धर्म रक्षा के लिए प्रजा और राजा दोनों को सदैव तैयार रहना चाहिये, प्रधानमन्त्री को चुन लेने मात्र से भारत पुनः विश्व गुरु नहीं बन जाएगा इसके लिए हमें उत्तम कर्म करने होंगे पुनः भारत में वेदों को स्थापित करना होगा जब हर जगह वेद ही वेद होगा तो देश स्वतः विश्व गुरु बन जाएगा, आपस में भाईचारे से रहे, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बनने से अच्छा है मनुस्मृति के आधार पर और वेदों की आज्ञा अनुसार मनुष्य बने
यजुर्वेद ४-२७(4-27)
मि॒त्रो न॒ एहि॒ सुमि॑त्रधः इन्द्र॑स्यो॒रुमा वि॑श॒ दक्षि॑णमु॒शन्नु॒शन्त स्यो॒नः स्यो॒नम् । स्वान॒ भ्राजा॑ङ्घारे॒ बम्भा॑रे॒ हस्त॒ सुह॑स्त॒ कृशा॑नोवेते वः॑ सोम॒क्रय॑णा॒स्तान्र॑क्षध्वम्मा वो॑ दभन् ॥४-२७॥
भावार्थ:- राज्य और प्रजापुरुषों को उचित हो कि परस्पर प्रीति, उपकार और धर्मयुक्त व्यवहार में यथावत् वर्त्त, शत्रुओं का निवारण, अविद्या वा अन्यायरूप अन्धकार का नाश और चक्रवर्ति राज्य आदि का पालन करके सदा आनन्द में रहें।।
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