ईश्वर भक्ति के दो भाग होते हैं-
१.उपासना काल में ईश्वर का
ध्यान करने के लिए ईश्वर के गुण और स्वरुप की आवश्यकता होती है न कि किसी प्रकार के आकार प्रकार अथवा मूर्ति की।अपितु यह सब तो सर्वव्यापक ईश्वर के ध्यान में बहुत बाधक हैं |महर्षि पतंजलि जी का उपदेश है किओ३म् का अर्थ सहित जप करने से सब विघ्न उपविघ्न व रोग दूर होते हैं और आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार होता है |
ओ३म् जप द्वारा हम ईश्वर के सत् ,चित् ,आनंद ,विराट, अग्नि, विश्व, हिरण्यगर्भ, वायु, तैजस, ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि स्वरूपों में से किसी एक स्वरुप का ध्यान करें। जैसे-
ओ३म् आनन्द ओ३म् आन्न्द ओ३म् आनन्द……
२.व्यवहारकाल में अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह,शौच,सन्तोष,तप,स्वाध्याय,ईश्वर प्रणिधान आदि यम नियमों का पालन करने का निरन्तर अभ्यास करना होता है |
ईश्वर के ज्ञान,बल व आनन्द की अनुभूति करना ही ईश्वर का दर्शन / साक्षात्कार है | विशेष जानकारी के लिए सत्यार्थप्रकाश व योगदर्शन पढें |
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