Monday, November 30, 2015

वेदोपदेश : ● सत्य में श्रद्धा - झूठ में अश्रद्धा...

वेदोपदेश :

● सत्य में श्रद्धा - झूठ में अश्रद्धा ●
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‘श्रद्धा’ (= श्रत् + धा) का अर्थ है - सत्य पर विश्वास करना ।

झूठी बातों पर विश्वास करने को श्रद्धा नहीं कहते । इसका नाम है - अन्ध विश्वास ।

गंगा-स्नान मात्र से मुक्ति नहीं हो सकती ।

मूर्ति-पूजन से ईश्वर नहीं मिलता ।

मरे पितरों को कोई भोजन नहीं पहुँचा सकता ।

जो इन झूठी बातों पर विश्वास करता है वह 'श्रद्धालु’ नहीं, अपितु 'अन्ध-विश्वासी है ।

अन्धा मनुष्य साँप को रस्सी समझकर पकड़ ले तो साँप उसको अवश्य काट लेगा ।

इसलिये केवल सच्ची बातों पर श्रद्धा करनी चाहिए, झूठी बातों पर नहीं ।

झूठी बातों पर श्रद्धा करना बुरा है ।

वेद में लिखा है -

'अश्रद्धाम् अनृते अदधात् श्रद्धाम् सत्ये प्रजापति:’

(यजुर्वेद : अध्याय १९, मन्त्र ७७)

इस मन्त्र में परमात्मा का उपदेश है कि -

“झूठ में अश्रद्धा करो और सत्य में श्रद्धा ।”

जो मनुष्य सत्य में अश्रद्धा करता है और असत्य में श्रद्धा करता है, वह अपने आप तो डूबता ही है, संसार को भी डुबो मारता है ।

आजकल के ढोंगी आदमी लोगों को 'श्रद्धा’-'श्रद्धा’ कहकर ठगते फिरते हैं । इनसे बचना चाहिये ।

[संदर्भ ग्रन्थ : धर्म-सार, लेखक पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय, पृष्ठ ७४-७५, जनज्ञान प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रस्तुति : भावेश मेरजा ]


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