Monday, November 30, 2015

नास्तिक:-(१)Parmatam kise kahte hai aap…??? (२)Agar aap key kahna chahate hai k bhagwan...

नास्तिक:-(१)Parmatam kise kahte hai aap…???
(२)Agar aap key kahna chahate hai k bhagwan hai….???
toh mai nastik hu.
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जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव,प्रकृती तथा प्रकाश से भी अतिशुक्ष्म और सब जीवो का अन्तर्यामी आत्मा है,
इससे ईश्वर का नाम'परमात्मा'है|
(सत्यार्थप्रकाश:प्रथम समुल्लास)
प्रशन-ईश्वर है-इस बात का पता कैसे चल सकता है ?
उत्तर-ईश्वर कि सत्ता का ज्ञान तीन प्रमाणो से मिलता है |
१.जब मनुष्य किसी श्रेष्ठ कार्य को करता है तो ह्रदय मे हर्ष और उत्साह पैदा होता है तथा जब बुरा काम करता है,तो लज्जा,शंका और भय उत्पन्न होता है |यह प्रेरणा अन्तर्यामी ईश्वर कि ओर से ही मिलती है |जो व्यक्ति इस प्रेरणा के अनुसार स्वतन्त्रापूर्वक आचरण करता है,वह बुराई से बच कर सन्मार्ग की ओर बढता है और जो इस प्रेरणा की ओर ध्यान न देकर यथेच्छ बुराईयों को करता रहता है,तो वह अवनती को पहुंचकर दु:ख उठाता है,यह प्रेरणा ईश्वर की ओर से होती है,अत:सब मनुष्यो को ईश्वर का आत्मप्रत्यक्ष होता है |
२.जब शुद्धान्त:करण समाधिस्थ होता है,तब वह अपने और ईश्वर के स्वरूप मे स्थित होकर ईश्वर का साक्षात करता है,यह योगज प्रयत्क्ष कहलाता है |
३.जैसे अनुमान प्रमाण द्वारा धूम और अग्नि की व्याप्ति जानकार धूम दर्शन से अग्नि की व्याप्ति जानकार धूम दर्शन से अग्नि का अनुमान प्रमाण करना होता है,वैसे ही सृष्टि मे रचना आदि विशेष गुणो के ज्ञान द्वारा ईश्वर की सिद्धी अनुमान प्रमाण से होती है |यदि रचना आदि विशेष गुणो के आधार पर गुणी का आत्मप्रत्यक्ष भी हो जाता है |यह बडी विलक्षण सिद्धी है |
४.जैसे घडी को देख कर हम घडीसाज का अनुमान कर लेते है,ऐसे ही सृष्टी को देख रूपी कार्य को देख कर इसके कर्त्ता ईश्वर का अनुमान भी हो जाता है |
५.शब्द प्रमाण वेद से ईश्वर की सत्ता की प्राप्ति होती है | जैसे
१.स दाधार पृथिवीमुत द्याम
२.द्यावाभूमि जनयन्देव एक :
३.य ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद:यो अन्तरिक्षे रजसो विमान:-इत्यादि इन वेद वचनो से ईश्वर का सृष्टि-कर्तव्य सिद्ध होता है |
प्रशन-जो वस्तु दिखाई नही देती,उसको कयो माना जाये ?
उत्तर-न दिखाई देना पदार्थ की सत्ता को नही रोक सकता,यदि उसकी सिद्धी दूसरी रीतियो से हो सके|भूख-प्यास,सुख-दुख दिखाई नही देते,परन्तु प्राण और मन ग्रहण द्वारा ग्रहण किये जाने से प्रत्यक्ष सिद्ध है |इनकी सत्ता का निषेध नही हो सकता |
अब कारण से ईश्वर की सत्ता को समझे
प्रशन-कारण किसे कहते है ?
