Sunday, November 8, 2015

कार्तिक कृष्ण ११ वि.सं.२०७२ ७ नवंबर २०१५ 😶 “ देवमन द्वारा ज्ञान की स्थिरता !...

कार्तिक कृष्ण ११ वि.सं.२०७२ ७ नवंबर २०१५

😶 “ देवमन द्वारा ज्ञान की स्थिरता ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् पुनरेहि वाचस्पते देवेन मनसा सह । 🔥🔥
🍃🍂 वसोष्पते नि रमय मय्येवास्तु मयि श्रुतम् ।। 🍂🍃

अथर्व० १ । १ । २

ऋषि:- अथर्वा: ।। देवता- वाचस्पति: ।। छन्द:- अनुष्टुप् ।।

शब्दार्थ- हे वाणी व ज्ञान के पालक देव!
फिर मुझमें आओ; देव, द्योतमान मन के, मननक्रिया के साथ आओ। हे वसु के पति! तुम मुझे (इस ज्ञान में) रमण कराओ, रस दिलाओ, आनन्दित कराओ; मेरा सुना हुआ ज्ञान मुझमें ही रहे, ठहरे।

विनय:- मैं जो कुछ सुनता हूँ वह मुझमें ठहरता नहीं। मानो मैं ‘एक कान से सुनता हूँ और दूसरे से निकाल देता हूँ।’ इस तरह मेरा मनोमय शरीर ऐसा रोगग्रस्त हुआ पड़ा है कि मैं अच्छे-से-अच्छा सत्य उपदेश सुनकर और उत्तम-से-उत्तम वेदज्ञान पाकर भी उसे अपने में धारण नहीं कर सकता। इसका कारण यह है कि मेरे इस शरीर ने अपनी मनन-क्रिया को छोड़ दिया है। मनन करना, आत्मचिन्तन करना, एकान्त में आत्मनिरीक्षण व विचार करना त्याग दिया है। ऐसा करना मेरे स्वभाव में ही नहीं रहा है, अतः मेरा मन 'देव’ नहीं रहा है, द्योतमान, प्रज्वलित और जीवनसम्पन्न नहीं रहा है और मेरा मनोमय शरीर मृतप्राय हो गया है, अतः हे वाचस्पते! हे वाणी व ज्ञान के पालक देव! हे मेरे मनोमय देह के प्राण! तुम फिर मुझमें आओ और अपने प्रवेश द्वारा मेरे इस मृत मनशरीर को पुनर्जीवित कर दो। तुम देव-मन के साथ फिर मुझमें प्रविष्ट होओ और मुझमें मनन, चिन्तन और आत्मभावन व आत्मनिरीक्षण का अभ्यास फिर से जारी कर दो। अभी तक बेशक बिना भूख के खाये स्वाद-से-स्वाद भोजन की तरह मेरा सुना हुआ सुन्दर-से-सुन्दर वेद-ज्ञान मुझे नीरस और अरुचिकर लगता रहा है।
हे ज्ञान-ऐष्वर्य के रक्षक!
तुम ऐसा करो कि शुष्क-से-शुष्क किन्तु सत्य और हित के उपदेश मुझे अब बड़े आनन्ददायी और सरस लगने लगे। तुम मुझमें मनन-क्रिया को ऐसा जगा दो कि मेरा मन द्योतमान हो जाए। तब तो भूख में आये रूखे-सूखे भोजन की भाँति भी शुष्क-से-शुष्क दीखनेवाले उच्च ज्ञान में भी मेरा मन निःसन्देह रमने लगेगा और बड़ा आनन्दरस पाने लगेगा।तब तो मैं जो कुछ सुनूँगा वह अवश्य मुझमें ठहरेगा और इस प्रकार मैं प्रतिदिन नया-नया ज्ञान ग्रहण करता हुआ मानसिक रूप में समुत्रत, वृद्धिगत और विकसित होता जाऊँगा।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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