यम यमी संवाद पर एक नजरऋग्वेद के दशवे मंडल के दशवे सूक्त १०|१० में यमयमी शब्द आये हैं | जिसके मुर्ख मनुष्य अनर्गलव्याख्या करते हैं | उसके अनुसार यमतथा यमी विवस्वान् के पुत्र-पुत्री हैंऔर वे एकांत में होते हैं, वहा यमी यम सेसहवास कि इच्छा प्रकट करती हैं |यमी अनेक तर्क देती किन्तु यम उसकेप्रस्ताव को निषेध कर देता |तो यमी कहती मेरे साथ तो तु ना कहेरहा पर किसी अन्य तेरे साथ ऐसेलिपटेगी जैसे वृक्ष से बेल, इत्यादि |इस प्रकार के अर्थ दिखा के वेद निंदक नास्तिक वेद को वआर्यो के प्रति दुष्प्रचार करते हैं | आर्यो का जीवनसदैव मर्यादित रहा हैं, क्यों के वे वेद में वर्णित ईश्वरकि आज्ञा का सदैव पालन करते रहे हैं | यहाँ तो यहमिथ्या प्रचार किया जा रहा अल्पबुद्धि अनार्यों द्वारा के वेद पिता-पुत्री, भाई-बहन के अवैध संबंधो कि शिक्षा देतेऔर वैदिक काल में इसका पालन होता रहा है |वेदों के भाष्य के लिए वेदांगों का पालन करना होता हैं, निरुक्त ६वेदांगों में से एक हैं | निघंटु के भाष्य निरुक्त में यस्कराचार्यक्या कहते हैं यह देखना अति आवश्यक होता हैं व्याकरणके नियमों के पालन के साथ-२ ही | व्याकरणभी ६ वेदांगों में से एक हैं |* राथ यम-यमी को भाई बहन मानते औरमनावजाती का आदि युगल किन्तु मोक्ष मुलर (प्रचलितनाम मैक्स मुलर) तक ने इसका खंडन किया क्यों के उन्हेंभी वेद में इसका प्रमाण नहीं मिल पाया |हिब्रू विचार में आदम और ईव मानव जाती में केआदि माता-पिता माने जाते हैं | ये विचार ईसाईयों और मुसलमानों मेंयथावत मान्य हैं | उनकी सर्वमान्य मान्यता केअनुसार दुनिया भाई बहन के जोड़े से हि शुरू हुई | अल्लाह(या जो भी वे नाम या चरित्र मानते हैं) उसनेदुनिया को प्रारंभ करने के लिए भाई को बहन पर चढ़ाया औरवो सही भी माना जाता और फिर उसनेआगे सगे भाई-बहनो का निषेधकिया वहा वो सही हैं | ये वे मतांध लोग हैंजो अपने मत में प्रचलित हर मान्यता को सत्य मानते हैं औरदूसरे में अमान्य असत्य बात को सत्य सिद्ध करने पर लगे रहतेहैं | ये लोग वेदों के अनर्गल अर्थो का प्रचार करने में लगेरहते हैं |स्कन्द स्वामी निरुक्त भाष्य में यमयमी कि २ प्रकार व्याख्या करते हैं |१.नित्यपक्षे तु यम आदित्यो यम्यपि रात्रिः |५|२|२.यदा नैरुक्तपक्षेमध्यमस्थाना यमी तदा मध्यमस्थानों यमो वायुवैघुतो वा वर्षाकालेव्यतीते तामाह | प्रागस्माद् वर्षकाले अष्टौ मासान्-अन्यमुषू त्वमित्यादी | |११|५आपने आदित्य को यमतथा रात्री को यमी माना हैंअथवा माध्यमिकमेघवाणी यमी तथा माध्यमस्थानीयवायु या वैधुताग्नी यम हैं | शतपथ ब्राहमण मेंअग्नि तथा पृथ्वी को यम-यमी कहा हैं|सत्यव्रत राजेश अपनी पुस्तक “यम-यमी सूक्त कि अध्यात्मिक व्याख्या” कि भूमिका मेंस्पष्ट लिखते हैं के यम-यमी का परस्पर सम्बन्धपति-पत्नी