Sunday, May 10, 2015

श्री मान पांडू रंग जी एक महान तपस्वी व्यक्ति हुए हैं । बताते हैं कि उन्होंने बड़ा स्वाध्याय किया...

श्री मान पांडू रंग जी एक महान तपस्वी व्यक्ति हुए हैं । बताते हैं कि उन्होंने बड़ा स्वाध्याय किया हुआ था ।
स्वाध्याय परिवार उन्हीं का चलाया हुआ है ।
उनका एक चेला मेरा मित्र है ।
ये लोग रोज कक्षाएँ लगाते हैं शाम को । गाँव गाँव में इनके सन्गठन हैं ।
एक दिन जब हम कार में दूर की यात्रा कर रहे थे तो मेरा वो मित्र बोला कि आओ आज आपको कुछ धार्मिक गीत सुनाता हूँ । उसने सीडी लगाई । एक घंटे बाद वो बोला -आया समझ में स्वाध्याय परिवार क्या चीज है ?

मैं बोला - आप तो कह रहे थे कि धार्मिक गीत सुनो । मगर ये सब तो गुरु भक्ति के गीत थे । तुम लोगों ने धार्मिकता को गुरु के गुणगान तक क्यों सिमित कर दिया है । और तुम्हारा ही नहीं सबका यही हाल है ।

एक और बात पता चली कि स्वाध्याय की इन कक्षाओं में देश भक्ति का कुछ भी नहीं पढाया जाता न बताया जाता ।
न ही देश भक्ति की कोई चर्चा होती।

मैंने निवेदन किया कि आप ये काम तो कर ही सकते हो कि बच्चों को थोडा सा देश भक्ति पर भी कुछ बता दिया करो । पूरे देश के लाखों बच्चे रोज इस सभा में होते हैं । तो वो बोला- स्वर्गीय गुरु जी का ऐसा कोई आदेश नहीं था ।😀😄😃😀😄😃😀😄😃


पांडुरंग जी की एक पुस्तक है “मूर्तिपूजा” नाम की । उस पुस्तक में उन्होंने पुराणों के उदाहरण दे दे कर सही ठहराने की कोशिश की है । अपनी बात को सच सिद्ध करने के लिए उन्होंने वेद के एक मन्त्र का भी हवाला दिया

उस मन्त्र को लिख कर मैं एक आर्य वेद विद्वान के पास ले गया । मैंने मन्त्र पढ़ा तो वे तुरंत बोले कि यह तो यजुर्वेद के सोलवें अध्याय का दूसरा मन्त्र है । मैंनें श्री मान पांडू रंग जी का लिखा अर्थ बोला तो वे मुस्कुरा भर दिए ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

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