Saturday, May 2, 2015

एक बार पढिये अवश्य मूर्तिपूजा ___- ऋषि दयानंद सम्भवतः पहले धर्माचार्य थे जिन्हे मूर्तिपूजा की आलोचना...

एक बार पढिये अवश्य
मूर्तिपूजा ___- ऋषि दयानंद सम्भवतः पहले धर्माचार्य थे जिन्हे मूर्तिपूजा की आलोचना का जिम्मेदार ठहराया उल्लूचंदो ने ! शँकराचार्य से लेकर राममोहन राय तक भारत के धर्ममीमाँसको ने मूर्तिपूजा की व्यर्थता को पदे - पदे उल्लेखित किया उसपर कटाक्ष तक हुआ किन्तु न जाने क्यो मूर्खो को देवदयानंद से इतनी जलन क्यो ?

शँकराचार्य जी को जैनियो ने मारा ___ कहना अतिश्योक्ति न होगी की शँकराचार्य जी के बाद केवल और केवल आर्यसमाज की दम थी जो जैनियो का विरोध करे ___।
शँकराचार्य जी ने अपने युग मे प्रचलित शैव , शाक्त , वैष्णवादि देवीदेवताओ की प्रधानता को लेकर बने सम्प्रदायो की कटु आलोचना की थी ,_ इसी प्रकार उन्होने परमात्मा की निर्गुण मानस पूजा पर बल देते हुये साकारोपासना का तीव्र उपहास किया , अपने लघु ग्रन्थ “निर्गुणमानसपूजा” मे ‘पाषाण निर्मित ’ देव विग्रहो की षोडशोपचार पूजा असम्भव बतायी | उनका कथन था (सँक्षेप मे ) - जो परमात्मा परिपूर्ण है सबमे समाया है उनका किसी जङ प्रतिमा मे आवाहन करना तथा उसे किसी स्वर्ण , रजत या रत्न सिंहासन पर बिठाना कैसे सम्भव _____?

इसी क्रम मे शँकर ने निरंजन को धूप देने , सर्वसाक्षी के लिये दीप दान करने को व्यर्थ बताते हुये कहा कि जो स्वयं प्रकाश है , चिद् रुप है तथा सूर्यचन्दमादि ज्योतिष्मान् पदार्थ जिसके दिव्य प्रकाश से प्रकाशित होते है , उस परमात्मा के लिये दीपमाला जलाकर गीतमयी आरती करना क्या विडम्बना नही ?(स्वयं प्रकाशमानस्य कुतो नीराजनो विधिः ___ आद्य शंकराचार्यकृत परापूजा ) _____,,_____ अब कूछ धूर्त कहते है कि मूर्ती प्रतीक है ___ वे भी पढ ले ____ द्वैताचार्य मध्व ने ’ न प्रतीके न हि सः ’ | इस वेदान्त सूत्र की व्याख्या मे लिखा है प्रतीक (प्रतिमा ) मे विष्णु की भावना करना उचित नही | प्रतीक मे विष्णु (परमात्मा ) नही यह जङ पूजा मिथ्या तथा अनर्थ उत्पादिनी है |
निर्गुण सन्तो ने मूर्ति पूजा का सर्वत्र तिरस्कार किया

पाथर ले पूजे मुग्ध गँवार | जो आप डूबे तुम कहाँ तारनहार || ______ गुरुनानक जी ________
जो पत्थर को कहते देव , तिनकी निष्फल जावे सेव | पत्थर पूजे हरि मिले तो हम पूजे पहाङ | वा पत्थर से चक्की भली जो पीस खाय संसार ______________ कबीर जी 
पत्थर पीवेधोय के पत्थर पूजे प्रान | अंतकाल पत्थर भये भव डूबे अज्ञान ||_________ दादू

लिंगायत सन्त बसवेश्वर ने , राजा राममोहन राय ने , रवीन्द्रनाथ ने _________________ मै लिख नही सकता वो तक लिखा पर विरोध एक मात्र दयानंद का क्यो ??? चलिये मै बताता हू इशारो इशारो मे “ जो पेङ सर्वाधिक फल देता है उस पर पत्थर भी फेके जाते है ” ______ ।

बोलिये सत्यसनातन वैदिक धर्म की जय


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