शिक्षा प्राप्त कर नित नए नए आविष्कारों से विविध प्रकार के कलात्मक उपकरण बनाये जिससे ईश्वर द्वारा प्रदत पदार्थों को विविध रूप देकर उनका उपयोग कर जीवन सुखमय बना सके
जैसे भोजन पकाने के लिए अग्नि का उपयोग होता है, अब इसी अग्नि को अन्य रूप में कैसे उपयोग लिया जाता है या उनके लिए क्या क्या उपकरण होते है, कुछ इसी प्रकार के विविध प्रकार के उपकरणों के निर्माण के लिए इस मन्त्र में बताया गया है
यजुर्वेद ४-१८(4-18)
तस्या॑स्ते स॒त्यस॑वसः प्रस॒वे त॒न्वो॑ य॒न्त्रम॑शीय॒ स्वाहा॑ । शु॒क्रम॑सि च॒न्द्रम॑स्य॒मृत॑मसि वैश्वदे॒वम॑सि ॥४-१८॥
भावार्थ:- मनुष्यो को चाहिये कि ईश्वर की उत्पन्न की हुई इस सृष्टि में विद्या से कलायन्त्रों को सिद्ध करके अग्नि आदि पदार्थों से अच्छे प्रकार पदार्थों का ग्रहण कर सब सुखों को प्राप्त करें।।
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