Thursday, May 28, 2015

हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान। स्वतंत्रता पूर्व 1910 से 1945 तक भारत के सबसे बड़े शक्तिशाली व् प्रभावशाली...

हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान।

स्वतंत्रता पूर्व 1910 से 1945 तक भारत के सबसे बड़े शक्तिशाली व् प्रभावशाली क्रन्तिकारी संगठन
अभिनव भारत का निर्माण स्वातंत्र्य वीर सावरकर द्वारा किया गया था। मुख्य उद्देश्य था भारत में क्रन्तिकारी गतिविधियों को बढ़ाना।

सावरकर जी ने सेनापति बापट को बम बनाना सिखने के लिए रूस भेज दिया और उधर हथियारों के निर्माण के लिए उन्होंने अन्य यूरोपीय देशो से सहायता लेनी शुरू कर दी।

सावरकर जी की लिखी पुस्तक 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम तब के क्रान्तिकारियो के लिये गीता समान थी। उसी को पढ़कर कोई भगत सिंह गांधीवादी से क्रन्तिकारी बना तो कोई आजाद तो कोई नेताजी बना।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर तारा नहीं बल्कि चाँद है और उनके समक्ष अन्य सभी तारे की भाँती लगते है पर सबसे।अधिक अन्याय भी वीर सावरकर के साथ ही हुआ। आज की युवा मॉडर्न पीढ़ी भगत सिंह का नाम जानती है पर वीर सावरकर को नहीं जानती। कुछ हमारी भी कमियां है की हमने हिंदुत्व शब्द के जनक को वो सम्मान नहीं दिया जो अन्य को दिया।

सावरकर जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धुरी है। ये वो नींव है जिस पर खड़ा होकर कोई बापू कोई नेहरू कोई नेताजी तो कोई शहीद आजम बना। नींव को कोई नहीं देखता उस पर खड़ी सुन्दर इमारते अट्टालिकाएं सभी को दिखती है। वीर सावरकर वो नींव है जिसके बिना पूरा स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास धूल धूसरित हो जायेगा। उनके बिना कल्पना भी नहीं कर सकते की भारतभारत में क्रन्तिकारी गतिविधिया इतनी बढ़ चुकी थी की अंग्रेज अपने घरो दफ्तरों से बाहर निकलने से भी डरते थे।

12 वर्ष की आयु का बालक पुणे में फैले प्लेग के बाद ऐसे लेख लिखता है जिसे पढ़ कर चाफेकर बंधू रेंड और आयन नाम के अंग्रेजो को बीच बाजार गोली मार देते है जिन्होंने प्लेग से तड़पते भारतीयो को तिल तिलकर मार दिया था। इन दोनों अफसरों के साथ सेना की टुकड़ी चलती थी जो प्लेग सइ ग्रसित लोगों को मार कर उनके घर ढहा देती थी। ऐसी हृदय विरदक घटना उस बालक विनायक दामोदर से न देखि गयी। बालक था सो क्या कर सकता था।

चाफेकर बंधुओ द्वारा अंग्रेज अफसरो की हत्या के बाद उन्हें बंदी बना कर फांसी दे दी गयी
बालक विनायक ने उसी दिन चाफेकर बंधुओ को अपना गुरु माना और घर में बनी देवी की प्रतिमा के आगे प्रण लिया की या तो चाफेकर बंधुओ के समान लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करूँगा या शिवाजी महाराज के समान विजयी होऊंगा।

फर्गुसन कॉलेज में सावरकर जी ने अपनी गतिविधियाँ बढ़ानी प्रारम्भ की।
उन्होंने 1905 में विदेशी वस्त्रो की होली जलाई जिसका गांधी ने तुच्छ कार्य कहकर विरोध किया और खुद गांधी को 15 साल बाद ज्ञान मिला तो उसने खुद भी यही कार्य किया।

सावरकर जी तिलक जी की अनुकम्पा से लंदन पढ़ने जा पहुंचे। वहां वे मिले विदेशो में भारत के सबसे बड़े क्रांतिकारी श्याम कृष्ण जी वर्मा से।
उनके साथ उन्होंने फ्री इंडिया सोसाइटी बनाई। उनकी गतिविधियों से टेम्स में तूफ़ान आ गया था। बंकिघम पैलेस की दीवारे हिलने लगी टीही।

एक शाम सावरकर जी किसी घटना पर मदन लाल ढींगरा को इतना उकसाया की ढींगरा ने लार्ड कर्जनी के ऑफिस में घुस कर उसे गोली मार दी। ढींगरा ने कहा ये अंग्रेज नहीं बल्कि अंग्रेज साम्राज्य के ढलने का आरम्भ हो चूका है। अंग्रेजो ने ढींगरा का ब्यान गायब करवा दिया जो सावरकर जी ने ढूंढ निकाला। बाद में सावरकर जी ने उस ब्यान को बड़ी चालाकी से एक अखबार में छपवा दिया।

