितने पापों को दग्ध कर दिया है? परन्तु अपने विषय में मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारे सत्संग ने मुझे कैसी गिरी हुई अवस्था से उठाकर सच्चा जीवन-लाभ करने के योग्य बनाया?”_


_“मैं क्या था इसे इस कहानी में मैंने छिपाया नहीं. मैं क्या बन गया और अब क्या हूँ, वह सब तुम्हारी कृपा का ही परिणाम है. इसलिए इससे बढकर मेरे पास तुम्हारी जन्म-शताब्दी पर और कोई भेंट नहीं हो सकती कि तुम्हारा दिया आत्मिक जीवन तुम्हें ही अर्पण करुं. तुम वाणी द्वारा प्रचार करनेवाले केवल तत्ववेत्ता ही न थे, परन्तु जिन सच्चाइयों का तुम संसार में प्रचार करना चाहते थे उनको क्रिया में लाकर सिद्ध कर देना भी तुम्हारा ही काम था. भगवान् कृष्ण की तरह तुम्हारे लिए भी तीनों लोकों में कोई कर्तव्य शेष नहीं रह गया था, परन्तु तुमने भी मानव-संसार को सीधा मार्ग दिखाने के लिए कर्म की उपेक्षा नहीं की”._


_“भगवन् ! मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ. इसलिए जिस परमपिता की असीम गोद में तुम परमानन्द का अनुभव कर रहे हो, उसी से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे तुम्हारा सच्चा शिष्य बनने की शक्ति प्रदान करे”._


*- श्रद्धानन्द*


(अपने आत्मोत्सर्ग से दो वर्ष पूर्व वि.सं. १९८१ तदनुसार ई.१९२४ में प्रकाशित अपना आत्म-चरित *“कल्याण मार्ग का पथिक”* ऋषि दयानन्द सरस्वती के चरणों में सादर समर्पित करते हुवे स्वामी श्रद्धानन्द जी के मार्मिक शब्द… स्वामी जी की यह आत्मकथा अपने जन्म-वर्ष १८५७ ई. से १८९२ ई. तक कुल ३५ वर्षों के क्रिया-कलाप और घटनाओं का विवरण देती है. उसके आगे का जीवन तथा उनके कार्यों का लेखा-जोखा जानने के लिए पढें: *“स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व”*, सम्पादक: डॉ. विनोदचन्द्र विद्यालंकार)


* *स्त्रोत:* कल्याण मार्ग का पथिक(संस्करण २०१५, पृ.३)

* *लेखक:* स्वामी श्रद्धानन्द जी

* *सम्पादक:* डॉ. ज्वलन्तकुमार शास्त्री

* *प्रस्तुति:* राजेश ‘आर्य’

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◆ *Swami Shraddhanand* (MR Jambunathan)


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◆ *कल्याण मार्ग का पथिक* (स्वामी श्रद्धानन्द)


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◆ *वीर सन्यासी श्रद्धानन्द* (राम गोपाल)


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◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (उमा चतुर्वेदी)


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◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (सत्यदेव विद्यालंकार)


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*II ओ३म् II*


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Monday, June 18, 2018

जब विमान उड़ता है तो दुर्घटना का खतरा तो होता ही है । यदि किसी को जल्दी पहुंचना हो, समय बचाना हो और...

जब विमान उड़ता है तो दुर्घटना का खतरा तो होता ही है । यदि किसी को जल्दी पहुंचना हो, समय बचाना हो और विमान की तकनीक का लाभ उठाना हो, तो उसे जोखिम तो लेना ही पड़ेगा ।

इसी प्रकार से जीवन में आपको किसी भी क्षेत्र में उन्नति करनी हो, आगे बढ़ना हो, तो वहां सफलता असफलता दोनों हो सकती हैं। इसलिए जोखिम तो लेना ही पड़ेगा।

विमान इस डर से आप न उड़ाएं कि कहीं दुर्घटना ना हो जाए, जमीन पर यह सुरक्षित है , तो उस विमान का कोई लाभ नहीं ।

ऐसे ही यदि आप किसी भी क्षेत्र में असफलता के भय से पुरुषार्थ ना करें, तो जीवन का कोई लाभ नहीं। जीवन इसीलिए ही तो है, कि जोखिम लिया जाए और उन्नति की जाए ।

हां इतना अवश्य ध्यान रखें, कि जोखिम सोच समझकर बुद्धिमत्ता पूर्वक लेना चाहिए , अंधाधुंध नहीं । अपनी क्षमता को देखकर जोखिम उठाना चाहिए । - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।*


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जब सूर्य उदय होता है तब करोड़ों व्यक्ति सो रहे होते हैं , तो भी सूर्य उनकी परवाह नहीं करता, कि लोग...

