अपनी वाणी को मिश्री की भांति मीठा रखे केवल उपरी तौर पर नहीं अपितु मन से मीठा बोलिए, अपनी वाणी में सभ्यता रखे, उत्तम वाणी बोले जिससे सुनने वाले के मन आपके प्रति अच्छी भावनाओं का जन्म ही हो और आपका प्रभाव भी अच्छा बने
असभ्य रूप से अज्ञानी मनुष्य बोलते है, असभ्य वाणी मनुष्य की अज्ञानता की निशानी होती है इसलिए असभ्यता से बचे
यजुर्वेद ४-१९(4-19)
चिद॑सि म॒नासि॒ धीर॑सि॒ दक्षि॑णासि क्ष॒त्रिया॑सि य॒ज्ञिया॒स्यदि॑तिरस्युभयतःशी॒र्ष्णी । सा नः॒ सुप्रा॑ची॒ सुप्र॑तीच्येधि मि॒त्रस्त्वा॑ प॒दि ब॑ध्नीताम्पू॒षाध्व॑नस्पा॒त्विन्द्रा॒याधक्षाय ॥४-१९॥
भावार्थ:- इस मन्त्र में श्लेषालंकार है और पूर्व मन्त्र से इन तीन पदों की अनुवृत्ति भी आती है। मनुष्यों को जो बाह्य, आभ्यन्तर की रक्षा करके सब से उत्तम वाणी वा बिजुली वर्त्तता है, वही भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल में आज्ञा के पालन के लिये सत्य वाणी और उत्तम विघया को ग्रहण करता हैं, वही सब की रक्षा कर सकता है।।
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