सावरकर जी को उनकी पुस्तक 1857 प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लेखन कार्य के कारण बन्दी बना कर भारत भेजने का आदेश हुआ। रास्ते में वह समुद्री जहाज के लैट्रिन पॉट को खोद कर जहाज से कूद पड़े और तैरते हुए फ्रांस जा पहुंचे।

पर अंग्रेजो ने फ़्रांसीसी अफसरों को रिश्वत देकर सावरकर जी को पुनः बंदी बना लिया। इस घटना से फ्रांस में तूफ़ान छा गया की अंग्रेज फ्रांस की धरती से किसी को बंदी बना कर कैसे ले गए। वहां की सरकार ने इस्तीफा दे दिया।

अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में केस चला पर महारानी के हुक्म से कोर्ट ने उन्हें 2 आजीवन कारावास का दंड दिया। सावरकर जी ने कहा चलो ईसाई सत्ता ने सनातनियो के पुनर्जन्म सिद्धांत को स्वीकारा तो सही।

कालेपानी अंडमान में उन्होंने देखा की मुस्लिम वार्डनर कैसे हिन्दुओ का धर्मान्तरन छल अत्याचार से करते है। ऐसे ही एक लड़के को उन्होंने जल छिड़क कर शुद्ध किया और उसके साथ बैठ कर खाना खाया। उनके बड़े भाई ने इस बीच 3 चिट्ठियां ब्रिटिश सरकार को लिखी ताकि वे रिहा हो जो अस्वीकार हो गयी।

1921 में सावरकर जी ने स्वयं अंग्रेज सरकार को चिठ्ठी लिख कर रिहाई की मांग की। उनके अनुसार जेल में बंद रह कर वे कुछ नहीं कर सकते थे इसलिए बाहर आना आवश्यक था।

ब्रिटिश सरकार का अधिकारी कैडोक कहता है की ये स्पष्ट है की सावरकर अपने समय के सबसे खतरनाक क्रान्तिकारियो में से एक है यदि उन्हें रत्नागिरी जेल भेजा तो उनके दस्ते के क्रन्तिकारी उन्हें निकालने के षड्यंत्र रचेंगे। यदि उन्हें अंडमान से बाहर निकाला तो उनका भारतीय क्रान्तिकारियो के यूरोपीय दस्ते वाले जेल तोड़कर उन्हें भगा ले जायेंगे। इसलिए सावरकर के द्वारा लिखा गया पत्र नाटक मात्र है।

इसी से पता चलता है की अंग्रेज उनसे कितने भयभीत थे। 1921 में उन्हें रत्नागिरी में भेज दिया गया। 1924 से उन्हें उनके घर में ही नजरबन्द कर दिया।

1939 में उनके घर पर नेताजी बोस उनसे मिले। सावरकर जी ने उनसे आजाद हिन्द फ़ौज के निर्माण के लिए रास बिहारी से सिंगापूर में मिलने के लिए कहा और हिटलर से भेंट के लिए जर्मनी जाने को कहा। बोस इसके 6 महीने बाद पठान वेश में अफगानिस्तान ईरान रूस के रास्ते जर्मनी पहुंचे।

सावरकर जी ने हिन्दू युवको को आह्वान किया की वे अधिक से अधिक ब्रिटिश सेना में भर्ती हो क्योंकि तब सेना में 70% मुस्लिम थे उनकर कारण सेना में 65% हिन्दू हुए और वही हिन्दू सैनिक विभाजन के बाद देश के काम आये और मुस्लिम सैनिक अधिकतर पाकिस्तान चले गयेथे।

सावरकर जी के अनुसार एक बार बन्दुक तो हाथ में आये फिर ये हम पर निर्भर करता है की उनका मुंह हम कहाँ खोले।

उन्होंने स्वतंत्रता पश्चात गांधीवादियों द्वारा सेना पुलिस भंग करने का विरोध किया उन्होंने कहा हमे विकास तो करना है पर सुरक्षित भी रहना है। सुरक्षित नहीं रहेंगे तो जो सड़के हम बनाएंगे उन पर दुश्मनो के टैंक भी दौड़ सकते है।

उनका एक ही मन्त्र था राजनीती का हिन्दुकरण व् हिन्दुओ का सैनिकीकरण
जो आज भी अधूरा है।

सवरलर जी 1962 में चीन युद्ध के कारण सदमे में थे। 4 दिन पहले उन्होंने अपने दरजी से कहा की मैं इस दिन इस समय प्राण त्याग दूंगा। मेरा कपडा और कुर्ता तैयार रखना। ठीक समय पर उन्होंने प्राण त्यागे और फरवरी 1962 में यह महान क्रन्तिकारी परमात्मा में विलीन हो गया।

उनके स्वप्न को पूरा करने के लिए हम प्रतिबद्ध है। नकली स्वतंत्रता के बल पर देश को 65 सालो से लूटने का क्रम आज भी जारी है राष्ट्र को असली स्वतंत्रता ही स्वातंत्र्य वीर सावरकर को श्रद्धांजलि है।

सावरकर का मन्त्र महान
हिंदी हिन्दू हिन्दुस्थान।
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