जब सूर्य उदय होता है तब करोड़ों व्यक्ति सो रहे होते हैं , तो भी सूर्य उनकी परवाह नहीं करता, कि लोग तो जागे नहीं, तो मैं उनके लिए सवेरा क्यों करूं ? फिर भी सूर्य अपना कार्य करता ही है ।

इसी प्रकार से आप देश धर्म समाज के लिए कार्य करते हैं , और देश धर्म समाज के लोग आपके कार्य का मूल्य नहीं समझते, उसको महत्व नहीं देते, आपके कार्य का सम्मान नहीं करते । तो इसका अर्थ यह नहीं है, कि आप अपना कार्य छोड़ देवें।

जैसे सूर्य अपना कार्य करता रहता है, कोई जागे या ना जागे, वह उदय होता ही है, और अपना प्रकाश फैलाता ही है । इसी प्रकार से कोई आपके कार्य का मूल्य समझे या न समझे, आप अपना कार्य करते रहें। हो सकता है, कि संसार के लोग आपके कार्य का मूल्य न समझें, परंतु ईश्वर तो अवश्य ही समझता है। समय आने पर ईश्वर तो अवश्य ही आपके कार्य का मूल्यांकन करेगा और निश्चित रूप से आपके उत्तम कर्मों का फल देगा। (सूर्य यद्यपि जड़ पदार्थ है वह सोचता नहीं है , फिर भी आलंकारिक रूप में हमने सूर्य का उदाहरण प्रस्तुत किया है) - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।*


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Sunday, June 10, 2018

*।। ओ३म् ।।**वैदिक साहित्य और विज्ञान*सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों...

*।। ओ३म् ।।*


*वैदिक साहित्य और विज्ञान*


सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों कि.मी. तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है। इसका तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है, जोकि करीबन 6000 केल्विन के सौर डिस्क तापमान से भी बहुत अधिक है। सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि किस प्रकार प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक होता है।

सूर्य के अध्धयन के लिए नासा के अतिरिक्त विश्व का हर देश जो ब्रम्हांड का रहस्यों को लेकर उत्सुक है सूर्य के अध्धयन के लिए आतुर है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधानो को देखने वाला ISHRO भी सूर्य के अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने के लिए आदित्य-1 मिशन सूर्य की स्टूडी के लिए भेजने की तैयारी कर रहा है, दृश्य उत्सर्जन रेखा प्रभामंडललेखी (वी.ई.एल.सी.) नामक महत्वाकांक्षी उपग्रह को ले जाने हेतु 400 कि.ग्रा. श्रेणी उपग्रह के रूप में किया गया था तथा उसे 800 कि.मी. निम्न भू कक्षा में स्थापित करने की योजना थी। सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लेग्रांजी बिंदु के आस-पास प्रभामंडल कक्षा में स्थापित उपग्रह से मुख्य लाभ यह होता है कि इससे बिना किसी आच्छादन/ग्रहण के लगातार सूर्य को देखा जा सकता है। अत: आदित्य-1 मिशन को अब “आदित्य-एल1 मिशन” में संशोधित कर दिया गया है और इसे एल़1 के आस-पास प्रभामंडल कक्षा में प्रविष्ट कराया जाएगा, जोकि पृथ्वी से 1.5 मिलियन कि.मी. पर है जिसका उद्देश्य सूर्य के उन रहस्यों को जानना है जिनसे अभी तक मानव सभ्यता अनजान है -


*इन वैज्ञानिक खोजो से पूर्ववर्ती वैदिक साहित्यो में पृथ्वी, सूर्य, ग्रहों, ब्रम्हांड आदि के बारे में पहले से ही लिखा गया है* सैकड़ो साल पहले आर्यभट्ट ने ग्रहों की दूरी का सटीक आकलन किया। वैदिक साहित्यो में आसान और आलंकारिक भाषा मे इसे समझाया गया लेकिन हम इन वैदिक साहित्यो को सिर्फ पूजा पाठ की सामग्री मानकर पढ़ना तो दूर इसके बारे में जानने के लिए भी कभी प्रयत्न नही करते -


सूर्य के विषय मे वैदिक साहित्य में विस्तृत जानकारी दी गयी है कुछ जानकारियां आइये आपसे साझा करता हूं -

1 - सूर्य_के_प्रकाश_की_गति -

आधुनिक विज्ञान अनुसार - 1,86,286 मील प्रति सेकेण्ड है ।


वैदिक - *‘तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते-द्वे च योजने एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते ।।’*

।। सायण ऋृग्वेद भाष्य 1.50.4 ।।

अर्थात्

आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है ।

गणना - ½ निमेश = 0.1056 सेकेण्ड

(निमेष की गणना प्रथम कंमेंट में )

अर्थात् 1 योजन = 9.09 मील

(योजन की गणना द्वितीय कमेंट में)

