भूमि अधिग्रहण क़ानून को लेकर भाजपा को विपक्ष द्वारा उठाये गए इन पांच बिन्दुओं का जबाब देना ही होगा, अन्यथा उनके समर्थकों की संख्या में तेजी से गिरावट आयेगी | वे चाहे जितना जोर लगा लें |
1) 2013 के कानून में निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण पर 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी थी, मोदी सरकार ने संशोधित बिल में इसे हटा दिया है।
2) 2013 के कानून में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन को शामिल किया गया था। इसमें यूपीए ने किसानों ही नहीं, खेत मजदूरों के लिए भी मुआवजे का प्रावधान किया था, लेकिन मोदी सरकार ने सोशल इम्पैक्ट को बिल से हटा दिया है।
3) 2013 के कानून में प्रावधान था कि पांच साल से इस्तेमाल नहीं की गई अधिग्रहीत भूमि किसान को लौटानी होगी, लेकिन 2015 के संशोधन में सरकार ऐसी भूमि अनिश्चितकाल केलिए अपने पास रख सकती है।
4) वर्ष 2013 के कानून में प्रावधान था कि सरकार इंडस्ट्रियल कोरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन 2015 के संशोधित कानून में कोरिडोर के लिए ली जाने वाली भूमि के बाएं व दाएं एक किमी तक रकबा भी अधिग्रहण किया जा सकता है। ऐसी आशंका है कि यमुना एक्सप्रेस वे की तरह सरकार एक किमी का एरिया बिल्डरों के हवाले कर सकती है।
5) वर्ष 2013 के कानून में प्रावधान था कि जिन किसानों ने अपनी भूमि के लिए अब तक मुआवजा नहीं स्वीकार किया है, उन्हें तय राशि से चार गुना मुआवजा दिया जाएगा। मोदी सरकार ने इस प्रावधान को नए बिल में हटा दिया है।
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