यज्ञ करने के लिए सावधानियाँ :-
• यज्ञ की वेदी इस प्रकार की होनी चाहिए कि जितना चौकोर परिमाण ऊपर हो उससे चतुर्थांश नीचे को होना चाहिए । जैसे कि मान लो वेदी के ऊपर का चौकोर परिमाण 16’“ x 16” हो । तो उसके नीचे वाले चौकोर ( Base ) का परिमाण 4" x 4" होना चाहिए । इसके बिना जो अन्य वेदी होगी वो बेकार होगी ।
• वेदी को यदि संभव हो सके तो मिट्टी का ही बनवाना चाहिए । मिट्टी और गाँय के गोबर से दिसे प्रतीदिन शुद्ध कर लेना चाहिए । अन्यथा धातुओं में ताम्र ( तांबा ) सबसे उत्तम रहता है ।
• वेदी के चौकोर परिमाण पर पानी के लिए नाली अवश्य होनी चाहिए । आजकल इस बात का ध्यान नहीं दिया जाता बस थोड़ा पानी छिड़क कर नाली की खानापूर्ती कर ली जाती है ।
• यज्ञ के पात्रों को ताम्र या काष्ठ ( लकड़ी ) का होना चाहिए ।
• यज्ञ सामग्री जो होगी उसे ऋतु अनुकूल औषधियों से युक्त होना चाहिए जिसमें कि ऋतु अनुकूल फलादि भी सम्मिलित कर सकते हैं । जिससे कि वातावरण को पूर्ण लाभ हो । जैसे आजकल शिशर ऋतु ( माघ-फाल्गुन ) है तो उसके लिए इन वस्तुओं से युक्त सामग्री बनानी चाहिए :- अखरोट, कचूर, वायविडंग, राल, मुण्डी, मोचरस, गिलोय, मुनक्का, रेणुका, काले तिल, कस्तूरी, पत्रज, केशर चन्दन, चिरायता, छुआरा, तुलसी के बीज, गुग्गुल, चिरोंजी, काकडासिंगी, खांड, शतावर, दारुहल्दी, शंखपुष्पी, पदमाख, कौंच के बीज, जटामासी, भोजपत्र, गूलर की छाल, समिधा, मोहन भोग, गोघृत आदि । ठीक इसी प्रकार प्रत्येक ऋतुओं के लिए अलग-अलग औषधीयों से युक्त हवन सामग्री बनाने का विधान है । लोग इसका ध्यान नहीं देते और वर्ष भर पैकटों में उपलब्ध एक ही सामग्री से हवन करते हैं दिससे कि कोई लाभ नहीं मिलता ।
• यज्ञ के लिए गौघृत सर्वोत्तम है । वह न मिलने पर महिषीघृत ( भैंस का घी ) प्रयोग किया जा सकता है ।
• यज्ञ में प्रयोग होने वाली लकड़ियों का छिलका उतार लेना चाहिए । और लकड़ियाँ कृमि ( कीड़ों ) से रहित होनी चाहिएँ ।
• यज्ञ सामग्री घृत से अच्छी प्रकार मिली होनी चाहिए । तांकि सामग्री का प्रत्येक कण शीघ्र आग पकड़ ले ।
• यज्ञ में सामग्री तभी स्वाहा करनी चाहिए जब अग्नि तीव्र प्रज्वलित हो । अन्यथा कम अग्नि में सामग्री हवित करने से धूआँ उठेगा जिससे कि हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं और लाभ के स्थान हानी होती है । यज्ञ में इसी बात का ध्यान देना है कि धूआँ न बनने पाए अग्नि अधिक प्रज्वलित हो तांकि वो सामग्री के पदार्थों को अच्छे प्रकार से वायू में सूक्ष्म करके फैला देवे और संसार को लाभ पहुँचाए ।
• यज्ञ वेदी यदि किसी घर में बनाई है तो उसके ऊपर जाली लगानी चाहिए तांकि कोई अनपेक्षित पदार्थ अग्नि में घिरकर यज्ञ में विघ्न न डाले ।
• यज्ञ करने से पूर्व स्नान करना उचित है । तांकि शरीर में स्फूर्ति बनी रहे ।
• यज्ञ से पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए जिससे कि आलस्य होने पर बाधा आए । यदि आवश्यक हो तो थोड़ा सा फलों का रस लिया जा सकता है ।
• यज्ञ का सही समय दिन और रात की सन्धि वेला ही है । अर्थात् जब आकाश में सूर्य अरुण रूप में दृश्यमान हो । या आकाश में लालिमा हो । दिन में ऐसा समय दो बार आता है ( प्रातः और साँय ) । सूर्य की तीक्ष्ण किरणों में यज्ञ करने का कोई लाभ नहीं है और न ही इसका कोई विधान है ।
ये मुख्य बातें हैं जिनको ध्यान में रखकर यज्ञ करने से ही पूर्ण 100% लाभ होता है और पर्यावरण एवं मनुष्य मात्र का कल्याण इस यज्ञ रूपी पवित्र कार्य से होता है । जबतक आर्यवर्त देश में यज्ञ की परम्परा थी तबतक देश रोगों से रहित था । पुनः देश को रोगरहित करने का सबसे सरल एवं सटीक मार्ग यज्ञ ही है । आएँ हम सब पुनः ऋषियों के इस कार्य को आरम्भ करें और मानवमात्र का कल्याण करें ।
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