शुद्र ओर वेदाध्यन्न …
शुद्र के यज्ञोपवीत अर्थात वेदाध्यन्न पर कई कई निषेध पाया जाता है तो कही कही उसे ये अधिकार भी है इसका क्या कारण हो सकता है आइये इस पर विचार करते है -
सबसे पहले विचार है कि शुद्र कौन है ? मनु कहते है जो विद्यारूपी दुसरे जन्म से सुसज्जित हो वो द्विज है द्विज में ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य की संज्ञा है ..ओर जो इस दुसरे जन्म से रहित हो वो शुद्र है …
शुद्र को विद्या ,दान ओर विवाह आदि का निषेध कुछ आचार्यो ने नस्ल के कारण नही बल्कि उनके वेदाध्यन्न से विमुख हो जाने के कारण किया .. ये एक तरह से सजा थी कि उससे सबक ले कर कोई भी यज्ञोपवीत से वंचित न रहे …
शाश्त्रो में विधान है जो मनु स्मृति में निम्न प्रकार है - ब्रह्मवर्चस्व अर्थात ब्राह्मण बनने की कामना करने वाले का ५ वे वर्ष , शक्ति की कामना अर्थात क्षत्रिय बन्ने वाले का ६ वे वर्ष ओर वैश्य के लिए अर्थात कृषि ,व्यापार आदि विद्या की प्राप्ति करने वाले का ८ वे वर्ष होना चाहिए …ऐसा मनु ने कहा है इससे स्पष्ट है कि यज्ञोपवीत में शुद्र का विधान इसलिए नही है कि शुद्र संज्ञा अनाध्यायी की है ..
कुछ आचार्य जेसे पारस्कर आपस्तम्ब ने अपने अनुसार अलग अलग आयु का विधान किया है - आपस्तम्ब ने इसे ७,८,११ में बांटा है तो पारस्कर ने ८,११ ओर १२ में बांटा है ,,देखे पारस्करग्रहसूत्र २/२/१ -३ लेकिन अधिकतम आयु ब्राह्मण के लिए १६ क्षत्रिय के लिए २२ वैश्य के लिए २४ नियत की है जो उक्त आयु में भी वेदाध्ययन से वंचित रह जाए उन्ही से सारे सम्बन्ध यज्ञ आदि कर्म करने का निषेध है जेसा पारस्कर २/५.४० में कहा है जो यज्ञोपवीत से वंचित रह जाए जिन्होंने सावित्री का उपदेश नही पाया वह पतित सावित्री वाले है ऐसे कुमारो का कोई आचार्य उपनयन संस्कार न कराए , इन्हें वेदादि न पढाये ,इनसे यज्ञ आदि न कराए ओर कोई सम्बन्ध न रखे …
जब वर्णव्यवस्था कर्म से थी तब जो अध्ययन रहित था उन्ही शुद्रो से उपनयन , विवाह ,यज्ञ आदि का निषेध था ये आगे के लोगो को सबक लेने के लिए एक दंड मात्र था …लेकिन आज जब शुद्र वंशानुगत है तो जो जन्म से शुद्र है उसी का उपरोक्त में निषेध है अन्य चाहे ब्राह्मण अनपढ़ हो वो यज्ञ ,विवाह आदि में भाग ले सकता है ..
गोभिलग्रहसूत्र ओर मनुस्मृति में भी लगभग यही विधान है - देखे २/१०/६ पतित सावित्री वालो का पुन उपनयन न करे ,उनको कोई अध्ययन न करावे उनसे न यज्ञ आदि करावे उनसे विवाह सम्बन्ध भी न रखे ..ये मत भी सभी आचार्यो का नही बल्कि कुछ ही आचार्यो का था जिन्होंने इसे दंडनीति के ओर अन्य लोगो को प्रेरित करने के लिए विधान किया ,,इसके विपरीत वेद ने स्वयम कभी कोई आयु सीमा ओर किसी भी वर्ण के वेदाध्यन्न का निषेध नही किया क्यूंकि अध्ययन की कोई सीमा नही होती एक कामना वाला शुद्र,वृद्ध भी वेद अध्ययन में पारंगत हो सकते है यदि मेधावी संयमी हो तो वह अध्यययन अवश्य कर सकता है यजुर्वेद २६/२ में सभी के लिए वेदों का विधान है देखे - जेसे मै ईश्वर सभी के लिए कल्याणकारी हु जेसे मै ऋग ,यजु ,साम अर्थव का उपदेश देता हु वेसे ही तुम भी किया करो इस तरह वेद सभी के लिए ज्ञान का उपदेश कर रहा है ..इसी वेदाज्ञा अनुसार कुछ आचार्यो ने शुद्रो या पतित सावित्री वालो के भी उपनयन का विधान किया है ..
