शुद्ध कर्म, स्वस्थ भोजन और योग आदि से दीर्घ आयु के लिए प्रयासरत रहते और अपने उत्तम उत्तम गुणों और संस्कारों का संचयन अपनी संतानों में करो क्यूंकि भविष्य यदि संस्कारित ना हुआ तो देश का भविष्य भी खतरे में ही रहेगा इसलिए देश का उज्जवल भविष्य देखने के लिए आने वाली युवा पीढ़ी संस्कारमय होनी चाहिए
बच्चों को बचपन से ही वेदों की शिक्षा दें जिससे वह बड़ा होकर वेदों से विमुख ना हो
यजुर्वेद ४-२३(4-23)
सम॑ख्ये दे॒व्या धि॒या सन्दक्षि॑णयो॒रुच॑क्षसा मा म॒ आयुः॒ प्र मो॑षी॒र्मो अ॒हन्तव॑ वी॒रँवि॑देय॒ तव॑ देवि सन्दृशि॑ ॥४-२३॥
भावार्थ:- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालंकार है। मनुष्यों को योग्य है कि शुद्ध कर्म वा प्रज्ञा से वाणी वा विजुली की विघया को ग्रहण कर उमर को बढ़ा और विघयादि उत्तम-उत्तम गुणों में अपने सन्तान और वीरों को सम्पादन करके सदा सुखी रहें।।
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