सनातन संस्कृति में मुंडन क्यूँ :—
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क्या आप जानते हैं कि हमारे सनातन धर्म में बच्चों के मुंडन की परंपरा क्यों बनाई गई है और केवल बच्चे ही क्यों …जन्म से लेकर मृत्यु तक के हमारे सोलह संस्कारों में भी मुंडन को हमारे हिन्दू धर्म में अनिवार्य माना गया है…! यहाँ तक कि हम हिन्दू सनातन धर्मियों में बच्चों का मुंडन जितना अनिवार्य है उतना ही अनिवार्य किसी नजदीकी रिश्तेदार की मृत्यु के समय भी है….और, इस तरह से मुंडन करवाना हम सनातनियों के संस्कार में सम्मिलित है …
लेकिन, हम से अधिकतर सनातनी बिना कुछ जाने समझे इसे केवल इसीलिए करते हैं क्योंकि हम बचपन से ही ऐसा देखते आये हैं….और, चूँकि हमारे पूर्वज भी ऐसा किया करते थे इसीलिए, हमलोग भी बस इसे एक “"आध्यात्मिक परंपरा”“ के तौर पर इसे निभा देते हैं…!
लेकिन यह जानकर हर किसी को बेहद हैरानी होगी कि मुंडन का आध्यात्म से कुछ लेना-देना नहीं है बल्कि यह एक शुद्ध विज्ञान है और, मुंडन संस्कार सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा है।
कारण :– वास्तव में जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो वो माँ के प्लीजेंटल फ्लूइड तैरता रहता है ….तथा, बच्चे के जन्म लेने के बाद उसके शरीर में प्लीजेंटल फ्लूइड में मौजूद रसायन एवं , कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं जो, साधारण तरह से धोने पर शरीर से तो निकल जाते हैं परन्तु, बाल होने के कारण सर से नहीं निकल पाते हैं….!अतएव , उसे पूरी तरह से साफ़ करने के लिए….. उस बाल को निकलना जरुरी होता है….
अतः… एक बार बच्चे का मुंडन जरूरी होता है……. ताकि, बच्चे को भविष्य में इन्फेक्शन का कोई खतरा ना रहे….
यही कारण है कि जन्म के एक साल के भीतर बच्चे का मुंडन कराया जाता है… और, लगभग कुछ ऐसा ही कारण मृत्यु के समय मुंडन का भी होता है….!जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो , उसमें से भी कुछ ऐसे ही जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं, क्यूंकि जलाते समय जो रासायनिक अभिक्रियाएँ होती है वो अत्यंत ही उच्च ताप एवम दाब पे होती है ,, और दाब के वातावरण के अंतर के कारण ही जीवाणु साधारण ( ठन्डे) वातावरण की तरफ DIFFUSE करते हैं …
इसीलिए, पार्थिव देह जलाने के बाद नदी में स्नान और धूप में बैठने की भी परंपरा है….क्योंकि आज हम सभी इस बात से अवगत हैं कि सूर्य की रोशनी में बहुत सारे बैक्टीरिया और वाइरस जीवित नहीं रह पाते हैं तदोपरांत, सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है ( यहाँ तक कि दाढ़ी और मूंछें तक निकाल दी जाती है )
यहाँ कुछ मनहूस सेक्यूलर आदतन ये बोल सकते हैं कि :– अगर मुंडन का यही कारण है तो, मुंडन तुरंत क्यों नहीं करवा दिया जाता है… तो उन कूढ़मगजों के लिए इतना ही समझा देना पर्याप्त है कि नवजात शिशु की त्वचा काफी कोमल होती है .
और, तुरंत ही उस पर ब्लेड चलाने से इन्फेक्शन का खतरा घटने के बजाए और, बढ़ ही जाएगा इसीलिए, लगभग ६ महीने साल भर तक इंतजार किया जाता है ताकि. वो नवजात शिशु बाहरी आवो-हवा का आदि हो जाए…उसी तरह किसी की मृत्यु के बाद भी तुरत मुंडन नहीं करवा कर कुछ दिन बाद ( नवमी के दिन ) मुंडन इसीलिए करवा जाता है ताकि, उस दौरान घर की पूरी तरह साफ़-सफाई की जा सके अन्यथा, मुंडन के बाद भी साफ़-सफाई करने से स्थिति वही रह जाएगी….!
अंत में इतना ही कहूँगा कि….. हम सनातनियों को गर्व करना चाहिए कि जो बातें हम आज के आधुनिकतम तकनीक के बाद भी ठीक से समझ नहीं पाते हैं,,,उस जीवाणु -विषाणु , और बैक्टीरिया -वाइरस एवं उससे होने वाले दुष्प्रभावों को हमारे पूर्वज ऋषि-मुनि हजारों-लाखों लाख पहले ही जान गए थे….! परन्तु चूँकि हर किसी को बारी-बारी विज्ञान की इतनी गूढ़ बातें समझानी संभव नहीं थी ( क्यूंकि हर कोई समझने समझाने के लायक नहीं होता) इसलिए, हमारे पूर्वजों ने इसे एक परंपरा का रूप दे दिया ताकि, उनके आने वाले वंशज (जो अगर साधारण बुद्धि के भी हैं ) सदियों तक उनके इन अमूल्य खोज का लाभ उठाते रहें….जैसे कि… हमलोग अभी उठा रहे हैं….!🚩🚩
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