Thursday, May 14, 2015

# यज्ञ में हिंसा का विरोध###### जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है कि यज्ञ में पशु वध किया जाता...

# यज्ञ में हिंसा का विरोध######
जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है
कि यज्ञ में पशु वध किया जाता है, वैसा बिलकुल
नहीं है | वेदों में यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म या एक
ऐसी क्रिया कहा गया है जो वातावरण को अत्यंत शुद्ध
करती है |
अध्वर इति यज्ञानाम – ध्वरतिहिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः…
…….निरुक्त २।७
निरुक्त या वैदिक शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र में यास्काचार्य के अनुसार
यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है | ध्वर का मतलब है
हिंसा सहित किया गया कर्म, अतः अध्वर का अर्थ हिंसा रहित कर्म
है | वेदों में अध्वर के ऐसे प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं |
महाभारत के परवर्ती काल में वेदों के गलत अर्थ किए
गए तथा अन्य कई धर्म – ग्रंथों के विविध
तथ्यों को भी प्रक्षिप्त किया गया | आचार्य शंकर वैदिक
मूल्यों की पुनः स्थापना में एक सीमा तक
सफल रहे | वर्तमान समय में स्वामी दयानंद
सरस्वती – आधुनिक भारत के पितामह ने
वेदों की व्याख्या वैदिक भाषा के
सही नियमों तथा यथार्थ प्रमाणों के आधार पर
की | उन्होंने वेद-भाष्य, सत्यार्थ प्रकाश,
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा अन्य
ग्रंथों की रचना की | उनके इस साहित्य से
वैदिक मान्यताओं पर आधारित व्यापक सामाजिक सुधारणा हुई
तथा वेदों के बारे में फैली हुई भ्रांतियों का निराकरण हुआ |
आइए,यज्ञ के बारे में वेदों के मंतव्य को जानें -
@@@@@@अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परि भूरसि
स इद देवेषु गच्छति…………ऋग्वेद १ ।१।४
हे दैदीप्यमान प्रभु ! आप के द्वारा व्याप्त हिंसा रहित
यज्ञ सभी के लिए लाभप्रद दिव्य गुणों से युक्त है
तथा विद्वान मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया गया है | ऋग्वेद
में सर्वत्र यज्ञ को हिंसा रहित कहा गया है इसी तरह
अन्य तीनों वेद भी वर्णित करते हैं | फिर
यह कैसे माना जा सकता है कि वेदों में हिंसा या पशु वध
की आज्ञा है ?
यज्ञों में पशु वध की अवधारणा उनके (यज्ञों ) के
विविध प्रकार के नामों के कारण आई है जैसे अश्वमेध यज्ञ, गौमेध
यज्ञ तथा नरमेध यज्ञ | किसी अतिरंजित कल्पना से
भी इस संदर्भ में मेध का अर्थ वध संभव
नहीं हो सकता |
यजुर्वेद अश्व का वर्णन करते हुए कहता है -
@@@@@@इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं
वाजिनेषु……..यजुर्वेद १३।४८
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले तथा बहुत से पशुओं में अत्यंत
वेगवान प्राणी का वध मत कर |अश्वमेध से अश्व
को यज्ञ में बलि देने का तात्पर्य नहीं है इसके
विपरीत यजुर्वेद में अश्व को नही मारने
का स्पष्ट उल्लेख है | शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य
के लिए आया है | मेध अर्थ वध नहीं होता | मेध शब्द
बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त करता है | प्रकारांतर से
उसका अर्थ मनुष्यों में संगतीकरण
का भी है | जैसा कि मेध शब्द के धातु (मूल ) मेधृ -सं -
ग -मे के अर्थ से स्पष्ट होता है |
@@@@@राष्ट्रं वा अश्वमेध:
अन्नं हि गौ:
अग्निर्वा अश्व:
आज्यं मेधा:…………..(शतपथ १३।१।६।३)
स्वामी दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश
में लिखते हैं :-
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित
यज्ञ ही अश्वमेध यज्ञ है | गौ शब्द का अर्थ
पृथ्वी भी है |
पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए
समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है | ” अन्न, इन्द्रियाँ,किरण
,पृथ्वी, आदि को पवित्र रखना गोमेध |” ” जब मनुष्य
मर जाय, तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह
करना नरमेध कहाता है | ”
३. गौ – मांस का निषेध
वेदों में पशुओं की हत्या का विरोध तो है
ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र
आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है | यजुर्वेद में गाय
को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए
गौ हत्या को वर्जित किया गया है |
@@@@@@घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने
मा हिंसी:…………यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार |
@@@@@आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु………ऋग्वेद ७ ।५६।
१७
ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य
हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड
का विधान करता है |
@@@@@@सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं
भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्
ती……..ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में
नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध
जल के सेवन से स्वस्थ रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान
और ऐश्वर्य से युक्त हों |वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के
पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और
अदिति का भी समावेश है | निघण्टु के भाष्यकार यास्क
इनकी व्याख्या में कहते हैं -अघ्न्या – जिसे
कभी न मारना चाहिए | अहि – जिसका कदापि वध
नहीं होना चाहिए | अदिति – जिसके खंड
नहीं करने चाहिए | इन तीन शब्दों से यह
भलीभांति विदित होता है कि गाय
को किसी भी प्रकार से पीड़ित
नहीं करना चाहिए | प्राय: वेदों में गाय
इन्हीं नामों से पुकारी गई है |
=========
उपरोक्त सबूतों से यह शीशे की तरह
स्पष्ट है कि…….हमारे वेदों में ना सिर्फ गौ हत्या निषेध
किया गया है ….. बल्कि…. यज्ञों में
किसी भी प्रकार के वध एवं
बलि को भी निषेध किया गया है…!!
क्या इतने सबूतों के बाद भी किसी को कुछ
कहना है….????????
अगर फिर भी …. किसी सज्जन
अथवा दुर्जन को कुछ कहना है तो…. उनके तथ्यों का हार्दिक
स्वागत है …. लेकिन, केजरीवाल सरीखे
अनर्गल प्रलाप कर रायता फ़ैलाने वाले को …. बेझिझक ब्लॉक कर
दिया जायेगा …!!
जय महाकाल…!!!
नोट : मुस्लिमों और सेक्यूलरों को एक बात अच्छे से समझ
लेनी चाहिए कि…… “”“हिन्दू सनातन धर्म
रूपी हाथी”“” चाहे
कितना भी छोटा क्यों ना हो जाए….. वो ….“” इस्लाम .
ईसाइयत , बुद्धिज्म सरीखे ….. कुत्ते-बिल्लियों"“ से
कई गुणा बड़ा ही रहेगा….!!

मित्र अश्वमेघ यग्य का जो नाम आया ये हिमालय मे पायी जाने वाली एक औशधि का नाम है अठर्ववेद और धन्वन्तरी मे लिखा है सुश्रुत सन्हिता मे भी है


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