🌷🌷🌷ओ३म्🌷🌷🌷
भूपेश आर्य
🌻दिव्य ओषधियाँ🌻
(1) अनेक रोगों की एक दवा:-हींग १० ग्राम,नौशादर १० ग्राम,सेंधा नमक १० ग्राम-सबको ६०० ग्राम पानी में खरल करें।जब सब दवाएं पानी में मिलकर एक हो जाएँ तब बोतल में भर लें।२५-२५ ग्राम दवा प्रातः सांय पिलायें।
यह योग दर्द-गुर्दा,तिल्ली,जिगर का वरम,वायुगोला,बदहज्मी,भूख न लगना आदि रोगों की शर्तिया दवा है।
(2) अर्श (बवासीर )के मस्से:-जब भी पेशाब करने जाएँ,अपना मूत्र अन्जलि में भरकर मस्सों को धो लिया करें।दो मास तक ऐसा करने से बवासीर के रोग से सदा के लिए छुट्टी हो जाएगी।
(3) आँख का दर्द:-सूर्योदय के पूर्व आँखों में बरगद(बड़) का दूध डालें।दर्द तुरन्त मिट जायेगा।
नोट-बड़ का दूध सूर्योदय से पूर्व ही अच्छा निकलता है।एक पत्ते से २-३ बूंद प्राप्त हो जाता है।
(4) सुबह उठते ही अपना बासी थूक आँखों में लगाने से आँखों की रोशनी बढ़ती है,और जाला,धून्धलापन मिटता है।बशर्ते कि दांतों में पायरिया आदि रोग न हों।तभी कारगर है।
(5) आँख के अनेक रोगों पर:-यदि आँखों में दर्द,खुजली,जाला,लाली हो,मोतिया उतरना आरम्भ हो गया हो तो प्रतिदिन प्रातः गाय का ताजा मूत्र २-३ बूंद चालिस दिन तक आँख में डालें।मोतियाबिन्द बिना आपरेशन के कट जाता है।शर्तिया दवा है।
(6) आग से जलना:-यदि कोई अंग आग से जल जाये तो उसी समय जले स्थान पर ग्लिसरीन लगा दें।जले के लिए अचूक एवं अद्भूत दवा है।न दर्द होगा,न छाले पड़ेगे और न चमड़ी ही लाल होगी।
(7) आधासीसी:- १.जिस और दर्द हो उस और के कान में कागजी नींबू का रस की ३-४ बूंदे डाल दो।दर्द तुरन्त मिट जाता है।
२.कालीमिर्च पानी में घिसकर जिस और दर्द हो,उससे उल्टी आँख में लगा दें।यह दवा लगेगी तो बहुत,परन्तु आधासीसी का दर्द एक ही बार में भाग जायेगा और फिर कभी नहीं होगा।
(8) एक वर्ष के लिए तन्दुरुस्ती का बीमा:-कालीमिर्च,नीम के पत्ते और बीजरहित लालमिर्च,सबको बराबर लेकर घोट-पीसकर ६-६ ग्राम की गोलियाँ बना लें।शौच,स्नान और दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर प्रतिदिन प्रातः निराहार १-१ गोली पानी के साथ चैत्र सुदी १ से १५ दिन तक खाएँ।एक वर्ष तक कोई रोग नहीं होगा।
(9) हरड़ अमृत समान:-प्रतिदिन २-३ छोटी हरड़ चूसने से पेट के सब विकार दूर हो जाते हैं,कब्ज दूर होती है,भूख खूब बढ़ती है,पाचनशक्ति बढ़ जाती है,रक्त शुद्ध हो जाता है,आँखों के लिए भी लाभप्रद है।निरन्तर सेवन से चश्में का नम्बर भी घट जाता है।
इसकी प्रशंसा में ठीक ही कहा है-
माता यस्य गृहे नास्ति तस्य माता हरीतकी ।
कदाचित्कुप्यते माता नोदरस्था हरीतकी ।।
जिसके घर में माता नहीं है उसकी माता हरड़ है।माता कभी क्रुद्ध भी हो जाती है,परन्तु पेट में गयी हुई हरड़ कभी कुपित नहीं होती।
और भी–
हरि हरीतकीं चैव गायत्रीं च दिनेदिने ।
मोक्षारोग्यतपः कामश्चिन्तयेद् भक्षयेज्जपेत् ।।
अर्थ:-मोक्ष,आरोग्य और तप की इच्छा करने वाले को प्रतिदिन परमात्मा,हरड़ और गायत्री का क्रम से चिन्तन,सेवन और जप करना चाहिये.
