जैसे कूडा कर्कट से भरे पात्र में सूखे मेवों से युक्त खीर हलवा आदि डालना व्यर्थ है ऐसे ही अन्धविश्वास पाखंड से भरे चित्त रुपी पात्र में शुद्ध ज्ञान विज्ञान से युक्त उपदेश डालना व्यर्थ है|इसलिए जोरदार खंडन मंडन से इस चित्त रुपी पात्र को मांजना भी बहुत आवश्यक है अन्यथा परिणाम शून्य हो सकता है|प्राय: देखने में आया है कि वर्षों से वेद उपदेश सुनते आ रहे हैं और पत्थर प्लास्टिक मिट्टी वा कागज से बनी मूर्तियों के आगे माथा रगड रहे हैं वा उनको भोग लगा रहे हैं !! पाषाण पूजा आदि के संस्कारों को पनपने ही न दें इसके लिए आवश्यक है कि माता पिता प्रारम्भ से ही बच्चों को गायत्री आदि वेद मंत्रों का अभ्यास करवाएं,नमस्ते करना सिखाएं और किसी प्रकार की मूर्ति पूजा घर में नकरें|महापुरुषों
के चरित्र से प्रेरणा लेने हेतु उनके चित्र अवश्य लगाएं |माता द्वारा गायत्री आदि वेद मंत्रों का जप करने से गर्भस्थ शिशु पर भी बहुत अच्छा प्रभाव पडता है |बच्चों को धर्म कर्म की सही शिक्षा देना माता पिता का परम कर्तव्य है वरन् वह जिन्दगी भर अन्धविश्वासों व पाखंड की बेडियों में जकडा रह सकता है |
–डा मुमुक्षु आर्य
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