हो सकता हैं भाई बहनकदापि नहीं क्यों के यम पद “पुंयोगदाख्यायाम्” सूत्रसे स्त्रीवाचक डिष~ प्रत्यय पति-पत्नी भाव में ही लगेगा | सिद्धांतकौमुदी कि बाल्मानोरमा टिका में “पुंयोग” पदकि व्याख्या करते हुए लिखा हैं –“अकुर्वतीमपि भर्तकृतान्** वधबंधादीन्यथा लभते एवं तच्छब्दमपि, इति भाष्यस्वारस्येन जायापत्यात्मकस्यैव पुंयोगस्य विवाक्षित्वात् |”यहा टिकाकर ने भी महाभाष्य के आधार परपति पत्नी भाव में डिष~ प्रत्यय माना हैं | औरस्वयं सायणाचार्य ने ताण्डय्-महाब्राहमण के भाष्य मेंयमी यमस्य पत्नी, लिखा हैं ,अतः जहा पत्नी भाव विवक्षितनहीं होगा वहा – “अजाघतष्टाप्” से टाप् प्रत्ययलगकर यमा पद बनेगा और अर्थ होगा यम कि बहन | जैसे गोपकि पत्नी गोपी तथा बहनगोपा कहलाएगी.,अतः यम-यमी पति-पत्नी हो सकते हैं, भाई बहनकदापि नहीं | सत्यव्रत राजेश जी नेअपनी पुस्तक में यम को पुरुष-जीवात्मा तथा यमी को प्रकृति मान करइस सूक्त कि व्याख्या कि हैं |स्वामी ब्रह्मुनी तथा चंद्रमणि पालिरात्नने निरुक्तभाष्य ने यम-यमी को पति-पत्नी ही माना हैं | सत्यार्थ प्रकाश मेंमहर्षि दयानंद कि भी यही मान्यता हैं|डा० रामनाथ वेदालंकार के अनुसार – आध्यात्मिक के यम-यमी प्राण तथा तनु (काया) होने असंभव हैं |जो तेजस् रूप विवस्वान् तथा पृथ्वी एवं आपः रूपसरण्यु से उत्पन्न होते हैं | ये दोनों शरीरस्थआत्मा के सहायक एवं पोषक होते हैं | मनुष्य कि तनुया पार्थिव चेतना ये चाहती हैं कि प्राण मुझ सेविवाह कर ले तथा मेरे ही पोषण में तत्पर रहे |यदि ऐसा हो जाए तो मनुष्य कि सारी आतंरिकप्रगति अवरुद्ध हो जाये तथा वह पशुता प्रधानही रह जाये | मनुष्य का लक्ष्य हैं पार्थिकचेतना से ऊपर उठकर आत्मलोक तक पहुचना हैं |श्री शिव शंकर काव्यतीर्थ ने यम-यमी को सूर्य के पुत्र-पुत्री दिन रातमाना हैं तथा कहा हैं कि जैसे रात और दिनइकठ्ठा नहीं हो सकते ऐसे ही भाई-बहन का परस्पर विवाह भी निषिद्ध हैं |पुरुष तथा प्रकृति का आलंकारिक वर्णन मानने पर,प्रकृति जीव को हर प्रकार सेअपनी ओर अकार्षित करना चाहती हैं,किन्तु जीव कि सार्थकता प्रकृति के प्रलोभन में नफसकर पद्मपत्र कि भाति संयमित जीवन बिताने में हैं|इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में वेद और लोक व्यहवार –विरुद्ध भाईबहिन के सहवास सम्बन्धी अर्थ को करना युक्तनहीं हैं | इसी सूक्त मेंकहा हैं-“पापमाहुर्यः सवसारं निगच्छात्” बहिन भाई का अनुचितसम्बन्ध पाप हैं | इसे पाप बताने वा वेद स्वयं इसकेविपरीत बातकि शिक्षा कभी नहीं देता हैं |सन्दर्भ ग्रन्थ – आर्य विद्वान वेद रत्न सत्यव्रत राजेश केव्याख्यानों के संकलन “वेदों में इतिहास नहीं” नामकपुस्तिका से व्याकरण प्रमाण सभारित |
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