Tuesday, January 12, 2016

॥ सामवेद ॥ ॥ ओ३म् ॥ नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं धीमहे वयम् । सुवीरमग्न आहुत ॥ ॥ सामवेद...

॥ सामवेद ॥
॥ ओ३म् ॥ नि त्वा नक्ष्य विश्पते द्युमन्तं धीमहे वयम् । सुवीरमग्न आहुत ॥
॥ सामवेद ।पूर्वार्चिकः । आग्नेयकाण्डम् ।प्रथमोSध्यायः ।प्रथमप्रपाठकस्य प्रथमोSर्ध: । तृतीया दशति: । मंत्रः ६ ॥
भावार्थ :- हे सर्वरक्षक प्रभो ! हमारा लक्ष्य तो आपकी निकटता प्राप्त करना है , इसलिए हम आपके ज्ञान प्रकाश के तेज का ध्यान करते है और उसे धारण करते है । हे प्रभु ! आप प्रजा के पालक है । हे प्रभु आप अपनी ज्ञानमयी ज्योति की दीप्ती से हमारे अज्ञानान्धकार को हटाकर हम सबको प्रगति मार्ग पर अग्रगामी बनानेवाले सर्वोत्तम वीर है ।
हे प्रभु ! आपने ही हमें उत्तम पदार्थो की प्राप्ति करायी है । हमारे उत्कर्ष के लिए आवश्यक सभी साधन और पदार्थ भी आपने उपलब्ध कराए है ।
हे प्रभु ! आपकी कृपा से हम भी , निः स्वार्थ भावसे औरों को दुःख से छुड़ाकर उत्तम स्थिति प्राप्त कराने में ही वीरता का अनुभव करें । औरों का पथ प्रदर्शन करते हुए स्वयं भी अग्रगामी बनें ।


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