Saturday, May 30, 2015

भेडचाल की परकाष्टा - अमरनाथ में एक गुफा है जिसके उपर सुराख से पानी टप टप टप टप गिरता रहता है जो...

भेडचाल की परकाष्टा -

अमरनाथ में एक गुफा है जिसके उपर सुराख से पानी टप टप टप टप गिरता रहता है जो सर्दी के मौसम में जम कर लिंग का आकार ले लेता है तो उसे भगवान शिव का लिंग कहा जाता है | मगर सविटजरलैंड में एेसे हज़ारों आकार बनते हैं ,अंटआरटिका में एेसे लाखों आकार बनते हैं , और आपके मेरे घर के फ्रिज में ऐसे छोटे छोटे लिंग केआकार बनते हैं | आखिर ये सब किसके किसके लिंग हैं ?? और ये सारे लिंग गर्मियों में क्यों पिघल जाते हैं ? ब्राह्मण भगवान के सिर से पैदा हुए, क्षत्रिय छाती से,वैश्य पेट से, शुद्र तलवे से…तो ईसाई पारसी मुसलमान किधर से पैदा हुए ? यदि गंगा नदी शिवजी की जटाओं से निकलती है तो यमुना नील अमेज़न झेलम नदियां किसकी जटाओं से ? देवी देवता के खूबसूरत ब्लाउज़ सारी सूट परिधान को बनाने वाला कौन ? फिटिंग कौंन सा टेलर करता है ? ये देवी देवता की सवारी केवल भारतीय जानवर शेर हाथी चूहा भैंस ही क्यों? विदेशी जानवर कंगारू ज़ेब्रा डायनासोर क्यों नहीं ? ये देवी देवता के हथियार चाकू तलवार गदा त्रिशूल ही क्यों ? अब तो जमाना बंदूक मशीन गन का है , क्या आपको नहीं लगता के ये प्राचीन पाखन्ड़ लोगों की दिमाग की उपज थी ? क्योंकि वे भारत में रह कर विदेशों के जानवर नदी परिधान से अंजान थे , क्या ऐसे धर्म का आविष्कार केवल शोषण के उद्देश्य से नहीं हुआ ? हमारे देश में लक्ष्मी कुबेर की पूजा होती है मगर हम फिर भी गरीब ! जबकि अमरीका अरब अमीर! हमारे देश में इन्द्रदेव की पूजा होती है फिर भी हर वर्ष बाढ सूखा भूस्खलन आपदा ! जबकि यूरोप इंग्लैंड खुशहाल ! हमारे देश में अन्न की देवी अन्नपूर्णा की पूजा होती है परन्तु फिर भी लाखों किसान भूखमरी से आत्महत्या करते हैं ! ब्राज़ील रूस का किसान खुशहाल ! ,विद्याकी देवी सरस्वती की पूजा हमारे देश में होती है फिर भी हम अशिक्षा से ग्रस्त व अमरीका इंग्लैंड शिक्षित ! हमारे देश में पूजा पाठ जैसे ढोंग के लिये लोग उत्तराखन्ड़ गये तो लाखों भक्तों बच्चों बुढों महिलाओं को कथित भगवान किदारनाथ ने मार डाला , कभी भक्तों की बस खाई में गिर जाती है ,कभी हादसा हो जाता है- क्या आपको नहीं लगता कि आपके द्वारा ऐसे धर्म वर्म का पालन सीधे तौर पे राजनेताओं एवं धर्म के ठेकेदारों को लाभ पहुंचाता है ?, यदि पूजा अर्चना करने से आपको मन की शांति मिलती है तो मुल्लाओं को मज़ार दरगाह , ईसाईयों को चर्च में भी तो मन की शांति मिलती है,क्या आपको नहीं लगता कि ये मात्र आपके मस्तिष्क का भ्रम है ? ,आखिर ऐसे धर्म ने हमें दिया ही क्या है आज तक ? सुख शांति संपत्ति तो दुनिया के करोड़ नास्तिकों के पास भी है,कृपया इस मुद्दे पर दिमाग से चिन्तन करें,दिल से नहीं|

संकल्प लें कि भविष्य में-मंदिर,मस्जिद,चर्च,मज़ार ,दरगाह आदि के स्थान पर यज्ञशाला,योगशाला,गुरुकुल, स्कूल, कालिज, अस्पताल बनाएंगें और धर्म के नाम पर चल रहे पाखंड को तिलांजलि देंगें |


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Friday, May 29, 2015

१५ जयेष्ठ 29 मई 15 😶 “ हे अनन्त देव ” 🌞 🔥🔥ओउम् का त उपेतिर्मनसों वराय...

१५ जयेष्ठ 29 मई 15
😶 “ हे अनन्त देव ” 🌞

🔥🔥ओउम् का त उपेतिर्मनसों वराय भुवदग्रे शंतमा का मनीषा ।🔥🔥
🍃🍂 को वा यज्ञै: परि दक्षं त आप केन वा ते मनसा दाशेम ।। 🍂🍃
ऋ० १ । ७६ । १ ;

शब्दार्थ ::– हे अग्रे !
तेरे मन को वरने के लिए कौन सा उपाय-तेरे पास पहुँचने का साधन हैं ? और हमारी कौन-सी हार्दिक इच्छा या स्तुति तेरे लिए सुखकारी हो सकती है ? अथवा कौन मनुष्य है जो आप यज्ञ-कर्मो द्वारा तेरी वृद्धि या बल को व्याप्त कर सकता है, इसके लिए प्रयाप्त होता है ? या हमारे पास वह मन ही कौन सा है जिससे हम तुझे हवि दे सकें ?

विनय :- हे अनन्त देव !
हम परिमित मनुष्य किसी भी प्रकार से तेरे सम्पूर्ण रूप को ग्रहण नही कर सकते । हम अपने अपूर्ण साधनों द्वारा तेरे पास पहुँचने के लिए-तुझे वर लेने के लिए जीवन-भर यत्न ही करते रहते है । हमारे मनमें यह सामर्थ्य नही कि वह तेरे परिपूर्ण रूप को कभी मनन कर सके । तो तेरे पास पहुँचने का साधन, उपाय हमारे पास क्या है ? हम कभी समझते है कि शायद हम हार्दिक भक्ति करके तुझे सुख पहुँचा लेंगे,पर यह तो हमारा तेरे विषय में सांसारिक भाषा में बोलना मात्र है । भक्ति से हमे बेशक बड़ा लाभ मिलता है,पर हमारी हार्दिक प्रार्थनाओं या स्तुतियो का तुझपर वास्तव में किसी प्रकार का प्रभाव नही होता । तू तो शुद्धस्वरूप में अलिप्त रहता है । मनुष्य के क्षुद्र मन की तुम तुम अगम तक पहुंच ही नही है । तो वह तन हम कहा से लाएँ जिस द्वारा हम अपनी यह भक्ति व यज्ञ व ज्ञान की आहुति तुझ तक पहुँचा सके ?
ओह !
सचमुच यह स्थूल और सूक्ष्म शरीरो में बंधा हुआ मनुष्य तेरी परिपूर्ण उपासना-तेरी परिपूर्ण आराधना-कभी नही कर सकता ।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🙏 सादर हार्दिक करबद्ध नमस्ते 🙏 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 🎀✊...

🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪🎪
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🙏 सादर हार्दिक करबद्ध नमस्ते 🙏
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🎀✊ (आर्य-हिन्दू) एकता सूत्र ✊🎀
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1⃣ धर्म…………. 🚩सत्य सनातन वैदिक🚩
1⃣ धर्म ग्रन्थ…………… 📚 वेद 📚
1⃣ उपास्य ईश्वर…………..🌞ओ३म्🌞
1⃣ गुरुमंत्र ……………💡गायत्री मंत्र💡
1⃣ उपासना विधि ……🙏 वेदिक संध्या 🙏
1⃣ राष्ट्र ………………. 🚩आर्यावर्त 🚩
1⃣ विश्वध्वज …🚩ओ३म् पताखा (भगवा)🚩
1⃣ संविधान ……………. 📚 वेद 📚
1⃣ स्मृति ………📚 वेदानुकूल मनुस्मृति 📚
1⃣ संस्कृति …………..👳 वैदिक संस्कृति👳
1⃣ भाषा……………🔯देवभाषा-संस्कृत🔯
1⃣ राष्ट्रभाषा……………. 📣हिन्दी📣
1⃣ लिपि ………………..📝देवनागरी📝
1⃣ नाम ………………….. 🔖आर्य🔖
1⃣ अभिवादन…………….🙏नमस्ते🙏
1⃣ शिक्षा पद्धति ……….. 🎪गुरुकुल🎪
1⃣ श्रेष्ठतम कर्म………….🔥वेदिक यज्ञ🔥
1⃣ मर्यादा पुरूषोत्तम …..🌸 श्रीराम 🌸
1⃣ योगेश्वर ……………..🌺 श्रीकृष्ण🌺
1⃣ उद्धारक ……….. 🌅महर्षि दयानंद🌅
1⃣ धार्मिक पशु ………….🐄 गाय 🐄
1⃣ विरोध ……………🚫 असत्य 🚫
1⃣ नव वर्ष/संवत्सर 🎄 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा🎄
1⃣ धर्म वेशभूषा 👳स्वेत कुर्ता-धोती👳
1⃣ आचार………… 😍प्राणी मात्र से प्रेम😍
1⃣ विचार…………… 🔥शुद्ध विचार🔥
1⃣ प्रेरणा स्त्रोत ……. 📚 सत्यार्थप्रकाश 📚
1⃣ आहार……………. 🌿शाकाहार🍌
1⃣ लक्ष्य ………… 🌹कृण्वन्तो विश्वमार्यम्🌹
1⃣ उद्घोष ………📢 जो बोले सो अभय ।
📢 वैदिक धर्म की जय ॥
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
👉आर्य हमारा नाम है , वेद हमारा धर्म |👈
👉ओ३म् हमारा ईश है , सत्य हमारा कर्म ||👈
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩


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Thursday, May 28, 2015

बम्बई में जो नियम बनाये गये थे उनमें नियम 17 अपनी व्याख्या स्वयं ही करता है - “इस समाज में स्वदेश के...

बम्बई में जो नियम बनाये गये थे उनमें नियम 17 अपनी व्याख्या स्वयं ही करता है -
“इस समाज में स्वदेश के हितार्थ दो प्रकार की शुद्धि के लिये प्रयत्‍न किया जाएगा । एक परमार्थ और दूसरा लोक-व्यवहार । इन दोनों का शोधन और शुद्धता की उन्नति तथा सब संसार के हित की उन्नति की जाएगी ।”
बम्बई के नियम यह भी बताते हैं कि स्वामीजी की सम्मति में आर्यसमाज के उद्देश्यों को प्राप्‍त करने के साधन क्या थे । 12वें नियम में आर्यसमाज, आर्य विद्यालय और आर्य प्रकाश (पत्र) के प्रचार और उन्नति के लिये 1 रुपया सैंकड़ा चंदा लेने की शिक्षा है । यहाँ आर्यसमाज से आशय प्रचार और संगठन के खर्च से है । 19वें नियम में प्रचारक भेजने की बात आई है । 20वें में स्‍त्रियों और पुरुषों के लिये पाठशालायें नियत करने की आवश्यकता बताई गई है । लाहौर में बने तीसरे नियम में कहा है - “वेदों का पढ़ना-पढ़ाना, सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है ।” साथ ही आठवें में अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करने की आज्ञा है ।

इसके अतिरिक्त दिल्ली के शाही दरबार के अवसर पर स्वामीजी की प्रेरणा से जो एक सम्मेलन अयोजित किया गया था वह भी उनकी देशभक्ति का परिचय देता है (द्रष्टव्य - पं० लेखराम कृत उर्दू जीवनचरित, पृ० २६४) । स्वामीजी ने वहाँ कहा था - “यदि हम लोग एकमत हो जायें और एक ही रीति से देश का सुधार करें तो आशा है देश शीघ्र सुधर सकता है ।”

इस जीवनचरित में यह भी लिखा है कि एक स्थान पर स्वामीजी ने स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर एक विशेष व्याख्यान दिया । इन सब तथ्यों से स्वामीजी का देशभक्त होना स्वतः ही सिद्ध हो जाता है । वस्तुतः वे तो देशभक्त महापुरुषों में भी शीर्ष स्थान पर बिठाने जाने की योग्यता रखते हैं । ऐसे लोग संसार में बहुत कम पैदा होते हैं जो देश और जाति के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं । ऐसे मनुष्यों का कोई भी कार्यक्रम स्वदेश और स्वजाति के हित से रहित नहीं हो सकता । अतः हम निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि देश और जाति के सुधार की एक सुनिश्चित योजना स्वामी दयानन्द के पास थी ।


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स्वामीजी हिन्दू परिवार में जन्मे, वहीं उनका पालन हुआ, उन्हें के शास्‍त्रों को पढ़ा तथा इस धर्म के...

स्वामीजी हिन्दू परिवार में जन्मे, वहीं उनका पालन हुआ, उन्हें के शास्‍त्रों को पढ़ा तथा इस धर्म के पवित्र ग्रन्थों को अपना मार्गदर्शक माना । आर्यों की आश्रम-व्यवस्था को उन्होंने स्वीकार किया था । अतः यह स्वाभाविक ही था कि उनके हृदय में हिन्दू जाति के सुधार का भाव आता । आर्यों के पवित्र पुरातन धर्म को जान कर उस धार्मिक पुरुष के मन में यह विचार आया कि धर्म-सुधार के बिना इस जाति का सुधार असम्भव है । उन्होंने अपने जीवन का बहुमूल्य भाग सच्चे धर्म की खोज में व्यतीत किया । यह सम्भव ही नहीं था कि वे धर्म के अतिरिक्त अन्य किसी विषय को अपने सुधार का विषय बनाते । उनके जैसे महापुरुष के लिये यह समझ लेना स्वाभाविक ही था कि धार्मिक सुधार के बिना इस धर्मभूमि भारत का सुधार असम्भव ही है । अतः सुधार के इस विचार को ही प्रधानता देकर उन्होंने एक ऐसी संस्था का बीजारोपण किया जिसका उद्देश्य था - देश में धर्म-सुधार करना तथा सच्चे वेदाधारित धर्म का प्रचार करना ।

तथापि यह याद रखना आवश्यक है कि स्वामीजी का विचार किसी नये सम्प्रदाय या मत की नींव डालना कदापि नहीं था । अपितु उनका विचार तो पुरातन शुष्क धर्मवृक्ष को हराभरा करने का ही था । उसे पुनरुज्जीवित करना था । वे सुधार का कार्य करना चाहते थे न कि अराजकता उत्पन्न करने वाली कोई क्रान्ति । इसलिये उन्होंने अपने द्वारा स्थापित समाज के कोई नये सिद्धान्त नहीं बनाये । दो मन्तव्यों पर उनका दृढ़ विश्वास था - (1) प्रथम तो यह कि जो विद्या या पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उनका आदिमूल परमेश्वर है और इस विद्या का ज्ञान पुरुषों को परमात्मा से वेदों के द्वारा ही मिला है । (2) यह कि परमात्मा निराकार और अजन्मा है तथा उसकी उपासना करना ही हमारा परम धर्म है । ये दोनों नियम उनके जीवनाधार थे और इन सिद्धान्तों को स्वीकार किये बिना किसी प्रकार का सुधार सम्भव नहीं था । वे यह भी जानते थे कि यदि हिन्दू धर्म में एकता स्थापित हो सकती है तो इन्हीं दो सिद्धान्तों के सहारे । इन्हें त्याग कर जातीय एकता कदापि सम्भव नहीं है । अतः उन्होंने आर्यों की धार्मिक एकता के लिये इन दो सिद्धान्तों को नींव का पत्थर बनाया ।


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आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द का चौथा महत्वपूर्ण काम था स्वामीजी की दृष्टि में आर्यसमाज का...

आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द का चौथा महत्वपूर्ण काम था

स्वामीजी की दृष्टि में आर्यसमाज का क्या उद्देश्य था ?
क्या स्वामी दयानन्द की दृष्टि में एक ईश्वर की उपासना का प्रचार करना और वेदों को सत्य विद्या का पुस्तक सिद्ध करना ही आर्यसमाज का काम था या इससे भिन्न भी वे इसका कोई उद्देश्य मानते थे ? आर्यसमाज के शेष नियम इस प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ नहीं हैं यद्यपि छठा नियम यह कहता है कि संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना । परन्तु इन शब्दों से यह नहीं समझना चाहिए कि स्वामीजी के कार्यक्रम में देश या जाति की उन्नति के लिये कोई स्थान नहीं था । १ अप्रैल १८७८ को दानापुर से लिखे एक पत्र में उन्होंने लिखा -
“आपकी इच्छानुसार कल 31 मार्च 1878 को दो छपे पत्र (आर्यसमाज के मुख्य दस उद्देश्य) भेज चुके हैं । रसीद शीघ्र भेज दीजिये और इन नियमों को ठीक-ठीक समझ कर वेद की आज्ञानुसार देश को सुधारने में अत्यन्त श्रद्धा, प्रेम और भक्ति, सबके परस्पर सुख के अर्थ तथा उनके क्लेशों को मेटने में सत व्यवहार और उत्कण्ठा के साथ अपने शरीर के सुख-दुखों के समान जान कर सर्वदा यत्‍न और उपाय करने चाहियें । क्योंकि इस देश से विद्या और सुख सारे भूगोल में फैला है । हिन्दू मत सभा के स्थान में आर्यसमाज नाम रखना चाहिए क्योंकि आर्य नाम हमारा और आर्यावर्त नाम हमारे देश का सनातन वेदोक्त है ।”
फिर 12 अप्रैल 1878 के पत्र में लिखते हैं - “अब आपकी दृष्टि देश सुधार पर होनी चाहिए ।” याद रखना चाहिए कि आर्यसमाज के दस नियम जून 1877 में नियत किये गये थे और ये पत्र अप्रैल 1878 में लिखे गये हैं । स्वामीजी की दृष्टि में आर्यसमाज का क्या उद्देश्य था, वह इन पत्रों से प्रकट होता है । क्या इन पत्रों से यह विदित नहीं होता कि स्वामीजी उन लोगों में नहीं थे जो मनुष्य मात्र के हित की तुलना में अपने देश और जाति का कोई स्वत्व नहीं मानते ? वास्तव में बात यह है कि स्वामीजी पहले संस्कृत विद्वान थे जिन्होंने स्वार्थ के जाल में फँसे हिन्दुओं को बताया कि परोपकार और देशोपकार धर्म के दो प्रमुख अंग हैं और वैदिक धर्म में इन्हें बहुत ऊँचा स्थान प्राप्‍त है । जो मनुष्य परोपकार और देशोपकार नहीं कर सकते वे कभी धार्मिक भी नहीं हो सकते और देश के उपकार को जीवन का प्रथम ध्येय न मानने वाला भी कभी धार्मिक नहीं हो सकता ।


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ओउम्

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हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान। स्वतंत्रता पूर्व 1910 से 1945 तक भारत के सबसे बड़े शक्तिशाली व् प्रभावशाली...

हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान।

स्वतंत्रता पूर्व 1910 से 1945 तक भारत के सबसे बड़े शक्तिशाली व् प्रभावशाली क्रन्तिकारी संगठन
अभिनव भारत का निर्माण स्वातंत्र्य वीर सावरकर द्वारा किया गया था। मुख्य उद्देश्य था भारत में क्रन्तिकारी गतिविधियों को बढ़ाना।

सावरकर जी ने सेनापति बापट को बम बनाना सिखने के लिए रूस भेज दिया और उधर हथियारों के निर्माण के लिए उन्होंने अन्य यूरोपीय देशो से सहायता लेनी शुरू कर दी।

सावरकर जी की लिखी पुस्तक 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तब के क्रान्तिकारियो के लिये गीता समान थी। उसी को पढ़कर कोई भगत सिंह गांधीवादी से क्रन्तिकारी बना तो कोई आजाद तो कोई नेताजी बना।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर तारा नहीं बल्कि चाँद है और उनके समक्ष अन्य सभी तारे की भाँती लगते है पर सबसे।अधिक अन्याय भी वीर सावरकर के साथ ही हुआ। आज की युवा मॉडर्न पीढ़ी भगत सिंह का नाम जानती है पर वीर सावरकर को नहीं जानती। कुछ हमारी भी कमियां है की हमने हिंदुत्व शब्द के जनक को वो सम्मान नहीं दिया जो अन्य को दिया।

सावरकर जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धुरी है। ये वो नींव है जिस पर खड़ा होकर कोई बापू कोई नेहरू कोई नेताजी तो कोई शहीद आजम बना। नींव को कोई नहीं देखता उस पर खड़ी सुन्दर इमारते अट्टालिकाएं सभी को दिखती है। वीर सावरकर वो नींव है जिसके बिना पूरा स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास धूल धूसरित हो जायेगा। उनके बिना कल्पना भी नहीं कर सकते की भारतभारत में क्रन्तिकारी गतिविधिया इतनी बढ़ चुकी थी की अंग्रेज अपने घरो दफ्तरों से बाहर निकलने से भी डरते थे।

12 वर्ष की आयु का बालक पुणे में फैले प्लेग के बाद ऐसे लेख लिखता है जिसे पढ़ कर चाफेकर बंधू रेंड और आयन नाम के अंग्रेजो को बीच बाजार गोली मार देते है जिन्होंने प्लेग से तड़पते भारतीयो को तिल तिलकर मार दिया था। इन दोनों अफसरों के साथ सेना की टुकड़ी चलती थी जो प्लेग सइ ग्रसित लोगों को मार कर उनके घर ढहा देती थी। ऐसी हृदय विरदक घटना उस बालक विनायक दामोदर से न देखि गयी। बालक था सो क्या कर सकता था।

चाफेकर बंधुओ द्वारा अंग्रेज अफसरो की हत्या के बाद उन्हें बंदी बना कर फांसी दे दी गयी
बालक विनायक ने उसी दिन चाफेकर बंधुओ को अपना गुरु माना और घर में बनी देवी की प्रतिमा के आगे प्रण लिया की या तो चाफेकर बंधुओ के समान लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करूँगा या शिवाजी महाराज के समान विजयी होऊंगा।

फर्गुसन कॉलेज में सावरकर जी ने अपनी गतिविधियाँ बढ़ानी प्रारम्भ की।
उन्होंने 1905 में विदेशी वस्त्रो की होली जलाई जिसका गांधी ने तुच्छ कार्य कहकर विरोध किया और खुद गांधी को 15 साल बाद ज्ञान मिला तो उसने खुद भी यही कार्य किया।

सावरकर जी तिलक जी की अनुकम्पा से लंदन पढ़ने जा पहुंचे। वहां वे मिले विदेशो में भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी श्याम कृष्ण जी वर्मा से।
उनके साथ उन्होंने फ्री इंडिया सोसाइटी बनाई। उनकी गतिविधियों से टेम्स में तूफ़ान आ गया था। बंकिघम पैलेस की दीवारे हिलने लगी टीही।

एक शाम सावरकर जी किसी घटना पर मदन लाल ढींगरा को इतना उकसाया की ढींगरा ने लार्ड कर्जनी के ऑफिस में घुस कर उसे गोली मार दी। ढींगरा ने कहा ये अंग्रेज नहीं बल्कि अंग्रेज साम्राज्य के ढलने का आरम्भ हो चूका है। अंग्रेजो ने ढींगरा का ब्यान गायब करवा दिया जो सावरकर जी ने ढूंढ निकाला। बाद में सावरकर जी ने उस ब्यान को बड़ी चालाकी से एक अखबार में छपवा दिया।

सावरकर जी को उनकी पुस्तक 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लेखन कार्य के कारण बन्दी बना कर भारत भेजने का आदेश हुआ। रास्ते में वह समुद्री जहाज के लैट्रिन पॉट को खोद कर जहाज से कूद पड़े और तैरते हुए फ्रांस जा पहुंचे।

पर अंग्रेजो ने फ़्रांसीसी अफसरों को रिश्वत देकर सावरकर जी को पुनः बंदी बना लिया। इस घटना से फ्रांस में तूफ़ान छा गया की अंग्रेज फ्रांस की धरती से किसी को बंदी बना कर कैसे ले गए। वहां की सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में केस चला पर महारानी के हुक्म से कोर्ट ने उन्हें 2 आजीवन कारावास का दंड दिया। सावरकर जी ने कहा चलो ईसाई सत्ता ने सनातनियो के पुनर्जन्म सिद्धांत को स्वीकारा तो सही।

कालेपानी अंडमान में उन्होंने देखा की मुस्लिम वार्डनर कैसे हिन्दुओ का धर्मान्तरन छल अत्याचार से करते है। ऐसे ही एक लड़के को उन्होंने जल छिड़क कर शुद्ध किया और उसके साथ बैठ कर खाना खाया। उनके बड़े भाई ने इस बीच 3 चिट्ठियां ब्रिटिश सरकार को लिखी ताकि वे रिहा हो जो अस्वीकार हो गयी।

1921 में सावरकर जी ने स्वयं अंग्रेज सरकार को चिठ्ठी लिख कर रिहाई की मांग की। उनके अनुसार जेल में बंद रह कर वे कुछ नहीं कर सकते थे इसलिए बाहर आना आवश्यक था।

ब्रिटिश सरकार का अधिकारी कैडोक कहता है की ये स्पष्ट है की सावरकर अपने समय के सबसे खतरनाक क्रान्तिकारियो में से एक है यदि उन्हें रत्नागिरी जेल भेजा तो उनके दस्ते के क्रन्तिकारी उन्हें निकालने के षड्यंत्र रचेंगे। यदि उन्हें अंडमान से बाहर निकाला तो उनका भारतीय क्रान्तिकारियो के यूरोपीय दस्ते वाले जेल तोड़कर उन्हें भगा ले जायेंगे। इसलिए सावरकर के द्वारा लिखा गया पत्र नाटक मात्र है।

इसी से पता चलता है की अंग्रेज उनसे कितने भयभीत थे। 1921 में उन्हें रत्नागिरी में भेज दिया गया। 1924 से उन्हें उनके घर में ही नजरबन्द कर दिया।

1939 में उनके घर पर नेताजी बोस उनसे मिले। सावरकर जी ने उनसे आजाद हिन्द फ़ौज के निर्माण के लिए रास बिहारी से सिंगापूर में मिलने के लिए कहा और हिटलर से भेंट के लिए जर्मनी जाने को कहा। बोस इसके 6 महीने बाद पठान वेश में अफगानिस्तान ईरान रूस के रास्ते जर्मनी पहुंचे।

सावरकर जी ने हिन्दू युवको को आह्वान किया की वे अधिक से अधिक ब्रिटिश सेना में भर्ती हो क्योंकि तब सेना में 70% मुस्लिम थे उनकर कारण सेना में 65% हिन्दू हुए और वही हिन्दू सैनिक विभाजन के बाद देश के काम आये और मुस्लिम सैनिक अधिकतर पाकिस्तान चले गयेथे।

सावरकर जी के अनुसार एक बार बन्दुक तो हाथ में आये फिर ये हम पर निर्भर करता है की उनका मुंह हम कहाँ खोले।

उन्होंने स्वतंत्रता पश्चात गांधीवादियों द्वारा सेना पुलिस भंग करने का विरोध किया उन्होंने कहा हमे विकास तो करना है पर सुरक्षित भी रहना है। सुरक्षित नहीं रहेंगे तो जो सड़के हम बनाएंगे उन पर दुश्मनो के टैंक भी दौड़ सकते है।

उनका एक ही मन्त्र था राजनीती का हिन्दुकरण व् हिन्दुओ का सैनिकीकरण
जो आज भी अधूरा है।

सवरलर जी 1962 में चीन युद्ध के कारण सदमे में थे। 4 दिन पहले उन्होंने अपने दरजी से कहा की मैं इस दिन इस समय प्राण त्याग दूंगा। मेरा कपडा और कुर्ता तैयार रखना। ठीक समय पर उन्होंने प्राण त्यागे और फरवरी 1962 में यह महान क्रन्तिकारी परमात्मा में विलीन हो गया।

उनके स्वप्न को पूरा करने के लिए हम प्रतिबद्ध है। नकली स्वतंत्रता के बल पर देश को 65 सालो से लूटने का क्रम आज भी जारी है राष्ट्र को असली स्वतंत्रता ही स्वातंत्र्य वीर सावरकर को श्रद्धांजलि है।

सावरकर का मन्त्र महान
हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩


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Wednesday, May 27, 2015

‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’ एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो...

‘घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’
एक पिता का अपने पुत्र के नाम एक ऐसा पत्र जो हरएक को जरूर पढ़ना चाहिए -

श्री घनश्यामदास बिर्ला का अपने बेटे के नाम लिखा हुवा पत्र इतिहास के सर्वश्रेष्ठ पत्रों में से एक माना जाता है l विश्व में जो दो सबसे सुप्रसिद्ध और आदर्श पत्र माने गए है उनमें एक है 'अब्राहम लिंकन का पुत्र के शिक्षक के नाम पत्र’ और दूसरा है 'घनश्यामदास बिर्ला का पुत्र के नाम पत्र’ (कै. घनश्यामदासजी बिड़ला का, अपने पुत्र श्री बसंत कुमार बिड़ला के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र )l –

चि. बसंत…..

यह जो लिखता हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।

धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं की धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो की अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो। अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे l

भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है l सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है l मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होनेपर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।

- घनश्यामदास बिड़ला


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⚠वैधानिक चेतावनी⚠ अपने मोबाइल फोन पे *#07# डायल करें। यह आपके फोन का radiation level पता करने के...

⚠वैधानिक चेतावनी⚠
अपने मोबाइल फोन पे *#07#
डायल करें। यह आपके फोन
का radiation level पता करने के लिए है। अगर यह sirf 1.6watt/kg
से कम है तो ठीक है। पर अगर जयादा है । तो अभी अपना फोन बदल लें। और अगर *#07# आपके फोन पे
कोई सन्देश नहीं देत्ता
तो फोन बदलना बहुत
ही जरूरी है। यह रेडिएशन
आपके और आपके
परिवार वालों के लिए बहुत ही खतरनाक है।
आप सभी लोगो से गुज़ारिश है कि ये सुचना आपके whats app
के जितने ग्रुप्स हे उनमे भी send करे।।
-जनहित में जारी।


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Sunday, May 17, 2015

२ जयेष्ट 16 मई 15 😶 “ साथी बनो ” 🌞 🔥 ओ३म् त्वां जना मम सत्येष्विन्द्र...

२ जयेष्ट 16 मई 15
😶 “ साथी बनो ” 🌞

🔥 ओ३म् त्वां जना मम सत्येष्विन्द्र सन्तस्थाना वि ह्व्यन्ते समीके।
🍃🍂 अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान् ना सुन्वता संख्यं वष्टि शूर: ॥ 🍂🍃
ऋ० १० । ४२ । ४ ; अथर्व० २० । ८९ । ४

शब्दार्थ:– हे परमेश्वर !
मेरा पक्ष सच्चा है, ऐसे अपने झगड़ो में, स्पर्दाओ में मनुष्य तुझे विविध प्रकार से पुकारते है । एवं युद्ध में, संग्राम में स्थित हुए,अड़े हुए मनुष्य भी तुझे अपने-अपने पक्ष में पुकारते है,परन्तु इस संसार में
हे मनुष्यों !
जो मनुष्य बलिदान के लिए तैयार है उसे ही वह इन्द्र अपना साथी बनाते है वह इंद्र यज्ञ के लिए सवन ना करने वाले अनुध्मी पुरष के साथ कभी मित्रता नही चाहता ।

विनय :- हे परमेश्वर !
केवल राजनितिक क्षेत्र में ही नही अपितु साहितिय्क, वैज्ञानिक,सामजिक,धार्मिक सभी क्षेत्रो में मनुष्य दो पक्षों में विभक्त हुए संगर्ष कर रहे है और मजेदार बात यह है कि इन कलहो,युद्धो में दोनों पक्ष वाले तुम्हारे नाम की दुहाई दे रहे है । प्रत्येक कहता है कि हमारा पक्ष सच्चा है, अत: परमेश्वर हमारे साथ है, विजय हमारी निशिचत है । परन्तु
हे मनुष्यों !
सत्य के साथ ऐसे खिलवाड़ मत करो ! जरा अपने अंदर घुस कर,अन्तर्मुख होकर, अपनी सच्ची अवस्था को देखो । “सत्य” ‘परमेश्वर’ आदि परम पवित्र शब्दों का यू ही हल्केपन से उचारण करना ठीक नही है । यह पाप है ! गहराई में घुस कर, गहरे पानी में बैठकर,सत्य वस्तु को तत्परता के साथ खोजो और देखो कि वह सत्यस्वरूप इन्द्र सदा सच्चे सत्य वस्तु का ही सहायक है । जिसको वास्तव में सत्य के लिए प्रेम है वह सत्य के लिए सर पर कफ़न बाँध लेता है तब तुम देखोगे परम सौभाग्य के साथ सर्वशक्तिमान इन्द्र की मित्रता में तुम हो उसके 'युज’ साथी बने हुए हो
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
सत्य सनातन वैदिक धर्म की
………………जय

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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क्या हम अपना नाम भी भूल गये ?? भाग ८ 📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229) पिछले भागों मे हम ने हिन्दू शब्द...