उत्तर-कार्य से पूर्व जिसका होना आवश्यक हो,अर्थात जिसके बिना वह कार्य न बन सके,उसको बनने वाला का कारण कहते है |
उदाहरण जैसे घडा कार्य है अर्थात बनाया जाता है |घडा बनने से पहले ये तीन साधन पहले होने आवश्यक है |१.मिट्टी २.कुम्भकार ३.कुम्भकार के साधन दण्ड,चक्र आदि औजार|घडा बनने से पहले तीनो का होना आवश्यक है और इन तीनो के बिना घडा बन नही सकता | अत:घडे के प्रति इन तीनो को कारण कहा जाता है |
इस प्रकार बनाने वाले को कर्त्ता=निमित्त कारण कहते है | दूसरा जिस से कार्य (पदार्थ)बनता है,उसको उपादान कारण कहते है | तीसरा जिन औजारो से से कार्य कार्य बनाया जाता है,उनको साधारण उपादान कारण कहते है |इस प्रकार सृष्टी भी कार्य है,कयोकि सृष्टी भी बनी हुई है,जो प्रत्यक्ष सिद्ध है |
प्रशन-सृष्टी के उपर्युक्त तीन कारण कौन-कौन से है ?
उत्तर-पहला निमित्त कारण ईश्वर है |दूसरा उपादान कारण प्राकृती परमाणु है |तीसरा साधारण निमित्त कारण-जीवात्मा है | इन तीनो कारणो से ही यह सृष्टी बनती है |यदि तीनो कारणो मे से एक भी न हो तो सृष्टी बन नही सकती है |सृष्टी बनने से पूर्व इन तीनो का होना आवश्यक है | निमित्त कारण ईश्वर ही प्रकृती-परमाणुओ मे संयोग(गति)देकर यथायोग्य मेल से नित्य तत्व परमाणुओ द्वारा कार्यरूप सृष्टी-लोक-लोकान्तरो(सूर्य और पृथ्वी आदि ग्रह-उपग्रह)का निर्माण करता है |यदि ईश्वर न हो तो परम सूक्ष्म नित्य निरवयव परमाणुओ से सृष्टी बन नही सकती | कयोकि जीव का स्वभाव अल्प सामर्थ्य अल्प होने के कारण और परमाणुओ के अतिशुक्ष्म होने के कारण उन को जीव वश मे नही ला सकता | इन को वश मे लाने वाला सुक्ष्मतम चेतन सर्वव्यापक ईश्वर ही है | और परमाणु(प्रकृती)भी जड पदार्थ होने से अपने आप गति नही कर सकता |इस प्रकार सृष्टी के तीन कारण-ईश्वर,जीव और प्रकृती तूनो नित्य है | तीनो का कारण रूप होना आवश्यक है | इन्ही तीनो कारणो को मान कर त्रैतवाद कहा जाता है |ध्यान रखे ब्रह्म अखण्डित,एकरस,चेतन सत्ता है |उसमे विकार होकर सृृष्टी नही बनती है | कयोकि वह तो निमित्त कारण है | उपादान प्रकृती मे विकार होकर यह जगत् बनता है | इस कारण ब्रह्म उपादान कारण नही हो सकता | वह केवल निमित्त कारण ही है |
ईश्वर जगत् का नियन्ता है | जैसे वह सब जीवो और जड जगत् को नियम मे रखता है,उसी प्रकार अपने नियमो पर रहता है | जैसे स्वम बनाये नियमो को तोडना वाले मनुष्य को भी अच्छा नही समझा जाता,फिर सर्वेश्वर का तो कहना ही कया ह ? अत: ईश्वर भी अपने नियमानुसार ही कार्य करता है,यह गुण है,दोष नही | सर्वशक्तिमन् इसलिए है कि अपने (जगत् रचना,पालना और संहार करने)आदि मे किसी जीव की सहायता की अपेक्षा की अपेक्षा नही रखता है | ईश्वर के नियम सत्य और अटल है | उनमे परिवर्तन का नाम भी नही |
प्रशन-जीव और ईश्वर मे कितनी समानता और कितनी भिन्नता है ?