इस सूक्त के अनुसार -

प्रकाश की गति = 2202 योजन प्रति ½ निमेश

2202x9.09 मील प्रति 0.1056 सेकेण्ड = 189547.15909 मील प्रति सेकेण्ड


2 - सूर्य_के_किरणों_के_बारे_में -

आधुनिक विज्ञान - वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने इस तथ्य पर वैज्ञानिक प्रयोग किए तथा बताया कि श्वेत प्रकाश (सूर्य का प्रकाश या किरण) में सात रंग पहले से ही मौजूद होते है। प्रिज्म से गुजरने पर अपवर्तन के कारण यह 7 रंगों में विभक्त हो जाता है।

वैदिक -

*एको अश्वो वहति सप्तनामा ।* -ऋग्वेद 1-164-2

सूर्य के प्रकाश में 7 रंग होता है इस सूक्त में पहले से है ।

*अव दिवस्तारयन्ति सप्त सूर्यस्य रश्मय: ।* – अथर्ववेद 17-10 /17/9

सूर्य की सात किरणें दिन को उत्पन्न करती है। सूर्य के अंदर काले धब्बे होते है। जिसे विज्ञान आज इन धब्बो को सौर कलंक कहा है।


3 - सूर्य_की_बनावट -

आधुनिक विज्ञान - सूर्य का बाह्य प्रभामंडल दृश्यमान अंतिम परत है। इसके उपर की परते नग्न आंखों को दिखने लायक पर्याप्त प्रकाश उत्सर्जित करने के लिहाज से काफी ठंडी या काफी पतली है। और उसके चारो ओर गैसों का आवरण है ।

वैदिक -

*‘शकमयं धूमम् आराद् अपश्यम्, विषुवता पर एनावरेण।’* ऋग्वेद(1.164.43)

यानी सूर्य के चारों और दूर-दूर तक शक्तिशाली गैस फैली हुई हैं। यहां गैस के लिए धूम शब्द का प्रयोग किया गया है।


4 - ग्रहण_के_बारे_में -

आधुनिक विज्ञान - ग्रहण एक खगोलीय अवस्था है जिसमें कोई खगोलिय पिंड जैसे ग्रह या उपग्रह किसी प्रकाश के स्रोत जैसे सूर्य और दूसरे खगोलिय पिंड जैसे पृथ्वी के बीच आ जाता है जिससे प्रकाश का कुछ समय के लिये अवरोध हो जाता है इस अवस्था को ग्रहण कहते है।

वैदिक -

*यं वै सूर्य स्वर्भानु स्तमसा विध्यदासुर: ।*

*अत्रय स्तमन्वविन्दन्न हयन्ये अशक्नुन ॥* – ऋग्वेद 5-40-9

अर्थात जब चंद्रमा पृथ्वी ओर सूर्य के बीच में आ जाता है तो सूर्य पूरी तरह से स्पष्ट दिखाई नहीं देता। चंद्रमा द्वारा सूर्य के प्रकाश को ढंक लेना ही सूर्य ग्रहण है ।


5 - सूर्य_से_ग्रहों_की_दूरी -

आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी (1.5 * 108 KM) है। इसे एयू (खगोलीय इकाई- astronomical unit) कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है :-

ग्रह आर्यभट्ट का मान आधुनिक विज्ञान

बुध 0.375 एयू 0.387 एयू

शुक्र 0.725 एयू 0.723 एयू

मंगल 1.538 एयू 1.523 एयू

गुरु 5.16 एयू 5.20 एयू

शनि 9.41 एयू 9.54 एयू

ग्रहों की दूरी क्या हजारो वर्षो में प्रभावित नही हुई होगी ?


6 - सूर्य_एक_जीवाणुरोधी -

आधुनिक विज्ञान - अंधकार जीवाणुओं के परिवर्धन में सहायक है। बहुत से जीवाणु, जो सक्रिय रूप से अंधकार में चर (mobile) होते हैं, प्रकाश में लाए जाने पर आलसी हो जाता हैं तथा सूर्य के प्रकाश में पतले स्तर में रखे गए जीवाणु तीव्रता से मरते हैं। इन परिस्थितियों में कुछ केवल 10-15 मिनट के लिये जीवित रहते हैं। इसी कारण सूर्य का प्रकाश रोगजनक जीवाणुओं का नाश करनेवाले शक्तिशाली कारकों में माना गया है। साधारणत: दृश्य वर्णक्रम (spectrum) जीवाणुओं पर थोड़ा ही विपरीत प्रभाव रखते हैं तथा प्रकाश के वर्णक्रम के पराबैंगनी (ultraviolet) छोर में यह घातक शक्ति निहित रहती है।

वैदिक -

*'उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन् अदृष्टान् च,*

*सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’* अथर्ववेद (3.7)