क्या हम अपना नाम भी भूल गये ??
भाग ८
📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229)
पिछले भागों मे हम ने हिन्दू शब्द के अर्थों को विभिन्न प्रकार के प्रमाणो के साथ सिद्ध किया और हम ने पाया कि यह शब्द दासता सूचक एवं निकृष्ट अर्थों के द्योतक है. यह नाम हमे गुलामी के दिनो मे विदेशी शासको द्वारा उसी प्रकार दिया गया जिस प्रकार कुछ दिनो पहले अंग्रेज हमे और हमारे देश का नाम इंडियन और इंडिया दिया . मुझे अफशोष है कि कुछ लोग जिस प्रकार हिन्दू शब्द को जबरदस्ती अपनी भाषा व संस्कृति का होना सिद्ध करता है उसी प्रकार कुछ सालो बाद इसी तरह के कुछ लोग इंडिया और इंडियन शब्दो को भी अपनी भाषा व संस्कृति के होने का सिद्ध करने का विफल प्रयास करेगा . 
आर्य और आर्यावर्त उस युग की स्मृति दिलाता है जब आर्य संस्कृति का सूर्य निकल रहा था , आर्य ऋषि अपने आत्मिक विकास के द्वारा वैदिक ऋचाओं का दर्शन कर रहे थे , आश्चर्यजनक वैदिक साहित्यों का निर्माण हो रहा था जिस मे ज्ञान व विज्ञान कि बातें भरी हुई थी, आर्य संस्कृति की विजय पताका विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में फहराई जा रही थी और आर्यावर्त विश्व गुरु कहलाता था परन्तु हिन्दू हिन्दूस्तान व इंडिया शब्द ऐसे युग के द्योतक है , जिस समय इस देश के निवासी अपने सच्चे अस्तित्व को भूल चुके थे, आर्य संस्कृति का सूर्य अस्ताचल के निकट पहुंच चुका था, समाज मे विभिन्न तरह के कुरितियां , अंधविश्वास, छूआछूत, जातिवाद, पाखंड आदि अपनी चरमसीमा पर पहुंच चुका था, हमारी आखों के सामने हमारे ही अपनी सभ्यता, उसकी मान्यताएं, परंपराओं का गला घोंटा जा रहा था, आर्थिक, समाजिक व राजनितिक व्यवस्था कि शुद्ध वैदिक स्वरुप के समाप्त हो जाने की वजह से समाज मे चोरी-डकैती, लूटपाट, बलात्कार  आदि समस्याएं चरमसीमा पर था . तो क्यों न हम अपने प्राचीन गौरवमयी संस्कृति को पुन: प्राप्त करने हेतु स्वाभिमान व उज्ज्वल अतीत के सूचक आर्य व आर्यावर्त का आह्वान करे और गुलामी व दास्ता के सूचक हिन्दू हिन्दूस्तान व इंडिया जैसे शब्दो का बहिष्कार. याद रखिए किसी भी गुलाम व्यक्ति व राष्ट्र को उसके मालिक यदि नाम देता है तो सिर्फ अपमान सूचक .
👉यदि हमारा नाम आर्य न होता तो वाराणसी मे विश्वनाथ एवं अन्नपूर्णा मंदिर के प्रवेश द्वार पर ‘आर्येतराणां प्रवेशो निषिद्ध : ’ अर्थात आर्यो के अतिरिक्त लोगो का प्रवेश वर्जित है, ऐसा क्यो लिखा रहता ???
👉कर्मकांड मे हमारे पुरोहित , 'आर्यावर्ते भरतखंडे ’ क्यों पढ़ते आ रहे है ???
👉क्यों संस्कृत व प्राकृत भाषा के नवीन आचार्य भी कहीं पर हम लोगो के लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग नही किया है ???
👉क्यो हमारे प्राचीन ८वीं सदी के पहले के ग्रंथो व पुस्तकों मे हमें हिन्दू कहना तो दूर इस शब्द का जिक्र भी नही किया गया है क्योकि यह हमारी भाषा की शब्द नही है ???
👉क्यों रामायन, महाभारत, गीता , स्मृति ग्रंथ, व्याकरन , १८ पुरान आदि मे हमारे लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग नही किया गया है ??
👉क्यो कुछ कवि भी हमे आर्य कहकर ही संबोधित किया है ??? यथा.
“मानस भवन मे आर्यजन जिसकी उतारें आरती !
भगवान् भारतवर्ष में गुंजे हमारी भारती !
यह पुण्य भारतभूमि है , इसके निवासी आर्य है !
विद्या , सुसंस्कृति सभ्यता में विश्व के आचार्य है ! ”
……..मैथिलीशरण गुप्त(भारत भारती )
अब विवेकशील व्यक्ति खुद विचार करे कि उसे दासता सूचक नाम चाहिए या स्वाभिमान सूचक .

'जय आर्य , जय आर्यावर्त्त ’
क्रमश :


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🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ★★ सभी को सादर-हार्दिक नमस्ते ★★ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ 👉 सभी के लिए चेतावनी ...

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
★★ सभी को सादर-हार्दिक नमस्ते ★★
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
👉 सभी के लिए चेतावनी 👈
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
#ISCON CHEATERS (मंदिर) की सच्चाई#
International Society of Krishna Consiousness
**********************************
★अँधी पिसे कुत्ता खाये-पूरा घर बेशर्म कहाये★
**********************************
एक अमेरिकन संस्था है जिसने अनेक देश में कृष्ण भगवान के मंदिर खोले हुए है और ये मँदिर अमेरिका की कमाई के सबसे बड़े साधन है क्योँकि इन मंदिर पर इनकम टैक्स भी नही है । ये संस्था लोगो की अंधभक्ति का फ़ायदा उठ खरब डॉलर इन मंदिर में आनेवाले चढ़ावे के माध्यम से अमेरिका ट्रान्सफर कर देती है और दुर्भाग्य से इस लुटेरी ISKCON संस्था के सबसे ज्यादा मंदिर भारत में है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका की कोलगेट कंपनी एक साल में जितना जितना शुद्ध लाभ अमेरिका भेजती है उससे 3 गुना ज्यादा अकेले बैंगलोर का ISKCON मंदिर भारत का पैसा अमेरिका भेज देता है और बैंगलोर से भी बड़ा मंदिर दिल्ली में है, और दिल्ली से भी बड़ा मंदिर मुंबई में है और उससे भी बड़ा मंदिर मथुरा में हो गया है भगवान कृष्ण की छाती पर और वहाँ धुआँधार चढ़ावा आता है । कृपया ISKCON और इस तरह की सभी लुटेरी संस्थाओँ का प्रबल विरोध करके देश को लुटने से बचाने में अपना सहयोग दे। मन्दिरो में दान देने वाले हिन्दू भाई-बहन सुप्रीम कोर्ट की ये न्यूज़ पढ़े….आप सोचते हैं कि मन्दिरों में किया हुआ दान, पैसा / सोना,.. इत्यादि हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए काम आ रहा है और आपको पुन्य मिल रहा है तो आप निश्चित ही बड़े भोले हैं। कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से 2002 तक पाँच साल में कर्नाटक म कांग्रेस सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-
(1)★ मुस्लिम मदरसा उत्थान एवं हज मक्का मदिना सब्सिडी, विमान टिकट –180 करोड़ (यानी 46%)
(2) ★ ईसाई चर्च को अनुदान (To convert poor Hindus into Christian)–44 करोड़ (यानी 11.2%)
(3) ★ मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
(4) ★ अन्य – 83 करोड़ (यानी 21.2%) कुल 391 करोड ॥
ये तो सिर्फ एक राज्य का हिसाब हैं….हर रोज हजारों करोड़ों पैसा / सोना दान …सच हिन्दुओं को ही पता नहीं चलेगा ॥
भगवत् गीता मे भगवान ने बताया हैं कि दान देते वक्त अपनी विवेक बुद्धि से दान दे…ताकि वह समाज / देश की भलाई में सदुपयोग हो, नहीं तो दानि पाप का ही भागीदार है । हिन्दुओं के पैसों से, हिन्दुओं के ही विनाश का षड्यंत्र ६० साल से चल रहा है, और यह सच्चाई हिन्दुओं को पता ही नहीं है । घोर आश्चर्य !!!!!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
👉 राष्ट्र के प्रति जागरूक व उत्तरदायी बनें 👈
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
★ प्रेषक - आर्य ओमप्रकाश सिंह राघव ★
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
★सब आध्यात्मिक रोगों की एक ही औषधी है
- सत्यार्थप्रकाश - पढे़ं और स्वस्थ रहें ★
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★मूर्तिपूजा भयानक आध्यात्मिक रोग है ★
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डार्विन ने कहा : दूसरों को खाकर जियो। परन्तु मेरे वेदों ने कहा : सबको सुखी बनाने के लिये जियो...

डार्विन ने कहा : दूसरों को खाकर जियो।
परन्तु मेरे वेदों ने कहा : सबको सुखी बनाने के लिये जियो (सर्वे
भवन्तु सुखिन:)
………………………………………………
बाइबिल ने कहा : जिसका काम उसी का दाम।
कुरान ने कहा : जहान खुदा का और मेहनत इन्सान करे ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : मेहनत इन्सान की, सम्पत्ति भगवान की
यानी (तेन त्यक्तेन भुजींथा) ।
………………………………………………
बाइबिल ने कहा : ईसाई बनो ।
कुरान ने कहा : मुसलमान बनो ( कुरान म.सि.2)।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : मनुष्य बन जाओ
(मनुर्भव)।
………………………………………………
बाइबिल ने कहा : पढाई नौकरी के लिये
कुरान ने कहा : पढाई कुरान के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : पढाई केवल नैतिकता , ज्ञान और
नम्रता के लिये ।
………………………………………………
अरस्तू ने कहा : राजनीति शासन के लिये ।
कुरान ने कहा : शासन इस्लाम के प्रचार के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा:राजनीति की अपेक्षा लोकनीति ,
शासन की अपेक्षा अनुशासन ,तानाशाही की जगह संयम और
अधिकार के स्थान पर कर्तव्य पालन करें ।
………………………………………………
ईसाइयों ने कहा परमाणु हथियार नागासाकी और
हिरोशिमा जैसे शहरों को नष्ट करने के लिये ।
मुस्लिम आतंकियों ने कहा : परमाणु हथियार मिल जायें तो
काफिरों (गैर-मुस्लिम ) को मिटाने के लिये ।
किन्तु मेरे वेदों ने कहा : सम्पूर्ण विज्ञान ही जनकल्याण के
लिये (यथेमा वाचंकल्याण)


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🌹 सोमवती अमावस्या 🌹 👉 कल 18 मई 2015 को (सूर्योदय से सुबह 9:45 तक) सोमवती अमावस्या है। 🙏 सोमवती...

🌹 सोमवती अमावस्या 🌹

👉 कल 18 मई 2015 को (सूर्योदय से सुबह 9:45 तक) सोमवती अमावस्या है।

🙏 सोमवती अमावस्या पर जप/ध्यान करने का वैसा ही हजारों गुना फल होता है | जैसा की सूर्य/चन्द्र ग्रहण में जप/ध्यान करने से होता है l

🙏 जिस अमावस्या को सोमवार हो, उसी दिन इस व्रत का विधान है। प्रत्येक मास एक अमावस्या आती है, परंतु ऐसा बहुत ही कम होता है, जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। यह स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।

🙏 ग्रंथों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है। पाण्डव पूरे जीवन तरसते रहे, परन्तु उनके सम्पूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई।

🙏 इस दिन को नदियों, तीर्थो में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र आदि दान के लिए विशेष माना जाता है।

🙏 सोमवार चंद्रमा का दिन है। इस दिन अमावस्या को सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं, इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।

🙏 सोमवार भगवान शिवजी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिवजी को समर्पित होती है।

🙏 इस दिन यदि गंगाजी जाना संभव न हो तो प्रात: किसी नदी या सरोवर आदि में स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और तुलसी की भक्तिपूर्वक पूजा करें।

💥 दरिद्रता निवारण प्रयोग 💥

🙏 सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार अगर तुलसी की परिक्रमा करते हो,
ओंकार का थोड़ा जप करते हो, सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हो; यह सब साथ में करो तो अच्छा है, नहीं तो खाली तुलसी को 108 बार प्रदक्षिणा करने से तुम्हारे घर से सारी विपतियाँ भाग जाएगी l

🙏 सोमवती अमावस्या पर विशेष मंत्र –

🙏 तुलसी माता को १०८ प्रदिक्षणा करें | और श्री हरि…. श्री हरि…. श्री हरि…. श्री हरि..


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This chart is awesome! Everyone can use it. Please pass it on to others. Apples Protects your...

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Apples
Protects your heart
Prevents constipation
Blocks diarrhea
Improves lung capacity
Cushions joints

Apricots
Combats cancer
Controls blood pressure
Saves your eyesight
Shields against Alzheimer’s
Slows aging process

Artichokes
Aids digestion
Lowers cholesterol
Protects your heart
Stabilizes blood sugar
Guards against liver disease

Avocados
Battles diabetes
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Controls blood pressure
Smooths skin

Bananas
Protects your heart
Quiets a cough
Strengthens bones
Controls blood pressure
Blocks diarrhea

Beans
Prevents constipation
Helps hemorrhoids
Lowers cholesterol
Combats cancer
Stabilizes blood sugar

Beets
Controls blood pressure
Combats cancer
Strengthens bones
Protects your heart
Aids weight loss

Blueberries
Combats cancer
Protects your heart
Stabilizes blood sugar
Boosts memory
Prevents constipation

Broccoli
Strengthens bones
Saves eyesight
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure

Cabbage
Combats cancer
Prevents constipation
Promotes weight loss
Protects your heart
Helps hemorrhoids

Cantaloupe
Saves eyesight
Controls blood pressure
Lowers cholesterol
Combats cancer
Supports immune system

Carrots
Saves eyesight
Protects your heart
Prevents constipation
Combats cancer
Promotes weight loss

Cauliflower
Protects against Prostate Cancer
Combats Breast Cancer
Strengthens bones
Banishes bruises
Guards against heart disease

Cherries
Protects your heart
Combats Cancer
Ends insomnia
Slows aging process
Shields against Alzheimer’s

Chestnuts
Promotes weight loss
Protects your heart
Lowers cholesterol
Combats Cancer
Controls blood pressure

Chili peppers
Aids digestion
Soothes sore throat
Clears sinuses
Combats Cancer
Boosts immune system

Garlic
Lowers cholesterol
Controls blood pressure
Combats cancer
Kills bacteria
Fights fungus

Grapefruit
Protects against heart attacks
Promotes Weight loss
Helps stops strokes
Combats Prostate Cancer
Lowers cholesterol

Grapes
Saves eyesight
Conquers kidney stones
Combats cancer
Enhances blood flow
Protects your heart

Green tea
Combats cancer
Protects your heart
Helps stops strokes
Promotes Weight loss
Kills bacteria

Honey
Heals wounds
Aids digestion
Guards against ulcers
Increases energy
Fights allergies

Lemons
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure
Smoothes skin
Stops scurvy

Limes
Combats cancer
Protects your heart
Controls blood pressure
Smoothes skin
Stops scurvy

Mangoes
Combats cancer
Boosts memory
Regulates thyroid
Aids digestion
Shields against Alzheimer’s

Mushrooms
Controls blood pressure
Lowers cholesterol
Kills bacteria
Combats cancer
Strengthens bones

Oats
Lowers cholesterol
Combats cancer
Battles diabetes
Prevents constipation
Smoothes skin

Olive oil
Protects your heart
Promotes Weight loss
Combats cancer
Battles diabetes
Smoothes skin

Onions
Reduce risk of heart attack
Combats cancer
Kills bacteria
Lowers cholesterol
Fights fungus

Oranges
Supports immune systems
Combats cancer
Protects your heart
Straightens respiration

Peaches
Prevents constipation
Combats cancer
Helps stops strokes
Aids digestion
Helps hemorrhoids

Peanuts
Protects against heart disease
Promotes Weight loss
Combats Prostate Cancer
Lowers cholesterol
Aggravates
Diverticulitis

Pineapple
Strengthens bones
Relieves colds
Aids digestion
Dissolves warts
Blocks diarrhea

Prunes
Slows aging process
Prevents constipation
Boosts memory
Lowers cholesterol
Protects against heart disease

Rice
Protects your heart
Battles diabetes
Conquers kidney stones
Combats cancer
Helps stops strokes

Strawberries
Combats cancer
Protects your heart
Boosts memory
Calms stress

Sweet potatoes
Saves your eyesight
Lifts mood
Combats cancer
Strengthens bones

Tomatoes
Protects prostate
Combats cancer
Lowers cholesterol
Protects your heart

Walnuts
Lowers cholesterol
Combats cancer
Boosts memory
Lifts mood
Protects against heart disease

Water
Promotes Weight loss
Combats cancer
Conquers kidney stones
Smooths skin

Watermelon
Protects prostate
Promotes Weight loss
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Controls blood pressure

Wheat germ
Combats Colon Cancer
Prevents constipation
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Improves digestion

Wheat bran
Combats Colon Cancer
Prevents constipation
Lowers cholesterol
Helps stops strokes
Improves digestion

Yogurt
Guards against ulcers
Strengthens bones
Lowers cholesterol
Supports immune systems
Aids digestion

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🚩🙏जय श्री राम बंधुओ🙏🚩 🌻🌞मंगल प्रभात🌞🌻 पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो निशा अशेष हो रही प्रभात...

