Saturday, January 21, 2017

-मकर संक्रान्ति मंगलमय हो - जितने समय में पृथिवी सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करती है उतने समय को...

-मकर संक्रान्ति मंगलमय हो -
जितने समय में पृथिवी सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करती है उतने समय को “सौर वर्ष ” कहते हैं । सौर वर्ष में पृथिवी अपनी यह परिक्रमा आकाश में जिस परिधि पर रहकर करती है, उसे “क्रान्तिवृत्त” कहते हैं।इस क्रान्तिवृत्त के १२ भाग कल्पित किये गये हैं और उन १२ भागों के नाम उन-उन स्थानों पर विद्यमान आकाशस्थ नक्षत्रपुञ्जों से मिलकर बनी हुयी आकृति से मिलते जुलते आकार वाले पदार्थों के नाम पर रख लिये गये हैं जो कि इस प्रकार हैं -१मेष , २वृष , ३मिथुन , ४कर्क , ५सिंह , ६कन्या , ७तुला , ८वृश्चिक , ९धनु , १०मकर , ११कुम्भ , १२मीन । ये प्रत्येक भाग वा आकृति"राशि" कहलाते हैं। जब एक राशि से दूसरी राशि में पृथिवी संक्रमण करती है तब उसको “ संक्रान्ति” कहते हैं। पृथिवी के इस संक्रमण को लोक में सूर्य का संक्रमण कहने लगे हैं।पृथिवी के इस संक्रमण में सूर्य ६ महीने क्रान्तिवृत्त से उत्तर की ओर उदय होता है तथा ६ मास दक्षिण की ओर निकलता है ।ये ६ -६ महीने की अवधियां उत्तरायण व दक्षिणायन कहलाती हैं। सूर्य की मकरराशि की संक्रान्ति से उत्तरायण व कर्क राशि की संक्रान्ति से दक्षिणायन आरम्भ हो जाता है।
सूर्य के प्रकाशाधिक्य के कारण उत्तरायण को महत्त्व दिया गया है इस कारण उत्तरायण के आरम्भ दिवस को मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। यद्यपि इस समय उत्तरायण परिवर्त्तन , प्रचलन में आ रही मकर संक्रान्ति के दिन नहीं होता है। अयन चलन की गति बराबर पिछली ओर को होते रहने के कारण जो लगभग २२ - २३ दिन का अन्तर आ गया है उसे ठीक कर लेना चाहिये।
जिस प्रकार बाहर के जगत् में सूर्य का उत्तरायण दृष्टिगोचर होता है उसी प्रकार हमारे अभ्यन्तरीण आध्यात्मिक जगत् में भी उत्तरायण हुआ करता है । उत्तरायण कहते हैं ऊपर की ओर गति। गीता में कहा है - “ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:” अर्थात् सत्त्वगुण में रहने वाले मनुष्य ऊपर जाते हैं। यह मनुष्य के लिये ऊपर को जाना, ज्ञान के प्रकाश के द्वारा सम्भव है। सत्त्वगुण निर्मल होने से प्रकाशक है, इसलिये यह मनुष्य को ज्ञान के सम्बन्ध से जोड़ता है। ज्ञानस्यैव पराकाष्ठा वैराग्यम् ज्ञान की ही पराकाष्ठा को वैराग्य कहा गया है। बस इस वैराग्य रूप ज्ञान के होने पर उन्नति अर्थात् मोक्ष मार्ग की ओर गति का होना आरम्भ हो जाता है।
महाभारत काल के इतिहास पर दृष्टिपात करके देखो कि मृत्यञ्जयी ब्रह्मचारी भीष्म पितामह जब शरशय्या पर आसीन हो गये थे तब उन्होंने कहा था कि जब तक सूर्य उत्तरायण में नहीं जायेगा और सूर्य ही नहीं अपितु वस्तुतः जब तक मेरे जीवन का उत्तरायण काल नहीं आता है तब तक मैं देहत्याग नहीं करूंगा। इसी प्रकार हमें भी तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान आदि योग साधनों के द्वारा अपने जीवन के उत्तरायण का निर्माण करना चाहिये, यही प्रेरणा ग्रहण करना मकर संक्रान्ति पर्व की पर्वता है। जीवन को उत्तर अर्थात् श्रेष्ठ बनाने पर ही देहावसान होने के पश्चात् जीव को श्रेष्ठ नवजीवन रूप सद्गति प्राप्त होती है। परमपिता परमात्मा से प्रार्थना है कि मकर संक्रान्ति पर्व आप और हम सबके जीवन के उत्तरायण के लिये प्रेरक बनता हुआ मंगलमय हो। लेखक-विष्णुमित्र वेदार्थी ९४१२११७९६५


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