Sunday, May 17, 2015

क्या हम अपना नाम भी भूल गये ?? भाग ८ 📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229) पिछले भागों मे हम ने हिन्दू शब्द...

क्या हम अपना नाम भी भूल गये ??
भाग ८
📝धर्म प्रकाश आर्य(9204411229)
पिछले भागों मे हम ने हिन्दू शब्द के अर्थों को विभिन्न प्रकार के प्रमाणो के साथ सिद्ध किया और हम ने पाया कि यह शब्द दासता सूचक एवं निकृष्ट अर्थों के द्योतक है. यह नाम हमे गुलामी के दिनो मे विदेशी शासको द्वारा उसी प्रकार दिया गया जिस प्रकार कुछ दिनो पहले अंग्रेज हमे और हमारे देश का नाम इंडियन और इंडिया दिया . मुझे अफशोष है कि कुछ लोग जिस प्रकार हिन्दू शब्द को जबरदस्ती अपनी भाषा व संस्कृति का होना सिद्ध करता है उसी प्रकार कुछ सालो बाद इसी तरह के कुछ लोग इंडिया और इंडियन शब्दो को भी अपनी भाषा व संस्कृति के होने का सिद्ध करने का विफल प्रयास करेगा . 
आर्य और आर्यावर्त उस युग की स्मृति दिलाता है जब आर्य संस्कृति का सूर्य निकल रहा था , आर्य ऋषि अपने आत्मिक विकास के द्वारा वैदिक ऋचाओं का दर्शन कर रहे थे , आश्चर्यजनक वैदिक साहित्यों का निर्माण हो रहा था जिस मे ज्ञान व विज्ञान कि बातें भरी हुई थी, आर्य संस्कृति की विजय पताका विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में फहराई जा रही थी और आर्यावर्त विश्व गुरु कहलाता था परन्तु हिन्दू हिन्दूस्तान व इंडिया शब्द ऐसे युग के द्योतक है , जिस समय इस देश के निवासी अपने सच्चे अस्तित्व को भूल चुके थे, आर्य संस्कृति का सूर्य अस्ताचल के निकट पहुंच चुका था, समाज मे विभिन्न तरह के कुरितियां , अंधविश्वास, छूआछूत, जातिवाद, पाखंड आदि अपनी चरमसीमा पर पहुंच चुका था, हमारी आखों के सामने हमारे ही अपनी सभ्यता, उसकी मान्यताएं, परंपराओं का गला घोंटा जा रहा था, आर्थिक, समाजिक व राजनितिक व्यवस्था कि शुद्ध वैदिक स्वरुप के समाप्त हो जाने की वजह से समाज मे चोरी-डकैती, लूटपाट, बलात्कार  आदि समस्याएं चरमसीमा पर था . तो क्यों न हम अपने प्राचीन गौरवमयी संस्कृति को पुन: प्राप्त करने हेतु स्वाभिमान व उज्ज्वल अतीत के सूचक आर्य व आर्यावर्त का आह्वान करे और गुलामी व दास्ता के सूचक हिन्दू हिन्दूस्तान व इंडिया जैसे शब्दो का बहिष्कार. याद रखिए किसी भी गुलाम व्यक्ति व राष्ट्र को उसके मालिक यदि नाम देता है तो सिर्फ अपमान सूचक .
👉यदि हमारा नाम आर्य न होता तो वाराणसी मे विश्वनाथ एवं अन्नपूर्णा मंदिर के प्रवेश द्वार पर ‘आर्येतराणां प्रवेशो निषिद्ध : ’ अर्थात आर्यो के अतिरिक्त लोगो का प्रवेश वर्जित है, ऐसा क्यो लिखा रहता ???
👉कर्मकांड मे हमारे पुरोहित , 'आर्यावर्ते भरतखंडे ’ क्यों पढ़ते आ रहे है ???
👉क्यों संस्कृत व प्राकृत भाषा के नवीन आचार्य भी कहीं पर हम लोगो के लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग नही किया है ???
👉क्यो हमारे प्राचीन ८वीं सदी के पहले के ग्रंथो व पुस्तकों मे हमें हिन्दू कहना तो दूर इस शब्द का जिक्र भी नही किया गया है क्योकि यह हमारी भाषा की शब्द नही है ???
👉क्यों रामायन, महाभारत, गीता , स्मृति ग्रंथ, व्याकरन , १८ पुरान आदि मे हमारे लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग नही किया गया है ??
👉क्यो कुछ कवि भी हमे आर्य कहकर ही संबोधित किया है ??? यथा.
“मानस भवन मे आर्यजन जिसकी उतारें आरती !
भगवान् भारतवर्ष में गुंजे हमारी भारती !
यह पुण्य भारतभूमि है , इसके निवासी आर्य है !
विद्या , सुसंस्कृति सभ्यता में विश्व के आचार्य है ! ”
……..मैथिलीशरण गुप्त(भारत भारती )
अब विवेकशील व्यक्ति खुद विचार करे कि उसे दासता सूचक नाम चाहिए या स्वाभिमान सूचक .

'जय आर्य , जय आर्यावर्त्त ’
क्रमश :


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