🚩🙏जय श्री राम बंधुओ🙏🚩

🌻🌞मंगल प्रभात🌞🌻

पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो
निशा अशेष हो रही
प्रभात मुस्करा रहा
हिमाद्रि तुंग-श्रंग से
प्रयाण-गान आ रहा
वर -विभूति विश्व को बुला रही बढ़े चलो।
पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो॥१॥
मार्ग है वही प्रवीर
है वही वसुन्धरा
प्राण मातृ-भूमि हेतु
शौर्य है वहीं भरा।
माँ वहीं बुला रही बढ़े चलो बढ़े चलो।
पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो॥२॥
अन्तरिक्षा काँपता
देख वीर देश यह।
आज धन्य हो रहा
पा तुम्हें स्वदेश यह।
सत्य -धर्म की विजय सदैव है बढ़े चलो।
पंथ है प्रशस्त शूर साहसी बढ़े चलो
🚩🚩जय हिंदुराष्ट्रम्🚩🚩


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Saturday, May 16, 2015

ओ३म् कुरान मे कई अल्लाह है , इबादत किसकी करे ??? समझने के लिए अक्ल का ताला खोलना पड़ेगा अपशब्द या...

ओ३म्
कुरान मे कई अल्लाह है , इबादत किसकी करे ???

समझने के लिए अक्ल का ताला खोलना पड़ेगा

अपशब्द या कुतर्क करने से पहले दिये गये प्रमाण झूठा साबित करे
प्रमाण :–
१. अल-फ़ातिहा (Al-Fatihah):1 - अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।
२. अल-बक़रा (Al-Baqarah):53 - और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको
३. अल-ए-इमरान (‘Ali `Imran):18 - अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं
४. अन-निसा (An-Nisa’):1 - ऐ लोगों! अपने रब का डर रखों, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाति का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से पुरुष और स्त्रियाँ फैला दी। अल्लाह का डर रखो, जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने माँगें रखते हो। और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख़याल रखना हैं। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा हैं

विवेचना :–
समाज के ईमानदारो ( मुस्लिम समुदाय ) का मानना व कहना है की यह जो कुरान है वह अल्लाह ने कहा है यानी अल्लाह की वाणी है | ये ईमानदार ये भी कहते है अल्लाह ने ही इस पूरे कायनात को बनाया है और वह ऐसा नूर है जो इस जहान मे हर जगह मौजूद ( सर्वव्यापक ) है जिसकी वे इबादत करते है |
लेकिन सत्य क्या है वह सप्रमाण कुरान से ही देखते है तर्क की कसौटी पर
प्रमाण - १
यह कुरान का पहला सुरा का पहला ही आयात है | देखे यहाँ पर अल्लाह ने क्या कहाँ “अल्लाह के नाम से ” यानी पहला अल्लाह कह रहा है अपने से बड़े अल्लाह के नाम से | यानी कुरान के पहले ही अयात मे ही गड़बड़ी आ गयी | पहला ही आयात कह रहा है कुरान मे दो अल्लाह है , आज समाज मे जितने भी ईमानदार है ये किसकी इबादत कर रहे है कुरान लिखने वाले अल्लाह की या जिस अल्लाह के ऊपर लिखा गया है उसका ??? यानी एक अल्लाह दुसरे अल्लाह को उपदेश दे रहा है |
प्रमाण -२
“ हमने कसौटी और ज्ञान “ यहाँ हमने यानी बहुवचन का प्रयोग हुआ है जो यह प्रमाणित करता है कर्ता एक नही , दो नही बल्कि अनेक है | जिसका सीधा सा अभिप्राय है कुरान मे अनेक अल्लाह है | यह केवल एक छोटा सा उदाहरण है ऐसे ही न जाने कितनी जगहो पर अल्लाह ने हमने शब्द का प्रयोग किया है जिसका सीधा सा अर्थ है अल्लाह एक नही अनेक है |
प्रमाण ३. - “ अल्लाह ने गवाही दी ”
यानी कुरान बोलने वाला या लिखने वाला अल्लाह कह रहा है की अल्लाह ने गवाही दी यानी गवाही देने वाला अल्लाह कोई और है और कुरान लिखने वाला कोई और !!!!
क्या अल्लाह को अपने द्वारा ही बनाये गये ईमानदारो लोगो पर भरोसा नही था जो स्वंय अल्लाह को गवाही देनी पड़ी ???
प्रमाण ४. – “ अपने रब का डर रखो “ यहाँ अल्लाह कह रहा है अपने रब ( अल्लाह ) का डर रखो !!!
ये ईमानदार किस अल्लाह का डर रखते है जितने अल्लाह मिलकर कुरान बनाये उनकी या फिर जिस अल्लाह के ऊपर कुरान बना उनकी ?????????????
ये केवल कुछ उदाहरण दिया गया है अगर ध्यान से पढ़े तो कुरान मे कई आयात मिलेगे जिनसे यह प्रमाणीत होगा अल्लाह एक नही अनेक है |
मै भी ईमानदार बनना चाहता हूँ लेकिन कुरान पढ़ने के बाद समझ नही आ रहा किस अल्लाह कि इबादत करू | क्योकी ईमानदार ( मुस्लिम ) नही बना तो सभी अल्लाह मिलकर मुझे आग मे झोक देगे जहाँ पत्थरो को भी जलाया जाता है उसी आग मे मुझे भी जलना पड़ेगा | मुझे अल्लाह काफिर कहेगे और मेरे लिए बहुत ही कठोर यातनाएं होगी जहनन्नूम मे |


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किडनी को साफ़ करें वह भी सिर्फ 5 रुपये में।हमारी किडनी एक बेहतरीन फिल्टर हैं जो सालों से हमारे खून की...

किडनी को साफ़ करें वह भी सिर्फ 5 रुपये में।हमारी किडनी एक बेहतरीन फिल्टर हैं जो सालों से हमारे खून की गंदगी को साफ़ करने का काम क रती हैं मगर हर फिल्टर की तरह इसको भी साफ़ करने की जरूरत हैं ताकि ये और भी अच्छा काम करें। आज हम आपको बता रहे हैं इसकी सफाई के बारे में और वह भी सिर्फ 5 रुपये में। एक मुट्ठी भर धनिया लीजिए इसको छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें और अच्छी तरह धुलाई कर लें । फिर एक बर्तन में १ लीटर पानी डाल कर इन टुकड़ों को डाल दे, 10 मिनट तक धीमी आँच पर पकने दे, बस अब इसको छान लें और ठंडा होने दो अब इस ड्रिंक को हर रोज़ एक गिलास खाली पेट पिएँ। आप देखेंगे के आपके पेशाब के साथ सारी गंदगी बाहर आ रही हैं। NOTE : - इसके साथ थोड़ी से अजवायन डाल लें तो सोने पे सुहागा हो जाए। अब समझ आया कि हमारी माँ अक्सर धनिये की चटनी क्यों बनाती थी और हम आज समझ सके
____ जोरसंग गोहिल


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Friday, May 15, 2015

ओउ्म् वैदिक विचारधारा:- उसको जानो यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति। ...

ओउ्म्
वैदिक विचारधारा:-
उसको जानो
यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति।
ऋ व् १1 १६४1३९
जो वेद में प्रतिपादित उस(परमेश्वर) को नहीं जानता, उसके वेद पढने से भी क्या लाभ?
उस परम सत्य को, परम तत्तव को खोजो, उसको जानो, उसको प्राप्त करो,उसे अपने हृदय में बैठा लो, उसी में जम जाऔ, उसी में रम जाओ।


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२ जयेष्ट 16 मई 15 😶 “ साथी बनो ” 🌞 🔥 ओ३म् त्वां जना मम सत्येष्विन्द्र...

२ जयेष्ट 16 मई 15
😶 “ साथी बनो ” 🌞

🔥 ओ३म् त्वां जना मम सत्येष्विन्द्र सन्तस्थाना वि ह्व्यन्ते समीके।
🍃🍂 अत्रा युजं कृणुते यो हविष्मान् ना सुन्वता संख्यं वष्टि शूर: ॥ 🍂🍃
ऋ० १० । ४२ । ४ ; अथर्व० २० । ८९ । ४

शब्दार्थ:– हे परमेश्वर !
मेरा पक्ष सच्चा है, ऐसे अपने झगड़ो में, स्पर्दाओ में मनुष्य तुझे विविध प्रकार से पुकारते है । एवं युद्ध में, संग्राम में स्थित हुए,अड़े हुए मनुष्य भी तुझे अपने-अपने पक्ष में पुकारते है,परन्तु इस संसार में
हे मनुष्यों !
जो मनुष्य बलिदान के लिए तैयार है उसे ही वह इन्द्र अपना साथी बनाते है वह इंद्र यज्ञ के लिए सवन ना करने वाले अनुध्मी पुरष के साथ कभी मित्रता नही चाहता ।

विनय :- हे परमेश्वर !
केवल राजनितिक क्षेत्र में ही नही अपितु साहितिय्क, वैज्ञानिक,सामजिक,धार्मिक सभी क्षेत्रो में मनुष्य दो पक्षों में विभक्त हुए संगर्ष कर रहे है और मजेदार बात यह है कि इन कलहो,युद्धो में दोनों पक्ष वाले तुम्हारे नाम की दुहाई दे रहे है । प्रत्येक कहता है कि हमारा पक्ष सच्चा है, अत: परमेश्वर हमारे साथ है, विजय हमारी निशिचत है । परन्तु
हे मनुष्यों !
सत्य के साथ ऐसे खिलवाड़ मत करो ! जरा अपने अंदर घुस कर,अन्तर्मुख होकर, अपनी सच्ची अवस्था को देखो । “सत्य” ‘परमेश्वर’ आदि परम पवित्र शब्दों का यू ही हल्केपन से उचारण करना ठीक नही है । यह पाप है ! गहराई में घुस कर, गहरे पानी में बैठकर,सत्य वस्तु को तत्परता के साथ खोजो और देखो कि वह सत्यस्वरूप इन्द्र सदा सच्चे सत्य वस्तु का ही सहायक है । जिसको वास्तव में सत्य के लिए प्रेम है वह सत्य के लिए सर पर कफ़न बाँध लेता है तब तुम देखोगे परम सौभाग्य के साथ सर्वशक्तिमान इन्द्र की मित्रता में तुम हो उसके 'युज’ साथी बने हुए हो
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
सत्य सनातन वैदिक धर्म की
………………जय

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध...

एक बेटा अपने वृद्ध पिता
को रात्रि भोज के लिए एक
अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया।

खाने के दौरान वृद्ध और कमजोर
पिता ने कई बार भोजन अपने
कपड़ों पर गिराया।

रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा
रहे लोग वृद्ध को घृणा की
नजरों से देख रहे थे लेकिन
वृद्ध का बेटा शांत था।

खाने के बाद बिना किसी शर्म
के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले
गया। उसके कपड़े साफ़ किये,
उसका चेहरा साफ़ किया,
उसके बालों में कंघी की,
उसे चश्मा पहनाया और फिर
बाहर लाया।

सभी लोग खामोशी से उन्हें
ही देख रहे थे।

बेटे ने बिल पे किया और वृद्ध के
साथ बाहर जाने लगा।
तभी डिनर कर रहे
एक अन्य वृद्ध ने बेटे को
आवाज दी और उससे
पूछा—“ क्या तुम्हे नहीं लगता
कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ
छोड़ कर जा रहे हो ?”

बेटे ने जवाब दिया–
“ नहीं सर, मैं कुछ भी
छोड़ कर नहीं जा रहा। ”

वृद्ध ने कहा—“ बेटे, तुम यहाँ
छोड़ कर जा रहे हो,
प्रत्येक पुत्र के लिए एक
शिक्षा (सबक)
और
प्रत्येक पिता के लिए
उम्मीद (आशा)। ”


🙏संध्या वंदन 🙏

🚩


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योग अनुभूति यह कौन छुफ रहा , प्रकीर्ति में चेतन सा? यह कौन झाँक रहा है दिलो से , कभी आँखों से, कभी...

योग अनुभूति
यह कौन छुफ रहा , प्रकीर्ति में चेतन सा?
यह कौन झाँक रहा है दिलो से ,
कभी आँखों से, कभी सांसो से,
कभी इस लहरहती हुई जमीन से,
कभी पहाड़ो से, कभी नदियों से,
कभी बहती हुई, उस समीर से,
कभी चन्द्र से , कभी सूर्य से,
कभी वरुण से, कभी मरूत से,
कभी फैले हुए इस विशाल आसमान से,
क्यों छुफ -छुफ कर- अटखेलियाँ करते से,
क्यों नही आते नजर, नगी आँखों से,
जाने तो हम तुम्हे जाने कैसे?

कहे ये राज, हम तो जाने ऐसे,
जैसे मुंझ में से, सीक निकलते ऐसे?
जैसे दही में से मक्खन निकलते ऐसे?
जैसे पानी में से बिजली निकलते ऐसे?
जैसे जड़ प्रकीर्ति, किर्या करती चेतन से?

वैसे ही कछुए की तरह, निग्रह करो अंगो से,
तो फिर दिखेगा , इस जड़ शरीर में किर्या करता चेतन से,
फिर उस चेतन का मिलान करो, बाहर फैले महाचेतन से,
तभी पता लगता है, कौन छुफा हुआ , इस प्रकीर्ति में चेतन सा.——————राजिंदर कुमार thulla


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योग अनुभूति यह कौन छुफ रहा , प्रकीर्ति में चेतन सा? यह कौन झाँक रहा है दिलो से , कभी आँखों से, कभी...

योग अनुभूति
यह कौन छुफ रहा , प्रकीर्ति में चेतन सा?
यह कौन झाँक रहा है दिलो से ,
कभी आँखों से, कभी सांसो से,
कभी इस लहरहती हुई जमीन से,
कभी पहाड़ो से, कभी नदियों से,
कभी बहती हुई, उस समीर से,
कभी चन्द्र से , कभी सूर्य से,
कभी वरुण से, कभी मरूत से,
कभी फैले हुए इस विशाल आसमान से,
क्यों छुफ -छुफ कर- अटखेलियाँ करते से,
क्यों नही आते नजर, नगी आँखों से,
जाने तो हम तुम्हे जाने कैसे?

कहे ये राज, हम तो जाने ऐसे,
जैसे मुंझ में से, सीक निकलते ऐसे?
जैसे दही में से मक्खन निकलते ऐसे?
जैसे पानी में से बिजली निकलते ऐसे?
जैसे जड़ प्रकीर्ति, किर्या करती चेतन से?

वैसे ही कछुए की तरह, निग्रह करो अंगो से,
तो फिर दिखेगा , इस जड़ शरीर में किर्या करता चेतन से,
फिर उस चेतन का मिलान करो, बाहर फैले महाचेतन से,
तभी पता लगता है, कौन छुफा हुआ , इस प्रकीर्ति में चेतन सा.——————राजिंदर कुमार thulla


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Rajinder Thulla ऋग्वेद :1 /8 /4 :भावार्थ :-हे आंतरिक शत्रुओ से युद्ध करने में उत्साह देने वाले...

Rajinder Thulla

ऋग्वेद :1 /8 /4 :भावार्थ :-हे आंतरिक शत्रुओ से युद्ध करने में उत्साह देने वाले परमेस्वर ! आपको अंतर्यामी ईस्ट देव मानकर, आपकी कृपा से हम योग-सामर्थ-बल प्राप्त करते है. जिसके समर्थ से युद्ध करने वाले इन घोरतम अज्ञान रूपी शत्रुओ को इस योगिगनी रूपी शास्त्र से धैर्य पूर्वक उनके वार को सहते हुए निरंतर उनको निर्बल कर देवे. और इस प्रकार योगिगनी से प्राप्त ज्ञान और वैरग्य के अभ्यास से इन शत्रुओ को निर्बल करके, जीतकर परम सुख ऐस्वर्य को प्राप्त होवो .
ऋग्वेद: 1 /8 /5 /:भावार्थ: क्या करता है वह परमात्मा? सभी देवता जड़ है, इनकी अपनी कोई शक्ति नही, लेकिन सभी कार्य करते दिखाई देते है. इन सभी देवताओं की शक्ति का आधार परमेस्वर है. वह परमेस्वर ही सूर्य के प्रकाश द्वारा इस मूर्तिमान संसार को प्रकाशयुक्त करता है. वह अनंत गुणों वाला है. उसका अत्युत्तम स्वभाव है. वह अतुल सामर्थ्य युक्त वाला और अत्यंत श्रेष्ठ है. सब जगत की रक्षा करने वाला, न्याय की रीती से दुस्टो को दंड देने वाला है. ऐसे उक्त गुणों वाले परमेश्वर की सहायता से ही हम अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त करते है. हमारी इन विजयो में उसी परमेस्वर की महिमा तथा बल है.


