Friday, January 1, 2016

“आस्था” का पोस्टमार्टम भाग ३ 📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी मित्रों मै ने पिछले भाग मे एक...

“आस्था” का पोस्टमार्टम
भाग ३
📝 एक कट्टर वैदिकधर्मी


मित्रों मै ने पिछले भाग मे एक उदाहरण के द्वारा “विश्वास” को समझाने की कोशीश किया था . शायद हर व्यक्ति “विश्वास” से भलीभांति परिचित है क्योंकि मनुष्य का हर कार्य मे यह भाव छुपा रहता है ,, यदि भूख लगी तो विश्वास है कि खाने पर यह मिट जाएगी , नींद आई तो विश्वास है कि सोने पर संतुष्टि हो जाएगी , इसी प्रकार यह “विश्वास” अध्यात्मिक जगत मे अपना कार्य करता है . जैसे प्रत्येक को यह भान रहता है कि अच्छे कार्यों का नतीजा अच्छा ही होता है अर्थात् उसे विश्वास है अच्छे कर्मों का फल ईश्वर उन्हे अच्छा ही देगा और बुरे कर्मो का फल बुरा . अर्थात्  “विश्वास” मनुष्य को अपनी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं को पुरा करने मे बहुत सहायक होता है , इसके बिना आप कुछ भी नही कर सकते है . ठीक इसका विपरित एक शब्द है “अंधविश्वास” . आजकल इस “अंधविश्वास” का बहुत बोलबाला है यद्यपि सामान्य कार्यों मे मनुष्य “विश्वास” का ही सहारा लेता है क्योंकि यदि आपको दिल्ली जाना है और विश्वास करके आप कोलकाता वाली ट्रेन पर बैठ जाएं तो आप दिल्ली नही पहुंच पायेंगे क्योंकि आपने विश्वास नही अंधविश्वास करके यह ट्रेन पकड़ी है अर्थात् सामन्य कार्य लोग “विश्वास” के सहारे ही करता है  , लेकिन बात जब अध्यात्मिक जगत की आती है तो मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग छोड़ “विश्वास” की जगह “अंधविश्वास” की शरण मे जाकर ठोकरें खाता है .आईये देखते है लोग किस तरह का भूल कर अपना समय और ऊर्जा नष्ट कर रहे है ….
👉 ईश्वर एक है , इसे ही मानना और जानना “विश्वास” कहलाता है लेकिन बहुत सारे देवी-देवताओं , महापुरुषों , संत-महात्माओं आदि को ईश्वर के रुप मे मानना “अंधविश्वास” है .
👉 ईश्वर निराकार है , इसे मानना और जानना “विश्वास” है परन्तु पत्थर, काष्ठ, धातु आदि वस्तुओं द्वारा अपने अनुसार मूर्ति बनाकर उस सारे संसार के कर्ता-धर्ता को एक छोटी सी जगह मे कैद कर ताले लगाना ,  उस मे खुद से प्राण डालकर उनकी चेतनता की भद्दी मजाक उड़ाना आदि “अंधविश्वास” है .
👉 ईश्वर सर्वशक्तिमान है , यह मानना और जानना “विश्वास” है परन्तु किसी रावण, कंस, हिरण्यकशिपू आदि तुच्छ मनुष्यों को मारने हेतु अपनी निराकार-गुण के विपरित किसी मनुष्य के गर्व मे आना और जन्म लेना आदि प्रक्रिया “अंधविश्वास” है .
👉 ईश्वर न्यायकारी है अर्थात् शुभाशुभ कार्यों का फल अवश्य देता है , यह मानना और जानना ही “विश्वास” है परन्तु राम-राम जपने, राधे-राधे पुकारने, दस कोष अलग से ही गंगे-गंगे पुकारने या गंगा मे डुबकी लगाने , सुबह और शाम शिवलिंग का दर्शन और स्पर्शन् करने , सप्ताह के सातों दिन व्रत रखने , चार धाम की यात्रा करने, रुद्राक्ष पहनने, नंग-धरंग होकर कुंभ मे भाग लेने आदि कार्यों से पाप माफ हो जाता है , यह “अंधविश्वास” है .


अब अगले भाग मे पढ़ंगें फिर “आस्था” पर आयेंगे !!
क्रमश :
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