(10) क्षय(टी.वी.) नाशक:-स्वस्थ एवं दुधारु काली गाय का मूत्र दिन में २०-२० ग्राम पिलाएँ।यह प्रयोग २१ दिन तक करें।
(11) खाँसी:-
१.दिन में तीन चार बार २०-२० ग्राम बढ़िया बूरा फाँकने से खाँसी ठीक हो जाती है।
नोट–बूरा फाँकने से २ घण्टा पूर्व और एक घण्टा पश्चात् जल न पीएँ।रात्रि में भोजन न करें।जल भी न पीएँ।यदि प्यास लगे तो गर्म दूध या तुलसी के पत्तों की चाय लें।
२.तुलसी के पत्ते १५,कालीमिर्च ९,इन दोनों की चाय बनाकर पीने से खाँसी,जुकाम,बुखार,कफ-विकार,मन्दाग्नि आदि रोग दूर हो जाते हैं।
३.फिटकरी भुनी हुई १० ग्राम,खाँड देशी १० ग्राम दोनों को बारीक पीसकर १४ पुड़िया बना लें।सूखी खाँसीवाले को दूध से और आर्द्र (गीली)खाँसी वाले को जल से खिलाएँ।इससे पुरानी से पुरानी खाँसी और साधारण दमा भी दूर हो जाता है।
४.बार-बार शीशा देखने से भी खाँसी में बहुत लाभ होता है।
(12) गर्भरक्षा:-जिस स्त्री को बार-बार गर्भपात हो जाता हो उसकी कमर में धतूरे की जड़ बाँध दें।इससे गर्भपात नहीं होगा।जब नौ मास पूरे हो जाएँ तब जड़ खोल दें।
(13) गर्भस्थापक:-
१.अपामार्ग की जड़ का चूर्ण ३० ग्राम,कालीमिर्च २१ दोनों को बारीक पीस लें।मासिकधर्म के एक सप्ताह पूर्व से ऋतु के तीसरे दिन तक दें।भोजन में केवल दूध और चावल का प्रयोग करें।तीन मास तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।इससे गर्भाशय के सारे रोग दूर हो जाते हैं,मासिक नियमित हो जाता है।प्रदर एवं बन्धयत्व को दूर करने वाली महौषधि है।
२.ऋतुकाल में चारों दिन २५ ग्राम अजवायन और २५ ग्राम मिश्री को २५ ग्राम पानी में रात्रि में मिट्टी के बर्तन में भिगो दें।प्रातः ठण्डाई की भाँति खूब पीसकर पी जाएँ।
पथ्य में मूँग की दाल और रोटी (बिना नमक की) लें।आठ दिन दवा का सेवन करें।अवश्य गर्भ रहेगा।
(14) दन्तमंजन:-दालचीनी,कालीमिर्च,धनिया भूना हुआ,नीलाथोथा भूना हुआ,कपूरकचरी,सेंधानमक,मस्तगी और चोबचीनी–प्रत्येक १० ग्राम।पपड़ियाकत्था २० ग्राम,माजूफल ५ नग।सबको कूट-पीसकर मंजन बना लें।
इस मंजन का प्रयोग करने से दन्तरोग तो दूर होंगे ही,बाल जीवनभर सफेद नहीं होंगे।
(15) दन्त-रोग:-
१.लौंग १० ग्राम,कपूर १ ग्राम।-दोनों को बारीक पीसकर दांतों पर मलने से दाँतों के सब रोग और दर्द आदि नष्ट हो जाते हैं।
२.मौलश्री की दातुन करने से हिलते हुए दाँत दृढ़ हो जाते हैं,पायोरिया दूर होता है।मौलश्री में दन्तरोगों को दूर करने की अदभूत शक्ति है।
आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखा है-‘दन्ता भवन्ति चपलापि च वज्रतुल्या।'दाँत मोती जैसे श्वेत और व्रज के समान दृढ़ हो जाते हैं।
(16) दमा की अद्भूत दवा:-धतूरे का १-१ बीज ८ दिन तक प्रातः पानी से निगल लें।दूसरे सप्ताह २-२ बीज लें।इसी प्रकार प्रति सप्ताह एक -एक बीज बढ़ाते हुए पाँचवें सप्ताह ५-५ बीज प्रतिदिन लें।दमा कितना भी पुराना हो मिट जायेगा।
(17) दर्दमात्र की दवा:-सोडाबाईकार्ब ३ ग्राम,फिटकरी सफेद कच्ची ३ ग्राम।
