यजुर्वेद १०-२४ (10-24)
ह॒सः शु॑चि॒षद्वसु॑रन्तरिक्ष॒सद्धोता॑ वेदि॒षदति॑थिर्दुरोण॒सत् । नृ॒षद्व॑र॒सदृ॑त॒सद्व्यो॑म॒सद॒ब्जा गो॒जाऽऋ॑त॒जाऽअ॑द्रि॒जा ऋ॒तम्बृ॒हत् ॥
भावार्थ:- मनुष्यों को उचित है कि सर्वत्र व्यापक और पदार्थो की शुद्धि करनेहारे ब्रह्मा परमात्मा ही की उपासना करें, क्योंकि उस की उपासना के बिना किसी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से होने वाला पूर्ण सुख कभी नहीं हो सकता।।
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