मीमासाचार्य से पूर्व पक्ष में किसी ने प्रश्न किया - मीमासा ६/१/३० - उपनयन विधि में शुद्रो (अनपढो ) का अधिकार नही यदि ऐसा कहो तो - इसके उत्तर में जैमिनी कहते है - उक्त कथन ठीक नही जिस शुद्र में कामना हो उसे यज्ञादि ,अध्ययन का अधिकार है .. मीमासा ६/१०/३१ ..इसी तरह उपनयन पर फिर पूर्व पक्ष आक्षेप करता है - विद्या का कथन तीन वर्णों में पाया जाता है अत: शुद्र को वैदिक कर्मो अध्ययन ,यज्ञादि का अधिकार नही ..इस के उत्तर में जैमिनी कहते है - उक्त कथन ठीक नही क्यूंकि जिसमे विद्या का सामर्थ्य नही (ब्राह्मण ,वैश्य ,क्षत्रिय बनने का ) उसे उपनयन का अधिकार नही लेकिन शुद्र में सामर्थ्य हो जाए ओर वो विद्वान (द्विज ) बन जाए तो उसे भी अधिकार है |
शुद्रो के उपनयन पर आपस्तम्ब मुनि ने कहा है कि जो शुद्र शराब आदि नही पीते उनका उपनयन कर देना चाहिए .. आपस्तम्ब मुनि का मत है कि किसी कारण से उपनयन के लिए तय की गयी आयु में यदि उपनयन न हो पाए तो श्रोतसूत्रों में वर्णित प्रायश्चित कर उपनयन करवाना चाहिए .. अम्बेडकर जी ने अपने शुद्र कौन पुस्तक में गणेश संस्कार का प्रमाण दे कर बताया है कि उसमे शुद्रो का भी उपनयन संस्कार था .. कुछ आचार्यो ने वेदाध्यन्न मन्त्र संहिता को सीखने समझने के लिए आयु नियत ,मानी है इसलिए भी उन्होंने शुद्रो (उपनयन से रहित ) को मन्त्र संहिता छोड़ अन्य ग्रंथो का विधान किया है ताकि शिल्प आदि विद्या सीख वो एक शुद्ध आजीवका अर्जित कर सके ,,धन के व्यय आदि को उचित करे ,धन कमाने के गलत रास्ते न पकड़े ,,इसका विधान सुश्रुत संहिता में मिलता है - सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान २ श्लोक ७ श्रेष्ट ओर कुलीन विचारों वाले शुद्र का उपनयन करे ओर मन्त्र भाग छोड़ समस्त विद्या आदि पढावे ..यहा मन्त्र भाग छोड़ने का कारण यही है कि सुश्रुत वेद सीखने के एक निश्चित समय मानते है जो यज्ञोपवीत का अधिकतम समय नीयत है उससे अधिक होने पर सामर्थ्य कम हो जाने पर ऐसे पतित लोगो का मन्त्र संहिता पढने का निषेध है ..
उपरोक्त सभी कथनों शुद्र को विद्या निषेध , उपनयन कराने के कुछ आचार्यो का विधान ,जैमनी ओर वेद का विद्या ओर मन्त्र ,यज्ञ आदि का विधान का कारण स्पष्ट हो गया होगा |साथ ही जो शुद्रो को अध्ययन ,विवाह सम्बन्ध ,यज्ञ का निषेध था वो कर्म आधारित था न कि वंशानुगत जो वर्ण के वंशानुगत होने पर बाद में वंशानुगत हो गया |
(नोट - अधिक लिखने से बचने के लिए जिन ग्रंथो का प्रमाण दिया है उनका हिंदी अनुवाद ही लिखा है मूल संस्कृत छोड़ दी है आवश्यकता होने पर उसे भी लिख दिया जाएगा |
from Tumblr http://ift.tt/1dFjSn8
via IFTTT
No comments:
Post a Comment