हिन्दुओं द्वारा गाई जाने वाली प्रसिद्ध आरती के लेखक पं. श्रद्धाराम जी है। सारा जीवन महर्षि दयानन्द का विरोध और मूर्तिपूजा का समर्थन करते रहे। और उन्होंने जो आरती पौराणिक जनता के लिए लिखी उसमें वह निराकार ईश्वर की उपासना करते दृष्टिगोचर हो रहे हैं। आरती की पहली पंक्ति को लेते हैं—‘ओ३म् जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे, भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।‘ इस पंक्ति में वेद द्वारा बताये गये ईश्वर के निज नाम ओ३म् को आरम्भ में प्रयोग किया गया है। यहां हरे शब्द आरती के लिए है। जगदीश संसार का स्वामी होने के कारण उसे जगदीश कहते हैं। उस जगदीश से भक्त स्तुति कर कहता है कि वह ईश्वर हमारे सभी संकटों को क्षण भर में दूर करता है। इसी प्रकार से पूरी प्रार्थना व आरती है। पौराणिक देवों ब्रह्मा, शिव, विष्णु, राम, कृष्ण अथवा किसी देवी व अन्य देवता का नाम कहीं नहीं आया है। यह आरती न मूर्तिपूजा की पोषक है और न अवतारवाद की। महर्षि दयानन्द के विचारों को पुष्ट करने वाली क्या बढि़या पंक्ति आपने लिखी—‘तुम पूरण परमात्म तुम अन्तरयामी, प्रभु तुम अन्तरयामी, पार ब्रह्म परमेश्वर तुम सबके स्वामी।‘ यह पूरी आरती ही महर्षि दयानन्द जी के विचारों, मान्यताओं की समर्थक है। हमें तो यह महर्षि दयानन्द का जादू लगता है जो विपक्षी के सिर चढ़ कर बोला है। यह आरती पौराणिक मान्यतओं की समर्थक न होकर वेद और महर्षि दयानन्द की मान्यतओं की समर्थक व पोषक है। हमें यह देखकर भी आश्चर्य हुआ कि जिस व्यक्ति ने सारा जीवन महर्षि दयानन्द का विरोध किया, वह ईश्वर की स्तुति व प्रार्थना के लिए जिस गीत वा आरती को लिख रहा तो कहीं तो उसे मूर्तिपूजा जिस कारण से वह अन्त तक महर्षि दयानन्द के विरोध के साथ उनको अपमानित करने का प्रयास करता रहा, उनका भी तो कहीं उल्लेख करता। यह या तो महर्षि दयानन्द का प्रभाव था या फिर ईश्वर ने उससे ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। जो भी हो, इसे हम ‘सत्यमेव जयते नानृतं’ और महर्षि दयानन्द की दिग्विजय के रूप में देखते हैं।
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