Thursday, May 14, 2015

arhana Taj आर्यो के आदि देश पर विवाद क्यों? हमारे इतिहासकार ऐसा क्यों लिखते हैं कि हम तो...

arhana Taj
आर्यो के आदि देश पर विवाद क्यों?
हमारे इतिहासकार ऐसा क्यों लिखते हैं कि हम तो ठहरे
विदेशी…देशभक्ति क्या दिखाएंगे?
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे,
सुरतरूवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालम्।
तदपि तव गुणानामीश ! पारम् न याति।
अर्थात् कज्जलगिरि की स्याही समुद्र के पात्र में घोली
गयी हो, कल्पवृक्ष की शाखा की लेखनी हो, कागज पृथ्वी
हो और मां सरस्वती स्वयं लिखने वाली हो, तथापि हे आर्य
मां। तुम्हारे गुणों का वर्णन कर पाना अशक्य एवं असंभव है।
इतिहास का शाब्दिक अर्थ होता है ऐसा ही हुआ है। सच्चा
इतिहास बतलाता है कि ईश्वर कभी किसी मनुष्य किसी
देश अथवा किसी मनुष्य समूह की अधोगति तब तक नहीं
करता जब तक कि मनुष्य, देश व जाति अज्ञानी तथा
कुकर्मी स्वयं न बन जाए। शुभकर्म का फल आत्मीय तथा
सामाजिक आरोग्यता, बल, बुद्धि, सुख, अभ्युदय व देश
स्वतंत्रता और दुष्ट कर्मो का फल आत्मीय (निज की) तथा
सामाजिक रोग, दुर्बलता, दुःख या दरिद्रता व देश की
पराधीनता है। इतिहास गवाह है कि जब तक किसी मनुष्य
विशेष या साधारण ने तथा जनमानस ने पूर्वकाल में कोई भी
राजनीति, धर्म संबंधित आदि भूल की, तो उसको या उनको
फल भोगना पड़ा।
हम भारतवर्ष की संतान हैं। हमारे पूर्वजों के कार्यकलापों के
कारण ही हमारे इतिहास का निर्माण हुआ है। जब इतिहास
को हमारे पूर्वजों ने निर्मित किया है तो अपना इतिहास
लिखने का अधिकार हमको ही है, न किस विदेशी
विद्वानों को। राम-रावण की ऐतिहासिक लड़ाई को
विदेशी जन कवि की कल्पना मानते हैं और हमारे पूर्वज
आर्यों को कहते हैं कि वे भारत में बाहर से आये हैं। जब हमारी
स्मृति में पृथु हैं, जिसने पृथ्वी को गौरवान्वित किया, हम
मनु को जानते हैं, जिन्होंने मानव को सुसंस्कृत बनाया, हम
सृष्टि संवत को भी जानते हैं, लेकिन हमारी स्मृति में यह
क्यों, नहीं कि हम भारतीय नहीं हैं ? हमारे पूर्वज आर्य कहीं
बाहर से आये हैं। हे आर्यों की सन्तान। मेरे देश के इन मासूम
बच्चों का क्या होगा ? जिन्हें पढ़ाया जाता है कि आपके
पूर्वज आर्य घुमक्कड़ थे, ग्वाले थे, बाहर से आये, अतः यह देश
आपका नहीं है, तो इस बारे में आपकी राय क्या होगी
नष्टे मूले नैव फलं न पुष्पम्
जिस देश की सभ्यता एवं संस्कृति को मिटाना हो तो उस
देश का इतिहास मिटा दो। स्मारक, साहित्य तथा
वास्तविक संपत्ति चरित्र को मिटा दो। संसार के नक्शे से
फिर वह देश स्वतः ही मिट जाएगा।
अश्लील साहित्य की सार्वजनिक स्थानों पर बिक्री की
खुली छूट, चित्रहार, गंदी फिल्में, गान्धर्व, पैशाच, राक्षस
आदि म्लेच्छ विवाह की जिस राष्ट्र में खुली छूट हो, उस देश
की सभ्यता व संस्कृति स्वतः नष्ट हो जाएगी। इसी तरह
विदेशी जनों पाश्चात्यता के गुलाम भारतीयों ने भारतवर्ष
का नाश करने के लिए, भारत के स्वाभिमान व सभ्यता
संस्कृति को नष्ट करने के लिए निम्न उपाय निकाल डाले।
आर्यों का आदि देश मध्य एशिया मानकर, भारत को अनेक
देशों का उपमहाद्वीप मानकर, वास्को-डि-गामा के आगमन
से भारत के इतिहास का श्रीगणेश करके, जैसे कि उसके पहले
भारत कहीं खो गया था, जो उसे खोज निकाला ? मिथ्या
वेद भाष्य करके जैसे राष्ट्रीय अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद्
की प्राचीन भारत नामक पुस्तक में है :-
1. आर्यों का जीवन स्थायी नहीं था।
2. ऋग्वेद के दस्यु संभवतः इस देश के मूल निवासी थे।
3. हड़प्पा संस्कृति का विध्वंस आर्यों ने किया।
