१९ पौष 2 जनवरी 2016
😶 “ ऐष्वर्य दो ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् यमग्ने मन्यसे रयिं सहसावत्रमर्त्त्य । 🔥🔥
🍃🍂 तमा नो वाजसातये वि मदे यज्ञेषु चित्रमा भरा विवक्षसे ।। 🍂🍃
ऋक्० १० ।२१। ४
ऋषि:- विमद ऐन्द्र: ।। देवता- अग्नि: ।। छन्द:- निचृत्पक्त्ङि:।।
शब्दार्थ- हे शक्ति के भण्डार! अमर अग्ने! जिसे मुझे देने योग्य ऐष्वर्य समझता है उसे हमें बल-लाभ के लिए, उन्नति के लिए ला दे, यज्ञों में तुम्हारी विशेष प्रसन्नता व परितृप्ति के लिए उस आश्चर्यकर व पूज्य धन को ला दे, तू महान् होता है।
विनय:- हे शक्ति के भण्डार!
तुम महान् हो, तुम ज्ञान, बल आदि सब प्रकार से महान् हो। तुम्हारी महत्ता को अनुभव करके, हे अमर अग्ने! मैं तुम्हारी शरण पड़ गया हूँ। तुम्हारी शरण में आकर मैं तुमसे और क्या माँगूँ? हे अग्ने! तुम्ही जिस ऐष्वर्य को मुझे देने योग्य समझते हो उसे मेरे लिए ला दो, मुझे प्रदान करते रहो।मेरे विकास के लिए अब किस ऐष्वर्य की आवश्यकता है यह तुम्हीं ठीक जानते हो। इसलिए मेरी उन्नति के लिए, मेरे बल-लाभ के लिए योग्य ‘रयि’ को तुम ही प्रदान करो। नहीं,’ अपने बल-लाभ के लिए’ ऐसा मैं क्यों कहूँ? बल-लाभ करके मैं और क्या करूँगा? मुझे मेरे विमद के लिए, तेरी तथा देवों की विशेष प्रसन्नता के लिए, यज्ञो में तुम्हारी परितृप्ति करने के लिए ही तेरा दिया 'रयि’ चाहिए। तेरे दिए आवश्यक रयि को पाकर, ज्ञान-बल आदि से सम्पन्न होकर मुझे तेरे लिए ही यज्ञ-कर्म करना है और मुझे क्या करना है? यज्ञों में तेरी परितृप्ति कर सकूँ इसलिए, हे अग्ने! तू मुझे अपना 'चित्र’ धन प्रदान कर। तू मेरे लिए जो ऐष्वर्य देगा वह मेरे हित में अद्भुत गुणकारक सिद्ध होगा। इसलिए हे अग्ने! तू मुझे अपना चित्र-ऐष्वर्य दे, अपनी परितृप्ति के लिए दे और उस परितृप्ति द्वारा महान् हो, अपने दिव्य रूप से महान् होता हुआ भी मेरी इस परितृप्ति द्वारा मानुषिक रूप से भी महान् हो।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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