दोनों को बारीक पीस लें।यह एक मात्रा है।दवा फाँककर ऊपर से गर्म पानी पी लें।एक ही मात्रा से सब प्रकार के दर्द भाग जाते हैं।
(18) दांतों का हिलना:-बड़ की दातुन करें।वटवृक्ष की दातुन हिलते हुए दाँतों को जमाने की सर्वश्रेष्ठ ओषधि है।इसके प्रयोग से दाँतों का आगे के लिए विकृत होना बन्द हो जाता है।
२.शौच करते समय दाँतों को भींचकर रखने से (दबाकर रखने से) दांत जिन्दगी भर नहीं हिलेंगे।
(19) निर्मली के बीज १४० दानें मिट्टी के बर्तन में भिगो दें।पाँचवें दिन से दो दानें प्रातः व २ दानें सांय मिश्री मिले हुए ठण्ड़े दूध से लें।
ये बीज कब्ज को दूर करते हैं,बल बढ़ाते हैं।वात,पित्त और कफ के तमाम रोगों को जीतते हैं।परखने पर स्वर्ण भस्म के तुल्य प्रतीत होंगे।
प्रमेह और प्रदर की अचूक दवा है।
नोट-पानी को प्रतिदिन बदलते रहें।
गुड़,तेल,मिर्च,खटाई,छाछ,खीर एवं उडद की दाल का परहेज करें।
(20) पथरी:-
१.नीम के पत्तों की राख ६ ग्राम फाँककर ऊपर से पानी पीएँ।कुछ दिन के प्रयोग से पथरी गल जाती है।
२.प्रतिदिन प्रातः गोमूत्र ५० ग्राम पीएँ और सांय तीन ग्राम फिटकरी एक गिलास पानी में घोलकर पीएं।४० दिन सेवन करें।पथरी गलकर निकल जायेगी।परीक्षित है।
(21) शक्ति का खजाना:-
१.असगन्ध का चूर्ण ६ ग्राम फाँककर ऊपर से दूध पीने से शरीर पुष्ट व बल की वृद्धि होती है।
२.भाँगरे का चूर्ण १०० ग्राम,काले तिल का चूर्ण २०० ग्राम,आँवला चूर्ण २०० ग्राम-तीनों को कूट-पीसकर कपड़छन कर लें,फिर उसमें ५०० ग्राम मिश्री मिला लें और घी के चिकने बर्तन में सुरक्षित रक्खें।
१०-१० ग्राम दवा प्रातः-साँय गोदुग्ध के साथ सेवन करें।
इसके सेवन से रोग नहीं सताते।बाल काले होते हैं,बल और शक्ति की अपूर्व वृद्धि होती है।अकालमृत्यु और वृद्धावस्था का विषेश भय नहीं रहता।
३.रात्रि में छोटी पीपल ,पानी में भिगो दें।प्रातः घोट-पीसकर मधु से चाटें,ऊपर से गोदुग्ध पीएँ।इससे ज्वर,खाँसी,अशक्ति नष्ट होकर बल और शक्ति बढ़ेगी।कम से कम ४० दिन सेवन करें।
(22) आरोग्याम्बु:-एक लीटर पानी को ओटाने से २५० ग्रिम रह जाए तो इसे आरोग्याम्बु कहते हैं।इसे पीने से खाँसी,दमा और कफ के रोग दूर होते हैं।बुखार शीघ्र उतर जाता है।भूख बढ़ती है।खाई वस्तु तुरन्त पच जाती है।बवासीर,पाण्डुरोग,वायुगोला और हाथ पाँव की शोथ (सूजन) को दूर करता है।इस प्रकार के जल का सदा प्रयोग किया जाए तो रोग उत्पन्न ही नहीं होते।
(23) दीर्घजीवन:-जिस दिन बालक का जन्म हो,उसी दिन से शुद्ध-सोने को चौथाई चावल की मात्रा में घिसकर और जरा सा पानी मिलाकर १० दिन तक चटाते रहें।
इसके प्रयोग से आयु दीर्घ होती है,बच्चा सब प्रकार के रोगों से सुरक्षित रहता है।
(24) नजला:-सफेद मिर्च २१ दानें पानी के साथ सात दिन तक प्रतिदिन निगलवा दें।प्रभु कृपा से सदा के लिए नजला-जुकाम से छुट्टी मिल जायेगी।
(25) पीलिया:-६० ग्राम मूली के पत्तों का रस निकालकर इसमें १० ग्राम चीनी मिला लें।प्रातः बिना कुछ खाये-पिये इस रस को पिलायें।पीलिया को नष्ट करने के लिए रामबाण दवा है।