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Thursday, May 14, 2015

# यज्ञ में हिंसा का विरोध###### जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है कि यज्ञ में पशु वध किया जाता...

# यज्ञ में हिंसा का विरोध######
जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है
कि यज्ञ में पशु वध किया जाता है, वैसा बिलकुल
नहीं है | वेदों में यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म या एक
ऐसी क्रिया कहा गया है जो वातावरण को अत्यंत शुद्ध
करती है |
अध्वर इति यज्ञानाम – ध्वरतिहिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः…
…….निरुक्त २।७
निरुक्त या वैदिक शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र में यास्काचार्य के अनुसार
यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है | ध्वर का मतलब है
हिंसा सहित किया गया कर्म, अतः अध्वर का अर्थ हिंसा रहित कर्म
है | वेदों में अध्वर के ऐसे प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं |
महाभारत के परवर्ती काल में वेदों के गलत अर्थ किए
गए तथा अन्य कई धर्म – ग्रंथों के विविध
तथ्यों को भी प्रक्षिप्त किया गया | आचार्य शंकर वैदिक
मूल्यों की पुनः स्थापना में एक सीमा तक
सफल रहे | वर्तमान समय में स्वामी दयानंद
सरस्वती – आधुनिक भारत के पितामह ने
वेदों की व्याख्या वैदिक भाषा के
सही नियमों तथा यथार्थ प्रमाणों के आधार पर
की | उन्होंने वेद-भाष्य, सत्यार्थ प्रकाश,
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा अन्य
ग्रंथों की रचना की | उनके इस साहित्य से
वैदिक मान्यताओं पर आधारित व्यापक सामाजिक सुधारणा हुई
तथा वेदों के बारे में फैली हुई भ्रांतियों का निराकरण हुआ |
आइए,यज्ञ के बारे में वेदों के मंतव्य को जानें -
@@@@@@अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परि भूरसि
स इद देवेषु गच्छति…………ऋग्वेद १ ।१।४
हे दैदीप्यमान प्रभु ! आप के द्वारा व्याप्त हिंसा रहित
यज्ञ सभी के लिए लाभप्रद दिव्य गुणों से युक्त है
तथा विद्वान मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया गया है | ऋग्वेद
में सर्वत्र यज्ञ को हिंसा रहित कहा गया है इसी तरह
अन्य तीनों वेद भी वर्णित करते हैं | फिर
यह कैसे माना जा सकता है कि वेदों में हिंसा या पशु वध
की आज्ञा है ?
यज्ञों में पशु वध की अवधारणा उनके (यज्ञों ) के
विविध प्रकार के नामों के कारण आई है जैसे अश्वमेध यज्ञ, गौमेध
यज्ञ तथा नरमेध यज्ञ | किसी अतिरंजित कल्पना से
भी इस संदर्भ में मेध का अर्थ वध संभव
नहीं हो सकता |
यजुर्वेद अश्व का वर्णन करते हुए कहता है -
@@@@@@इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं
वाजिनेषु……..यजुर्वेद १३।४८
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले तथा बहुत से पशुओं में अत्यंत
वेगवान प्राणी का वध मत कर |अश्वमेध से अश्व
को यज्ञ में बलि देने का तात्पर्य नहीं है इसके
विपरीत यजुर्वेद में अश्व को नही मारने
का स्पष्ट उल्लेख है | शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य
के लिए आया है | मेध अर्थ वध नहीं होता | मेध शब्द
बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त करता है | प्रकारांतर से
उसका अर्थ मनुष्यों में संगतीकरण
का भी है | जैसा कि मेध शब्द के धातु (मूल ) मेधृ -सं -
ग -मे के अर्थ से स्पष्ट होता है |
@@@@@राष्ट्रं वा अश्वमेध:
अन्नं हि गौ:
अग्निर्वा अश्व:
आज्यं मेधा:…………..(शतपथ १३।१।६।३)
स्वामी दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश
में लिखते हैं :-
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित
यज्ञ ही अश्वमेध यज्ञ है | गौ शब्द का अर्थ
पृथ्वी भी है |
पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए
समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है | ” अन्न, इन्द्रियाँ,किरण
,पृथ्वी, आदि को पवित्र रखना गोमेध |” ” जब मनुष्य
मर जाय, तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह
करना नरमेध कहाता है | ”
३. गौ – मांस का निषेध
वेदों में पशुओं की हत्या का विरोध तो है
ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र
आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है | यजुर्वेद में गाय
को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए
गौ हत्या को वर्जित किया गया है |
@@@@@@घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने
मा हिंसी:…………यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार |
@@@@@आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु………ऋग्वेद ७ ।५६।
१७
ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य
हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड
का विधान करता है |
@@@@@@सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं
भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्
ती……..ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में
नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध
जल के सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान
और ऐश्वर्य से युक्त हों |वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के
पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और
अदिति का भी समावेश है | निघण्टु के भाष्यकार यास्क
इनकी व्याख्या में कहते हैं -अघ्न्या – जिसे
कभी न मारना चाहिए | अहि – जिसका कदापि वध
नहीं होना चाहिए | अदिति – जिसके खंड
नहीं करने चाहिए | इन तीन शब्दों से यह
भलीभांति विदित होता है कि गाय
को किसी भी प्रकार से पीड़ित
नहीं करना चाहिए | प्राय: वेदों में गाय
इन्हीं नामों से पुकारी गई है |
=========
उपरोक्त सबूतों से यह शीशे की तरह
स्पष्ट है कि…….हमारे वेदों में ना सिर्फ गौ हत्या निषेध
किया गया है ….. बल्कि…. यज्ञों में
किसी भी प्रकार के वध एवं
बलि को भी निषेध किया गया है…!!
क्या इतने सबूतों के बाद भी किसी को कुछ
कहना है….????????
अगर फिर भी …. किसी सज्जन
अथवा दुर्जन को कुछ कहना है तो…. उनके तथ्यों का हार्दिक
स्वागत है …. लेकिन, केजरीवाल सरीखे
अनर्गल प्रलाप कर रायता फ़ैलाने वाले को …. बेझिझक ब्लॉक कर
दिया जायेगा …!!
जय महाकाल…!!!
नोट : मुस्लिमों और सेक्यूलरों को एक बात अच्छे से समझ
लेनी चाहिए कि…… “”“हिन्दू सनातन धर्म
रूपी हाथी”“” चाहे
कितना भी छोटा क्यों ना हो जाए….. वो ….“” इस्लाम .
ईसाइयत , बुद्धिज्म सरीखे ….. कुत्ते-बिल्लियों"“ से
कई गुणा बड़ा ही रहेगा….!!

मित्र अश्वमेघ यग्य का जो नाम आया ये हिमालय मे पायी जाने वाली एक औशधि का नाम है अठर्ववेद और धन्वन्तरी मे लिखा है सुश्रुत सन्हिता मे भी है


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परमात्मा के मुख्य गुण 1. उसका अस्तित्व है । 2. वह चेतन है । 3. वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है...

परमात्मा के मुख्य गुण

1. उसका अस्तित्व है ।
2. वह चेतन है ।
3. वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है ।
4. वह निराकार है ।
5. वह अपरिवर्तनीय है ।
6. वह सर्वशक्तिमान है ।
7. वह न्यायकारी है ।
8. वह दयालु है ।
9. वह अजन्मा है ।
10.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता ।
11. वह अनंत है ।
12. वह सर्वव्यापक है ।
13. वह सब से रहित है ।
14. उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है ।
15. वह अनुपम है ।
16. वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है ।
17. वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है ।
18. वह सब कुछ जानता है।
19. उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है
20. उसको किसी का भय नहीं है ।
21. वह शुद्धस्वरूप है ।
22. उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट) नहीं है । उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।
एक मात्र वही उपासना करने के योग्य है, अन्य किसी की सहायता के बिना।
यही एक मात्र विपत्तियों को दूर करने और सुख को पाने का पथ है ।"“
ओउम् धन्यवाद 🙏 🙏 🙏


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सभी धर्मों का संयुक्त अधिवेशन (भविष्य पुराण) ...

सभी धर्मों का संयुक्त अधिवेशन
(भविष्य पुराण)
……………..
प्रस्तुति-डा मुमुक्षु आर्य

एक बार एक राजा ने सभी धर्मों के विद्वानों की सभा बुलाई और उन्हें अपने अपने धर्म की श्रेष्ठता बताने को कहा -

पण्डित-तंत्र,पुराण,अवतार,मूर्ति पूजा,तीर्थ यात्रा,व्रत आदि में श्रद्धा रखने से मुक्ति हो जाती है|
हिन्दु धर्म ही सनातन है,हमारे तीलक छापे से यमराज भी डरता है,हमारे देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा में ही सबका कल्याण है|

वेदान्ती-हम साक्षात ब्रह्मा हैं,जगत सब मिथ्या है,जीव भाव छोडने से मुक्ति हो जाती है|

जैन साधु-जिन धर्म के बिना सब धर्म खोटा,जगत का कर्ताअनादि
ईश्वर कोई नहीं,जगत अनादि काल से वैसे का वैसा है और बना रहेगा|हमारे चौबिस तीर्थंकरों की मूर्तियां बना कर पूजने में ही मुक्ति है|

पादरी-बिना ईसा पर विश्वास के पवित्र होकर कोई मुक्ति को नहीं पा सकता,ईसा ने सबके प्रायश्चित के लिए अपने प्राण देकर दया प्रकाशित की है,राजन तू हमारा चेला हो जा|

मौलवी-लाशरीक खुदा,उसके पैगम्बर और कुरान शरीफ के माने बिना कोई निजात नहीं पा सकता,जो इस मजहब को नहीं मानता वह बाजिबलकातल्के के है|

ऐसे ही कबीर,नानक,दादू,,राधा स्वामी,निंरकारी,शैव,वैष्णव,ब्रह्मकुमारी आदि मत वालों ने अपने अपने मत की बडाई की|यह सब सुन राजा को निश्चय हुआ कि ये सब कुशल दुकानदार की तरह अपना अपना माल बेच रहे हैं|राजा ने सबसे प्रश्न किया कि हिंसा न करना,सदैव सत्य बोलना,चोरी न करना,असहायों की मदद करना,संयम मे रहना,ईश्वर को कण कण में मानना,अपनी अन्तरात्मा के विरुद्ध कोई काम न करना,जलवायु को शुद्ध रखना सत्य सनातन धर्म है या नहीं ?
सभी ने एक मत से कहा कि हां ये सब धर्म है| पुन: राजा ने प्रश्न किया कि ये सब धर्म है तो इतने धर्म क्यों बना रखे हैं ??
वे सब बोले जो ऐसा प्रचार करें तो हमको कौन पूछे ?
ऐसा उतर सुन राजा ने सब पाखण्डियों को अपनी प्रजा को गुमराह करने के कारण बन्दी बना लिया और उक्त सत्य धर्म की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी|सब कथित धर्म स्थलों को धर्म शिक्षा,शस्त्र शिक्षा आदि का केन्द्र बनाने का आदेश दे दिया|


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मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पि: । -ऋग्वेद 8/48/14 भावार्थ - ...

मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पि: ।
-ऋग्वेद 8/48/14
भावार्थ -
निद्रा और बकवास हम पर शासन न करे।


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विदुरजी ने विद्यार्थिओं के आठ दोष गिनाए हैं आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठीरेव चा । स्तब्धता...

विदुरजी ने विद्यार्थिओं के आठ दोष गिनाए हैं

आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठीरेव चा ।
स्तब्धता चाभिमानित्वं तथात्यागित्वमेव च ।
एते वा अष्ट दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थीनं मता: । ।

अर्थ -
आलस्य, मद,मोह,चपलता, व्यर्थ की बातें कहना व सुनना, पढते पढते रूक जाना, अभिमानी,और अत्यागी होना ।ये आठ दोष विद्यार्थिओं मे होते हैं

विद्यार्थी को अंग्रेजी में student कहते हैं जिसका अर्थ इस तरह है ।

S- Studious- खूब पढने वाला
T- truthful- सत्यवादी
U- unique - अद्वितीय
D-diligent - उद्योगी, परिश्रमी
E- enthusiastic -उत्साही
N- noble - आर्य -श्रेष्ठ
T- thoughtful - विचारशील ।

जिसमे ये सात गुण है, वही वस्तुतः विद्यार्थी है
इन गुणों को जीवन मे धारण करके सच्चे विद्यार्थी बनो ।


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आर्यसमाज एक कडवी दवाई है बिना इसे पिये समाज से अंधश्रद्धा व अंधविश्वास रूपी बुखार को समाप्त नही किया...

आर्यसमाज एक कडवी दवाई है बिना इसे पिये समाज से अंधश्रद्धा व अंधविश्वास रूपी बुखार को समाप्त नही किया जा सकता है । आर्यसमाज के सिद्धान्त ओर कार्य ही हमारे राष्ट्र को समाज मे व्याप्त पाखंड रूपी महामारी से बचा सकते हैं ओर पुनः वैदिक चेतना ला सकते हैं ।
ओउम् आओ आर्य बने ।
पुनः वैदो की ओर लोटे ।🙏🙏🙏🙏


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हे वेद की ऋचाओं को प्रगट करने वाले प्रभो ! यह सूर्य,चांद और तारे आपके राज्य की पताकाएं हैं,संसार की...

हे वेद की ऋचाओं को प्रगट करने वाले प्रभो ! यह सूर्य,चांद और तारे आपके राज्य की पताकाएं हैं,संसार की समस्त बुराई और भलाई को जानने के लिए हमारे मन में भी वेद की ऋचाओं का प्रकाश कर दीजिए |


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arhana Taj आर्यो के आदि देश पर विवाद क्यों? हमारे इतिहासकार ऐसा क्यों लिखते हैं कि हम तो...

