है कोई साईं के भक्तों में माई का लाल जो उत्तर दे सके??
भारत में भेड़ चाल कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती है।
और जब बात हो पूजा पाठ , श्रद्धा और विश्वाश की , तो फिर क्या कहने।
अकल का दखल ही खत्म हो जाता है तब तो। वह श्रद्धा अंध भक्ति में बदल जाती है।
मजार पूजा को भी इसी अंध भक्ति ने जन्म दिया है। पूजा का मतलब होता है यथोचित सम्मान। सत्कार।आदर।
मैं ये नहीं कह रहा हूँ की पूजा मत करो पूजा करो। परंतु यथोचित , जूते से करनी पड़े तो जूते से भी करो।
साईं की मजार की पूजा भी जूतों से ही होनी चाहिए। क्यों की एक मुल्ले की पूजा हिन्दू को करनी हो तो जूते से अच्छा कोई वस्तु नहीं।।
अरे मूर्ख हिन्दू जरा सोचें अपना दिमाग लगाएं की क्या एक मुल्ले की मुर्दा लाश जो कब्र में थी जिसे कीड़े भे खा कर मर गए हों उसकी पूजा कारनी चाहिए ??
कुछ मूर्ख कहेंगे की करनी चाहिए जी । क्यों की पूजा गुणों की होती है तो उन्हें मैं साई के कुछ गुण उनकी ही किताब साइन चरित से बताता हूँ।
1* अध्याय 10 साइन चरित ।
बाबा कभी पत्थर मारते कभी गलियां देते।वे नर्तकियों के डांस और कव्वालियां देखते।
प्रश्न: क्या सच्चे संत डांस कव्वालियां और रंगरेलियां मनाते है? ये कैसे भगवान्? कैसे संत?
2* *अध्याय 23
…..श्यामा मस्जिद की ओर दौड़ , अपने बिठोबा श्री साईनाथ के पास जा रहा था। जब बाबा ने उन्हें दूर से देखा तो वे झिड़कने लगे और गाली देने लगे।
प्रश्न: ये कैसे संत??
3.*** अध्याय 6, 10,23 और 41 में लिखा है जब साईं गुस्से में आते थे तो वह गाली और अपशब्द बोलते थे। अधिक गुस्से में तो कई पिटे।
प्रश्न: क्या संत गालियां देते है??
4**** अध्याय 10
न्याय अथवा मीमांसा अथवा दर्शन पढ़ने की कोई जरूरत नहीं।
प्रश्न : क्या सच्चे संत शास्त्र विरोधी होते है??
5***** अध्याय 38
एकादशी के दिन उन्होंने केलकर को कुछ रुपये देकर मांस हाँ हाँ मांस लाने को कहा ।
प्रश्न : भगवान् या संत मांस भी खाता है क्या। माँसाहारी होना संत का गुण है??
साई क्या महापापी नहीं??
जिस साईं भक्त के पास उत्तर हो जरूर लिखें।
from Tumblr http://ift.tt/1GcsbD3
via IFTTT
No comments:
Post a Comment