Saturday, March 7, 2015

"हि॒र॒ण्य॒गर्भः सम॑वत्-र्त॒ताग्रे॑ भूतस्य॑ जातः पति॒रेक॑आसीत्।स दा॑धार..."


हि॒र॒ण्य॒गर्भः सम॑वत्-र्त॒ताग्रे॑ भूतस्य॑ जातः पति॒रेक॑आसीत्।स दा॑धार पृथि॒वीन्ध्यामुतेमाक्ङस्मै॑दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम।२॥यजुर्वेद० १३।२


(अर्थ)– जो(हिरण्यगर्भः)स्वप्रकाशस्वरूप आर जिसने प्रकाश करने-हारे सुर्य-चन्द्रमादि पदार्थ उत्पन्न करके धारण किये है, जो(भुतस्य)उत्पन्न हुएसम्पुर्ण जगत् का(जातः);प्रसिद्ध(पतिः)स्वामी(एकः)एक ही चेतन-स्वरूप(आसोत्)था, जो(अग्रे)सब जगत् के उत्पन्न होने से पुर्व(समवत्-र्तत)वर्तमान था,(सः)सो(इमाम्)इस(पृथिवीम्)भुमि(उत)आर(ध्याम्)सुर्यादिको(दाधार)धारण कर यहा है, हम लोग उस(कस्मै)सुखस्वरूप(देवाय)शुद्ध परमात्मा के लिए(हविषा)ग्रहण करने योग्य योगाभ्यास और अतिप्रेम से(विधेम)विशेष भकि्त किया करें।




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