-वेश्यालय में गल रही या मर-मर कर पल रही बेटीयों के लिए
लोकतन्त्र के पावन मन्दिर में कोई बहस क्यूँ नही
होती……?
कोई अनशन ,कोई धरने ,कैंडिल मार्च क्यूँ नही होते….?
घर वापसी कार्यक्रम यहाँ क्यूँ नही चलाये जाते…?
मजहबी गस्त से क्यूँ महरूम रहती है ये गलियाँ…..?
मन की बात क्यूँ नही होती यहाँ…?
क्यूँ यहाँ रोटी नही खाते शहजादे…?
क्यूँ नही यहाँ पिटता है समाजवाद का ढ़ोल…?
क्यूँ नही आते यहाँ ‘आप’….?
क्यूँ बहनजी भी नही पूछती दर्द…?
क्यूँ लाल सलाम पेश नही होता यहाँ…?
यहाँ ‘दीदी ’ क्यूँ नही लगाती गले…?
क्यूँ हीरो नही बनते यहाँ परदे वाले लोग….?
वो इसलिए की सफेदपोश हो या शातिर या हो समाज
का रहनुमा सब के सब अपने राज छुपाने के लिए इससे बेहतर
कोई जगह नही तलाश पाए ..और इन्सानियत देखिए
साहिब यहाँ भी वो औरत जुँबा नही खोलती और खोलेगी
कैसे आत्मा तो उसी दिन मर -चुकी थी जिस दिन कोई
सगा या अपना यहाँ सौदा कर गया था….
अब खुद को मर्द कहने वाले गिद्ध रोज कमोबेश जिस्म उधेड़ते
है….बस!
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