Monday, November 2, 2015

मीडिया पर लिखी इस कविता पर गौर करें :- आज कलम का कागज से मै दंगा करने वाला हूँ, मीडिया की सच्चाई को...

मीडिया पर लिखी इस कविता पर गौर करें :-
आज कलम का कागज से मै दंगा करने वाला हूँ,
मीडिया की सच्चाई को मै नंगा करने वाला हूँ ।
मीडिया जिसको लोकतंत्र का चौंथा खंभा होना था,
खबरों की पावनता में जिसको, गंगा होना था,
आज वही दिखता है हमको वैश्या के किरदारों मे,
बिकने को तैयार खड़ा है गली चौक बाजारों मे ।
दाल में काला होता है तुम काली दाल दिखाते हो,
सुरा सुंदरी उपहारों की खुब मलाई खाते हो ।
गले मिले सलमान से आमिर, ये खबरों का स्तर है,
और दिखाते इंद्राणी का कितने फिट का बिस्तर है ।
म्यॉमार में सेना के साहस का खंडन करते हो,
और हमेशा दाउद का तुम महिमा मंडन करते हो।
हिन्दु कोई मर जाए तो घर का मसला कहते हो,
मुसलमान की मौत को मानवता पे हमला कहते हो।
लोकतंत्र की संप्रभुता पर तुमने कैसा मारा चाटा है,
सबसे ज्यादा तुमने हिन्दु और मुसलमान को बाँटा है।
साठ साल की लूट पे भारी एक सूट दिखलाते हो,
ओवैशी को भारत का तुम रॉबिनहुड बतलाते हो।
दिल्ली मे जब पापी वहशी चीरहरण मे लगे रहे,
तुम एेश्वर्या की बेटी के नामकरण मे लगे रहे।
ये दुनिया समझ रही है खेल ये बेहद गंदा है,
मीडिया हाउस और नही कुछ ब्लैकमेलिंग का धंधा है।
गुंगे की आवाज बनो अंधे की लाठी हो जाओ,
सत्य लिखो निष्पक्ष लिखो और फिर से जिंदा हो जाओ
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