Sunday, May 10, 2015

ओ३म् ईश्वरस्तुति का सही तरीका क्या है ????? मेरा आज का लेख स्वर्ग के ठेकेदारो , धर्म...

ओ३म्
ईश्वरस्तुति का सही तरीका क्या है ?????
मेरा आज का लेख स्वर्ग के ठेकेदारो , धर्म के व्यपारियो , गुरूघंटालो और बाबओ को हजम नही होगी क्योकी इससे इनके व्यापार मे दखल पडने वाला है |
हमारे देश के अलग अलग भागो मे भिन्न भिन्न प्रचलन है कही राम का , कही कृष्ण का , कही राधा का , कही राधास्वामी का , कही जगरनांथ स्वामी , कही कार्तिक , शेरावाली , कही दुर्गा कही काली , कही गणेश , अर्थात् जिसने जिसे चाहा ईश्वर बनाकर पूजनीय बना लिया और अभी भी रोजाना नये नये ईश्वर पैदा हो ही रहे है जैसे क साई , निरंकारी , निर्मल बाबा , पीर , मजार , जीन , जीनाद , फादर आदी आदी |
इनमे से आधे से ज्यााद काल्पनिक है जिनका होना कभी संभव ही नही है जो सृष्टि नियम विरूद्ध है , ये पीर मजार हमारे ही वीर बहादुर पूर्वजो के कातिल है लेकिन कितने दुर्भाग्य की बात है जो आज का समाज इनका पूजन कर रहा है |
मै यहाँ दो महापुरूष श्रीराम और श्रीकृष्ण मे से राम का प्रमाण दूगाँ की ईश्वरस्तुति का सही रास्ता क्या है इन्होने किसकी उपासना की थी ??????? और सही रास्ता क्या है ?? हमे किस रास्ते पर चलना चाहीए ??
क्योकी हमे सीखाया जाता है राम नाम की लूट है …..
जपे जा राधे राधे
राधा के बिना श्याम आधा
राम जी चले न हनुमान के बिना …
भोले शंकर पधारो ..
माँ शेरावाली तेरा बेटा आ गया ..
माता जिनका नाम पुकारे वो किस्मत वाले होते है …
राधा का भी मीरा का भी श्याम
यानी ईश्वर के नाम पर व्यापार बना रखा है धर्म के ठेकेदारो ने और समाज को लगातार गुमराह कर रहे है लेकिन सत्य क्या है ??????

वैदिक संस्कृति , वैदिक मान्यताओ , वैदिक सिद्धान्तो , वैदिक ज्ञान पर तथाकथित धर्म और स्वर्ग के ठेकेदारो ने जो कुठाराघात कर कलंक लगाया है उसे आज का समाज चाहे कितना ही छिपा ले पर मिटा नही सकते सच्चाई तो सामने आती ही है | इस बात केवल एक छोटा सा प्रमाण दे रहा हूँ
तथाकथित धर्म के ठेकेदारो ने कहाँ है
और आज भी धर्म के ठेकेदार बन उपदेश देते है :- स्त्रीशूद्रौ नाधीयातामिति श्रुतेः अर्थात् स्त्री और शूद्र न पढ़े यह कहाँ इन्होने | ध्यान दे इन्होने पढ़ने के लिए ही मना कर दिया | यह बात राजीव भाई ने भी खुलकर नही बताई केवल संकेत दिया यह कह कर हमारे मूल मंत्रदाता महर्षि दयानन्द है और स्वदेशी चिकित्सा वाले व्यख्यान मे स्पष्ट रूप से महर्षि दयानन्द को पढ़ने के लिए बताया है | उनका मुख्य मुद्दा अलग था इसलिए इसपर कुछ नही कहा केवल संकेत मात्र दिया | हमारे पतन के कारण केवल अंग्रेज और मुल्ले ही नही बल्कि सबसे ज्यादा धर्म के ठेकेदार ही है |
जबकी वेद मे ही आया है
यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्याः यजु २६/२
यह कल्याणी वाणी समस्त मानव मात्र के लिए है |

ये है धर्म और स्वर्ग के ठेकेदारो के योगदान का एक छोटा सा नमूना | इन्होने देश की जड़ को कमजोर किया और मुस्लमानो , अंग्रेजो और विदेशी लूटेरे ने आकर पेड़ को काटा |
रामचरित मानस मे बहुत ज्यादा दोष है जैसे राम का मूर्तिपूजन , राम द्वारा महर्षि की पत्नि अहिल्या को पैर द्वारा स्पर्श , स्वयंवर की गलत परिभाषा देकर सीता स्वंयवर को गलत तरीके से परिभाषित करना , राम को ईश्वर और अन्तर्यामी कहना , हनुमान और सभी वानरो की पूछँ होने को बताना हनुमान द्वारा सूर्य को निगलना , राम को कभी ईश्वर को कभी विष्णु के अवतार के रूप मे वर्णन आदी आदी
इसलिए मै उदाहरण महर्षि बाल्यमिकी कृत रामायण से दे रहा हूँ :– बाल्यकांड चतुर्दशः सर्ग श्लोक संख्या ( ०२, ०३ ११ ) | रामायण मे स्पष्ट महर्षि बाल्यमिकी जी ने लिखा है श्रीराम सन्ध्योपासन ( ब्रह्मयज्ञ ) करते थे | तो जब सही रास्ता ब्रह्मयज्ञ का हो उसे छोड़ ढोलक , झाल लेकर हम असत्य का रास्ता क्यो धारण करे ??? ब्रह्मयज्ञ मे एक पैसे का खर्च नही है जो समय आप माला जपने , ढोलक पीटने मे खर्च करते है वही आप सन्धयोपासन मे करे बस |
जो आपको किसी का नाम जपने , माला फेरने को कहे उससे आप एक ही प्रश्न करे राम और कृष्ण ने किसका नाम जपा था ??????
हमारा दुर्भाग्य यह है की हमे रामायण के नाम पर रामचरित मानस पढ़ाया जाता है जिसमे हद से ज्याद गलत लिखा हुआ है |
महर्षि दयानन्द ने अपनी पुस्तक पंचमहायज्ञ विधि मे ब्रह्मयज्ञ का बहुत ही विस्तारपूर्वक वर्णन किया है | यही सत्य मार्ग है क्योकी यही वेद का रास्ता है यहा रास्ता श्रीराम , श्रीकृष्ण और सभी महापुरूषो ने अपनाया है | अतः सत्य को पहचाने और वेद की ओर लौटे |
ब्रह्मयज्ञ या सन्धयोपासन का चलभाष अनुप्रयोग प्राप्त करने के लिए

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