Friday, May 8, 2015

शुक्रोसि भ्राजोसि स्वरसि ज्योतिरसि|आप्नुहि श्रेयांसमति समं क्राम||अथर्ववेद २.११.५ भावार्थ-हे जीव तू...

शुक्रोसि भ्राजोसि स्वरसि ज्योतिरसि|आप्नुहि श्रेयांसमति समं क्राम||अथर्ववेद २.११.५
भावार्थ-हे जीव तू मेरी उपासना द्वारा ज्ञान,बल,आनन्द,तेज आदि गुणों से युक्त होकर व सबको साथ लेकर आगे बढ और नि:श्रेयस अर्थात मुक्ति को प्राप्त कर |
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प्रश्न:-जब मुसलमान व ईसाई लोग भी परमात्मा की सीधी उपासना कर सकते हैं तो हिन्दु मित्रों को ये पत्थरों की मूर्ति बना कर पूजने की किसलिए आवश्यकता पडती है ? क्या आप में उनके तुल्य भी बुद्धि नहीं जो ईश्वर की ऋषि मुनियों की तरह सीधी उपासना करना नहीं जानते हो ?
यह पत्थर पूजा हिन्दु मुस्लिम में दूरी व द्वेष का एक मुख्य कारण है,क्या यह कारण दूर नहीं हो सकता ? क्या हिन्दु नेता व धर्म गुरु हिन्दुओं को इस धर्म व वेद विरुद्ध कार्य का त्याग कर ध्यान द्वारा ईश्वर की सीधी उपासना का आदेश व उपदेश नहीं दे सकते ??
ईश्वर सबको शक्ति,भक्ति व सद्बुद्धि प्रदान करे !

-डा मुमुक्षु आर्य


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