Wednesday, April 29, 2015

मित्रो ! नीचे इस लेख में पढिये एक पढ़े लिखे मुर्ख की मानसिक दशा कैसी है आध्यात्म को लेकर...

मित्रो ! नीचे इस लेख में पढिये एक पढ़े लिखे मुर्ख की मानसिक दशा कैसी है आध्यात्म को लेकर
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आर्य समाज V/S हिन्दू समाज
हिंदू धर्म में ईश्वरवाद और अनीश्वरवाद दोनों का,
सर्वेश्वरवाद और बहुदेववाद दोनों का, आवागमन और
परलोकवाद दोनों का, शाकाहार और मांसाहार
दोनों का ऐसा अद्भुत समावेश किया गया है कि मैं
नहीं समझ पा रहा हूँ कि यह एक प्राचीन सभ्यता का
असीम औदार्य है या शेखचिल्लीपन। वेदों और
उपनिषदों की आवाज एक नहीं है। रामायण और
गीता एक दूसरे से भिन्न हैं। उत्तर का हिंदुत्व दक्षिण
से भिन्न है। स्वामी दयानंद का हिंदुत्व स्वामी
विवेकानन्द से भिन्न है। 19वीं सदी में जहां आर्य
समाज के संस्थापक ने हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करते
हुए मूर्ति पूजा, व्रत, उपवास, अवतारवाद,
तीर्थयात्रा आदि को पाखंड और मूर्खतापूर्ण
बताया वहीं रामकृष्ण परमहंस (1836-1886) और
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कर्मठ वेदांती स्वामी
विवेकानंद (1863-1902) ने समग्र हिंदुत्व का
प्रतिनिधित्व करते हुए मूर्ति पूजा, व्रत, उपवास,
अवतारवाद, तीर्थयात्रा आदि सभी को सार्थक और
अनिवार्य बताया है। हिंदू धर्म की इतनी स्थापनाएं
और उपस्थापनाएं हैं कि समझना और समझाना तथा
इसकी कोई खूबी बयान करना अत्यंत मुश्किल काम है।

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देखा आपने मित्रो ???
इन लोगों से क्या आशा कर सकते हैं ?

और एक जगह ये मुर्ख लिखता है कि

स्वामी दयानंद का हिंदुत्व स्वामी विवेकानंद से भिन्न है ।

जैसे इतिहास के केंद्र में विवेकानंद हो ।पढ़कर ऐसा लगता है जैसे विवेकानंद कोई प्रमाणिक आदर्श देने वाले इतिहास के परिवर्तन बिंदू थे जिसे बाद में दयानंद के वामपंथ ने झुठला दिया ।
इस मुर्ख को कोई समझाए कि दयानंद पहले हुए थे विवेकानंद बाद में । और इस बात को ऐसे लिखता तो बात का अर्थ कुछ समझ आता । कि -

स्वामी विवेकानंद का हिंदुत्व स्वामी दयानंद से भिन्न है ।


लार्ड मैकाले की पैदाइश विधर्मी होने के लिए तैयार बैठी है । आर्यों को ही कुछ करना पड़ेगा ।

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