4. अथर्ववेद में भूत प्रेतों के लिए ताबीज।
5. पशुबलि के कारण बैल उपलब्ध नहीं।
भला इन षड्यंत्रों से भारत को कब तब बचा पायेंगे ?
राष्ट्रीय स्वदेशाभिमान, स्वाभिमान, भारतीय सभ्यता-
संस्कृति को कैसे सुरक्षित रखा जा सकेगा ? इतिहास एक
ऐसा अगाध और अपार विषय है कि किसी भी ऐतिहासिक
सिद्धांत के विषय में यह कह देना कि बस, यही परम सत्य है,
बड़े दुस्साहस का काम है, क्योंकि इतिहास के अन्वेषण का
कार्य जारी है और आगे भी जारी रहेगा। कारण सहित
कार्य को दिखाने वाला ही पूर्ण इतिहास होता है।
इतिहास को बुद्धि से भी परखकर पढ़ना चाहिए, क्योंकि
इतिहास में झूठी कथाएं भी हो सकती हैं तथा इतिहास में
कई सच्चे वाक्य आश्चर्यजनक भी होते हैं। जैसे प्राचीनकाल में
आज से अधिक विज्ञान था।
विदेशियों ने हमारे इतिहास को मोम का पुतला बना
दिया है। जिधर चाहते हैं खींच ले जाते हैं। पश्चिमी
इतिहासविदों और विद्वानों यथा म्योर, एलफिंस्टन,
मनसियर डेल्बो, पोकाक, विलियम कार्नेट डा. जार्ज
पोलेस, डेल्स एवं एलिजाबेथ राल्स आदि ने भी यह
रहस्योद्धाटन किया है कि मार्टिन व्हीलर, स्टुअर्ट पिगट
और जान मार्शल जैसे विद्वानों ने भी तथ्यों को तोड़ा-
मरोड़ा है। अतः शोधर्पूर्ण गंभीरता से तर्कपूर्वक अपने
इतिहास पर विचार करना हम सभी भारतवासियों का
श्रेष्ठ कर्त्तव्य है, ताकि हमारी सभ्यता एवं संस्कृति इस
तामसी विचारों वाले संसार में, जो कीचड़ से भी बद्तर है, में
कमल की भांति खिल उठे।
महाभारत में आर्यो का आदि देश भारत के सिवाय और कुछ
नहीं लिखा।
अत्र ते कीर्तयिष्यामि वर्ष भारत भारतम्।
प्रियमिन्द्रस्य देवस्य मनोवैवस्वतय च।।
पृथोस्तु राजन्वैन्यस्य तथेक्ष्वाकार्महानत्मन।
ययातेरम्बरीषस्य मान्धातुर्नहुषस्य
तथैव मुचुकुन्दस्य शिषैरौशनिरस्य।
ऋषभस्य तथैलस्य नृगस्य नृपतेस्तथा।
कुशिकस्य च दुर्धर्ष गाधेश्चैव महात्मनः।
सोमकस्य च दुर्धर्ष दिलीपस्य तथैव च।।
अन्येषां च महाराज क्षत्रियाणां बलीय साम्।
सर्वेषामेव राजेन्द्रप्रियं भारत भारतम्।।
महाभारत, भीष्म पर्व अ. 9 श्लोक 5-9
पुस्तक: हमारी विरासत की भूमिका से
9 hrs · Edited · Public
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नरेश खरे and 116 others like this.
Arya Ajay
हम आर्यव्रत के वासी हैं
Like · 4 · Reply · Report · 9 hours ago
Farhana Taj
ji
Like · 4 · Reply · Report · 9 hours ago
Arya Ajay
लेकिन हमारे इतिहास को बिगाड़ कर हमें ही पढाया गया
और हमारे अपने ही हमारे दुश्मन हो गये,वो ही हमें बाहर से
आए हुए कहते हैं, क्या विडंबना है
Like · 3 · Reply · Report · 9 hours ago
Prashant Rana
दलित शब्द का कैसे उदय हुआ
Like · Reply · Report · 9 hours ago
Vivek Kumar Anand
Right per murkh samajhte hi nahi
Like · Reply · Report · 9 hours ago
ईश्वरदास धुसिया
सत्य है।
Like · Reply · Report · 7 hours ago
Arya Kantilal
आरयो की सही परीभाषा परमाणो के साथ पेरसीत की है
पषचिमी लेखको ने आरय लोगो को बदनाम कर ने मेकोई
कसरछोडी नही है पुजय बहन फरहानाजी कोबहोत-२
घनयावाद
Like · Reply · Edit · 18 minutes ago
Hemant Bunty
styen dharyate prithbi satyen tapte ravi Satyen bati
wayush cha sarbam satyen pratithitam
Like · Reply · Report · 17 minutes ago
Hemant Bunty
hm or hmara dharm saty pr aadharit h isliye aise
mithyak baton ko hme grahan hi nhi karna chahiye
Like · Reply · Report · 15 minutes ago
Write a commentफोरववबयआरय कानतूीलाल भुज– गुजरात


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