उत्तर-ईश्वर,जीव और प्रकृती(सृष्टी का उपादान कारण)तीनो मे सत्ता समान धर्म है | जीव और ईश्वर मे सत्ता के साथ ही चेतनता भी समान धर्म है | जीव अल्प,अल्पज्ञ,परिच्छिन्न,कर्मो का कर्त्ता भोक्ता है|जन्म-मृत्यु के प्रवाह मे पडने वाला है | परन्तु ईश्वर सर्वव्यापक,सर्वज्ञ,सर्वशक्तिमान,सृष्टि का रचयिता-संहर्त्ता,जीव को कर्म फल भुगाने वाला आदि अन्नत सामर्थ्य सम्पन्न है | यह दोनो का भेद है |
प्रशन-सृष्टी किसे कहते है ?
उत्तर-परम सूक्ष्म नित्य पृथक्-पृथक् विद्यमान तत्वावयवो के प्रथम संयोग आरंभ से क्रमश:स्थूलावस्थान्तर को प्राप्त होता हुआ यह जड संसार संसर्ग के कारण सृष्टी कहलाता है और पृथ्वी,जल,अग्नि और वायु इन चारो स्थूल भूतो के कारण पृथक-पृथक परमाणु तथा आकाश,काल,दिशा ये नित्य पदार्थ है | इन्ही नित्य तत्वो को एक नाम प्रकृती कहते है और किसी भी पदार्थ के उस छोटे से छोटे टुकडे-(अंश)को परमाणु कहते है,जिसके और टुकडे-(अंश)न हो सके| वही अन्तिम टुकडा परमाणु कहलाता है,जो अति सुक्ष्म है|
प्रशन-ईश्वर को न माने तो कया हानि है ?
उत्तर-सर्वज्ञ,सर्वव्यापक,सर्वशक्तिमान् पदार्थ के संयोग से जो आत्मोत्थान होता है ,वह नही हो सकेगा और जीवात्मा कभी भी दु:खो से पार न होकर जन्म-मरण के प्रवाह मे पडा रहेगा | ईश्वर ही एक पूर्णसत्ता है,जिसको उपासना और साहाय्य से मनुष्य उन्नत हो सकता है | अत:ईश्वर को न माने मे इन गुणो से मनुष्य वंचित रह कर परम कल्याण को प्राप्त नही कर सकता |
प्रशन-ईश्वर की प्राप्ति का कया अभिप्राय है?
उत्तर-ईश्वर के गुणो को मनुष्य अपने भीतर धारण करके आत्मोन्नति कर योगाभ्यास की रीति से ईश्वर का साक्षात् करे| इसी को ईश्वर-प्राप्ति कहा जाता है |
साभार:-वैदिक धर्म प्रशिनोतरी
लेखक:-श्री पं०जगदेवसिंह जी'सिद्धान्ती’,
शास्त्री
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सार:-बडे बडे नास्तिक भी अन्त समय मे स्वीकार कर गये की कोई तो शक्ति है जो सारे संसार को चला रही है ,जिसके समरण करने मात्र से जीव दुख-कलेश से छूट कर उत्साह शक्ति पाता है,नाकरात्मक से सकरात्मक की ओर बढता है,सो आशा है उपर्युक्त लेख से आप भी ईश्वर,जीव,प्रकृती के वैदिक सिद्धान्त को समझ कर ईश्वर कि सत्ता को स्वीकार करेंगे और नास्तिक से आस्तिक बनेगें कयोकि लिखने को तो और भी तर्क विद्वानो से दिये जा सकते है | लेकिन बुद्धिमान तो इतने से भी ईश्वर कि सत्ता को समझ सकते है और जो जिद्दी अडियल नास्तिक है उन्हे किसी भी तर्क सिद्धान्त से समझाया नही जा सकता है |
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“विश्वास वो शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया में भी प्रकाश किया जा सकता है”
प्रेषक:- 📝……..नरेश खरे


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