जो व्यक्ति ऋषि दयानन्द के १० नियमों, ५१ मन्तव्यों, ५ कसौटियों को आदर्श मानकर चलता है, वह सोचता है कि कहीं मैं ईश्वर, ऋषियों, गुरुओं की दृष्टि में बुरा न बन जाऊँ। वही योग-पथ पर आगे बढ़ सकता है। स्वामी सत्यपति जी परिव्राजक
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