(26) बाल काले करना:-मालकांगनी के बीज (छिलका उतार दें) २५० ग्राम लेकर बोतल में भर लें और दृढ़ कार्क लगा दें।१० दानें प्रतिदिन पानी से निगल लें।निरन्तर एक वर्ष तक प्रयोग करें।
इन बीजों के सेवन से बुद्धि तीव्र होती है।चेहरा लाल हो जाता है।बाल पुनः काले होने लगते हैं।
पथ्य-गर्म वस्तुओं से बचें।
(27) उषःपान:-प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ८ अंजलि जल पीना बड़ा लाभकारी है।ऋषियों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है।
'भावप्रकाश’ में लिखा है-
सवितुः समुदयकाले प्रसृतीसलिलस्य पिबेदष्टौ ।
रोगजरापरिमुक्तो जीवेद् वत्सरशतं साग्रम् ।।
सूर्योदय के समय जो व्यक्ति प्रतिदिन आठ अंजलि जल पान करता है वह रोगों से मुक्त हो जाता है,बुढ़ापा उसके पास नहीं फटकता और वह सौ वर्ष से भी अधिक आयु प्राप्त करता है।
प्रातः उषःपान करने से कब्ज,वीर्य सम्बन्धी रोग,बवासीर,उदररोग,कुष्ट,मूत्र और धातुरोग,सिरदर्द,नेत्रविकार ,निर्बलता तथा वात,पित्त और कफ आदि से होने वाले भयंकर से भयंकर रोग नष्ट हो जाते हैं।
यदि यह जल मुख के बजाय नासिका से पिया जाए तो सोने पे सुहागे का काम करता है।
नासिका द्वारा जलपान के गुणों का वर्णन करते हुए आयुर्वेद के ग्रन्थों में लिखा है–
विगतघननिशीथे प्रातरुत्थाय नित्यम्,
पिबति खलु नरो यो घ्राणरन्ध्रेण वारि ।
स भवति मतिपूर्णश्चक्षुषा तार्क्ष्यतुल्यो,
वलिपलितविहीनः सर्वरोगैर्विमुक्तः ।।
अर्थात् रात्रि का अन्धकार दूर हो जाने पर जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर नासिका द्वारा जलपान करता है,वह बुद्धिमान बन जाता है।उसकी नेत्र ज्योति गरुड़ के समान हो जाती है।उसके बाल असमय में सफेद नहीं होते तथा वह सम्पूर्ण रोगों से सदा मुक्त रहता है।
नासिका द्वारा जलपान से सिर-दर्द,जुकाम-चाहे नया हो या पुराना,नजलि,नकसीर चलना आदि रोग जड़मूल से दूर हो जाते हैं।
शीत ऋतु में यदि जल बहुत शीतल हो तो उसे थोड़ा गर्म करके पान किया जा सकता है।
जल पीने के नियम:-लाभ सूर्योदय के पूर्व पीने से ही होता है।सूर्यास्त के पश्चात् जल कभी नहीं पीना चाहिये।
रात्रि के प्रथम पहर में जल विष है,मध्य रात्रि में दूध के समान और प्रातः सूर्योदय से पूर्व माँ के दूध के समान गुणकारी है।
भोजन के तुरन्त बाद भी जल नहीं पीना चाहिये।
(27) मल-मूत्र के वेगों को न रोकें:-बहुत से व्यक्ति किसी अन्य आवश्यक कार्य के कारण मल-मूत्र के वेगों को रोक लेते हैं।ऐसा करना शरीर के लिए बहुत हानिकर है।
महर्षि चरक ने कहा है:-
न वेगान् धारयेद्धीमाञ्जातान्मूत्रपुरीषयोः ।-(चरक० सूत्र० ७/३)
बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि मल-मूत्र के वेगों को न रोके।
इन वेगों को रोकने से भारीपन,सिरदर्द आदि हो जाते हैं।नेत्र ज्योति मन्द होती है।
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