arhana Taj
आर्यो के आदि देश पर विवाद क्यों?
हमारे इतिहासकार ऐसा क्यों लिखते हैं कि हम तो ठहरे
विदेशी…देशभक्ति क्या दिखाएंगे?
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे,
सुरतरूवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालम्।
तदपि तव गुणानामीश ! पारम् न याति।
अर्थात् कज्जलगिरि की स्याही समुद्र के पात्र में घोली
गयी हो, कल्पवृक्ष की शाखा की लेखनी हो, कागज पृथ्वी
हो और मां सरस्वती स्वयं लिखने वाली हो, तथापि हे आर्य
मां। तुम्हारे गुणों का वर्णन कर पाना अशक्य एवं असंभव है।
इतिहास का शाब्दिक अर्थ होता है ऐसा ही हुआ है। सच्चा
इतिहास बतलाता है कि ईश्वर कभी किसी मनुष्य किसी
देश अथवा किसी मनुष्य समूह की अधोगति तब तक नहीं
करता जब तक कि मनुष्य, देश व जाति अज्ञानी तथा
कुकर्मी स्वयं न बन जाए। शुभकर्म का फल आत्मीय तथा
सामाजिक आरोग्यता, बल, बुद्धि, सुख, अभ्युदय व देश
स्वतंत्रता और दुष्ट कर्मो का फल आत्मीय (निज की) तथा
सामाजिक रोग, दुर्बलता, दुःख या दरिद्रता व देश की
पराधीनता है। इतिहास गवाह है कि जब तक किसी मनुष्य
विशेष या साधारण ने तथा जनमानस ने पूर्वकाल में कोई भी
राजनीति, धर्म संबंधित आदि भूल की, तो उसको या उनको
फल भोगना पड़ा।
हम भारतवर्ष की संतान हैं। हमारे पूर्वजों के कार्यकलापों के
कारण ही हमारे इतिहास का निर्माण हुआ है। जब इतिहास
को हमारे पूर्वजों ने निर्मित किया है तो अपना इतिहास
लिखने का अधिकार हमको ही है, न किस विदेशी
विद्वानों को। राम-रावण की ऐतिहासिक लड़ाई को
विदेशी जन कवि की कल्पना मानते हैं और हमारे पूर्वज
आर्यों को कहते हैं कि वे भारत में बाहर से आये हैं। जब हमारी
स्मृति में पृथु हैं, जिसने पृथ्वी को गौरवान्वित किया, हम
मनु को जानते हैं, जिन्होंने मानव को सुसंस्कृत बनाया, हम
सृष्टि संवत को भी जानते हैं, लेकिन हमारी स्मृति में यह
क्यों, नहीं कि हम भारतीय नहीं हैं ? हमारे पूर्वज आर्य कहीं
बाहर से आये हैं। हे आर्यों की सन्तान। मेरे देश के इन मासूम
बच्चों का क्या होगा ? जिन्हें पढ़ाया जाता है कि आपके
पूर्वज आर्य घुमक्कड़ थे, ग्वाले थे, बाहर से आये, अतः यह देश
आपका नहीं है, तो इस बारे में आपकी राय क्या होगी
नष्टे मूले नैव फलं न पुष्पम्
जिस देश की सभ्यता एवं संस्कृति को मिटाना हो तो उस
देश का इतिहास मिटा दो। स्मारक, साहित्य तथा
वास्तविक संपत्ति चरित्र को मिटा दो। संसार के नक्शे से
फिर वह देश स्वतः ही मिट जाएगा।
अश्लील साहित्य की सार्वजनिक स्थानों पर बिक्री की
खुली छूट, चित्रहार, गंदी फिल्में, गान्धर्व, पैशाच, राक्षस
आदि म्लेच्छ विवाह की जिस राष्ट्र में खुली छूट हो, उस देश
की सभ्यता व संस्कृति स्वतः नष्ट हो जाएगी। इसी तरह
विदेशी जनों पाश्चात्यता के गुलाम भारतीयों ने भारतवर्ष
का नाश करने के लिए, भारत के स्वाभिमान व सभ्यता
संस्कृति को नष्ट करने के लिए निम्न उपाय निकाल डाले।
आर्यों का आदि देश मध्य एशिया मानकर, भारत को अनेक
देशों का उपमहाद्वीप मानकर, वास्को-डि-गामा के आगमन
से भारत के इतिहास का श्रीगणेश करके, जैसे कि उसके पहले
भारत कहीं खो गया था, जो उसे खोज निकाला ? मिथ्या
वेद भाष्य करके जैसे राष्ट्रीय अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद्
की प्राचीन भारत नामक पुस्तक में है :-
1. आर्यों का जीवन स्थायी नहीं था।
2. ऋग्वेद के दस्यु संभवतः इस देश के मूल निवासी थे।
3. हड़प्पा संस्कृति का विध्वंस आर्यों ने किया।
4. अथर्ववेद में भूत प्रेतों के लिए ताबीज।
5. पशुबलि के कारण बैल उपलब्ध नहीं।
भला इन षड्यंत्रों से भारत को कब तब बचा पायेंगे ?
राष्ट्रीय स्वदेशाभिमान, स्वाभिमान, भारतीय सभ्यता-
संस्कृति को कैसे सुरक्षित रखा जा सकेगा ? इतिहास एक
ऐसा अगाध और अपार विषय है कि किसी भी ऐतिहासिक
सिद्धांत के विषय में यह कह देना कि बस, यही परम सत्य है,
बड़े दुस्साहस का काम है, क्योंकि इतिहास के अन्वेषण का
कार्य जारी है और आगे भी जारी रहेगा। कारण सहित
कार्य को दिखाने वाला ही पूर्ण इतिहास होता है।
इतिहास को बुद्धि से भी परखकर पढ़ना चाहिए, क्योंकि
इतिहास में झूठी कथाएं भी हो सकती हैं तथा इतिहास में
कई सच्चे वाक्य आश्चर्यजनक भी होते हैं। जैसे प्राचीनकाल में
आज से अधिक विज्ञान था।
विदेशियों ने हमारे इतिहास को मोम का पुतला बना
दिया है। जिधर चाहते हैं खींच ले जाते हैं। पश्चिमी
इतिहासविदों और विद्वानों यथा म्योर, एलफिंस्टन,
मनसियर डेल्बो, पोकाक, विलियम कार्नेट डा. जार्ज
पोलेस, डेल्स एवं एलिजाबेथ राल्स आदि ने भी यह
रहस्योद्धाटन किया है कि मार्टिन व्हीलर, स्टुअर्ट पिगट
और जान मार्शल जैसे विद्वानों ने भी तथ्यों को तोड़ा-
मरोड़ा है। अतः शोधर्पूर्ण गंभीरता से तर्कपूर्वक अपने
इतिहास पर विचार करना हम सभी भारतवासियों का
श्रेष्ठ कर्त्तव्य है, ताकि हमारी सभ्यता एवं संस्कृति इस
तामसी विचारों वाले संसार में, जो कीचड़ से भी बद्तर है, में
कमल की भांति खिल उठे।
महाभारत में आर्यो का आदि देश भारत के सिवाय और कुछ
नहीं लिखा।
अत्र ते कीर्तयिष्यामि वर्ष भारत भारतम्।
प्रियमिन्द्रस्य देवस्य मनोवैवस्वतय च।।
पृथोस्तु राजन्वैन्यस्य तथेक्ष्वाकार्महानत्मन।
ययातेरम्बरीषस्य मान्धातुर्नहुषस्य
तथैव मुचुकुन्दस्य शिषैरौशनिरस्य।
ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा।
कुशिकस्य च दुर्धर्ष गाधेश्चैव महात्मनः।
सोमकस्य च दुर्धर्ष दिलीपस्य तथैव च।।
अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीय साम्।
सर्वेषामेव राजेन्द्रप्रियं भारत भारतम्।।
महाभारत, भीष्म पर्व अ. 9 श्लोक 5-9
पुस्तक: हमारी विरासत की भूमिका से
9 hrs · Edited · Public
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नरेश खरे and 116 others like this.
Arya Ajay
हम आर्यव्रत के वासी हैं
Like · 4 · Reply · Report · 9 hours ago
Farhana Taj
ji
Like · 4 · Reply · Report · 9 hours ago
Arya Ajay
लेकिन हमारे इतिहास को बिगाड़ कर हमें ही पढाया गया
और हमारे अपने ही हमारे दुश्मन हो गये,वो ही हमें बाहर से
आए हुए कहते हैं, क्या विडंबना है
Like · 3 · Reply · Report · 9 hours ago
Prashant Rana
दलित शब्द का कैसे उदय हुआ
Like · Reply · Report · 9 hours ago
Vivek Kumar Anand
Right per murkh samajhte hi nahi
Like · Reply · Report · 9 hours ago
ईश्वरदास धुसिया
सत्य है।
Like · Reply · Report · 7 hours ago
Arya Kantilal
आरयो की सही परीभाषा परमाणो के साथ पेरसीत की है
पषचिमी लेखको ने आरय लोगो को बदनाम कर ने मेकोई
कसरछोडी नही है पुजय बहन फरहानाजी कोबहोत-२
घनयावाद
Like · Reply · Edit · 18 minutes ago
Hemant Bunty
styen dharyate prithbi satyen tapte ravi Satyen bati
wayush cha sarbam satyen pratithitam
Like · Reply · Report · 17 minutes ago
Hemant Bunty
hm or hmara dharm saty pr aadharit h isliye aise
mithyak baton ko hme grahan hi nhi karna chahiye
Like · Reply · Report · 15 minutes ago
Write a commentफोरववबयआरय कानतूीलाल भुज– गुजरात


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हे ईश्वर ! आपके ध्यान से जो विवेकरूपी धन मिलता है,वह हमारी रक्षा करने वाला होता है,निश्चित ही वह...

हे ईश्वर ! आपके ध्यान से जो विवेकरूपी धन मिलता है,वह हमारी रक्षा करने वाला होता है,निश्चित ही वह दुष्ट शत्रुओं(काम,क्रोध,लोभ,मोह आदि)को निर्बल बना कर नष्ट कर देता है|
………………………………..
हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर! मैं आपको नमस्कार कर रहा हूं, मेरे इस जीवन को सदगुणों से भर दो,मैं ओजस्वी बनने के लिए आपकी स्तुति करता हूं, आप अपने स्वाभाविक ज्ञान, बल और क्रिया द्वारा हमारे शत्रु रुप काम,क्रोध आदि को नष्ट करो|
……………………………….
मनुष्य इस वीर्य को कामाग्नि में खर्च करे,चाहे इससे ऊपर उठ कर जठराग्नि में खर्च करे, चाहे इससे ऊपर उठ कर ज्ञानाग्नि में खर्च करे या इससे भी ऊपर उठ कर योगाग्नि में खर्च करे |


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मन बुद्धि आदि सतरह प्रकार के तत्वों से युक्त सूक्ष्म शरीर देह त्याग्ने के उपरान्त भी आत्मा के साथ...

मन बुद्धि आदि सतरह प्रकार के तत्वों से युक्त सूक्ष्म शरीर देह त्याग्ने के उपरान्त भी आत्मा के साथ रहता है,उसी पर जन्म जन्मान्तरों के संस्कार व कर्माशय रहता है जिसके आधार जीव को ईश्वर नया जन्म देता है| मन जड है आत्मा को प्रदान किया हुआ एक यन्त्र है,आत्मा चेतन,अल्पज्ञ व एकदेशी है अच्छे बूरे कर्म करने को स्वतन्त्र है परन्तु ईश्वर प्रदत्त फल को भोगने में परतन्त्र है|


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मै महेन्द्र पाल आर्य सभी मित्र मण्डली को जानकारी दे रहा हूँ | मैंने जो लिखा है इसपर बहुत से लोगों ने...

मै महेन्द्र पाल आर्य सभी मित्र मण्डली को जानकारी दे रहा हूँ | मैंने जो लिखा है इसपर बहुत से लोगों ने अपना-अपना सुझाव दिया है, पर मै आप लोगो से विनती करना चाहता हूँ, की इसमें किसी के व्यक्तिगत सुझाव की बात नही है | और न मैंने किसी से व्यक्तिगत सुझाव की मांग की, मैंने केवल इतना कहा की मै अकेले अपने आप अबतक जितने भी शास्त्रार्थ किया हूँ जो विश्व में फैलना था वो नही हुआ | ये फेसबुक तक ही सिमित रह गया, अगर किसी संगठन के अधिकारी या किसी संगठन के माध्यम से शास्त्रार्थ की चुनौती उन्हें दी जाये, और उन लोगो के कहने के मुताबिक हम उनसे शास्त्रार्थ करें, तो सम्पूर्ण विश्व के आँगन में भी ये बात फ़ैल जाएगी | यही कारण है की मै संगठन के अधिकारी से कहना चाहा अगर कोई संगठन इस कार्य को अंजाम देने में इच्छा रखते है तो उन लोगो का नंबर दे रहे है 09032104450 , 08179432784 कृपया उनसे भी संपर्क करे और मुझसे भी संपर्क करे महेन्द्र पाल आर्य- 09810797056 | मै सम्पूर्ण आर्य जगत को या हिन्दू संगठन को विश्वास दिला रहा हूँ, की वेद के आगे मै किसी को खाता खोलने ही नही दूंगा | आप लोग देखते रह जायेंगे की मेरे जितने भी शिष्य बनाये हुए है मै उनमें से तीन या पांच को खड़ा करूँगा, जो मेरे इन शिष्यों को हरा देंगे तो मै अपने आप को समर्पित कर दूंगा अगर हमारे शिष्यों को हरा दे तो | कोई भी इसाई हो या मुस्लमान सबके लिए यह खुली चुनौती है | अगर हम सब हार गये तो हम तो समर्पित कर देंगे अपने को और अगर वो हर गये तो उन्हें भी हमारे सत्य सनातन वैदिक धर्म को स्वीकार करना होगा |
प० महेन्द्र पाल आर्य
21-03-2015


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Wednesday, May 13, 2015

३० वैशाख 13 मई 15 😶 “ वह इन्द्र ” 🌞 🔥 ओ३म् इन्द्रो अंग्ड महद् भयमभी षदप...

३० वैशाख 13 मई 15
😶 “ वह इन्द्र ” 🌞

🔥 ओ३म् इन्द्रो अंग्ड महद् भयमभी षदप चुच्यवत् । स हि स्थरो विचषरणि ॥🔥
ऋ० २ । ४१ । १० ;

शब्दार्थ:– हे प्यारे !
इन्द्र परमेश्वर तो सामने आये हुए बड़े भय को भी विनष्ट कर देता है । वह ही निश्चयपूर्वक स्थिर है,अचल है, शाश्वत है और सब जगत् को ठीक-ठाक देखनेवाला है ।

विनय :- हे प्यारे !
तू क्यों घबराता है ? तेरे सामने जो भय उपस्थित है उससे बहुत बड़े भय और बहुत भारी विपतिया मनुष्य पर आ सकती है और आती है, परन्तु हमारे परमेश्वर उन सबको क्षण में टाल सकते है और टाल देते है। उसके सामने, उनके मुकाबले में आये हुए महान-से-महान भय पलभर भी नही ठहर सकते ।
हे प्यारे !
तू देख की इस संसार में वही इन्द्र ही स्थिर वस्तु है । वही सत्य है,सनातन है,अटल,अच्युत है,कभी नष्ट ना होनेवाला है । शेष सब-कुछ-सभी कुछ क्षणभंगुर है, विनश्वर है,अशाश्वत है और चला जानेवाला है । यही एक महासत्य है जिसे सिखाने के लिए संसार में चौबीस घंटो की घटनाए हो रही है ।
हे मनुष्य !
तू इस महासत्य पर विशवास कर और निर्भय हो जा । वास्तव में संसार के दुःख, भय, कलेश संकट टल जानेवाले है,नश्वर है,कियुकि ये नश्वर वस्तुओ द्वारा और अज्ञान द्वारा बने है ।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
सत्य सनातन वैदिक धर्म की
………………जय

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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२९ वैशाख 12 मई 15 😶 “ वह इन्द्र ” 🌞 🔥 ओ३म् इन्द्र इत्रो महानां दाता...

२९ वैशाख 12 मई 15
😶 “ वह इन्द्र ” 🌞

🔥 ओ३म् इन्द्र इत्रो महानां दाता वाजानां नृतु: । महाँ अभिज्ञ्वा यमत् ॥🔥
ऋ० ८ । ९२ । ३ ; साम० उ० १ । २ । ९

शब्दार्थ:– इन्द्र ही हमे तेजों और बलों का देनेवाला तथा नचानेवाला वह महान् है और अभिप्राय को जाननेवाला, अन्तर्यामी होता हुआ इस जगत् को व्यवस्था में बांधे हुए है।

विनय :- इस संसार के जो तेजस्वी महापुरष हजारो-लाखो के नेता होकर बड़े-बड़े काम कर रहे है, उनमे उस तेज और महाबल को उत्पन करनेवाले इन्द्र परमेश्वर ही है । इस संसार में जो नाना आन्दोलन उठते और दबते रहते है,कभी कोई लहर चलती है, कभी कोई तथा इन आन्दोलन और लहरों में उस समय के सब मनुष्य बलात् खिंचे चले जाते है,यह सब खेल खिलानेवाले और नाच नाचनेवाले भी इन्द्र परमेश्वर ही है । ये इन्द्र हम सबको अपना थोडा या बहुत तेज और बल दे रहे है और उस द्वारा नाच नचा रहे है । आज जो हममे तेजस्वी है,वह कभी कुछ दिनों में सर्वथा निस्तेज हो जाता है तथा एक तुछ पुरष कुछ दिनों में यश्विता के शिखर पर पहुचा देखा जाता है ।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
सत्य सनातन वैदिक धर्म की
………………जय

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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ईसाई पादरियों की चालबाजियां :- मित्रो ! आप बीती पुरानी बात है, कुछ पादरियों ने अमृतसर के गोल बाग...

ईसाई पादरियों की चालबाजियां :-

मित्रो ! आप बीती पुरानी बात है,
कुछ पादरियों ने अमृतसर के गोल बाग में भिन्न भिन्न असाध्य रोगों को ठीक करने के लिए एक सप्ताह की प्रार्थना सभा का आयोजन किया|दैव योग से मेरा वहां जाना हुआ-क्या देखता हूं कि कई हजार की भीड है,लगभग दस मीटर ऊंचा मंच है,एक पादरी अंग्रेजी में बाईबल से प्रार्थना पढता जा रहा है और दूसरा उसका हिन्दी में अनुवाद करता जा रहा है,कुछ देर बाद मंच से पूछा गया कि जिस जिस का कोई रोग ठीक हो गया हो वह वह मंच पर आ कर बतावे|एक एक कर कुछ लोग आने लगे और भयंकर से भयंकर रोगों के ठीक हो जाने का दावा करने लगे|मुझ से रहा न गया और मंच के पास जाकर निवेदन किया कि आज की प्रार्थना सुन कर मेरा एक पुराना रोग ठीक हो गया है और मैं ब्यान देना चाहता हूं,बहुत मुश्किल से मुझे अनुमति मिली और ब्यान देने के लिए मेरे हाथ में माईक दे दिया गया,मेरा ब्यान कुछ इस प्रकार का था-
‘दोस्तो ! आपको बुद्धु बनाआ गया है,रोगों को ठीक होने का दावा करने वाले लोगों को पैसा दिया गया है,यह सप्ताह भर का कार्यक्रम वास्तव में लोगों को प्रभावित कर ईसाई बनाने के लिए रखा गया है…..'आदि आदि बहुत सारी बातें कह डाली और तब तक माईक बापिस नहीं दिया जब तक मैंने पादरियों का पूरी तरह भांडा फोड नहीं कर दिया|सभा में हो हल्ला होने लगा और मैं ईश कृपा से सुरक्षित अपने घर लौट आया| अगले दिन बजरंग दल व विश्व हिन्दु परिषद् के कुछ नवयुवकों ने मुझे वधाई देते हुए बताआ कि ईसाई पादरी अपना एक सप्ताह का प्रार्थना सभा की आड में ईसाई बनाने का कार्यक्रम छोड कर भाग गए हैं और इस प्रकार का आयोजन स्थान स्थान पर गत कई वर्षों से करते रहते हैं |
एक ओर मात्र बारह वर्ष का हकीकत राय था जिसने गर्दन कटवा दी परन्तु अपना धर्म नहीं छोडा और दूसरी ओर आज के हजारों हिन्दु हैं जो मात्र कुछ लालच में आकर धडाधड ईसाई मुसलमान आदि होते जा रहे हैं !! वास्तव में जब तक हिन्दु पुराणों की गली सडी मान्यताओं का परित्याग कर अपने पूर्वजों भगवान राम व कृष्ण की तरह यज्ञ,योग व वेद को पूरी तरह नहीं अपनाएगा तब तक उसका इसी तरह पतन और पलायन होता रहेगा |अमर शहीद लाला लाजपतराय व पण्डित मदनमोहन मालवीय जी का मानना था कि यदि हिन्दु धर्म को शुद्ध पवित्र और मजबूत बनाना है तो महर्षि दयानंद कृत सत्यार्थप्रकाश को पढना और पढाना होगा |
……………..डा मुमुक्षु आर्य


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विशेष सूचना :- महर्षि दधिची वेद विद्यालय, भदाना फांटा डेह रोड़,नागौर (राजस्थान)341001 प्रवेश...

