Monday, May 4, 2015

28,29 अप्रैल 2015 गांधीनगर गुजरात में प्रवचन —— 💐।। प्रवचनसुधा ।।...

28,29 अप्रैल 2015 गांधीनगर गुजरात में प्रवचन —— 💐।। प्रवचनसुधा ।। 💐
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संसार में रहना समजदारी का काम नहीं है । संसार में बुद्धिमान लोग रहते नहीं । जो लोग अविद्याग्रस्त होते है, वही इस संसार में रहते है ।
बुद्धिमान व्यक्ति वहीँ है जो संसार में दुःख देखता है । “संसार में ज्यादा दुःख है और कम सुख है ”- क्या आप मेरी बात से सहमत है ? यह मेरी कोई अपनी-नीजी बात नहीं है । यह बात तो ऋषिलोग बोल रहे है, वेद बोल रहा है । आप अपने को ही देखो । पुरे दिन काम करते हो, उसमें सुख केवल एक या दो घंटे का ही होता है । शेष 15 -16 घंटे टेंशन, भारी भागदौड़, अत्यन्त व्यस्तता, थकान आदि दुःख ही तो है । क्या प्रतिदिन आप सुख की निद्रा लेते हो ? हर अाश्रमवाले, हर स्तरवाले, हर काल में क्या पूर्ण सुखी है ? संभव नहीं, दुःख तो भोगना ही पड़ता है । परिवर्तनशील यह संसार में सुख कभी टिकनेवाला है ही नहीं ।
शुद्ध सुख तो केवल मोक्ष में है । संसार में तो दुःख ही दुःख है । ऋषियो ने भी एकी आवाज में कहाँ है कि - को$पि कुत्रापि सुखी न । बुद्धिमान लोग तो संसार के उत्तम सुख में भी पोटेंसियम सायनाइड जहर देखते है । ‘दु:खमेव सर्वम्’ सर्वत्र दुःख ही दुःख है । संसार में दुःख को देखनेवाला ही संसार से छूट सकता है । इस संसार में तो आग ही आग है, धोखा ही धोखा है, दुःख ही दुःख है । A.C. तो केवल मोक्ष में है । शांति, आह्लादकता, निश्चितता तो केवल मोक्ष में है । उसी की ऒर जाना बुद्धिमानी है ।
जन्म लेना दुख का कारण है । जन्म तो लेना पड़ेगा ही क्योंकि कुछ गलत काम किया है । अच्छे काम भी हमने किये, परंतु सकाम कर्म किये इसलिए बंधन में लाये गए । सकाम कर्म भी पाप पूण्यरूपी फल भुगतने के लिए जन्म लेना पड़ेगा ।
दुःख से बचना है तो जन्म को रोक दो । जन्म तभी रुकेगा, जब हम सकाम कर्म बंध कर देंगे । जन्म तभी रुकेगा जब हम केवल निष्काम कर्म करेंगे, योग का अनुष्ठान करेंगे ।
निष्काम कर्म हम तभी करेंगे जब हम यथार्थविद्या से प्रकाशित होंगे । तत्वज्ञान ही विद्या है । वेदज्ञान ही विद्या है । जो वस्तु जैसी ही, उसको एसी ही मानना तथा तदनुरूप आचरण करना विद्या है । विद्या से ही दुखो से छूट जाते है और नित्य सुख में स्थिर हो जाते है ।
उपर्युक्त कथन स्वामी विवेकानंद जी परिव्राजकने सेक्टर. 4 , 'आर्यकुञ्ज भवन’, गांधीनगर में कल रात्रि तथा आज प्रातः सांख्य दर्शन प्रवचन दरम्यान किया था ।
प्रातःकालीन सत्र के प्रवचन में जड़ वस्तु तथा चेतन वस्तु के गुणधर्म पर सूत्र के आधार पर चर्चा हुई थी। जड़ वस्तु को समजाते हुए स्वामीजी ने कहा था कि - जड़ वस्तु वह है जिसमें सुख दुःख की अनुभूति न हो, ज्ञान का प्रकाश न हो । जड़ वस्तु हमेशा साकारवाली होती है । आकाश, वायु आदि सूक्ष्म पदार्थ में भी रूपगुण होता है, भले वह आँखों से पकड़ में न आते हो । आँखों की शक्ति सिमित होती है । अतः आकाश वायु आदि (सूक्ष्म साकार वस्तु) को देख नहीं सकते । जड़ वस्तु ज्ञानशून्य -अचेतन होने से दुःख से बचने का अथवा सुख प्राप्ति के लिए यत्न नहीं करता ।
जीवात्मा ज्ञान ग्राहक है। उसमें वेदादि ज्ञान ग्रहण करने की क्षमता है । सुख दुःख की अनुभूति करनेवाला है इसलिए वह बड़ा सुख,अच्छा सुख, शुद्ध सुख के लिए सतत प्रयास करता रहता है । ज्ञान, राग - द्वेष आदि उसके स्वाभाविक गुण है, जो कभी बदलते नहीं, नष्ट होते नहीं । वे गुण सदा साथ बने रहते है ।
परमात्मा के गुण बताते हुए पू. स्वामीजी ने कहा था कि परमात्मा का ज्ञान पूर्ण है । उसके ज्ञान में कोई त्रुटि, दोष, कमी नहीं है । उसकी सारी कृति उत्कृष्ट होती है । उसकी कृति में कोई सुधार नहीं, कोई सप्लीमेंट्री नहीं, कोई अपेंडिक्स नहीं । परमात्मा अन्तर्यामी है । सारे जीवात्माओं के कर्म को, मन की वृति को उसी क्षण जान लेता है । वह सर्वज्ञ है अर्थात् सबकुछ जानता है । उसके लिए जानने को कोई शेष बचता नहीं । परमात्मा अनंत है, और वह परमात्मा अपने को अनंत ही मानता है ओर वैसा ही वेद में बतलाता है । वह यथार्थ वक्ता है ।
स्वामी विवेकानंद जी ने सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, संसार का मार्ग और मोक्ष का मार्ग, आश्रम व्यवस्था, मिथ्याज्ञान, निष्काम कर्म आदि पर विस्तार से समजाकर शंकाओ का समाधान किया था ।
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★ स्वामी विवेकानंद परिव्राजक जी ★
————: के सौजन्य से :————
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