Friday, March 27, 2015

जीवन का सद्व्यय मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय और मैथुन में व्यतीत हो जाता है।...

जीवन का सद्व्यय

मनुष्य जीवन का अधिकांश भाग आहार, निद्रा, भय

और मैथुन में व्यतीत हो जाता है। शारीरिक

आवश्यकताओं की पूर्ति में समय और शक्तियों का

अधिकांश भाग लग जाता है। विचार करना चाहिए

कि क्या इतने छोटे कार्यक्रम में लगे रहना ही मानव

जीवन का लक्ष्य है? यह सब तो पशु भी करते हैं। यदि

मनुष्य भ इसी मर्यादा के अंतर्गत घूमता रहे, तो उसमें

और पशु में क्या अंतर रह जाएगा? सृष्टि के समस्त

जीवों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने के कारण मनुष्य का

उत्तरदायित्व भी ऊँचा है। जो अपने महान् कर्त्तव्य

की ओर ध्यान नहीं देता, निश्चय ही वह मनुष्यता

का महान् गौरव प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

दु:ख और अधर्म को हटाकर सुख और धर्म की

स्थापना करना, मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना

चाहिए। ईश्वर ने जो योग्यताएँ और शक्तियाँ मानव

प्राणी को दी हैं, उनका सदुपयोग यही हो सकता है

कि दूसरों की सहायता की जाए, उन्हें सुख एवं उत्तम

जीवन बिताने में सहयोग दिया जाए। बेशक,

शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रम

करना आवश्यक है, परंतु यह भी ध्यान रखना चाहिए

कि जीवन-निर्वाह की साधारण समस्या को हल

करने के उपरांत जो समय और शक्ति बचती है, उसे

परमार्थ में, संसार की भलाई में लगाना चाहिए। जो

मनुष्य स्वार्थ पर से दृष्टि हटाकर परमार्थ पर जितना

ध्यान देता है, समझना चाहिए कि वह उतना ही

जीवन का सद्व्यय कर रहा है।




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