विशेष सूचना :-

महर्षि दधिची वेद विद्यालय, भदाना फांटा डेह रोड़,नागौर (राजस्थान)341001
प्रवेश प्रारम्भ - मई 2015
शिक्षा - चारों वेद, सम्पूर्ण ज्योतिष, सम्पूर्ण कर्म काण्ड पूजन, भागवत आदि कथा का हिंदी संस्कृत अग्रेजी में संगीतमय अध्ययन ।
अध्ययन तरीका - प्राचीन सतयुग जैसा
शुल्क - नि: शुल्क भोजन,आवास,अध्ययन ।
अवधि - 6 वर्ष तक
आयु - 06 से 16 वर्ष तक

संम्पर्क सूत्र :-डॉ महेश दाधीच
दधिमथि ज्योतिष कार्यालय
नया तेलीवाडा नागौर ।
Www. mdvvs.com
Shrimdvvs@gmail.com
वात्सव्प नम्बर - +91-9982298062
फोन नंबर +91-9462337217

सम्पर्क केवल रविवार 10 am से 7:00pm तक ।

सभी से निवेदन है
की सभी अपने ग्रुप में अधिक् से अधिक इसे सेर करे ।


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गुरु दक्षिणा न देने वाले दो महान गायक प्रस्तुति: फरहाना ताज एक बालक संगीत सीखना चाहता था,...

गुरु दक्षिणा न देने वाले दो महान गायक

प्रस्तुति: फरहाना ताज

एक बालक संगीत सीखना चाहता था, हिन्दुस्तान के
बड़े-बड़े उस्तादों से संगीत की शिक्षा
ली, लेकिन उसके स्वर में सरस्वती विराजमान न हो
सकी, किसी ने कहा असली
संगीत सीखना है तो किसी आर्य
समाजी भजनी से सीखो। बेचारा दक्षिण
भारत से हजारों मील का सफर करके जालंधर आर्य समाज मंदिर
में पहुंचा, क्योंकि किसी ने बताया था कि वहां एक
भजनी मंगतराम रहते हैं। मंगतराम ने उसे कई वर्षो तक
संगीत की साधना कराई और गुरु दक्षिणा में मांगा,
‘‘तुम आर्य समाज का प्रचार करोगे।’’
वह गायक बहुत प्रसिद्ध हुआ, उसे भारत रत्न भी मिला,
लेकिन उसने बडा आदमी बनने के बाद कभी
भी आर्य समाज का प्रचार नहीं किया। वे थे
भीमसेन जोशी।
एक पिता की इच्छा थी कि अपने पुत्र को आर्य
समाज का भजनी बनाएगा, सारी दुनिया को आर्य
समाजी बना डालेगा। और उसने एक नहीं कई कई
आर्य समाजी भजनियों से अपने पुत्र को संगीत
की शिक्षा दिलवाई, लेकिन संगीत सिखकर वह
बहुत बड़ा आदमी बन गया। भजन तो बहुत गाए, लेकिन आर्य
समाज के लिए नहीं। वे हैं अनूप जलोटा। आर्य समाज, के
वार्षिकोत्सव में 10 वर्ष पहले जलोटा जी को सुना था सो बार
जन्म लेंगे सो बार फना होंगे, अहसान दयानंद के फिर न भी न
अदा होंगे….अदा कर भी नहीं पाएगा बेचारा…
दोनों हस्तियों ने कई सालों तक आर्य समाज के चंदे से भोजन खाया,
वहीं के बाथरूम में हगा मूता धूका और जब यज्ञ करके
वातावरण शुद्ध करने की बारी आई तो आर्य समाज
को भूल गए।


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🚩🙏वेद और कुरान में अंतर 🙏🚩 मित्रो कई बार आपने जाकिर नायक या किसी और मुसलमान को ये कहते सुना होगा...

🚩🙏वेद और कुरान में अंतर 🙏🚩

मित्रो कई बार आपने जाकिर नायक या किसी और मुसलमान को ये कहते सुना होगा
कि कुरान अल्लाह का दिया है
कुरान ईश्वर कृत है

आज मै आप सबको इसकी वास्तविकता से अवगत कराता हूँ
भारतीयो का मूल ग्रन्थ वेद है और मुस्लिमो का कुरान अब इनमे क्या अंतर है ये जानिए

1 वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो की सृष्टी के आरम्भ में 1अरब 96 करोड 8 लाख 53 हजार 116 वर्ष पूर्व ईश्वर ने 4 ऋषियो के हृदय में प्रकाशित किया
जबकि कुरान 1400 वर्ष पहले अरब देश के किसी मोहम्मद ने रचा और खुदको पैगम्बर घोषित किया

2 वेद सृष्टि के आदि में जैसे थे वेसे ही आज भी है एक अक्षर भी नही बदला क्योकि ये ऋषिओ ने परम्परा से कण्ठस्थ कर के सुरक्षित रखा
जब की कुरान को कई बार बदलना पड़ा । वेदप्रकाश जी जो की पहले मुस्लिम मौलवी थे कुरान परिचय नामक ग्रन्थ लिखा है इसमें उन्होंने साफ लिखा है की कुरान कई बार बदला है एक बार तो कुरान को पत्तियो पर लिखा था तो उसे बकरी खा गई थी बाद में फिर से लिखा

जिस किसी सज्जन को यह पुस्तक पढ़ना हो आर्यसमाज कानड़ में मुझसे सम्पर्क कर ले

3 क्या ईश्वर का ज्ञान परिवर्तित होता रहता है की जो पहले तौरेत दी फिर इंजील दी और बाद में कुरान दी
कुरान में भी कुछ आयते मन्सूख़ हो जाती है ऐसा क्यों जबकि वेद यथावत बने हुए है

4 वेद मानवमात्र के लिए हे जबकि कुरान सिर्फ मुस्लिम के लिए

5 वेद में मानवता की बात है जबकि कुरान में दूसरे धर्म वालो को मार डालने के आदेश है

6 वेद में ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी बताया है जबकि कुरान में एक देशी जो सातवे आसमान पर एक तख्त जिसे अर्श कहते है पर बेठा है और वह साकार है
पता नही वहाँ क्या करता है

7 वेद में एक ईश्वर की उपासना की बात कहि है जबकि कुरान में ईश्वर कहने को तो एक ईश्वर की बात हे पर रसूल को जो नही मानता उसे खुदा ज़न्नत नही देगा

8 वेद का ईश्वर सर्वज्ञ है सब जनता है पर कुरान का ख़ुदा सब नही जानता उसे कर्मपत्र पड़ने पड़ते है। कुरान में लिखा हे जब सबका हिसाब होगा तब सबके गले में कर्मपत्र रहेंगे।

9 कुरान में बताया हे कि जब सबका न्याय होगा तो तो मुसलमानो के लिए मोहम्मद सिफारिश करेगा तो खुदा उन्हें जन्नत में भेज देगा जबकि वेद के ईश्वर के सामने कोई सिफारश नही चलती है

10 वेद के अनुसार ईश्वर और जीव् के बिच कोई बिचौलिया नही है जबकि कुरान के अनुसार पैगम्बर मोहम्मद को मानना जरूरी है

11 वेद के अनुसार ईश्वर कर्म का फल तत्काल या बाद में या अन्य जन्मों में दे देता है जबकि कुरान का खुदा कयामत तक इंतजार करवाता है तब तक अपनी अपनी पेशी का इंतजार कब्र में ही करना पड़ता है

12 कुरान का ख़ुदा अन्यायी है क्योकि जन्म से किसी को भी अच्छा बुरा धनी निर्धन स्वस्थ रोगी लूला लँगड़ा बना देता है जबकि वेद के अनुसार ये सब पिछले जन्म के फल स्वरूप् होता हे तो ईश्वर न्यायकारी हुआ
जबकि कुरान पुनर्जन्म को नही मानती ।

13 वेदो के अनुसार जीवन का उद्देश्य दुखो से छुट कर मोक्ष के आनंद को प्राप्त करना है जबकि कुरान के अनुसार 72 हूरो से भोग करना शराब की नहरो वाली कल्पित जन्नत को पाना ही उद्देश्य है

14 वेद में सृष्टि की उत्तपत्ति का वैज्ञानिक सिद्धान्त है परमेश्वर प्रकृति जो की अनादि के के कणों सत रज तम से सृष्टि बनाता है जबकि खुदा केवल कुन ऐसा कहता है और जादू से दुनिया बन जाती है
सब जानते है अभाव से भाव उतपन्न नही होता है।

15 वेद के अनुसार ईश्वर जिव और प्रकृति तीनो अनादि है जबकि कुरान के अनुसार केवल खुदा अनादि है
यदि ऐसा हे तो तो खुदा ने संसार क्यों और किसके लिए बनाया

16 वेद के अनुसार किसी भी बात को तर्क की कसोटी पर कस कर ही मानो
तर्क वै ऋषि
जो तर्क करता हो वो ऋषि है
जबकि कुरान में तर्क को हराम माना है अर्थात जो लिखा है वहीँ सही है रसूल पर शंका की तो दण्ड दिया जायेगा फतवा जारी हो जाता है

17 वेद परमात्मा ने स्वयम् ऋषियो के हृदय में दिए क्योकि वह सर्वत्र है जबकि कुरान देने के लिए खुदा ने अपने फ़रिश्ते जिब्राइल को भेजा इसका अर्थ है की खुदा सर्वत्र नही है

मित्रो
अब आप ही विचारिये की कौन सी पुस्तक ईश्वर कृत है ?

मित्रो ये सारी बातें ऋषि दयानंद की कृपा से हमे सत्यार्थ प्रकाश से प्राप्त हुई है
धन्य है ऋषि दयानंद
जो दयानंद न होते तो सब मुस्लिम हो जाते।

🚩सत्य सनातन वेदिक धर्म की जय 🚩
🚩जय श्री राम🚩
धन्यवाद
मुकेश आर्य
आर्यसमाज कानड़
9977481549


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| अजमेर बद्तमीज़ V/S पुष्कर अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच...

|

अजमेर बद्तमीज़ V/S पुष्कर

अजमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर इतनी भीड़ थी कि वहाँ की कोई बैंच खाली नहीं थी। एक बैंच पर एक परिवार, जो पहनावे से हिन्दू लग रहा था, के साथ बुर्के में एक अधेड़ सुसभ्य महिला बैठी थी। उसने सभ्यता से पान की पीक थूक-2 कर प्लेटफार्म पर अपने आस-पास कई चित्र बना दिये थे।

बहुत देर चुपचाप बैठने के बाद जब उससे चुप्पी बर्दाश्त न हुई तो उसने बगल में बैठे युवक से पूछा, “अजमेर के रहनेवाले हैँ या फिर यहाँ घूमने आये हैं?”

युवक ने बताया, “जी अपने माता पिता के साथ पुष्कर में ब्रह्मा जी के मंदिर के दर्शन करने आया था।”

महिला ने बुरा मुँह बनाते हुए फिर पूछा,“आप लोग अजमेर शरीफ की दरगाह पर नहीं गये?”

युवक ने उस महिला से प्रतिउत्तर कर दिया, “क्या आप ब्रह्मा जी के मंदिर गयी थीं?”

महिला अपने मुँह को और बुरा बनाते हुये बोली, “लाहौल विला कुव्वत। इस्लाम में
बुतपरस्ती हराम है और आप पूछ रहे हैं कि ब्रह्मा के मंदिर में गयी थी।”

युवक झल्लाकर बोला, “जब आप ब्रह्मा जी के मंदिर में जाना हराम मानती हैं तो हम क्यों अजमेर शरीफ की दरगाह पर जाकर अपना माथा फोड़ें।”

महिला युवक की माँ से शिकायती लहजे में बोली, “देखिये बहन जी। आपका लड़का तो बड़ा बदतमीज है। ऐसी मजहबी कट्टरता की वजह से ही तो हमारी कौमी एकता में फूट पड़ती है।”

युवक की माँ मुस्काते हुये बोली, “ठीक कहा बहन जी। कौमी एकता का ठेका तो हम हिन्दुओं ने ही ले रखा है।
अगर हर हिँदू माँ-बाप अपने बच्चों को बताए
कि अजमेर दरगाह वाले ख्वाजा मोईनुद्दीन
चिश्ती ने किस तरह इस्लाम कबूल ना करने पर
पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता को मुस्लिम
सैनिकों के बीच बलात्कार करने के लिए
निर्वस्त्र करके फेँक दिया था और फिर किस
तरह पृथ्वीराज चौहान की वीर पुत्रियों ने
आत्मघाती बनकर मोइनुद्दीन चिश्ती को 72
हूरों के पास भेजा थातो शायद ही कोई हिँदू उस
मुल्ले की कब्र पर माथा पटकने जाए
"अजमेर के ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को ९०
लाख हिंदुओं को इस्लाम में लाने का गौरव प्राप्त
है. मोइनुद्दीन चिश्ती ने ही मोहम्मद
गोरी को भारत लूटने के लिए उकसाया और
आमंत्रित किया था… (सन्दर्भ - उर्दू अखबार
"पाक एक्सप्रेस, न्यूयार्क १४ मई २०१२).
अधिकांश मुर्दा हिन्दू तो शेयर/कॉपी-पेस्ट
भी नहीं करेंगे,,धिक्कार है ऐसे हिन्दुओ पर


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Tuesday, May 12, 2015

मैंने गाँधी को क्यों मारा “ ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान {इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी...

मैंने गाँधी को क्यों मारा “ ?
नाथूराम गोडसे का अंतिम
बयान
{इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो
की आँखे
गीली हो गई थी और कई तो
रोने लगे थे एक जज महोदय ने
अपनी टिपणी में लिखा था की
यदि उस समय अदालत
में उपस्तित लोगो को जूरी बनाया जाता और उनसे फेसला
देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से
नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा –सम्मान ,कर्तव्य और
अपने
देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे
अहिंसा के
सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है. मैं कभी
यह
नहीं मान सकता की किसी
आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या
अन्याय पूर्ण
भी हो सकता है। प्रतिरोध करने और यदि संभव
हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना, में एक
धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ। मुसलमान
अपनी मनमानी कर रहे थे। या तो कांग्रेस
उनकी इच्छा के
सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक,
मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये
अथवा उनके
बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और
व्यक्ति के निर्णायक थे. महात्मा गाँधी अपने लिए
जूरी और जज दोनों थे। गाँधी ने मुस्लिमो को
खुश करने के
लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ
बलात्कार किया. गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल
हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो
कांग्रेस
अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ
भरा करती थी .उसीनेगुप्त रूप
से बन्दुक की नोक पर
पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के
सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम
तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के
टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक
तिहाई
भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन
गई.नहरू
तथा उनकी भीड़ की
स्विकरती के साथ ही एक धर्म के
आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे
बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है
किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने
गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला,
जिसे हम
पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध
से
भर गया। मैं साहस पूर्वक कहता हु की
गाँधी अपने कर्तव्य
में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान
का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे
व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो
और कार्यो से
करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश
ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया
नहीं थी जिसके
द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये
मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया…………..मैं अपने
लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं
करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह
नहीं है की इतिहास के
इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में
किसी दिन इसका सही मूल्याकन करेंगे।
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के
नीछे से ना बहे तब
तक मेरी अस्थियो का विसर्जित मत करना।


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शुगर हेतु उपाय(For diabetes) 1- चिरायता 2- गोरखू छोटे भूरे पहाडी 3- जामून गुठली 4- गुडमार 5-...

शुगर हेतु उपाय(For diabetes)
1- चिरायता
2- गोरखू छोटे भूरे पहाडी
3- जामून गुठली
4- गुडमार
5- मेंथी
6- अम्बाहल्दी
7- आसगन्द
8 - निम गुठली
Each 50g.9
9- काली जीरी 25ग्राम
सभी को बारिक पिस कर चुरण बनाले और 1/2चम्मच सुबह खाली पेट बिना कुल्ला किये और 1/2चम्मच सायॅ खाना खाने से एक घटां पहले ले।

आर्य हैल्थ केयर 📞09254222201☎


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किसी ने सच ही कहा है कि जिस देश को बरबाद करना हो सबसे पहले उसकी संस्कृति पर हमला करो और वहाँ की युवा...

किसी ने सच ही कहा है कि जिस देश को बरबाद करना हो सबसे पहले उसकी संस्कृति पर हमला करो और वहाँ की युवा पीढी को गुमराह करो । जो समाज इनकी रक्षा नहीं कर सकता उसका पतन और सर्वनाश निश्चित हो जाता है । हमारे आसपास घटने वाली काफ़ी बातें समाज के गिरते नैतिक स्तर और खोखले होते सांस्कृतिक माहौल की ओर इशारा कर रही हैं, एक खतरे की घंटी बज रही है, लेकिन समाज और नेता लगातार इसकी अनदेखी करते जा रहे हैं । इसके लिये सामाजिक ढाँचे या पारिवारिक ढाँचे का पुनरीक्षण करने की बात अधिकतर समाजशास्त्री उठा रहे हैं, परन्तु मुख्यतः जिम्मेदार है हमारे आसपास का माहौल और लगातार तेज होती जा रही “भूख” ।


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मैं मंदिर विरोधी नहीं हूँ। मंदिरों में शास्र शिक्षा दी जाय। वेद विद्या दी जाय। उपासना की...