अर्थात -

सूर्य का प्रकाश दिखाई देने वाले और न दिखाई देने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है।


7 - चंद्रमा_पर_प्रकाश -

आधुनिक विज्ञान -

चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है।

वैदिक -

*सुषुम्णः सूर्य रश्मिः चंद्रमा गरन्धर्व, अस्यैको रश्मिः चंद्रमसं प्रति दीप्तयते।’*

निरुक्त( 2.6)

*'आदित्यतोअस्य दीप्तिर्भवति।’*

यानी सूर्य की सुषुम्ण नामक किरणें चंद्रमा को प्रकाश देती हैं। चंद्रमा का स्वयं का प्रकाश नहीं है। वह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होता है।


विशेष -

प्राचीन काल से खगोल विज्ञान वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राहृण आदि ग्रथों में नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मल मास, ऋतु परिवर्तन, उत्तरायन, दक्षिणायन, आकाशचक्र, सूर्य की महिमा, कल्प का माप आदि के संदर्भ में अनेक उद्धरण मिलते हैं। इस हेतु ऋषि प्रत्यक्ष अवलोकन करते थे। कहते हैं, ऋषि दीर्घतमस् सूर्य का अध्ययन करने में ही अंधे हुए, ऋषि गृत्स्मद ने चन्द्रमा के गर्भ पर होने वाले परिणामों के बारे में बताया। यजुर्वेद के 18वें अध्याय के चालीसवें मंत्र में यह बताया गया है कि सूर्य किरणों के कारण चन्द्रमा प्रकाशमान है।

यंत्रों का उपयोग कर खगोल का निरीक्षण करने की पद्धति रही है। आर्यभट्ट के समय आज से 1500 से अधिक वर्ष पूर्व पाटलीपुत्र में वेधशाला (Observatory) थी, जिसका प्रयोग कर आर्यभट्ट ने कई निष्कर्ष निकाले।

भास्कराचार्य सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ के यंत्राध्याय प्रकरण में कहते हैं, “काल” के सूक्ष्म खण्डों का ज्ञान यंत्रों के बिना संभव नहीं है। इसलिए अब मैं यंत्रों के बारे में कहता हूं। वे नाड़ीवलय यंत्र, यष्टि यंत्र, घटी यंत्र, चक्र यंत्र, शंकु यंत्र, चाप, तुर्य, फलक आदि का वर्णन करते हैं।

प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं अचूक ग्रहीय व कालगणना का 6000 वर्ष से अधिक पुराना इतिहास रखने वाले हम भारतीय आज पश्चिमी देशों की ओर उम्मीद से देखते है जबकि उनसे बेहतर हम सदियो से थे बस अपना आत्मगौरव भूले बैठे है । *आइये एक बेहतर सनातन परंपरा को आगे बढ़ाए। पौराणिक अंधश्रद्धा को छोड़ के वेदों की और पुनः लौटे ।*



*।। धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।*


*ओ३म* 🚩


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*🔥ओ३म्🔥**सं दिव्येन दीदिहि रोचनेन ।* यजुर्वेद- अ॰२७/मं॰१ हे मनुष्य ! दिव्य सौन्दर्य से जगमगा । ...

*🔥ओ३म्🔥*


*सं दिव्येन दीदिहि रोचनेन ।* यजुर्वेद- अ॰२७/मं॰१


हे मनुष्य ! दिव्य सौन्दर्य से जगमगा ।

*💥शम्💥*

🔥

🚩


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प्रायः लोग रुपया पैसा जायदाद मोटर गाड़ी आदि , को ही धन के रूप में मानते हैं । ठीक है यह भी धन है ,...

प्रायः लोग रुपया पैसा जायदाद मोटर गाड़ी आदि , को ही धन के रूप में मानते हैं । ठीक है यह भी धन है , हम इसका विरोध नहीं करते।

परंतु इन सबसे बढ़िया धन *चरित्र का धन* है। और वह चरित्र का धन प्राप्त होता है , ईश्वर की उपासना से भक्ति से। परमात्मा का ध्यान करें। उससे जो आपके मन की शुद्धता बनेगी और फिर ईश्वर आपके मन में और आपकी आत्मा में जो सेवा परोपकार दान दया ईमानदारी सच्चाई आदि आदि गुणों की संपत्ति भर देगा, वास्तव में वही असली संपत्ति है। इन सारी चीजों को मिलाकर के चरित्र कहलाता है । इसलिए परमात्मा का ध्यान करें , ओम् नाम से ध्यान करें, अर्थ सहित करें। परमात्मा से इन गुणों की प्राप्ति करें , अपना चरित्र उज्जवल बनाएं । यही संसार में सबसे बड़ा धन है । जिसके पास यह धन है वही संसार में सबसे अधिक सुखी है । - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक।*


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Bibal

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