Sunday, January 3, 2016

२१ पौष 4 जनवरी 2016 😶 “ हे दिशाओं के पालक ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् आ पवस्य दिशां पत...

२१ पौष 4 जनवरी 2016

😶 “ हे दिशाओं के पालक ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् आ पवस्य दिशां पत आर्जिकात् सोम मीढ्व: । 🔥🔥
🍃🍂 ऋतवाकेन सत्येन श्रद्धया तपसा सुत इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव ।। 🍂🍃

ऋक्० ९ ।११३ । २

ऋषि:- कश्यप: ।। देवता- सोम: ।। छन्द:-विराट्पक्त्ङि: ।।

शब्दार्थ- हे सोम! हे दिशाओं के पालक! हे सिंचन करनेवाले! तुम सरलता के लोक से आओ, क्षरित होओ। तुम सत्यवचन से सत्य व्यवहार से श्रद्धा से तप से अभिषुत होते हो, उत्पन्न होते हो। हे सोम! तुम आत्मा के लिए परिस्त्रुत होओ।

विनय:- सोम! तुम इन्द्र के लिए परिस्त्रुत होओ। हे ज्ञानमय भक्तिभाव! तुम मुझ आत्मा के लिए परिस्त्रुत होओ। तुम कहाँ से परिस्त्रुत होते हो और तुम कैसे अभिषुत होते हो यह मैं जानता हूँ। हे दिशाओं के पति! तुम ऊपर से बरसते हो और दिशाओं का, चारों दिशाओं में बसनेवाले संसार का रसप्रदान द्वारा परिपालन करते हो। तुम मेरे अन्दर की दिशाओं के, चतुर्विध प्रेरणाओं के भी रक्षक हो, पर तुम ऊपर जिस स्थान विशेष से आते हो वह ‘आर्जिक’ है, ऋजुभाव है, सरलता और समता का लोक है। जहाँ सरलता, अकुटिलता नहीं है वहाँ तुम्हारा प्रादुर्भाव नहीं हो सकता। सरलभाव तुम्हारी जन्मभूमि है। इस 'आर्जिक’ से आते हुए, हे सिंचन करनेवाले! तुम मेरे सम्पूर्ण अन्तस्तल को अपने रस से सिंचित कर देते हो। मेरे रोम-रोम को अपने अमृत से नहला देते हो। इस प्रकार के हे सोम! तुम मुझमें आओ। सत्य वचन, सत्य व्यवहार, श्रद्धा और तप द्वारा उत्पन्न होकर मुझमें आओ। मैं खूब जानता हूँ कि सत्यवचन और सत्यकर्म के नियमों का पालन किये बिना भक्तिभाव उदित नहीं होता है। श्रद्धापूर्वक कष्ट सहे बिना प्रेम का प्रसाद नहीं मिलता। इन चारों साधनों को साधित कर लेने पर ज्ञान का निष्पादन होता है। इसलिए वचन और कर्म में सत्य का व्रत लेकर अटल श्रद्धा को धारण करके और कठोर तपस्या करता हुआ ही मैं प्रार्थना कर रहा हूँ। “हे सोम! तुम मुझमें आओ। मेरी आत्मा तुम्हारी प्यासी है, इसलिए हे इन्द्र! तुम मुझमें परिस्त्रुत होओ, इस आत्मा के लिए क्षरित होओ।”


🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


from Tumblr http://ift.tt/1RYTmqn
via IFTTT

No comments:

Post a Comment