मैं मंदिर विरोधी नहीं हूँ।
मंदिरों में

शास्र शिक्षा दी जाय।

वेद विद्या दी जाय।

उपासना की जाय।

अति उत्तम है।


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क्या हम अपना नाम भी भूल गये ?? भाग ७ 📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229) इस से पहले के भागों में हिन्दू...

क्या हम अपना नाम भी भूल गये ??
भाग ७
📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229)
इस से पहले के भागों में हिन्दू शब्द के सिद्धी मे जो प्रमाण तथाकथित मानसिक गुलामी के शिकार हिन्दू द्वारा दिया जाता है उस पर तर्क व प्रमाण के साथ विचार किया गया और हम ने पाया कि “हिन्दू” शब्द हमारी भाषा व संस्कृति की नही है बल्कि विदेशियों द्वारा दिया गया जिसे हम भारतीय अपने सर पे चिपका लिया .
इस भाग मे मै हिन्दू शब्द के वास्तविक अर्थ को विभिन्न प्रमाणो के साथ रखेंगे….

👉हिन्दू दर मुहावरा फारसियां ब मअने दुज़दो रहज़नों ग़ुलाम मे आयद।
अर्थ - हिन्दू शब्द फ़ारसी भाषा के अनुसार
चोर,
डाकू,
रहजन (मार्ग का लुटेरा)
और
ग़ुलाम (दास, बंदी)
के अर्थो में आता है
सन्दर्भ - ग़यास - ग़यास नामी कोष
👉हिन्दू बकसर ग़ुलाम व बन्दह, काफ़िर व तेरा।
अर्थ : हिन्दू का अर्थ ग़ुलाम, कैदी, काफ़िर और तलवार है।
सन्दर्भ - कशफ - कशफ नामी कोष
👉चे हिन्दू हिंदुए काफ़िर चे काफ़िर, काफ़िर रहजन। 
चे रहज़न रहज़ने ईमान
अर्थ :
हिन्दू क्या है ?
हिन्दू काफ़िर है।
काफ़िर क्या है ?
काफ़िर रहज़न है।
रहज़न क्या है ?
रहज़न ईमान पर डाका मारने वाला है।
(सन्दर्भ - चमन बेनज़ीर)
👉 अरबी शब्द कोष करिमुल्लोगात , फारसी शब्द कोष -गयासुल्लोगत, - उर्दू शब्द कोष, फिरोजुल्लोगात - लोगात फिरोजी = अदि में हिन्दू के अर्थ चोर, लुच्चा, लफंगा, शराबी, कवावी, दगाबाज, बदमाश , कालाकाफिर, आदि लिखा हुआ है.
👉 फारसी डिक्सनरी ‘लुघत-ए-किश्वरी’ जो कि लखनऊ मे 1964 मे प्रकाशित किया गया था, के अनुसार हिन्दू शब्द का अर्थ चोर, डाकू, राहजन और गुलाम है.
इसके अलावा दूसरी डिक्सनरी 'ऊई-फिरोज-ऊल-लघात’ भाग १ (पेज ६१५) मे हिन्दू शब्द का अर्थ इस प्रकार है…
तुर्किस मे - चोर, राहजन,लुटेरा.
पारसी मे - गुलाम,बारदा(आज्ञाकारी नोकर), सियाफाम(काला रंग) और काला.
👉फारसी साहित्य मे बहुत जगह “हिन्दू-ए-फलक” शब्द का प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ आकाश का अंधेरा या शनिग्रह होता है.
और सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि हमारे देश के ८वीं सदी से पहले पहले के किसी भी साहित्य मे हमलोगो के लिए हिन्दू शब्द प्रयोग नही हुआ है. लेकिन प्रमाणो से क्या , हिन्दू तो कसम खा लिया है सत्य को नही जानने की .
मै अगले भाग और भी प्रमाण लेकर आऊंगा .आपने पढ़ा इसके लिए धन्यवाद और निवेदन है कि शेयर करके दूसरो को भी पढ़ने व सत्य को जानने का मौका प्रदान करें !
क्रमश :


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🚩|| “मिशन वंदे मातरम”|| http://ift.tt/1E3ZC3T कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और...

🚩|| “मिशन वंदे मातरम”||
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कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अजान में,

कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अजान में,
काफिरों के सर काट दो लिक्खा यही कुरआन में
पूजा में हम यही मांगते, सब मंगल हों , अच्छा हो
गैर मुस्लिमो तुम काफिर हो,मुल्ला कहे ये शान में ,
कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अजान में,

जो आया उसको अपनाया ,सार धर्म ने यही बताया,
काफ़िर की जो गर्दन काटे ,उनका वो गाजी कहलाया।
हमने कभी ना अंतर बरता ,मस्जिद और शिवालों में ,
उनकी नंगी शमशीरों ने मासूमों का रक्त बहाया।
चीर हरण बहनो के, कर डाले ,पूरे हिन्दुस्तान में,
कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अजान में।

वेदों के हम रहे पुजारी ,गीता का भी ज्ञान सुनाया,
पर अहिंसा के गीतों ने हमको कैसा हीज़ बनाया।
वीरों की इस राष्ट्र भूमि ने कभी ना हिंसा पाली थी पर ,
धर्म ध्वजा की मर्यादा में,हर दुश्मन को मार भगाया।
भारत माँ की आन लुट गयी ,असि गई जब म्यान में
कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अजान में,

बम धमाके करते रहते ,मुजाहिद कहलाते है ,
वोटों की खातिर आँखों के,ये तारे बन जाते है।
दूध पिलाने हम साँपों को,पीरों पर ही जायेंगे ,
पी पी कर ये खून हमारा तालिबान बन जाते हैं।
सारा भारत देखना चाहते ये तो पाकिस्तान में.,
कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और आजान में।

भारत माँ को डायन कहते,जो ना कभी लजाते हैं,
छुप छुप कर हैं हमला करते,कायरता सदा दिखाते हैं।
बार- बार ये धमकी- देकर,राजभवन -को ठगते है ,
ध्वज तिरंगा अग्नि में दे, हरा रंग फहराते है।
मारो काफ़िर काटो काफ़िर रहता हरदम ध्यान में,
कभी ना अंतर मिट पायेगा पूजा और अज़ान में।


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आर्य कौन है ? who is aryaby vedicpress · March 13, 2015आर्य (Arya)मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि...

आर्य कौन है ? who is aryaby vedicpress · March 13, 2015आर्य (Arya)मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्यजाति(mankind) में दो भेद होते है १ आर्य २ दस्यु। दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है। वेद(ved) में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्यऔर दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है। वेद कहताहै “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों। वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जानेका विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।आर्य कौन है ? who is aryaबाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व “आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को व श्रीकृष्ण जी को “आर्यपुत्र” तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्रपाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी(प्राणिमात्र) को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।आर्यों का आदि देश :-प्रश्न :- मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई ?उत्तर :- त्रिविष्टप अर्थात जिस को ‘तिब्बत’ (Tibet) कहते है।प्रश्न :- आदि सृष्टि में एक जाति थी वा अनेक ?उत्तर :- एक मनुष्य जाति थी। पश्चात ‘विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:’ यह ऋग्वेद का वचन है। श्रेष्ठों का नाम आर्य, विद्वानों का देव और दुष्टों के दस्यु अर्थात डाकू, मूर्ख नाम होने से आर्य और दस्यु दो हुए। ‘उत शूद्रे उतार्ये’ अथर्ववेद वचन। आर्यों में पूर्वोक्त कथन से ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र चार भेद हुए। मूर्खों का नाम शूद्र और अनार्य अर्थात अनाड़ी तथा विद्वानों का आर्य हुआ।प्रश्न :- फिर वे यहाँ कैसे आए ?उत्तर :- जब आर्य और दस्युओं में अर्थात विद्वान (जो देव) व अविद्वान (असुर), उन में सदा लड़ाई बखेड़ा हुआ करता, जब बहुत उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग सब भूगोल में उत्तम इस भूमि के खण्ड को जानकार यहीं आकर बसे। इसी से इस देश का नाम ‘आर्यावर्त’ हुआ।प्रश्न :- आर्यावर्त की अवधि कहाँ तक है ?उत्तर :- मनुस्मृति के अनुसार –उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जीतने देश है उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है।प्रश्न :- प्रथम इस देश का नाम क्या था और इसमें कौन बसते थे?उत्तर :- इस के पूर्व इस देश का कोई नाम भी न था और न कोई आर्यों के पूर्व इस देश में बस्ते थे। क्योंकि आर्य लोग सृष्टि की आदि में कुछ काल के पश्चात तिब्बत से सूधे इस देश में आकर बसे थे।प्रश्न :- कोई कहता है कि ये लोग ईरान (Iran) से आए है ?उत्तर :- किसी संस्कृत ग्रंथ में वा इतिहास (history) में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आए। अत: विदेशियों का लेख मान्य कैसे हो सकता है। मनुस्मृति में इस आर्यावर्त से भिन्न देशों को दस्यु और मलेच्छदेश कहा है।नाम की महत्ता व हिन्दू शब्द का सच (Hindu word truth)कुछ व्यक्ति हिन्दू शब्द के पक्षपाती हैं।उनकी कल्पना है कि “सिंधु” अथवा “इन्दु” शब्द से हिन्दू बन गया, अत: यहाँ के निवासियों को हिन्दू कहना ठीक है। यह बात अप्रामाणिक है। प्रथम तो उनके मत से ही सिद्ध है कि हिन्दू नाम पड़ने से पूर्व कोई और नाम अवश्य था। दूसरे सिन्धु और इन्दु नाम आज भी वैसे ही बने हुए है। अत: इस मत मेंकुछ भी सार नहीं। हिन्दू नाम विदेशियों (मुस्लिमों) ने दिया और हमने उसको वैसे ही मान लिया जैसे अंग्रेजों ने “इंडिया” और “इंडियन” नाम दिया। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने हमें “नेटिव” शब्द से पुकारा और हम नेटिव कहलाने में गर्व करने लगे, जबकि नेटिव का अर्थ दास है। इसी प्रकार हिन्दू शब्द का अर्थ काला, काफिर, लुच्चा, वहशी, दगाबाज, बदमाश और चोर आदि है। फारसी, अरबी व उर्दू आदि के उपलब्ध शब्दकोश गयासुल्लोहात, करिमुल्लोहात, लोहातफिरोजीआदि में हिन्दू के अर्थ को आप सभी ढूंढ लेना। कई बार हम कह देते है कि यदि यह कार्यमें नहीं कर पाया तो मेरा नाम बदल देना। अर्थात जब हम किसी काम के नहीं रहते तब लोग हमारा नाम बदल देते है। हमारे तो तीन-तीन नाम बदले गए है, फिर भी कहते है कि गर्व से कहो हम हिन्दू है। यह बड़े अपमान का विषय है। अत: इस मत को दूर से ही छोड़ देना चाहिए।कोई सज्जन कह सकता है कि नाम को लेकर विवाद करना ठीक नहीं, नाम कैसा ही हो, काम अच्छा होना चाहिए। यह बात सुनने में अच्छी लगती हो परंतु ठीक बिलकुल भी नहीं। नाम का पदार्थ पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ऋषि दयानन्द (maharishi dayanand) ने एक बार किसीसज्जन का नाम सुनकर कहा था कि “कर्मभ्रष्ट तो हो गए परंतु नामभ्रष्ट तो न बनो।” जिस प्रकार भारत के नाम के साथ भारतीय राष्ट्र की परंपरा आँखों के सामने दिखाई से देने लगती है वैसे ही आर्य नाम के श्रवण मात्र से प्राचीन काल की सारी ऐतिहासिक झलक हमारे सामने आ जाती है। यह मानसिक भाव है, परंतु कर्म पर मन का पूर्ण प्रभाव पड़ता है।यदि आर्य नाम को छोड़ अन्य हिन्दू आदि नाम स्वीकार कर लेते हैं तो आर्यत्व व सारा परंपरागत इतिहास (Traditional History) समाप्तहो जाता है। इसी कारण विदेशी लोग पराधीन देश की नाम आदि परम्पराएँ नष्ट कर देते व बदल देते है, जिससे पराधीन राष्ट्र अपने पुराने गौरव को भूल जावे। इतिहास की स्मृति से मनुष्य फिर खड़ा हो जाता है व पराधीनता की बेड़ियों को काटकर स्वतंत्र बनजाता है। यह सब नाम व इतिहास के कारण ही संभव हो पता है। अत: हमें सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए कि हम “आर्य” है, “आर्यावर्त” हमारा राष्ट्र है। आर्यों का भूत अत्यंत उज्जवल (extremely bright) रहा है, हमें उसी पर फिर पहुँचना है। इसी प्रकार हमें अपना, अपने राष्ट्र और अपनी भाषा के नाम का भी सुधार कर लेना चाहिए। हमारे महापुरुषों नेसदैव कहा है कि “हमें हठ, दुराग्रह व स्वार्थ को त्यागकर सत्य (truth) को अपनाने में सर्वदा तैयार रहना चाहिए।”


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पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया.. जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा - मित्र तुमने...

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया..

जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा - मित्र तुमने अपने स्वरुप का त्याग कर मेरे स्वरुप को धारण किया है….

अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा।

दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है..

अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा..

दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है,

जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है।
पर इस अगाध प्रेम में..

थोड़ी सी खटास - (निम्बू की दो चार बूँद) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं..

थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है।

रिश्ते में खटास मत आने दो॥

क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख, कितने करोड़, कितने घर, कितनी गाड़ियां हैं,

खाना तो बस दो ही रोटी है। जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है।

फर्क इस बात से पड़ता है, कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये, कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जीए। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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निकट भविष्य में विधर्मियों का समूल नाश निश्चित है परन्तु हमें परस्पर प्रेम व एकता को सदृढ करना...

निकट भविष्य में विधर्मियों का समूल नाश निश्चित है परन्तु हमें परस्पर प्रेम व एकता को सदृढ करना होगा,वेद ही हम भारतीयों को एक सूत्र में बांध सकते हैं| साकार निराकार आदि को लेकर हमारे बीच कितने भी मतभेद हों परन्तु मनभेद न हों,परस्पर द्वेष लेशमात्र भी न हो…तभी हम एकजुट होकर मुल्लों पादरियों को सबक सिखा सकते हैं |


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Monday, May 11, 2015

🚩 आओ वेदों 📚📚📚📚 को जानते है🚩  🚩🚩 वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो की सृष्टी के आरम्भ में 1अरब 96 करोड 8 लाख...

🚩 आओ वेदों 📚📚📚📚 को जानते है🚩 

🚩🚩 वेद ईश्वरीय ज्ञान है जो की सृष्टी के आरम्भ में 1अरब 96 करोड 8 लाख 53 हजार 116 वर्ष पूर्व ईश्वर ने 4 ऋषियो के हृदय में प्रकाशित हुआ

🚩🚩 वेद सृष्टि के आदि में जैसे थे वेसे ही आज भी है एक अक्षर भी नही बदला 

🚩🚩वेद मानवमात्र के लिए हे जबकि
कुरान सिर्फ मुस्लिम के लिए 
बाइबिल ईसाई के लिए

🚩🚩 वेद में मानवता की बात है 

🚩🚩 वेद में ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी बताया है

🚩🚩 वेद में एक ईश्वर की उपासना की बात कहि है 

🚩🚩 वेद के अनुसार ईश्वर सर्वज्ञ है सब जनता है 

🚩🚩 वेद के अनुसार ईश्वर के सामने कोई सिफारश नही चलती है कर्म के अनुसार अच्छा बुरा सब भोगना पड़ता है

🚩🚩 वेद के अनुसार ईश्वर और जीव् के बिच कोई बिचौलिया नही है 

🚩🚩 वेदो के अनुसार जीवन का उद्देश्य दुखो से छुट कर मोक्ष के आनंद को प्राप्त करना है

🚩🚩वेद में सृष्टि की उत्तपत्ति का वैज्ञानिक सिद्धान्त है परमेश्वर प्रकृति जो की अनादि के के कणों सत रज तम से सृजत है

🚩🚩 वेद के अनुसार ईश्वर जिव और प्रकृति तीनो अनादि है 

🚩🚩वेद के अनुसार किसी भी बात को तर्क की कसोटी पर कस कर ही मानो 

🚩🚩वेद परमात्मा ने स्वयम् ऋषियो के हृदय में दिए क्योकि वह सर्वत्र है 

मित्रो ये सारी बातें ऋषि दयानंद की कृपा से हमे सत्यार्थ प्रकाश से प्राप्त हुई है 
धन्य है ऋषि दयानंद 
जो दयानंद न होते तो सब मुस्लिम हो जाते।

🚩सत्य सनातन वेदिक धर्म की जय 🚩


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