भारत में दो किस्म के लोग होते हैं, एक जो धूर्त किस्म के होते हैं, और दूसरे जो मूर्ख किस्म के लोग. धूर्त लोग कामयाब होते हैं, और मूर्ख लोग असफल. लाइन में लगा हुआ आदमी मूर्ख है, और लाइन में लगे बगैर अपना काम करा लेने वाला आदमी धूर्त और कामयाब है. बिना मूर्खों के धूर्तों का अस्तित्व नहीं है. भारत की जाति व्यवस्था फेल है. दो ही जाति है आदमियों की—धूर्त और मूर्ख. धूर्त राज करने के लिए बने हैं, और मूर्ख वोट देने के लिए. मूर्ख को पता नहीं रहता कि वो मूर्ख है, जबकि धूर्त को पता रहता है कि वो धूर्त है, और किसके आगे किस तरह से अपनी धूर्तता दिखानी है और अपना काम निकालना है सब पता रहता है उसे. मूर्ख दफ्तरों के चक्कर काटता है, धूर्त उनसे पैसे लेकर उसी दफ्तर से दो मिनट में उसका काम करा आता है. जो जितना बड़ा धूर्त है वो उतना ही ऊपर जाता है. धूर्तों और मूर्खों के बीच में हम फंसे हुए हैं, हम किसी मूर्ख को धूर्त नहीं बना सकते, और धूर्तों को उनकी धूर्तता दिखाने से रोक नहीं सकते.
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